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संपादकीय लेख


भारत की जी20 अध्यक्षता का सारः कूटनीतिक विजय और वैश्विक नेतृत्व

अद्वित्य बहल भारत ने जटिल और गतिशील वैश्विक परिदृश्य के बीच, जी20 की अध्यक्षता की कमान संभाली। यह एक ऐसी भूमिका थी जिसके लिए समय को परिभाषित करने वाली बहुमुखी चुनौतियों के माध्यम से दक्ष नेतृत्व की आवश्यकता थी। ’बहुसंकट ग्रस्त’ कही जाने वाली इस अवधि में कई जटिल समस्याओं का संकट देखा गया, जिनमें महामारी के परिणाम, यूक्रेन संकट के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, आर्थिक मंदी तथा मुद्रास्फीति की दोहरी चुनौती और जलवायु परिवर्तन का गंभीर मुद्दा शामिल हैं। जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत की भूमिका प्रतीकात्मक होने से कहीं आगे बढ़ गई और इसने इन चुनौतियों से निपटने के लिए दिशा और समाधान प्रदान करने का प्रयास किया। भारत के दृष्टिकोण के मूल में यह मान्यता थी कि वैश्विक समुदाय एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्यों के माध्यम से निर्धारित महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को, मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों के कारण असफलताओं का सामना करना पड़ रहा था। दुनिया भर के देशों की विकास संबंधी आकांक्षाएं बाधित हुईं और सितंबर 2023 में इन लक्ष्यों की मध्यावधि समीक्षा के करीब आते ही तात्कालिकता की भावना प्रबल हो गई। भारत के नेतृत्व की विशेषता इन तूफानी परिस्थितियों में मार्गदर्शक बने रहने की प्रतिबद्धता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने न केवल एक भागीदार बल्कि वैश्विक एजेंडे को तय करने वाले के रूप में भारत की भूमिका पर ज़ोर देते हुए प्राथमिकताओं को रेखांकित किया। भारत का लक्ष्य परिवर्तन की आवाज़ बनना और स्थिरता, समान विकास तथा प्रगति को बढ़ावा देना है। ’वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा, जिसमें दुनिया को एक परिवार मानने का विचार शामिल है, समावेशिता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और विश्व कल्याण के लिए साझा जिम्मेदारी को प्रतिबिंबित करती है। 4डी फ्रेमवर्क भारत के नेतृत्व के स्तंभ, 4डी फ्रेमवर्क थेः (1) डीकार्बोनाइजे़शन (2) डिजिटीकरण (3) न्यायसंगत विकास और (4) संघर्षों में कमी। ये स्तंभ केवल अमूर्त अवधारणाएं नहीं थे बल्कि मार्गदर्शक सिद्धांत थे जिन्होंने भारत के कार्यों और निर्णयों को तैयार किया। जलवायु संकट से निपटने के लिए डीकार्बोनाइजे़शन भारत के दृढ़ संकल्प में निहित था। जी20 के भीतर जलवायु के संदर्भ में अग्रणी के रूप में, भारत ने अपने कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन और जलवायु-विनियमन भूमि कवर का विस्तार करने के प्रयासों का प्रदर्शन किया। ये कार्य न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करने के बारे में थे बल्कि दूसरों के अनुसरण के लिए एक उदाहरण भी थे। डिजिटीकरण दूसरा स्तंभ था, जो विकास के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित सफल कोविड टीकाकरण अभियान ने जटिल समस्याओं को हल करने के लिए भारत के अभिनव दृष्टिकोण को दर्शाया है। प्रधानमंत्री जन धन योजना और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी पहलों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे प्रौद्योगिकी वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ा सकती है और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को सशक्त बना सकती है। भारत के यूपीआई को एक अनुकरणीय आभासी भुगतान प्रणाली के रूप में भी व्यापक स्वीकृति मिली है। समतामूलक विकास तीसरा स्तंभ बना। महामारी के कारण पैदा हुए कई संकटों के प्रति भारत ने किसी को भी पीछे नहीं छोड़ने की अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। चुनौतियों के बावजूद, यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए गए कि कमज़ोर आबादी, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के लोग, सहायता के बिना न रहें। इस दृष्टिकोण में सामाजिक न्याय और असमानताओं को पाटने पर ज़ोर दिया गया। संघर्षों को कम