रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Issue no 15, 08-14 July 2023

रोज़गार समाचार टीम प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त राज्य अमरीका की आधिकारिक यात्रा के दौरान उनकी वहां के राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ ऐतिहासिक बैठक अत्यधिक महत्व रखती है, क्योंकि ये दो वैश्विक शक्तियों के बीच सहयोग के नए युग की शुरुआत करती है। बैठक के नतीजों ने रक्षा और प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व पहल के लिए मंच तैयार किया है, जो दोनों देशों द्वारा प्रदर्शित महत्वाकांक्षा की निर्भीकता को दर्शाता है। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान दोनों देशों के बीच हुए समझौतों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। राष्ट्रीय सुरक्षा के पूर्व उप सलाहकार श्री पंकज सरन ने रोज़गार समाचार के साथ विशेष बातचीत में अमरीकी नीति तथा रणनीतिक विचारों में आए परिवर्तनकारी बदलाव और सहयोगात्मक प्रस्तावों के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रश्नः प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति श्री जो बाइडेन के बीच बैठक की मुख्य बातें क्या हैं? उत्तरः यह बैठक भारत-अमरीका संबंधों में एक नए अध्याय का प्रतीक है, जिसमें दो प्रमुख क्षेत्रों- रक्षा और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित किया गया है। ध्यान देने योग्य एक और महत्वपूर्ण पहलू दोनों पक्षों द्वारा प्रदर्शित महत्वाकांक्षा की निर्भीकता है। भारत और अमरीका ने हालांकि अतीत में भी शिखर सम्मेलन आयोजित किए हैं, लेकिन इस विशेष शिखर सम्मेलन ने रणनीतिक क्षेत्रों, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी में भागीदारी को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने के लिए एक संकल्पित निर्णय का प्रदर्शन किया। शिखर सम्मेलन के दौरान जारी किया गया संयुक्त वक्तव्य उनके असाधारण और व्यापक दृष्टिकोण के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसमें शुरू से ही प्रौद्योगिकी पर ज़ोर दिया गया है, जो अभूतपूर्व है। दूसरा वास्तव में उल्लेखनीय पहलू रक्षा सहयोग की अत्यधिक महत्वाकांक्षी योजनाओं के बारे में है, जो इसके व्यापक आयामों जुड़ा है। प्रश्नः क्या प्रौद्योगिकी, रक्षा या यहां तक कि अंतरिक्ष क्षेत्र में अभूतपूर्व पहल की घोषणा भारत के साथ अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी साझा करने की दिशा में अमरीकी नीति में किसी ठोस बदलाव का संकेत देती है? कौन से कारक इस परिवर्तनकारी बदलाव को प्रभावित कर सकते हैं? उत्तरः निस्संदेह, एक उल्लेखनीय बदलाव आया है। मुझे लगता है कि इसकी तैयारी कई महीने पहले ही शुरू हो गई थी क्योंकि संबंधों के अगले चरण के बारे में अमरीका में रणनीतिक अभिसरण और पुनर्विचार की भावना बढ़ रही थी। इसी प्रकार, भारतीय पक्ष में भी इस बात पर अधिक ध्यान दिया गया कि भारत को अपने राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अमरीका से क्या चाहिए। इसके अलावा, दुनिया भर में अन्य भू-राजनीतिक विकास भी हुए हैं। इन सभी कारकों ने भारत- अमरीका भागीदारी को अगले स्तर तक ले जाने को प्रेरित किया, जैसा कि रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर कुछ समझौतों से स्पष्ट है, लेकिन अतीत में ऐसा कभी नहीं किया गया। प्रश्नः क्या सीमा पार आतंकवाद के बारे में एकसमान विरोध