रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Vol.29, 2017

 
भारत में ऑर्गेनिक कृषि

दिनेश कुमार एवं श्वेता मेहरोत्रा

भारत में ऑर्गेनिक कृषि का पुन: अविष्कार हुआ है और यह दिन- प्रतिदिन लोकप्रिय होती जा रही है. किसान, उद्यमी, अनुसंधानकर्ता, प्रशासक, नीति-निर्माता और उपभोक्ता भी देश में ऑर्गेनिक कृषि के संवर्धन तथा विकास में निरंतर व्यापक रुचि दिखा रहे हैं. ऑर्गेनिक खाद्य उत्पाद, पारम्परिक कृषि से उप्तादित उत्पादों की तुलना में अधिक सुरक्षित तथा पोषक माने जाते हैं. ऑर्गेनिक कृषि मिट्टी स्वास्थ्य को बनाए रखने, पर्यावरण के रक्षण, जैववैविध्य में वृद्धि करने, फसल उत्पादकता को बनाए रखने और किसानों की आय बढ़ाने में भी सहायक है. ऑर्गेनिक कृषि के दीर्घावाधि लाभ को देखते हुए, भारत सरकार ने देश में इसके संवर्धन के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए है. सभी प्रकार के स्टेकहोल्डर्स तथा सरकार के समर्थन से ऑर्गेनिक कृषि आंदोलन भारत में व्यापक रूप में विस्तरित हुआ है.
विकास :
वर्तमान में ऑर्गेनिक कृषि १७९ देशों में लगभग ५०.९ मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि क्षेत्रफल में की जाती है (२०१५), मण्डी अनुसंधान कंपनी ‘‘ऑर्गेनिक मॉनीटर’’ का अनुमान है कि ऑर्गेनिक खाद्य का विश्व बाजार २०१५ में ८१.६ बिलियन अमरीकी डॉलर का था. विश्व में २.४ मिलियन ऑर्गेनिक उत्पादकों में से भारत में ऑर्गेनिक उत्पादक सबसे ऊंची संख्या में अर्थात ५.८५ लाख हैं. इसका मुख्य कारण प्रत्येक उत्पादक का छोटी भूमि धारण करना है. वर्तमान में ऑर्गेनिक प्रमाणन के अंतर्गत कृषि योग्य भूमि के संबंध में भारत विश्व के उच्च दस देशों में से नौवें स्थान पर है. भारत में ऑर्गेनिक उत्पादन और क्षेत्रफल का विवरण तालिका-१ में दिया गया है.
हाल ही के वर्षों में देशों में प्रमाणित कृष्ट भूमि में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है. यह २०१०-११ के ०.२४ मिलियन हैक्टेयर से बढक़र २०१५-१६ में १.४९ मिलियन हैक्टेयर हो गई है, जो ५ वर्षों में ६ अयामी वृद्धि को दर्शाती है. इसी तरह ऑर्गेनिक कृषि के अंतर्गत प्रमाणित क्षेत्र (कृष्ट तथा वन्य कटाई क्षेत्र सहित) २०१०-११ के ४.४३ मिलियन हेक्टेयर से बढक़र २०१५-१६ में ५.७१ मिलियन हेक्टेयर हो गया है जो पिछले ५ वर्षों में २८.९' वृद्धि का सूचक है. हाल ही के वर्षों में ऑर्गेनिक कृषि के क्षेत्रफल में वृद्धि होने के कारण ऑर्गेनिक उत्पादन भी लगभग इसी समानुपात में बढ़ा है. उदाहरण के लिए ऑर्गेनिक कृषि के अंतर्गत कुल प्रमाणित उत्पादन (कृष्ट तथा वन्य कटाई क्षेत्र सहित) २०११-१२ के ०.६९ मिलियन टन से बढक़र २०१५-१६ में १.३५ मिलियन टन हो गया है, जो चार वर्षों में लगभग दुगनी वृद्धि है. वर्तमान में भारत गन्ना, तेलहन, सिरेल एवं मिलेट्स, कॉट्न, दालों, औषधीय पौधों, चाय, फलों, मसालों, ड्राईफू्रट्स, सब्जियों तथा कॉफी आदि सहित विभिन्न प्रमाणित ऑर्गेनिक उत्पादों का उत्पादन कर रहा है.
