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संपादकीय लेख


Volume-38, 16-22 December, 2017

 
पर्यावरणीय प्रदूषण : कारण, प्रभाव और उपचार

डा. सुभाष शर्मा


वर्षों से पर्यावरणीय चुनौतियां, विशेषकर प्रदूषण के तौर पर, वैश्विक और राष्ट्रीय स्तरों पर परिलक्षित होती रही हैं. वैश्विक स्तर पर चार प्रकार के प्रदूषण उल्लेखनीय हैं: वायु, जल, मृदा और एक्स-रे. यूरोप में 18वीं सदी में आई औद्योगिक क्रांति से लेकर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कई गुणा बढ़ा है और इसके गंभीर पर्यावरणीय प्रभाव हुए हैं. उदाहरण के लिये दुनिया की सबसे बड़ी सूचीबद्ध 250 कंपनियों की वैश्विक तौर पर सभी मानव-निर्मित ग्रीन हाउस गैसों के एक तिहाई के लिये गणना की जाती है. कोल इंडिया, गाज़प्रोम और एक्सोन मोबिल सर्वाधिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन करने वाली सर्वोच्च तीन कंपनियां हैं और लोग उनके उत्पादों को उनकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाये बगैर इस्तेमाल करते हैं. इसे गंभीरता से लेते हुए इन 250 सूचीबद्ध कंपनियों से पेरिस जलवायु समझौते (2015) के तहत निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार तापमान वृद्धि रोकने के लिये प्रति वर्ष 3 प्रतिशत उत्सर्जन कटौती करने की अपेक्षा की गई थी. परंतु वास्तव में इन 250 में से केवल 30 प्रतिशत कंपनियों ने उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य तय किये. (टाइम्स ऑफ इंडिया 1 नवंबर, 2017). 2014 में दिल्ली को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के एक सर्वाधिक प्रदूषित शहर के तौर पर चिन्ह्ति किया (वार्षिक पीएम 2.5, 153 रहा) और बाद में 2016 में इसमें मामूली सुधार के बाद दुनिया में इसका ग्यारहवां रैंक हो गया (वार्षिक पीएम 2.5, जो कि 122 माइक्रो ग्राम प्रति मीटर होता है). लेकिन कुछ विशेषज्ञों और ग्रीनपीस जैसे संगठनों ने इस पर सवाल उठाया कि अधिक डाटा स्टेशनों के प्वाइंटस (2014 में 6 के मुकाबले 2016 में 10) ने निगरानी हेतु पूर्व के परिणाम को कम करके दर्शाया है. इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2016 की रिपोर्ट 2008-13 से विवरण (वार्षिक औसत) पर आधारित है. अत: यदि वर्तमान विवरण को गणना में लिया जाता है, भारतीय शहरों का रैंक शायद बहुत खराब निकलेगा. कहने की आवश्यकता नहीं है कि 2017 भारत में वायु प्रदूषण के लिहाज से सबसे खराब रहा है औसतन अक्तूबर 2017 अक्तूबर 2016 के मुकाबले अधिक प्रदूषित रहा है - वर्ष में औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक अक्तूबर 2016 में 275 के मुकाबले 281 रहा है. अक्तूबर 2017 में अक्तूबर 2016 में 6 ‘‘बहुत खराब‘‘ दिनों के मुकाबले 15 ‘‘बहुत खराब‘‘ दिवस रहे हैं. परंतु अक्तूबर 2016 में उच्चतर एक्यूआई 445 (31 अक्तूबर को) था जबकि अक्तूबर, 2017 में (20 अक्तूबर को) उच्चतम एक्यूआई 403 था. किसी न किसी प्रकार से दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित ग्यारह शहर (डब्ल्यूएचओ 2016 के अनुसार) सारणी 1 में दर्शाए गए हैं:
 
सारणी 1: विश्व में सर्वोच्च ग्यारह सर्वाधिक प्रदूषित (पीएम 2.5) शहर (2016)
क्रम सं. 1                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - ज़ाबोल (ईरान)
पीएम 2.5-२१७
 
क्रम सं. 2                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - ग्वालियर (भारत)     
पीएम 2.5- १७६
 
क्रम सं. 3                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - इलाहाबाद (भारत)
पीएम 2.5- १७०
 
क्रम सं. 4                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - रियाद (सऊदी अरब)  
पीएम 2.5- १५६
 
