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संपादकीय लेख


अंक संख्या -31, 29 अक्तूबर - 4 नवम्बर,2022

 

सरदार पटेल: भारत को एकता के सूत्र में पिरोने वाले-प्रशासक

एस बी सिंह

साल 2014 से सरदार पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को भारत में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। इस दिन सरकारी कार्यालयों में शपथ ली जाती है;

मैं सत्‍यनिष्‍ठा से शपथ लेता हूं कि मैं राष्‍ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए स्‍वयं को समर्पित करूंगा और अपने देशवासियों के बीच यह संदेश फैलाने का भी भरसक प्रयत्‍न करूंगा। मैं यह शपथ अपने देश की एकता की भावना से ले रहा हूं जिसे सरदार वल्‍लभभाई पटेल की दूरदर्शिता एवं कार्यों द्वारा संभव बनाया जा सका। मैं अपने देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना योगदान करने का भी सत्‍यनिष्‍ठा से संकल्‍प लेता हूं।

शिक्षा मंत्रालय द्वारा इस शप‍थ को स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों तक भी विस्‍तारित गया है। गुजरात में हाल ही में निर्मित विशाल स्टैच्यू ऑफ यूनिटीदेश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले-प्रशासक और भारत के सच्चे देशभक्त पटेल की एक और यादगार है। हम अपने महान सुधारकों, निर्माताओं को विभिन्न उपाधियों से याद करते हैं। राजा राम मोहन राय को "आधुनिक भारत का जनक" कहा जाता है, गांधी को "राष्‍ट्रपिता" कहा जाता है, नेहरू को भारत के "आधुनिक मंदिरों" यानी भारी उद्योग, विज्ञान और अनुसंधान, बांध आदि का निर्माता कहा जाता है। इनकी तुलना में सरदार पटेल कार्य कहीं ज्‍यादा चुनौती भरा रहा, क्योंकियदि उन्होंने भारत को भौगोलिक अखंडता और समीपता देकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित होने से नहीं रोका होता, तो राष्ट्र निर्माण के अन्य कार्य अधूरे रह जाते। पटेल देशभक्तों की एक दुर्लभ पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्होंने न केवल गांधी के मार्गदर्शन में स्‍वाधीनता  संग्राम में भरपूर योगदान दिया, बल्कि उस समय मौजूद भिन्‍न-भिन्‍न राज्यों को मिलाकर एक संयुक्त भारत  का निर्माण करने की सबसे जटिल समस्या को हल करके सशक्‍त स्वतंत्र भारत की बुनियाद भी रखी। लॉर्ड माउंटबेटन ने रियासतों को अखंड भारत में एकीकृत करने के कार्य को सबसे विलक्षण करार दिया। उन्‍होंने साहस और दृढ़ संकल्प के साथ चुनौतियों का सामना करते हुए इस कार्य को पूर्ण करने वाले पटेल को उस दौर का सबसे सम्‍मानित व्यक्ति बताकर उनकी प्रशंसा की। आज हम अक्सर भारत की एकता और अखंडता शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो प्रस्तावना में लिखे गए हैं। इन शब्‍दों ने वास्‍तविक अर्थ  भारत में एकता और अखंडता हासिल करने के पटेल के प्रयास साकार होने पर ही हासिल किया।

 

