अविनाश मिश्रा
मधुबन्ती दत्ता
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा परिभाषित सामाजिक सुरक्षा में समाज द्वारा व्यक्तियों और परिवारों को प्रदान की जाने वाली सुरक्षा की विस्तृत श्रृंखला शामिल है। इसका प्राथमिक उद्देश्य आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना और आय सुरक्षा की गारंटी देना है, विशेष रूप से बुढ़ापे, बेरोजगारी, बीमारी, विकलांगता, काम से संबंधित चोटों, मातृत्व, या कमाने वाले की मृत्यु जैसी स्थितियों में। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में बीमा, पेंशन, विकलांगता लाभ और बेरोजगारी लाभ सहित विभिन्न लाभ शामिल हैं। इनका उद्देश्य संकट के समय में सुरक्षा प्रदान करते हुए समाज के सभी सदस्यों के लिए आय का बुनियादी स्तर और स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ कराना है। सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा सतत और समावेशी विकास की प्राप्ति से जुड़ी है। यह गरीबी, असमानता और सामाजिक बहिष्कार को कम करने में मदद करती है, व्यक्तियों तथा परिवारों को सम्मानजनक जीवन जीने और अर्थव्यवस्था में योगदान करने के लिए आधार प्रदान करती है। यह अवधारणा, आय सहायता और आवश्यक सेवाओं तक पहुंच प्रदान करके, सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण, आर्थिक स्थिरता और मानव विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सामाजिक सुरक्षा, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति में लोगों को सशक्त बनाने, मानव पूंजी को बढ़ाने और परिवर्तशील समाज बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती है। इससे व्यक्ति शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्यमिता में निवेश करने में सक्षम बनकर आर्थिक उत्पादकता को बढ़ावा देते हंै, साथ ही अप्रत्याशित घटनाओं या आर्थिक मंदी के कारण गरीबी की गर्त में जाने का जोखिम कम होता है। सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा एक साझा जिम्मेदारी है, और इसके सफल कार्यान्वयन के लिए सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के सहयोग की आवश्यकता होती है । हितधारक इनके सहयोग से संयुक्त प्रयासों से, सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मजबूत कर सकते हैं, उनकी स्थिरता सुनिश्चित कर सकते हैं और सतत विकास लक्ष्यों के व्यापक उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान कर सकते हैं। निष्कर्षतः, सामाजिक सुरक्षा, अपनी व्यापक परिभाषा में, सामाजिक न्याय, आर्थिक स्थिरता और सतत विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
संधारणीय दृष्टिकोण
सामाजिक सुरक्षा व्यवस्थाओं की परिवर्तनशीलता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए इसके प्रति संधारणीय वित्तपोषण दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। प्रगतिशील सार्वभौमिकता, संतुलित वित्त पोषण स्रोतों, समावेशी डिजाइन, प्रभावी वितरण तंत्र, साक्ष्य-आधारित नीति, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, लागत-लाभ विश्लेषण और दीर्घकालिक नियोजन के संयोजन से, देश सामाजिक सुरक्षा प्रणालियां बना सकते हैं जो सभी नागरिकों को समान रूप सेे सहायता प्रदान करती हैं और समाज में सबसे कमजोर लोगों की रक्षा करती हैं। सुचारू रूप से वित्तपोषित और दक्षतापूर्वक प्रबंधित सामाजिक सुरक्षा प्रणाली न केवल व्यक्तियों और परिवारों की भलाई को बढ़ाती है बल्कि व्यापक आर्थिक और सामाजिक विकास लक्ष्यों में भी योगदान देती है। सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा के प्रति सतत वित्तपोषण दृष्टिकोण आवश्यक है। चूँकि देश मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणालियां स्थापित करने का प्रयास करते हैं जो कमजोर आबादी के आर्थिक लचीलेपन को बढ़ाती हैं और सभी के लिए एकसमान सुरक्षा प्रदान करती हैं, इसलिए वित्तपोषण संबंधी विचारों पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
1.प्रगतिशील सार्वभौमिकताः
सतत वित्तपोषण दृष्टिकोण प्रगतिशील सार्वभौमिकता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को सबसे अधिक आवश्यकता वाले लोगांे के लिए अतिरिक्त संसाधनों को लक्षित करते हुए सभी नागरिकों को आवश्यक सहायता प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए । सार्वभौमिक कवरेज को लक्षित सहायता के साथ जोड़कर, देश यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर किसी को बुनियादी सामाजिक सुरक्षा सुलभ हो, साथ ही सबसे कमजोर लोगों के लिए सहायता को प्राथमिकता दी जाए।
2. संतुलित वित्त पोषण स्रोतः
वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए, सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को सरकार-प्रायोजित और निजी तौर पर वित्त पोषित योजनाओं के बीच संतुलन बनाना चाहिए। सरकारें सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के वित्तपोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन निजी संस्थाओं, गैर-सरकारी संगठनों और व्यावसायिक क्षेत्र के साथ साझेदारी से धन स्रोतों में विविधता लाने और अधिक लचीला वित्तीय आधार सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
3. समावेशी डिजाइनः
सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के डिजाइन में जनसंख्या की विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों को अनुरूप समाधानों की आवश्यकता हो सकती है, और महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, विकलांग व्यक्तियों तथा अन्य कमजोर समूहों की विशिष्ट परिस्थितियों पर विचार किया जाना चाहिए।
4. प्रभावी अंतिम-मील डिलीवरीः
यह सुनिश्चित करने के लिए कुशल और प्रभावी वितरण तंत्र आवश्यक है कि सामाजिक सुरक्षा का लाभ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से इच्छित लाभार्थियों तक पहुंचे। डिजिटीकरण, सुव्यवस्थित प्रशासनिक प्रक्रियाएं और मजबूत निगरानी प्रणालियां वितरण की दक्षता को बढ़ा सकता हैं और यह सुनिश्चित कर सकता है कि संसाधन उन लोगों तक पहुंचें जिन्हें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
5. साक्ष्य-आधारित नीतिः
एक स्थायी वित्तपोषण दृष्टिकोण को डेटा और साक्ष्य द्वारा सूचित किया जाना चाहिए। सरकारों को अपनी आबादी की जरूरतों और चुनौतियों को सटीक रूप से समझने के लिए अनुसंधान और डेटा संग्रह में निवेश करना चाहिए। साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण से, अधिक लक्षित और लागत प्रभावी सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा मिल सकता है।
6. सार्वजनिक-निजी भागीदारी:
सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से निजी क्षेत्र को शामिल करने से सामाजिक सुरक्षा पहलों का समर्थन करने के लिए अतिरिक्त संसाधन और विशेषज्ञता आ सकती है। निजी संस्थाओं के साथ सहयोग से नवीन वित्तपोषण मॉडल डिजाइन करने और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की पहुंच का विस्तार करने में मदद मिल सकती है।
7. लागत-लाभ विश्लेषणः
सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की लागत-प्रभावशीलता और दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन करना महत्वपूर्ण है। सही लागत-लाभ विश्लेषण करने से सबसे कुशल कार्यक्रमों की पहचान करने और वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए रणनीतिक रूप से संसाधनों को आवंटित करने में मदद मिल सकती है।
8. दीर्घकालिक नियोजनः
सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की योजना जनसांख्यिकीय परिवर्तन, आर्थिक उतार-चढ़ाव और उभरती सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य से बनाई जानी चाहिए। दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाकर, देश ऐसी संधारणीय प्रणालियां बना सकते हैं जो समय के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुकूल हों।
वैश्विक अनुभव बताता है कि जब कई राज्य और केंद्रीय योजनाएं समन्वय के बिना स्वतंत्र रूप से चल रही हों तब सार्वभौमिक और पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है । कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने व्यापक कवरेज के महत्व को पहचाना है और अपने सामाजिक सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम समेकन तथा अभिसरण को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है।
उदाहरण के लिए, ब्राजील जैसे देशों ने विभिन्न योजनाओं को एक सामंजस्यपूर्ण प्रणाली में एकीकृत करके अपनी सामाजिक सुरक्षा पहल को सुव्यवस्थित किया है। यह दृष्टिकोण स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा सेवाओं के प्रावधान के साथ गरीब परिवारों को नकद हस्तांतरण की डिलीवरी को जोड़ता है। यह एकीकरण जरूरतमंद लोगों के लिए अधिक दक्ष और समग्र सहायता प्रणाली प्रदान करता है।
इसी प्रकार, चीन और इंडोनेशिया ने अपने यहां दस से कम राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम लागू करके एक केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया है। इसके विपरीत, भारत ने ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर कई लाभ-अंतरण योजनाओं का प्रबंधन किया है, जिनकी यदि कड़ाई से निगरानी नहीं की गई तो विखंडन और अक्षमताएं हो सकती हैं।
सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सुव्यवस्थित और समेकित करके, देश कई लाभ प्राप्त कर सकते हैंः
1. बढ़ी हुई दक्षताः
