भारत-बांग्लादेश संबंध
आपसी सहयोग सुदृढ़ करने का मार्ग प्रशस्त
डॉ. नावेद जमाल और
संजीव कुमार सिंह
भारत और बांग्लादेश के संबंध नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए हैं. दोनों देशों के बीच विभिन्न विवादास्पद मुद्दों और जटिलताओं के बावजूद, दोनों देशों के नेताओं और निवासियों की इच्छा शक्ति की बदोलत मैत्री और घनिष्ठ सहयोग के मार्ग का अनुसरण किया जा रहा है. 7 अप्रैल, 2017 को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत पहुंचने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनका हार्दिक स्वागत किया. वे प्रोटोकोल तोड़ कर हवाई अड्डे पर उनकी अगवानी करने पहुंचे, जिसकी दोनों देशों के मीडिया और लोगों ने सराहना की.
वास्तव में, पड़ोसी पहले की नीति और मोदी सरकार तथा बांग्लादेश सरकार की फास्ट-ट्रैक कूटनीति के चलते आपसी सहयोग के जरिए मुद्दों के समाधान की दो तरफा कार्यनीति से मैत्रीपूर्ण संबंधों को पर्याप्त बढ़ावा मिला और यही कारण है कि 8 अप्रैल, 2017 को भारत और बांग्लादेश ने परमाणु क्षेत्र से संबंधित 3 समझौतों पर हस्ताक्षर किए. श्रीलंका के बाद यह दूसरा पड़ोसी देश है, जिसके साथ इस तरह से समझौते किए गए. ये समझौते दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण हैं, जो दक्षिण एशिया क्षेत्र में गहन सहयोग और शांति का आधार प्रदान कर सकते हैं.
प्रथम समझौता सिविल परमाणु से संबंधित है, जिसके अंतर्गत परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सामान्य सहयोग किया जाएगा. दूसरे समझौते पर दोनों देशों के परमाणु ऊर्जा नियामक प्राधिकरणों (भारतीय परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) और बांग्लादेश परमाणु ऊर्जा नियामक प्राधिकरण (बीएईआरए)) ने हस्ताक्षर किए. इसके अंतर्गत तकनीकी सहयोग का आदान-प्रदान किया जाएगा और परमाणु सुरक्षा के क्षेत्र में जानकारी साझा की जाएगी. तीसरा समझौता बांग्लादेश में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की संस्थापना के लिए भारत-बांग्लादेश सहयोग पर ध्यान केंद्रित करता है. इस समझौते के अंतर्गत भारत के एईआरबी द्वारा बांग्लादेश के कार्मिकों को प्रशिक्षण देना भी शामिल है.
नि:संदेह बांग्लादेश की प्रधानमंत्री की यात्रा दोनों देशों के संबंधों में मील का पत्थर समझी जाएगी, क्योंकि इन तीन परमाणु समझौतों सहित दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में कुल 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जो रक्षा, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा और संचार जैसे अलग-अलग एवं व्यापक मुद्दों से संबंधित थे. भारत ने बांग्लादेश में परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 4.5 अरब अमरीकी डॉलर की रियायती ऋण सुविधा प्रदान करने की भी घोषणा की. इस यात्रा का एक प्रमुख पहलू रक्षा घटक से सम्बद्ध है, जिसमें रक्षा फ्रेमवर्क के बारे में एक समझौता ज्ञापन, और बांग्लादेश के सैन्य बलों के लिए रक्षा खरीद हेतु 50 करोड़ अमरीकी डॉलर की ऋण सुविधा समझौते पर हस्ताक्षर करना शामिल है. दोनों देशों ने परस्पर रक्षा सहयोग बढ़ाने के बारे में बातचीत की. उन्होंने सीमाओं पर शांति बनाए रखने की दिशा में काम करने और आतंकवाद को कतई बर्दाश्त न करने पर सहमति व्यक्त की. खुलना-कोलकाता रेल सेवा और कोलकाता-खुलना-ढाका बस सेवा को दोनों नेताओं ने झंडी दिखा कर रवाना किया.
