रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Issue no 16, 15-21 July 2023

रोज़गार समाचार टीम परिवर्तनकारी पहल ’सहकार से समृद्धि’ का उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में सहकारी समितियों की क्षमता का उपयोग करना है। केंद्रीय सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने इस दूरदर्शी आंदोलन को कार्यान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रोज़गार समाचार टीम के साथ विशेष साक्षात्कार में, मंत्रीजी ने इस पहल के प्रमुख उद्देश्यों, कार्यनीतियों और प्रभावों की चर्चा की है और इस बात पर प्रकाश डाला है कि यह पहल, कैसे सहकारिता क्षेत्र में क्रांति ला रही है और अधिक समृद्ध तथा समावेशी अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर रही है। प्रश्नः एक नई सहकारिता नीति बनाई जा रही है। इस नई नीति का उद्देश्य क्या हासिल करना है और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ? उत्तरः इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें थोड़ा और गहराई में जाना होगा। हमें इस प्रश्न का उत्तर देना होगा कि आखिर सहकारिता मंत्रालय की आवश्यकता क्यों पड़ी। इसके निर्माण के पीछे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण का कौन सा प्रमुख सूत्र निहित है? देखो! पिछले नौ वर्षों में भारत ने आर्थिक मोर्चे पर बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। चाहे वह 11वीं से, 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रैंक तक पहुंचना हो या तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बनना हो, हमने कई क्षेत्रों में बड़ी ऊंचाइयां हासिल की हैं। मोदीजी की आर्थिक नीतियों का मुख्य सिद्धांत जिसने इस आश्चर्यजनक सफलता की कहानी को संभव बनाया है वह भारत की जनता का सशक्तिकरण है। मोदीजी द्वारा परिकल्पित विकास की दृष्टि, एक सामान्य भारतीय, हमारे समाज के एक वर्ग, जिसकी क्षमता को पिछली सरकारों द्वारा हमेशा नजरअंदाज किया गया था, उसकी सहयोगात्मक शक्ति का उपयोग करने से उत्पन्न होती है। मोदी सरकार के दौरान नीति निर्माण में इस वर्ग को जिस प्रकार संबोधित किया गया, उससे एक आदर्श बदलाव आया है। मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई वित्तीय समावेशन योजना ने जहां हमारे वित्तीय संस्थानों को मजबूत किया, वहीं स्टार्ट-अप इंडिया ने हमारे युवाओं की कल्पना को प्रज्वलित किया। इस बारे में मैं बहुत कुछ बता सकता हूं, लेकिन यहां इसकी आवश्यकता नहीं है। सहकारिता मंत्रालय का गठन सुधार का एक महत्वपूर्ण चरण है जो अर्थव्यवस्था को वैश्विक रैंकिंग की सीढ़ी पर नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए आवश्यक है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक पंचायत या नगर पालिका में प्रत्येक परिवार सहकारी समितियों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में योगदान देकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बने। इसे प्राप्त करने के लिए, परिवारों को रॉकेट विज्ञान का ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। वे केवल खेती और पशुपालन जैसे पहले से मौजूद अवसरों और कौशल का दोहन करके ऐसा कर सकते हैं। उनके पास मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी तरीके से दोहन करने के लिए ढेर सारे अवसर खुलेंगे। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, राष्ट्र को एक सुविचारित नीतिगत ढांचे की आवश्यकता थी जो न केवल जनता को सशक्त और सक्षम बनाएगा बल्कि उनके लक्ष्यों को राष्ट्र के साथ समाहित भी करेगा। सहकारिता के समृद्ध भारतीय इतिहास और इसकी अंतर्निहित सामाजिक-आर्थिक क्षमता के बावजूद, यह क्षेत्र स्वतंत्र शासन प्रणाली के पिछले सात दशकों के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग शासन संरचना सुनिश्चित नहीं कर सका। निरंतर प्रगति तथा समृद्धि और जन आकांक्षाओं की पूर्ति की बढ़ती आवश्यकता ने हमारे माननीय प्रधान मंत्री को एक अलग प्रशासनिक मंत्रालय बनाने के लिए प्रेरित किया। प्रचलित नीति भी इस संबंध में अपर्याप्त पाई गई है। इसलिए इसके स्थान पर नई नीति की परिकल्पना की गई है। प्र. क्या आप यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि नई नीति सहकारी क्षेत्र को नई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाने का प्रयास करेगी? उत्तरः बिल्कुल। प्र. लेकिन सहकारी क्षेत्र अभी जिस प्रारंभिक अवस्था में है, उसे देखते हुए क्या यह अभी तक दूर की कौड़ी वाला विचार नहीं लगता है? उत्तरः मुझे लगता है कि हमें इसी पर विश्वास करना सिखाया जाता है। मोदी सरकार का शासन मॉडल पुरानी विश्वास प्रणालियों को तोड़कर उनकी जगह नई प्रणाली स्थापित करने और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के बारे में है। हमारी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि हम न केवल नई नीतियां बनाते हैं बल्कि अंतिम छोर तक उनका सफल कार्यान्वयन भी सुनिश्चित करते हैं। हमारी धारणा के विपरीत, सहकारिता क्षेत्र भारत के विकास इंजन का एक मजबूत घटक है। एक क्षेत्र के रूप में यह एक सदी से भी अधिक पुराने इतिहास के साथ भारत के सबसे पुराने क्षेत्रों में से एक है। केंद्र सरकार द्वारा 6 जुलाई 2021 को इसके विकास के लिए समर्पित एक नया सहकारिता मंत्रालय गठित करने के बाद ही इसे मान्यता मिली। हालाँकि, अर्थव्यवस्था में सहकारी क्षेत्र का योगदान हमेशा पर्याप्त रहा है। कृषि ऋण वितरण अर्थव्यवस्था में 19 प्रतिशत योगदान देता है। इसी प्रकार, उर्वरक वितरण का 35 प्रतिशत, उर्वरक उत्पादन का 25 प्रतिशत, चीनी उत्पादन का 31 प्रतिशत, कताई का 29 प्रतिशत, दूध की खरीद तथा उत्पादन का 9 प्रतिशत, गेहूं खरीद का 13 प्रतिशत, धान खरीद का 20 प्रतिशत योगदान है। 21 प्रतिशत का योगदान मछुआरों की सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है। अब इसे देश के कोने-कोने तक अपनी जड़ें फैलाने के लिए सरकार की ओर से मदद की जरूरत है। नए मंत्रालय के गठन और नई नीति के निर्माण के साथ हम बिल्कुल यही करने की कोशिश कर रहे हैं। प्र. क्या आप हमारे पाठकों को, सहकारी क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाने के लिए मंत्रालय की यात्रा की संभावित रूपरेखा के बारे में भी बता सकते हैं? उत्तरः माननीय प्रधानमंत्री का नारा ’सहकार से समृद्धि’ इस पथ पर हमारा मार्गदर्शक बना रहेगा। मंत्रालय एक अलग प्रशासनिक कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करके और देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करके सहकारी समितियों की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने पर विशेष ध्यान देगा और समर्पित संसाधन प्रदान करेगा। इससे सहकारिता को एक सच्चे जन-आधारित आंदोलन के रूप में जमीनी स्तर तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। हमारे देश में, सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल, जिसमें प्रत्येक सदस्य जिम्मेदारी, समावेशिता और एकजुटता की भावना के साथ काम करता है, बहुत प्रासंगिक है। मंत्रालय, सहकारी समितियों