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Volume-51, 17-29 March, 2018

 

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस

डॉ. शीतल कपूर

उपभोक्ता आंदोलन का अर्थ है जागरूकता, शिक्षा और विकास के संदर्भ में उपभोक्ताओं को सामूहिक शक्ति प्रदान करने की दिशा में किसी देश को आगे ले जाना. उपभोक्ता आंदोलन एक ऐसा सामाजिक आंदोलन है, जो उपभोक्ताओं की आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ मेल-जोल की शक्ति को बढ़ाकर लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाने का प्रयास करता है.

फिलिप कोटलर के अनुसार ‘‘उपभोक्तावाद एक सामाजिक आंदोलन है तथा सरकारी एजेंसियों का कार्य, क्रेता के अधिकारों में सुधार लाना और विक्रेताओं से जुड़ी शक्तियों में सुधार लाना है. उपभोक्तावाद अथवा उपभोक्ता आंदोलन मूलत: बाजार को विक्रेताओं के बाजार के स्थान पर क्रेताओं के बाजार की ओर ले जाता है तथा उपभोक्ताओं को उनके उपभोक्ता अधिकारों के बारे में सशक्त करता है. उपभोक्ता आंदोलन कुछ सीमा तक कारोबार के सामाजिक-आर्थिक वातावरण को प्रभावित करता है. भारत जैसे देश में जहां अनपढ़ लोगों की संख्या काफी है, जहां लोगों की जागरूकता कम है और जहां महत्वपूर्ण सामग्रियों की हमेशा ही आपूर्ति कम होती है, ऐसे में सरकार की एक महत्वपूर्ण भूमिका है कि वह एक निष्पक्ष प्रतियोगिता के वातावरण को बढ़ावा देकर उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करे तथा उपभोक्ताओं को शोषण से बचाएं.

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस का इतिहास

विश्व के विभिन्न हिस्से में १५ मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है. इस तिथि का एक ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि इसी दिन १९६२ में जॉन एफ कैनेडी द्वारा अमरीकी कांग्रेस में उपभोक्ता अधिकार विधेयक पेश किया गया था. जॉन एफ. कैनेडी ने आम अमरीकी उपभोक्ताओं के अधिकारों की तुलना राष्ट्रीय हित से की थी. अपने भाषण में राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने कहा था: ‘‘यदि उपभोक्ताओं को घटिया उत्पाद दिए जाते हैं, यदि कीमतें अनियंत्रित हों, यदि दवाएं असुरक्षित अथवा बेमतलब हैं, यदि उपभोक्ता जानकारी के आधार पर सामग्री का चयन कर पाने में समर्थन नहीं हैं, तो उनका डॉलर नष्ट होता है, उनके स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के सामने चुनौती हो तो राष्ट्रीय सुरक्षा आहत होती है.’’ राष्ट्रपति कैनेडी ने ही पहली बार १५ मार्च, १९६२ को अमरीकी कांग्रेस को दिए अपने संदेश में उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा की थी तथा ‘‘सूचना का अधिकार, चयन का अधिकार तथा उपभोक्ताओं के लिए मूलभूत अधिकारों के रूप में सुने जाने का अधिकार’’ का आह्वान किया था.

बाद में, अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता संघ संगठन जो फिलहाल कंज्यूमर्स इंटरनेशनल है, ने चार अन्य अधिकार इसमें जोड़ दिए, जैसे समाधान का अधिकार, उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार, स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार और मूलभूत जरूरतों का अधिकार. इन अधिकारों को संयुक्त राष्ट्र उपभोक्ता अधिकार चार्टर में शामिल किया गया था. संयुक्त राष्ट्र उपभोक्ता संरक्षण मार्गनिर्देश में ऐसे महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल हैं, जिससे कारगर उपभोक्ता संरक्षण विधान, कार्यान्वयन संस्थान तथा समाधान प्रणाली की मुख्य विशेषताएं निर्धारित होती हैं.

इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र उपभोक्ता संरक्षण मार्ग निर्देश से सदस्य देशों को घरेलू तथा क्षेत्रीय कानूनों को तैयार करने तथा लागू करने, ऐसे नियम तथा नियमन तैयार करने तथा लागू करने में सहायता मिलती है, जो उनकी आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हों; इनसे सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय कार्यान्वयन सहयोग को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ उपभोक्ता संरक्षण से जुड़ेे अनुभवों को भी साझा करने में सहयोग मिलता है. इन मार्ग निर्देशों को पहली बार १६ अप्रैल, १९८५ के प्रस्ताव ३९/२४८ को महासभा द्वारा लागू किया गया था, बाद में आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा २६ जुलाई, १९९९ के प्रस्ताव १९९९/७ में विस्तारित किया गया तथा २२ दिसम्बर, २०१५ के प्रस्ताव ७०/१८६ में महासभा द्वारा संशोधित तथा लागू किया गया. भारत सरकार ने भी इन अधिकारों को महत्व दिया तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, १९८६ के खंड-६ में छ: अधिकारों को शामिल किया गया, जैसे सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चयन का अधिकार, सुनवाई का अधिकार, क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार तथा शिक्षा का अधिकार.