सरकारी योजना :
हाल ही के समय में, भारत सरकार ने, देश में ऑर्गेनिक कृषि आंदोलन के कारणों का अत्यधिक सक्रिय रूप में समर्थन किया है. इसने नए अनुसंधान तथा विकास केन्द्र खोले हैं और साथ ही साथ मौजूदा केन्द्रों को भी सुदृढ़ किया है. सरकार ने ऑर्गेनिक कृषि को लोकप्रिय बनाने के लिए और किसानों को इस क्षेत्र में नवीनतम विकास से अवगत कराने के लिए अनेक नई योजनाएं चलाई हैं. सरकार द्वारा इस संबंध में उठाया गया पहला बड़ा कदम वर्ष २००१ में राष्ट्रीय ऑर्गेनिक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) का कार्यान्वयन था. एनपीओपी में प्रमाणन एजेंसियों का प्रत्यायन कार्यक्रम, ऑर्गेनिक उत्पादन के मानदण्ड और देश में ऑर्गेनिक कृषि का संवर्धन करना शामिल हैं. वर्ष २००४ में राष्ट्रीय ऑर्गेनिक कृषि केन्द्र की गाजियाबाद में स्थापना करना भारत सरकार द्वारा उठाया गया एक बड़ा कदम था. इस केन्द्र में गाजियाबाद में और इसके आठ क्षेत्रीय केन्द्रों- बंगलौर, भुवनेश्वर, पंचकुला, गाजियाबाद, इम्फाल, जबलपुर, नागपुर और पटना में राष्ट्रीय ऑर्गेनिक कृषि परियोजना (एनपीओएफ) को कार्यान्वित किया है. एनसीओएफ विशेष रूप से घरेलू बाजार के लिए उपयुक्त ऑर्गेनिक कृषि के एक प्रकार के नि:शुल्क प्रमाणन कार्यक्रम- सहभागी गारंटी प्रणाली (पीजीएस) के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है. पीजीएस प्रमाणन प्रणाली के ऑनलाइन परिचालन के लिए एक वेब पोर्टल  भी प्रारंभ किया गया है और इसे
पर www.pgsindia-ncof.gov.in देखा जा सकता है.
भारत सरकार विभिन्न योजनाओं अथवा कार्यक्रमों जैसे राष्ट्रीय धारणीय कृषि मिशन/परंपरागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, एकीकृत बागवानी विकास मिशन, राष्ट्रीय तेलहन एवं ऑयल पॉम मिशन और आईसीएआर की ऑर्गेनिक कृषि नेटवर्क परियोजना आदि के माध्यम से भी ऑर्गेनिक कृषि को बढ़ावा दे रही है. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय एनएमएसए के अंतर्गत एक उप-घटक के रूप में ऑर्गेनिक कृषि को बढ़ावा दे रहा है. योजना के अंर्तगत यंत्रीकृत फल एवं सब्जी मंडी कूड़ा, कृषि कूडा कम्पोस्ट एककों को स्थापना करने और लिक्विड कैरियर- बेस्ड बायोफर्टिलाइजर एवं बायोपेस्टीसाइड उत्पादन एककों की स्थापना के लिए वित्तिय सहायता दी जाती है. अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में माननीय सांसदों द्वारा अंगीकार किए गए चुने हुए गांवों में सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत भी ऑर्गेनिक  कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने २०१६ के दौरान गंगटोक (सिक्किम) में राष्ट्रीय ऑर्गेनिक कृषि अनुसंधान संस्थान नामक एक नये अनुसंधान संस्थान की भी स्थापना की है. इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य उत्पादकता, संसाधन उपयोग दक्षता और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कुशल, आर्थिक रूप से व्यवहार्य तथा पर्यावरण की दृष्टि से धारणिय ऑर्गेनिक कृषि प्रणाली पर बुनियादी, नीतिगत और स्वीकारात्मक अनुसंधान करना है. ऑर्गेनिक कृषि के क्षेत्र में उठाया गया एक अन्य महत्वपूर्ण कदम- भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा १८ जनवरी २०१६ को सिक्किम को एक ऑर्गेनिक राज्य के रूप में घोषित करना था. उसके बाद अधिकांश पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम की तरह ऑर्गेनिक कृषि को बढ़ावा देने में रुचि ले रहे हैं. इसके अतिरिक्ति एक केन्द्रीय क्षेत्र की योजना, नामत: पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ऑर्गेनिक मूल्य शृंखला विकास मिशन की स्थापना की गई हैं. जो वर्ष २०१५-१६ से २०१७-१८ के तीन वर्षों के लिए ४०० करोड़ रुपये के परिव्यय पर पूर्वोत्तर क्षेत्र में ऑर्गेनिक कृषि को बढ़ावा देगा.
