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विशेष लेख


Volume-13

योग-छात्रों की व्याकुलता दूर करने का मार्ग

सतिन्दर कुमार योगाचार्य

योग भारतीय परंपरा का अभिन्न हिस्सा है. योग स्नेह का खज़ाना है, जिसने मानवीय दौड़ के भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान को अनेक प्रकार से लाभान्वित किया है. योग न केवल शारीरिक और मानसिक कुशलक्षेम के लिये फायदेमंद है बल्कि यह बहुत सी ऐसी स्थितियों के लिये रामबाण है, जिन्होंने इन दिनों बड़े पैमाने पर जनता की नाक में दम कर रखा है. तनाव, थायराइड और मधुमेह से लेकर वजन में कमी, अवसाद और सोशल मीडिया अनुराग तक योग इन सब जीवनचर्या से जुड़ी बीमारियों के लिये एकल स्रोत इलाज है.
बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों की घोषणा होने पर हम यह जान सकते हैं कि कक्षा 10 और 12वीं के छात्र कितने तनाव और व्याकुलता से ग्रसित होते हैं. चिंता का स्तर बढऩे से यह देखने में आता है कि छात्र पूरी तरह घबरा जाते हैं, जो उनके सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है. परंतु इन सब परेशानियों का सबसे सस्ता उपाय हमारे जीवन का भारतीय मार्ग है. इस व्याकुलता और तनाव का उत्कृष्ट समाधान योग में निहित है.
योग शब्द की व्युत्पत्ति मूल शब्द युज से हुई है, जिसका अर्थ है ‘‘जोडऩा‘‘, ‘‘शामिल होना‘‘, ‘‘एक होना‘‘, अथवा ‘‘संलग्न होना‘‘. योग एक कुंजी है, जो किसी के किसी अन्य के साथ यथार्थ में जुडऩे में सहायता करता है. योग का दर्शन महर्षि पतंजलि के दूसरे सूत्र में सुरूचिपूर्ण ढंग से निम्नानुसार अभिव्यक्त किया गया है:-
योग:चित्त-वृत्तिनिरोध
योग सूत्र 1.2
Yogasitta-vrtti-nirodha
Yoga sutras१.२
यह परिभाषा तीन संस्कृत शब्दों के अर्थ को परिभाषित करती है. ‘‘योग मन (चित्त) के सुधार (वित्ति) का नियंत्रण (निरोधा) है.
इसके अलावा योग के विषय को व्यापक करते हुए महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की अवधारणा प्रदान की. संस्कृत में ‘‘अष्टा‘‘ का अर्थ आठ और ‘‘अंग‘‘ का अर्थ अंगों से है, जो कि आठ अंग मार्गों से संबंधित है.
योग के आठ अंग, जैसा कि महर्षि पतंजलि के दर्शन में परिभाषित किया गया है:
1. यम: इसमें नीचे किये गये उल्लेख के अनुसार पांच तत्वों पर ज़ोर दिया गया है:
अहिंसा: , सत्य:, असत्य, ब्रह्मचर्य: वैवाहिक संबंधों में शुद्धिता के दृष्टिगत अथवा यौन संयम, अपरिग्रह: ग़ैर स्वामिगत
2. नियम: इसमें सदाचारी आदतें, व्यवहार और रीति-रिवाज सम्मिलित होते हैं:
स्वच्छ: मन, वाणी और शरीर की स्वच्छता, शुद्धता
संतोष: अन्यों की स्वीकृति, संतोष, किसी की स्थितियों की स्वीकार्यता, जैसा कि वे बीत चुकी हैं अथवा उनमें परिवर्तन हो चुका है, स्वयं के लिये आशावान होना
तपस: दृढ़ता, हठधर्मिता और तपस्या.
