रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Issue no 17, 22-28 July 2023

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में किसानों के कल्याण के लिए समर्पित 3,70,000 करोड़ रुपये के व्यापक पैकेज की घोषणा की। इस ऐतिहासिक पैकेज में चार प्रमुख घटक शामिल हैं जो हमारे किसानों को सशक्त बनाने, कृषि क्षेत्र को मजबूत करने और सभी के लिए समृद्ध भविष्य सुरक्षित करने का वादा करते हैं। 28 जून को पैकेज की घोषणा के बाद रसायन और उर्वरक,स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने रोजगार समाचार टीम से बात की और कहा कि पहल के कार्यान्वयन के लिए केंद्र सरकार जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए तमाम तरह के कदमों को उठा रही है। जिसमें उर्वरक, रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना और मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरण पर उनके प्रतिकूल प्रभावों को कम करना शामिल है। आइए साक्षात्कार पर हम एक नजर डालते हैं- प्रश्न- भारत में खाद्यान्न उत्पादन की उन्नति के लिए किसानों के लिए हाल ही में घोषित 3,70,000 करोड़ रुपये के पैकेज का कार्यान्वयन कितना महत्वपूर्ण है, साथ ही, खाद्य सुरक्षा संरक्षण और हमारे कृषक समुदाय की आय में क्या वृद्धि भी हुई है? उत्तर- सबसे पहले, इस कल्याणकारी पहल के लिए मैं प्रधानमंत्री जी का अभिनंदन करना चाहूंगा। लास्ट कैबिनेट में प्रधानमंत्रीजी ने 3 लाख 70 हजार करोड़ रुपए का किसानों के हित में एक विशेष पैकेज दिया है। इस पैकेज में कुल 4 कंपोनेंट हैं, 1- हमारे किसानों के लिए उपयोगी यूरिया, उसकी सब्सिडी 3 साल के लिए सुनिश्चित कर दी गई है ताकि, किसान को यूरिया की सब्सिडी में कोई दिक्कत न रहे और कोई कंफ्यूजन न रहे। 2- एक PM-PRANAM (Promotion Of Alternative Nutrients For Agriculture Management) योजना का अनाउंसमेंट हुआ है। ये जो योजना है वो राज्यों में अल्टरनेट फर्टिलाइजर को बढ़ावा देने के लिए, केमिकल फर्टिलाइजर के कंजम्शन को कम करने के लिए राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में केमिकल फर्टिलाइजर का जितना उपयोग कम करेंगे, उसमें से जो सब्सिडी बचेगी उसका 50 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को सौंप दिया जाएगा। जिससे राज्य को बहुत बड़ा आर्थिक फायदा होना है ताकि वो अपने राज्य में अल्टरनेट फर्टिलाइजर को बढ़ावा दें। 3- Market Development Assistent Scheme. 'गोबरधन योजना' के तहत गोबर से बनने वाली गैस यानी कि बायो गैस प्लांट बन रहे हैं। बायो गैस प्लांट से जो गैस निकलेगी उससे CNG बनाकर गैस कंपनियां बेच देंगी। लेकिन, उसमें जो खाद निकलता है जिसे हम SLLURY कहते हैं एक अच्छा Organic Fertilizer होता है। एक Organic Fertilizer को बाजार में बेचने के लिए एक मीट्रिक टन पर 1500 रुपए की सब्सिडी दी जाएगी। जिसके लिए 1 हजार 451 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है ताकि देश में बायो गैस प्लांट बनें। पैकेज का चौथा कंपोनेंट था जैसे पहले कन्वेंशनल यूरिया था, बाद में मोदीजी नीम कोटिंग यूरिया लाए फिर नैनो यूरिया आया अभी यूरिया का चौथा ग्रेड यूरिया गोल्ड आ गया है वो है सल्फर कोटिंग यूरिया। इन चार कंपोनेंट्स का उपयोग होने से किसानों की आय बढ़ेगी। हमारी मिट्टी की सेहत बढ़ेगी, उत्पादन क्षमता बढ़ेगी। जिससे किसानों के जीवन में बहुत बदलाव आएगा। इस उद्देश्य के साथ स्कीम को इकट्ठा करके एक पैकेज के रूप में 3 लाख 70 हजार रुपए की व्यवस्था की गई है जिससे हमारा भविष्य अच्छा हो। प्रश्न- विश्व भर में उर्वरकों खासतौर से यूरिया के