नकदी रहित अर्थव्यवस्था: भविष्य की संभावनाएं
अर्चना चौहान
रुपये 500 और 1000 के करंसी नोट, जिनकी देश के कुल मुद्रा प्रचलन में करीब 86 प्रतिशत हिस्सेदारी है, 8 नवम्बर, 2016 को अमान्य घोषित कर दिए गए. सरकार ने अमान्य नोटों को बैंकों में जमा कराने या उन्हें नई करंसी से बदलने के विकल्प प्रदान किए.
सरकार के अनुसार विमुद्रीकरण के लक्ष्यों में कर अदा न किए जाने से उत्पन्न कालेधन और अनियंत्रित भ्रष्टाचार से निपटना, नकदीरहित लेन-देन को प्रोत्साहित करना, आतंकवादी गतिविधियों का सामना करने के लिए हवाला कारोबार को रोकना और अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में अधिक जवाबदेही लाना शामिल है. विश्व बैंक ने 2010 में अनुमान लगाया था कि भारत में सकल घरेलू उत्पाद का करीब पांचवा हिस्सा कालाधन है. हमारे देश में 90 प्रतिशत लेनदेन रोकड़ के आधार पर होता है, ऐसे में रोकड़ रहित लेनदेन में रूपांतरण का प्रयास वास्तव में क्रांतिकारी कदम है.
किसी करंसी नोट का लीगल टेंडर (वैधानिक मान्यता) का दर्जा समाप्त करना विमुद्रीकरण कहलाता है. जब पुराने नोटों को बदलने के लिए नए नोट शुरू किए जाते हैं, तो सरकार पुरानी मुद्रा को विमुद्रित (अमान्य) कर देती है. विमुद्रीकरण के मुख्य लक्ष्य इस प्रकार हैं:
*कालेधन (कर अदा न की गई नक़द परिसंपत्तियां)/भ्रष्टाचार को समाप्त करना;
*नकदीप्रणाली को हतोत्साहित करना; और
*मुद्रा प्रसार (महंगाई) की समस्या से निपटना.
विमुद्रीकरण विश्व के लिए कोई नई धारणा नहीं है, क्योंकि निकट अतीत में विमुद्रीकरण के अनेक उदाहरण मिलते हैं. 2015 में, जिम्बावे सरकार ने जिम्बावे के डॉलर का विमुद्रीकरण किया था ताकि देश में अति मुद्रास्फीति पर नियंत्रण किया जा सके. एक अन्य उदाहरण यूरोपीय संघ का है, जब 2002 में यूरो अपनाने पर सदस्यों देशों ने अपनी पुरानी मुद्रा का विमुद्रीकरण किया. सरकारों ने अपनी पुरानी मुद्रा को यूरो में बदलने के लिए विनिमय दर तय की. भारत ने भी 1946 और 1978 में उच्च मूल्य करंसी नोटों (रु. 5000 और 10,000) का विमुद्रीकरण किया था.
वर्तमान स्थिति:
कृषि, भू-संपदा, मत्स्य आदि नकदीकेन्द्रित अनौपचारिक क्षेत्र विमुद्रीकरण से प्रभावित हुए हैं. परन्तु, विशेषज्ञों का कहना है कि यह असर अल्पावधि के लिए है और इस कदम से दीर्घावधि में अच्छे नतीजे सामने आएंगे. अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार नक़दी-रहित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित कर रही है, क्योंकि नकदीको समाप्त करने के साथ
यह भी जरूरी है कि उसका विकल्प तैयार किया जाये.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बैंक खातों का प्रसार मात्र 53 प्रतिशत है, जिसमें से केवल 15 प्रतिशत खाताधारक भुगतान प्राप्त करने या भुगतान करने के लिए अपने खातों का इस्तेमाल करते हैं. 2014 में एनडीए सरकार ने प्रधानमंत्री जनधन योजना की घोषणा की ताकि उन लोगों का वित्तीय समावेशन बढ़ाया जा सके, जिनका कभी किसी बैंक में खाता नहीं रहा है. इस योजना के अंतर्गत दो वर्षों में 25 करोड़ बैंक खाते खोले गए हैं. रिजर्व बैंक की रिपोर्टों के अनुसार बैंक शाखाओं में प्रति वर्ष 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, परन्तु ओटोमेटिड टेलर मशीनें (एटीएम्स), डेबिट काड्र्स और कॉर्ड स्वाइप मशीनें पिछले चार वर्ष में दुगुनी हो गई हैं. इतना ही नहीं, 2016 तक पिछले 6 वर्षों में ऑनलाइन लेनदेन में 20 गुणा बढ़ोतरी हुई है. ये सभी आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे नकदीरहित बनने की ओर अग्रसर है. विमुद्रीकरण ने इस रूपांतरण को गति प्रदान की है.
