रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Volume-15, 14-20 July, 2018

 

रोज़गार सृजन में वृद्धि

के. आर. सुधामन

सरकार ने पिछले चार वर्षों में अनेक कदम उठाये हैं जिनसे रोजग़ार सृजन के क्षेत्र में बहुत ज़रूरी सुधार होगा. मुद्रा योजना से स्व-रोजग़ार के जरिए कई करोड़ युवाओं को रोजग़ार सुनिश्चित हुआ है. 2015 में योजना की शुरूआत से लेकर सरकार पहले ही 12 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को ऋण वितरित कर चुकी है. मुद्रा योजना के अधीन बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी स्व-रोजग़ार अपनाया है. ग्रामीण भारत के युवाओं ने न केवल अपने लिये रोजग़ार शुरू किया है बल्कि वे अपने स्टार्ट-अप्स में, बुनियादी तौर पर मुद्रा योजना का लाभ लेकर स्थापित सूक्ष्म उद्योगों में, वे कई अन्यों के लिये नियोक्ता भी बन गये. मुद्रा योजना मुख्यत: फल या सब्जी विक्रेताओं, छोटी-मोटी मरम्मत की दुकानों और खाने-पीने की वस्तुओं का व्यवसाय चलाने वाले जैसे स्व-रोजग़ारी व्यक्तियों की मदद के लिये है.

देश में बेहतर अवसंरचना के जरिए कनेक्टिविटी में सुधार होने से अधिक औद्योगिक कोरिडोर्स की स्थापना सुनिश्चित हुई है जिससे तमिलनाडु में तिरूप्पुर, उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद, पंजाब में लुधियाना, गुजरात में सूरत और पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद जैसे और अधिक औद्योगिक कलस्टरों का सृजन होगा. शहरी क्षेत्रों में कम लागत के आवासों पर ज़ोर, गऱीबों के लिये ग्रामीण आवास योजनाओं से निर्माण गतिविधियों में तेज़ी आई है जिससे रोजग़ार के अधिक अवसरों का सृजन हुआ है.

राजमार्गों का लक्ष्य से अधिक निर्माण, ग्रामीण सडक़ों के विकास में गति, अगले पांच वर्षों में रेलवे में पूंजीगत व्यय पर 8.5 लाख करोड़ खर्च करने, मेट्रो रेल परियोजनाओं आदि से रोजग़ार में इज़ाफा होगा. खाद्य प्रसंस्करण में शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दिये जाने से भी ग्रामीण भारत में रोजग़ार के अधिक अवसर उत्पन्न होंगे. इससे किसानों को बेहतर मूल्य सुनिश्चित किये जाने के साथ-साथ ग्रामीण जनसंख्या के लिये उनके अपने क्षेत्रों में वैकल्पिक व्यवसाय का सृजन होगा.

ऐसे क्षेत्रों में फूड पार्कों की स्थापना से, जहां पर कृषि उत्पाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं, ग्रामीण रोजग़ार सुनिश्चित होगा और किसानों को बेहतर आय प्राप्त होगी.

मुंबई-दिल्ली, लुधियाना-कोलकाता, वैज़ाग-चेन्नै, चेन्नै-बंगलुरू और बंगुलरू-मुंबई औद्योगिक कोरीडोर्स के लिये कार्य पूरे ज़ोरों पर है. आने वाले वर्षों में सरकार का एक तरफ वैज़ाग-चेन्नै कोरीडोर का कोलकाता तक और दूसरी तरफ  तूतीकोरिन तक विस्तार करने सहित कुछ और औद्योगिक कोरीडोर्स की स्थापना का प्रस्ताव है. इन सबसे और अधिक लघु औद्योगिक कलस्टर्स के लिये माहौल बनेगा.

सरकार के स्वच्छ ऊर्जा, रूफ-टॉप पावर जनरेशन सहित विशेषकर सौर ऊर्जा, पर ज़ोर दिये जाने से कुशल और अद्र्ध-कुशल कामगारों के लिये रोजग़ार के व्यापक अवसर सुनिश्चित होंगे. यह तमिलनाडु, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक जैसे प्रदेशों में पहले से ही दृष्टिगोचर हो रहा है जहां पवन और सौर ऊर्जा का व्यापक विकास हुआ है.