भारत सरकार देश में ऑर्गेनिक कृषि के अंतर्गत क्षेत्र को बढ़ाने पर भी बल दे रही है. इस कार्य को वर्ष २०१५ में सरकार द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना के माध्यम से पूरा किया जा रहा है. इस योजना का मुख्य उद्देश्य तीन वर्षों में १०,००० समूहों का सजृन करना और लगभग पांच लाख एकड़ कृषि क्षेत्रफल को ऑर्गेनिक कृषि के अंतर्गत लाना है. पांच या अधिक किसान इस योजना के अंतर्गत ऑर्गेनिक कृषि करने के लिए ५० एकड़ भूमि सहित एक समूह बना सकते हैं. प्रत्येक किसान को बीज रोपण से लेकर फसल की कटाई और मंडी में उत्पादों की ढुलाई के लिए २०,००० रुपये प्रति एकड़ सहायता दी जा रही है. ऑर्गेनिक फसलों से लाभ में वृद्धि करने के लिए उन्हें एक वैज्ञानिक पद्धति से उगाना भी महत्वपूर्ण है. इस दिशा में, आईसीएआर की ऑर्गेनिक कृषि नेटवर्क परियोजना, मोदीपुरम (उत्तर प्रदेश) देश के विभिन्न भागों के लिए ऑर्गेनिक फसल की कृषि के लिए नये प्रौद्योगिकीय पैकेजों का विकास करने के लिए सक्रिय रूप से व्यस्त है. इसके अतिरिक्त कुछ अन्य आईसीएआर संस्थान और राज्य कृषि विश्वविद्यालय अपने अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों के माध्यम से ऑर्गेनिक कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं.
ऑर्गेनिक कृषि में अनुसंधान, अध्यापन और विस्तार कार्यों के संचालन के लिए, सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर ने किसानों और अन्य संबंधित व्यक्तियों के लाभ के लिए २००९ में एक नया ऑर्गेनिक कृषि विभाग स्थापित किया है. इसी तरह पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने भी, ऑर्गेनिक तथा एकीकृत कृषि पर वैज्ञानिक ज्ञान के विकास तथा प्रचार-प्रसार के लिए बहुविषयीय अनुसंधान, प्रशिक्षण और विस्तार कार्यों के लिए २०१७  में कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक नये ‘‘ऑर्गेनिक कृषि विद्यालय’’ की स्थापना की है. इस तरह देश में ऑर्गेनिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने शानदार समर्थन दिया है.
अपनी विविध भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के कारण ऑर्गेनिक कृषि लाभप्रद स्थिति में है भारत में बरसाती क्षेत्रों/शुष्क क्षेत्रों/पर्वतीय क्षेत्रों में ऑर्गेनिक कृषि का क्षेत्रफल बढ़ाने की अत्यधिक संभावना है. ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जो पहले से ही ऑर्गेनिकसाथ ही उनमें उनकी उत्पादकता कम है. अनुसंधान परिणामों से सिद्ध हो चुका है कि यदि इन भूमियों का ऑर्गेनिक प्रबंधन किया जाए तो इनसे उत्पादन हो सकता है. इसलिए, ऐसे क्षेत्रों का विशेषत: सूखे की बढ़ती बारंबारता को ध्यान में रखते हुए अधिक से अधिक ऑर्गेनिक कृषि के लिए उपयोग किया जाए. ऑर्गेनिक निविष्टियों और पैदावार (ऑर्गेनिक उत्पादों) के निर्यात एवं विपणन में भी बहुत संभावनाएं हैं. देश में निर्यात के अवसर बढ़ रहे हैं. साथ ही साथ ऑर्गेनिक खाद्य के लिए स्थानीय मांग में भी वृद्धि हो रही है. ऑर्गेनिक उत्पाद जिनका अभी तक मुख्यत: निर्यात किया जाता था अब उनकी मांग घरेलू बाजार में भी बढ़ रही है.
