रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Issue no 24, 14 - 20 September 2024

वैश्विक परिवेश में हिंदी की केंद्रीय भूमिका और उसका प्रभाव साक्षात्कार 14 सितंबर को प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला हिंदी दिवस भारत की भाषायी यात्रा के महत्वपूर्ण क्षण का स्मरण कराता है। 1949 में चौदह सितंबर को देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को आधिकारिक तौर पर भारत गणराज्य की भाषा के रूप में अपनाया गया था, जो राष्ट्र के समृद्ध ताने-बाने को एकजुट करने के इसके गहरे सांस्कृतिक महत्व और भूमिका का सम्मान करता है। हिंदी दिवस, भाषा की समृद्ध विरासत और भारत की पहचान को आकार देने में इसकी निरंतर प्रासंगिकता का जश्न मनाने और उस पर विचार करने का अवसर है। भारत सरकार, विभिन्न हितधारकों के साथ, न केवल हिंदी भाषा के सार को संरक्षित करने के लिए बल्कि राष्ट्र के भीतर और दुनिया भर में इसके कद को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इन प्रयासों का उद्देश्य हिंदी को भारत की सांस्कृतिक पहचान के एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में मजबूत करना है, जो दुनिया भर में भारतीयों के साथ प्रतिध्वनित हो और देश की भाषाई समृद्धि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करे। इस तरह के प्रयासों का नेतृत्व समर्पण के साथ कर रही हैं डॉ. कुमुद शर्मा, जो हिंदी की एक सशक्त समर्थक तथा शिक्षा और साहित्य जगत की एक सम्मानित हस्ती हैं। वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की प्रमुख के रूप में कार्यरत डॉ. शर्मा विश्वविद्यालय में हिंदी माध्यम निदेशालय कार्यान्वयन के कार्यवाहक निदेशक (अतिरिक्त प्रभार) का पद भी संभाल रही हैं। उनका नेतृत्व अकादमिक क्षेत्र से परे भी फैला हुआ है। वे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत एक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष भी हैं। इन प्रभावशाली भूमिकाओं के माध्यम से डॉ. शर्मा न केवल भारत के भीतर बल्कि वैश्विक मंच पर भी हिंदी को बढ़ावा देने में एक प्रेरक शक्ति रही हैं। रोजगार समाचार के लिए श्री सुधित मिश्रा के साथ इस विशेष साक्षात्कार में डॉ. कुमुद शर्मा सांस्कृतिक कूटनीति के क्षेत्र में हिंदी के रणनीतिक महत्व, डिजिटल युग में इसकी बढ़ती भूमिका और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों संदर्भों में इसके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालती हैं। उनकी अंतर्दृष्टि इस बात की गहरी समझ को दर्शाती है कि हिंदी किस तरह संस्कृतियों के बीच सेतु का काम कर सकती है और वह साहित्यिक विविधता और एकता को बढ़ावा देने में साहित्य अकादमी जैसी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में दृढ़ता से अपना पक्ष रखती हैं। डॉ. शर्मा आज के मीडिया-समृद्ध वातावरण में हिंदी के प्रति उत्साही लोगों के लिए उपलब्ध बढ़ते अवसरों पर भी प्रकाश डालती हैं और युवा लेखकों तथा विचारकों को हिंदी को रचनात्मकता, जुड़ाव और गर्व की भाषा के रूप में अपनाने की योजना पेश करती हैं। 1. सांस्कृतिक कूटनीति के संदर्भ में वैश्विक मंच पर, भारत के लिए हिंदी भाषा का रणनीतिक महत्व क्या है? हिंदी भारत की सांस्कृतिक अस्मिता का चेहरा है। परिवर्तित होती नई वैश्विक स्थितियों में व्यवस्था की दृष्टि से संपूर्ण विश्व को समन्वय, सामंजस्य और सह अस्तित्व पर टिकी दृष्टि प्रदान करने में हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। किसी भी देश की संस्कृति की गूंज और उसकी अंतरध्वनि उस देश की भाषा में समाहित रहती है। विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में हिंदी के प्रचार-प्रसार की महत्वपूर्ण भूमिका है। वैश्विक मंच पर हिंदी का विस्तार निश्चय ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा में विश्वास करनेवाली भारतीय संस्कृति को प्रतिष्ठा दिलाने के साथ-साथ अन्तरराष्ट्रीय संबंधों को भी मज़बूत करेगा। पूरे विश्व में फैले भारतवंशियों को एकता के सूत्र में जोड़ने का काम हिंदी करती है। 