राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और इसका महत्व
अरुण खुराना और
डॉ. पी.सी. सिन्हा
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का अर्थ है, देश के सभी विधिसम्मत नागरिकों का रिकॉर्ड. यह मूलत: भारत के प्रत्येक गांव में मकानों और संपत्तिधारकों की क्रमबद्ध सूची और उनमें रहने वाले लोगों के नामों सहित उनकी संख्या का ब्योरा था. सरकार ने बाद में इस रिकॉर्ड को उपायुक्तों और उप-मंडल कार्यालयों में रखने के निर्देश दिए. बाद में 1960 के दशक में एनआरसी द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े पुलिस को सौंप दिए गए. 1980 के दशक में असम राज्य में धीरे धीरे इस रजिस्टर के आंकड़ों को अद्यतन बनाने की मांग की जाने लगी. इसका प्रमुख कारण यह था कि स्थानीय लोगों ने यह महसूस करना शुरू किया कि उनकी जमीन पर अवैध विदेशी प्रभुत्व जमाने लगे हैं. इसकी परिणति 1980 में असम में एक विरोध आंदोलन के रूप में हुई. दूसरे शब्दों में, एनआरसी भारतीय नागरिकों की एक सूची है, जो यह तय करती है कि कौन विधिसम्मत भारतीय नागरिक है और जो इस रजिस्टर में दर्ज नहीं है, उसे अवैध प्रवासी समझा जाएगा. प्रथम सूची समूचे भारत में 1951 में उस वर्ष कराई गई जनगणना के आधार पर तैयार की गई थी. यह पहला अवसर है कि इसे अद्यतन बनाया जा रहा है और वह भी केवल असम में. अब यह जनगणना से सम्बद्ध नहीं है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने को किसी परिवार के ऐसे सदस्य से जोडऩा होगा, जिसका नाम 1951 की एनआरसी में दर्ज रहा हो, अथवा 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि तक किसी राज्य की मतदाता सूची में दर्ज रहा हो. 1971 का चयन करने का कारण यह था कि 1985 के असम समझौते में इस बारे में सहमति हुई थी. यदि किसी आवेदक का नाम इनमें से किसी भी सूची में नहीं हो, तो वह 12 अन्य दस्तावेज, जो 24 मार्च 1971 तक की तारीख से सम्बद्ध हों, प्रस्तुत कर सकता है, जैसे भूमि या काश्तकारी रिकॉर्ड; नागरिकता प्रमाणपत्र; या स्थायी आवास प्रमाणपत्र; या अथवा पासपोर्ट; या अदालती रिकॉर्ड; अथवा शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र; एनआरसी, 1951 अथवा 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि तक जारी की गई किसी मतदाता सूची में शामिल सभी नामों को ‘‘लीगेसी डेटा’’ अर्थात् ‘‘विरासत विवरण’’ कहा जाता है. इस प्रकार अद्यतन एनआरसी में नाम शामिल किए जाने के लिए दो अपेक्षाएं अनिवार्य हैं. पहली यह है कि व्यक्ति का नाम 1971 से पहले के एनआरसी में विद्यमान रहा हो अथवा उसमें दर्ज व्यक्ति के नाम के साथ वंशानुगत संबंध रहा हो. असम में एनआरसी को अद्यतन बनाने के दो प्रावधान हैं, ‘नागरिकता अधिनियम, 1955’ और ‘नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचानपत्र जारी करना) नियम, 2003’.
यह तथ्य है कि 1951 के एनआरसी को अद्यतन बनाने की मांग सबसे पहले ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन (एएएसयू) और असम गण परिषद ने करीब तीन दशक पहले उठाई थी. उपर्युक्त संगठनों ने ‘अवैध विदेशी नागरिकों के खिलाफ असम आंदोलन’ शुरू करने के दो महीने बाद 18 जनवरी, 1980 को केंद्र सरकार को एक ज्ञापन दिया था. 17 नवंबर, 1999 को, ‘असम समझौते के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए आधिकारिक स्तर की त्रिपक्षीय बैठक’ में यह निर्णय किया गया था कि एनआरसी को अद्यतन बनाया जाए और इस प्रयोजन के लिए केंद्र ने 20 लाख रुपये मंजूर किए और प्रारंभिक कवायद शुरू करने के लिए 5 लाख रुपये जारी किए. उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने 5 मई, 2005 को एनआरसी को अद्यतन बनाने का अंतिम निर्णय किया. इसके बाद सरकार ने एनआरसी को अद्यतन बनाने के लिए एक निदेशालय की स्थापना की और फिर 1971 तक की मतदाता सूची और 1951 के एनआरसी के कम्प्यूटरीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई.
एनआरसी प्रक्रिया: उद्देश्य और भावी जटिलताएं
एनआरसी तैयार करना नागरिकों की भागीदारी वाली सबसे व्यापक कवायद है, जो असम के प्रत्येक निवासी के जीवन को छूती है. यह ‘असम समझौते’ और 2005 की त्रिप़क्षीय बैठक में हुई सहमति की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए की जा रही कार्रवाई का हिस्सा है. असम के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) में उचित भारतीय नागरिकों के नाम शामिल होंगे, और सरकार को अवैध रूप से रह रहे लोगों का पता लगाने में मदद मिलेगी. एनआरसी के स्टेट कोआर्डिनेटर कार्यालय द्वारा 31 दिसंबर, 2017 को प्रकाशित असम के अद्यतन राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का प्रारूप अवैध प्रवासियों, विशेष रूप से बंगलादेश से आकर असम में अवैध रूप से बसे लोगों से निपटने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.
