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संपादकीय लेख


Issue no 18, 29 July - 04 August 2023

रीतेश कुमार भारत और फ्रांस ने भारत की स्वतंत्रता की शताब्दी के महत्वपूर्ण अवसर से पहले अगले 25 वर्षों में परस्पर सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए ’होरिज़ाॅन 2047’ नामक रोडमैप तैयार किया है। इसके अतिरिक्त, यह पहल भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी के उल्लेखनीय 50-वर्षों की उपलब्धियों के स्मरणोत्सव के संदर्भ में भी है। यह दूरदर्शी दृष्टिकोण दोनों देशों के रिश्ते को और भी अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए तैयार है। इस रोडमैप की घोषणा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की हाल की पेरिस यात्रा के दौरान की गई। इसने रक्षा, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा परिवर्तन, अंतरिक्ष सहयोग, समुद्री अर्थव्यवस्था, बहुपक्षवाद और आतंकवाद से निपटने के क्षेत्रों सहित विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत गठबंधन के लिए आधार तैयार किया। ’होरिज़ाॅन 2047’ तीन महत्वपूर्ण स्तंभों पर जोर देते हुए गतिशील वैश्विक परिदृश्य को विचारपूर्वक संबोधित करता हैः (1) सुरक्षा और संप्रभुता के लिए भागीेदारी (2) ग्रह के लिए भागीेदारी (3) लोगों के लिए भागीेदारी । यूरोप में भारत के सबसे महत्वपूर्ण भागीेदार फ्रांस के साथ संबंधों के भविष्य के प्रक्षेप पथ को आकार देने में ये तीनों स्तंभ सर्वोपरि महत्व रखते हैं। रक्षा सहयोगः भारत और फ्रांस के बीच लंबे समय से चली आ रही रणनीतिक भागीेदारी के आलोक में, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि रक्षा समझौतों ने अगले 25 वर्षों के दृष्टिकोण में एक केंद्रीय स्थान ले लिया है। विशेष रूप से, रूस के बाद फ्रांस भारत को हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। यूक्रेन में संघर्ष के कारण रूस के घटते सैन्य संसाधनों को देखते हुए, यह संभावना है कि यह सहयोग और बढ़ेेगा। हाल में भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल लड़ाकू जेट की खरीद के केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के समर्थन से भी यह पता चलता है। भारत आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग और तकनीकी आधार स्थापित करने के अपने प्रयास में फ्रांस को एक महत्वपूर्ण भागीदार मानता है। दोनों देशों का लक्ष्य उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के सह-विकास और सह-उत्पादन में सहयोग करना है, साथ ही अन्य देशों को लाभ पहुंचाने पर विशेष ध्यान देना है। सैन्य उड्डयन के क्षेत्र में, भारत और फ्रांस के बीच पांच दशकों से अधिक लंबे सहयोग का समृद्ध इतिहास है। फ्रांस का राफेल विमान पहले से ही भारत की सैन्य विमानन क्षमताओं का अभिन्न अंग बन चुका है। भविष्य को देखते हुए, दोनों देश लड़ाकू विमान इंजन के संयुक्त विकास में सहयोग करके अपने अभूतपूर्व रक्षा सहयोग का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा, वे सफ्रान हेलीकॉप्टर इंजन, फ्रांस की भागीदारी के साथ, भारतीय मल्टी रोल हेलीकॉप्टर (आईएमआरएच) कार्यक्रम के तहत हैवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टरों के लिए प्रणोदन प्रणाली प्रदान करने की परियोजना में भी लगे हुए हैं। ये पहल परस्पर विश्वास को बढ़ावा देती हैं और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती हैं, जो सफल भारत-फ्रांसीसी साझेदारी का उदाहरण है। भारत का सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) दृष्टिकोण राष्ट्रपति मैक्रोन की इंडो-पैसिफिक रणनीति के अनुरूप है। दृष्टिकोणों का यह अभिसरण व्यापक सहयोग, विशेषकर समुद्री सुरक्षा और नौसैनिक सहयोग के लिए एक मजबूत आधार बनाता है। भारत और फ्रांस पहले से ही इंडियन ओशन नेवल सिम्पोज़ियम (आईओएनएस), जिबूती