करना चैथा स्तंभ था, जो शांतिपूर्ण समाधानों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। संघर्षों और तनावों से जूझ रही दुनिया में, भारत ने संघर्षों को कम करने और वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए बातचीत और सहयोग की हिमायत की। कुल मिलाकर, जी20 की अध्यक्षता में भारत की भूमिका औपचारिक कर्तव्यों से आगे बढ़ गई। इसने न केवल अपने विकास बल्कि वैश्विक समुदाय के कल्याण के प्रति देश की प्रतिबद्धता का उदाहरण पेश किया। भारत ने 4डी ढांचे को अपनाकर और अपने कार्यों को अपने मूल्यों के साथ जोड़कर, सहानुभूति, नवाचार और कूटनीति के साथ नेतृत्व करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। भारत का अद्वितीय विकास योगदानः भारत ने अपनी स्वयं की विकासात्मक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, समावेशी विकास, आर्थिक लचीलापन और सहयोग को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की। भारत की कुछ विशिष्ट विकासात्मक उपलब्धियां और नीतियां जिनकी जी20 समकक्षों ने प्रशंसा की, वे थींः आर्थिक लचीलापन और नेतृत्व विश्व अर्थव्यवस्था जब महामारी, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान और यूक्रेन संकट से जूझ रही थी, तब भी भारत की अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2022-23 में लगभग 7 प्रतिशत की सराहनीय विकास दर के साथ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से आगे रही। इस उपलब्धि ने भारत की आर्थिक क्षमता को रेखांकित किया और इसे सतत विकास के लिए एक मॉडल के रूप में स्थापित किया। अनुकरणीय विकास मॉडल भारत की आर्थिक उपलब्धियां महज आंकड़े नहीं बल्कि अन्य देशों के के लिए अनुकरणीय मॉडल का उदाहरण थीं। भारत का विकास पथ संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों के एकीकरण पर ज़ोर दिया गया है। सामाजिक सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का एक उल्लेखनीय उदाहरण महामारी-प्रेरित लॉकडाउन के दौरान स्पष्ट हुआ, जब कमज़ोर आबादी को सहायता प्रदान करने के प्रयास किए गए। हालांकि, सभी वंचित वर्गों तक पहुंचने में चुनौतियां बनी हुई हैं, जिससे संस्थागत कमियां उजागर हो रही हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी-संचालित पहल प्रौद्योगिकी ने भारत के अद्वितीय विकासात्मक योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान ने जन कल्याण के लिए नवाचार का लाभ उठाने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित किया। प्रधानमंत्री जन धन योजना और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी पहलों ने प्रौद्योगिकी-सक्षम प्लेटफार्मों के माध्यम से महिलाओं के वित्तीय समावेशन और उद्यमिता पर भारत के जोर को प्रदर्शित किया। इस दृष्टिकोण ने न केवल व्यक्तियों को सशक्त बनाया बल्कि समान विकास के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए अन्य देशों के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया। वैश्विक एकजुटता वैश्विक कल्याण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता ’वैक्सीन मैत्री’ जैसी पहल से स्पष्ट हुई। अपनी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, भारत ने दुनिया भर के देशों को कोविड-19 टीके प्रदान करके मानवीय सहायता प्रदान की। एकजुटता के इस कार्य ने एक ज़िम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी के रूप में भारत की भूमिका को उजागर किया, जो महामारी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में योगदान दे रहा है। भारत के विकास सहयोग का अनूठा पहलू, भागीदारों को बिना शर्त सहायता प्रदान करने की विशेषता है जो अन्य देशों की तुलना में उसके अलग दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है। पर्यावरणीय प्रबंधन पर्यावरण प्रबंधन में भारत का वैश्विक योगदान बढ़ा। हाल ही में जलवायु प्रदर्शन सूचकांक में समग्र जलवायु प्रदर्शन में भारत को जी20 सदस्यों में पहले स्थान पर रखा गया है। इस सम्मान का श्रेय भारत के कम प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन, उत्सर्जन में सीमित हिस्सेदारी, ऊर्जा खपत को कम