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संपादकीय लेख


Issue no 14, 01-07 July 2023

सागर किशन वाडकर नवीन कुमार सिंह स्वयं सहायता समूह या एसएचजी जमीनी स्तर के अनौपचारिक संगठन हैं जिनका लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना है। स्वयं सहायता समूह में आमतौर पर 10 से 20 सदस्य शामिल होते हैं जो अपने संसाधनों को एकत्रित करते हैं, पैसे बचाने के लिए मिलकर काम करते हैं, एक-दूसरे की सहायता करते हैं, और आय-सृजन गतिविधियों में संलग्न होते हैं। भारत में, स्व-सहायता समूह आंदोलन ने 1980 के दशक में जोर पकड़ा और तब से यह गरीबी कम करने और महिलाओं की स्वायत्तता को बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी साधन के रूप में विकसित हुआ है। पहले चरण (1984-2011) के दौरान, स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देने और इनके सदस्यों के बीच ’किफायत और बचत’ की मानसिकता पैदा करने पर जोर दिया गया था। दूसरे चरण (2012-13 से आगे) का उद्देश्य, ग्रामीण विकास मंत्रालय की वर्तमान दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) पहल, देश भर में स्वयं सहायता समूह के उन्नयन और संस्थागतकरण पर है। इस मिशन के तहत, स्वयं सहायता समूह आंदोलन ने सामाजिक सशक्तिकरण को भी बढ़ावा दिया है, जिसमें महिलाएं अपने समुदायों में सक्रिय नेतृत्व की भूमिका को अपना रही हैं। स्वयं सहायता समूह के सदस्य ग्राम-सभा और विभिन्न सामुदायिक विकास गतिविधियों में भाग लेते हैं, जैसे जागरूकता अभियान आयोजित करना, महिलाओं के अधिकारों पर जोर देना और सामाजिक कल्याण कार्यक्रम चलाना। इस तथ्य के बावजूद कि स्वयं सहायता समूहों ने सामुदायिक सशक्तिकरण के लिए जबरदस्त क्षमता का प्रदर्शन किया है, उन्हें अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करने के लिए आमतौर पर पेशेवरों के मार्गदर्शन और सहायता की आवश्यकता होती है। स्वयं सहायता समूह सदस्यों को ज्ञान साझा करने, तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण और मार्गदर्शन का प्रावधान एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है जिसका निवर्हन आमतौर पर ब्लॉक स्तर से लेकर जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक मिशन प्रबंधन इकाइयों में काम करने वाले पेशेवर करते हैं। बहरहाल, उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, इन समूहों को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें वित्त और वित्तीय सेवाओं तक सीमित पहुंच, बाजार लिंक की कमी, सीमित सरकारी सहायता आदि शामिल हैं। स्व-रोजगार महिला संघ की स्थापना 1972 में हुई थी, जिसे भारत में स्वयं-सहायता समूह आंदोलन की शुरुआत माना जाता है। कोविड-19 महामारी के दौरान इसकी क्रांतिकारी क्षमता ने महिलाओं को अधिक एजेंसी प्रदान करके ग्रामीण समुदायों के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्तमान स्थितिः भारत में लगभग 120 मिलियन स्वयं सहायता समूह हैं, जिनमें से लगभग 88 प्रतिशत पूरी तरह से महिलाओं के लिए हैं। केरल में कुदुम्बश्री, बिहार में जीविका, महाराष्ट्र में महिला आर्थिक विकास महा मंडल और लद्दाख के लूम्स सफल संगठनों के उदाहरण हैं। 1992 में शुरू किया गया स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम (एसएचजी-बीएलपी) दुनिया का सबसे बड़ा माइक्रोफाइनेंस कार्यक्रम बन गया है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 के अनुसार, स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम में 11.9 मिलियन स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से काम करने वाले 142 मिलियन परिवार शामिल हैं। इन परिवारों के पास कुल 472.4 अरब रुपये की बचत जमा राशि और 1,510.5 अरब रुपये का संपार्शि्वक-मुक्त ऋण बकाया है। पिछले दस वर्षों (वित्त वर्ष 2013 से वित्त वर्ष 22) के दौरान क्रेडिट-लिंक्ड एसएचजी की संख्या 10.8 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ी