नकदीरहित अर्थव्यवस्था के सकारात्मक पहलू
नकदीरहित अर्थव्यवस्था में कागजी मुद्रा का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है, क्योंकि उसमें प्रमुख लेनदेन कॉर्डों के ज़रिए या डिजिटल भुगतान के ज़रिए होता है, जिससे जवाबदेही रहित लेनदेन की आशंका कम हो जाती है. विश्व में किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था नकदीपर अधिक निर्भर है. यहां तक कि ऐमज़ान, उबर आदि ई-कॉमर्स कंपनियां भी भारत में रोकड ़स्वीकार करती हैं, और भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहां ‘डिलिवरी पर नक़द भुगतान’ (सीओडी) का विकल्प अभी भी प्रचलित है, जहां अभी तक ऑनलाइन कारोबार का 70 प्रतिशत हिस्सा ‘डिलिवरी पर नक़द भुगतान’ (सीओडी) पर आधारित है. विमुद्रीकरण की नीति अपनाते हुए, सरकार ने नकदीआधारित अर्थव्यवस्था को ताक़ पर रख दिया है और उसे उम्मीद है कि अधिक से अधिक लोगों को नकदीरहित अर्थव्यवस्था के दायरे में लाया जा सकेगा.
विमुद्रीकरण की घोषणा के 7 दिन के भीतर, पेटीएम ने 2.5 करोड़ से अधिक का लेनदेन पंजीकृत किया, जिसका मूल्य 150 करोड़ रुपये था. एक अन्य ई-वालेट मोबीक्विक के दैनिक डाउनलोड्स में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई. किराने के सामान का ऑनलाइन व्यापार जैसे डिजिटल दृष्टि से संकेंद्रित क्षेत्रों का विकास होने लगा है. अब छोटे पथ विक्रेता तक ने भी मोबाइल वालेटों और स्वाइप मशीनों के ज़रिए डिजिटल भुगतान स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया है. यह अपने में क्रांतिकारी है, और इससे पता चलता है कि छोटे व्यापारी भी आसानी से नकदीरहित प्रणाली में रूपांतरित हो सकते हैं. ये सभी परिवर्तन अधिक पारदर्शी और समावेशी अर्थव्यवस्था की ओर संकेत करते हैं. नकदीरहित प्रणाली से अर्थव्यवस्था में निम्नांकित रचनात्मक प्रभाव पड़ेंगे:
*व्यापारिक लेनदेन अधिक स्वच्छ और पारदर्शी होगा.
*इससे कराधान का आधार बढ़ेगा. भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का जीडीपी में 45 प्रतिशत और रोजगार में 80 प्रतिशत योगदान है. इसका अर्थ यह हुआ कि करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनका कोई लेखा-जोखा नहीं है और जिन पर कोई कर नहीं लगता है. आयकर विभाग के अनुसार वर्तमान में भारत की केवल 1 प्रतिशत आबादी आयकर अदा करती है. नई प्रणाली के साथ दीर्घावधि में यह क्षेत्र औपचारिक फ्रेमवर्क में काम करने के प्रति बाध्य होगा. इससे कर से बचने वालों की संख्या में भी कमी आयेगी.
*इससे समानांतर छद्म अर्थव्यवस्था (काली अर्थव्यवस्था) समाप्त होगी, जो अधिकतर नकदीके आधार पर चलती है. नकदीरहित लेनदेन का हिसाब रखा जा सकता है और उसमें अधिक पारदर्शिता होती है.
*कल्याण कार्यक्रमों में सक्षमता आती है, क्योंकि इससे धन लाभार्थियों के खातों में आसानी से अंतरित किया जा सकता है. इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो जाती है, जो लोगों पर खर्च की जाने वाली कल्याण राशि को हड़प जाते हैं. यह नकदीरहित व्यवस्था पारदर्शिता प्रस्तुत करती है और इससे लोग बिना किसी को घूस दिए सभी लाभ सीधे अपने खाते में प्राप्त कर सकते हैं.
*सभी कल्याण गतिविधियों को बैंक खातों से जोडऩे के ज़रिए वित्तीय समावेशन एवं ऋण तक पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे न केवल लोगों का अधिक कल्याण किया जा सकेगा, बल्कि बैंकिंग प्रणाली के प्रति उनकी आस्था बढ़ाने और उनमें सम्बद्धता की भावना पैदा करने में भी मदद मिलेगी.
*लेनदेन का ब्यौरा उजागर करना आसान होने के कारण कालेधन को सफेद करने की कोशिशों को धक्का पहुंचेगा.
*विदेशी निवेश के लिए माहौल सुधारने में मदद मिलेगी.
*जाली नोट और खोटे सिक्के बनाने की समस्या पर नियंत्रण हो सकेगा. आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रत्येक 10 लाख बैंक नोटों में से 250 नोट जाली निकलते हैं.
*सुशासन स्थापित करने में मदद मिलेगाी.
*वर्ष 2015 में भारतीय रिजर्व बैंक ने करंसी जारी करने और उसके प्रबंधन पर 27 अरब रुपये खर्च किए. रोकड़ रहित अर्थव्यवस्था से यह लागत बचायी जा सकेगी.
