पूर्वोत्तर में उद्यमिता और निवेश का परिदृश्य
अतुल के. ठाकुर
हा ल के दशकों में, महत्वपूर्ण विकास चर्चाओं को खुले तौर पर प्रभावित करने वाले पूर्वोत्तर में प्रवासन के मुद्दे ने स्थानीय आबादी के बीच गहरी असुरक्षा पैदा कर दी है. पर्यवेक्षकों को पूर्वोत्तर राज्यों में बहुत संभावनाएं नज़र आती हैं तो शायद ही किसी को इस पर आश्चर्य हो, हालांकि काफी हद तक इनका उपयोग नहीं किया गया है. पूर्वोत्तर क्षेत्र को अभी तक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि का लाभ नहीं मिला है और अब भी इस क्षेत्र में समावेशी विकास को सुगम बनाने की स्पष्ट आवश्यकता है. ऐसा न हो इसके लिए, सहभागी शासन को व्यापक रूप से प्रचलित और अनुकरणीय मॉडल के रूप में बनाए रखने के लिए विकास को लोकतांत्रिक बनाया जाना चाहिए.
स्वतंत्रता बाद के भारत में, पूर्वोत्तर के लिए औद्योगीकरण कार्यनीतियों ने भारी उद्योगों पर अनुचित बोझ डाला. इसने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को तब तक दोयम दर्जे का बनाए रखा जब तक कि पूर्वोत्तर के औद्योगिक विकास और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका वास्तविक योगदान बड़े पैमाने पर महसूस नहीं किया गया. भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की रिपोर्ट-प्रतिस्पर्धी एसएमई के अनुसार, एसएमई, अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में कुल उद्यमों का 90 प्रतिशत से अधिक निर्मित करते हैं. इस क्षेत्र को सबसे अधिक रोजगार सृजन का श्रेय दिया जाता है और औद्योगिक उत्पादन तथा निर्यात में इसका महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. भारत में भी, एसएमई देश की समग्र औद्योगिक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस प्रकार इक्विटी और समावेशन के साथ विकास के राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए भी एसएमई आवश्यक हैं. इस प्रभावशाली स्थिति के बावजूद, एमएसएमई को संचालन के हर चरण में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, चाहे वह कच्चे माल की खरीद हो, उत्पादों का विनिर्माण हो या माल का विपणन हो या फिर वित्त जुटाने का मुद्दा हो. इसके अलावा, 1991 के बाद से बाजार सुधारों ने घरेलू और विदेशी दोनों बाजारों में एमएसएमई के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी है. इसने भारतीय एमएसएमई के लिए तर्कसंगत लागत अनुकूलन, बेहतर गुणवत्ता और नवीन उपायों तथा उन्नत प्रौद्योगिकी के जरिए बेहतर विकल्प प्रदान करने के माध्यम से इन चुनौतियों का सामना करना और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार तथा निरंतरता बनाए रखने को आवश्यक बना दिया है.
सीआईआई-पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट-इनोवेशन-चेंजिंग द एमएसएमई लैंडस्केप के अनुसार, 'आज नवाचार के बढ़ते महत्व और देश की फर्मों के बीच इसके पैमाने और दायरे के बारे में आंकड़े पहले से ही सामने आ रहे हैं. साथ ही, भारत के राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के एक अध्ययन से पता चलता है कि 42 प्रतिशत बड़ी फर्मों और 17 प्रतिशत एमएसएमई ने अपने व्यवसाय के दौरान 'दुनिया के लिए नया नवाचार पेश किया है. नवाचार को, बड़ी कंपनियां सत्रह प्रतिशत सर्वोच्च कार्यनीतिक प्राथमिकता के रूप में और 75 प्रतिशत इसे शीर्ष तीन प्राथमिकताओं में रखती हैं. इसलिए नवाचार एक ऐसा क्षेत्र है जहां हल्के उद्योग सकारात्मक परिणामों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. पूर्वोत्तर में कार्यरत एसएमई को भी इस महत्वपूर्ण प्रवृत्ति के साथ तालमेल बिठाने के प्रयास करने चाहिए.