कोड आॅफ कंडक्ट और एशिया में जहाजों पर समुद्री तथा सशस्त्र डकैती से निपटने पर क्षेत्रीय सहयोग समझौते (आरईसीएएपी) जैसी पहलों के माध्यम से समुद्री समन्वय में सफल रहे हैं। फ्रांस संयुक्त समुद्री बलों (सीएमएफ) में शामिल होने की भारत की आकांक्षा का भी समर्थन करता है। रसद सहायता समझौता और भारत-प्रशांत महासागर पहल का संयुक्त अनुसरण इस समुद्री सुरक्षा साझेदारी को मजबूत करता है। स्कॉर्पीन पनडुब्बी निर्माण कार्यक्रम (पी75 - कलवरी), भारत की ’मेक इन इंडिया’ पहल और भारत तथा फ्रांस के बीच नौसैनिक विशेषज्ञता के आदान-प्रदान का एक शानदार उदाहरण है। आगे और विकास की संभावना को पहचानते हुए, दोनों राष्ट्रों ने भारत के पनडुब्बी बेड़े के विकास और निष्पादन को बढ़ाने के लिए और अधिक महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का पता लगाने की इच्छा व्यक्त की हैं। भारत और फ्रांस के बीच सहयोग विशिष्ट परियोजनाओं से आगे बढ़कर व्यापक रक्षा औद्योगिक भागीेदारी तक फैला हुआ है। उल्लेखनीय उदाहरणों में शक्ति इंजन की फोर्जिंग और कास्टिंग प्रक्रियाओं से संबंधित प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए सफ्रान हेलीकॉप्टर इंजन और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच चल रहा अनुबंध शामिल है। इसके अतिरिक्त, सतही जहाजों के क्षेत्र में गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जीआरएसई) और नेवल ग्रुप फ्रांस के बीच सहयोग रक्षा औद्योगिक साझेदारी की गहराई और संभावनाओं पर प्रकाश डालता है। इन आकांक्षाओं के अनुरूप, भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) का तकनीकी कार्यालय जल्द ही पेरिस में स्थापित किया जाएगा। यह कार्यालय तकनीकी सहयोग और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के केंद्र के रूप में काम करेगा। साझा हित, हिंद-प्रशांत के लिए साझा दृष्टिकोणः प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की यात्रा ने न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किया, बल्कि हिंद-प्रशांत के लिए फ्रांस की रणनीतिक दृष्टि में भारत की केंद्रीय भूमिका पर भी जोर दिया। भारत और फ्रांस दोनों हिंद-प्रशांत अवधारणा के प्रति प्रतिबद्ध हैं, जो इस क्षेत्र में उनके सहयोग की आधारशिला है। यह संरेखण राजनीतिक और वैचारिक आयामों से परे है, जिसमें रणनीतिक स्वायत्तता, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था और व्यापक भौगोलिक समझ में एकसमान विश्वास शामिल है। अन्य देशों में जहां हिंद-प्रशांत की अलग-अलग परिभाषाएं हैं, वहीं भारत और फ्रांस का एकसमान व्यापक दृष्टिकोण है जो अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमरीका के पश्चिमी तट तक फैला हुआ है। इसलिए, एकसमान विचारधारा वाले भागीेदारों के साथ त्रिपक्षीय सहयोग, जिसका उदाहरण संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ बातचीत है, उनके हिंद-प्रशांत सहयोग का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। हिंद-प्रशांत त्रिकोणीय सहयोग (आईपीटीडीसी) फंड की स्थापना के माध्यम से, भारत और फ्रांस का लक्ष्य क्षेत्र के तीसरे देशों से जलवायु और सतत विकास लक्ष्य-केंद्रित नवाचारों और स्टार्ट-अप का समर्थन करना है, जिससे हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह पहल न केवल व्यवहार्य और पारदर्शी फंडिंग विकल्प प्रदान करती है बल्कि भारत-ईयू कनेक्टिविटी साझेदारी की आधारशिला के रूप में भी कार्य करती है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों में विकास सहयोग बढ़ाने का भारत और फ्रांस का एकसमान उद्देश्य है। इसमें अफ्रीका, हिंद महासागर क्षेत्र, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सहयोग शामिल है। भारत और फ्रांस दोनों हिंद-प्रशांत में स्थिरता और सुरक्षा के महत्व को समझते हैं, जहां वैश्विक व्यापार का एक बड़ा हिस्सा