रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Volume-16, 21-27 July, 2018


 
अर्थव्यवस्था और रोज़गार वृद्धि के लिये बुनियादी ढांचे में निवेश

डॉ. एस.पी. शर्मा

किसी देश के मानवीय और आर्थिक विकास के स्तर का उसके बुनियादी ढांचा विकास की उपलब्धियों के स्तरों से निकटवर्ती संबंध होता है. बुनियादी ढांचा शहरी विकास में वृद्धि के साथ-साथ अत्याधुनिक रेल, सडक़, बंदरगाह, हवाई अड्डा, ऊर्जा, संचार, आवास और स्वच्छता सुविधाओं के साथ घरेलू उत्पादन क्षमताओं का महत्वपूर्ण निर्धारक होता है. बुनियादी ढांचा क्षेत्र में वर्धित निवेश से सजीव अर्थव्यवस्था के निर्माण में सहायता मिलती है.
हाल के वर्षों में व्यवसाय करना आसान यानी ईज ऑफ  डूईंग बिजऩेस वातावरण जैसे कि भूमि, पर्यावरण और वन्य स्वीकृतियों से संबंधित मुद्दों में महत्वपूर्ण सुधार के साथ संवर्धित सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी), विशेषकर विद्युत और दूरसंचार परियोजनाओं के क्षेत्र में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश पर नये सिरे से ध्यान दिया गया है. इसके अंतर्गत निजी निवेशों से वित्तपोषण द्वारा बुनियादी  ढांचा निवेश के अंतर को पाटने पर ध्यान दिया गया है. वस्तु एवं सेवा कर, दिवाला और दिवालियापन संहिता जैसे संरचनात्मक सुधारों के अलावा व्यवसाय करना आसान किये जाने से वैश्विक रैकिंग में भारत का स्थान बहुत अच्छा रहा है जिससे विभिन्न ढांचागत परियोजनाओं में वैश्विक निवेशकों से और अधिक निवेश आकर्षित करने का मार्ग प्रशस्त होगा. आने वाले समय में बुनियादी ढांचा निवेश अंतर में महत्वपूर्ण सुधार होने की आशा है. विश्व बैंक की 2017 की संभारतंत्र प्रदर्शन की वैश्विक रैंकिंग के अनुसार भारत ने 2014 में अपने 54वें रैंक से छलांग लगाकर 2017 में 35वां रैंक हासिल किया.
सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में संचालित विभिन्न सुधारों से पता चलता है कि सडक़ों, रेलवे, मेट्रो रेल, नौवहन, नागर विमानन, विद्युत और संभारतंत्र अवसंरचना क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई जिसके आने वाले समय में जबर्दस्त वृद्धि होने की संभावना है. बुनियादी ढांचा क्षेत्र में वर्धित निवेश से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से रोज़गार सृजन में मदद मिलेगी.
सडक़ परिवहन यातायात हिस्सेदारी और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान दोनों ही दृष्टि से प्रमुख भूमिका निभाता है. सडक़ परिवहन वस्तुओं और यात्रियों के आवागमन की सुविधाओं के साथ-साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक समान सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
भारत में 56.17 लाख कि.मी. से अधिक का सबसे बड़ा एक सडक़ नेटवर्क है जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग, एक्सप्रेसवे, राज्य राजमार्ग, प्रमुख जि़ला सडक़ें, अन्य जि़ला सडक़ें और ग्रामीण सडक़ें शामिल हैं. 2001 में कुल सडक़ों की लंबाई 33,73,520 कि.मी. और सडक़ों पर वाहनों की कुल संख्या 55 मिलियन थी. 2016 में, सडक़ों की कुल लंबाई बढक़र 56,17,812 कि.मी. हो गई जबकि मोटर वाहनों की संख्या में चार गुणा वृद्धि होकर यह 229 मिलियन के आंकड़े तक पहुंच गई. आगे कदम बढ़ाते हुए सरकार बस्तियों को प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना (पीएमजीएसवाई) के जरिए ग्रामीण सडक़ों से जोड़ रही है, जो कि एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है. जिला सडक़ें राज्यों में मुख्य सडक़ों और ग्रामीण सडक़ों से महत्वपूर्ण संपर्क का काम करती हैं.
भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों/ एक्सप्रेसवेज की गणना कुल सडक़ लंबाई का 2.06 प्रतिशत की जाती है. पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में बहुत तेज़ी आई है. राजमार्गों का भारतीय राज्यों में व्यापार और प्रति व्यक्ति आय पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. राष्ट्रीय राजमार्गों के उच्चतर घनत्व से सकल राज्य घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के तौर पर अंतर्राज्य व्यापार में वृद्धि होती है.
सरकार ने सक्रिय नीतिगत प्रयासों के साथ पहले से चालू परियोजनाओं के लिये बाज़ार से निवेश हासिल करने के लिये परियोजनाओं के कार्यान्वयन में सहायता के वास्ते अनेक पहलें शुरू की हैं जिनमें स्थानांतरण मॉडल में टोल-ऑपरेटर, टोल राजस्व के प्रतिभूतिकरण, अवसंरचना निवेश ट्रस्ट मार्ग का अनुकूलन, एलआईसी, दीर्घावधि पेंशन कोष आदि सहित दूसरे नवाचार वित्तपोषण विकल्पों के जरिए परियोजनाओं का आधुनिकीकरण शामिल है.
 Improvement in key global rankings
S. No. Parameters 2014 2017
1. Ease of Doing Business Index
142nd 100th (2018)
(Out of 189 countries) (Out of 190 countries)
2. Global Retail Development Index
20th 1st
(Out of 30 countries) (Out of 30 countries)
3. Global Competitiveness Index
71st 40th
(Out of 144 countries) (Out of 137 countries)
4. Logistics Performance Index
 54th 35th (2016)
(Out of 160 countries) (Out of 160 countries)
5. Global Innovation Index
 76th 60th
(Out of 143 countries) (Out of 143 countries)
6. Global Gender Gap Index
114th 108th
(Out of 142 countries) (Out of 144 countries)
7. Legatum Prosperity Index
102nd 100th
(Out of 142 countries) (Out of 149 countries)
Source: PHD Research Bureau, PHD Chamber
सरकार द्वारा शुरू की गई पहलों में से एक भारतमाला परियोजना है जो कि राजमार्ग क्षेत्र के लिये एक व्यापक नया कार्यक्रम है जिसमें प्रभावी हस्तक्षेपों के जरिए महत्वपूर्ण अवसंरचना अंतरों को पाटते हुए देश भर में माल और यात्री ढुलाई की अधिकतम दक्षता पर फोकस किया जाता है. सरकार ने रेलवे के अवसंरचना विकास पर ज़ोर दिया है, जिसमें डेडीकेटेड फ्रेट कोरीडोर्स, उच्च गति की रेल, उच्च क्षमता के रोलिंग स्टॉक, अंतिम छोर तक रेल संपर्क, बंदरगाह संपर्क और निजी तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करना, नई वस्तुओं का वर्गीकरण, स्थान दर स्थान दरों के लिये नये नीतिगत दिशानिर्देश, कंटेनराईजेशन के जरिये फ्रेट बॉस्केट का विस्तार शामिल है.
हाल के वर्षों में परिवहन के अन्य साधनों से कड़ी प्रतिस्पर्धा रही है अत: सरकार ने रेलवे की गति बनाये रखने के लिये बदलाव के विभिन्न उपायों की शुरूआत की है. भारतीय रेलवे ने 2016-17 के दौरान 531.23 मिलियन टन के मुकाबले 2017-18 के दौरान 558.10 मिलियन टन राजस्व भाड़ा जुटाया जो कि इस अवधि के दौरान 5.06 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है.
उपर्युक्त पहलों के अलावा सरकार ने रेलवे की अवसंरचना विकास पर ज़ोर दिया है. ब्रॉडगेज लाइनों को चालू करने और विद्युतीकरण का काम पूरा करने के लिये पिछले तीन वर्षों के दौरान तेज़ी बरती गई है.
पिछले तीन वर्षों के दौरान पूंजीगत निवेश भी बढ़ा है.