दामों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान काफी बढ़ोत्तरी हुई है, किसानों को इनकी बढ़ती कीमतों से राहत देने के लिए सरकार की तरफ से जो प्रयास किए जा रहे हैं, उसमें यूरिया सब्सिडी स्कीम की एक अहम भूमिका है। इस स्कीम के तहत अब तक क्या-क्या कदम उठाए गए हैं या उठाए जाएंगे जिससे आने वाले समय में किसानों को उचित दामों में उर्वरकों की आपूर्ति की जा सके। उत्तर- महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी सरकार ने पिछले 9 वर्षों में फर्टिलाइजर्स का दाम नहीं बढ़ाया है। लेकिन, एक समय आया और फर्टिलाइजर की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ीं जैसा आपने कहा, यूरिया की इंटरनेशनल कीमत बढ़कर 950 डॉलर हो गई थी। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमत बढ़कर 950 डॉलर हो जाना मतलब एक बैग की कीमत हो गई 4 हजार रुपया। जबकि हम किसानों को केवल 266 रुपए में देते हैं तो एक बेग पर 3690 रुपए की सब्सि़डी हो गई, 350 रुपए की सब्सिडी हो गई जो कोई छोटी बात नहीं है। हमने प्रति बैग 3700 रुपए तक की सब्सिडी दी है लेकिन किसान की जेब पर हमने भार नहीं आने दिया। वैसे DAP (Diammonium Phosphate) के एक बैग की कीमत मार्केट में बढ़कर 4,000 रुपया हो गई थी लेकिन किसानों को 1350 रुपए में मिलती है। हमने 2500 रुपए की सब्सिडी एक बैग पर दी है। हमने दो रास्ते अपनाए- किसानों को खाद भी मिलता रहे और साथ-साथ में किसानों में जागरूकता भी रहे और वह अल्टरनेट फर्टिलाइजर की ओर भी रुख करे. जब हम जागरूकता और वैकल्पिक फर्टिलाइजर पर जाने की बात कर रहे हैं तो वह भी होना चाहिए। उसमें से देश में नीम कोटिंग यूरिया, नैनो यूरिया, सल्फर कोटिंग यूरिया आया जोकि अल्टरनेट फर्टिलाइजर के रूप में हैं, PROM आज मार्केट में उपलब्ध है, जैसा मैंने पहले उल्लेख किया था कि जब SLURRY निकलती है तो थोड़ा सा फॉस्फोरस रिच कर देते हैं तो PROM बन जाता है और किसानों के लिए यह बहुत उपयोगी होता है। इन सभी के ऊपर Indian Agriculture Research Institute स्टडी करते हैं, और उसमें यदि जरूरत पड़ती है तो मार्केट में लाते हैं। आज बाजारों में अल्टरनेट फर्टिलाइजर हम पर्याप्त मात्रा में लाए और केमिकल फर्टिलाइजर्स के उपयोग को कम करने के लिए एक मुहिम चलाई है। प्रश्न- देश में यूरिया के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार की ओर से क्या-क्या प्रयास किए जा रहे हैं। देश को कब तक यूरिया के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है? उत्तर- मोदीजी के नेतृत्व में देश आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है। आज हिंदुस्तान को औसतन 350 लाख मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता होती है। जब 2014 में हमारी सरकार बनी तब 235-240 लाख मीट्रिक टन यूरिया ही देश में बनता था, बाकी लगभग 90 लाख टन तक यूरिया हमें अन्य देशों से Import करना पड़ता था। हमने लक्ष्य रखा कि साल 2026 तक हमें यूरिया का Import शून्य कर देना है, तो कैसे करें? 1-हमें यहां प्लांट लगाना पड़ेगा। 2-यूरिया का कंजम्पशन कम करना होगा। प्राथमिक आधार पर हमने पिछले 7 सालों में कुल छः प्लांट (चंबल का प्लांट, मैट्रिक्स का प्लांट, रामागोंड्ड्म प्लांट , गोरखपुर फर्टिलाइजर प्लांट, सिन्द्री फर्टिलाइजर प्लांट, बरौनी फर्टिलाइजर प्लांट) लगे और सातवां प्लांट थोड़े दिन में लगकर तैयार हो जाएगा। जिनमें से एक प्लांट्स की कैपेसिटी है 13 लाख मीट्रिक टन। हमने 70-80 लाख मीट्रिक टन यूरिया के अतिरिक्त उत्पादन की क्षमता पैदा कर दी। दूसरा, इस यूरिया की जगह पर अल्टरनेट यूरिया कंजंम्शनल यूरिया को रिप्लेस करेगा तो