के लिए ’कारोबार सुगमता’ सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने पर काम करेगा। सहकारी क्षेत्र में सुविधाजनक, पारदर्शी और उपयुक्त वातावरण की पहचान के माध्यम से हम सहकारिता के मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता किए बिना बहु-राज्य सहकारी समितियों (एमएससीएस) सहित सहकारी समितियों के गठन और सतत विकास के लिए एक सक्षम प्रणाली बनाएंगे। इसके प्रमुख लक्ष्यों में, अन्य बातों के अलावा, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में सहकारी समितियों का समान विकास तथा प्रसार सुनिश्चित करना, सहकारिता-आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देना, उनकी छिपी क्षमता को अनुकूलित करने के लिए जमीनी स्तर पर सहकारी समितियों के प्रभावी कामकाज को सुनिश्चित करना और राष्ट्र के समावेशी तथा सतत विकास की गारंटी देना शामिल है। नवीकृत सामूहिक प्रयासों की ऊर्जा काफी हद तक भारत के सहयोग के शाश्वत सिद्धांतों -सहजीवन (सामंजस्यपूर्ण ढंग से एक साथ रहना), स्वदेशी (मेक इन इंडिया), स्वनिर्भर (आत्मनिर्भरता) और समृद्धि पर आधारित होगी। प्र. सहकारी आंदोलन को जमीनी स्तर तक फैलाने की अनिवार्यता को देखते हुए, मंत्रालय को बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाने की आवश्यकता होगी। क्या आप मंत्रालय द्वारा अपनाए गए प्रचार उपायों पर भी कुछ प्रकाश डाल सकते हैं? उत्तरः हमने देश में सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। हम अब तक इससे वंचित प्रत्येक पंचायत/गांव में व्यवहार्य तथा जीवंत प्राथमिक कृषि ऋण समितियों/डेयरी सहकारी समितियां और प्रत्येक तटीय पंचायत/गांव के साथ-साथ बड़े जल निकायों वाले पंचायत/गांव में व्यवहार्य मत्स्य पालन सहकारी समितियां स्थापित करने जा रहे हैं। हम मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से मौजूदा प्राथमिक कृषि ऋण समितियों /डेयरी/मत्स्य सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। हम सहकारिता मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों के लिंकेज की पहचान करने पर काम कर रहे हैं, जिसके तहत सहकारिता मंत्रालय इन मंत्रालयों की विभिन्न योजनाओं को निम्नतम स्तर का ग्रॉस रूट कनेक्ट प्रदान करता है, जो न केवल उनके कार्यक्रम कार्यान्वयन को मजबूत करता है, बल्कि सहकारी क्षेत्र भी इन लिंकेज के माध्यम से खुद को समृद्ध करता है। अगले पांच वर्षों में, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी), राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी), नाबार्ड और अन्य संबद्ध एजेंसियों के परामर्श से अतिरिक्त 2 लाख प्राथमिक कृषि ऋण समितियां, डेयरी और मछली पकड़ने वाली सहकारी समितियां बनाने की योजना है। सहकारिता मंत्रालय नौ विशिष्ट समयबद्ध कार्यों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है जिनमें शामिल हैं- सहकारिता से समृद्धि तक के दृष्टिकोण को साकार करना, सहकारिता आंदोलन को मजबूत करना, जमीनी स्तर तक इसकी पहुंच को गहरा करना, सहकारिता -आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देना, जिसमें देश के विकास के लिए इसके सदस्यों के बीच जिम्मेदारी की भावना शामिल है और सहकारी समितियों को उनकी क्षमता का एहसास करने और नीतिगत, कानूनी तथा संस्थागत ढांचा बनाने में मदद करने के लिए उपयुक्त है। प्र. अन्य सहकारी समितियों के अलावा सहकारी बैंकों को भी मजबूत करने की आवश्यकता है। विशेषकर, कानूनी बाधाओं के कारण पूंजी निर्माण को एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जाता