रोजग़ार सृजन के लिये सरकार का कार्यनिष्पादन निश्चित तौर पर निरुत्साहित करने वाला नहीं है जैसा कि कुछेक पक्षों का ऐसा कहना है. यहां तक कि संशयवादी भी इस तथ्य से इंकार नहीं करते कि आर्थिक स्थिति के अनुरूप पिछले चार वर्षों के दौरान रोजग़ारों का सृजन हुआ है.

यह सही है कि औपचारिक और संगठित क्षेत्र में रोजग़ार सृजन कम रहा है क्योंकि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण वर्षों तक छाई रही वैश्विक मंदी के पश्चात कार्पोरेट निवेश में अभी तेज़ी आनी है. परंतु भारत में 80 से 85 प्रतिशत रोजग़ार अनौपचारिक क्षेत्र में हैं जिसके सही मूल्यांकन के लिये पर्याप्त सांख्यिकी उपलब्ध नहीं है. इन औपचारिक क्षेत्रों में पिछले चार वर्षों के दौरान पर्याप्त संख्या में रोजग़ार सृजन हुआ है, जिनमें स्व-रोजग़ार शामिल है. देश में रोजग़ार के प्रमुख संचालक सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योग हैं और उन्होंने भी विमुद्रीकरण से होने वाले गिरावट के प्रभाव से उभरना शुरू कर दिया है. एमएसएमई क्षेत्र की विनिर्माण में 40 प्रतिशत और भारत के निर्यात में 45 प्रतिशत की गणना की जाती है और हाल के महीनों में इसकी वृद्धि दोहरे अंकों में दर्ज की गई है.

हाल ही में संगठित क्षेत्र में रोजग़ार सृज

न में तेज़ी आई है और साथ ही औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि की भी तीव्र शुरूआत हुई है तथा अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. नवीनतम मासिक सेवा क्षेत्र सर्वेक्षण दर्शाता है कि भारतीय सेवा क्षेत्र सक्रियता से नये कार्यों के व्यापक अंतर्वाह के चलते मार्च में पुन: अपनी वृद्धि दर की पटरी पर लौट आया है. भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत योगदान है. सेवा क्षेत्र में नये कार्यों के व्यापक अंतर्वाह का सक्रिय योगदान रहता है. निक्केई इंडिया सर्विसिज बिजनेस के मौसमी समायोजन सूचकांक फरवरी में 47.8 के आंकड़े से सुधरकर 50.3 हो गया जो कि माह के दौरान व्यावसायिक सक्रियता के स्थिरीकरण को इंगित करता है. 50 बिंदु से नीचे के सूचकांक से आशय होता है कि इसमें कमी आई है जबकि 50 से ऊपर इस बात को इंगित करता है कि इसमें विस्तार हुआ है. विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में दोनों में वृद्धि से संचालित निक्केई इंडिया संयुक्त पीएमआई आउटपुट सूचकांक भी मौसमी समायोजन के साथ मार्च में 49.7 से बढक़र 50.8 हो गया. विनिर्माण क्षेत्र में आउटपुट वृद्धि पुन: सेवा क्षेत्र से आगे निकल गई जैसा कि पिछले अक्तूबर-नवंबर में हुआ था. सेवा प्रदाताओं ने भी अपने स्टाफिंग स्तरों में वृद्धि करके 2011 से लेकर तेज़ी से क्षमता का विस्तार किया जिससे मांग स्थितियों में सुधार दिखाई दे रहा है.

विमुद्रीकरण और जीएसटी लागू किये जाने के बाद अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण के लिये सरकार द्वारा संचालित प्रयासों के प्रत्युत्तर में अधिक से अधिक लोगों का रोजग़ार के प्रति झुकाव हो रहा है जैसा कि नवीनतम पीएमआई डाटा से संकेत मिलता है. सही अर्थों में रोजग़ार सृजन में तीव्रता आई है.