भारत में उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में नवीनतम बदलाव उपभोक्ता कानून को अधिक प्रभावकारी, क्रियाशील तथा उद्देश्यपूर्ण बनाने के उद्देश्य से मौजूदा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, १९८६ का व्यापक तौर पर उन्नयन करते हुए एक नया विधेयक पेश किया गया है जो संसद में विचाराधीन है. इस विधेयक की मुख्य विशेषताएं हैं:

(क) उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षित करने तथा कार्यान्वित करने, गलत कारोबार से उपभोक्ता को बचाने हेतु आवश्यकतानुसार जांच तथा हस्तक्षेप करने के साथ-साथ भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध कार्रवाई करने के उद्देश्य से केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना.

(ख) निर्माता का उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुए किसी उत्पाद के कारण होनेवाले नुकसान के लिए ‘‘उत्पाद उत्तरदायित्व’’ के लिए कार्रवाई के प्रावधान.

(ग) एक वैकल्पिक समाधान प्रणाली के रूप में मध्यस्थताके लिए प्रावधान, जिसका लक्ष्य मध्यस्थता के माध्यम से उपभोक्ता विवादों के समाधान हेतु वैधानिक आधार उपलब्ध कराना और इस प्रकार प्रक्रिया को कम जटिल, सरल तथा शीध्र बनाना है. यह कार्य उपभोक्ता मंच के अधीन किया जाएगा.

(घ) उपभोक्ता मंच में उपभोक्ता विवाद की वैधानिक प्रक्रिया को सरल बनाने के उद्देश्य से कई प्रावधान शामिल किए गए हैं. इनमें अन्य घटकों के अलावा शामिल हैं:- उपभोक्ता विवाद निपटारा एजेंसियों के धन संबंधी क्षेत्राधिकार को बढ़ाना, शिकायतों के शीघ्र निपटारे में आसानी हेतु उपभोक्ता मंच में सदस्यों की न्यूनतम संख्या बढ़ाना, राज्य और जिला आयोग द्वारा उनके अपने आदेशों की समीक्षा का अधिकार होना, शिकायतों के शीघ्र निपटारे में आसानी हेतु सर्किट बेंचका गठन करना, जिला मंच के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार लाना, इलेक्ट्रॉनिक विधि से शिकायतें दर्ज कराने हेतु उपभोक्ताओं के लिए कारगर प्रावधान तथा उपभोक्ता मंच में शिकायतें दर्ज करना, जिनका क्षेत्राधिकार शिकायतकर्ता के निवास स्थान के लिए हो तथा शिकायतों की मान्य ग्रहणीयता, यदि ग्रहणीयता का प्रश्न का निर्णय २१ दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर न किया गया हो.

२. स्मार्ट कंज्यूमर अप्लीकेशन: सरकार ने ‘‘स्मार्ट कंज्यूमर’’ नामक एक मोबाइल अप्लीकेशन की शुरूआत की है ताकि उपभोक्ता उत्पाद के बार कोड का स्कैन करके उत्पाद संबंधी सभी विवरण प्राप्त कर सकें, जैसे- उत्पाद का नाम, निर्माता का विवरण, निर्माण का वर्ष और माह, विषय सामग्री तथा कोई खराबी होने पर शिकायत दर्ज कराने हेतु उपभोक्ता सुविधा संबंधी विवरण आदि.

३. भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध शिकायतें (जीएएमए): भ्रामक विज्ञापनों की समस्या के समाधान की दिशा में अपने प्रयासों के तहत सरकार ने ऑनलाइन शिकायतें दर्ज करने हेतु ‘‘भ्रामक विज्ञापन के विरुद्ध शिकायतें (जीएएमए)’’ नामक एक पोर्टल शुरू किया है. कोई उपभोक्ता इस वेब पोर्टल के माध्यम से ऐसे विज्ञापन की प्रति/वीडियो/ऑडियो के साथ शिकायत दर्ज कर सकता है.