भारत को एकता के सूत्र में पिरोने वाले के रूप में पटेल: चर्चिल ने कभी भारत को केवल एक 'भौगोलिक अभिव्यक्ति' कहा था। उन्होंने कहा था,भारत भूमध्य रेखा से ज्‍यादा अकेला देश नहीं है।हालांकि भारत के बारे मेंचर्चिल के विवरण से उनके भारत विरोधी पूर्वाग्रह की बू आती है,लेकिन स्वतंत्रता से पूर्व के भारत की जमीनी हकीकत का निष्पक्ष मूल्यांकन उसी अवलोकन की ओर ले जाता है।भारत दो हिस्‍सों में बंटा हुआ होने के कारण विभाजित था, अर्थात; ब्रिटिश भारत, सीधे औपनिवेशिक आकाओं द्वारा शासित था और रियासते, निरंकुश राजाओं द्वारा शासित थी, यही कटु सत्‍य है।अंग्रेजों ने केवल साठ प्रतिशत भारतीय भूभाग परही अपना शासन स्थापित किया था, शेष चालीस प्रतिशत भूभाग स्थानीय राजाओं के अधीन रहा और उन्हें रियासतें कहा जाता था। ऐसा नहीं है कि अंग्रेजों ने रियासतों पर प्रभुत्व कायम करने की नीति विकसित नहीं की और उन्हें हर तरह से स्वतंत्र छोड़ दिया। यद्यपि लॉर्ड वेलेजली की सहायकसंधि प्रणाली के माध्यम से रियासतों की स्वतंत्रता से समझौता किया गया था, क्योंकि वे अपने बाहरी और रक्षा संबंधों के लिए अंग्रेजों पर आश्रित हो गए थे, यहां तक कि रियासतों की आंतरिक नीतियों में भीअक्सर ब्रिटिश एजेंट हस्तक्षेप करते थे।1857 के बाद, रियासतों के प्रति ब्रिटिश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव आया।1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखाने के लिए रियासतों को ब्रिटिश भारत में विलय के डर के बिना अस्तित्व में बने रहनेकी अनुमति दी गई थी,बशर्ते वे "ब्रिटिश सर्वोच्चता" को स्वीकार कर लें, जिसके तहत रियासतों को भारत में अंग्रेजों को सर्वोच्च या सर्वोच्च शक्ति स्वीकार करना पड़ा। तथा सरकार के परामर्श के बिनावे अपनी स्थिति में कोई बदलाव नहीं कर सकते थे।भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के तहत, रियासतों पर ब्रिटिश सर्वोच्चता समाप्त हो गई और वे अब तीन विकल्पों : स्वतंत्र रहें, या पाकिस्तान में विलय करें, या भारत में विलय करें-में से अपना भाग्य चुनने के लिए स्वतंत्र थे। अधिकांश रियासतों ने पटेल के समझाने पर अपने लाभ के लिए भारत में शामिल होने की उनकी बात मान लीऔर दो कानूनी दस्तावेजों:विलय पत्र यानी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन और दूसरा ठहराव समझौता या स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट- पर हस्ताक्षर करके भारत के साथ विलय करने के लिए राजी हो गईं। पटेल ने रियासतों के शासकों को समझाया कि अब वेअपना अलग अस्तित्व कायम नहीं रख सकते। पटेल के अनुसार, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद रियासतों में सत्ता का जनता को हस्तांतरण अपरिवर्तनीय हो चुका था और बदलाव शांतिपूर्ण होना चाहिए। उन्होंने राजाओं को उनके सुरक्षित भविष्य के आश्वासन के रूप में प्रिवी पर्स और उनकी निजी संपत्तियों की सुरक्षा की पेशकश की। पटेल ने राजाओं के साथ धैर्य और दृढ़ता के साथ व्यवहार किया।उनके पास अपने उद्देश्यों में सफल होने के लिए फौलादी संकल्प के साथ-सा‍थसमझाने-बुझाने का जबरदस्‍त कौशल था। इसीलिए उनकी तुलना जर्मनी के बिस्मार्क और भारत के कौटिल्य से की गई है।लेकिन रियासतों का विलय आसानी से नहीं होने वाला था। ऐसे राजा मौजूद थे, जोभारत विरोधी भावना या स्वतंत्र रहने की अपनी महत्‍वाकांक्षा को पोषित कर रहे थे। पटेल ने इसे अस्‍वीकार कर दिया। उन्‍होंने इन अड़ियल रियासतों से निपटने के लिए ताकतका प्रयोग लिया।

 

जूनागढ़, धौलपुर, इंदौर, त्रावणकोर, जोधपुर, हैदराबाद, नासिक और जम्मू-कश्मीर राज्यों ने पटेल की एकीकरण की योजना का विरोध किया। बाद में इनमें सेजूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर को छोड़करअन्य सभी को स्वतंत्र भारत का हिस्सा बनने के लिए राजी कर लिया गया।

 

जूनागढ़: नवगठित पाकिस्तान के साथ निकटता के कारण, इस रियासत ने बड़ा रणनीतिक खतरा उत्‍पन्‍न कर दिया, क्योंकि इसके नवाब ने अपने दीवानशाह नवाज भुट्टो से प्रभावित होकरपाकिस्तान में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।यदि जूनागढ़ पाकिस्‍तान चला जाता, तो यह बहुत बड़ा सुरक्षा जोखिम होता। लिहाजा पटेल ने जूनागढ़ को हासिल करने के लिए सैन्य बल का प्रयोग कियातथा जूनागढ़ और पाकिस्तान के नवाब के कुटिल मंसूबों को नाकाम कर दिया।

 

हैदराबाद: हैदराबाद के निज़ाम ने अपने राज्य के भारत में विलय का जोरदार विरोध किया और वह पाकिस्तान में विलय के लिए बातचीत कर रहा थाया फिर स्वतंत्र बने रहने के सपने देख रहा था। उसने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। धार्मिक आधार पर हिंसा करने वाली सांप्रदायिक सेना- रजाकारों की मिलिशिया सेना निजाम के समर्थन और भारत के साथ हैदराबाद के विलय के विरोध में उतर आई।भारत के लिए हैदराबाद के महत्व पर पटेल ने कहा, ‘‘हैदराबाद भारत के पेट में स्थित है। अगर पेट शरीर से काटकर अलग कर दिया जाए तो पेट कैसे सांस ले सकता है। जब हैदराबाद में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई,तो पटेल ने पुलिस कार्रवाई का आदेश दिया और इसे निज़ाम से मुक्त कर दिया।

 