सरकार के मेक इन इंडियाजैसे कार्यक्रमों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान रिकॉर्ड 60 अरब अमरीकी डॉलर से अधिक के वार्षिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकृष्ट करने में सहायता की है, जो इस बात का संकेत है कि भारत निवेश के लिये एक अच्छा स्थान है और वैश्विक निवेशक देश में परियोजनाओं की स्थापना के लिये पंक्तिबद्ध खड़े हैं.

नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण और परिवर्तनकारी अप्रत्यक्ष कर सुधार वस्तु एवं सेवा कर की शुरूआत ने औपचारिक क्षेत्र पर अस्थाई प्रभाव डाला परंतु इसने अर्थव्यवस्था और कर प्रणाली को स्वच्छ बनाने में सहायता की है. इससे अधिक राजस्व संग्रह होगा जिससे अधिक सार्वजनिक व्यय, विशेषकर अवसंरचना में, अधिक रोजग़ार सृजन तथा उपभोक्ता मांग बढ़ेगी.

पूववर्ती सरकारों का, मोदी सरकार सहित, अपनी अर्थव्यवस्था के सबंध में दर्शन गांधी जी के विचारों के मूल में निहित रहा है कि रोजग़ार उपलब्ध कराने में, विशेषकर ग्रामीण भारत में रोजग़ार उपलब्ध कराने में कुटीर उद्योगों की प्रमुख भूमिका है. लघु उद्योगों, विशेषकर कुटीर और सूक्ष्म उद्योगों को बढ़ावा देने पर ज़ोर जनसंख्या के व्यापक हिस्से की आजीविका की चिंताओं को दूर करने के वास्ते महत्वपूर्ण है. देश में इस समय गैर पंजीकृत सूक्ष्म उद्योगों सहित कऱीब 5-6 करोड़ सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योग हैं जिनमें अनेक लोग काम करते हैं.

इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि भारत को बड़े और भारी उद्योगों की ज़रूरत नहीं है. उदाहरणार्थ उनकी विद्युत क्षेत्र, मशीनी औज़ारों के विनिर्माण, वाहनों, इस्पात निर्माण, रक्षा विनिर्माण, ऑटोमोबाइल और इसी प्रकार के अन्य क्षेत्रों में बहुत ज़रूरत है. परंतु लघु उद्योगों की रोजग़ार सृजन के लिये आवश्यकता है, क्योंकि पूंजी सघन भारी उद्योग ऑटोमेशन और उच्च प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे है जो कि रोजग़ार के संचालक नहीं हो

सकते हैं, और यह केवल श्रम सघन निर्माण, अवसंरचना विकास, जैसे कि सडक़ों और रेलवे, संभारतंत्र व्यवसायों, वस्त्र, हथकरघा के अलावा लघु और कुटीर उद्योगों में हो सकता है. एक कार का उत्पादन, सेवा क्षेत्र में तीन रोजग़ार जैसे कि मैकेनिक, ड्राइवर, क्लीनर आदि सृजित करता है. इसी तरह एक ट्रक या एक टै्रक्टर का उत्पादन, 7 रोजग़ारों का सृजन करता है. अत: सेवा क्षेत्र विशेषकर ग्रामीण भारत में एक ऐसी कुंजी है जहां पर कृषि के अलावा रोजग़ारों की भारी कमी है. इससे शहरों की तरफ  होने वाला बड़े पैमाने पर विस्थापन भी रुकेगा.

भारत निश्चित तौर पर इस दिशा में बढ़ रहा है और जहां तक रोजग़ार सृजन की बात है, कठिन वैश्विक आर्थिक स्थिति के बावजूद मोदी सरकार का कार्यनिष्पादन निश्चित तोर पर तारीफ़  के लायक है.

लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने प्रेस ट्रस्ट ऑफ  इंडिया में संपादक और फाइनेंशियल क्रॉनिकल में आर्थिक संपादक के तौर पर कार्य किया है. ई मेल: sudhaman23@gmail. com इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.