खनन इंजीनियरी में कॅरिअर
पृथ्वी के गर्भ में छिपी अपार संपदा
डॉ. मनीषा अग्रवाल
भारत में खनिज उद्योग बहुत बड़ा और सुविकसित है। कोयला, चूना पत्थर, लौह अयस्क और यूरेनियम कुछ ऐसे खनिज हैं जो भारत के आर्थिक विकास का निर्धारण करने और बिजली की इसकी बढ़ती हुई मांग को पूरा करने में बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में, विश्व का छठा सबसे बड़ा लौह-अयस्क भंडार है और विश्व में यह चौथा सबसे बड़ा लौह-अयस्क उत्पादक देश है। हमारे देश में विश्व का आठवां सबसे बड़ा बॉक्साइट अयस्क भंडार है और यह विश्व में, पांचवां सबसे बड़ा बॉक्साइट अयस्क उत्पादक है। हमारे यहां 302 बिलियन टन कोयले का भंडार है और देश भर में 3000 से भी अधिक चालू खानें (छोटे खनिजों, कच्चे पेट्रोलियम, परमाणु खनिजों तथा प्राकृतिक गैस के खनन क्षेत्रों को छोड़ कर) है।
आशा है कि अगले 15 वर्षों में विभिन्न धातुओं एवं खनिजों की मांग पर्याप्त रूप में बढ़ेगी। बिजली तथा सीमेंट उद्योगों का त्वरित विकास हमारे धातु एवं खनिज क्षेत्र के लिए एक अच्छा समाचार है। खान एवं खनिज विकास तथा विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2015 के अनुसार, बड़े खनिजों के लिए सभी खनन पट्टे 50 वर्षों की अवधि के लिए दिए जाएंगे। इस कदम से, आशा है कि खनन क्षेत्र की वृद्धि में पर्याप्त सहायता मिलेगी।
भारतीय उद्योग संघ (सी।आई।आई।) राष्ट्रीय हाइड्रो-कार्बन समिति के अध्यक्ष शशि मुकुंदन ने भी कहा है कि सरकार द्वारा नई नीति की घोषणाओं से तेल एवं गैस क्षेत्र में 2022 तक 2।5 लाख करोड़ रु। से 3 लाख करोड़ रु। तक के एक निवेश के खुलने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस निवेश का उपयोग घरेलू गैस तथा तेल भण्डारों का पता लगाने, पता लगाए गए भण्डारों का विकास करने तथा तेल रिकवरी योजनाओं और प्रौद्योगिकी को बढ़ाने के लिए किया जाएगा।
निस्संदेह, खनन क्षेत्र में, वर्तमान कार्य-बल के लिए और इस क्षेत्र में आने वाले नए व्यक्तियों के लिए रोजग़ार तथा कॅरिअर विकास के शानदार अवसर हैं।
खनन उद्योग में उच्च वेतन के रोजग़ार
खनन उद्योग में उच्च वेतन के कुछ रोजग़ार निम्नलिखित हैं:-
खनन इंजीनियरी
एक खनन इंजीनियर सुनिश्चित करता है कि खान एवं उसकी संबंधित सतह तथा भूमिगत कार्य सुरक्षित एवं व्यवस्थित बने रहें। उनसे किसी खान परियोजना के सभी चरणों पर लगने वाले तकनीकी ज्ञान तथा प्रबंधन कौशल रखने, एवं इन संरचनाओं के, उनके आसपास के पर्यावरण पर प्रभाव का मूल्यांकन करने की आशा की जाती है। खान-संरचना की योजना बनाने के लिए नए स्थल पर किसी खान का विकास करने की व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने से लेकर, खनन उत्पादन प्रक्रिया का प्रबंधन तथा निगरानी करने, खान को बंद करने और उस स्थान को पुन: सुधारने तक के सभी कार्यों में खनन इंजीनियर ही निहित होते हैं।