 
क्रम सं. 5                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - अल जुबैल (सऊदी अरब)      
पीएम 2.5- १५२
 
क्रम सं. 6                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - पटना
पीएम 2.5- १४९
 
क्रम सं. 7                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - रायपुर
पीएम 2.5- १४४
 
क्रम सं. 8                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - बामेंडा (कैमरन)
पीएम 2.5- १३२
 
क्रम सं. 9                             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - झिंगताई (चीन)
पीएम 2.5- १२८
 
क्रम सं. 10                          
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - बाओडिंग (चीन)      
पीएम 2.5- १२६
 
क्रम सं. 1             
विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर (पीएम 2.5)                - दिल्ली (भारत)
पीएम 2.5- १२२
 
इन विवरणों से यह एकदम स्पष्ट है कि इन ग्यारह सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से पांच शहर भारत में हैं: ग्वालियर, इलाहाबाद, पटना, रायपुर और दिल्ली. पीएम10 स्तर के संबंध में, विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर ओरविष्ठा (नाइजीरिया), 594 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के वार्षिक औसत के साथ था जिसके बाद पेशावर (पाकिस्तान) 540 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के साथ था. ग्वालियर का नाम 329 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के साथ सर्वाधिक 10 पीएम 10 लेवल शहरों में दसवें स्थान पर था (और यह एकमात्र भारतीय शहर है जो कि सर्वोच्च दस उच्चतम पीएम 10 लेवल में शामिल है). इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट 2016 में यह साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि उच्च आय वाले देशों (यूरोप, अमेरिका और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र) में शहरी वायु प्रदूषण के स्तर कम थे: दूसरी तरफ  उच्चतम शहरी वायु प्रदूषण स्तर कम और मध्यम आय वाले देशों में, विशेषकर पूर्वी भूमध्य सागर और दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रों में डब्ल्यूएचओ सुरक्षा सीमाओं से 5-10 गुणा से अधिक रहा है.
दुर्भाग्यवश इन दिनों मध्य दिल्ली (लोधी रोड और इंडिया गेट) में एक सबसे सूक्ष्म, महीन और घातक प्रदूषक पीएम1 उभर कर आया है जो मनुष्य के बाल की सघनता से 70 गुणा अधिक महीन है. लोधी रोड (नई दिल्ली) में सफर (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय) ने जुलाई 2017 में ग्रीष्म, सर्दी और मानसून के दौरान पीएम 1 की औसत मात्रा क्रमश: 46, 49 और 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दजऱ् की. 2006 में दिल्ली में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम10) 153 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (वार्षिक औसत) था जो कि 2008 में बढक़र 214 हो गया और 2010 में (राष्ट्रमंडल खेलों के लिये बड़े निर्माण कार्यों के कारण) 261 हो गया, जो कि 2011 में गिरकर 222 हो गया परंतु पुन: तेज़ी के साथ 2016 में 260 पर जा पहुंचा. 2017 में दिल्ली में वायु प्रदूषण अच्छे स्तर से बढक़र (50 माइक्रोम प्रति एम3) अधिकतर दिल्ली में आठ गुणा तक हो गया, जैसा कि सारणी 2 से स्पष्ट है.
 
सारणी 2: दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में वायु प्रदूषण स्तर (1 नवंबर 2017) 
क्रम सं.                 क्षेत्र                    प्रदूषण का स्तर                  वायु गुणवत्ता                    सूचकांक
 
क्रम सं.1
क्षेत्र- रोहिणी
प्रदूषण का स्तर-४५८
वायु गुणवत्ता-१. ०-५०   
सूचकांक- अच्छा
 
क्रम सं.2
क्षेत्र- रोहिणी
प्रदूषण का स्तर-४५८
वायु गुणवत्ता-१. ०-५०
सूचकांक- अच्छा
 
क्रम सं.3
क्षेत्र- शादीपुर
प्रदूषण का स्तर-४५६
वायु गुणवत्ता-२. ५१-१००
सूचकांक- संतोषजनक
 
क्रम सं.4
क्षेत्र- डीटीयू
प्रदूषण का स्तर-४२४
वायु गुणवत्ता-३. १०१-२००
सूचकांक- सामान्य
 
क्रम सं.5
क्षेत्र- आनंद विहार
प्रदूषण का स्तर-४०९
वायु गुणवत्ता-४. २०१-३००
सूचकांक- खराब
 