1951 के एनआरसी को अद्यतन बनाने और प्रकाशित करने का उद्देश्य असम में रहने वाले वैध भारतीय नागरिकों की सूची को संकलित करना और इस प्रक्रिया के दौरान विदेशियों, विशेषकर बंगलादेशियों का पता लगाना है, जिन्होंने 24 मार्च 1971 के बाद अवैध रूप से असम में प्रवेश किया हो. 30 जुलाई, 2018 को प्रकाशित एनआरसी सूची के अंतिम मसौदे के अनुसार, वैध दस्तावेेज के साथ एनआरसी में नाम शामिल करने के लिए असम के 3.29 करोड़ निवासियों ने आवेदन किया था, जिनमें से 2.89 करोड़ व्यक्तियों के नाम नागरिकों के रूप में प्रारंभिक सूची में शामिल कर लिए गए हैं. इस सूची में 40,70,707 लोगों के नाम शामिल नहीं हैं. इनमें से 37,59,630 लोगों के नाम निरस्त कर दिए गए हैं और शेष 2,48,077 लोग होल्ड पर रखे गए हैं और उनके साथ ‘‘डी-वोटर’’ टैग लगाया गया है, जिसका अर्थ है, ‘संदिग्ध’ या ‘संदेहपूर्ण’. यह ऐसे मतदाताओं की श्रेणी है, जिसे सरकार ने समुचित नागरिकता दस्तावेज के अभाव में नागरिकता से वंचित किया है. विदेशी व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत संदिग्ध मतदाताओं की सुनवाई विशेष न्यायाधिकरणों द्वारा की जा रही है और अगर वे नागरिकता के अपने दावे का बचाव नहीं कर पाएंगे, तो उन्हें घोषित विदेशियों के रूप में चिन्हित कर दिया जाएगा और 6 निरोध शिविरों में से किसी एक में भेज दिया जाएगा, जो अपराधियों के लिए कारागारों के भीतर बनाए गए हैं, ताकि उन्हें उनके देश वापस भेजा जा सके. 31 दिसंबर, 2017 को घोषित विदेशियों की संख्या 91,206 थी. असम में, अंतिम रजिस्टरों में विभिन्न स्तरों पर सभी दावों और आपत्तियों के निपटान के बाद, सभी भारतीय नागरिकों के नामों की अंतिम सूची दिसंबर, 2018 के अंत तक प्रकाशित हो जाने की उम्मीद है.
अंतर्निहित राजनीतिक सरोकारों और निहित स्वार्थों के कारण, अतीत में विभिन्न परवर्ती राज्य सरकारें 1951 के एनआरसी को अद्यतन बनाने की अनिच्छुक रही हैं. माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष जब यह मामला सुनवाई के लिए आया, तो अदालत ने इसे अत्यंत गंभीरता से लिया. उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न पार्टियों द्वारा दायर की गई रिट याचिकाओं पर विचार किया, जिनमें एक स्वयंसेवी संगठन, असम पब्लिक वक्र्स, द्वारा जुलाई 2009 में दाखिल की गई रिट याचिका प्रमुख थी, जिसमें इस संगठन ने प्रार्थना की थी कि असम के मतदाताओं की सूचियों में से अवैध मतदाताओं के नाम हटाए जाएं और इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में एनआरसी को अद्यतन बनाया जाए. उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को आदेश दिया कि असम में एनआरसी को अद्यतन बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाए. तद्नुरूप गृह मंत्रालय ने विधि और न्याय मंत्रालय की सलाह से एनआरसी को अद्यतन बनाने का काम शुरू करने की अधिसूचना जारी की और 28 जनवरी, 2014 को श्री प्रतीक हजेला को एनआरसी के लिए स्टेट कोआर्डिनेटर नियुक्त किया. इसके अतिरिक्त उच्चतम न्यायालय ने एक समिति का गठन किया, ताकि वह एनआरसी तैयार करने के तौर तरीकों के बारे में किसी मुद्दे पर स्पष्टीकरण दे सके. शुरू में एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित करने की तारीख 1 जनवरी 2016 या उससे पहले तय की गई थी, परंतु स्टेट कोआर्डिनेटर के अनुरोध पर अदालत इस समय-सीमा को दो वर्ष के लिए बढ़ाने पर सहमत हो गई.