हमें Import नहीं करना पड़ेगा। दिसंबर 2026 तक हम यूरिया उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएंगे। प्रश्न- रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से मिट्टी की गुणवत्ता को हानि पहुंचती है। ऐसे में रासायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल को रोकने और इसकी खपत को कम करने में PM-PRANAM योजना किस प्रकार मददगार साबित होगी? उत्तर- ये आपका बहुत अच्छा प्रश्न है। मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है, मैं तो स्वास्थ्य मंत्री हूं। जैसे हमारी सेहत बिगड़ती है वैसे ही मिट्टी की भी सेहत बिगड़ती है और धीरे-धीरे हमने असंतुलित फर्टिलाइजर्स का इस्तेमाल किया, एक्सेस फर्टिलाइजर्स का इस्तेमाल किया, जिससे नतीजा ये निकला कि मिट्टी ने रिएक्शन करना शुरू कर दिया। धरती हमारी माता है उसके ऊपर केमिकल फर्टिलाइजर्स के रूप में अत्याचार हो रहा है। ऐसा हम फील कर रहे हैं और मिट्टी भी ऐसा ही बोल रही है। मैं आपको पंजाब का एक उदाहरण देता हूं। साल 2017-18 से 2022-23 के दौरान वहां 17 फीसदी फसल उपज कम हुई। 10 प्रतिशत फर्टिलाइजर्स के कंजंम्शन का उत्पादन बढ़ा, तो फर्टिलाइजर एक्सेस हो गया और सेचुरेटेड हो गया, प्रोडक्शन सेचुरेट होकर देश के कई हिस्सों में एक साथ गिरने लगा। जहां फर्टिलाइजर्स का अधिक उपयोग है, वहां रिएक्शन चालू हुआ है। तो उसके लिए हमें केमिकल फर्टिलाइजर्स का इस्तेमाल नियंत्रित करना होगा। हमने प्रधानमंत्री जी के सामने जब ये विषय रखा तो उन्होंने PM-PRANAM योजना घोषित की। इस योजना का आशय है कि राज्य केमिकल फर्टिलाइजर के इस्तेमाल को कम करेंगे। भारत सरकार केवल यहां से बोलती रहेगी कि केमिकल फर्टिलाइजर्स का उपयोग कम करो नहीं होगा। क्योंकि किसान तो राज्य में हैं तो राज्यों को ही प्रयास करने पड़ेंगे, स्टेट और सेंट्रल दोनों साथ में मिलकर काम करेंगे। उदाहरण के तौर पर गुजरात 30 लाख मीट्रिक टन केमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करता है, लेकिन उन्होंने राज्य में अल्टरनेट फर्टिलाइजर को प्रोत्साहित किया, नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दिया। ये सब करने से उन्होंने 5 लाख मीट्रिक टन केमिकल फर्टिलाइजर का उत्पादन कम कर दिया है। जिससे अगर 4 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी बचती है तो हम 2 हजार करोड़ रुपए राज्यों को पास ऑन कर देंगे ताकि राज्यों द्वारा इन पैसों का उपयोग करके और अल्टरनेट फर्टिलाइजर को बढ़ावा देने के लिए सहयोग मिलेगा। राज्य सरकारें अन्य योजनाओं में भी उसका उपयोग कर पाएंगी। राज्य सरकार जनता और किसानों की जागरूकता के लिए तमाम कार्यक्रम चला पाएंगे, तो हमने एक केंद्र बनाया। दूसरा हमने देश में 1 लाख 28 हजार पीएम किसान समृद्धि केंद्र(PMKSK) चालू किए हैं। जहां पर All Type Of Agriculture Material ( जैसे Fertilizer, Pestisides, Organic Fertilizer Etc.) मिलता है। किसानों को अगर मिट्टी का परीक्षण कराना है तो भी वहां व्यवस्था होती है। सरकार की किसी भी योजना का यदि लाभ किसी किसान को लेना है तो फॉर्म फाइल भी हो जाता है। प्रत्येक सरकारी योजनाओं का Implementation और लाभ मिलता है। वहां पर भी हम Public Awareness करते हैं। हमने उन्हें Agriculture Universities और कृषि विज्ञान केंद्र से जोड़ दिया है। वहां के वैज्ञानिक किसान समृद्धि केंद्र पर आकर किसानों के साथ संवाद करते हैं, जिससे हमें बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। मुझे पक्का विश्वास है हम PM-PRANAM योजना से केमिकल फर्टिलाइजर के उपयोग को नियंत्रित कर पाएंगे और मिट्टी की