2. वैश्विक स्तर पर हिंदी को अत्यधिक लोकप्रिय बनाने के लिए भारत द्वारा कौन-कौन से कदम उठाए जाने आवश्यक हैं? पूरे विश्व में हिंदी के शिक्षण और प्रशिक्षण की व्यवस्था को मज़बूती देने की जरुरत है। इस दिशा में निरन्तर नए-नए प्रयास बढ़ाये जाने की जरुरत है। विश्व में हिंदी शिक्षण की तमाम चुनौतियां हैं। उन पर निरन्तर संवाद करके हिंदी शिक्षण व्यवस्था में सुधार लाने की ज़रूरत है और विश्व में स्थित शिक्षण संस्थानों में विदेशियों के लिए हिंदी पाठ्यक्रम के निर्माण पर चर्चा होनी चाहिए। विदेशी भाषा के साथ हिंदी के शब्दकोषों के निर्माण और प्रकाशन पर बेहद सटीकता से ध्यान देने की आवश्यकता है। 3. हिंदी के प्रचार-प्रसार जिसके लिए भारत प्रसिद्ध है, उसकी भाषायी विविधता के साथ संतुलन किस प्रकार बनाया जा सकता है? सबसे पहले तो हमें एक बात समझनी होगी हिंदी, भारत की विभिन्न भाषाओं पर अपना वर्चस्व नहीं चाहती। वह सख्य भाव से समस्त भारतीय भाषाओं के साथ हँसते खिलखिलाते हुए आगे बढ़ना चाहती है। मानवीय अर्थवत्ता और उदार भाषा योजना हिंदी का वैशिष्ट्य है। सभी भारतीय भाषाएँ अंग्रेज़ी से शब्द ग्रहण करने की बजाय एक दूसरे से शब्द ग्रहण करके समृद्ध बन सकती हैं हमें सबके भीतर इस विश्वास को पैदा करना चाहिए। 4. हिंदी साहित्यिक कृतियों का भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद करना कितना महत्वपूर्ण है, जिससे उनकी पहुँच में वृद्धि हो सके? अनुवाद का महत्व न होता अनुवादकों की साहित्य की दुनिया में सक्रिय उपस्थित न होती तो श्रीरामचरितमानस और श्रीमद्भगवतगीता विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ कैसे बन पाते। प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, अज्ञेय जैसे रचनाकारों की तमाम कृतियों को सम्मान नहीं मिल सका क्योंकि अनुवाद को तब उतनी तवज्जो नहीं दी जाती थी। श्रीमद्भगवद्गीता का भारतीय भाषाओं से इतर विश्व की विभिन्न अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है। हम भारतीय भाषाओं में रचित विभिन्न साहित्य के पठन-पाठन से वंचित रह जाते यदि उनका अनुवाद न किया जाता। हम न तो तमिल भाषा के सुब्रह्मण्यम भारती की कविताओं से परिचित हो पाते और न ही बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ को पढ़ पाते। शब्दों में सिमटी बौद्धिक सम्पदा से विश्व भर के लोग अनुवाद के ज़रिए ही समृद्ध और एकात्म हो सकते हैं। 5- आज हम देखते हैं कि विश्वविद्यालयों में अन्य विषयों की तुलना में हिंदी से यूजीसी नेट, जेआरएफ और पी.एचडी. करने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है इसे कैसे देखा जा सकता है? हिंदी की प्रोफेसर होने के नाते यह एक बेहद बहुत सुखद स्थिति है जो हम सभी को हिंदी के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त करती है। हिंदी में रोज़गार की संभावनाओं में वृद्धि हुई है। आज की युवा पीढ़ी उसी विषय को उपयोगी मानते हैं जो उन्हें रोज़गार दिला सके। आज हिंदी पढ़ने वाले छात्रों के सम्मुख केवल हिंदी के अध्यापक बनने का सपना नहीं है। हिंदी मीडिया और बढ़ते हुए मनोरंजन उद्योग ने हिंदी की अनंत संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। मीडिया बाजार में भी हिन्दी लगातार बढ़त ले रही है। हिन्दी के समाचार-पत्रों की प्रसार संख्या अंग्रेजी अखबारों के मुक़ाबले ज़्यादा है। फ़िल्मों के रूपहले पर्दे पर, टेलिविज़न की मंनोरजन संस्कृति में हिन्दी ने अपनी धाक जमा रखी है। वह आज मंनोरजन उद्योग, समाचार मीडिया की सबसे बड़ी माध्यम भाषा बनी हुई है। मनोरंजन उद्योग अथवा मीडिया की दुनिया में हिन्दी के ज़रिये पैसा और शोहरत भी मिल रही है। इसीलिए अन्य विषयों की तुलना में हिंदी से यूजीसी नेट, जेआरएफ और पी.एचडी. करने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है। 