एनआरसी मसौदा रिपोर्ट का प्रभाव
जैसा कि अनेक लोगों का अनुमान था, प्रथम मसौदा प्रकाशित होने पर कोई हिंसक विरोध उत्पन्न नहीं हुआ. परंतु, ऐसे लोगों के दिमाग में गंभीर आशंकाएं पैदा हुईं, जिनके नाम सूची में शामिल नहीं हैं, विशेष रूप से ऐसे मामलों में, जहां किसी एकल परिवार के केवल कुछ सदस्यों के नाम सूची में प्रकाशित हुए, जबकि अन्य के नाम रह गए. यह तथ्य है कि उन्हें इस उम्मीद ने विरोध प्रदर्शन से रोका कि उनके नाम अगली सूची में प्रकाशित हो जाएंगे. इस तथ्य को देखते हुए कि एक समय देश में तत्संबंधी समुचित प्रलेखन प्रणाली विद्यमान नहीं रही है, ऐसे लोगों, जिनके नाम एनआरसी सूची में शामिल नहीं किए गए, में से अधिकांश लोगों को अपेक्षित दस्तावेज, विशेष रूप से विरासत दस्तावेज में शामिल किए गए व्यक्तियों के नामों के साथ अपना संबंध सिद्ध करने और इस तरह विधिसम्मत नागरिकता अधिकार कायम करने के लिए जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने में नि:संदेह कठिनाइयां उठानी पड़ीं. देश के अन्य भागों से आकर असम में बसने वाले लोगों के मामले में यह कठिनाई अधिक सामने आई. अभी तक अन्य राज्य सरकारों को जांच के लिए भेजे गए 5.5 लाख दस्तावेज में से केवल 1.5 लाख लौटाए गए हैं. इन कठिनाइयों और देरी को देखते हुए, यह विचारणीय है कि जब इस सूची का अगला संस्करण प्रकाशित होगा, तो उसमें कितने लोगों के नाम शामिल हो पाएंगे.
एनआरसी से संबंधित अन्य बकाया मुद्दे
एक महत्वपूर्ण मुद्दा, जिसका समाधान करना आवश्यक है, यह है कि उन व्यक्तियों का क्या होगा, जिनके नाम अंतिम एनआरसी में शामिल नहीं होंगे और जिन्हें असम राज्य में अवैध प्रवासी घोषित कर दिया जाएगा.
एनआरसी और अन्य संभावित आगामी चुनौतियां
· भाषा का मुद्दा
· बंगलादेश की भाषा असम और त्रिपुरा में बोली जाने वाली भाषा से भिन्न है. विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को विकल्प दिया गया था और उनमें से कुछ ने इस विकल्प को नहीं अपनाया था. उसके बाद भी, उन्हें 1965 और 1971 में विकल्प दिया गया, पर वे उस समय भारत नहीं आए. ऐसे में प्रश्न यह है कि अब क्यों आ रहे हैं? अब वे जिस दर से असम में आए हैं, उससे असम के मूल नागरिक अल्पसंख्यक हो गए हैं.
· नागरिकता विधेयक पर उठे सवाल
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016, जो नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिए लोकसभा में पेश किया गया था, को लेकर कुछ मुद्दे उठाए गए हैं:
यह अवैध प्रवासियों को उनके धर्म के आधार पर नागरिकता का पात्र बनाता है.
इस विधेयक से विषम संघवाद के लिए दिलचस्प प्रभाव पड़ सकते हैं. विचारणीय प्रस्ताव में से एक यह है कि समूचे भारत पर लागू करते समय असम को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा जाए.
निष्कर्ष
अद्यतन एनआरसी का प्रकाशन वास्तव में एक रचनात्मक कदम है, क्योंकि इससे असम में अवैध प्रवासी आबादी के बारे में अटकलों और नतीजतन धु्रवीकरण पर विराम लगेगा. असम में एनआरसी को अद्यतन बनाया जा रहा है, लेकिन पूर्वोत्तर भारत के अन्य राज्यों के लिए ऐसे ही एनआरसी तैयार करने की कोई योजना नहीं है, जहां रह रहे अवैध प्रवासी एक ज्वलंत मुद्दा बने हुए हैं. अत: समय की आवश्यकता है कि असम के लोगों के दिमाग में विद्यमान आशंकाएं दूर की जाएं और एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित होने के बाद पडऩे वाले विपरीत प्रभाव को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं. केंद्र सरकार ने कहा है कि एनआरसी को अद्यतन बनाने की कवायद पूरी तरह तटस्थ, पारदर्शी और युक्तिसंगत तरीके से की जा रही है और शिकायतों के निवारण के लिए एक न्यायोचित और निष्पक्ष व्यवस्था पहले से कायम है. असम के लिए एनआरसी का पूर्ण मसौदा इस वर्ष 30 जुलाई को प्रकाशित किया गया है और उच्चतम न्यायालय एनआरसी की प्रगति पर निगरानी रख रहा है और एनआरसी के मसौदे के बारे में दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया इस वर्ष 25 सितंबर से शुरू हो चुकी है, जो 31 दिसंबर, 2018 तक जारी रहेगा. उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार जांच की प्रक्रिया अगले वर्ष 15 फरवरी से शुरू होगी.
(लेखक श्री अरुण खुराना सोशल रेस्पोंसिबिलिटी काउंसिल (एसआरसी) के संस्थापक/ निदेशक और डॉ. पी.सी. सिन्हा मुख्य सलाहकार हैं. ई-मेल:info@srcouncil.in)
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