४. ऑनलाइन विवाद समाधान : भारत सरकार के उपभोक्ता मामले मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय भारतीय विधि स्कूल विश्वविद्यालय, बंगलुरू में एक ऑनलाइन उपभोक्ता मध्यस्थता केन्द्र स्थापित किया गया है. इसका लक्ष्य इस मंच के माध्यम से व्यक्तिगत के साथ-साथ ऑनलाइन मध्यस्थता दोनों के जरिए उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए एक अत्याधुनिक सुविधा उपलब्ध कराना है.

यह केन्द्र उपभोक्ताओं तथा संगठनों के लिए नवीन प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराएगा, ताकि विवादों का प्रबंधन तथा समाधान हो सके और उपभोक्ता विवादों के समाधान हेतु ऑनलाइन मध्यस्थता को एक प्रथम विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जा सके. यह एक ऐसा नवीन औजार है, जो उपभोक्ताओं को शीघ्र तथा आसान निराकरण प्रणाली के माध्यम से न्याय तक बेहतर पहुंच कायम करने में समर्थ बनाता है और साथ ही उपभोक्ताओं के साथ बेहतर संबंध कायम रखने हेतु कारोबारियों के लिए अवसर भी उपलब्ध कराता है.

५. ऑनलाइन कंज्यूमर कम्युनिटीज: स्थानीय सर्किलों के सहयोग से सरकार ने एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शुरू किया है. इस ‘‘ऑनलाइन कंज्यूमर कम्युनिटीज’’ नामक प्लेटफॉर्म से नागरिकों को शासन तथा दैनिक जीवन के बारे में विचार-विमर्श करने तथा राय व्यक्त करने का अवसर मिलता है. इसके माध्यम से कोई नागरिक अपनी सरकार, अपने नगर, अपने सरोकारों, पास-पड़ोस, हितों, जरूरतों तथा किसी अन्य समुदाय से जुड़ सकता है जिसका वह हिस्सा है.

६. इंटरनेट सुरक्षा पर अभियान : फिलहाल भारत सर्वाधिक संख्या में इंटरनेट उपभोक्ता वाले देशों में से एक है. पूरे विश्व में डिजीटाइजेशन में तीव्र वृद्धि के साथ इंटरनेट सुरक्षा के संदेश को दैनिक कार्यों में इस प्रकार शामिल करने की आवश्यकता है, जो उपभोक्ता ऑनलाइन संचालित करता है. इंटरनेट सुरक्षा व संरक्षा की चुनौतियों के बारे में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के उद्देश्य से सरकार ने एक साझेदार कम्पनी के सहयोग से ‘‘डिजिटल साक्षरता, सुरक्षा व संरक्षा’’ कार्यशाला नामक एक वर्षीय अभियान शुरू किया है.

७. उपभोक्ता जागरूकता: सरकार वर्ष २००५ से ही उपभोक्ता अधिकारों और उत्तरदायित्वों से जुड़े विभिन्न विषयों पर एक देशव्यापी मल्टी मीडिया जागरूकता अभियान चला रही है. ‘‘जागो ग्राहक जागो’’ आज घर-घर की एक सूक्ति बन गया है. ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के क्रम में विभिन्न राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के महत्वपूर्ण मेलों/उत्सवों में भाग लेने का निर्णय लिया है. यहां इस बात को ध्यान में रखा गया है कि ऐसे मेले/उत्सव ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के अधिकांश लोगों का ध्यान खींचते हैं.

आरईआरए अधिनियम, २०१६ के बारे में

भारतीय संसद ने रीयल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) अधिनियम, २०१६ (आरईआरए) पारित किया है. आरईआरए में घर खरीदने वाले लोगों के हितों की रक्षा करने के साथ-साथ रीयल एस्टेट क्षेत्र में निवेश बढ़ाने पर जोर दिया गया है. भारत सरकार ने रीयल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) अधिनियम २०१६, २६ मार्च, २०१६ को अधिनियमित किया तथा इसके सभी प्रावधान पहली मई, २०१७ से प्रभावी हुए. इस अधिनियम से भारतीय रीयल एस्टेट उद्योग को अपना पहला नियामक मिला है. अब सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए अपना नियामक बनाने तथा ऐसे नियम बनाना अनिवार्य हो गया है, जिससे केन्द्रीय अधिनियम के तहत तैयार प्रारूप नियमावली के आधार पर नियामक का क्रियाकलाप नियंत्रित होगा.