इसके अलावा स्टेशनों के नज़दीक व्यावसायिक विकास किया जायेगा और ये शहर का प्रमुख केंद्र बन जायेंगे, इसके अलावा डिजिटल साइनेज, एस्केलेटर्स/ एलिवेटर्स, सेल्फ-टिकटिंग काउंटरों, एग्ज़ीक्यूटिव लॉज, सामान की जांच करने वाली मशीनों, वाकवेज, यात्रियों के लिये ठहरने के क्षेत्र, व्यापक और विशिष्ट रूफिंग तथा फ्लोरिंग, मुफ्त और भुगतान के साथ वाई-फाई आदि उपलब्ध कराते हुए पुन: विकसित स्टेशनों पर यात्रियों की हालत में
सुधार होगा.
रेल मंत्रालय ने आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ स्मार्ट शहरों के तौर पर पहचान किये गये स्मार्ट शहरों में स्टेशन पुनर्विकास परियोजनाओं के लिये एकीकृत योजना हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं. इस योजना के अधीन रेल भूमि विकास प्राधिकरण (आरएलडीए) और एनबीसीसी (इंडिया) लिमिटेड ने मिलकर 10 स्टेशनों के पुनर्विकास का काम हाथ में लिया है.
देश में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास के लिये स्टेशन पुनर्विकास एक सबसे बड़ी गैर किराया राजस्व सृजन परियोजना है और इसे अवसंरचना उप क्षेत्रों की सामंजस्य सूची में शामिल किया गया है. पुन: विकसित किये जाने वाले स्टेशन यात्रियों को विश्वस्तरीय सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करेंगे. स्टेशन पुनर्विकास का काम विभिन्न तरीकों से जैसे कि जोनल रेलवे, भारतीय रेलवे स्टेशन डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमि. (आईआरएसडीसी), स्मार्ट सिटी एपीसीज के साथ संयुक्त उद्यम, रेलवे पीएसयू और राज्य सरकार के साथ सहयोग के जरिए संचालित किया जायेगा.
एक अन्य क्षेत्र जिसमें भारत सरकार काम कर रही है, मेट्रो रेल परियोजनाओं सहित सार्वजनिक परिवहन में सुधार के लिये शहरों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है. दिल्ली, नोएडा, गुरूग्राम, कोलकाता, मुंबई, चेन्नै, बैंगलुरू, हैदराबाद, जयपुर, लखनऊ और कोच्चि शहरों में 425 कि.मी. मेट्रो रेल प्रणालियां प्रचालन में हैं और अन्य 684 कि.मी. विभिन्न शहरों में निर्माणाधीन हैं.
भारत घरेलू टिकट बिक्री की संख्या की दृष्टि से दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा और तेज़ी से विकसित हो रहा घरेलू विमानन बाज़ार है. क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहरों में लोगों के लिये आसान और किफायती उड़ान की पहुंच कायम करने के लिये आरसीएस-उड़ान क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना-‘‘उड़े देश का आम नागरिक (आरसीएस-उड़ान) योजना की शुरूआत अक्तूबर, 2016 में की गई थी.
यह बाज़ार आधारित तंत्र के जरिये क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के लिये दुनिया भर में अपनी तरह की एक विशेष योजना है. आरसीएस-उड़ान के अधीन 27 राज्य/ संघ शासित प्रदेश पहले ही केंद्रीय सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. बहुत सी निजी क्षेत्र की एयरलाइन्स इस योजना के अधीन सक्रिय रूप से शामिल हो रही हैं.
सरकारी बजटीय समर्थन और नीतिगत वातावरण के उदारीकरण से 50 सेवारहित और कम सेवारत हवाई अड्डों/ विमान पट्टियों की बहाली के लिये 4500 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है.