खनन इंजीनियर भारत एवं विदेश में खनन परामर्श, तेल एवं गैस उत्पादन, खनिज प्रोसेसिंग, सुरंग बनाने एवं उत्खनन के क्षेत्र में अनेक रोजग़ार तलाश कर सकते हैं। सामान्यत: खनन इंजीनियर के कार्य-घंटे लंबे होते हैं। यदि आपको विदेश में किसी स्थल (साइट) पर कार्य करने का अवसर मिलता है तो संभवत: उस स्थल पर आपको तीन महीने कार्य करना होगा और उसके बाद आपको दो सप्ताह का अवकाश मिलेगा। इस कार्य में भौतिकीय मांग नहीं होती, किंतु अधिकांश इंजीनियर स्थल पर चुनौतीपूर्ण स्थितियों में कार्य करते हैं।
खनन इंजीनियरी में डिग्री के अलावा, जो व्यक्ति खनन एवं खनिज इंजीनियरी, खान एवं उत्खनन इंजीनियरी, सिविल इंजीनियरी, खनिज सर्वेक्षण या भू-विज्ञान में डिग्री रखते हैं वे भी इस क्षेत्र में कॅरिअर बना सकते हैं।
खनिज सर्वेक्षक:
खनिज सर्वेक्षक किसी प्रत्याशित उत्खनन वाली खान के जोखिम तथा वाणिज्यिक संभावना का सर्वेक्षण करते हैं, उसके खनिज निक्षेप की रूपरेखा बनाते हैं और पर्यावरण पर पडऩे वाले उसके प्रभाव का अनुमान लगाते हैं - वे किसी स्थल विशेष पर खनन की आर्थिक व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए उसका सर्वेक्षण तैयार करते हैं, योजना अनुप्रयोग का समर्थन करते हैं और विधिक अनुबंध कराने तथा खान में कार्य करने के अधिकारों के समझौते करने में सहायता करते हैं। वे स्थल के प्रबंधन एवं विकास तथा यह योजना बनाने तथा रिकॉर्ड रखने में भी सहायता करते हैं कि खान से कितना खनिज निकाला जा रहा है। खान से अधिकतम खनिज निकालने के बाद सर्वेक्षक भूमि में सुधार करने के लिए प्राय: खनन इंजीनियरों और योजना तथा विकास सर्वेक्षकों के साथ कार्य करते हैं। पीट वर्किंग, तटवर्ती तेल एवं गैस संस्थापनाओं खान जल शोधन संयंत्रों, मिथेन एक्सट्रेक्शन स्थलों, खनिज प्रोसेसिंग संयंत्रों, भूमि भराव तथा मल-प्रबंधन स्थलों, मल अंतरण खंडों, मल भस्मकों, पुन: चक्रण केन्द्रों, ब्रिक कार्यों और कंक्रीट तथा सीमेंट कार्यों में भी प्राय: खनिज सर्वेक्षकों को लगाया जाता है, ताकि स्थलों पर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इनके कार्य-घंटे प्राय: सामान्य होते हैं, किंतु कई बार कार्य समय पर पूरा करने के लिए इन्हें प्रात: से लेकर देर रात तक कार्य करना पड़ सकता है या सप्ताह के अंतिम दिनों में कार्य करना पड़ता है। सिविल इंजीनियरी, खान इंजीनियरी, पृथ्वी-विज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगोल और भूविज्ञान में स्नातक व्यक्ति इस क्षेत्र में आ सकते हैं। चूंकि कार्य भौतिकीय मांग की प्रकृति का होता है, इसलिए स्वास्थ्य एवं आवागमन की क्षमता अच्छे स्तर की होनी चाहिए। आपको स्थल निरीक्षण के दौरान खुदे हुए क्षेत्रों या खानों में जाना पड़ सकता है। स्थल की अवस्थिति के आधार पर व्यापक यात्रा करनी पड़ सकती है और सभी मौसमों में गंदे स्थलों पर या अंधेरे में सीलन भरी और कठोर भूमिगत खानों में कार्य करना पड़ सकता है।