है। क्या आप इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए मंत्रालय की पहल के बारे में कुछ जानकारी दे सकते हैं? उत्तरः भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अधिक ऋण देने की अनुमति देकर इस क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए नए उपाय पेश किए हैं। रिजर्व बैंक के नए नियमों के मुताबिक, अब शहरी सहकारी बैंकों के लिए व्यक्तिगत आवास ऋण की सीमा दोगुनी कर दी गई है। टियर-1 यूसीबी के लिए यह सीमा 30 लाख रुपये से बढ़ाकर 60 लाख रुपये और टियर-2 यूसीबी के लिए 70 लाख रुपये से बढ़ाकर 140 लाख रुपये कर दी गई है। 100 करोड़ रुपये से कम निवल संपत्ति वाले ग्रामीण सहकारी बैंकों के लिए यह सीमा 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये और 100 करोड़ रुपये से अधिक निवल संपत्ति वाले बैंकों के लिए सीमा 30 लाख रुपये से बढ़ाकर 75 लाख रुपये कर दी गई है। इसी प्रकार, ग्रामीण सहकारी बैंक, वाणिज्यिक रियल एस्टेट - आवासीय क्षेत्र को ऋण दे सकते हैं। यहां तक कि शहरी सहकारी बैंक भी अब वाणिज्यिक बैंकों के समान अपने ग्राहकों को डोर स्टेप बैंकिंग प्रदान कर सकते हैं। अधिक ऋण स्वीकृत करने के अधिकार से ग्रामीण और अर्ध-शहरी समाजों में पूंजी निर्माण प्रक्रिया में तेजी आने के साथ-साथ समाज के निचले तबके में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की संभावना है। रिज़र्व बैंक का यह कदम क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के पूंजी निर्माण से सीधे जुड़ने के कदम से मेल खाता है। ट्रस्ट ने गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (एनएसयूसीबी), राज्य सहकारी बैंकों और जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) को एक योजना के तहत सदस्य ऋण संस्थानों (एमएलआई) के रूप में शामिल किया है जो सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को दिए गए कोलेट्रल- मुक्त ऋणों के लिए गारंटी प्रदान करता है। मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि इन नए नीतिगत निर्णयों से सहकारी क्षेत्र में एक मजबूत बैंकिंग बुनियादी ढांचा तैयार होगा और यह सुनिश्चित होगा कि सहकारी बैंक भारत के बैंकिंग क्षेत्र की रीढ़ बनें और ग्रामीण लोगों के वित्तीय समावेशन का ज़रिया बनें। प्र. सहकारिता नीति पर फिर से वापस आते हैं... चूँकि मंत्रालय स्वयं नीति में आमूल-चूल परिवर्तन करने के विचार पर काम कर रहा है, तो हम उससे किस प्रकार के नए बदलावों की उम्मीद कर सकते हैं? उत्तरः तैयार की जा रही नीति का लक्ष्य चार व्यापक उद्देश्यों को प्राप्त करना है जिन्हें संक्षिप्त नाम टीम के साथ प्रकट किया जा सकता है। यहां अंग्रेज़ी के अक्षर टी का मतलब है राजनीति से ऊपर उठकर ट्रांसपेरेंसी यानी पारदर्शिता और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना, ई का मतलब है ग्रामीण-गांव-किसान का एम्पावरमेंट यानी सशक्तिकरण, ए का अर्थ है आत्मनिर्भर यानी कृषि-बैंकिंग- एसएमई को आत्मनिर्भर बनाना और एम का मतलब है माॅडर्न यानी आधुनिक तकनीक और कंप्यूटरीकरण से लैस प्रणाली के लक्ष्य का प्रतिनिधित्व करता है । नई नीति में कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कम्प्यूटरीकरण से इनकी प्रभावकारिता को बढ़ाने की परिकल्पना की जाएगी। इसमें करीब 13 करोड़ किसान सदस्य के रूप में शामिल हैं। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि उत्तराखंड ने पहले ही अपनी प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का शत-प्रतिशत कंप्यूटरीकरण कर लक्ष्य हासिल कर लिया है। प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के माध्यम से दिए जाने वाले केसीसी ऋण में से 95 प्रतिशत ऋण छोटे और सीमांत किसानों को दिए जाते हैं। इसके माध्यम से, ग्रामीण आबादी को डिजिटल तकनीक से जोड़ा जाएगा जिससे वे ब्याज छूट योजना और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसे लाभ प्राप्त कर सकेंगे। किसानों, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के वित्तीय समावेशन को मजबूत करने के उद्देश्य को पूरा करने के अलावा इससे प्रत्यक्ष लाभ अंतरण भी प्रदान किया जा सकता है। इस नीति का उद्देश्य सहकारिता शिक्षा को उन्नत बनाना और सहकारी क्षेत्र में प्रबंधन के विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले पेशेवरों की प्रबंधकीय क्षमताओं में सुधार करना भी होगा। प्र. भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के प्रधानमंत्री के सपने के अनुसार, तीन प्रमुख क्षेत्र यानी विनिर्माण, सेवाएँ और कृषि इसे साकार करने का आधार होंगे। सहकारिता क्षेत्र किस प्रकार इस मुहिम का हिस्सा बनने की योजना बना रहा है? उत्तरः भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करने के लिए, सहकारिता क्षेत्र तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों-विनिर्माण, सेवाओं और कृषि पर ध्यान केंद्रित कर रहा है । सहकारी समितियां किसानों को पूंजी, प्रौद्योगिकी और विपणन आउटलेट तक पहुंच प्रदान करके कृषि क्षेत्र में मदद कर सकती हैं। सहकारी समितियां साझा सुविधाएं और बाजारों तक पहुंच प्रदान करके छोटे विनिर्माण व्यवसायों के विस्तार में सहयोग कर सकती हैं। सहकारी समितियां आवास और चिकित्सा तथा परिवहन जैसी सेवाएं प्रदान करेंगी जो सस्ती और सुलभ दोनों हैं। आर्थिक प्रगति में भाग लेने के लिए सहकारी समितियां शासन, प्रबंधन प्रक्रियाओं तथा वित्तीय व्यवहार्यता को बढ़ाते हुए डिजिटल प्रौद्योगिकी और नवाचार को अपनाएंगी। प्र. सहकारी समितियां किस प्रकार देश में रोजगार सृजन का रास्ता बना रही हैं? उत्तरः हमारी मजबूत नीतिगत पहल और विभिन्न हितधारकों के सहयोगात्मक प्रयासों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों को बहुउद्देशीय जीवंत व्यावसायिक इकाइयों में बदलने की क्षमता है जो युवा और अनुभवी पेशेवरों को अच्छा काम तथा आय और लाभकारी नौकरी के अवसर प्रदान करने में सक्षम हैं। रोजगार सृजन में सहकारी समितियों के योगदान के कई शानदार उदाहरण हैं। अमूल दूध संग्रहण, प्रसंस्करण और विपणन में रोज़गार प्रदान करता है। इफको और कृभको जैसी उर्वरक सहकारी समितियां विनिर्माण, रसद और वितरण में रोजगार प्रदान करती हैं। क्रेडिट सहकारी समितियां वित्तीय सेवाएं प्रदान करती हैं और बैंकिंग में नौकरियां पैदा करती हैं। चीनी सहकारी समितियां गन्ने की खेती, मिलिंग, प्रसंस्करण और संबंधित उद्योगों में रोज़गार पैदा करती हैं। कुल मिलाकर, सहकारी समितियां ग्रामीण विकास को बढ़ावा देती हैं, समुदायों को सशक्त बनाती हैं और एकसमान लाभ सुनिश्चित करती हैं। इन पारंपरिक मार्गों के अलावा, नई नीति ढांचे के तहत सहकारी समितियों के लिए नए क्षेत्र खुल रहे हैं जिनका लक्ष्य हमारे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना है। प्र. आपने आर्थिक प्रगति के लिए हमेशा प्राथमिक कृषि ऋण समितियों और अन्य प्राथमिक सहकारी समितियों के सशक्तिकरण पर जोर दिया है। हम इस प्रतिस्पर्धी व्यावसायिक दुनिया में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों और प्राथमिक