के बारे में संयुक्त वक्तव्य में किया गया स्पष्ट उल्लेख पाकिस्तान के प्रति अमरीकी नीति में बदलाव का संकेत देता है, क्योंकि अमरीका ने आतंकवाद से निपटने के संदर्भ में कई बार पाकिस्तान को ’क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भागीदार’ के रूप में संदर्भित किया है। उत्तरः भारत- अमरीका के वर्तमान संबंधों की भव्य योजना में पाकिस्तान का महत्व न्यूनतम है। भारत के परिप्रेक्ष्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण घटनाक्रम इस पर पूरी तरह से आच्छादित हो गया है। इसलिए, पाकिस्तान आज हमारे रणनीतिक विवेचन में प्रमुख स्थान नहीं रखता है, न ही यह भारत- अमरीका भागीदारी के आधार के रूप में काम करता है । हालाँकि संयुक्त बयान में आतंकवाद को स्वीकार किया गया था, लेकिन यह बयान के समग्र महत्व का एक अंश मात्र था। अमरीका -पाकिस्तान संबंध मौजूद हैं, तथापि हम इसे सतर्क अवलोकन के साथ स्वीकार करते हैं। प्रश्नः प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडेन ने एक विश्वसनीय नेटवर्क/विश्वसनीय स्रोत द्विपक्षीय ढांचे की स्थापना पर अत्यधिक जोर दिया है। आप इस प्रस्ताव के महत्व की व्याख्या कैसे करते हैं? उत्तरः अनिवार्य रूप से, इस प्रस्ताव के मूल में भारत और अमरीका के बीच उच्च तकनीक तथा रक्षा क्षेत्रों के गहन एकीकरण की तत्काल आवश्यकता है। एक लचीली आपूर्ति श्रृंखला बनाना जरूरी है जो दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को मजबूत करेगी। यह अनिवार्यता सीधे तौर पर इन आपूर्ति श्रृंखलाओं पर चीन के मौजूदा एकाधिकार के कारण उत्पन्न होती है। यहां उद्देश्य चीन के विकल्प के रूप में आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करना है, जो अमरीकी उद्योग और भारत दोनों के हितों की पूर्ति करती हो। हमारा उद्देश्य एक गतिशील और आत्मनिर्भर आपूर्ति श्रृंखला बनाना है, जिसे हम ’अच्छा चक्र’ के रूप में संदर्भित कर सकते हैं। इसे प्राप्त करने के लिए, हम अपने देश के तीव्र विकास को प्राथमिकता देते हुए पश्चिमी देशों की प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का इरादा रखते हैं। अब हमारे पास इसका एक विकल्प है कि जब हमें तकनीक की आवश्यकता पड़े तो इसे कहां से प्राप्त करें। अमरीका, यूरोप, रूस और चीन सहित दुनिया भर में प्रौद्योगिकी के विभिन्न स्रोत मौजूद हैं। हालाँकि, भारतीय दृष्टिकोण से, महत्वपूर्ण प्रश्न उस प्रौद्योगिकी स्रोत की पहचान करने में निहित है जो न केवल सुगमता और सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि राष्ट्रीय हितों की भी रक्षा करता है और हमारी क्षमताओं को बढ़ाता है। इस संदर्भ में, भारत और अमरीका के बीच ’विश्वसनीय’ आपूर्ति श्रृंखला की अवधारणा सर्वोपरि महत्व रखती है। प्रश्नः आप भारत और अमरीका के बीच रक्षा क्षेत्र से संबंधित नवीनतम समझौतों और सहयोग पर चीन की प्रतिक्रिया का अनुमान कैसे लगाते हैं? उत्तरः आपके प्रश्न पर मेरे पास दो प्रतिक्रियाएँ हैं। सबसे पहले, हम अमरीका या किसी अन्य देश के साथ मजबूत संबंधों को आगे बढ़ाते हुए किसी और देश से लगातार भयभीत हो कर नहीं रह सकते। जब भी हम किसी राष्ट्र विशेष के साथ किसी विशिष्ट क्षेत्र में प्रगति करते हैं, तो हम हर बार डर के साए में रहने का जोखिम नहीं उठा सकते। यह मेरा प्रारंभिक बिंदु और मेरी प्रारंभिक प्रतिक्रिया है। दूसरे, जब उन्नत रक्षा और सैन्य प्रौद्योगिकी की बात आती है, तो चीन ने भी