स्वाध्याय: वेदों का अध्ययन, स्वयं का अध्ययन, आत्म प्रतिबिंब, स्वयं के विचारों का आत्मनिरीक्षण, व्याख्यान और क्रियाएं
ईश्वरप्राणीधन: ईश्वर का चिंतन (भगवान/सर्वोच्च होना, ब्राह्मण, सत्य स्वयं, ऊचांगिंग वास्तविकता)
3. आसन : आसन वह मुद्रा है जिसे कोई एक समयावधि के लिये धारण कर सकता है, आराम, स्थिर, आरामदायक और अचल
4. प्राणायाम : प्राणायाम संस्कृत के दो शब्दों प्राण, श्वास और आयाम (निरोधक, विस्तारण, खींच) से बना है. नियंत्रित और विनियमित श्वास क्रिया जो कि स्वस्थ शरीर और शांतिपूर्ण मन के लिये शरीर में प्राण के प्रवाह को विनियमित करता है.
5. धारण : धारण का अर्थ होता है ध्यान, मन को एकाग्रचित करना और एक बिंदु पर रोककर रखना. यह धृ शब्द का मूल है जिसका अर्थ होता है धारण, बनाये रखना, किसी चुनी हुई वस्तु या विचार पर मन को केंद्रित करना.
6. ध्यान : ध्यान उस वस्तु की कल्पना करना, उस पर मन को केंद्रित करना होता है जिस पर धारण में फ़ोकस किया गया है. ध्यान विचार का निर्बाध संचालन, जागरूकता का प्रवाह है.
7. समाधि : समाधि वह आध्यात्मिक स्थिति है जब कोई अपने को अध्यात्म की दुनिया में खो देता है. समाधि ध्यान की अवस्था में एकाग्रता है.
ऊपर वर्णित योग के सिद्धांत कोई नये नहीं हैं परंतु हमारे रोज़मर्रा के जीवन में हम इनके महत्व को पहचानने में असफल हो जाते हैं और जीवनचर्या से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. ऐसी स्थितियों से सबसे अधिक छात्र ग्रसित होते हैं जो कि कड़ी मेहनत करने के बाद भी तनाव से पीडि़त हो जाते हैं. अत: हमें उन्हें आरंभ में उनकी जीवनचर्या को योग के सिद्धांतों से जोडऩा है जो उन्हें अवसाद और चिंता से बचाने में सहायता करता है.
चिंता मन की भावुकता की गड़बड़ी है जहां बड़े नुकसान के डर के साथ ख़तरा उत्पन्न हो जाता है. छात्रों को नहीं मालूम होता कि उन्हें क्या आशा होती है और डर में स्थिति खराब हो जाती है. वे मन में उद्वेग से ग्रसित हो जाते हैं जो कि शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों जैसे कि चिड़चिड़ापन, अवसाद, डर, पसीने आना, घबराहट, सांस न आना, छाती में दर्द, सिर दर्द, सुस्ती, ध्यान न लगना आदि के तौर पर उभर कर आता है.
ये लक्षण लंबी अथवा छोटी समयावधि के लिये प्रदर्शित हो सकते हैं.
चिंता में पडऩे और अवसाद से ग्रसित होने की इस प्रवृत्ति से योग थेरेपी के जरिए आसानी से उभरा जा सकता है. योगिक क्रियाओं, सूक्ष्म व्यायामों, योगासनों और प्राणायाम केे नियमित अभ्यास से हम एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकते हैं. छात्रों के लिये लाभदायक कुछेक योगिक क्रियाओं और व्यायामों का नीचे उल्लेख किया गया है:
1. जलनेति  
1.पानी को खारा बनाएं: 1 लीटर गुनगुने पानी में एक चम्मच नमक मिलाएं और इसके घुलने तक इसे मिक्स करें. इसे एक जलनेति बर्तन में डालें अपने पांवों के बीच कुछ दूरी के साथ खड़े हो जायें.
2. अपनी रीढ़ को 60 डिग्री कोण में झुकाएं और नाक को दायें अथवा बाएं नाक की हवा के प्रवाह के अनुरूप रखें.
3. अब जलनेति बर्तन में अपने प्रमुख नथुने को रखें और अपने मुंह को खुला रखें ताकि पानी आसानी से गैर प्रमुख नथुने से निकल सके. अब इस प्रक्रिया को विपरीत दिशा में दोहराएं. जलनेति समाप्त करने के उपरांत अपने नथुने को सूखा करना अनिवार्य है क्योंकि इससे जुकाम होने की संभावनाएं रहती हैं. नथुने को सूखा करने के लिये उसी मुद्रा में खड़े हो जायें जैसे कि जलनेति करते हुए थे. अब अपने नाक से बल पूर्वक हवा निकालें (मुंह को बंद रखें) जैसा कि कपाल भाति में किया जाता है और साथ-साथ अपने सिर को 10 से 15 बार ऊपर, नीचे, दाईं तरफ, बाईं तरफ  मोड़ें.