है, जबकि प्रत्येक समूह द्वारा वितरित ऋण की राशि 5.8 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ी है। भले ही यह अविश्वसनीय लगे, लेकिन स्वयं सहायता समूहों की पुनर्भुगतान दरें 96 प्रतिशत से अधिक हैं, जो उनके ऋण अनुशासन और उनकी निर्भरता दोनों को प्रदर्शित करती हैं। वर्तमान में, स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करने, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए इन स्वयं सहायता समूहों और उनके ग्राम संगठनों (प्राथमिक स्तर) को क्लस्टर लेवल फेडरेशन (सीएलएफ) में बढ़ाने और कौशल बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन डेटा 2022-23 के अनुसार, वर्तमान में 29,944 सीएलएफ पंजीकृत करने की प्रक्रिया चल रही है। इनमें से लगभग 6,386 सीएलएफ सफलतापूर्वक पंजीकृत किए जा चुके हैं। एसएचजी और सीएलएफ की सफलता की कहानियां दिखाती हैं कि एसएचजी को कुछ कठिनाइयों को दूर करने की आवश्यकता तो है, बावजूद इनमें सामूहिक कार्रवाई और जमीनी स्तर पर सशक्तिकरण की क्षमता मौजूद है। यदि स्वयं सहायता समूहों को विशेषज्ञों, सरकारी एजेंसियों और नागरिक समाज संगठनों से लगातार सहायता मिलती है तो ये अपनी पहुंच बढ़ाने और लाखों लोगों के जीवन पर लाभकारी प्रभाव डालने में सक्षम हो सकते हैं। स्वयं सहायता समूह और ग्राम संगठनों ने पहले अपने दम पर सहयोग किया, लेकिन अंततः सहयोग करने, संसाधनों को एकत्रित करने और उच्च-स्तरीय सामूहिक स्वामित्व तथा सामूहिक निर्णय लेने के लक्ष्य के साथ क्लस्टर लेवल फेडरेशन (सीएलएफ) बनाने के लिए संघ बनाया। इस समेकन के परिणामस्वरूप, उनका प्रभाव, वित्त तक पहुंच और बड़े पैमाने पर संचालन करने की क्षमता में वृद्धि हुई है। यह लेख यह दर्शाने का प्रयास करता है कि स्वयं सहायता समूह कैसे ’स्वाभिमान जीविका महिला स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड’ के नजरिए से महिलाओं और युवाओं के लिए अवसर पैदा कर रहे हैं। स्वाभिमान जीविका महिला स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड का विकासः स्वाभिमान जीविका महिला स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड एक माध्यमिक स्तर के स्वयं सहायता समूह महासंघ के रूप में शुरू हुई। उस समय इसमें लगभग 2,300 स्वयं सहायता समूह सदस्य थे और यह 17 स्थानीय संगठनों से बनी थी। यह सहयोगात्मक प्रयास कई सरकारी योजनाओं को एक साथ लाने और प्रतिभागियों की आर्थिक और पोषण तथा आजीविका संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण था। स्वाभिमान ने इसके प्रभाव के परिणामस्वरूप बिहार स्वावलंबी सहकारी समिति अधिनियम 1996 के अनुरूप एक सहकारी समिति के रूप में शामिल होने का निर्णय लिया। स्वाभिमान के अब 9,555 सदस्य हैं। व्यावसायिक गतिविधियों की बहुतायतः स्वाभिमान के संचालन में कई प्रकार के क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें से सभी का इसके सदस्यों के जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यह वित्तपोषण, बीमा, सिलाई, कृषि उपकरण सेवाएं, किसान प्रशिक्षण तथा सूचना केंद्र, बकरी प्रजनन, मत्स्य पालन और मुर्गी उत्पादन सहित सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है। यह अप्रत्यक्ष रूप से कृषि आदानों के विस्तार, किसानों की शिक्षा और कृषि-उत्पादन के एकत्रीकरण में सहायता करती है। यह बहु-क्षेत्रीय रणनीति ग्रामीण विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण की गारंटी देती है और अपने सदस्यों को कई आजीविका क्षेत्रों में सशक्त बनाती है। स्वाभिमान ने विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसायटी (बीआरएलपीएस) के परियोजना कर्मचारियों की सहायता के लिए कई सामुदायिक विशेषज्ञों को काम पर रखा है। इससे स्वाभिमान को कई कार्यों को अधिक सफलतापूर्वक प्रबंधित करने में मदद मिली है। ये पेशेवर विभिन्न परियोजनाओं के कार्यान्वयन में सहायता करने और समुदाय के