रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Volume-41, 6-12 January, 2018

 
कौशल विकास और उच्च शिक्षा का एकीकरण

भारत आज एक ऐसे चौराहे पर है, जहां अगर वह अपनी युवा जनसांख्यिकी का लाभ उठा पाता है, तो वह अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में लाभ की स्थिति में होगा. भारत एक बड़ा कार्मिक प्रदाता बन सकता है, जो स्वयं की जरूरतें पूरी करते हुए वैश्विक आवश्यकताएं भी पूरी कर सकता है. अतीत में शिक्षा और कौशल (व्यावसायिक शिक्षा) को समानांतर और स्वतंत्र धाराएं समझा जाता था.
विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि हमारे स्नातक शिक्षा के बाद उद्योग द्वारा नियोजन योग्य नहीं समझे गए. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यूएनडीपी की भारत कौशल रिपोर्ट-2017 से पता चलता है कि 2014-16 की अवधि में किसी भी विषय में उच्च शिक्षा 60 प्रतिशत से अधिक रोज़गार मुहैया नहीं करा पाई. यह भी पता चलता है कि पॉलिटेक्निक की रोज़गार सक्षमता में महत्वपूर्ण इजाफा हुआ और यह 2014 में जहां 10 प्रतिशत थी, वह 2016 में बढ़ कर 26 प्रतिशत हो गई. इसी अवधि के दौरान औपचारिक शिक्षा की रोजगार सक्षमता में पर्याप्त कमी आई.
रोजगार सक्षमता के इस अभाव को अक्सर कौशल अंतरालकहा जाता है, जो शैक्षिक प्रणाली के ज्ञान और उद्योग की जरूरत के बीच बना रहता है.
यह संभवत: उच्च शिक्षा के प्रति बाउंडरी वॉल दृष्टिकोण (केवल गैर-अनुप्रयोग आधारित शैक्षिक पाठ्यक्रम पर संकेंद्रण) है, जिसकी परिणति एफए उत्पाद, स्नातकों के रूप में होती है, जो वांछित से कम रोज़गार सक्षम बन पाते हैं. राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) में ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जिसमें शिक्षा और कौशल को समानांतर समझने की प्रवृत्ति को दूर किया जा सके. एनएसक्यूएफ प्रत्येक योग्यता आधारित व्यावसायिक कौशल के लिए स्तर और अंक निर्धारित करता है. यह एक उपयोगिता आधारित फ्रेमवर्क स्थापित करता है, जिससे औपचारिक और व्यावसायिक शिक्षा के बीच एक सेतु कायम होता है.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा और औपचारिक शिक्षा को एकीकृत करने के लिए तीन अलग-अलग कार्यक्रम शुरू किए हैं. ये हैं, - कम्युनिटी कॉलेज (सीसी), बैचलर्स इन वोकेशनल एजुकेशन (बी.वोक) और डीडीयू-कौशल केंद्र (डीडीयूकेके). कौशल विकास औेर उद्यमिता मंत्रालय ने एनएसडीसी और क्षेत्रगत कौशल परिषदों (एसएससीज़) के जरिए इस एकीकरण को व्यापक आधार प्रदान करने का प्रयास शुरू किया है, जिसमें ऊपर वर्णित कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सहायता करने की योजना है. इसमें पाठ्यक्रम अनुकूलन और मूल्यांकन एवं प्रमाणन में सहायता के साथ ही 449 कॉलेजों/विश्वविद्यालयों को भागीदार बनाया गया है. इन कार्यक्रमों में ब्रिज व्यावसायिक पाठ्यक्रम (जिन्हें क्रेडिट कहा गया है) परिकल्पित किए गए हैं, जो उद्योग और शैक्षिक जगत के बीच अंतर पाटने में मददगार हैं. इस तरह स्नातकों को बेहतर रोज़गार सक्षम बनने में मदद की जा रही है.
व्यावसायिक और औपचारिक शिक्षा प्रणाली के पूर्ण एकीकरण की दिशा में उपरोक्त सभी उपाय हालांकि प्रारंभिक कदम हैं, लेकिन इस दिशा में एक लंबे रास्ते की ओर इंगित करते हैं, क्योंकि उच्च शिक्षा की चुनौतियां केवल नियामक फ्रेमवर्क तक सीमित नहीं हैं. प्रमुख चुनौती यह है कि व्यावसायिक शिक्षा को आज भी औपचारिक शिक्षा की तुलना में घटिया समझा जाता है और नतीजतन व्यावसायिक शिक्षा की बजाए विद्यार्थी मजबूरन औपचारिक शिक्षा की ओर अधिक आकर्षित होते हैं. यह धारणा धीरे-धीरे परंतु लगातार बदल रही है, क्योंंकि लोग अब यह समझने लगे हैं कि कौशल शारीरिक श्रम के समकक्ष नहीं है और उसकी परिणति अक्सर बेहतर रोज़गार सक्षमता और अनुभव के साथ तरक्की की संभावनाओं में होती है, क्योंकि इससे उम्मीदवारों को अधिक बाजार सापेक्षिक कौशल अर्जित करने में मदद मिलती है.
(लेखक राजेश अग्रवाल (जेएस) एमएसडीई, प्रांशु गुप्ता (कंसल्टेंट), गौरव जैन (कंसल्टेंट).