जलनेति के लाभ: जलनेति मस्तिष्क से संबंधित सभी प्रकार के विकारों के लिये लाभदायक है. यह इन्सोमनिया, सिरदर्द, माइग्रेन, बाल गिरने आदि जैसे स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को हल करती है. जलनेति यादाश्त बढ़ाने और शक्ति प्राप्त करने में भी सहायक होती है. जलनेति नाक से संबंधित समस्याओं का निराकरण भी करती है जैसे कि नाक बंद रहना, जुकाम और अलर्जी आदि की समस्या. यह आंखों से जुड़ी समस्याओं में भी राहत प्रदान करती है, जैसे कि आंखों की लाली, आंखों में सूखापन, कम्प्यूटर स्क्रीन और मोबाइल स्क्रीन पर लंबे समय तक काम करते रहने से आंखों पर पडऩे वाला दबाव आदि.
2. त्राटक
त्राटक क्रिया को किसी बिंदु अथवा जलती हुई मोमबत्ती की लो पर बिना झपकी के अपना ध्यान केंद्रित करके रखने के तौर पर परिभाषित किया जाता है. त्राटक साधना तीन प्रकार की होती हैं:
(क) बाह्य त्राटक साधना : बाह्य त्राटक साधना को किसी भी समय दिन अथवा रात में अपनी आंखों और ध्यान को किसी भी वस्तुत: जैसे कि सूर्य, चंद्रमा, तारों पर केंद्रित करके संचालित किया जा सकता है. कमज़ोर नेत्रदृष्टि वाले लोगों को इसे नहीं करना चाहिये.
(ख) आंतरिक त्राटक साधना : आंतरिक त्राटक साधना अपनी आंखों को बंद करना और अपने माथे के बीच में ध्यान केंद्रित करना होता है, जहां पर भगवान शिव का तीसरा नेत्र स्थित होता है. शुरूआत में आप सिर में कुछ दर्द अथवा गर्मी महसूस कर सकते हैं परंतु इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह धीरे धीरे अपने आप ही सामान्य हो जाता है. इस बिंदु पर अपना पूरा ध्यान लगाने की कोशिश करें.
(ग) मध्य त्राटक साधना : मध्य त्राटक साधना में अपनी आंखों और ध्यान को या तो किसी मोमबत्ती/लैम्प की लो पर (जिसे काली सीसम के तेल से जलाया जाता है) अथवा क्रिस्टल शिवलिंग पर केंद्रित करें. यदि आपको आंखों में ज्वलनशीलता का आभास होता है, अपनी आंखों को कुछ समय के लिये बंद कर लें और फिर इस क्रिया को पुन: दोहराएं. इस क्रिया के लिये, लैंप या शिवलिंग को आंखों के स्तर से 20 इंच की दूरी पर रखें ताकि आपकी गर्दन पर कोई दबाव परेशानी न हो.
सुखासन की मुद्रा में अथवा किसी अन्य ध्यान की मुद्रा में शरीर को हिलाये बिना बैठ जायें और धीरे धीरे लंबी एवं गहरी सांसें लें. इसे 21 दिनों के लिये हर रोज 15 मिनट के लिये करना होगा.
त्राटक साधना के लिये:
1.कम्बल पर सुखासन अथवा ध्यान की किसी अन्य मुद्रा में बैठें और पीठ, गर्दन और रीढ़ को सीधा रखें.
2.यदि आप की आंखें झपक रही हैं तो इन्हें तब तक बंद रखें जब तक आप पूर्ण आराम की मुद्रा में और तनाव से मुक्त न हो जायें.
3.समर्पण, धैर्य और ध्यान के साथ त्राटक करें.
4.सदैव बंद कमरे, मिक्स्ड स्थान में अभ्यास करें तथा खुद समय निर्धारित करें.
5.त्राटक अभ्यास के तीन तरीकों में से कोई एक का चुनाव करें जो आपके लिये आरामदायक हो.