जम्मू और कश्मीर: डोगरा शासक राजा हरि सिंह भारत में विलय को लेकर बहुत दुविधा में थे और जहां तक संभव हो सके अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहते थे। हालांकि पाकिस्तानी सेना के नेतृत्व में कश्मीर पर हुए कबायलियों के हमलेके कारण जब उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया, तो उन्होंने यह विकल्प खो दिया। रियासतों के विलय के लिए उत्‍तरदायी स्‍टेट्स डिपार्टमेंट में पटेल की सहायता कर रहे वी. पी. मेननने महाराजा के साथ बातचीत की और उनके द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए जाने पर उन्‍हें भारत की ओर से मदद की पेशकश की गई। महाराजा हरि सिंह के पास और कोई विकल्‍प नहीं था, इसलिए उन्‍होंने तुरंत उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर दिए, जिससे भारत,कश्मीर में कार्रवाई कर सका। जल्द ही आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया गया और कश्मीर पर अधिकार कर लिया गया। हालांकि, नेहरू ने कश्मीर के मामलों को पटेल के हाथों से ले लिया और इसे स्वयं निपटाया। लेकिन फिर भीपटेल ने कश्मीर मामले के प्रति वही प्रतिबद्धता दिखाई, जो उन्होंने अन्य राज्यों के संबंध में दिखाई थी। इस प्रकार, अपने निधन से पहले, पटेल ने वह लक्ष्‍य हासिल कर दिखाया, जिसे हासिल करने का उन्‍होंने इरादा किया था - एक अखंड भारत, न कि कोई खंडित भौगोलिक अभिव्यक्ति। पटेल ने वह हासिल किया, जो इतिहास में कोई हासिल नहीं कर सका।

 

वी. पी. मेननने अपनी पुस्तक, "द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स" में ठीक ही कहा है, " पटेल द्वारा रियासतों से किया गया कुशल व्‍यवहारविलय नीति की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारक था।'

प्रशासक के रूप में पटेल: पटेल के लिए सिर्फ भारत को एकजुट करना ही देश की समस्याओं का पूर्ण समाधान नहीं था। वे इसे एक कुशल, प्रभावी प्रशासन भी देना चाहते थे। स्वयं एक महान प्रशासक होने के नाते; वह लोकतांत्रिक भारत में प्रशासन के महत्व को जानते थे।अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) उन्‍हीं का मौलिक विचार थी। हालांकि नेहरू आईसीएस की तर्ज पर एक मजबूत अखिल भारतीय सेवा रखने के पटेल के विचार से प्रभावित नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगा कि आईसीएस अहंकारी, गैर जिम्‍मेदार और लोगों की जरूरतों के प्रति उदासीनहो गया है और स्वतंत्र भारत में इसी तरह की सेवा की आवश्यकता नहीं है।लेकिन पटेल ने उन्हें खारिज कर दिया। वह पूरी तरह से आश्वस्त थे कि केवल योग्यता आधारित, पक्षपात रहित, अखिल भारतीय सेवा ही चुनौतियों का सामना करने को तत्‍पर हो सकती है। उनके बल देने पर ही अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित अनुच्‍छेद 311 और अनुच्‍छेद314 को संविधान में शामिल किया गया।पटेल ने चेतावनी दी कि ऐसी सेवा के बिना भारत की एकता की रक्षा नहीं की जा सकती। संविधान सभा को संबोधित करते हुए पटेल ने कहा कि अखिल भारतीय सेवाओं की भूमिका केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन संस्थानों को चलाने तक है, जो समाज को मजबूती प्रदान करते हैं।

 

31 अप्रैल को सिविल सेवा दिवस मनाने की परंपरा इस दिन दिल्ली के मेटकाफ हाउस में आईएएस अधिकारियों के पहले बैच को पटेल के संबोधन पर आधारित है। इसे भारतीय प्रशासन का "स्टील फ्रेम" करार देते हुए, पटेल ने आईएएस अधिकारियों को प्रशासन की अत्यधिक निष्पक्षता और सच्‍चरित्रता बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने चेतावनी दी कि लोक सेवक को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए और न ही खुद को सांप्रदायिक झगड़ों में शामिल करना चाहिए। इस प्रकार, पटेल ने जवाबदेह, सहानुभूतिपूर्ण और कुशल सिविल सेवा प्रदान करके सुशासन की नींव रखी।

जब हम राष्ट्रीय एकता दिवस या सिविल सेवा दिवस मनाते हैं, तो हमें केवल पटेल को याद करने का अनुष्ठान भर ही नहीं करना चाहिए, बल्कि हमें उनके द्वारा आत्‍मसात किए गए मूल्यों को भी अपनाना चाहिए । वे मूल्य हैं देशभक्ति, राष्ट्र की सेवा, हमारी एकता और अखंडता की रक्षा, और सुशासनयानी सुराज

(एस.बी.सिंह एक शिक्षाविद और टीकाकार हैं। उनसे sb_singh2003@yahoo.com  पर संपर्क किया जा सकता है)

(S.B. Singh is an academician and commentator. He can be reached on: sb_singh2003@yahoo.com)