खानों में सुरक्षा नियमों का पालन करना और मजबूत तथा कड़े हैट पहनना, सुरक्षात्मक कपड़े पहनना और सभी आवश्यक उपस्कर साथ रखना आवश्यक होता है। ध्यान रखें कि खनन उपस्कर भी काफी शोर-गुल वाले हो सकते हैं। कई कंपनियां ड्राइविंग लाइसेंस धारी उम्मीदवारों को वरीयता देती हैं ताकि वे एक स्थल से दूसरे स्थल पर आसानी से आ-जा सकें।
धातुकर्मी :
धातुकर्मी विभिन्न धातुओं तथा एलॉय की खुदाई तथा प्रोसेसिंग कार्य करते हैं। खनन उद्योग सामान्यत: रासायनिक धातुकर्मी अथवा निष्कषर्ण धातुकर्मी रखते हैं जो अयस्कों से उपयोगी धातुओं को निकालने तथा संक्षारण के लिए उनकी निगरानी तथा जांच करने, धातुओं को मजबूत और अधिक स्वीकार्य बनाने के उपाय तलाशने तथा उनकी जांच करने का कार्य करते हैं, ताकि वह सुनिश्चित किया जा सके वे गुणवत्ता एवं सुरक्षा मानकों पर खरा उतरें। रासायनिक इंजीनियरी, सामग्री विज्ञान या इंजीनियरी और धातुकर्म में कोई डिग्री आपको इस क्षेत्र में रोजग़ार दिला सकती है। अनुप्रयुक्तविज्ञान, विनिर्माण इंजीनियरी और यांत्रिक इंजीनियरी में डिग्रीधारी व्यक्ति भी इन कार्यों के लिए आवेदन कर सकते है। इन विषयों में डिप्लोमाधारी व्यक्ति तकनीशियन के रूप में निचले स्तर पर रखे जा सकते हैं।
खदान (क्वेरी) प्रबंधक
खदान प्रबंधक यह सुनिश्चित करते हैं कि खदानों, खड्ढों और ओपन-कास्ट स्थलों पर कार्य सुचारू रूप से, कुशल एवं सुरक्षित रूप से हो रहा है। उन्हें सभी प्रकार की चट्टान और पत्थर, इंटें और बाल क्ले, स्लेट, बालू तथा ग्रेबेल, चिकनी मिट्टी, कोयला तथा खनिज उत्पादक खदानों एवं उनके सहायक संयंत्रों तथा एस्फाल्ट, कंक्रीट उत्पाद, तैयार मिश्रित कंक्रीट, सीमेंट, लाइम, ग्लास और रिफ्रेक्टरी रेत, ईंटें एवं टाइलें तथा अन्य परिष्कृत उत्पाद देने वाले उद्योगों में रोजग़ार प्राप्त हो सकता है। खदान प्रबंधकों को, लम्बे कार्य-घंटों के अलावा आवश्यकता के समय आपात स्थितियां भी संभालनी पड़ सकती हैं। खदान लाभकारी रहें यह सुनिश्चित करने के लिए कार्यालय के साथ-साथ स्थल पर भी कार्य करना पड़ता है। कई खदानों का प्रबंधन कार्य देखने वाले व्यक्तियों को निरंतर भ्रमण करना अपेक्षित होता है। खनन इंजीनियरी या प्रौद्योगिकी, खनिज इंजीनियरी या सर्वेक्षण, पर्यावरण विज्ञान या इंजीनियरी, सामग्री विज्ञान, भौतिकी, भूभौतिकी, भूविज्ञान या खनन भूविज्ञान, पृथ्वी विज्ञान एवं रसायन विज्ञान या औद्योगिक रसायन विज्ञान में कोई डिग्री आपको यह रोजग़ार दिला सकती है।
जल-भूविज्ञानी
खनन या उत्खनन उद्योग भूजल प्रबंधन के लिए जल-भूविज्ञानी की सेवा लेते हैं। जल-भूविज्ञानी भूमिगत जल के वितरण, बहाव और गुणता का अध्ययन करते हैं, एक संकल्पनात्मक मॉडल तैयार करने के लिए नक्शों या ऐतिहासिक प्रलेखों से तकनीकी सूचना की व्याख्या करते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कार्य मॉडल के अनुरूप हैं वे परिवेश का नमूना तथा माप कार्य में लगाए जा सकते हैं, तथा भावी प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने और भूमिगत जल के बहाव तथा गुणता पर खनन के प्रभाव का पता लगाने के लिए मॉडलिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं। यद्यपि, किसी जल-भूविज्ञानी का कार्य अधिकांशत: कार्यालय या प्रयोगशाला आधारित होता है, किंतु उनके कार्यों में स्थल के दौरे करना और क्षेत्रगत प्राय: दूरवर्ती या दुर्गम क्षेत्रों में कार्य करना भी अपेक्षित होता है। जल-भूविज्ञान, भूरसायन-विज्ञान, इंजीनियरी, भूविज्ञान या पर्यावरण विज्ञान में कोई स्नातकोत्तर डिग्री आपको इस क्षेत्र में रोजग़ार के बेहतर अवसर दिलाने में सहायक होती है।
सामग्री इंजीनियर या सामग्री वैज्ञानिक
सामग्री इंजीनियर या सामग्री वैज्ञानिक, कच्चे माल से लेकर तैयार उत्पादों तक के विभिन्न पदार्थों की सम्पत्तियों तथा संव्यवहार के बारे में अनुसंधान करते हैं। वे किसी उत्पाद की लागत-प्रभावकारिता, उसके स्थायित्व और निष्पादन तथा उस उत्पाद के प्रोसेस में सुधार लाने के लिए विभिन्न उद्योगों में कार्य करते हैं। वे प्राय: औद्योगिक खनिजों, धातुओं, मृदा, रसायनों, कम्पोजिट्स, ग्लास, प्लास्टिक, पॉलिमर तथा रबर एवं वस्त्र से जुड़े कार्य करते हैं। यह मुख्य रूप से कार्यालय आधारित या प्रयोगशाला आधारित कार्य होता है और आज-कल इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की तीव्र गति से उन्नति के कारण उच्च स्तर की अनुकूलता बनाए रखना आवश्यक होता है। सामग्री इंजीनियरी, विज्ञान या प्रौद्योगिकी के अलावा, खनिज या खनन इंजीनियरी, रासायनिक इंजीनियरी, यांत्रिक इंजीनियरी, संरचनात्मक इंजीनियरी, पोलिमर विज्ञान या प्रौद्योगिकी, सिरेमिक्स तथा ग्लास रसायन विज्ञान, अनुप्रयुक्त रसायन विज्ञान, भौतिकी, अनुप्रयुक्त भौतिकी, धातुकर्म और भू-विज्ञान में कोई डिग्री आपको इस क्षेत्र में रोजग़ार दिला सकती है।
भूभौतिकीविद् या क्षेत्रगत भूकम्पविज्ञानी
खनन कंपनियां, सरकारी निकाय तथा पर्यावरण से जुड़ी एजेंसियां मैग्नेटिक, वैद्युत, भूकम्पीय एवं गुरुत्वाकर्षी मापों जैसी विविध पद्धतियों का उपयोग करके पृथ्वी के भौतिकीय पहलुओं का मूल्यांकन करने के लिए भूभौतिकीविदों या क्षेत्रगत भूकम्पविज्ञानियों की सेवाएं लेती है। वे तेल एवं गैस उद्योगों में यह पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि पृथ्वी की सतह के नीचे तथा भूकम्पीय तरंगों पर सूचना पर आधारित हाइड्रोकार्बन्स के निर्माण में क्या निहित है।
भूभौतिकीविदों को समुद्र में भी कार्य करना पड़ सकता है। जहां एक कार्य-दिवस 12 घंटों के लगभग होता है। समुद्र के ये दौरे एक दिन के हो सकते हैं या चार अथवा यहां तक कि छह सप्ताह तक के भी हो सकते हैं। तथापि, अधिकांश भूभौतिकीविद् प्रयोगशालाओं तथा कार्यालयों में सुरक्षित तथा सुखद कार्य-स्थितियों में कार्य करते हैं। इंजीनियरी, भूविज्ञान, भूभौतिकी, भूविज्ञान, गणित, भौतिकी या अनुप्रयुक्त विज्ञान में डिग्रीधारी स्नातक व्यक्ति इस रोजग़ार में डिग्रीधारी स्नातक व्यक्ति इस रोजग़ार में आ सकते हैं। इन क्षेत्रों में डिप्लेमाधारी इस क्षेत्र में तकनीशियन के स्तर के रोजग़ार के लिए आवेदन कर सकते हैं।