6. अभ्यास करते समय अपने शरीर को न हिलाएं. प्रतिमा की तरह बैठ जायें.
त्राटक क्रिया के लाभ:
त्राटक क्रिया आज के युवाओं के लाभ के लिये सर्वाधिक अनुशंसित क्रिया है. त्राटक क्रिया न केवल स्मरण शक्ति को बढ़ाती है बल्कि सोशल मीडिया पर लगातार जमे रहने से होने वाले दुष्प्रभावों से भी बचाती है. त्राटक क्रिया ध्यान में सुधार करने में मदद करती है और साथ ही अभ्यास करने वाले की श्वास पद्धति में सुधार करती है. यह हमारे विचारों और मन के शुद्धिकरण में भी मदद करती है.
योगिक सूक्ष्म व्यायाम
1. बुद्धि तथा धरती-शक्ति-विकासक मुद्रा : अपने पांव जोडक़र सीधे खड़े हो जायें, शरीर को सीधा करें और मुंह बंद कर लें, अपने सिर को जितना हो सके पीछे ले जायें और आखों को अच्छी तरह खोलकर रखें.
सूक्ष्मव्यायाम: अपने सिर के शिखर पर ध्यान लगाएं, तेजी से नाक से सांस लें और छोड़ें. शुरूआत में 25 बार सही रहेगा.
लाभ: यह सूक्ष्मव्यायाम मस्तिष्क के विकास में लाभदायक माना गया है. यह व्यायाम सिम्पेथेटिक और पैरासिम्पेथेटिक नाड़ी तंत्र को जोडऩे में मदद करता है.
2. स्मरण शक्ति विकासक मुद्रा : मुद्रा-खड़े होने की मुद्रा में, पांवों को एक साथ जोडक़र रखें, शरीर को खड़ा और मुंह को सामान्य स्थित में रखें तथा आंखों को अंगूठे के सामने 5 फुट की दूरी पर अवश्य फ़ोकस करके रखें.
सूक्ष्मव्यायाम: ब्राहमारानदरा पर ध्यान लगायें, जो कि एंटीरियर फोंटानेल के एकदम नीचे के क्षेत्र का योगिक नाम है और नाक के जरिये सांस लें और छोड़ें. शुरूआत में 25 बार. यह मानसिक थकान के मामलों में विशेष फायदेमंद है. स्मरण शक्ति में काफी सुधार होता है. यह व्यायाम उन सबके लिये लाभदायक है जिनके कामकाज से मानसिक थकान और नाड़ी तंत्र को अधिक परिश्रम करना पड़ता है.
लाभ:  यह सूक्ष्मव्यायाम अभ्यास करने वालों में ताजग़ी भरता है और इस प्रकार बिना थकान के घण्टों काम किया जा सकता है. यह विशेषकर स्कॉलर्स, कलाकारों, वकीलों और अधिकारियों के लिये फायदेमंद है.
3. मेधा शक्ति-विकासक मुद्रा: अपने पांव जोडक़र सीधे खड़े हो जायें, आंखें बंद कर लें, पीठ सीधी रखें. आपकी ठोड़ी स्टर्नल नोच पर आराम की मुद्रा में नीचे की तरफ और कॉलर बोन के केंद्र में होनी चाहिये.
सूक्ष्मासन : योगिक विज्ञान के अनुसार बौद्धिक क्षमता का केंद्र गर्दन के पीछे की तरफ छिपा होता है. अपनी पूरी ताकत के साथ इस पर ध्यान लगायें. इसके बाद सांस लेने और छोडऩे का अभ्यास करें जो कि शुरूआत में 25 बार के लिये हो सकता है.
लाभ: यह अभ्यास करने वाले की स्मरण शक्ति और उत्कृष्टता को बढ़ाता है. इस सूक्ष्मव्यायाम के नियमित अभ्यास से वात, पित्त और कफ दोष का निवारण होता है.
योगासन
1 ताड़ासन:-
*दोनों पैरों को मिलाकर खड़े हो जायें.
*हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें
*अब सांस भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और पैरों के पंजों पर शरीर का भार लाते हुए एडिय़ां भी उठा लें. सांस सामान्य रखते हुए पूरे शरीर को ऊपर की ओर जितना खींच सकते हैं, खींच कर रखें.