पिछले दो दशकों में, 8 प्रतिशत से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर के साथ, पूर्वोत्तर में आर्थिक विकास संतोषजनक रहा है. सेवा क्षेत्र में शानदार वृद्धि ने इस क्षेत्र में उच्च विकास को बनाए रखने में मदद की है. हालांकि, दशकों से अप्रत्याशित मानसून और दोषपूर्ण यंत्रीकरण के कारण कृषि को बहुत नुकसान हुआ है. चूंकि इस क्षेत्र में अव्यवस्थित भारी औद्योगीकरण के शुरुआती प्रयास ज्यादातर विफल रहे, समय के साथ विनिर्माण के मामले में एसएमई इस पर हावी हो गया है.
पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तुलना में असम राज्य, उद्यमिता विकास के मामले में बेहतर है. बड़ा बाजार और अच्छे सड़क/रेल संपर्क के साथ, गुवाहाटी को स्वाभाविक रूप से उद्यमशीलता की गतिविधियों का नेतृत्व करने और
बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित करने के लिए तैयार किया गया है. हालांकि, यह भी सच है कि क्षेत्र के बाकी छह राज्य भी एसएमई के लिए अनुकूल माहौल पेश करते हैं, क्योंकि स्थानीय आबादी के बीच पर्यावरणीय गिरावट की चिंता अपेक्षाकृत अधिक है. स्थानीय निवासी भारी और प्रदूषणकारी उद्योगों के बजाय हल्के उद्योगों को पसंद करते हैं क्योंकि बड़े उद्योगों के कारण संबंधित उद्योगों के विभिन्न हितधारकों के बीच बड़े विवाद पैदा होते हैं और ये पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं.
पूर्वोत्तर में उपलब्ध आशाजनक अवसरों को देखते हुए, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई), सीआईआई, फिक्की जैसे उद्योग मंडल इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं ताकि स्थानीय उद्यमिता कौशल की सहायता से एसएमई में ऊर्जा का संचार करके अधिक हासिल किया जा सके. पूर्वोत्तर में एसएमई का प्रसार आनुपातिक रूप से गुणवत्तापूर्ण रोज़गार पैदा करेगा और क्षेत्र में सतत औद्योगिक विकास का आधार बनाने के अलावा दूसरे देशों में पलायन की प्रवृत्ति को नियंत्रित करेगा. नतीजतन, शेष भारत से 'पूर्वोत्तर के अलगाव के बड़े राजनीतिक मुद्दे पर विराम लग सकता है. यह याद रखना उचित होगा कि भारी औद्योगीकरण के विषम परिणाम और प्राकृतिक/मानव संसाधनों के प्रति अपनाई गई कुछ नीतियों ने प्राकृतिक सद्भाव की संभावनाओं को पटरी से उतार दिया. पूर्वोत्तर राज्यों में विशिष्ट परिस्थितियों के लिए समाधान थोपने के बजाय स्थानीय पसंद के मॉडल पर अधिक भरोसा करके इन गलतियों को सुधारने की आवश्यकता है. इस मुद्दे पर बढ़ती समझ एक स्वागत योग्य संकेत है और इससे पूर्वोत्तर को विकास और समृद्धि का केंद्र बनाने में मदद मिलेगी.
कई समानताएं होने के बावजूद, पूर्वोत्तर के सभी सात राज्य अपने तरीके से अलग हैं. इस विविधता को ध्यान में रखना नीति निर्माताओं और भावी उद्यमियों के लिए भी आवश्यक है. इसके अलावा, पूर्वोत्तर के जटिल भूगोल और उससे सटी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से संबंधित गलत आशंकाओं को दूर करने की जरूरत है. बदलते समय में राजनीति और अर्थव्यवस्था के मुद्दों को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता, क्योंकि समूहों और व्यक्तियों के बीच एकीकरण है. इसलिए, समूचे पूर्वोत्तर में स्थानीय परिस्थितियों के लिए उद्योगों से अधिक समायोजन संभव है.