विमुद्रीकरण से असंख्य अवसरों का द्वार खुल गया है और अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र, विशेषकर ई-कामर्स के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन की गति तेज हो गई है. नकदीरहित अर्थव्यवस्था चंद दिनों या महीनों में कायम नहीं की जा सकती, यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है. लोगों को यह बदलाव स्वीकार करने के लिए तैयार करना होगा. प्रश्न यह है कि नकदीक्यों आवश्यक है? भारत जैसे देश में जहां गरीबी, निरक्षरता और बेरोजगारी प्रमुख समस्याएं हैं, वहां हाथ में नकदीसुरक्षा, संरक्षा और सम्मान का प्रतीक है. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोगों की मूलभूत जरूरतें पूरी हों और बुनियादी ढांचा, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाएं प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित करे.
स्कूलों, कॉलेजों, पंचायतों आदि के ज़रिए विशेष अभियान चला कर रोकड़ रहित/बैंकिंग लेनदेन के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है. अधिकाधिक लोगों को डिजिटल मंच पर लाने के लिए वित्तीय साक्षरता अनिवार्य है. डिजिटल भुगतान या बैंकों के जरिए भुगतान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जैसे खर्चों का भुगतान और स्टॉफ का वेतन आदि नक़द अदा करने की बजाय बैंक खातों के ज़रिए किया जाना चाहिए. सभी कल्याण कार्यक्रमों को बैंक खातों के साथ जोडऩा सराहनीय कदम है. एक अनुमान के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में शहरी क्षेत्रों का योगदान करीब 70 प्रतिशत है. अत: शुरू में शहरी क्षेत्रों को रोकड़ रहित बनाने पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है, जहां बुनियादी ढांचागत सुविधाएं पहले से विकसित की जा चुकी हैं. ग्रामीण क्षेत्रों को धीर-धीेरे कवर किया जा सकता है. नकदीआधारित अर्थव्यवस्था के लिए सुदृढ़ बैंकिंग आधार बुनियादी अपेक्षा है. इंटरनेट की साइबर सुरक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण है, जिसके अभाव में पढ़े लिखे व्यक्ति भी धन का ऑनलाइन लेनदेन करने से कतराते हैं. नकदीरहित अर्थव्यवस्था अत्यन्त पारदर्शी और स्वच्छ आर्थिक ढांचा है, जो कालेधन को रोकता है और देश में नकदीपोषित आतंकवाद से लडऩे में मदद पहुंचाता है. स्वच्छ और पारदर्शी अर्थव्यवस्था से सभी को विकास का लाभ पहुंचेगा. अल्पावधि के लिए आर्थिक विकास की गति कुछ धीमी हो सकती है और उपभोक्ताओं और उत्पादकों को कुछ संक्रमणकालीन असुविधाएं हो सकती हैं. आभूषण और भू-संपदा क्षेत्रों पर सबसे बुरा असर पड़ा है क्योंकि ये दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें काला धन निवेश करने वाले प्राथमिकता देते हैं. भू-संपदा क्षेत्र में काला धन कार्यशील पूंजी के रूप में काम करता है, जिसकी अनुपस्थिति से इस क्षेत्र को धक्का पहुंचेगा.
विशेषज्ञों के अनुसार, अल्पावधि में नौकरी बाज़ार, विशेषकर भू-संपदा क्षेत्र और अनुषंगी गतिविधियों, जैसे सीमेंट, निर्माण में काम आने वाला लोहा आदि, में करीब 5 प्रतिशत से 7 प्रतिशत तक कमी आयेगी. परन्तु, कुछ ऐसे व्यापार हैं, जिन्हें इस नकदीरहित अभियान के कारण प्रत्यक्ष लाभ पहुंचा है, जैसे फिन-टेक, डिजिटल पेमेन्ट कंपनियां आदि, जिन्होंने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए व्यापक भर्ती शुरू कर दी है. अनेक ई-कॉमर्स कंपनियों ने ‘कैश ऑन डिलिवरी’ के स्थान पर ‘वॉलेट ऑन डिलिवरी’ स्वीकार करना शुरू कर दिया है. कुछ लोग विमुद्रीकरण की इस आधार पर आलोचना कर रहे हैं कि इसके लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की गईं. वास्तव में, यह सरकारी की अत्यन्त गोपनीय परियोजना थी, जिसके बारे में कुछ भरोसेमंद लोगों को छोडक़र, यहां तक कि बैंकों को भी कुछ नहीं पता था. परन्तु, तैयारी का मतलब होता, अधिक लोगों को भागीदार बनाना और ऐसा करने से इस कवायद का मकसद यानी काले धन से लड़ाई का प्रयोजन ही विफल हो जाता.
(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के रामानुजन कॉलेज में वाणिज्य पढ़ाती हैं. उनसे archu_jubilee@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता है)