संचालित होता है और चीन की मुखर कार्रवाइयां चिंताएं बढ़ाती हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले 1.5 मिलियन फ्रांसीसी नागरिकों के साथ, फ्रांस सबसे सक्रिय यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरा है। जबकि भारत लगातार पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, जो आंशिक रूप से चीन पर चिंताओं से प्रेरित हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूरोपीय देशों को अपनी आर्थिक निर्भरता में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया। भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखा जाता है जो चीन को आर्थिक रूप से और सुरक्षा प्रदाता दोनों के रूप में संतुलित करने में सक्षम है और यूरोपीय शक्तियों के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में उभरा है। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच गहरी होती प्रतिद्वंद्विता ने भारत और फ्रांस जैसी मध्य शक्तियों को भी बहुध्रुवीय दुनिया के लिए प्रयास करते हुए अधिक सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए मजबूर किया है। अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों को सुरक्षित रखने, समृद्धि तथा स्थिरता को बढ़ावा देने, अंतरराष्ट्रीय कानून के शासन को आगे बढ़ाने और संतुलित तथा स्थिर क्षेत्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने की साझा प्रतिबद्धता के साथ, भारत और फ्रांस हिंद-प्रशांत में अपने सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका ध्यान विशेष रूप से, न्यू कैलेडोनिया और फ्रेंच पोलिनेशिया जैसे फ्रांसीसी क्षेत्रों की भागीदारी के साथ प्रशांत तक फैला हुआ है, जो साझेदारी के लिए उनके व्यापक दृष्टिकोण को उजागर करता है। भारत और फ्रांस द्वारा शुरू किया गया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। दोनों देशों का मानना है कि सोलर एक्स चैलेंज परियोजना से हिंद-प्रशांत में स्टार्ट-अप को लाभ होगा। इसके अलावा, वे हिंद-प्रशांत पार्क पार्टनरशिप और प्रशांत देशों पर केंद्रित मैंग्रोव संरक्षण जैसी पहल का समर्थन करते हैं। भारत-फ्रांस हिंद-प्रशांत त्रिकोणीय विकास सहयोग कोष की स्थापना का उद्देश्य विकास सहयोग को मजबूत करना है, जबकि आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन में साझेदारी, विशेष रूप से छोटे द्वीप देशों में लचीलापन और स्थिरता के निर्माण में योगदान करती है। हिंद महासागर रिम एसोसिएशन और इंडियन ओशन नेवल सिंपोज़ियम जैसे क्षेत्रों में एक साथ काम करके, भारत और फ्रांस क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि में योगदान करते हैं। भारत और फ्रांस इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं और शैक्षिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भी समर्पित हैं। वे हिंद-प्रशांत के लिए इंडो-फ्रेंचं हेल्थ कैंपस स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, जो अनुसंधान और शिक्षा के लिए एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में काम करेगा। हिंद महासागर में सफल अनुभव के आधार पर, ज्ञान के आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देते हुए, परिसर को प्रशांत द्वीप के नागरिकों के लिए खोला जा सकता है। विदेश नीति में स्वायत्तता को महत्व देनाः ’रणनीतिक स्वायत्तता’ की खोज ने भारत और फ्रांस की विदेश नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, साथ ही आपसी समर्थन और सहयोग को भी बढ़ावा दिया है। भारत ने स्वतंत्रता के बाद के वर्षों से, विशेषकर शीत युद्ध के दौरान, इस अवधारणा को अपनाया है, जबकि फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रॉन ने यूरोपीय स्तर पर इसकी जोरदार हिमायत की। भारत को 1998 में जब परमाणु हथियार संपन्न देश बनने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों से प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा तब भी फ्रांस ने ऐतिहासिक रूप से भारत के प्रति स्वतंत्र रुख बनाए रखा है। वास्तव में, उस समय भी फ्रांस भारत के साथ बातचीत में शामिल होने वाला पहला पश्चिमी देश था। उसी वर्ष दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी की स्थापना ने उनके स्थायी बंधन की नींव रखी और आज भी फल-फूल रहा है। स्वतंत्र विकल्प चुनने के भारत के अधिकार को फ्रांस की मान्यता ने रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे मुद्दों पर अलग-अलग रवैये के बावजूद असहमति के संभावित क्षेत्रों पर काबू पाने में मदद की है। यही कारण है कि उनकी संयुक्त विज्ञप्ति में बताया गया है, यह रिश्ता प्रतिकूल परिस्थितियों में लचीला और अवसरों का लाभ उठाने में महत्वाकांक्षी साबित हुआ है। वैश्विक प्रगति के लिए बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करनाः भारत और फ्रांस दोनों बहुपक्षवाद को फिर से जीवंत और मजबूत करने वाले व्यापक सुधारों की हिमायत के लिए एक ऐसी वैश्विक संचालन व्यवस्था को आकार देने के लिए प्रतिबद्ध हंै जो हमारी दुनिया की समकालीन वास्तविकताओं के साथ प्रतिध्वनित होती है। ये, उनके साझा दृष्टिकोण के केंद्र में सुरक्षा परिषद में सुधार की अनिवार्यता है, जिससे इसे और अधिक समावेशी तथा हमारे वैश्विक परिदृश्य को आकार देने वाली विविध आवाजों और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधि बनाया जा सके। जी4 की साख और भारत के बहुमूल्य योगदान में दृढ़ विश्वास के साथ, भारत और फ्रांस नए स्थायी सदस्यों के शामिल होने के पक्ष में हैं, जिससे सुरक्षा परिषद के भीतर शक्ति का अधिक न्यायसंगत संतुलन कायम हो सके। इसके अलावा, अफ्रीकी प्रतिनिधित्व में वृद्धि की तत्काल आवश्यकता को मान्यता देेते हुए, वे परिषद के स्थायी सदस्यों के बीच अफ्रीकी महाद्वीप से अधिक भागीदारी का समर्थन करते हैं। इसके अलावा, दोनों देश सामूहिक अत्याचारों की स्थिति में वीटो शक्ति के उपयोग के नियमन पर बातचीत शुरू करने के महत्व पर जोर देते हैं। वे इसके लिए यह सुनिश्चित करने पर बल देते हैं कि यह विशेषाधिकार गंभीर मानवीय पीड़ा को दूर करने के ठोस प्रयासों में बाधा न बने। नई वैश्विक वित्तीय संधि के लिए शिखर सम्मेलन से उभरे पेरिस एजेंडे को अपनाते हुए, भारत और फ्रांस विकास को आगे बढ़ाने और पर्यावरण की सुरक्षा करने वाले मजबूत उपायों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हैं। इन दो महत्वपूर्ण पहलुओं की परस्पर जुड़ी प्रकृति को पहचानते हुए, वे व्यापक कार्यों की वकालत करते हैं जो हमारे ग्रह को संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करते हुए सतत विकास को बढ़ावा देते हैं। अपने प्रयासों को पेरिस एजेंडे के साथ जोड़कर, भारत और फ्रांस गंभीर वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देते हैं, एक ऐसी दुनिया को बढ़ावा देते हैं जो विकास, समानता और पर्यावरणीय प्रबंधन के सिद्धांतों पर पनपती है। जलवायु चुनौतियों से निपटनाः भारत और फ्रांस, कट्टर सहयोगी के रूप में, दृढ़ प्रतिबद्धता के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरों से निपटने के लिए एकजुट हुए हैं। उनकी साझेदारी निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और पेरिस जलवायु समझौते तथा सतत विकास लक्ष्यों के उद्देश्यों को प्राप्त करने पर केंद्रित है। साथ में, वे ऊर्जा सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा सहित स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देते हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, वे इंडो-पैसिफिक पार्क पार्टनरशिप , इंटरनेशनल सोलर अलायंस, जैव विविधता की रक्षा, समुद्री अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने और जलवायु वित्त को बढ़ावा देने जैसी पहलों के माध्यम