स्वास्थ्य एवं सुरक्षा निरीक्षक:
खनन एक जोखिमपूर्ण व्यवसाय है। यद्यपि, यह विश्व में केवल 1' ही है, किंतु इसमें कार्य-स्थलों पर 7' घातक दुर्घटनाओं की संभावना होती है। इस क्षेत्र में निरंतर सजग रहने, सुरक्षित-एवं-उपयुक्त तथा अच्छी कोटि की सामग्रियों और पद्धतियों का उपयोग करना नितांत आवश्यक है। व्यक्तियों को उनके कार्य-स्थल पर सुरक्षित एवं स्वस्थ रखने तथा जोखिमों पर उपयुक्त नियंत्रण रखने के लिए खानों तथा भू-भराव स्थलों पर स्वास्थ्य एवं सुरक्षा निरीक्षक तैनात किए जाते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि कर्मचारी स्वास्थ्य एवं सुरक्षाविधियों, नियमों और विनियमों का पालन करें और किसी बीमारी, चोट अथवा दुर्घटना से होने वाली मृत्यु से बचे रहें।
इनके कार्यों में आंतरिक तथा बाहरी-दोनों कार्य शामिल होते हैं। किसी गंभीर दुर्घटना अथवा स्थिति में, स्वास्थ्य तथा सुरक्षा निरीक्षकों को अत्यधिक शोर वाली, गंदी, तनावपूर्ण और यहां तक कि खतरनाक स्थितियों में कार्य करना पड़ सकता है। इंजीनियर, औषधि का पर्यावरण-स्वास्थ्य में कोई डिग्री आपको यह रोजग़ार दिला सकती है। किसी भी उम्मीदवार से यदि आवश्यक हुआ तो, असमतल सतहों तथा बाधाओं में कार्य करने तथा ऊंचे स्थानों पर चढऩे में सक्षम होने के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ तथा फूर्तिवान होने की अपेक्षा की जाती है।
पेट्रोलियम इंजीनियर
पेट्रोलियम इंजीनियर तेल एवं गैस क्षेत्रों, उनके विकास एवं उत्पादों का मूल्यांकन करते हैं। वे न्यूनतम लागत पर अधिकतम हाइड्रोकार्बन रिकवर करने का प्रयास करते हैं एवं पर्यावरण के प्रभाव को न्यूनतम बनाए रखते समय इस तथ्य को ध्यान में रखते हैं। उन्हें भूवैज्ञानिक - जो हाइड्रोकार्बन का पता लगाने के लिए उप-सतही संरचनाओं का विश्लेषण करते हैं के रूप में अथवा ऐसे रिजर्वायर इंजीनियर के रूप में कार्य करना पड़ सकता है जो जोखिमों का मूल्यांकन करने में कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग करते हैं और किसी भी भंडार की संभावनाओं का पूर्वानुमान करते है तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस प्राप्ति तकनीकों में सुधार लाने में सहायता करते हैं।
अधिकांश कंपनियां, लचीली कार्य पद्धतियां देती हैं, किंतु समुद्र में इनका कार्य-दिवस 12-घंटों का हो सकता है। विशिष्ट रूप से समुद्र में दो सप्ताह के कार्य के बाद तट पर दो सप्ताह का अंतराल मिलता है। पेट्रोलियम इंजीनियरी के रासायनिक, यांत्रिक, वैमानिक या सिविल इंजीनियरी में भी आपको इस क्षेत्र मं रोजग़ार के अवसर दिला सकती हैं। इस क्षेत्र में आपको रोजग़ार दिला सकने वाली अन्य डिग्रियों में पराभौतिकी, पृथ्वी विज्ञान एवं गणित शामिल हैं।
मडलॉगर