इन समझौतों का प्रभाव काफी उज्ज्वल महसूस किया जाना चाहिए, क्योंकि दोनों देशों ने विवाद के दो प्रमुख मुद्दों का समाधान कर लिया है. पड़ोसी देशों के मौजूदा नेतृत्व के अंतर्गत 31 जुलाई, 2015 की तारीख को दोनों देशों के लिए ऐतिहासिक दिन बताया गया, जिस दिन 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के समय से बकाया बस्तियों के जटिल मुद्दे का समाधान किया गया. उस दिन मध्य रात्रि के समय हजारों राष्ट्ररहित लोगों को अंतत: अपनी नागरिकता के चयन की आजादी प्रदान की गई. ये लोग सीमा भलीभांति परिभाषित न होने के कारण दशकों से फंसे हुए थे. बांग्लादेश में 111 भारतीय बस्तियों के करीब 37,000 और भारत में 51 बांग्लादेशी बस्तियों के 14,000 निवासियों को अपनी-अपनी पसंद की नागरिकता प्राप्त हुई. इससे, कटुता के मुद्दे का समाधान हुआ. दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा गंगा जल विवाद था, जिसे काफी पहले नई दिल्ली में हस्ताक्षरित व्यापक द्विपक्षीय संधि के जरिए हल कर लिया गया था. 12 दिसंबर, 1996 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच इस आशय की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें 30 वर्षों के लिए जल-बंटवारे की पुख्ता व्यवस्था शामिल थी.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री की वर्तमान यात्रा से पहले जून, 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बांग्लादेश की सरकारी यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, जिनसे दो पड़ोसियों के बीच संबंध सुदृढ़ करने में मदद मिली. उस यात्रा के दौरान भारत ने बांग्लादेश को दो अरब अमरीकी डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान की थी और 5 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य के निवेश का वायदा किया था. समझौतों के अनुसार भारत की रिलायंस पावर ने 3000 मेगावाट क्षमता का एलएनजी आधारित पावर प्लांट लगाने के लिए 3 अरब अमरीकी डॉलर के निवेश (जो बांग्लादेश में अब तक किए गए किसी भी एकल विदेशी निवेश से बड़ा था) पर सहमति व्यक्त की थी. अडानी पावर भी 1600 मेगावाट का कोयला आधारित पावर प्लांट लगाएगी, जिस पर 1.5 अरब अमरीकी डॉलर की लागत आएगी. 22 समझौतों में समुद्री सुरक्षा सहयोग, मानव तस्करी और जाली भारतीय मुद्रा की रोकथाम संबंधी समझौते प्रमुख थे.
श्री मोदी की यात्रा से पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जून, 2014 में बांग्लादेश की यात्रा की थी, जो उनकी प्रथम सरकारी विदेश यात्रा थी. उस दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों को बढ़ावा देने के बारे में अनेक समझौतों को अंतिम रूप दिया गया था. उनमें वीज़ा व्यवस्था को सरल बनाने का समझौता शामिल था, जिसके अनुसार 13 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों और 65 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को 5 वर्षीय मल्टीपल एंट्री वीज़ा जारी किए जाने का प्रावधान था. इसके अतिरिक्त बांग्लादेश में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने; त्रिपुरा से बांग्लादेश को 100 मेगावाट अतिरिक्त विद्युत प्रदान करने और मैत्री एक्सप्रेस के फेरे बढ़ाने और ढाका से गुवाहाटी और शिलांग के लिए बस सेवाएं शुरू करने जैसे प्रस्तावों को भी अंतिम रूप दिया गया था. बांग्लादेश ने एक मैत्रीपूर्ण कदम के रूप में भारत को इस बात की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की थी कि वह पूर्वोत्तर भारत के स्थल-अवरुद्ध इलाकों में भोजन और अनाज पहुंचाने के लिए बांग्लादेश के भू-भाग और बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल कर सकता है.
ये सभी महत्वपूर्ण घटनाएं दर्शाती हैं कि दोनों देशों में परस्पर निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ रही है और दोनों देश भावी संबंधों के प्रति आशावान हैं.
सिक्के का दूसरा पहलू
परंतु, सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है. बांग्लादेश के भू-भाग में आबादी के एक बड़े हिस्से में भारत विरोधी भावनाएं व्याप्त हैं, जो ऐसे तत्वों को उकसाती हैं, जो आपसी संबंधों और क्षेत्र की शांति के प्रति घातक सिद्ध होते हैं. पाकिस्तान नोन-स्टेट एक्टर्स के नाम पर हमेशा भारत के लिए तनाव का कारण बना रहता है और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ऐसी स्थितियों से लाभ उठाने का प्रयास करती हैं. वे बांग्लादेश और नेपाल के जरिए भारत में कई बार शांति भंग करने का प्रयास कर चुकी हैं.
