रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Issue no: 28, 07-13 October 2023

ज्‍योति तिवारी भूपेन्‍द्र सिंह किसी राष्ट्र के इतिहास में, कुछ ऐसे क्षण आते हैं जो चिरस्‍मरणीय मील के पत्थर के रूप में खड़े होते हैं, और उसके लोगों की सामूहिक स्मृति में अपना महत्व अंकित कर जाते हैं। ये क्षण सामाजिक विकास की धुरी बन जाते हैं, जो एक युग से दूसरे युग में परिवर्तन को चिह्नित करते हैं। भारत, जिसकी जड़ों में लोकतंत्र गहराई से समाया हुआ है, में ऐसा क्षण आया है, जब यह लगभग तीन दशकों से स्थगित एक सपने की परिणति का गवाह बनने जा रहा है। संसद के दोनों सदनों ने "नारी शक्ति वंदन अधिनियम" पारित करके एक परिवर्तनकारी यात्रा के लिए मंच तैयार किया है, जिससे प्रतिनिधित्व और महिला-नेतृत्व वाले विकास के एक नए युग का सूत्रपात हुआ है। यह एक ऐसा क्षण है जो असीम आकांक्षाओं और संपूर्ण संभावनाओं के प्रतीक, नए संसद भवन की भव्यता की पृष्ठभूमि में शक्तिशाली रूप से प्रतिध्वनित होता है। एक व्यापक विधायी प्रस्ताव में, भारत ने महिला सशक्तिकरण का परचम लहराया है, और यह अपनी महिलाओं के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित अधिकार को सुरक्षित करने की राह पर चल पड़ा है। यह ऐतिहासिक विधेयक, एक राष्ट्र की सामूहिक इच्छा और आकांक्षा का प्रतीक है, जो अपनी महिलाओं की शक्ति के पोषण और दोहन के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह एक नए भारत की शुरुआत का प्रतीक है - जहां "नारी शक्ति" का मंत्र देश के उस जहाज का मार्गदर्शन करता है जो एक उज्ज्‍वल क्षितिज की ओर अग्रसर हो रहा है। अटल संकल्प के साथ, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 128वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया, जिसमें लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। "नारी शक्ति वंदन अधिनियम" ने न केवल अवसर के द्वार खोले हैं, बल्कि भारत की महिलाओं के लिए देश की नियति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मार्ग भी प्रशस्त किया है। गृह मंत्री श्री अमित शाह ने संसद को संबोधित करते हुए घोषणा की, "आगामी आम चुनावों के बाद, जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया होगी और जल्द ही, हमारी माताएं और बहनें संसद में सीटों पर कब्ज़ा करेंगी और हमारे देश के भविष्य को आगे बढ़ाएंगी।" इसके अलावा, वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए इन समुदायों के लिए आवंटित सीटों में आरक्षण की घोषणा करके समावेशिता का दृष्टिकोण अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा, यह विधेयक, कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न केवल एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि न्याय, समानता और सभी के लिए प्रतिनिधित्व के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। बहस और मतदान नई संसद के पवित्र हॉल में, इस विधेयक पर जोरदार चर्चा हुई, जिसमें 60 सदस्यों ने लोकसभा में आठ घंटे तक चली लंबी चर्चा में भाग लिया, और उनमें से 27 प्रभावशाली महिला सांसद थीं। लोकसभा में 128वें संविधान संशोधन विधेयक 2023 के पक्ष में जबरदस्त सर्वसम्मति दिखाई दी, जिसमें 454 सदस्यों ने अपना समर्थन दिया और इस परिवर्तनकारी विधेयक के लिए निर्विवाद समर्थन को प्रदर्शित किया। जिसके फलस्‍वरूप उपस्थिति और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की मांग वाली संवैधानिक आवश्यकता को आसानी से पूरा कर लिया गया। केवल दो सदस्यों ने विधेयक का विरोध किया। यह इस परिवर्तनकारी कानून के व्यापक समर्थन का प्रमाण है। राज्यसभा में भी बहस कम तीख़ी नहीं थीं, प्रभावशाली 72 सदस्यों ने चर्चा में भाग लिया, जो 11 घंटे से अधिक समय तक चली। परिणाम एक जोरदार पुष्टिकरण था, जिसमें 215 सांसदों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया और किसी ने भी इसके विरोध में मतदान नहीं किया। ऐतिहासिक संदर्भ इस नए विधेयक के महत्व को समझने के लिए ऐतिहासिक संदर्भ में जाना जरूरी है। 