महामारी के बाद के समय में चूंकि एक नई दुनिया बनाने के लिए आर्थिक पुनरुत्थान समय की आवश्यकता है. सहयोगात्मक प्रयासों के लिए सरकार-उद्योग सहयोग को और ऊंचाइयों तक पहुंचाया जाना चाहिए. विशेष रूप से, वैश्विक महामारी कोविड-19 को सौ वर्षों में पहली बार आया इस प्रकार का संकट कहा जा रहा है, जिसने पहले ही अभूतपूर्व प्रतिकूल तरीके से जीवन और आजीविका को प्रभावित किया है. इसके कारण व्यापार बंद कर दिया गया, सीमाओं को बंद कर दिया गया और लोगों को या तो घर में रहने और अपने घर वापस लौटने के लिए मजबूर किया. कुछ ऐसे सबसे बड़े बदलाव हुए हैं जिनकी कभी उम्मीद नहीं की गई थी. यह संकट पूरी दुनिया पर आया है, भारत भी गंभीर रूप से इससे प्रभावित हुआ है.
दुनिया एक तरह से फिर से प्रारंभ करने के लिए आश्वस्त है, यह सरकार और उद्योग के लिए समय है कि वे भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़-एमएसएमई को सहायता सहित अपनी तत्काल प्राथमिकताओं का पता लगाने पर विचार करें. इस समय दृष्टिकोण में बदलाव की बहुत आवश्यकता है. विश्व व्यवस्था के मूल सिद्धांतों को पुन: प्रारंभ करने से पहले, अर्थव्यवस्था के अति-आवश्यक मांग कारकों की सहायता के लिए एमएसएमई वित्तपोषण को पुनर्जीवित करने के प्रति दृढ़ संकल्पित होना चाहिए. यह समय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए सक्रिय सामूहिक कार्रवाई करने का है.
विचार के मोर्चे पर, अब यह अच्छी तरह से समझ लिया गया है कि एमएसएमई क्षेत्र को देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदानकर्ता और भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास वाहक के रूप में क्यों देखा जाता है - पिछले कुछ दशकों में, विशेष रूप से 1990 के दशक की शुरुआत में आर्थिक उदारीकरण योजना के बाद, इस क्षेत्र ने देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जबरदस्त योगदान दिया है, निर्यात में वृद्धि की है और बड़ी संख्या में रोज़गार का सृजन किया है. उल्लेखनीय रूप से, इस क्षेत्र ने भारत भर में उद्यमिता विकास और औद्योगीकरण के लिए एक बहुत ही आवश्यक प्रेरण प्रदान किया है - इस प्रकार इसने उन क्षेत्रों तक भी पहुंच बनाई है जो अब तक आर्थिक प्रक्रियाओं से अछूते थे.
भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) और राज्य सरकारों में संबंधित मंत्रालयों / विभागों तथा अन्य हितधारकों के सहयोग से खादी, ग्रामीण और कॉयर उद्योग सहित मौजूदा उद्यमों को सहायता प्रदान करने और नए उद्यमों को प्रोत्साहित करने के माध्यम से एमएसएमई क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देकर एक जीवंत एमएसएमई क्षेत्र की परिकल्पना करते हैं.
भारत सरकार ने एमएसएमई के विकास और उन्हें नवाचारों और प्रौद्योगिकी के साथ विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कई नीतियां बनाई हैं, और कई अन्य उपाय किए हैं ये है:
· एमएसएमई क्रेडिट हेल्थ इंडेक्स (2 नवंबर, 2020 को शुरू किया गया).
· म्ंात्रालय ने एमएसएमई के लिए नवीनतम आईटी टूल को अपनाया (अक्टूबर 2020).
· एमएसएमई पर भारत सरकार के कार्य बल (सितंबर 2020).
· ऑनलाइन पंजीकरण के लिए उद्योग आधार ज्ञापन (यूएएम).
· एमएसएमई डाटा बैंक.
· माई एमएसएमई.
· एमएसएमई संपर्क.
· डिजिटल भुगतान.
