भारत की अर्थव्यवस्था में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम और स्टार्टअप्स की भूमिका
अपूर्व कुमार मिश्रा
मई 2014 में सत्ता संभालने के बाद से वर्तमान सरकार ने एमएसएमईज और स्टार्टअप्स को भारत के विकास का इंजन बनाने के लिए दो सूत्री कार्यक्रम अपनाया. पहला, यह कि भारत के बृहत् आर्थिक संकेतकों में सुधार के लिए ऊपर से नीचे की ओर सुधार कार्यक्रम चलाया गया और व्यापार करने में सुगमता की स्थिति में सुधार लाया गया, जिसका लाभ आमतौर पर सभी उद्यमियों और विशेष रूप से एमएसएमईज़ और स्टार्टअप्स को पहुंचा. दूसरा यह कि निचले स्तर पर ऐसी नीति अपनायी गई, जो एमएसएमईज और स्टार्टअप्स को विशेष प्रोत्साहन देने पर केन्द्रित थी ताकि उनकी उन्नति हो और वे हर महीने श्रमिक वर्ग में जुडऩे वाले करीब 10 लाख भारतीयों के लिए रोजग़ार के अवसर प्रदान कर सकें.
दोनों तरह के सुधारों के लिए मार्ग-दर्शक सिद्धांत यह है कि नियमों पर आधारित एक ऐसी समस्तर व्यवस्था की जाये, जिसमें ईमानदार उद्यमी वैश्विक दृष्टि से प्रतिस्पर्धात्मक बन सकें. ऊपर से नीचे की ओर सुधारों में निम्नांकित शामिल हैं, जिनसे एमएसएमईज़ और स्टार्टअप्स को लाभ होगा: जीएसटी की शुरुआत, ऋणशोधन और दिवालियापन के मामलों के निपटान के लिए संस्थागत उपाय, सभी क्षेत्रों में धीरे-धीरे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में उदारता बरतना, बैंकों के फंसे कजऱ्ों के मामले में आक्रामक कार्रवाई, बुनियादी ढांचे में भारी निवेश और सरकारी खरीद को सुचारू बनाने के लिए सरकारी ई-मार्केट प्लेस (जीईएम) पोर्टल की संरचना ताकि छोटी कंपनियां भी ऑनलाइन प्रतिस्पर्धात्मक दरों पर सरकारी अनुबंधों के लिए बोली लगा सकें.
एमएसएमईज़ और स्टार्टअप्स के लिए निचले स्तर पर सुधारों में निम्नांकित तीन स्तम्भ शामिल हैं:-
1.पूंजी तक पहुंच में सुधार
2.प्रौद्योगिकी तक पहुंच में सुधार
3.ट्रांजैक्शन यानी कारोबार लागत में कमी
एमएसएमईज़ के लिए दो बड़े सुधार लागू किए गए, ये हैं- जीएसटी फाइलिंग के आधार पर ‘प्लांट और मशीनरी/उपकरण में निवेश’ से लेकर ‘वार्षिक कारोबार’ तक के आधार पर ऐसी इकाइयों का पुन: वर्गीकरण, जिससे इंस्पेक्टर राज समाप्त हुआ और 250 करोड़ रुपये तक वार्षिक कारोबार वाली कंपनियों के मामले में कॉर्पोरेट कर की दर 30 प्रतिशत से घटा कर 25 प्रतिशत करना; जिससे पूरे देश में 6 करोड़ से अधिक एमएसएमई इकाइयों को लाभ पहुंचा.
भारत सरकार की एक दीर्घावधि सरकारी खरीद नीति है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक केन्द्रीय मंत्रालय/ विभाग/ सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान को वस्तुओं और सेवाओं की अपनी कुल वार्षिक खरीद का न्यूनतम 20 प्रतिशत सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों से खरीदना पड़ता है. इस नीति में अन्य लाभ भी शामिल हैं, जैसे नि:शुल्क टेंडर सेट, मूल्य वरीयता और 358 वस्तुएं केवल एमएसईज से खरीदे जाने के लिए आरक्षित होना.