सेहत को बचाने में कामयाबी हासिल करेंगे। राज्य सरकारों के कृषि मंत्रियों के साथ मीटिंग में इसे सराहा गया और सभी ने उचित सहयोग का आश्वासन भी दिया ताकि देश में केमिकल फर्टिलाइजर का कंजमशन कम हो सके। प्रश्न- रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों को देखते हुए ऑर्गेनिक उर्वरकों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। केंद्र सरकार की ओर से क्या-क्या कदम इस दिशा में उठाए जा रहे हैं? हाल ही में घोषित Market Assistent Scheme इसमें क्या भूमिका निभाएगी। उत्तर- ये स्कीम हम इसलिए लाए हैं कि किसान की आय बढ़े क्योंकि, किसान अपनी फसल पकाकर बेचते हैं। जिससे उनकी एक Income तो हो गई लेकिन वो पशुपालन भी करते हैं तो उसके यहां पशुओं से जो गोबर होता है तो उसका भी दाम मिलना चाहिए। वो गोबर बेचे तो उससे भी Income हो, गोबर बेचेंगे कहां? बड़ा बायो गैस प्लांट लगे। जहां किसान अपने पशुओं के गोबर को बेचे जिससे उसकी आय के स्रोत में वृद्धि होगी और वहां बायो गैस पैदा होगा। बायो गैस को CNG को परिवर्तित करके गैस कंपनियों को बेच दिया जाएगा लेकिन उसमें से जो SLURRY निकलती है जो एक प्रकार का ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर है, उससे फायदा ये होगा कि गोबरधन प्लांट सक्सेस हो जाएगा। जिससे किसानों के पशुओं का गोबर भी बिकता रहेगा तो उसकी ये भी इनकम हो जाएगी। हमें ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर, ग्रीन गैस मिलेगी जिससे कई फायदे होंगे। इसलिए राज्य सरकार इसका अपने राज्य के किसानों के लिए उपयोग करे और ऐसे कई प्लांट लगे हैं। बजट में भी इसकी घोषणा की गई है कि 500 हम बायोगैस प्लांट लगा रहे हैं, गोवर्धन प्लांट लगा रहे हैं। इन प्लांट्स को सर्वाइवल करने के लिए भी यह उपयोगी है। इस उद्देश्य के साथ ही Market Development Scheme लायी गई है। प्रश्न- हाल ही में IFFCO ने एक अमरीकी कंपनी के साथ समझौता किया है, जिसके तहत Nano Liquid Urea का निर्यात किया जाएगा। नैनो यूरिया का निर्यात किस तरह आने वाले समय में भारत को वैश्विक फर्टिलाइजर सप्लाई चेन में एक अहम कड़ी के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा? उत्तर- यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है। नैनो यूरिया भारत की रिसर्च है और भारतीय कंपनियों ने ही इसका उत्पादन किया है। इफको के अलावा एक और कंपनी ने इस पर रिसर्च की है और इसका उत्पादन चालू किया है। आज 17 करोड़ बोतल बनाने की क्षमता इन प्लांट्स से हो गई है। 2025 अंत तक 9 प्लांट बनने वाले हैं। तब जाकर 44 करोड़ बोतल की क्षमता हो जाएगी। Nano Urea की विशेषता यह है एक बैग कंवेंशनल यूरिया को को एक 500 ML लिक्विड बोतल में पैक कर दिया है। एक बैग कंवेंशनल यूरिया 500 मिली. नैनो यूरिया और उसको स्प्रे किया जाता है। दूसरी विशेषता यह है कि जब हम उसको छिड़कते हैं तो 80 प्रतिशत फसल उसको सोख लेती है। वहीं जब हम सामान्य यूरिया का उपयोग करते हैं तो केवल 30 फीसदी ही सोख पाती है बाकी मिट्टी और हवा में चला जाता है। जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है और ज्यादा अवशोषित करता है। नैनो लिक्विड यूरिया सस्ता भी है और पर्यावरण अनुकूल भी है। नैनो यूरिया देश के लिए एक Proud है और इसका उपयोग भी देश में होने लगा है लेकिन दुनिया में उसकी डिमांड भी बढ़ी है। दुनिया भी चाहती है कि हमारे यहां नैनो यूरिया आए और उसका उपयोग करें अमरीका समेत कई देशों ने नैनो यूरिया मांगा है। जैसे-जैसे देश में इसकी अधिकता हो जाएगी वैसे ही इसके निर्यात की अनुमति दी जाएगी। जिससे दुनिया को भी ग्रीन उर्वरक का लाभ मिल सके।