समितियों के माध्यम से समुदाय के नेतृत्व वाली सामाजिक-आर्थिक वृद्धि कैसे प्राप्त कर सकते हैं? उत्तरः प्राथमिक कृषि ऋण समितियां देश के लगभग हर कोने को कवर करते हुए 90 प्रतिशत भारतीय गांवों में मौजूद हैं। येे जमीनी स्तर पर मौलिक इकाइयाँ हैं, लेकिन हाल तक येे केवल कुछ गतिविधियों तक ही सीमित थीं, जैसे कि ऋण, कृषि-इनपुट खरीद और डेयरी, जहां ऊपरी स्तर, उनकी विपणन गतिविधियों को जारी रखने के लिए उनका सहयोग कर रहे हैं। प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के लिए नए विकसित उपनियम संबंधित हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद इन्हें 25 विभिन्न वाणिज्यिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। डिजिटल बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कम्प्यूटरीकरण की लागत 2516 करोड़ रुपये है, जिसे पंजीकृत किया गया है और यह डीसीसीबी तथा राज्य सहकारी बैंकों (एससीबी) के साथ जुड़ने में उनकी सहायता करेगा और जल वितरण, एलपीजी/सीएनजी/पेट्रोल/डीजल वितरण, लघु तथा दीर्घकालिक ऋण, डिजिटल सेवाएं, कस्टम हायरिंग सेंटर, सामान्य सेवा केंद्र, उचित मूल्य की दुकानें, सामुदायिक सिंचाई, व्यवसाय आढ़त गतिविधियां आदि जैसी गैर-कृषि गतिविधियों आदि को शामिल करने के लिए प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के दायरे का विस्तार करते हुए उनकी सहायता करेगा । सहकारी समितियों में सुधार के लिए मंत्रालय के चल रहे प्रयासों के अंतर्गत बजट 2023-24 ने बड़ी राहत और समान अवसर प्रदान किए। सहकारी समितियों के लिए कर दरों, अधिभार को कम करके सहकारी समितियों को जैम पोर्टल पर क्रेताओं और विक्रेताओं के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति दी गई। प्र. क्या हमारे पास देश के सभी गांवों में जमीनी स्तर पर लोगों की बुनियादी ऋण जरूरतों को पूरा करने के लिए संरचना है? यदि नहीं, तो ऐसी बुनियादी ढांचागत चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार की क्या योजना है? उत्तरः देश में ग्रामीण विकास को गति देने वाली इन मूलभूत इकाइयों को मजबूत करने का यह उपयुक्त समय है। इस संबंध में, केंद्र ने राज्य संगठनों, गैर-लाभकारी संगठनों, महासंघों और शिक्षाविदों जैसे हितधारकों के साथ उचित परामर्श के बाद प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के लिए आदर्श उपनियम तैयार और लागू किए हैं। इसमें प्राथमिक कृषि ऋण समितियों में व्यापार विविधीकरण को बढ़ाने और उन्हें कृषि ऋण से परे व्यवसायों की एक विस्तृत श्रृंखला में शामिल होने की क्षमता प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अगले पांच वर्षों के दौरान कम सेवा वाले/कवर नहीं किए गए गांवों और पंचायतों में 2 लाख नई डेयरी-मत्स्य सहकारी समितियों और प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) की स्थापना को भी मंजूरी दे दी है। इससे देश के सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ने और फलने-फूलने में मदद मिलेगी। प्र. भारतीय सहकारी समितियां देश के निर्यात में कैसे स्थान बनाती हैं? उत्तरः आर्थिक और सामाजिक विकास में सहकारी समितियों का योगदान अत्यधिक सराहनीय है। उनमें से कुछ विभिन्न राज्यों से हैं जैसे महाराष्ट्र में कॉटन, गुजरात तथा कर्नाटक में डेयरी और कुछ अन्य भी विभिन्न स्थानों पर निर्यात करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक रहीे हैं। इससे कई नौकरियाँ पैदा हुई हैं और समुदाय का आत्मविश्वास तथा गौरव बढ़ा है। इसे व्यापक स्तर पर उठाने के लिए, सहकारिता