एमएसएमई की पूंजी तक पहुंच में सुधार लाने के लिए अनेक उपाय किए गए हैं. प्रधानमंत्री रोजग़ार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) गैर-कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म-उद्यमों के लिए एक प्रमुख ऋण-संबद्ध सब्सिडी कार्यक्रम है, जिसके अंतर्गत दिसम्बर-2017 तक 4.49 सूक्ष्म उद्यमों को सहायता प्रदान की गई. सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए ऋण गारंटी कार्यक्रम (सीजीटीएमएससी) के अंतर्गत आनुषंगिक प्रतिभूति मुक्त ऋण सुविधा प्रदान की जाती है और इसके अंतर्गत 28 लाख से अधिक उद्यमियों को लाभ पहुंचाया गया है. इसकी कोष-राशि 2500 करोड़ रुपये से तीन गुणा बढक़र 7500 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है.
भारतीय रिजर्व बैंक ने एमएसएमईज के लिए परिसंपत्ति वर्गीकरण मानदंड में रियायत प्रदान करने और एमएसएमईज के लिए वरीयता क्षेत्र के अंतर्गत ऋण के मामले में ऊपरी सीमा हटाने में अपनी भूमिका अदा की है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि ऐसी इकाइयों को कितनी भी राशि के ऋण को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण समझा जाएगा और उसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं होगी. इतना ही नहीं इस वर्ष के बजट में वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए मुद्रा कार्यक्रम के लिए आवंटन बढ़ाकर 3 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया. सरकार के इस प्रमुख कार्यक्रम के अंतर्गत कुल 4.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 11 करोड़ से अधिक ऋण बिना किसी बैंक प्रतिभूति के संवितरित किए गए ताकि 3 करोड़ नए उद्यम स्थापित किए जा सकें. कुल ऋण खातों में से, 76 प्रतिशत महिलाओं और 50 प्रतिशत से अधिक अजा, अजजा और अपिव समुदायों से संबद्ध थे.
एमएसएमईज को नवीन और वैश्विक दृष्टि से प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए अद्यतन प्रौद्योगिकी तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु सरकार ने एक ऋण-संबद्ध पूंजी सब्सिडी कार्यक्रम शुरू किया ताकि उन्हें अग्रिम पूंजी सब्सिडी प्रदान की जा सके. नवम्बर 2017 तक सब्सिडी के रूप में 2904.53 करोड़ रुपये का इस्तेमाल करते हुए कुल 48,618 यूनिटों को सहायता प्रदान की गई. क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एमएसई-सीडीपी) एमएसएमई क्षेत्र का एक अग्रणी उपाय है, जिसके अंतर्गत साझा सुविधा केन्द्रों जैसी साझा ‘‘परिसंपत्तियों’’ का सृजन किया जाता है ताकि एमएसएमई इकाइयां एक-दूसरे के साथ मिल कर उनका इस्तेमाल कर सकें. एमएसएमई मंत्रालय ने एक प्रौद्योगिकी केन्द्र प्रणाली कार्यक्रम भी शुरू किया है ताकि 15 नए प्रौद्योगिकी केन्द्र खोले जा सकें और वर्तमान प्रौद्योगिकी केन्द्रों को उन्नत बनाया जा सके. विश्व बैंक की सहायता से शुरू किए गए इस कार्यक्रम पर करीब 2200 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है.
कारोबार लागत में कमी लाने और एमएसएमईज के पंजीकरण की प्रक्रिया सरल बनाने के लिए एक पृष्ठ का उद्योग आधार ज्ञापन शुरू किया गया है ताकि उन्हें सरकारी कार्यक्रमों का लाभ मिल सके और वे जीएसटी व्यवस्था में अपने को शीघ्रता के साथ ढाल सकें. दो नए व्यावसायिक प्लेटफार्म शुरू किए गए हैं - एमएसएमई के लिए सरकार की खरीद नीति पर निगरानी रखने के लिए एमएसएमई संबंध पोर्टल और विलंबित भुगतानों के मामले पंजीकृत करने के लिए एमएसएमई समाधान पोर्टल
इन उपायों के पीछे बड़ी सोच यह है कि हमारे एमएसएमई क्षेत्र को न केवल भारत की जरूरतें पूरी करनी हैं बल्कि वैश्विक बाज़ारों की जरूरतें भी पूरी करनी हैं. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘‘ज़ीरो डिफेक्ट, ज़ीरो इफेक्ट’’ का स्पष्ट आहन किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एमएसएमईज़ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उच्च-गुणवत्ता युक्त विनिर्माण करें, जो पर्यावरण की दृष्टि से भी टिकाऊ हो आदिल ज़ैनुलभाई (चेयरमैन, भारतीय गुणवत्ता परिषद) के शब्दों में ‘‘ज़ीरो डिफेक्ट, ज़ीरो इफेक्ट का एमएसएमईज के लिए वही महत्व है, जो स्टार्ट अप इंडिया कार्यक्रम का स्टार्टअप्स के लिए है, क्योंकि एमएसएमई भी आखिरकार एक स्टार्ट अप ही है.’’
डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटीज, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, जन धन-आधार-मोबाइल (जेएएम) की त्रिमूर्ति जैसे सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों का संयुक्त प्रभाव और ऐसे ही अन्य कार्यक्रमों का लक्ष्य भारत को एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में तब्दील करना है, जिसमें प्रौद्योगिकी-युक्त स्टार्ट-अप महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. जैसा कि प्रधानमंत्री ने इस वर्ष के शुरू में ईटी ग्लोबल बिजनेस सम्मेलन में कहा था कि ‘‘एक अरब बैंक खातों, एक अरब आधार कार्ड और एक अरब मोबाइल फोन की त्रिमूर्ति से एक ऐसी पारिस्थिति की का सर्जन होगा, जो दुनिया में अपने तरह की बेजोड़ होगी.’’
स्टार्टअप्स के विकास में तेजी लाने और देश में नवाचार की संस्कृति विकसित करने के लिए वर्तमान सरकार ने ‘‘स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया’’ कार्यक्रम के हिस्से के रूप में विभिन्न मंत्रालयों के माध्यम से दूरगामी सुधार शुरू किए हैं. स्टार्टअप इंडिया कार्य योजना के हिस्से के रूप में 19 कार्य बिन्दुओं की पहचान की गई ताकि पूंजी और प्राद्योगिकी तक पहुंच में सुधार लाया जा सके और स्टार्टअप्स के लिए कारोबार लागत में कमी लायी जा सके.
पूंजी तक आसान पहुंच के लिए सिडबी और वैकल्पिक निवेश कोषों के लिए 10,000 करोड़ रुपये के ‘‘कोषों के कोष’’ की स्थापना की गई ताकि स्टार्टअप्स में निवेश किया जा सके. स्टार्टअप्स को 3 वर्ष के लिए आय कर में छूट दी जाती है और निवेशकों को भी उनके निवेश पर पूंजी लाभ से छूट दी जाती है. इतना ही नहीं सेबी ने भी स्टार्टअप्स के लिए सूचीकरण संबंधी अपने नियमों में छूट प्रदान की है ताकि वे आईपीओ जारी किए बिना ही धन उगाह सकें. एआईएफ विनियमों में भी उपयुक्त संशोधन किए गए हैं ताकि एन्जेल या दिव्य निवेशक ऐसे छोटे स्टार्टअप्स की सहायता कर सकें जो बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों जैसे परम्परागत स्रोतों के ज़रिए पूंजी तक पहुंच कायम नहीं कर सकते.
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने स्टार्टअप्स के लिए वन स्टॉप डिजिटल इन्क्यूबेटर के रूप में ‘‘स्टार्टअप इंडिया वच्र्युअल हब’’ शुरू किया है, जिससे वे उद्योग कार्यक्रमों, सरकारी स्कीमों और स्टार्टअप समुदाय के बीच नेटवर्किंग के अवसरों तक पहुंच कायम कर सकते हैं.
कारोबार लागत कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों में पर्यावरण और श्रम कानूनों के लिए स्व-प्रमाणन पर आधारित अनुपालन व्यवस्था शामिल है ताकि स्टार्टअप्स को सरकारी निरीक्षणों से मुक्ति मिले.19 सरकार द्वारा नियुक्त सुविधा प्रदाता अब पेटेन्ट और ट्रेडमार्क के लिए आवेदन करने में स्टार्टअप्स की सहायता करते हैं. 31 मार्च, 2018 तक पेटेन्ट आवेदन शुल्क में 80 प्रतिशत छूट प्राप्त करने के लिए 768 स्टार्टअप्स को सुविधा पहुंचायी गयी. 858 स्टार्टअप्स को ट्रेडमार्क आवेदन शुल्क में 50 प्रतिशत छूट प्रदान की गई. स्टार्टअप पारिस्थितिकी को आज जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है उनमें से एक यह है कि निवेशकों और उद्यमियों को व्यापार से बाहर जाने की सरल व्यवस्था सुनिश्चित की जाये. कॉर्पोरेट कार्यालय मंत्रालय ने ऋण शोधन और दिवालिया संहिता में संशोधन किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्टार्टअप अपने कारोबार को 90 दिनों के भीतर समेट सकें जबकि अन्य कंपनियों के मामले में यह सीमा 180 दिन है.