1993 में, भारत की संसद ने संविधान में 73वें और 74वें संशोधन को पारित किया, जिसमें पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की गईं। हालाँकि यह राजनीति में लैंगिक समावेशन की दिशा में एक सकारात्मक कदम था, आरक्षण का विस्तार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं जैसे उच्च विधायी निकायों तक नहीं हुआ। परिणामस्वरूप, इन महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद कम रहा। कुल मिलाकर, यह व्यापक रूप से माना जाता था कि भारत जैसे जटिल लोकतंत्र के संदर्भ में विधायी निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता पर अधिक जोर नहीं दिया जा सकता। अनेक दुर्गम कारकों ने इस महत्वपूर्ण अनिवार्यता को रेखांकित किया: w कम प्रतिनिधित्व- एक गंभीर असंतुलन: भारत के सर्वोच्च विधायी निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति चिंता का विषय है। 17वीं लोकसभा में कुल सदस्यों में महिलाएँ मात्र 15% थीं, जबकि राज्य विधानसभाओं में यह औसत निराशाजनक 9% था। यह स्पष्ट तौर पर बहुत कम प्रतिनिधित्व महज़ एक सांख्यिकीय विसंगति नहीं है; यह प्रणालीगत लैंगिक पूर्वाग्रह का एक स्पष्ट प्रतिबिंब है जो हमारे राजनीतिक परिदृश्य में कायम है। इस तरह की असमानताएं महिलाओं की नीति-निर्माण को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता को बाधित करती हैं, जिससे अनिवार्य रूप से देश की आधी आबादी को दरकिनार कर दिया जाता है। w समावेशन के माध्यम से सशक्तिकरण: प्रतिनिधित्व के जरिए सशक्तिकरण महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के तर्क के केंद्र में है। यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि जब किसी विशिष्ट समूह को राजनीतिक व्यवस्था में कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है, तो नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता गंभीर रूप से बाधित हो जाती है। यह केवल राजनीतिक भागीदारी का मामला नहीं है; यह मानवाधिकारों का एक बुनियादी मुद्दा है। महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (सीईडीएडब्‍ल्‍यू) इसे रेखांकित करता है और राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने की अनिवार्यता पर जोर देता है। सीईडीएडब्‍ल्‍यू महिलाओं और लड़कियों के समान अधिकारों को बनाए रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के लिए एक मार्मिक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। w स्थानीय स्‍वशासन से सबक: सकारात्मक परिणाम: जमीनी स्तर का अनुभव महिलाओं के लिए आरक्षण के परिवर्तनकारी प्रभाव का आकर्षक सबूत प्रदान करता है। जब महिलाओं को ऐसी नीतियों के तहत चुना जाता है, तो वे सार्वजनिक भलाई में अधिक ध्‍यान देने की स्पष्ट प्रवृत्ति प्रदर्शित करती हैं जो महिलाओं की चिंताओं के साथ निकटता से जुड़ी होती हैं। ये निर्वाचित प्रतिनिधि अपने समुदायों के भीतर परिवर्तन के एजेंट बन जाते हैं, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और स्वच्छता जैसे मुद्दों को संबोधित करते हैं जो महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करते हैं। ये सफलताएँ महज़ कहानियाँ नहीं हैं; जब महिलाओं की आवाज़ सुनी जाती है और उन पर ध्यान दिया जाता है तो वे उस क्षमता का मात्रात्मक प्रमाण हैं, जो सामने आती है। w अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्किंग: एक विनम्र वास्तविकता: भारत में राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कई अन्य देशों की तुलना में कम है। स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों ने अनिवार्य कोटा की आवश्यकता के