करने के प्रयासों और जलवायु-विनियमन भूमि कवर का विस्तार करने के प्रयासों को दिया गया। ये प्रयास न केवल जलवायु परिवर्तन से निपटने की वैश्विक प्रतिबद्धता के अनुरूप हैं बल्कि सतत विकास के लिए मूल्यवान सबक भी प्रदान करते हैं। ग्लोबल साउथ की हिमायतः भारत की जी20 अध्यक्षता ग्लोबल साउथ के हितों और चिंताओं की हिमायत करने की अपनी अटूट प्रतिबद्धता से प्रतिष्ठित थी। यह हिमायत महज बयानबाजी से आगे निकल गई; इसका उद्देश्य विकासशील देशों की आवाज को बढ़ाना, उनकी चुनौतियों का समाधान करना और अधिक समावेशी तथा न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देना है। समावेशी प्रतिनिधित्व भारत के नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के भीतर ऐतिहासिक असमानताओं को पहचाना, जहां ग्लोबल साउथ की आवाज़ों को अक्सर हाशिए पर रखा जाता था। अफ्रीकी संघ को जी20 का अभिन्न अंग बनाने पर भारत का ज़ोर इस असंतुलन को दूर करने की उसकी प्रतिबद्धता का उदाहरण है। वैश्विक निर्णय लेने वाले मंचों में अफ्रीकी संघ को शामिल करने की वकालत करके, भारत का लक्ष्य दुनिया की सबसे युवा आबादी और अपार विकास क्षमता वाले महाद्वीप की चिंताओं और दृष्टिकोणों के लिए एक मंच प्रदान करना है। विश्व व्यापार संगठन सुधारों के लिए प्रयास भारत ने विश्व व्यापार संगठन के निष्क्रिय विवाद समाधान तंत्र के पुनरुद्धार, वर्तमान ज़रूरतों की पूर्ति और नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को बनाए रखने के लिए संगठन के आधुनिकीकरण पर ज़ोर दिया। भारत का उद्देश्य विभिन्न विकास स्तरों और अलग-अलग ज़िम्मेदारियों जैसे मुद्दों को संबोधित करते हुए विकासशील देशों की आवाज़ को बढ़ाना है। इस प्रयास में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र की वृद्धि और वैश्विक व्यापार में एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए ’कार्रवाई के लिए जयपुर कॉल’ शामिल था। भारत एमएसएमई को वैश्विक व्यापार परिदृश्य में एकीकृत करने और किसानों तथा श्रमिकों के लिए आजीविका के अवसरों को आगे बढ़ाने की भी वकालत करता है। स़्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाना भारत की हिमायत की असाधारण विशेषताओं में से एक उसका स़्त्री-पुरुष समानता को मुख्यधारा में लाने पर ध्यान केंद्रित करना है। भारत की जी20 अध्यक्षता पारंपरिक दृष्टिकोण से आगे निकल गई, जिसमें विभिन्न नीतिगत क्षेत्रों में जेंडर को एक क्रॉस-कटिंग थीम के रूप में माना गया। यह दृष्टिकोण मानक से एक महत्वपूर्ण विचलन था और इसने स़्त्री-पुरुष समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के बारे में एक मजबूत संकेत भेजा। जेंडर संबंधी मुद्दों को प्राथमिकता देकर, भारत ने उन प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने के अपने संकल्प को प्रदर्शित किया है जो न केवल भारत में बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ में महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं। विकासशील राष्ट्रों की चिंताओं की हिमायत करना भारत ने, एक प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में विकासशील देशों की चिंताओं की विस्तार से व्याख्या करने के लिए अपनी स्थिति का उपयोग किया। इसने ऐसी नीतियों की वकालत की जो विकास के विभिन्न स्तरों वाली अर्थव्यवस्थाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर केंद्रित हों। यह महामारी के बाद वैश्विक आर्थिक सुधार के संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक था। भारत की वकालत ने उन अनुरूप रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जो ग्लोबल साउथ में देशों की विकासात्मक आकांक्षाओं को पूरा करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके हित अधिक उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की प्राथमिकताओं से प्रभावित न हों। औपनिवेशिक विरासतों को संबोधित करना भारत की वकालत ने उपनिवेशवाद की ऐतिहासिक विरासतों को भी ध्यान में रखा जो ग्लोबल साउथ को प्रभावित करती रही हैं। इन क्षेत्रों में गरीबी, विकास और ऋण संकट जैसे मुद्दों को संबोधित करने की तात्कालिकता पर जोर