एकीकृत प्रणाली प्रशासनिक बोझ और अतिव्यापन को कम करती है, जिससे लागत में बचत होती है और बेहतर संसाधन आवंटन होता है।
2. बेहतर लक्ष्यीकरणः
समेकन से लाभार्थियों की अधिक सटीक पहचान और लक्ष्यीकरण किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सहायता उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
3. बढ़ा हुआ कवरेजः
व्यापक कार्यक्रमों में आबादी के एक बड़े हिस्से को कवर करने की क्षमता है, जिससे बहिष्करण संबंधी त्रुटियां कम हो जाएंगी।
4. समग्र सहायताः
विभिन्न सेवाओं को एकीकृत करने से अधिक व्यापक सहायता संरचना बन सकती है, जो मजबूरी के कई आयामों को संबोधित करेगी।
5. संधारणीयताः
एक समेकित प्रणाली का प्रबंधन, रखरखाव और समय के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलन करना आसान हो सकता है।
हालाँकि, यह जानना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक देश की सामाजिक सुरक्षा आवश्यकताएँ और संदर्भ अलग-अलग हैं। अन्य देशों के सबक मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का डिजाइन और कार्यान्वयन प्रत्येक राष्ट्र के सामने आने वाली विशिष्ट परिस्थितियों और चुनौतियों के अनुरूप होना चाहिए।
अधिक एकीकृत और सुव्यवस्थित सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की ओर बढ़ना एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए सावधानीपूर्वक नियोजन, समन्वय और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। इसमें सुधारों की प्रभावशीलता और सफलता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों, हितधारकों और नागरिक समाज के बीच सहयोग शामिल है।
प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की परिकल्पना देश की आबादी की विविध सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को पहचानने और संबोधित करने के महत्व पर प्रकाश डालती है। भारत जैसे देश के संदर्भ में, जो अपनी विशाल सांस्कृतिक, आर्थिक और क्षेत्रीय विविधता के लिए जाना जाता है, सरकार ने वंचितों के उत्थान, आजीविका बढ़ाने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए कई सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम लागू किए हैं। इन पहलों को जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों को पूरा करने, सामाजिक कल्याण और विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया है।
1. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजनाः
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, एक सामाजिक कल्याण योजना है जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन, मुख्य रूप से एलपीजी प्रदान करना है। यह योजना विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को लकड़ी और कोयले जैसे पारंपरिक खाना पकाने के ईंधन के कारण होने वाले स्वास्थ्य खतरों को संबोधित करने के लिए शुरू की गई थी।
2. राशन वितरण:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) एक खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम है जिसके तहत उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से पात्र लाभार्थियों को सब्सिडी वाला खाद्यान्न प्रदान किया जाता है। यह पहल सुनिश्चित करती है कि आर्थिक रूप से वंचित परिवारों को आवश्यक खाद्य सामग्री किफायती कीमतों पर उपलब्ध हो।
3. मुद्रा (सूक्ष्म इकाई विकास एवं पुनर्वित्त एजेंसी) योजनाः
मुद्रा योजना, सूक्ष्म और लघु उद्यमों को ऋण प्रदान करने के लिए शुरू की गई एक वित्तीय समावेशन योजना है। इसका उद्देश्य छोटे उद्यमियों को सहायता देना और विभिन्न ऋण संस्थानों के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करके स्वरोजगार को बढ़ावा देना है।
4. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाः
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना एक ग्रामीण सड़क संपर्क कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य भारत के दूरदराज और संपर्क से वंचित गांवों तक हर मौसम में सड़क पहुंच प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार और आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए बेहतर संपर्क की सुविधा पर केंद्रित है।
5. प्रधानमंत्री आवास योजना:
प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी और ग्रामीण गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई है। इस पहल का उद्देश्य देश में आवास की कमी को दूर करना और समाज के कमजोर वर्गों के लिए रहने की स्थितियों में सुधार करना है।
6. वृद्धावस्था पेंशनः