भारतीय जहाजों की वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिये सरकार ने कई उपाय किये हैं जिनमें भारतीय ध्वज जहाजों में प्रयुक्त होने वाले ईंधन पर जीएसटी की दर 18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करना शामिल है. इसके अलावा सरकार ने प्रमुख बंदरगाहों के कार्य निष्पादन में सुधार के लिये अनेक पहलें की हैं. इनमें से एक पहल का नाम सागरमाला परियोजना है. यह भारत की 7500 कि.मी. लंबी तटीय रेखा के जरिए देश में बंदरगाह अधीन विकास को प्रोत्साहन देने के लिये नौवहन मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यक्रम है.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्पैक्ट्रम मैनेजमेंट, भारत नेट प्रोग्राम और भारत को एक डिजिटल अर्थव्यवस्था तथा ज्ञान आधारित समाज में परिवर्तित करने जैसे प्रमुख सुधारों के परिणाम के तौर पर भारतीय दूरसंचार क्षेत्र ने उल्लेखनीय वृद्धि दजऱ् की है. परंतु साथ ही हाल के रूझानों से पता चलता है कि दूरसंचार क्षेत्र बढ़ती हानियों, ऋणों की समस्या, मूल्य संघर्ष, घटते राजस्व और तर्कहीन स्पैक्ट्रम लागतों से दबाव के काल से गुजर रहा है. तमाम बाधाओं के बावजूद सरकार दूरसंचार नेटवर्क को दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचा रही है. भारत से फ्लैगशिप भारत ने परियोजना को कार्यान्वित कर रही है. यह दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी ग्रामीण संपर्क परियोजना है और डिजिटल भारत कार्यक्रम का प्रथम स्तम्भ है.
सरकार नई दूरसंचार नीति तैयार करने की प्रक्रिया में है जिसे विभिन्न पणधारियों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद 2018 में जारी करने का लक्ष्य रखा गया है. प्रमुख विषयों में, जिन्हें नई दूरसंचार नीति में हल करने का प्रयास किया जायेगा, अन्य बातों के साथ-साथ क्षेत्र को प्रभावित करने वाला विनियामक और लाइसेंसिंग दायरा, सब के कनेक्टिविटी, सेवाओं की गुणवत्ता शामिल है. व्यवसाय करना आसान और 5 जी तथा इंटरनेट सहित नई प्रौद्योगिकियों को शामिल करना भी इसमें निर्धारित है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने भी नेट न्यूट्रालिटीपर नई नीति की सिफारिश की है जिसमें डाटा सेवाओं के लिये भेद-भावपूर्ण टैरिफों को प्रतिबंधित किया गया है. नीति के अनुसार सेवा प्रदाताओं को किसी भी व्यक्ति के साथ प्राकृतिक या कानूनी कोई व्यवस्था, समझौता अथवा अनुबंध करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये जिसका विषयवस्तु, प्रेषक अथवा प्राप्तकर्ता, प्रोटोकाल्स अथवा उपयोगकर्ता उपकरण पर आधारित भेदभावपूर्ण व्यवहार का प्रभाव होता है. ये सभी नीतिगत उपाय निवेशकों के लिये व्यापक निवेश अवसर उपलब्ध करायेंगे और आगे जाकर रोजग़ार के अवसरों का विस्तार होगा.
ऊर्जा के मामले में विद्युत क्षेत्र की उत्पादन क्षमता में काफी वृद्धि हुई है और यह वर्ष दर वर्ष बढक़र 2017 में 330860.6 मेगावाट हो गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति बढ़ाने के वास्ते वितरण कंपनियों के कार्यनिष्पादन में सुधार के लिये कार्यक्रमों की शुरूआत की गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में मीटरिंग सहित वितरण अवसंरचना के सुदृढ़ीकरण और विस्तार के लिये वितरण कंपनियों द्वारा पूंजीगत व्यय के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये दिसंबर 2014 में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की गई. देश में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सभी इच्छुक शेष आवासों का विद्युतीकरण सुनिश्चित करने के लिये सितंबर 2017 में एक नई योजना सौभाग्य (प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना) शुरू की गई.
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है. भारत में हाईड्रोकार्बन में बदलाव के लिये शुरू की गई कुछेक महत्वपूर्ण नई पहलों में तलछट बेसिन, शोधन क्षमता का पूर्ण मानचित्रीकरण करना शामिल है. सरकार ने देश में प्राकृतिक गैस ग्रिड की व्यवस्था करने के लिये 15,000 कि.मी. लंबे अतिरिक्त पाइपलाइन नेटवर्क के विकास का काम शुरू किया है.