से सतत विकास का समर्थन करते हैं। डीकार्बोनेटेड हाइड्रोजन उत्पादन में नवाचार और सौर तथा पन- बिजली समाधानों को बढ़ावा देने के साथ-साथ आपदा लचीलेपन में सहयोग को मजबूत करना और जलवायु से संबंधित खतरों से निपटने संबंधी उपाय एक साझा प्राथमिकता है। ऊर्जा दक्षता, सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल, टिकाऊ मत्स्य पालन और प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण के उपाय भी सहयोग के प्रमुख क्षेत्र हैं। दोनों देशों का लक्ष्य अपनी जलवायु महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाना और 2050 या 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन डाइआॅक्साइड उत्सर्जन की स्थिति हासिल करना है, जबकि शहरी परिवर्तन, अपशिष्ट प्रबंधन और चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं तथा सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने के लिए टिकाऊ परिवहन पर एक साथ काम करना है। प्रगति और स्वतंत्रता के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोगः भारत और फ्रांस दोनों के लिए, वैज्ञानिक प्रगति एक प्राथमिकता है। इसलिए, दोनों देश अंतरिक्ष, डिजिटल प्रौद्योगिकी, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों, ऊर्जा, पारिस्थितिक तथा शहरी परिवर्तन और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत-फ्रांस संयुक्त रणनीतिक समिति द्वारा समर्थित इस मोर्चे पर अधिक सहयोग को बढ़ावा देने के अपने संकल्प पर दृढ़ हैं। एआई पर वैश्विक साझेदारी के तहत सुपरकंप्यूटिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग, एआई और क्वांटम प्रौद्योगिकियों सहित महत्वपूर्ण डिजिटल प्रौद्योगिकियों में सहयोग किया जाता है। दोनों देशों का लक्ष्य जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों के नवाचार और औद्योगिक अनुप्रयोगों को बढ़ाना है। वे स्वास्थ्य और चिकित्सा में सहयोग बढ़ा रहे हैं, जिसमें डिजिटल स्वास्थ्य, स्वास्थ्य सेवाओें के लिए एआई, जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा अपशिष्ट उपचार शामिल हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्वास्थ्य के लिए भारत-फ्रांसीसी परिसर स्वास्थ्य क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करता है। साइबर सहयोग, डिजिटल विनियमन और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) के प्रति प्रतिबद्धता सुरक्षित, खुले और समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति उनके समर्पण को रेखांकित करती है। स्टार्टअप, नवाचार और रोजगार सृजन तथा उद्यमशीलता नेटवर्क के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र और सहयोग के माध्यम से, भारत और फ्रांस डिजिटल युग में नागरिकों को सशक्त बनाते हैं। फ्रांस में भारत के यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) का कार्यान्वयन डिजिटल परिवर्तन को अपनाने और इस मोर्चे पर सहयोग करने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। प्रौद्योगिकी, बाजार और गवर्नेंस का लाभ उठाते हुए, उनका लक्ष्य सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना और हिंद-प्रशांत तथा अफ्रीका जैसे क्षेत्रों के देशों के साथ अपने दृष्टिकोण को साझा करना है। अंतरिक्ष के महत्व को बढ़ानाः भारत और फ्रांस ने एक रणनीतिक गठबंधन बनाते हुए अंतरिक्ष क्षेत्र में गहन सहयोग की राह पर कदम बढ़ाया है जो पारस्परिक लाभ और उल्लेखनीय उपलब्धियों का वादा करता है। इस सहयोग के मूल में दो महत्वपूर्ण धुरी हैं- वैज्ञानिक तथा वाणिज्यिक साझेदारी और अंतरिक्ष तक पहुंच का लचीलापन। इन क्षेत्रों के भीतर, तृष्णा मिशन, अंतरिक्ष जलवायु वेधशाला के तहत गतिविधियां, मंगल और शुक्र ग्रह के लिए अंतरिक्ष अन्वेषण मिशन, समुद्री निगरानी पहल और गगनयान कार्यक्रम जिसमें मानवयुक्त उड़ानें शामिल हैं, जैसे उल्लेखनीय प्रयास इस