*इस पोजिशन में जब तक मुमकिन हो, रूकने के बाद सांस छोड़ते हुए हाथों को साइड से नीचे की ओर ले जायें.
*अपनी सुविधा के अनुसार रूक-रूक कर कई दौर करें
*त्रिकोणासन
*खड़े होकर दोनों पैरों को ज्यादा से ज्यादा फैलाएं. दोनों हाथों को कंधों के समानांतर सीधे उठा लें.
*अपने दायें पांव को पूरी तरह बाहर की तरफ  मोड़ें और बायें पैर को 45 डिग्री अंदर की तरफ, एडिय़ों को सीधे रखें.
*लंबी गहरी सांस भरें और सांस निकालते हुए कमर को बाईं तरफ  घुमाएं और आगे की ओर झुककर उल्टे हाथ से सीधे पैर के पंजे को छूने की कोशिश करें.
*पंजा आसानी से छू पाएं तो हथेली को पैर के पंजे के बाहर की तरफ  जमीन पर टिका दें.
*गर्दन को ऊपर की तरफ  घुमाकर ऊपर वाले हाथ की ओर देखें.
*सांस की गति सामान्य रखते हुए इस आसन में जब तक संभव हो, रूके रहें.
*फिर संभलते हुए धीरे से वापस आ जाएं. मुद्रा को बनाये रखें और 5 से 10 बार सांस लेकर साइड बदलें.
*इसी तरह दूसरी तरफ  से करें.
3 कटि चक्रासन:
*पांव के बल सीधे खड़े हो जायें और कंधों को चौड़ा कर लें.
*अपनी रीढ़ और कंधों को सीधा रखें
*अपने हाथों को सीने की तरफ  खींचे, ये एक दूसरे के सामने हों.
*आपके हाथ कंधों की पंक्ति में और फ्लोर के समानांतर होने चाहियें.
*पहले अंदर सांस लें और बाहर सांस छोड़ते हुए कमर से दाईं तरफ  घूमें तथा दाईं तरफ  पीछे देखें.
*अपना सांस बाहर छोड़ें और इस मुद्रा में यथासंभव बने रहें.
*सांस लें और धीरे धीरे केंद्र में आ जायें.
*सांस छोड़ें और कम से कम घूमकर बाईं तरफ जायें और बाईं तरफ पीछे देखें.
*अपना सांस बाहर छोड़ें
*इस अंतिम मुद्रा में यथा संभव बने रहें.
*मुडऩे की स्थिति में यदि आप लंबे समय तक बने रहना चाहते हैं तो धीरे धीरे सांस लेते रहें.
*इस मुद्रा का ये पूर्ण चक्र है.
*अभ्यास को 5 से 10 बार तक दोहराया जा सकता है.
4 वृक्षासन
*सीधे खड़े रहें और बाहों को शरीर के साथ सीधे रखें.
*अपने दायें घुटने को झुकाएं और दायें पैर को अपनी बाईं आंतरिक जांघ पर रखें. पांव को सीधा रखा जाये और जांघ की जड़ से सटा होना चाहिये.
*सुनिश्चित करें कि आपकी बाईं टांग सीधी है.
*एक बार आप अच्छी तरह संतुलन में हो जायें, गहरी सांस लें, अपनी बाहों को साइड से सिर पर रखें और अपनी हथेलियों को नमस्कार की मुद्रा में कर लें.
*अपने सामने सीधे किसी वस्तु पर ध्यान लगायें अथवा आंखें बंद रखें.
*आपकी रीढ़ सीधी होनी चाहिये. आपका समूचा शरीर एक लाइन में हो, इलास्टिक बैंड की तरह. लंबी सांसें लेते और छोड़ते रहें.
*सीधे खड़े हो जायें जैसा कि मुद्रा की शुरूआत में आपने किया था. इस मुद्रा को बाईं टांग को दाईं जांघ पर रखते हुए दोहराएं.
5 वीरभद्र
*सबसे पहले सीधे खड़े हो जायें और शरीर को सीधा रखें. दोनों टांगों के बीच 3-4 फीट की दूरी रखें.
*अंदर सांस लें और अपने दोनों हाथों को ऊपर उठायें (अपने हाथों को फ्लोर या मैदान के समानांतर रखें) और अपने हाथों को दाईं तरफ  मोड़ें
*सांस बाहर छोड़ते समय अपने दायें पैर को 90 डिग्री के कोण पर दाईं तरफ मोड़ें.
*अब आराम से अपने दायें घुटने को फ्लोर के समानांतर थोड़ा झुकाएं
*यह सुनिश्चित करें कि आपकी दाईं जांघ फ्लोर के समानांतर है.
*सामान्य श्वास के साथ 60 सेकिंड तक इस मुद्रा में बने रहें. फिर सांस बाहर छोड़ें और अपने हाथों को धीरे से नीचे लायें और खड़े होने की स्थिति में लेकर आयें तथा सामान्य सांस लें.
*इस प्रयास के बाद समान क्रिया अपनी बाईं टांग के साथ अपने सिर को बाईं तरफ  मोड़ते हुए करें.
*इस प्रक्रिया को 3 से 5 बार दोहराएं
6 वज्रासन
*दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाएं. दायें पैर के घुटने को मोड़ लें.
*पंजे को नितंबों के नीचे दबाकर बैठ जाएं. इसी तरह बायें पैर को भी मोड़ लें.
*दोनों हाथ घुटनों पर रखें, कमर सीधी रखें.
*फिर आंख बंद कर गहरी सांस लें और छोड़ें. कुछ देर इसी स्थिति में रूकें.
*पहले की स्थिति में आने के लिये दाईं तरफ थोड़ा झुककर बायें पैर को बाहर निकालें, फिर दायेें पैर को बाहर निकालकर सीधा कर लें.
*अब इसी प्रकार से बाईं तरफ  से दोहराएं
7 पर्वतासन
*ज़मीन पर टांगें क्रॉस करते हुए सुखासन या पदमासन की तरह बैठ जायें
*कंधों की तरफ  से अपने हाथों को उठायें और अपनी हथेली को नमस्कार की मुद्रा में सिर के ऊपर रखें, ऊपर की तरफ  फैलाएं
*अपनी धड़ को ऊपर की तरफ खींचें और जितना अधिक हो सके विस्तार करें
*इस स्थिति को कुछ देर बनाये रखें और सामान्य सांस लें
*अपने हाथों को नीचे लायें और उन्हें एक ओर रखें तथा टांगें अपनी तरफ फैलाएं और आराम करें
*इस कड़ी को 3-5 बार दोहराएं
7 उष्ट्रासन
*योग चटाई पर घुटनों के बल बैठें और हाथों को कूल्हों पर रखें
*आपके घुटने कंधों की लाइन में होने चाहियें और आपके पांव छत की ओर होने चाहियें.
*जैसे ही आप श्वास लें, अपनी पूंछ के पबियों की ओर खींचें जैसा कि नाभि से खींच रहे होते हैं.
*साथ ही, अपनी पीठ को मोड़ लें और अपनी हथेलियों को अपने पांव पर रखें जब तक कि बाहें सीधी हों
*अपनी गर्दन को तनाव या फलेक्स न होने दें बल्कि इसे स्वाभाविक अवस्था में रहने दें.
*इस मुद्रा में बने रहते हुए कई बार श्वास लें
*सांस को बाहर छोड़ें और प्रारंभिक अवस्था में आ जायें और शशांकासन में आराम करें.
8 शशांकासन
*वज्रासन की स्थिति अथवा घुटनों के बल बैठ जायें. अपने हाथों को जांघ पर रखें और आराम की मुद्रा में श्वास लें.
*अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर रखें, हथेलियां आगे की तरफ  रखें. बाहें कंधों की सीध में होनी चाहियें
*धीरे धीरे झुक जायें और हाथों को ऊपर की तरफ  लेकर आयें जब तक कि हाथ और माथा जमीन से छूए. आगे की तरफ झुकते समय सांस को बाहर छोड़ें.
*अंतिम स्थिति में माथा और हाथों को ज़मीन पर रखें. इस मुद्रा में जितना अधिक आपके लिये आरामदायक हो, बने रहें. अंतिम स्थिति में धीमे श्वास क्रिया की जा सकती है.