बांग्लादेश में आपातकाल के समय से भारत ने बांग्लादेश के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखने का प्रयास किया है. परंतु, दोनों देशों की घरेलू राजनीति इस मिलनसारी को पोषित करने के अनुकूल नहीं रही है. अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जो दोनों देशों के बीच झगड़े की जड़ बने हुए हैं. भारत-बांग्लादेश संबंधों को एक स्थिर ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि इन मुद्दों का समाधान भी समान शांति और पारस्परिकता के जरिए निकाला जाए. वर्तमान में कानूनी प्रवास और तीस्ता जल बंटवारा ये दो ऐसे मुद्दे हैं, जो दोनों देशों के संबंधों की दशा और दिशा को निर्धारित करने की क्षमता रखते हैं.
जहां तक, तीस्ता जल बंटवारे के मुद्दे की बात है, इसका समाधान दोनों शासनाध्यक्षों की वर्तमान बैठक के दौरान भी नहीं किया जा सका. यह अच्छी बात है कि दोनों देशों के संबंधों में अन्य घटनाएं घट रही हैं, लेकिन बांग्लादेश द्वारा तीस्ता नदी जल बंटवारे का मुद्दा निरंतर उठाया जाता रहा है. परंतु, बांग्लादेश में जनभावनाएं और जैसा कि उनका दावा है, कि उनकी मांग अपरिहार्य है और इसी तरह भारत में अंदरूनी राजनीति और तीस्ता के इस पार भारतीय जन मानस की संवेदनाएं आदि के कारण इस मुद्दे का समाधान कठिन हो गया है. 2011 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस मुद्दे के समाधान का प्रयास किया था. लेकिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की आपत्तियों के कारण कोई समझौता न हो सका, जिन्होंने पश्चिम बंगाल के लोगों का हित प्रकट किया था और उनका विरोध उजागर किया था. परंतु, 2015 में जब ममता बनर्जी बांग्लादेश की यात्रा पर गईं, तो उन्होंने बांग्लादेश के लोगों को तीस्ता मुद्दे के बारे में कुछ सकारात्मक परिणाम का आश्वासन दिया था. परंतु, 2015 में श्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान सुश्री ममता बनर्र्जी ने भारत और बांग्लादेश के बीच नई व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया. इस तरह अनेक समझौतों और उपायों के बावजूद तीस्ता मुद्दे का समाधान नहीं हो पाया है. बांग्लादेश में भारत विरोधी तत्वों का मुंह बंद करने के लिए तीस्ता जल बंटवारे के मुद्दे का समाधान अत्यंत आवश्यक है. भारत विरोधी तत्व इस मुद्दे को आधार बना कर यह प्रदर्शित करते हैं कि भारत जल बंटवारे का इच्छुक नहीं है, जिससे वहां भारत विरोधी भावनाएं भडक़ती हैं. इस तरह यह भारत के हक में होगा, यदि मोदी सरकार किसी तरह समझा बुझा कर अंदरूनी राजनीति को इस बात के लिए राजी कर ले कि वह तीस्ता जल की समान भागीदारी को स्वीकार करे या सिक्किम और आसपास के क्षेत्रों में एक विशाल जलाशय बनाने के विचार पर अमल करे, जैसा कि कुछ विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है.
अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा जो भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव पैदा करता है, वह यह है कि बांग्लादेश से भारत में लोग अवैध रूप से आकर बसे हुए हैं, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से होकर आते हैं. यह अत्यंत जटिल मुद्दा है, जिसे ध्यानपूर्वक हल करना होगा.
सम्पर्क के लिए हालांकि कई उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन पड़ोसी देशों के लोगों के बीच संबंध बढ़ाने के लिए अनेक अन्य उपाय भी किए जा सकते हैं, विशेषकर इस बात को देखते हुए कि सांस्कृतिक समानता से लाभ उठाए जा सकते हैं.
अंतत: सबसे महत्वपूर्ण बात दोनों देशों के बीच व्यापार की है, जिसे मजबूत बनाने की आवश्यकता है. इस पर गहन ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि दोनों देशों में व्यापार अधिक नहीं है. दो पड़ोसी देशों के बीच कुल व्यापार 7 अरब डॉलर से भी कम है. बांग्लादेश से आयात बहुत कम है, जो 50 करोड़ डॉलर के स्तर पर है. बांग्लादेश द्वारा व्यापार घाटे के इस मुद्दे को भी उठाया जाता है. व्यापार को बढ़ावा देना और व्यापार घाटे को कम करना दोनों देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रह सकें.