मंत्रालय एक राष्ट्रीय बहु-राज्य निर्यात सहकारी समिति के पंजीकरण के साथ आगे बढ़ा है, जिससे सहकारी उत्पादों की निर्यात क्षमता में वृद्धि होने की उम्मीद है। राज्य, जिला और ग्राम स्तर पर सहकारी समितियां इस राष्ट्रीय निर्यात सहकारी समिति की सदस्य बन सकती हैं। इससे युवाओं के लिए रोजगार सृजन में मदद मिलेगी और स्थायी आजीविका सुनिश्चित होगी। निर्यात-उन्मुख सहकारी समितियों को वित्तीय सहायता, कौशल विकास, बाजार पहुंच और व्यापार सुविधा के माध्यम से सहायता दी जा सकती है। प्र. सहकारी उत्पादों की निर्यात क्षमता बढ़ाने और सहकारी समितियों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की आपकी क्या योजना है? उत्तरः सहकारी उत्पादों की निर्यात क्षमता को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए, निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैंः ऽ अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांग को पूरा करने के लिए निर्यात के अवसरों की पहचान और सहकारी उत्पादों को अनुकूलित करने के लिए बाजार अनुसंधान और उत्पाद विकास। ऽ उच्च उत्पाद गुणवत्ता सुनिश्चित करने और वैश्विक बाजार में विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए प्रासंगिक प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए गुणवत्ता आश्वासन और प्रमाणन। ऽ सहकारी समितियों के सदस्यों को निर्यात प्रक्रियाओं, पैकेजिंग और अंतर्राष्ट्रीय विपणन पर प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए निर्यात प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण। ऽ संभावित खरीदारों से जुड़ने के लिए व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों में भागीदारी की सुविधा के लिए निर्यात नेटवर्क और प्लेटफार्मों तक पहुंच। ऽ सहकारी समितियों को वित्तीय सहायता, विपणन मार्गदर्शन और निर्यात प्रोत्साहन देने के लिए निर्यात संवर्धन सहायता। ऽ सुचारू निर्यात की सुविधा के लिए दस्तावेजीकरण और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए सुव्यवस्थित निर्यात प्रक्रियाएं। ऽ विशेष निर्यात वित्तपोषण विकल्प और बीमा कवरेज प्रदान करने के लिए वित्त और बीमा तक पहुंच। प्र. आने वाले 10 वर्षों में सहकारी समितियों के भविष्य पर आपका क्या विचार है? उत्तरः भारतीय अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनने के लिए सहकारी समितियां पुरजोर सहयोग करेंगी। सहकारी समितियां अपने संचालन और विकास के लिए अधिक समान पेशेवर और पारदर्शी दृष्टिकोण अपनाएंगी। इसके अलावा, सुदृढ़ शासन पद्धतियों को अपनाया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप संचालन में सुधार होगा। मुझे विश्वास है कि सहकारिता मंत्रालय के प्रयासों से आने वाले वर्षों में देश में अमूल और इफको जैसे बड़े सहकारी संगठन बनाने में मदद मिलेगी। सभी प्रकार की सहकारी समितियों में सक्षम प्रबंधन और प्रशिक्षित कार्यबल होगा जिससे वाणिज्यिक फर्मों के साथ अच्छी तरह से प्रतिस्पर्धा की जा सकेगी। वित्त, अब सहकारी व्यवसायों के लिए बाधा नहीं बनेगा। संचालन और प्रबंधन के अपने मजबूत और पारदर्शी तंत्र के कारण सहकारी समितियां कॉर्पोरेट के साथ प्रतिस्पर्धा करने में आत्मनिर्भर होंगी। सहकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए, सदस्य और मार्गदर्शक अपने व्यवसाय मॉडल के साथ-साथ अपनी संस्थागत प्रबंधन गतिविधियों की समीक्षा के लिए आगे आएंगे ताकि प्रधानमंत्री के ’सहकार से समृद्धि’ और ’आत्मनिर्भर भारत’ की परिकल्पना को साकार किया जा सके।