पिछले काफी समय से घर खरीदने वालों की शिकायत थी कि रीयल एस्टेट से जुड़े लेन-देन एक तरफा थे और काफी हद तक डेवलपरों के पक्ष में थे. आरईआरए तथा सरकारी प्रारूप कोड़ का लक्ष्य सम्पदाओं के विक्रेताओं तथा के्रताओं के बीच एक अधिक समानता आधारित तथा निष्पक्ष लेन-देन की प्रणाली स्थापित कायम करना है, विशेषकर प्राथमिक बाजार में. ऐसी आशा है कि आरईआरए से रीयल एस्टेट की खरीद में बेहतर उत्तरदायित्व तथा पारदर्शिता लाकर इसे अपेक्षाकृत सरल बनाया जा सकेगा, बशर्ते, राज्यों द्वारा केन्द्रीय अधिनियम के प्रावधानों तथा भावनाओं को कमजोर न किया जाए. परियोजनाओं को पूरा करने में देरी होने का एक प्रमुख कारण यह था एक परियोजना से वसूले गए धन को गलत तरीके से अन्य परियोजनाओं में लगा दिया जाता था. इसे रोकने हेतु प्रमोटरों के लिए अब सभी परियोजना प्राप्तियों का ७० प्रतिशत हिस्सा एक अलग आरक्षित खाते में जमा रखना जरूरी है. ऐसे खाते का इस्तेमाल केवल भूमि तथा निर्माण संबंधी खर्च के लिए होगा तथा किसी पेशेवर द्वारा इसे प्रमाणित करने की आवश्यकता होगी.

उपभोक्ता आरईआरए के अधीन किस प्रकार शिकायत दर्ज कर सकता है

रीयल एस्टेट नियामक प्राधिकरण अथवा स्थानापन्न अधिकारी के पास रीयल एस्टेट (नियमन और विकास) अधिनियम, २०१६ की धारा ३१ के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है. ऐसी शिकायतें प्रमोटरों, आबंटियों और/ अथवा रीयल एस्टेट एजेंटों के विरुद्ध हो सकती हंै. कई राज्यों सरकारों ने आरईआरए के तहत आवेदन दाखिल करने की प्रक्रियाएं निर्धारित की हैं. ये शिकायतें संबंधित राज्य सरकार की नियमावली के अनुसार निर्धारित प्रपत्र में होनी चाहिएं.

आरईआरए के तहत पंजीकृत किसी परियोजना के संदर्भ में निर्धारित समय-सीमा के भीतर, संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप में आरईआरए के तहत तैयार अधिनियम के प्रावधानों अथवा नियमों अथवा नियमनों के उल्लंघन को लेकर शिकायत दर्ज की जा सकती है. के्रता के लिए संबंधित राज्य सरकार का आरईआरए पोर्टल देखना जरूरी है. एक राज्य से दूसरे राज्य में आरईआरए के तहत शिकायत दर्ज करने हेतु शुल्क में अंतर है. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में यह शुल्क ५,००० रुपये है, जबकि कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में १,००० रुपये है. आरईआरए कानून का मानना है. आरईआरए कानून का मानना है कि नियामक प्राधिकरण को यह प्रयास करना चाहिए कि शिकायत दर्ज करने से लेकर ६० दिनों के भीतर उसका निपटारा हो जाए. हालांकि प्राधिकरण और भी अधिक समय ले सकता है, किन्तु ६० दिनों के भीतर प्रक्रिया पूरी नहीं होने के कारणों का उल्लेख करना जरुरी होगा. इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के लिए प्रमुख लाभकारी तथ्य यह शामिल किया गया है कि बिल्डरों को कॉर्पेट एरिया के आधार पर कीमत बतानी होगी न कि सुपर बिल्ट-अप एरिया के आधार पर जबकि किचन तथा टॉयलेटों जैसे उपयोगी स्थानों को शामिल करने के लिए अधिनियम में कार्पेट एरिया को स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया गया है.

वर्ष २०१७ तक, रीयल एस्टेट डेवलपरों से दुखी अधिकांश ग्राहक, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, १९८६ के तहत अपना मामला दर्ज करते थे आरईआरए के साथ ग्राहक अपनी शिकायतों के त्वरित निपटारे तथा शीघ्र समाधान की उम्मीद करते हैं. ऐसे मामले जो किसी उपभोक्ता अदालत में लंबित हैं, शिकायतकर्ता/आबंटी अपना मामला वापस लेकर आरईआरए के तहत प्राधिकरण के पास पहुंच सकते हैं, इस प्रकार, जैसे कि हम विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मना रहे हैं आरईआरए और उपभोक्ता मामले मंत्रालय द्वारा शुरू की गई नई योजनाएं हाल के वर्षों में उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिए मौजूद हैं.

लेखक कमला नेहरू महाविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर तथा कंज्यूमर क्लब के संयोजक हैं. ई-मेल : sheetal_kpr@hotmail.com