बिना महिला प्रतिनिधित्व के उल्लेखनीय स्तर हासिल किए हैं। ये देश प्रदर्शित करते हैं कि राजनीतिक सशक्तिकरण और महिलाओं का समान प्रतिनिधित्व न केवल प्राप्य है बल्कि बेहतर प्रशासन और अधिक व्यापक नीति निर्माण के लिए भी अनुकूल है। भारत की प्रगति और इन वैश्विक मानकों के बीच स्पष्ट असमानता एक ठोस अनुस्मारक के रूप में दर्शाती है कि हमारा लोकतंत्र समावेशी से अभी बहुत दूर है। महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्‍व पर विभिन्‍न देशों का डेटा (सितंबर 2023 को) देश संसद में निर्वाचित महिलाओं का % राजनीतिक पार्टियों में कोटा कोटा स्‍वीडन 46% नहीं हां नार्वे 46% नहीं हां दक्षिण अफ्रीका 45% नहीं हां आस्‍ट्रेलिया 38% नहीं हां फ्रांस 38% नहीं हां जर्मनी 35% नहीं हां यूके हाउस ऑफ कॉमन्‍स 35% नहीं हां कनाडा 31% नहीं हां अमरीकी प्रतिनिधि सभा 29% नहीं नहीं अमरीकी सीनेट 25% नहीं नहीं बंगलादेश 21% हां नहीं ब्राजील 18% नहीं हां जापान 10% नहीं नहीं टिप्‍पणी: कई देशों में, महिलाओं के लिए कोटा अनिवार्य करने वाला कोई कानून नहीं है, लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियाँ महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करती हैं। स्रोत- अंतर-संसदीय संघ: पीआरएस इन महत्‍वपूर्ण तर्कों के आलोक में, विधायी निकायों में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण एक सर्वोच्‍च अनिवार्यता के रूप में उभर कर सामने आता है। यह एक लिंग को दूसरे लिंग के ऊपर तरजीह देने का मामला नहीं है बल्कि यह उन प्रणालीगत असंतुलन की मान्यता है जिसने भारत के राजनीतिक परिदृश्य में लैंगिक असमानता को कायम रखा है। इस तरह के आरक्षण को लागू करना एक ऐसे माहौल को बढ़ावा देने की दिशा में रणनीतिक कदम है जहां महिलाओं की आवाज़ अब हाशिये पर नहीं है बल्कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के केंद्र में है। इसके अलावा, यह सीईडीएडब्‍ल्‍यू जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है, जिससे दुनिया को संकेत मिलता है कि लैंगिक समानता केवल एक ऊंचा आदर्श नहीं है बल्कि एक ठोस और कार्रवाई योग्य प्रतिबद्धता है। महिलाओं को उनका उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करके, भारत ने एक अधिक समावेशी, न्यायसंगत और न्यायपूर्ण लोकतंत्र की ओर एक साहसिक कदम उठाया है - जहाँ महिलाएँ और पुरुष देश की नियति को आकार देने में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं। यह सिर्फ राजनीति के बारे में नहीं है; यह लिंग की परवाह किए बिना अपने सभी नागरिकों की प्रतिभा, दृष्टिकोण और आकांक्षाओं का उपयोग करके एक राष्ट्र की पूर्ण क्षमता को साकार करने के बारे में है। विधेयक की प्रमुख विशेषताएं संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) विधेयक, 2023, इन आवश्यक विशेषताओं के साथ भारतीय लोकतंत्र में एक नए युग की शुरुआत है: महिलाओं के लिए आरक्षण: विधेयक के मूल में विधायी निकायों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता है। यह न केवल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में भी महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई आरक्षण को अनिवार्य बनाता है। लैंगिक समानता की दिशा में यह परिवर्तनकारी कदम लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) के लिए पहले से आरक्षित सीटों तक विस्‍तारित है। आरक्षण की शुरूआत: यह विधेयक एक व्यवस्थित प्रक्रिया के माध्यम से इस युगांतरकारी परिवर्तन को गति प्रदान करता है। इसमें कहा गया है कि महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक के अधिनियमन और प्रकाशन के बाद संचालित जनगणना के बाद प्रभावी होगा। जनगणना के बाद, परिसीमन का महत्वपूर्ण कार्य किया जाएगा जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाओं को निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से सीटें आवंटित की जाएं। यह आरक्षण शुरू में 15 वर्षों की अवधि के लिए लागू किया जाएगा, जिससे विधायी निकायों में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पर्याप्त अवधि सुनिश्चित होगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि विधेयक विधायिका को इस प्रगतिशील उपाय की निरंतरता सुनिश्चित करते हुए, बाद के कानून के माध्यम से इस आरक्षण को आगे बढ़ाने का अधिकार देता है। सीटों का रोटेशन: विधेयक की एक अभिनव विशेषता महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के रोटेशन का प्रावधान है। प्रत्येक परिसीमन कार्य के बाद, निर्वाचन क्षेत्रों का एक नया सेट आरक्षित किया जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि विविध पृष्ठभूमि और क्षेत्रों की महिलाओं को विधायिका में अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिले। यह गतिशील दृष्टिकोण समावेशिता को बढ़ावा देता है और कुछ चुनिंदा लोगों की घुसपैठ को रोकता है, जिससे अंततः हमारे लोकतंत्र का ताना-बाना मजबूत होता है। 2023 विधेयक में महत्‍वपूर्ण बदलाव नीचे दी गई तालिका राज्यसभा द्वारा पारित 2008 के विधेयक और 2023 में पेश किए गए विधेयक के बीच कुछ महत्वपूर्ण बदलावों को दर्शाती है। 2008 के विधेयक और 2023 में प्रस्‍तुत विधेयक के बीच महत्‍वपूर्ण बदलाव 2008 में प्रस्‍तुत और राज्‍य सभा द्वारा पारित विधेयक 2023 में प्रस्‍तुत विधेयक -लोकसभा में आरक्षण-प्रत्‍येक राज्‍य/संघ शासित प्रदेश में लोक सभा की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षत होंगी। -सीटों का रोटेशन- संसद के प्रत्‍येक आम चुनाव/विधानसभा चुनाव के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन किया जाएगा - आरक्षित सीटों का रोटेशन प्रत्‍येक विधानसभा परिसीमान कार्रवाई के बाद किया जाएगा स्रोत: संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक, 2008; संविधान (एक सौ अट्ठाइसवां संशोधन) विधेयक, 2023; पीआरएस प्रतिवाद और चिंताएँ विधायिकाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने से तीन महत्वपूर्ण दृष्टिकोण सामने आते हैं: (i) पहला आयाम इस बात पर केंद्रित है कि क्या यह नीति महिलाओं को प्रभावी ढंग से सशक्त बना सकती है। यह निर्विवाद है कि जब किसी समूह को राजनीतिक व्यवस्था में कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है, तो नीति और निर्णय लेने की उनकी क्षमता बाधित हो जाती है। महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (सीईडीएडब्ल्यू) स्पष्ट रूप से राजनीति और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्‍त करने की एक प्रतिबद्धता की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिसकी भारत ने पुष्टि की है। निर्विवाद तथ्य यह है कि कुछ प्रगति के बावजूद, विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त रूप से कम है। शोध दर्शाता है कि जब महिलाएं आरक्षण नीतियों के तहत चुनी जाती हैं, तो वे महिलाओं की चिंताओं से जुड़ी सार्वजनिक भलाई में अधिक ध्‍यान देती हैं, जिससे उनके समुदायों में काफी बदलाव आता है। (ii) दूसरा परिप्रेक्ष्य इस बात की जांच करता है कि क्या विधानमंडलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए आरक्षण के व्यवहार्य विकल्प हैं। यह एक आवश्यक प्रश्न है जिस पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। राजनीतिक दलों या दोहरे सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों के भीतर आरक्षण जैसे वैकल्पिक तंत्र का सुझाव दिया गया है, जिनमें से प्रत्येक के अपने फायदे और नुकसान हैं। हालाँकि, कुंजी एक ऐसे तंत्र को लागू करने में निहित है जो महिलाओं की आवाज़ को प्रभावी ढंग से उठाती है और ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करती