देकर, भारत ने उन प्रणालीगत अन्यायों को सुधारने की कोशिश की जो अक्सर ऐतिहासिक शक्ति असंतुलन के कारण बढ़ जाते हैं। इस वकालत का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अधिक समान अवसर तैयार करना है, जहां विकासशील देश वैश्विक संचालन में योगदान दे सकें और उससे लाभ उठा सकें। भारत की जी20 अध्यक्षता ने बहुपक्षीय साझेदारी बनाते हुए ग्लोबल साउथ और शेष विश्व के देशों के बीच सार्थक भागीदारी बनाने की मांग की। वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन में 125 देशों के प्रतिनिधियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अफ्रीका की भागीदारी सुनिश्चित करके, भारत का लक्ष्य विकासशील देशों की सामूहिक आवाज़ को मजबूत करना है। भारत-अमरीका संबंध और वैश्विक नेतृत्वः भारत की जी20 अध्यक्षता को अमरीका के साथ इसके विकसित होते और महत्वपूर्ण संबंधों द्वारा चिह्नित किया गया, जिसने भारत की वैश्विक नेतृत्व आकांक्षाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रणनीतिक साझेदारी और द्विपक्षीय जुड़ाव पिछले कुछ वर्षों में भारत- अमरीका संबंध गहरे हुए हैं, जो एक रणनीतिक साझेदारी में विकसित हो रहे हैं, जिसमें रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और कूटनीति जैसे विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं। भारत की जी20 अध्यक्षता के दौरान इस साझेदारी को और गति मिली। जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमरीका यात्रा सहित उच्च-स्तरीय यात्राओं ने दोनों देशों ने अपने संबंधों को दिए जाने वाले महत्व को रेखांकित किया। इन संलग्नताओं ने न केवल द्विपक्षीय मित्रता को प्रदर्शित किया बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया। वैश्विक चुनौतियों पर सहयोगात्मक नेतृत्व भारत और अमरीका ने महामारी के आर्थिक परिणाम, जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसी गंभीर वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग किया। महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनका तालमेल जी20 के एजेंडे के प्रति उनके समन्वित दृष्टिकोण में स्पष्ट था। समाधान खोजने के लिए मिलकर काम करके, भारत और अमरीका ने दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव डालने और जटिल वैश्विक मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए अपनी साझेदारी की क्षमता का प्रदर्शन किया। हिंद-प्रशांत रणनीति में तालमेल हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत- अमरीका सहयोग के केंद्र बिंदु के रूप में उभरा। दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय कानून और संप्रभुता के सम्मान की विशेषता वाले स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत के महत्व पर ज़ोर दिया। इस क्षेत्र में भारत की रणनीतिक भूमिका, अमरीका के दृष्टिकोण के अनुरूप, एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के तर्क को मज़बूत करती है और अस्थिर करने वाली संभावित ताकतों को संतुलित करने में मदद करती है। लोकतांत्रिक मूल्यों की हिमायत भारत- अमरीका भागीदारी भी साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों, कानून के शासन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाए रखने की प्रतिबद्धता पर आधारित है। वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बढ़ावा देकर, भारत और अमरीका ने सत्तावाद के खिलाफ एकजुटता व्यक्त की और एक ऐसी दुनिया की हिमायत की जहां लोकतांत्रिक मानदंड कायम हों। वैश्विक शासन पर प्रभाव भारत की जी20 अध्यक्षता ने अमरीका और भारत को वैश्विक शासन पर अपने सहयोगात्मक प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान किया। जहां ग्लोबल साउथ का अधिक प्रतिनिधित्व है वहां एक सुधारित बहुपक्षवाद की हिमायत करने में उनके गठबंधन ने समकालीन विश्व व्यवस्था को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को नया आकार देने के उनके संयुक्त प्रयासों का संकेत दिया। इस साझेदारी ने भारत की वैश्विक नेतृत्व आकांक्षाओं और अमरीका के समर्थन को विश्वसनीयता प्रदान की। रूस, चीन पहेलीः कूटनीति की परीक्षा दिसंबर 