ऑर्गेनिक क्षेत्र में रोज़गार के भी अनेक अवसर है. बेरोजगार व्यक्ति ऑर्गेनिक बीज, ऑर्गेनिक खाद (कूड़ा खाद, कृमि खाद) ऑर्गेनिक उर्वरकों, जैव उर्वरकों और ऑर्गेनिक- कीटनाशकों के उत्पादन एवं विपणन से रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं. व्यक्ति कृषि खाद, जैव उर्वरकों और ऑर्गेनिक, कीटनाशकों के उत्पादन की ईकाइयां आसानी से स्थापित कर सकते है. और स्व-रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं. अनेक सरकारी और निजी संस्थाएं कृषि के क्षेत्र में प्रशिक्षण के अवसर, डिग्री और डिप्लोमा प्रदान कर रहे हैं. कृषि खाद एवं ऑर्गेनिक उर्वरकों के उत्पादन के साथ-साथ ऑर्गेनिक उत्पादों के उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन में भी प्रशिक्षण दिए जा रहे हंै. इस प्रकार कोई भी व्यक्ति किसी विशेष क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त कर सकता है और एक उपयुक्त रोज़गार प्राप्त कर सकता है.
बाधाएं
भारत में ऑर्गेनिक कृषि अपनाने और ऑर्गेनिक कृषि के विस्तार में किसानों एवं अन्य प्राणधारियों द्वारा सामना की जा रही मुख्य बाधाएं निम्न हैं:-
*ऑर्गेनिक बीजों की कमी
*किसान से उपभोक्ता तक प्रभावी विपणन तंत्र की कमी
*कुछ मामलों में कम फसल उत्पादन
*संक्रांतिकाल/परिवर्तन अवधि के दौरान कम आय से ऑर्गेनिक कृषि के विस्तार में बाधा.
*किसानों को ऑर्गेनिक उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना
*भिन्न-भिन्न फसलों, मृदा और जलवायु परिस्थितियों के लिए तकनीकी पैकेज की कमी, ऑर्गेनिक उत्पादन तंत्रों में खरपतवार, कीट-कृषि और रोगों के प्रबंधन हेतु परिस्थिति के अनुकूल तकनीक विकसित करने के लिए और अनुसंधान की आवश्यकता है.
*ऑर्गेनिक खाद और ऑर्गेनिकउर्वरकों की सीमित उपलब्धता
*पी.जी.एस (सहभागिता प्रत्याभूति प्रणाली) और तृतीय पक्ष द्वारा प्रमाणन जैसी प्रमाणन प्रक्रिया में जटिलताएं
*ऑर्गेनिक क्षेत्र में संगठनों के मध्य कमजोर जुड़ाव
*आधारभूत सुविधाओं की कमी
*कुछ निविष्टियों की अधिक लागत
सार
उपभोक्ताओं में ऑर्गेनिक खाद्यों की सुरक्षा और गुणवत्ता, कृषितंत्र की दीर्घकालिक सततता ओर समान उत्पादक होने के प्रमाण से बढ़ रही जागरूकता से अधिक से अधिक किसान ऑर्गेनिक कृषि अपनाएंगे. हाल ही में, घरेलू के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी तेजी से विस्तार हो रहा है. कृषि के आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय लाभों को देखते हुए भारत सरकार ने इसे बहुत बढ़ावा दिया है. भारत सरकार देश में ऑर्गेनिक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक योजनाएं और कार्यक्रम चला रही है. ऑर्गेनिक उत्पादों और निविष्टियों के उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन में ग्रामीण युवाओं के लिए रोज़गार के अनेक अवसर है. फिर भी ऑर्गेनिक कृषि में किसानों और अन्य पणधारियों के सामने आ रही अनेक बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है. भारत में किसानों की संख्या और सरकार के समर्थन को देखते हुए यह आसानी से महसूस किया जा सकता है कि भारत धीरे-धीरे परंतु लगातार ऑर्गेनिक कृषि की ओर बढ़ रहा है.
(लेखक शस्य विज्ञान प्रभाग, आई.सी.ए.आर.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में कृषि विज्ञान प्रभाग में हैं)
(अभिव्यक्त विचार निजी हैं.)