स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार एमएसएमई निर्यात बढ़ाने और आयात कम करने की नीतियों पर काम कर रही है. इसके अलावा, 12 प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित करने के लिए 200 करोड़ रुपये (28.4 मिलियन अमरीकी डॉलर) की योजना को मंजूरी दी गई है, जिसके 2021 तक पूरा होने की उम्मीद है. देशभर में एमएसएमई के लिए ऋण तथा वित्तीय सहायता, कौशल विकास प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचा विकास, विपणन सहायता, तकनीकी तथा गुणवत्ता उन्नयन और अन्य सेवाओं के लिए कई योजनाएं हैं. पांच वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को दोगुना करके 5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, एमएसएमई को सही ढंग से नवाचार से आगे बढ़ाया जा रहा है, और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को उत्तरोत्तर आगे बढ़ने में मदद मिलनी चाहिए.
पूर्वोत्तर क्षेत्र, भारत में 1991 में एक बड़े आर्थिक उदारीकरण अभियान के साथ शुरू किए गए संरचनात्मक सुधारों का हिस्सा रहा है. इन्हें तब से निरंतर आगे बढ़ाया जा रहा है और अब समय आ गया है कि इस क्षेत्र को व्यापार के विशाल अवसरों के साथ एक प्रमुख निवेश गंतव्य के रूप में पेश किया जाए. नेपाल, भूटान, बंगलादेश और म्यांमार सहित अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा-यह क्षेत्र पड़ोस में क्षेत्रीय और उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के भारत के शांतिपूर्ण विकास मिशन को मजबूत करने में सक्षम है. एमएसएमई पर लगातार बढ़ता फोकस निस्संदेह इस क्षेत्र में स्टार्टअप संस्कृति को बढा़ने में मदद कर रहा है. सॉफ्ट स्किल्स और भौगोलिक लाभ के साथ, पूर्वोत्तर क्षेत्र के युवा भारत में कारोबार की मूल बातों की इबारत फिर से लिखने में आगे बढ़कर नेतृत्व कर रहे हैं.
अनिवार्य रूप से, पूर्वोत्तर के लिए नियोजन से संबंधित विचारों और प्रक्रियाओं का बेहतर समावेशन, विकास के नए चरण की शुरुआत करेगा. इस क्षेत्र में उद्यमशीलता की भावना काफी सकारात्मक है और नीतिगत मोर्चों पर तथा ऋणदाताओं से सहायता के अधिक प्रेरण के साथ निश्चित रूप से एमएसएमई को आगे बढ़ाने और लाभकारी रोज़गार पाने में युवाओं की सहायता करने के लिए नया विकास प्रोत्साहन मिल रहा है. सफलता की प्रमुख कहानियों में, सिक्किम की यात्रा को, प्रभावशाली लॉजिस्टिक समर्थन और बाजार संबंधों के साथ प्रामाणिक जैविक खेती वाले राज्य के रूप में याद करना महत्वपूर्ण है. यह किसानों को आर्थिक सुधारों के वास्तविक लाभांश का लाभ उठाने में सक्षम बनाता है. एमएसएमई का विकास कई वांछनीय परिणामों में से होगा, जो भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के भविष्य को स्वरूप देगा. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में, भारत आशा का क्षेत्र है. इसके पूर्वोत्तर क्षेत्र को समान रूप से देखा जाना चाहिए और इसे प्रकृति के निकट होने के कारण प्रमुख विकास गलियारे के रूप में प्रस्तुत कर सहायता दी जानी चाहिए. वास्तव में, पूर्वोत्तर क्षेत्र में सतत औद्योगिक विकास का क्षेत्र होने के सभी कारण हैं. इस प्रकार की अवधारणा पहले से ही पूर्वोत्तर में एक मूक परिवर्तन ला रही है, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए और इसे स्वीकार भी किया जाना चाहिए.
(अतुल के. ठाकुर, नीति विषयक पेशेवर, स्तंभकार और दक्षिण एशियाई मामलों के लेखक हैं. व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं. उनका ईमेल है: summertickets@gmail.com )