2022 में भारत की जी20 की अध्यक्षता की शुरुआत एक ऐसे मंच पर कदम रखने जैसा था जहां संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के साथ इसके खिलते संबंधों और रूस-यूक्रेन संघर्ष के संबंध में इसके रुख पर दुनिया की सतर्क निगाहों के बीच सुर्खियों को साझा किया गया था। अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने उत्साहजनक स्वर में भारत की जी20 अध्यक्षता के लिए अटूट समर्थन का वादा किया था। हालांकि, यह यात्रा परीक्षाओं से रहित नहीं थी, भारत का भूराजनीतिक संतुलन अमरीका के साथ उसकी बढ़ती साझेदारी के लिए एक लिटमस टेस्ट बन गया। रूस-यूक्रेन संघर्ष बड़े पैमाने पर छाया रहा, जिसका असर भारत की वैश्विक गतिविधियों पर पड़ा। भारत के लिए चुनौती दोहरी थीः पहली, अमरीका के नेतृत्व में अपने पश्चिमी सहयोगियों को अपनी बहुमुखी मजबूरियों के बारे में समझाना और रूस-यूक्रेन उथल-पुथल के सामने स्वतंत्र निर्णय लेना। दूसरे, अपने उत्तरी पड़ोसी चीन के साथ भारत के समीकरण की जटिलता, वैश्विक नेतृत्व की भारत की आकांक्षाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रही है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में चीन की असहमति की आवाज़ लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची जैसे मुद्दों पर भारत के रुख का विरोध करने से लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत को शामिल करने का विरोध करने तक, चीन का रुख अक्सर भारत के हितों के विपरीत रहा है। इस जटिल भू-राजनीतिक स्थिति के बीच, रक्षा के दायरे से आगे रणनीतिक साझेदारी के व्यापक स्पेक्ट्रम तक बढ़ते भारत -अमरीका संबंधों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस बढ़ते रिश्ते पर चीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अमरीका के भू-राजनीतिक रुख का विरोध करने वाली ताकतों के साथ चीन का गठबंधन तेजी से स्पष्ट हो गया क्योंकि अमरीका, रूस के खिलाफ यूक्रेन के समर्थन में मजबूती से खड़ा था। चीन की चुनौती जैसे-जैसे बढ़ती गई, भारत के लगातार कूटनीतिक प्रयास भी फलीभूत हुए। भारत-अमरीका संबंधों ने न केवल चुनौती का सामना किया बल्कि फले-फूले भी। विवाद के मुद्दों, विशेषकर रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की दृढ़ स्थिति ने पश्चिमी शक्तियों द्वारा अलग-अलग दृष्टिकोणों के क्रमिक समाधान का मार्ग प्रशस्त किया। यह भारत की कूटनीतिक कुशलता और अपने हितों से समझौता किए बिना जटिल वैश्विक गतिशीलता का मार्गदर्शन करने की क्षमता का प्रमाण था। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विशाल क्षेत्र में, रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का रुख एकमात्र उसी का नहीं था; यह एक सिम्फनी थी जो पूरे महाद्वीपों में गूंजती थी। जैसे ही घटनाक्रम सामने आया, अमरीका के साथ भारत की साझेदारी की परीक्षा हुई लेकिन वह स्थिर रही। इस साझेदारी को कमजोर होने के बजाय, मजबूती मिली क्योंकि दोनों देशों ने एक मंच साझा किया जहां उनके साझा मूल्य और सामान्य हित थे। कूटनीति के क्षेत्र में, जहां निष्ठाएं और प्रतिकूलताएं आपस में जुड़ी हुई हैं, जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत की यात्रा एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि वैश्विक राजनीति की भूलभुलैया को पार करने के लिए रणनीतिक दूरदर्शिता, अटूट संकल्प और चुनौतियों को अवसरों में बदलने की क्षमता की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे भारत इस जटिल रास्ते पर आगे बढ़ता गया, यह स्पष्ट होता गया कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के रंगमंच में, पटकथा न केवल शक्तिशाली लोगों द्वारा लिखी जाती है, बल्कि उन लोगों द्वारा भी लिखी जाती है, जो वैश्विक गठबंधनों के कठिन रास्तों में निपुणता से आगे बढ़ते हैं। (लेखक दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो वर्तमान में एक प्रमुख दैनिक से जुड़े हुए हैं। आप इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया हमें @feedback. employmentnews@gmail.com पर भेज सकते हैं)। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।