परिवर्तनकारी साझेदारी का आधार बनते हैं। इसके अतिरिक्त, वाणिज्यिक प्रक्षेपण सेवाओं में एनएसआईएल और एरियनस्पेस के संयुक्त प्रयास अंतरिक्ष अन्वेषण की वाणिज्यिक क्षमता को आगे बढ़ाने के लिए साझा प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। इसके अलावा, भारत और फ्रांस अपने तालमेल को मजबूत करने और अंतरिक्ष तक उनकी संप्रभु पहुंच को मजबूत करने वाली भविष्योन्मुखी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं । इस सहयोग की दीर्घायु और प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए, हाल ही में संस्थापित द्विपक्षीय रणनीतिक अंतरिक्ष वार्ता, अंतरिक्ष अन्वेषण के लगातार विकसित हो रहे क्षेत्र में निरंतर प्रगति और नवाचार की सुविधा प्रदान करते हुए निरंतर जुड़ाव के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में कार्य करती है। व्यापार संबंधः फ्रांस 2021-22 में 12.42 बिलियन डॉलर के वार्षिक व्यापार के साथ भारत का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है। अप्रैल 2000 से जून 2022 तक 10.31 बिलियन डॉलर के संचयी निवेश के साथ यह भारत में 11वां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है, जो भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह का 1.70 प्रतिशत निवेश करता है। जर्मनी के साथ भारत के मजबूत आर्थिक संबंधों की तुलना में, फ्रांस एक निवेशक और द्विपक्षीय व्यापार भागीदार के रूप में उससे पीछे है। यद्यपि दोनों आर्थिक शक्तियों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है लेकिन यह अब भी अपनी क्षमता से कम है। इस असमानता को दूर करने के प्रयास किए गए हैं, जिसमें हाल की यात्रा के दौरान आयोजित सीईओ फोरम भी शामिल है, फिर भी यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौते का निष्कर्ष अधिकतम व्यापार क्षमता को बढ़ाने की कुंजी है। दोनों देशों के बीच लचीली मूल्य श्रृंखलाओं और निवेश को सुविधाजनक बनाने पर ध्यान देने के साथ व्यापार और निवेश भी उनकी साझेदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत और फ्रांस निर्यातकों और निवेशकों के सामने आने वाली बाजार कठिनाइयों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और वे संबंधों को मजबूत करने और कंपनियों को एक-दूसरे की अर्थव्यवस्थाओं में गतिविधियों का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लोगों के बीच संबंधः विशेष रूप से युवाओं के लाभ के लिए जीवंत आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए, भारत और फ्रांस ने मजबूत साझेदारी शुरू की है। शिक्षा के क्षेत्र में, भारत और फ्रांस शैक्षणिक संबंधों को मजबूत करने, छात्र आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। फ्रांस का लक्ष्य बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों का स्वागत करना है, जो किसी मान्यता प्राप्त फ्रांसीसी विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री पूरी करने वालों के लिए पांच साल की वैधता वाले शेंगेन वीजा की पेशकश करता है। दोनों देश भाषाई सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी प्राथमिकता देते हैं, एक-दूसरे की भाषाओं के शिक्षण को बढ़ावा देते हैं और कलाकारों तथा लेखकों के लिए दीर्घकालिक प्रवास का समर्थन करते हैं। दोनों देशों ने संग्रहालय तथा विरासत, सिनेमा, कला, साहित्य, भाषा और खेल जैसे क्षेत्रों में सहयोग को और बढ़ाने के लिए रोडमैप तैयार किया है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दोनों देशो के बीच संबंधों को सुविधाजनक बनाने के लिए दूतावास संबंधी सेवाओं का विस्तार करना जारी रखा हैं। (लेखक एक अंतरराष्ट्रीय समाचार मंच के दिल्ली संवाददाता हैं। लेख पर अपनी प्रतिक्रिया आप हमें feedback.employmentnews@gmail.com पर भेज सकते हैं) व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।