मडलॉगर तेल एवं गैस निष्कर्षण के दौरान कुआं स्थलों की ड्रिलिंग के कार्य पर निगरानी रखते हैं और रिकॉर्ड करते हैं, उनकी तैनाती एवं दक्षता पर निर्णय सूचना देना संभव बनाते हैं। उनके निगरानी कार्यों में ड्रिलिंग रोटेशन की गति, पेनेट्रेशन की दर, कटिंग दर, मध्य-बहाव दर, खड्ढों के स्तर तथा तेल और गैस शो पर ध्यान रखना है, मड-लॉग सृजन के लिए वे अल्ट्रावायलेट फ्लोरेसेंस, बायनाकुलर माइक्रोस्कोप तथा थिन सेक्शन विश्लेषण सहित विभिन्न प्रयोगशाला-तकनीकों और उपस्करों का प्रयोग करते हैं।
अधिकांश मडलोगर्स लगातार चार सप्ताह तक रिग पर एक दिन में 12 घंटे और एक सप्ताह में 7 दिन तक कार्य करते हैं और उसके बाद उन्हें 2 सप्ताह का अंतराल मिलता है। वे प्राय: प्रतिबंधित स्थानों पर कार्य करते हैं और ऐसे स्थानों पर मौसम की स्थिति खराब हो सकती है। विश्व भर में रिग्स की बढ़ती हुई संख्या में आज-कल महिलाओं के लिए पृथक सुविधाएं दिला दी हैं।
भूविज्ञान, भौतिकी, अनुप्रयुक्त भौतिकी, रसायनविज्ञान, भू-रसायन विज्ञान, गणित, अनुप्रयुक्त गणित, खनिज, खनन या पेट्रोलियम इंजीनियरी, या भू-भौतिकी अथवा भूप्रौद्योगिकी में कोई डिग्री आपको यह रोजग़ार दिला सकती है।
भारत में खनन इंजीनियरी पाठ्यक्रम चलाने वाले प्रमुख संस्थान
*भागा खनन (राजकीय पॉलिटेकनीक), भागा
*बिरसा प्रौद्योगिकी संस्थान, सिंद्री
*भारतीय इंजीनियरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.ई.एस।टी.), शिबपुर
*भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बी.एच.यू.), वाराणसी
*भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पूर्व भारतीय खनि विद्यापीठ (आई.एस.एम.), धनबाद
*भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.), खडग़पुर
*जेएनटीयूएच इंजीनियरी कॉलेज मन्थानी, जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हैदराबाद
*भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एन.आई.टी.), कर्नाटक
*भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एन.आई.टी.), रायपुर
*भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एन.आई.टी.), राउरकेला
*विश्वविद्यालय इंजीनियरी कॉलेज, काकतीया विश्वविद्यालय
*विश्वेस्वरैया भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (वी.एन.आई.टी.) नागपुर
भारत में रोजग़ार-संभावना
भारत 88 खनिजों का उत्पादन करता है, जिनमें से 04 ईंधन से संबंधित हैं, 10 मेटालिक हैं, 50 गैर-मेटालिक और 24 छोटे खनिज हैं। यह दशकों की एक सफलता-गाथा है।
सी।आई।आई। ग्लोबल माइनिंग समिट-2014 में प्रस्तुत की गई मेककिन्से कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय खनन क्षेत्र में 60 लाख नए रोजग़ार सृजित करने की संभावना है और क्षेत्र 2025 तक भारत के जी।डी।पी। में 4700/- करोड़ अमरीकी डॉलर का योगदान करेगा।
इस उद्योग के लिए यह समय आगे-आने और सही समय पर अवसर का लाभ लेना है।
(लेखिका एक स्तंभकार हैं । ई-मेल: manishaagaarwal7@gmail.com)