 
 
क्रम सं.6
क्षेत्र- लोधी रोड
प्रदूषण का स्तर-४०१
वायु गुणवत्ता-५. ३०१-४००
सूचकांक- बहुत खराब
 
क्रम सं.7
क्षेत्र- आर के पुरम
प्रदूषण का स्तर-४१३
वायु गुणवत्ता-६. ४०० से ऊपर
सूचकांक- गंभीर/आपातस्थिति
 
यह सीधे खून में जाकर घुल जाता है जो कि दिल की गंभीर समस्या का कारण बनता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीएम 1 के लिये कोई सुरक्षित सीमा परिभाषित नहीं की है, यद्यपि पीएम 2.5 के लिये यह 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम 10 के लिये 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार इन प्रदूषक कणों से होने वाले प्रदूषण से दुनिया भर में हर वर्ष कऱीब 3.3 मिलियन लोग मारे जाते हैं.
वायु प्रदूषण के कारण
विभिन्न अध्ययनों में वायु प्रदूषण, विशेषकर दिल्ली में होने वाले प्रदूषण के कारणों को उजागर किया गया है. इन कुछेक अध्ययनों के कुछ निष्कर्ष सारणी के तौर पर नीचे (सारणी 3) प्रस्तुत किये गये हैं.
 
सारणी 3: दिल्ली में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण
क्रम सं.-1
वर्ष-2003
अध्ययन स्रोत- पर्यावरण और वन मंत्रालय (श्वेत पत्र)
प्रमुख निष्कर्ष- क) 1970-71 --  2000-01 दिल्ली में प्रदूषक कणों में वाहनों का योगदान 23 प्रतिशत से बढक़र 72 प्रतिशत हुआ
 
क्रम सं.-2
वर्ष-2004
अध्ययन स्रोत- वातावरणीय पर्यावरणजर्नल
प्रमुख निष्कर्ष- क) प्रदूषक कणों, एनओएक्स और सीओ सहित प्रमुख प्रदूषकों का 80 प्रतिशत से अधिक उत्सर्जन वाहनों से होता है.      
 
क्रम सं.-3
वर्ष-2008
अध्ययन स्रोत- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राष्ट्रीय पर्यावरणीय अभियांत्रिकी अनुसंधान
प्रमुख निष्कर्ष- क) दिल्ली की हवा में सडक़ों धूल का प्रदूषक कणों में संस्थान की (एनईईआरआई)    सबसे अधिक 52.5 प्रतिशत, उद्योगों का 22 प्रतिशत, वाहनों का प्रदूषक उत्सर्जन 6.6 प्रतिशत है.
ख) एनओएक्स के लिये, उद्योग 79 प्रतिशत और वाहन 18 प्रतिशत योगदान करते हैं.
ग) सीओ के लिये वाहनों का  योगदान 59 प्रतिशत और हाइड्रोकार्बन्स का 50 प्रतिशत है.
 

क्रम सं.-4
वर्ष-2010
अध्ययन स्रोत- सफर (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय)
प्रमुख निष्कर्ष- क) ज्यादातर पीएम 10 सडक़ की धूल से है, वाहन उत्सर्जन वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत नहीं है.
ख) वाहन और उद्योग पीएम 2.5 का मुख्य स्रोत हैं और इसके बाद निर्माण कार्य हैं.
 
क्रम सं.-5
वर्ष-2013
अध्ययन स्रोत- वातावरणीय पर्यावरण‘(डॉ. सरथ गुटिकुंडा)
प्रमुख निष्कर्ष- क) वाहन उत्सर्जन एनओएक्स में 90 प्रतिशत, कुल सस्पेंडिड प्रदूषक कणों में 54 प्रतिशत और एसओ2 में 33 प्रतिशत का योगदान करता है.
 
क्रम सं.-6
वर्ष-2013
अध्ययन स्रोत- डॉ. प्रमिला गोयल (आईआईटी दिल्ली)
प्रमुख निष्कर्ष- क) भारी व्यावसायिक वाहन प्रदूषक कणों का मुख्य स्रोत (92 प्रतिशत)  हैं जिसके बाद दोपहिया आते हैं.
 
क्रम सं.-7
वर्ष-2013
अध्ययन स्रोत- आईआईटी, दिल्ली और डा. सरथ गुटिकुंडा  द्वारा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण
प्रमुख निष्कर्ष- क) ट्रकों से होने वाले उत्सर्जन  का उच्चतर प्रदूषण स्तर में योगदान है (रात 9 बजे से गुजरने कार्यक्रम वाले)
 
                                                      
क्रम सं.-8
वर्ष-2015               
अध्ययन स्रोत- आईआईटी, दिल्ली और आईआईटी बम्बई  (डा. सरथ गुटिकुंडा और राहुल गोयल द्वारा)          
प्रमुख निष्कर्ष- क) बृहत दिल्ली क्षेत्र में पीएम 2.5, सीओ और एसओ2 का कुल वाहन  प्रदूषण में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान ट्रक करते हैं.
 
क्रम सं.-9
वर्ष-2015 दिसंबर
अध्ययन स्रोत-आईआईटी, कानपुर
प्रमुख निष्कर्ष- क) सर्दियों में प्रदूषक कणों 46 प्रतिशत (दिल्ली सरकार के लिये) का योगदान ट्रकों से, 33 प्रतिशत दुपहिया से, 10 प्रतिशत चार पहिया से, 5 प्रतिशत बसों से और 4 प्रतिशत हल्के व्यावसायिक वाहनों से होता है.
ख) पीएम 2.5 में योगदान करने वाले चार प्रमुख हैं-धूल, वाहन, घरेलू ईंधन को जलाना और औद्योगिक प्रदूषक.
इसके अलावा दिल्ली में वायु प्रदूषण में ताप विद्युत संयंत्रों (बदरपुर) का भी काफी योगदान है. यद्यपि हम राष्ट्रीय परिदृश्य पर नजऱ डालें तो यह पाते हैं कि वाहन, लकड़ी जलाने, ठोस कचड़ा जलाने और निर्माण कार्यों के अलावा विद्युत संयंत्र (मुख्यत: कोयला) कार्बन उत्सर्जन का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं. भारत की कुल विद्युत में 68 प्रतिशत ताप विद्युत संयंत्रों से आती है (194200 मेगावाट), जो कि राज्यों या केंद्रीय अथवा निजी फर्मों/संयुक्त उद्यमों के अधीन आते हैं: महाराष्ट्र (28294) की सर्वाधिक ताप विद्युत क्षमता है, जिसके बाद गुजरात (23160), छत्तीसगढ़ (13234 मेगावाट), उत्तर प्रदेश (12228 मेगावाट), तमिलनाडु (11513 मेगावाट), म.प्र. (11411 मेगावाट) और राजस्थान (10226 मेगावाट) का नाम आता है.
                दिल्ली में वायु प्रदूषण मुख्यत: पांच कारणों से होता है. (टाइम्स ऑफ  इंडिया, 18 अक्तूबर, 2017)/दैनिक जागरण, 6 नवंबर, 2017):
 क) कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों से होने वाला उत्सर्जन-दिल्ली के 300 कि.मी. के दायरे में 13 ताप विद्युत संयंत्र सर्दियों में 30 प्रतिशत और गर्मियों में 15 प्रतिशत पीएम 2.5 के योगदान के साथ माध्यमिक कणों का योगदान करते हैं.
 ख) दिल्ली में एक करोड़ से अधिक वाहन हैं-2000 से दिल्ली में वाहनों में 97 प्रतिशत, प्रदूषक कणों में 75 प्रतिशत और एनओएक्स में 30 प्रतिशत का योगदान होता है, सर्दियों में वाहनों का प्रदूषक कणों में 20-25 प्रतिशत का, गर्मियों में 6-9 प्रतिशत का योगदान होता है, दिल्ली में वाहनों से 217.7 टन कार्बन मोनोऑक्साइड, 84 टन एनओएक्स, 66.7 टन हाइड्रोकार्बन और 0.72 टन सल्फर डाइआक्साइड का रोज़ाना योगदान होता है और हररोज 9.7 टन प्रदूषक तत्वों का योगदान होता है, दिल्ली में आधे से अधिक वाहनों में प्रदूषण प्रमाणपत्र नहीं है, दिल्ली में हररोज सडक़ों पर 50 लाख वाहन होते हैं परंतु इनकी जांच के लिये पर्याप्त स्टाफ  नहीं है.
 ग) फसलों की जड़ें (पराली) जलाना: पंजाब में 19.6 मिलियन टन, उ.प्र. में 21.9 मिलियन टन और हरियाणा में 9.1 मिलियन टन वार्षिक-140 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पीएम 10 और 120 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 का योगदान, 22 अक्तूबर, 2017 को उत्तर भारत में नासा ने फसल पराली जलाये जाने की कम से कम 2334 घटनाओं  को दजऱ् किया.
 घ) निर्माण गतिविधियों के लिये प्रयोग में लाया जाने वाला रेडीमेड कंक्रीट मिक्सर बड़ी मात्रा में फ्लाईएश उत्पन्न करता है जो कि पीएम 10 उत्सर्जन में 10 प्रतिशत (14.37 टन रोज़ाना) और पीएम 2.5 उत्सर्जन में 6 प्रतिशत (रोजाना 3.5 टन) का योगदान करते हैं.
 ड़)नगरीय कचड़े की धूल/धुएं, विशेषकर भलस्वा, गाज़ीपुर और ओखला में तीन लैंडफिल्स से भी प्रदूषक कणों में योगदान होता है.
                इस तरह 6 और 7 नवंबर 2017 को दिल्ली और रा.रा.क्षे. में वायु गुणवत्ता की स्थिति बेहद खराब स्तर पर पहुंच गई: पीएम 2.5 संकेंद्रण दिल्ली प्रौद्योगिकीय विश्वविद्यालय में 1000 माइक्रोन प्रति क्यूबिक मीटर (औसत 529 के मुकाबले), सिरी फोर्ट में 971 (औसत 333 के मुकाबले), गाजियाबाद में 976 (औसत 432 के मुकाबले), पंजाबी बाग में 894 (औसत 355 के मुकाबले), नोएडा में 865 (औसत 353 के मुकाबले), आनंद विहार में 862 (औसत 309 के मुकाबले), और मंदिर मार्ग में 819 (औसत 819 के मुकाबले) दर्ज किया गया - इस तरह यह वायु की सामान्य गुणवत्ता का 16 से 20 गुणा अधिक था.
                नये अध्ययन में पाया गया है कि यहां तक कि रसोइयां भी बाहरी स्थानों जितनी ही प्रदूषित थीं, गर्मियों के दौरान पीएम 2.5 उत्सर्जन 310 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया (पल्लवी पंत, टाइम्स ऑफ  इंडिया, 4 अप्रैल, 2017). दरअसल फ्राइंग और ग्रिलिंग से अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले कण सृजित होते हैं जो कि बहुत नुकसानदायक होते हैं. रसोई के लिये जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से (3.22 लाख आवासों में इसका इस्तेमाल होता है) वायु प्रदूषण, विशेषकर पीएम 2.5 लेवल, दिल्ली में 12 प्रतिशत बढ़ जाता है (दि हिंदु, 30 दिसंबर, 2015). ग्रामीण क्षेत्रों में दो तिहाई से ज्यादा घरों में खाना पकाने, प्रकाश, मच्छरों को भगाने, उर्वरकों आदि के लिये इस्तेमाल किया जाता है. यह विरोधाभासी है कि केवल 77 प्रतिशत आवासों में बिजली का कनेक्शन नहीं है जबकि 99.5 प्रतिशत गांवों को विद्युतीकृत किया जा चुका है-क्योंकि एक गांव को उस वक्त विद्युतीकृत मान लिया जाता है जब इसके आवासों के 10 प्रतिशत के पास बिजली का कनेक्शन हो जाता है. झारखंड, नगालैंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और असम में विद्युत रहित गंावों का अनुपात सर्वाधिक है. भारत सरकार ने दिसंबर 2018 तक ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत रहित 4.10 करोड़ आवासों को बिजली का कनेक्शन प्रदान करने की योजना बनाई है. 2014 में रूस में बिजली की खपत (सर्वाधिक ठंड वाला क्षेत्र) 6603 केडब्ल्यूएच प्रति व्यक्ति थी जबकि यूरोप में यह मात्रा 6353, दक्षिण अफ्रीका में 4229, चीन में 3927, ब्राजील में 2601 और भारत में मात्र 806 थी. कहने की आवश्यकता नहीं है कि विद्युत की प्रति व्यक्ति खपत उद्योगीकरण और जीवन की गुणवत्ता की डिग्री को इंगित करती है.
 
 (लेखक वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट हैं) इस लेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं.
चित्र: गूगल के सौजन्य से