जिन वरिष्ठ नागरिकों के पास आय के पर्याप्त साधन नहीं हैं, उनकी सहायता के लिए सरकार राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) जैसी विभिन्न वृद्धावस्था पेंशन योजनाएं प्रदान करती है। ये पेंशन बुजुर्गों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा नैट के रूप में है, जिससे बुढ़ापे में उनकी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
7. आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजनाः
आयुष्मान भारत एक व्यापक स्वास्थ्य बीमा योजना है जिसका उद्देश्य कमजोर परिवारों, विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना है। आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, सूचीबद्ध अस्पतालों में लाभार्थियों को माध्यमिक तथा तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कैशलेस उपचार प्रदान करती है।
8. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रमः
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) में बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विभिन्न पेंशन योजनाएं शामिल हैं। यह लक्षित दृष्टिकोण सबसे कमजोर समूहों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें बुढ़ापे या विकलांगता के दौरान वित्तीय सहायता प्राप्त हो, जिससे उन्हें गरीबी के दायरे में आने से बचाया जा सके।
9. प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजनाः
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) बीमा कवरेज के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा का उदाहरण हैं। ये योजनाएं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को किफायती दुर्घटना और जीवन बीमा प्रदान करती हैं। अप्रत्याशित प्रतिकूलताओं, जैसे दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में, ये बीमा कवर परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं, जिससे चुनौतीपूर्ण समय के दौरान उनका बोझ कम हो जाता है।
10. प्रधानमंत्री जन धन योजनाः
भारत में वित्तीय समावेशन एक बड़ी चुनौती है, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए। प्रधानमंत्री जन धन योजना इस मुद्दे से सीधे निपटने के लिए एक प्रभावी दृष्टिकोण है। इस योजना का उद्देश्य, बैंक सुविधा से वंचित और कम बैंकिंग सुविधा वाले लोगों को बचत खाते, प्रेषण, ऋण, बीमा और पेंशन जैसी बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करके लाखों लोगों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में एकीकृत करना, वित्तीय सुरक्षा को बढ़ावा देना और व्यक्तियों तथा परिवारों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है।
11. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियमः
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) एक ऐतिहासिक पहल है जो सीधे ग्रामीण बेरोजगारी और गरीबी के मुद्दे को संबोधित करती है। भारत की मुख्य रूप से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के अनुरूप, यह योजना प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी देती है, जिससे वे गांवों में उत्पादक संपत्ति बनाते हुए आजीविका कमा सकते हैं। यह योजना न केवल ग्रामीण गरीबों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाती है बल्कि सतत ग्रामीण विकास में भी योगदान देती है।
12. तीन तलाक (तत्काल तलाक) पर प्रतिबंधः
सरकार ने मुस्लिम विवाह में तत्काल तलाक (तीन तलाक) की प्रथा को अपराध घोषित करने के लिए कानून बनाया। यह कानून मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की रक्षा और तलाक के संदर्भ में स्त्री-पुरुष समानता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था।
निष्कर्ष
व्यक्तिगत कल्याण योजनाओं से, एकीकृत सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में परिवर्तन, भारत में सामाजिक सुरक्षा के भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है। इस परिवर्तन का उद्देश्य व्यापक और सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण बनाना है जो खंडित पहलों से दूर जाकर विभिन्न सामाजिक और आर्थिक कमजोरियों को संबोधित करता है। इस दृष्टिकोण में अधिक एकीकरण, सार्वभौमिकता और डेटा-संचालित दक्षता शामिल है, जो सभी नागरिकों के लिए आवश्यक सेवाओं तक निर्बाध पहुंच को सक्षम बनाती है। योजनाओं से प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत एक टिकाऊ और प्रभावी ढांचा बनाना चाहता है जो इसकी आबादी की विविध आवश्यकताओं को पूरा करता हो।
(अविनाश मिश्रा, नीति आयोग, भारत सरकार में सलाहकार और मधुबन्ती दत्ता वहां यंग प्रोफेशनल हैं । व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं और रोजगार समाचार के आधिकारिक दृष्टिकोण या नीति कोे प्रतिबिंबित नहीं करते । इस लेख के बारे में आप अपनी प्रतिक्रिया feedback.employmentnews@gmail.com पर भेज सकते हैं। )