सरकार ने प्रत्यक्ष अंतरण लाभ (पहल) के जरिए एलपीजी उपभोक्ताओं को सब्सिडी डिलीवरी की सुरक्षित प्रणाली की शुरूआत की है. एक अन्य प्रमुख बात उज्ज्वला योजना की शुरूआत है जिसके तहत 2018-19 तक 1600 प्रति कनेक्शन के समर्थन के साथ बीपीएल परिवारों को 5 करोड़ एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है. योजना का उद्देश्य ज्यादातर ग्रामीण भारत में प्रयोग में लाये जाने वाले अस्वच्छ कुकिंग ईंधनों के स्थान पर स्वच्छ और अधिक कार्यकुशल एलपीजी (तरल पेट्रोलियम गैस) उपलब्ध कराना है.
भारत में लॉजिस्टिक्स सेक्टर बड़ी मात्रा में असंगठित रहा है. लॉजिस्टिक्स सेक्टर में सुधार से निर्यात पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा और यह अनुमान है कि अप्रत्यक्ष लॉजिस्टिक्स लागत में 10 प्रतिशत की कमी से निर्यात में 5-8 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है. वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने से भारतीय लॉजिस्टिक्स मार्किट के बड़े पैमाने पर विकसित होने की आशा है. लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के समेकित विकास और समन्वय के लिये वाणिज्य विभाग में एक नई लॉजिस्टिक्स डिवीजन खोली गई है.
भारत में आज किराया आवास को क्षैतिज और सीधी मोबिलिटी दोनों के लिये एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है क्योंकि यह लोगों को वास्तव में किसी घर की खरीद किये बिना उपयुक्त आवास उपलब्ध कराता है. आय स्पैक्ट्रम के बीच किसी शहर में नये आगंतुकों के लिये किराया आवास एक महत्वपूर्ण साधन है, जब तक कि वे अपना स्वयं का कोई घर नहीं खरीद लेते हैं. ग्रामीण विस्थापितों के लिये वित्तीय स्थिति भूमि और पशुधन को लेकर पहले ही कठिन है. अत: उनके लिये किसी अन्य परिसंपत्ति में निवेश करने की बजाए आश्रय हासिल करना अधिक महत्वपूर्ण है जो कि स्थानीय बाज़ार जोखि़म के विषयाधीन है. यद्यपि भारतीय शहरों में किराये के आवासों का हिस्सा वास्तव में घट रहा है और आज़ादी के बाद से यह 1961 में 54 प्रतिशत की अपेक्षा 2011 में 28 प्रतिशत रह गया.
चूंकि भारत की आवासीय आवश्यकताएं जटिल हैं परंतु नई नीतियों में अधिक से अधिक आवासों का निर्माण करने और घरों के स्वामित्व पर ज़ोर दिया गया है, हमें अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाये जाने की आवश्यकता है जिनमें किराये और रिक्ति दरों की गणना की जानी चाहिये. इसके लिये नीति निर्माताओं को अनुबंध प्रवर्तन, संपत्ति अधिकारों और आवास आपूर्ति बनाम मांग के स्थानिक वितरण पर अधिक ध्यान दिये जाने की जरूरत है.
निष्कर्ष
कुल मिलाकर यह आशा की जा सकती है कि सतत सुधारों के फलस्वरूप बुनियादी ढांचा विकास अपने आप में ही अनेक कुशल, अद्र्धकुशल और अकुशल कार्यबल का व्यापक समावेश कर लेगा. आने वाले समय में ईज ऑफ डुईंग बिजनेस में और सुधार होने की आशा है जो वैश्विक निवेशकों के लिये लाभदायक वापसी के लिये भारत की विकास गाथा पर ध्यान देने के वास्ते और ज़्यादा आकर्षण का केंद्र बिंदु बनेगा. बुनियादी ढांचागत विकास अर्थव्यवस्था को अधिक से अधिक प्रतिस्पर्धात्मक और उत्पादक बनने में सहायक होगा, साथ में एक मज़बूत और स्थाई विकास के पथ पर अग्रसर करेगा.
(लेखक पीएचडी चैम्बर ऑफ  कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, नई दिल्ली से संबद्ध मुख्य अर्थशास्त्री हैं) ई-मेल: spsharma@phdcci.in व्यक्त विचार उनके अपने हैं.