6- सोशल मीडिया ने हिंदी साहित्य के परिदृश्य को किस प्रकार बदल दिया है? आपके अनुसार सोशल मीडिया ने हिंदी की लोकप्रियता युवा पीढ़ी के बीच बढ़ाने में कैसी भूमिका निभाई है? सोशल मीडिया पर हिन्दी की शक्ति और सामर्थ्य नये तरीके से दर्ज हो रही है। हिंदी भाषा की शक्ति ने सोशल मीडिया मंच पर व्यक्ति की रचनात्मकता और सृजनात्मकता को नये आयाम प्रदान किए हैं। आज सोशल मीडिया हिन्दी संसार के लिए सृजनात्मक अनुचिंतन का निर्माण करनेवाली अनंत क्रियाओं और छवियों का साक्ष्य है। उस पर सृजित शब्दों का संसार अपने तरीक़े से इस युग की गाथा सुना रहा है। जिसका सकारात्मक पक्ष यह है कि इसने सबकी सृजनशीलता को मुक्त भाव से स्वीकारने का वैश्विक मंच प्रदान किया। इस परिदृश्य में सोशल मीडिया में हिंदी की लोकप्रियता बढ़ी है। 7- आने वाले दशक में हिंदी के भविष्य के लिए आपका क्या दृष्टिकोण है और साहित्य अकादेमी जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएँ किस प्रकार अपना योगदान दे रही हैं? आने वाले दशकों में हिंदी की वैश्विक पहुंच बेहद शानदार रहने वाली है क्योंकि अब विश्व की लगभग सभी महत्वपूर्ण बैठकों में हिंदी का मुखर प्रयोग हो रहा है। बात जब साहित्य अकादमी की हो तो यह संस्था 24 भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों का घर है। विविध भारतीय भाषाओं में रचित कृतियों का हिंदी में अनुवाद प्रकाशित कर हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय और सामंजस्य बैठाने में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। साल भर में विभिन्न आयोजनों के माध्यमों से साहित्य अकादमी सभी साहित्यकारों को एक मंच प्रदान करती है और उनमें एक अपनत्व के भाव का बीजारोपण करती है जो उन्हें एक सूत्र में बांधता है। 8- आज के इस डिजिटल युग में हिंदी के लिए आपके अनुसार क्या अवसर उपलब्ध हैं? डिजिटल युग में तकनीक हमें एक दूसरे से प्रखरता से जोड़ रही है। हालांकि जुड़ने ,जोड़ने की प्रकिया और अवस्था, स्थितियों पर बहस हो सकती है कहीं तक मत विविधता भी हो सकती है लेकिन इस जुडाव में भी भाषा की ताक़त बची हुई है। सोशल मीडिया प्रयोक्ता अब शब्दों की ताकत को अच्छी तरह से समझ चुका है। फिलहाल डिजिटल युग में हिंदी के विकास के अनेक अवसर उपलब्ध हैं बस उन्हें उनका उपयोग करना आता हो। 9- भारत और विश्व स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार में आपको क्या चुनौतियाँ नज़र आती हैं? भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार की दिशा में हिन्दी की प्रगति और विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा, हिन्दी के प्रति एक विशेष प्रकार क़िस्म की हीन भावना और अंग्रेज़ी का मायावी आतंक और अंग्रेज़ी का मोह है। आज भी अंग्रेज़ी आभिजात्य का एक मानक बनी हुई है। विश्व स्तर पर सबसे बड़ी चुनौती जो हमारे सम्मुख है वह हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक दर्जा दिलाना। हालांकि सरकार द्वारा लगातार उस दिशा में विकासोन्मुख कदम उठाए गए जा रहे हैं। 10-हिंदी दिवस के अवसर पर आप हिंदी प्रेमियों और युवा लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगे? युवा पीढ़ी को मेरा यही संदेश है कि भाषा मानवीय उपलब्धि की अमूल्य धरोहर होती है। वह केवल संप्रेषण मात्र नहीं बल्कि हमारी संस्कृति भी है। भाषा के विकास का मतलब है एक मौलिक संस्कृति का विकास, एक सभ्यता का विकास। हिन्दी और भारतीय भाषाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए वैचारिक और सामजिक लडाई में युवाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हिन्दी हमारे दिलों को आपस में प्रम से जोड़ने वाली भाषा है नकि तोड़ने वाली। हिन्दी को स्वाभिमान और सम्मान की भाषा समझें और मन से उसका सम्मान करें। 11- राजभाषा की निरंतर प्रगति की दिशा में आपका कोई रचनात्मक सुझाव हो तो कृपया हमसे साझा करें? राजभाषा की निरंतर प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि कार्यालयों में अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद करके अनुवाद की बैसाखी के सहारे हिंदी को न बढ़ाया जाये बल्कि मौलिक रुप से हिंदी में काम किया जाये। सरकारी कार्यालयों में अनुवाद के सहारे राजभाषा को सम्मान नहीं दिलाया जा सकता। राजभाषा हिंदी को आन्तरिक निष्ठा से अपनाना होगा। हिंदी भाषा में ज्यादा से ज्यादा काम करने का संकल्प लेकर राजभाषा की प्रगति की जा सकती है।