अतीत में रूस सहित विभिन्न स्रोतों से ऐसी तकनीक का आयात किया है। इसलिए, राष्ट्रीय रक्षा आवश्यकता के मामले में, अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने के लिए उपलब्ध सर्वोत्तम तकनीक की तलाश करना भारत के लिए पूरी तरह से उचित है। मुझे इस दृष्टिकोण के साथ कोई समस्या नहीं दिखती क्योंकि इसका विकल्प स्वयं प्रौद्योगिकी विकसित करना होगा। हालाँकि हम वास्तव में उस लक्ष्य की दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन यह रातोंरात नहीं होगा। इस बीच, अपने विरोधियों से बढ़ते खतरों के कारण हमें ऐसी प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की आवश्यकता है। चीन के बारे में विशेष रूप से मेरा मानना है कि कई मायनों में, यह चीन की हरकतें हैं जो भारत और अमरीका के बीच रक्षा क्षेत्र में हो रही प्रगति के लिए जिम्मेदार हैं। भारत अपनी रक्षा और सैन्य शक्ति को बढ़ाने की अनिवार्यता को समझता है, और इंजन, ड्रोन तथा अन्य के बारे में हुए महत्वपूर्ण समझौते उसकी इस प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। सैन्य क्षमताओं को मजबूत करना हमेशा से भारत की महत्वाकांक्षा रही है, लेकिन वास्तव में जो नया हुआ है वह हमें उन्नत तकनीक प्रदान करने की अमरीका की इच्छा है। प्रश्नः अमरीका में निर्यात नियंत्रण व्यवस्था अत्यधिक कठोर है। क्या आप मानते हैं कि संसद की मंजूरी प्राप्त करना वर्तमान बाइडेन प्रशासन और भारत के लिए संभव होगा, खासकर दोनों देशों में आगामी चुनावों को देखते हुए? उत्तरः जहां तक मैं समझता हूं, इन क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए अमरीका में राष्ट्रपति, व्हाइट हाउस और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की ओर से स्पष्ट राजनीतिक प्रतिबद्धता है। प्रौद्योगिकी को साझा करने की राजनीतिक प्रकृति को देखते हुए यह न केवल एक शुरुआती बिंदु है बल्कि एक सफलता भी है। आज प्रौद्योगिकी साझा करने का निर्णय राजनीतिक है। निस्संदेह, कार्यान्वयन के दौरान बाधाएं आएंगी, लेकिन इससे हमें इस सहयोग को आगे बढ़ाने से नहीं रोकना चाहिए। रास्ते में मतभेदों या कठिनाइयों का आना स्वाभाविक है, लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस बार, यह वास्तव में हो रहा है, और हम वास्तव में उस तरह की प्रौद्योगिकियों तक पहुंच प्राप्त करेंगे जो भारत लंबे समय से चाहता है, जिससे सीधे तौर पर उसकी सैन्य ताकत बढ़ेगी। प्रश्नः यह काफी दिलचस्प है कि हमने आर्टेमिस समझौते में शामिल होने का विकल्प चुना है। क्या यह हमारी नीति में बदलाव का संकेत है? अब तक, हम मुख्य रूप से अंतरिक्ष क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली भूमिकाओं का पालन करते रहे हैं। क्या यह निर्णय संयुक्त राष्ट्र के तहत बहुपक्षवाद के समर्थकों के रूप में हमारी प्रतिष्ठा पर असर नहीं डालेगा? उत्तरः बिल्कुल नहीं. आर्टेमिस कार्यक्रम काफी समय से हमारे लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है, और इसमें हमारी रुचि अटूट बनी हुई है। इसलिए मुझे दोनों के बीच कोई विरोधाभास नजर नहीं आता. क्योंकि हम संयुक्त राष्ट्र के भीतर अपने दायित्वों को पूरा करेंगे और बहुपक्षवाद के सिद्धांतों को कायम रखेंगे। यह स्वीकार करना आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र और इसके बहुपक्षीय ढांचे अक्सर उस समय पर सहायता प्रदान करने में अप्रभावी साबित हुए हैं जब इनकी सबसे अधिक