है। (iii) तीसरा परिप्रेक्ष्य आरक्षण नीति की वैधता से संबंधित है। विरोधियों का तर्क है कि महिलाओं के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र बनाने से अनजाने में वे प्रभावित हो सकती हैं और योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करने की उनकी क्षमता बाधित हो सकती है। यह दृष्टिकोण इस बात पर जोर देता है कि लिंग-आधारित आरक्षण के बजाय केवल योग्यता-आधारित विचारों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, आलोचकों का सुझाव है कि आरक्षण, हालांकि एक महत्वपूर्ण कदम है, महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण को सुनिश्चित नहीं कर सकता है। व्यापक चुनाव सुधार, जिसमें राजनीति में अपराधीकरण में कमी, राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ाना और काले धन के प्रभाव पर अंकुश लगाना शामिल है, आवश्यक घटक हैं जिन्हें राजनीतिक परिदृश्य के समग्र परिवर्तन के लिए हल किया जाना चाहिए। (iv) यद्यपि लैंगिक समानता और बेहतर प्रतिनिधित्व की खोज में राजनीतिक दल आरक्षण और दोहरे सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों के कार्यान्वयन जैसे विकल्पों पर विचार किया गया है, लेकिन वे महत्वपूर्ण कमियों से रहित नहीं हैं। राजनीतिक दल आरक्षण, उम्मीदवार पूल का विस्तार करते हुए, महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि की गारंटी नहीं देते हैं, जिससे संभावित रूप से महिला उम्मीदवारों का कम चयन हो सकता है। इसके अलावा, रणनीतिक रूप से कमजोर समझे जाने वाले निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं को रखने से आंतरिक कलह पैदा हो सकती है और पार्टी की एकजुटता में बाधा आ सकती है। दूसरी ओर, दोहरे सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों की स्थापना, हालांकि मतदाता की पसंद को संरक्षित करती है, साझा निर्वाचन क्षेत्रों के कारण प्रतिनिधियों की अपने घटकों के प्रति प्रतिबद्धता को कम करने का जोखिम पेश करती है। इसके अतिरिक्त, यह मॉडल दोहरे सदस्य ढांचे के भीतर अनजाने में महिला उम्मीदवारों को दोयम दर्जे पर धकेल सकता है, और इसे बड़े पैमाने पर लागू करने से जुड़ी तार्किक चुनौतियाँ संसदीय विचार-विमर्श को जटिल बना सकती हैं। विपक्ष में ये बातें लिंग-संतुलित प्रतिनिधित्व के लक्ष्य को प्राप्त करने में इन विकल्पों की जटिलताओं और संभावित नुकसानों को उजागर करती हैं। निष्‍कर्ष यह ऐतिहासिक विधेयक, "नारी शक्ति वंदन अधिनियम" मात्र एक कानूनी पाठ नहीं है; यह एक गहन प्रतिबद्धता और किए गए वादे का प्रतीक है। यह आशा की एक उज्ज्वल किरण के रूप में खड़ा है, जो देश भर में अनगिनत महिलाओं के लिए मार्ग रोशन कर रहा है। यह क्षण एक असाधारण युग के आगमन का प्रतीक है, जहां महिलाओं की आवाजें सत्ता के गलियारों में केवल फुसफुसाहट बनकर रह जाती हैं, बल्कि भारतीय संसद और राज्य विधानमंडलों के पवित्र हॉलों में निर्विवाद अधिकार के साथ गूंजती हैं। यह एक परिवर्तन की शुरुआत करता है जहां महिलाओं की उपस्थिति‍ और प्रभाव मूल रूप से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नियति को आकार देंगे। जैसे-जैसे भारत इस महत्‍वपूर्ण यात्रा पर आगे बढ़ रहा है, क्षितिज असीमित अवसरों, निरंकुश आकांक्षाओं और एक समृद्ध राष्ट्र की दृष्टि से चमक रहा है, जो निर्विवाद रूप से "नारी शक्ति" के अदम्य बल से संचालित है। यह सिर्फ एक विधेयक नहीं है; यह महिलाओं के लचीलेपन और दृढ़ संकल्प का एक प्रमाण है, और यह देश की प्रगति के शीर्ष पर उनके सही स्थान की एक शानदार पुष्टि करता है। (सुश्री ज्‍योति ति‍वारी विषयवस्‍तु लेखिका, दिल्‍ली स्थित वेब जर्नल से हैं और श्री भूपेन्‍दर सिंह आकाशवाणी के संवाददाता हैं। इस लेख के संबंध में फीडबैक feedback.employmentnews@gmail.com पर साझा किया जा सकता है) व्‍यक्‍त किए गए विचार व्‍यक्तिश: हैं।