*धीरे से श्वास बाहर छोड़ें और शुरूआती स्थिति में पहुंच जायें (घुटनों के बल बैठना)
9 विपरीत करनी मुद्रा
*पीठ के सहारे लेट जायें. शरीर के अलावा बाहें सीधी रखें.
*श्वास के साथ घुटनों को मोड़ें और टांगें तथा नितंब उठायें
*कमर को सहारा देने के लिये हाथों को नितंबों के नीचे रखें. कुहनियां मंच पर रहनी चाहिये.
*पैरों को सीधा करके ऊपर की ओर रखें. पांव, टांगों और नितंबों की मांसपेशियों को आराम दें.
*सामान्य श्वास लें, इस स्थिति में जितना आरामदायक हो बने रहें.
*श्वास छोड़ें, घुटों को माथे की तरफ झुकाएं, धीरे धीरे नितंबों और टांगों नीचे लायें और शुरूआती स्थिति में लौट जायें.
10 भुजंगासन
*पेट के बल ले जायें और हाथों को कंधों के नीचे रखकर कोहनियों को उठा लें.
*अब सांस भरते हुए आगे से सिर और छाती को नाभि तक ऊपर उठाएं.
*अब सिर को ऊपर की ओर उठाकर सांस की गति सामान्य रखते हुए जहां तक मुमकिन हो रूके रहें. छत की ओर देखने का प्रयास करें.
*इस स्थिति को 10 से 60 सेकिंड तक बनाये रखें और धीरे धीरे श्वास लें और छोड़ें
*गहरी सांस छोड़ते हुए पुन: मूल स्थिति में आ जायें
*इस प्रक्रिया को 3 से 5 बार दोहराएं
11 पवनमुक्तासन
*अपनी पीठ के बल लेट जाएं और अपने पांव को जोडक़र रखें तथा बाहें शरीर के पीछे की तरफ रखें.
*गहरी सांस लें. बाहर श्वास छोडऩे के साथ अपनी घुटनों को सीने की तरफ लायें और अपनी जांखों को पेट की ओर दबाएं. अपनी टांगों को चहुं ओर से उंगलियों से जकड़ लें जैसे कि आप अपने घुटनों को सहला रहे हैं.
*अपने हाथ मंच से ऊपर उठाएं और अपनी ठोड़ी को घुटकों के बीच रखें.
*सामान्य श्वास लेते हुए आसन धारण करें. जब भी आप श्वास लें सुनिश्चित करें कि आपने हाथों के साथ घुटनों को कड़ाई से पकड़ रखा है, और अपने सीने पर दबाव बढ़ायें. जब भी आप श्वास छोड़ें यह सुनिश्चित करें कि आप पकड़ को ढीला कर लें.
*श्वास छोड़ें और तीन से पांच बार तक साइड से साइड अभ्यास करें और व्यायाम करें.
12 श्वासन
*जमीन पर लेट जायें.
*अपनी आंखें बंद कर लें
*पैरों में कुछ फासला रखकर दोनों हाथ शरीर से थोड़ी दूरी पर ढीले छोड़ दें. अपनी बाहें थोड़ी सी ऊपर रखें, हथेलियों को खुला और ऊपर की तरफ रखें.
*अब अंगूठे से शुरू करते हुए शरीर के सभी हिस्सों पर ध्यान लगायें. जब आप ऐसा करते हैं, धीमे और गहरी सांस लें. अपने शरीर को गहन आराम की मुद्रा में ले जायें. प्रक्रिया के दौरान नींद नहीं आनी चाहिये.
*धीमें, परंतु गहरी सांस लें. इससे पूर्ण विश्राम मिलेगा. जैसे ही आप श्वास लेंगे आपके शरीर में ऊर्जा आयेगी और जब आप श्वास बाहर छोड़ेंगे आपको शांति मिलेगी. अपने ऊपर और अपने शरीर पर ध्यान केंद्रित करें तथा अन्य बातों को भूल जायें.
*करीब 10-12 मिनट में जब आपका शरीर रिलेक्स और ताजग़ी महसूस करे, बाईं तरफ घूम जायें, अपनी आखें बंद कर लें. एक मिनट तक इसी स्थिति में बने रहें, जब तक आप सुखासन में बैठ न जायें.