दूसरी तरफ, वैश्विक और परस्पर निर्भर विश्व में, जहां आर्थिक विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता दी जाती है, और रूढि़वादिता के कारण सभी तरह का संरक्षणवाद और हिंसा बढ़ रही है, ऐसे में दोनों देशों के संबंध द्विपक्षीय मुद्दों तक सीमित नहीं रह सकते. अब अनेक सरकारी और गैर-सरकारी एक्टर्स और कारक एवं घटक संबंधों को प्रभावित करते हैं.
ऐसे में आतंकवाद एक बड़ा मुद्दा है, जो भारत और इस क्षेत्र के लोगों के लिए एक खतरा है. पिछले वर्ष उड़ी सैन्य ठिकाने पर आतंकवादी हमले के बाद बढ़ते तनाव को देखते हुए भारत ने 19वें सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया. भारत के फैसले के बाद बांग्लादेश ने भी यह कह कर सम्मेलन में हिस्सा न लेने का निर्णय किया कि ‘‘एक राष्ट्र ने ऐसा माहौल पैदा किया है, जो सम्मेलन के सफल आयोजन के अनुकूल नहीं है.’’ इसकी काफी सराहना हुई और भारतभर में इसका स्वागत किया गया. वास्तव में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए दोनों देशों को एक दूसरे के साथ घनिष्ठ सहयोग करने की आवश्यकता है, क्योंकि दोनों अपनी-अपनी सीमाओं में आतंकवाद से संघर्ष कर रहे हैं.
पाकिस्तानी एजेंसियों ने अनेक बार बांग्लादेश की धरती का लाभ उठाने की कोशिश की है. इसका समाधान केवल बेहतर समझबूझ और पास्परिकता के जरिए किया जा सकता है. भारत और बांग्लादेश के बीच बेहतर संबंध दोनों राष्ट्रों की जिम्मेदारी है, ताकि वे उस विश्वास को बनाए रख सकें, जो अभी पैदा हुआ है.
इन क्षेत्रीय मुद्दों के अलावा भारत और बांग्लादेश के संबंध एक विस्तारित समझ की तरफ भी बढ़ रहे हैं. बांग्लादेश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के भारत के अभियान का सिद्धांत रूप में समर्थन करता है. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भी दोनों देशों का दृष्टिकोण समान है, जिसमें भिन्न दायित्व के साथ समान रणनीति स्वीकार्य है. संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएनओ), विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक (डब्ल्यूबी) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के लोकतंत्रीकरण का लक्ष्य भी दोनों देशों का साझा है. इस दिशा में दोनों देश विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घनिष्ठ सहयोग कर रहे हैं.
इन सब बातों के अलावा दोनों देशों की साझा विरासत है, जो संबंध मजबूत बनाने और समझ बूझ बढ़ाने के लिए ठोस आधार प्रदान करती है. दोनों देशों के संबंध सामरिक दृष्टि और सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से भी एक दूसरे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. इस प्रकार विवादित मुद्दों के समाधान, बेहतर सहयोग और एक दूसरे का विकास सुनिश्चित करने के प्रयासों में दोनों देशों की सहमति अत्यंत महत्वपूर्ण है. क्षेत्र में आतंकवाद का सामना करने और शांति एवं समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए, भारत और बांग्लादेश यदि मिल कर काम करें, तो बहुत बड़ा योगदान कर सकते हैं.
सामान्यतौर पर परस्पर निर्भर विश्व और विशेष रूप से कुछ शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों को देखते हुए भारत और बांग्लादेश के बढ़ते संबंध दोनों देशों के लिए फायदेमंद होंगे. विवादास्पद मुद्दों का समाधान यथाशीघ्र परस्पर समझबूझ के साथ अवश्य किया जाना चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं कि शेख हसीना की हाल की भारत यात्रा से यह पता चलता है कि वे भारत के साथ संबंध बढ़ाने की इच्छुक हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत और बांग्लादेश के संबंध मजबूत होंगे. दोनों देशों को एक दूसरे की समस्याओं और एक दूसरे की जरूरतों एवं चिंताओं को अवश्य समझना चाहिए.
अत: बांग्लादेश अपने विकास में भारत से लाभ उठा सकता है. इसी प्रकार भारत भी बांग्लादेश को एक मित्र पड़ोसी के रूप में देखना चाहेगा. दोनों देश परस्पर सहयोग के साथ अच्छे पड़ोसी संबंधों को सुदृढ़ करने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान करने और स्थायी एवं दीर्घकालिक मित्रता के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है.
(डॉ. नावेद जमाल जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के राजनीति विज्ञान विभाग में शिक्षक हैं और संजीव कुमार सिंह जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली में स्कॉलर हैं.)
चित्र: गूगल के सौजन्य से