आवश्यकता पड़ी। हमारी अंतरिक्ष नीति की हालिया घोषणा, इस क्षेत्र के निजीकरण और इससे जुड़े पर्याप्त निवेश तथा नौकरी के अवसरों की आवश्यकता के साथ, ठोस परिणामों के लिए केवल इन औपचारिक संस्थानों पर निर्भर न रहने की प्रेरणा बढ़ रही है। हम उन क्षेत्रों में प्रगति में तेजी लाने के लिए द्विपक्षीय व्यवस्था अपना रहे हैं जहां हम पिछड़ रहे हैं। आर्टेमिस समझौते में शामिल होने का निर्णय इस सक्रिय दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो अमरीका द्वारा दिए गए अमूल्य समर्थन से प्रेरित है। अंतरिक्ष क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में प्रगति के लिए भारत की महत्वाकांक्षी आकांक्षाएं, इन्हें साकार करने में सहायता करने की अमरीका की वास्तविक इच्छा से पूरित हैं। इसलिए, मुझे कोई विरोधाभास या मुद्दा नजर नहीं आता। हम संयुक्त राष्ट्र ढांचे के भीतर अपने दायित्वों को पूरा करते हुए आर्टेमिस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेंगे। आर्टेमिस कार्यक्रम अपने आप में मजबूत है और हमें पूरे दिल से इसके साथ आगे बढ़ना चाहिए। प्रश्नः अमरीकी यात्रा से पहले, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की मांग दोहराई, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी पर जोर दिया। क्या आप मानते हैं कि राजनीतिक स्तर पर भारत और अमरीका के बीच गहराते विश्वास के साथ, हम इस महत्वाकांक्षा को साकार करने की दिशा में प्रगति कर रहे हैं? उत्तरः हालांकि मुझे विश्वास नहीं है कि यह यात्रा सीधे तौर पर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हमें स्थायी सदस्यता दिलाने में तेजी लाएगी या इसके करीब लाएगी, क्योंकि इस संबंध में कई अन्य कारक भी हैं। हालाँकि, इस यात्रा के दौरान अमरीका ने भारत को एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी के रूप में मान्यता दी है, हमारे साथ उस सम्मान और मान्यता के साथ व्यवहार किया है जो इस तरह की स्थिति के लिए आवश्यक है। विभिन्न क्षेत्रों में भारत की क्षमता तथा भूमिका का विस्तार हुआ है और यह यात्रा इस बात का प्रतीक है कि अमरीका विश्व मंच पर एक प्रमुख देश के रूप में भारत के महत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार है। हालाँकि, सुरक्षा परिषद में औपचारिक सदस्यता के संदर्भ में, मुझे नहीं लगता कि इस यात्रा से कोई महत्वपूर्ण बदलाव आएगा। अमरीका, भारत की सुरक्षा परिषद सदस्यता का समर्थन करता है, लेकिन यह प्रक्रिया स्वयं में अलग है और जारी है। बहरहाल, इस यात्रा के दौरान अमरीका के साथ अपने संबंधों में हमने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रश्नः अंत में, क्या यह उपलब्धि खुफिया जानकारी, विशेषकर समुद्री और भूमि क्षेत्र में हमारे सहयोग को भी बढ़ाएगी? उत्तरः बिल्कुल, मैं रक्षा और खुफिया जानकारी साझा करने में सहयोग के संबंध में संयुक्त वक्तव्य में इसके उल्लेख से विशेष रूप से प्रभावित हुआ। विशेष रूप से, दोनों पक्षों द्वारा इस क्षेत्र में जागरूकता पर सहयोग करने का उल्लेख है, जो समुद्री सुरक्षा के लिए काफी महत्व रखता है। इसलिए, मैं समुद्र, भूमि, अंतरिक्ष और वायु जैसे विभिन्न क्षेत्रों को शामिल करते हुए खुफिया और सुरक्षा क्षेत्र में अधिक सहयोग की आशा करता हूं। भारत और अमरीका के बीच बढ़ा हुआ विश्वास निस्संदेह इन क्षेत्रों में भी दिखाई देगा। (व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं)