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संपादकीय लेख


Issue no 16, 15-21 July 2023

सुजीत यादव भारत-मिस्र संबंधों में हालिया घटनाक्रम पारस्‍परिक साझेदारी को मज़बूत करने और अवसरों की खोज के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता की ओर संकेत करते हैं। चुनौतियों से सावधानीपूर्वक निपटने और यथार्थवादी उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करके, दोनों देश मजबूत संबंध स्‍थापित कर सकते हैं जो तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य में उनके अपने हितों के अनुरूप हो। भारत और मिस्र के मध्‍य गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) के प्रारंभिक काल से ऐतिहासिक संबंध हैं। हालाँकि, बाद के वर्षों में राजनीतिक उथल-पुथल और विदेश नीति की प्राथमिकताओं में बदलाव ने उनके संबंधों में दूरियाँ पैदा कर दीं। पिछले दो वर्षों में, भारत और मिस्र लगातार द्विपक्षीय सहयोग बढ़ा रहे हैं। इस सकारात्मक वातावरण को भारत के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और सैन्य प्रमुखों की यात्राओं से गति मिली, जिसके परिणामस्वरूप प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की हाल की काहिरा यात्रा हुई। इस यात्रा को भारत की पश्चिम एशिया नीति में एक रणनीतिक समायोजन के रूप में देखा जा रहा है, जो क्षेत्र के आर्थिक, राजनीतिक और प्रवासी पहलुओं पर इसके बढ़ते फोकस को दर्शाता है। भारत और मिस्र के मध्‍य इस समय यह बेहतर रिश्ता काफी हद तक मिस्र की क्षेत्रीय गतिशीलता, पड़ोसी देशों के साथ इसके वार्तालाप और बृहत इस्लामी दुनिया के भीतर इसकी स्थिति से तय होता दिखाई देता है। मिस्र ने 2010 में अरब में तनाव के दौरान महत्वपूर्ण राजनीतिक उथल-पुथल का अनुभव किया, जिसके कारण राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को सत्‍ता से हटना पड़ा जो 30 साल से शासन में थे। मिस्र के राजनीतिक परिदृश्य में मुस्लिम ब्रदरहुड का उदय हुआ, जिससे भारत सहित कई देशों के लिए चिंताएँ बढ़ गईं। हालाँकि, मुस्लिम ब्रदरहुड सत्‍ता के निष्कासन और राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी के अबू धाबी और रियाद के साथ नए संबंधों ने भारत को काहिरा के साथ अपने संबंध फिर से मजबूत करने और बदलती गतिशीलता का फायदा उठाने का अवसर प्रदान कर दिया। वर्तमान में भारत के बढ़ते आर्थिक प्रभाव को इसके दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाला देश, और यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़ते हुए पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में इसकी स्थिति के साथ परिभाषित किया गया है। इस बीच, मिस्र अफ्रीका में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का स्थान रखता है और शीर्ष रैंक के लिए नाइजीरिया के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है। मिस्र खुद को व्यापार और विनिर्माण गतिविधियों के लिए एक आशाजनक केंद्र के रूप में प्रस्तुत करता है, जो अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र के ढांचे के भीतर अफ्रीकी बाजारों तक पहुंचने के लिए दिल्ली के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। यह मिस्र को एक अपरिहार्य केंद्र के रूप में स्थापित करता है, जो भारत को अपनी उपस्थिति कायम करने और पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में वाणिज्यिक प्रयासों में शामिल होने के लिए एक रणनीतिक अवसर प्रदान करता है। इस पृष्ठभूमि में, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी के बीच द्विपक्षीय सहयोग को "रणनीतिक साझेदारी" के स्तर तक बढ़ाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर ने दोनों देशों के बीच नए सिरे से सहयोग और साझेदारी के लिए एक मजबूत नींव रखी है। कृषि, प्रौद्योगिकी, रक्षा, हरित वित्त, दक्षिण-से-दक्षिण सहयोग और आतंकवाद तथा हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करने जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोगात्मक अवसर मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, मिस्र की सेना को आईटी समाधान और प्रौद्योगिकी प्रदान करने की बहुत संभावना है। हालाँकि, यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि सैन्य संबंधों के विस्तार के लिए मिस्र की सेना के भीतर विश्वास और स्वीकृति बनाने की एक क्रमिक प्रक्रिया की आवश्यकता है, जो ऐतिहासिक रूप से अमेरिकी सैन्य सहायता पर निर्भर रही है और अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकियों को अपनाती रही है। इस साझेदारी में सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों के बीच संबंध जैसे गैर-मूर्त पहलू भी शामिल हैं। सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर जोर दिए जाने से पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है और आतिथ्य तथा पर्यटन क्षेत्रों में सहयोग के अवसर पैदा हो सकते हैं। भू-राजनीतिक महत्व: भारत और मिस्र अरब सागर के विपरीत किनारों पर स्थित हैं, और लाल सागर में मिस्र की प्रमुख उपस्थिति और स्वेज नहर पर नियंत्रण भारत के लिए भू-राजनीतिक महत्व रखता है। स्वेज नहर भूमध्य सागर और लाल सागर के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है, जो यूरोप और अमेरिका की वैश्विक बाजारों तक पहुंच को सक्षम बनाती है। इसने मिस्र को भारत के लिए एक रणनीतिक भागीदार बनाया है, जिससे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यापार और कनेक्टिविटी की सुविधा मिलती है। आर्थिक पहलू: भारत और मिस्र अगले पांच वर्षों के भीतर 12 अरब अमरीकी डालर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं। विश्व स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के नाते, भारत अपनी विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार करना चाहता है और मिस्र को कच्चे माल और ऊर्जा संसाधनों के लिए संभावित बाजार और आयात के स्रोत के रूप में देखता है। वर्तमान में, भारत मिस्र का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जबकि मिस्र भारत का 32वां व्यापारिक साझेदार है। वित्त वर्ष 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार में मामूली कमी के बावजूद अभी भी वृद्धि की काफी संभावनाएं हैं। 2022-23 में दोनों देशों के बीच व्यापार 6.06 अरब डॉलर (ईजीपी 187.2 अरब) था, जो 2021-22 में 7.26 अरब डॉलर (ईजीपी 139.4 अरब) के पिछले रिकॉर्ड के उच्च स्तर के साथ था। भारत और मिस्र दोनों का लक्ष्य अगले पांच वर्षों के भीतर 12 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को हासिल करना है, जो व्यापार संबंधों को बढ़ाने की उनकी प्रतिबद्धता को उजागर करता है। भारतीय कंपनियों ने मिस्र में निवेश में उल्लेखनीय रुचि दिखाई है। पिछले छह महीनों में, भारतीय कंपनियों ने मिस्र में बुनियादी ढांचे के विकास, सड़क और परिवहन, दूरसंचार, शिक्षा और तेजी से बढ़ते ऊर्जा क्षेत्र सहित विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 17 अरब डॉलर का निवेश किया है। यह मिस्र की आर्थिक वृद्धि और क्षमता में भारतीय व्यवसायों के भरोसे को दर्शाता है, जबकि अवसरों की व्यापक श्रृंखला को प्रदर्शित करता है जिसे दोनों देश पारस्परिक लाभ के लिए तलाश सकते हैं। मिस्र की भूमध्य सागर में गैस क्षेत्रों की महत्वपूर्ण खोजों ने इस देश को भारत के लिए ऊर्जा के संभावित स्रोत के रूप में स्थापित किया है। बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत को स्थिर ऊर्जा आपूर्ति की आवश्यकता है और मिस्र के प्राकृतिक गैस संसाधन इस मांग को पूरा करने में मदद कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, मिस्र का व्‍यापक कृषि क्षेत्र भारत को अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए गेहूं जैसे कच्चे माल का आयात करने का अवसर प्रदान करता है। रक्षा और सुरक्षा सहयोग: मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में बदलती गतिशीलता के कारण मिस्र नए अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा भागीदारों की तलाश कर रहा है। मिस्र को घरेलू और वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ-साथ पड़ोसी देशों में संघर्षों से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए, मिस्र उन्नत हथियार, प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण प्राप्त करके अपने सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने का इच्छुक है। भारत, अपनी बढ़ती रक्षा विनिर्माण क्षमताओं के साथ, मिस्र के लिए एक आकर्षक भागीदार बन गया है। दोनों देशों ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किये हैं, और मिस्र ने तेजस हल्के लड़ाकू विमान, रडार और सैन्य हेलीकॉप्टर सहित भारतीय रक्षा उपकरणों की खरीद में रुचि दिखाई है। हालाँकि, कुछ चुनौतियाँ हैं जिनका भारत और मिस्र के बीच सफल रक्षा सहयोग के लिए समाधान करने की आवश्यकता है। भारत अभी भी अपनी रक्षा विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने के शुरुआती चरण में है और उसे अपने लॉजिस्टिक समर्थन और गुणवत्ता आश्वासन को बढ़ाने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त, भारतीय उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय रक्षा व्यापार बाजार में और अधिक प्रतिस्पर्धी बनने का प्रयास करने की आवश्यकता है, जहां प्रमुख खिलाड़ी मुख्य रूप से अमेरिका, यूरोप और रूस में स्थित हैं। इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए निरंतर जुड़ाव, बाहरी निर्माताओं के साथ बेहतर सहयोग, अनुसंधान और विकास के लिए निवेश में वृद्धि और क्षेत्र में सर्वोत्तम व्‍यवहारों को अपनाने की आवश्यकता होगी। समुद्री सुरक्षा: सुरक्षा की दृष्टि से हिंद महासागर और लाल सागर आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं। भारत के लिए हिंद महासागर की सुरक्षा का सीधा संबंध लाल सागर की सुरक्षा से है, जिस पर मिस्र का नियंत्रण है। इसी तरह, मिस्र मानता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की एक महत्वपूर्ण धमनी स्वेज़ नहर की सुरक्षा हिंद महासागर में सुरक्षा स्थिति से प्रभावित है। यह पारस्परिक निर्भरता भारत और मिस्र के बीच समुद्री सुरक्षा में सहयोग और साझेदारी की आवश्यकता पर जोर देती है। अपने समुद्री संबंधों के विस्‍तार पर भारत के बढ़ते जोर के साथ, मिस्र की रणनीतिक स्थिति और प्रमुख जलमार्गों पर नियंत्रण इसे भारत के लिए एक मूल्यवान भागीदार बनाता है। इसके कारण, दोनों देश इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं। संयुक्त नौसैनिक अभ्यास और सूचनाओं के आदान-प्रदान ने समुद्री डकैती, तस्करी और अन्य समुद्री ख़तरों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने मिस्र के नौसैनिकों को प्रशिक्षण, विशेषकर तटीय निगरानी प्रणालियों में विशेषज्ञता प्रदान की है। समुद्री निगरानी में मिस्र की क्षमताओं को बढ़ाकर, भारत लाल सागर क्षेत्र की समग्र सुरक्षा में योगदान देता है। मिस्र की रणनीतिक स्थिति और प्रमुख समुद्री मार्गों पर नियंत्रण को देखते हुए, मिस्र के साथ समुद्री संबंधों को मजबूत करना भारत के लिए महत्वपूर्ण है। संयुक्त नौसैनिक अभ्यास, सूचना साझा करने और क्षमता निर्माण पहल सहित मौजूदा सहयोग ने पहले ही क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने में योगदान दिया है। चूंकि भारत का लक्ष्य यूरोप और अमेरिका में अपने निर्यात को बढ़ावा देना है, इसलिए एक पुल और केंद्र के रूप में मिस्र की भूमिका का तेजी से लाभ उठाना महत्वपूर्ण हो गया है। इसलिए, भारत को महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों की स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिस्र के साथ अपने समुद्री सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ करने के रास्तों की तलाश जारी रखनी चाहिए। निष्कर्ष: वर्तमान में, भारत और मिस्र खुद को ऐसी दुनिया में पाते हैं जहां उनके हित अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के साथ सुरक्षित स्थान बनाए रखने और यूक्रेन के साथ रूस के संघर्ष के बीच अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में संरेखित हैं। हालाँकि, यह संरेखण जटिलताओं के बिना नहीं आता है, क्योंकि संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे देश भी बहु-ध्रुवीय व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आकांक्षा रखते हैं। हालांकि प्रमुख शक्तियों को संतुलित करने के लिए हितों का एक अस्थायी संरेखण हो सकता है, वैश्विक व्यवस्था के भीतर इन देशों के बीच अनिवार्य रूप से प्रतिस्पर्धा की एक अंतर्निहित धारा होगी। कुछ विचारों के विपरीत, यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हानिकारक होने के बजाय सकारात्मक परिणाम लेकर आ सकती है। (लेखक दिल्‍ली स्थित एक पत्रकार हैं। उनसे sujeetkjourno@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है) व्‍यक्‍त विचार उनके अपने हैं।