स्टार्टअप्स के प्रति इस सरकार के दृष्टिकोण में बुनियादी अंतर यह है कि सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि नए आर्थिक अवसर समूचे देश (दूसरे और तीसरे स्तर के कस्बों सहित) में और समाज के सभी वर्गों (विशेष रूप से महिलाओं, अजा और अजजा समुदायों सहित) के बीच वितरित हों. उदाहरण के लिए, औद्योगिक नीति एवं संवद्र्धन विभाग (डीआईपीपी) ने स्टार्टअप यात्रा कार्यक्रम शुरू किया, जिसके अंतर्गत एक मोबाइल वैन दूसरे/तीसरे दर्जे के कस्बों में भेजी जाती है ताकि उनमें उद्यमशील प्रतिभाओं की पहचान की जा सके और उनका विकास किया जा सके. स्टार्टअप यात्रा कार्यक्रम वर्तमान में मध्य प्रदेश में चलाया जा रहा है. इससे पहले यह गुजरात, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और उत्तराखंड में सफलतापूर्वक चलाया गया ताकि बेंगलूरू, मुम्बई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से परे नए उद्यमिता केन्द्र स्थापित किए जा सकें.
इसी तरह प्रधान मंत्री ने 2016 में लुधियाना में एक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति (अजा/अजजा) केन्द्र का शुभारंभ किया ताकि अजा/अजजा उद्यमियों को व्यावसायिक सहायता प्रदान की जा सके, जिससे वे स्टैंडअप इंडिया कार्यक्रम और सरकारी खरीद नीति 2012 का लाभ उठा सकें, जिसमें यह प्रावधान है कि मंत्रालयों, विभागों और केन्द्रीय सार्वजनिक उद्यमों द्वारा की जानी वाली खरीद में 4 प्रतिशत अजा/अजजा द्वारा संचालित उद्यमों से की जाएगी.
स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने में राज्यों के कार्यनिष्पादन का मूल्यांकन करने के लिए औद्योगिक नीति एवं संवद्र्धन विभाग ने फरवरी 2018 में राज्यों के स्टार्टअप रैंकिंग फ्रेमवर्क के रूप में विस्तृत मानदंड जारी किए. इसका लक्ष्य उद्यमिता को बढ़ावा देने और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करना हैं. सरकार के इन दूरगामी सुधारों का निवल प्रभाव यह रहा कि सरकार द्वारा अभी तक 11,234 से अधिक स्टार्टअप्स का पंजीकरण किया जा चुका है और राज्य अक्टूबर 2014 से अपनी-अपनी स्टार्टअप्स नीतियां बना रहे हैं.
सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं और उन्हें भारत को 2022 तक 50 खरब अमरीकी डालर मूल्य की अर्थव्यवस्था बनाने और हर वर्ष 1.2 करोड़ युवाओं को रोजग़ार प्रदान करने में निर्णायक भूमिका अदा करनी है. इसी प्रकार भारत पहले ही दुनिया का ऐसा तीसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है जिसने अपने यहां स्टार्टअप पारिस्थितिकी प्रणाली विकसित कर ली है और यह विश्व का सबसे युवा स्टार्टअप राष्ट्र है. ये प्रौद्योगिकी आधारित कंपनियां भारत के आर्थिक विकास में अगला अध्याय शुरू करने और देश की सामाजिक चुनौतियों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेंगी. सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यमों और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने में सरकार द्वारा किए गए बेहतर कार्य की परिणति कंपनियों की एक नई पीढ़ी के निर्माण के रूप में होगी, जो अगले दशक में भारत के विकास का नेतृत्व करेंगी.
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