*अपनी आंखें दोबारा खोलने से पहले कुछ गहरी सांसें लें और अपने आसपास की जानकारी हासिल करें.
प्राणायाम
1. नाड़ी शोधन प्राणायाम (वैकल्पिक नथुना श्वास तकनीक)
*अपनी रीढ़ को सीधे और कंधों को आराम की मुद्रा में रखते हुए बैठें. अपने चेहरे पर मुस्कान का भाव रखें.
*अपने बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखें, हथेलियों को खुला अथवा ध्यान की मुद्रा में रखें (अंगूठा और इंडेक्स फिंगर अच्छी तरह टिप्स को छूते हुए)
*दाएं हाथ की अनामिका और सबसे छोटी उंगली को मिलाकर बाईं नासिका पर रखें और अंगूठे को दाईं नासिका पर लगा लेें. तर्जनी और मध्यमा को मिलाकर मोड़ लें. अब बाईं नासिका से सांस भरें और उसे अनामिका और सबसे छोटी उंगली को मिलाकर बंद कर लें. दाईं नासिका से अंगूठो को हटाकर सांस बाहर निकाल दें.
*अब दाईं नासिका से सांस भरें और अंगूठे से उसे बंद कर दें. अब सांस को बाईं नासिका से बाहर निकाल दें. यह नाड़ी शोधन प्राणायाम का एक राउंड पूरा हुआ. वैकल्पिक नसिकाओं से श्वास लेने और छोडऩे का क्रम जारी रखें.
*दोनों नसिकाओं से वैकल्पिक श्वास क्रिया के 10 राउंड पूरा करें. हर बार श्वास छोड़ते समय याद रखें कि उसी नसिका से श्वास लें जिससे आपने बाहर छोड़ा है. संपूर्ण क्रिया के दौरान अपनी आंखें बंद रखें और लंबी, गहरी, निर्बाध श्वास, बिना किसी बल, श्वास लेने और छोडऩे की आवाज और मेहनत के होनी चाहिये.
शीतकारी प्राणायाम
*ध्यान आसन की मुद्रा में बैठें जो आपको आरामदायक लगे.
*अपनी आंखें बंद रखें और जीभ को ऊपर की तरफ छुआएं
*दांतों की ऊपरी और निचली पंक्ति को मिलाएं
*अब अपने होंठ खोलें और सी-सी की आवाज करते हुए श्वास लेना शुरू करें.
*श्वास लेने के बाद अपने होंठ बंद कर लें और नाक से श्वास बाहर छोड़ें.
*इसे कम से कम 5 से 10 बार दोहराएं
भ्रामरी प्राणायाम (मधुमक्खी श्वास)
*सुखासन में बैठ जायें
*आंखें बंद कर लें और गहरी सांस लें
*तर्जनी उंगली आंखें के ऊपर रखें, मध्यमा उंगली नाग के पास, अनामिका होंठ के ऊपर और सबसे छोटी उंगली होंठ के नीचे रहेगी.
*अपनी अपनी आंख की भौहों के बीच के क्षेत्र पर अपने मन को केंद्रित करें.
*अपना मुंह बंद रखें, दोनों नसिकाओं से श्वास लें और हम्मम की आवास बनाते हुए नाक से धीरे धीरे श्वास छोड़ें.
*इस प्रक्रिया को 5 से 10 बार दोहरायें. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्राणायाम को करते हुए अहसास करें कि आपका ब्रह्माण्ड की सभी सकारात्मक ऊर्जाओं से संपर्क हो रहा है.
अंत में निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि -‘‘काम करते रहने और खेलने का वक्त न मिलने से होनहार बालक भीे सुस्त हो सकता है‘‘. योग का जादू इसे नियमित तौर पर करते रहने से फलीभूत होगा. परंतु इस पैकेज के साथ यह चेतावनी भी जुड़ी है कि योग किसी प्रमाणित और शिक्षित योग गुरू के निर्देश में ही किया जाना चाहिये.
लेखक एक हठ योग प्रशिक्षण और योग थेरेपी में विशेषज्ञ हैं इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं
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