सदस्यों को सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाते हैं। स्वाभिमान और ऐसी सीएलएफ सहकारी समितियों द्वारा पेश किए जाने वाले नौकरी के कुछ अवसर निम्नलिखित हैंः क्रेडिट पेशेवरः ये व्यक्ति ऋण अधिकारी, क्रेडिट विश्लेषक और जोखिम प्रबंधक के रूप में सेवा करने के लिए जिम्मेदार हैं। वे ऋण देने के जिम्मेदार तरीके सुनिश्चित करते हैं और संगठन के सदस्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। सिलाई में विशेषज्ञः पोशाकंे तैयार करने, विभिन्न सिलाई तकनीकों तथा डिजाइनों के विकास और गुणवत्ता नियंत्रण की निगरानी के लिए दर्जी, डिजाइनर, पैटर्न निर्माता और गुणवत्ता नियंत्रण पेशेवरों को नियुक्त किया जाता है। कृषि मशीनरी और उपकरणों से संबंधित सेवाएँः कृषि गतिविधियों में सहयोग के लिए, व्यवसायों को ऐसे तकनीशियनों और मैकेनिकों को नियुक्त करने की आवश्यकता होती है जो कृषि मशीनरी और उपकरणों के संचालन, रखरखाव और मरम्मत में कुशल हों। कृषि प्रशिक्षक, विस्तार कार्यकर्ता और विषय वस्तु विशेषज्ञः ये किसान प्रशिक्षण और सूचना केंद्रों (एफटीआईसी) के माध्यम से कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए समकालीन कृषि तकनीकों, फसल प्रबंधन और सर्वोत्तम प्रथाओं पर निर्देश, सहायता और जानकारी प्रदान करते हैं। पशुचिकित्सक और पैरावेट्सः बकरी प्रजनन, स्वास्थ्य सवाओं और प्रबंधन के क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए पशुपालन विशेषज्ञ, पशुचिकित्सक और पशुधन प्रजनकों को नियोजित किया जाता है। मत्स्य पालनः मछली पालन तकनीकों, तालाब प्रबंधन, रोग नियंत्रण और मत्स्य उत्पादों के विपणन की समझ रखने वाले एक्वाकल्चर पेशेवरों और मत्स्य प्रबंधकों को मत्स्य पालन से जुड़ी गतिविधियों में सहायता के लिए नियोजित किया जाता है। पोल्ट्रीः पोल्ट्री प्रबंधन, नस्लों का चयन, उनके स्वास्थ्य का रखरखाव और फीड की संरचना सभी के लिए पोल्ट्री विशेषज्ञों, पशु चिकित्सकों और पोल्ट्री फार्मों के प्रबंधकों की विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। फार्म इनपुट आपूतिः कृषि-इनपुट में विशेषज्ञता रखने वाले पेशेवर यह सुनिश्चित करते हैं कि कृषि गतिविधियों में सहायता के लिए बीज, उर्वरक और अन्य कृषि इनपुट समय पर और प्रभावी तरीके से वितरित किए जाते हैं। उपज एकत्रीकरणः कृषि उपज के एकत्रीकरण और बिक्री की सुविधा के लिए, बाजार विश्लेषक, बाजार लिंकेज विशेषज्ञ और बाजार के रुझान, मूल्य निर्धारण तंत्र तथा रसद प्रबंधन की समझ रखने वाले आपूर्ति श्रृंखला समन्वयक लगे हुए हैं। प्रबंधन विधियांः स्वाभिमान की गतिविधियों के दैनिक संचालन, वित्तीय प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन की देखरेख के लिए प्रबंधन कर्मचारियों, लेखाकारों और डोमेन प्रबंधकों को नियुक्त किया जाता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे डोमेन प्रबंधक भी हैं जो डोमेन के समग्र प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं। स्वाभिमान जीविका महिला स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड की निरंतर प्रगति ने उन व्यक्तियों के जीवन में काफी बदलाव किया है जो इसका हिस्सा हैं। क्योंकि इसने उन्हें कानूनी वित्तपोषण और बीमा प्रदान किया, वे अपने व्यवसायों में निवेश करने में सक्षम हुए हैं, उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है और उन्हें वित्तीय सुरक्षा के करीब लाया गया है। इसके अलावा, सहकारी समिति ने स्थानीय सरकारी प्रणालियों में सामाजिक समावेशन और भागीदारी को प्रोत्साहित किया है, जिससे इसके सदस्यों को निर्णय लेने में भागीदारी करने और अपने समुदायों की ओर से बोलने का अवसर मिला है। स्वाभिमान की उपलब्धि के स्तर से मेल खाने का प्रयास करने से पहले कुछ आवश्यक शर्तें पूरी की जानी चाहिए। इनमें से कुछ में स्वामित्व और अपनेपन की भावना, उचित कानूनी ढांचा, सरकारी संगठनों से संस्थागत सहयोग, आजीविका विकास के लिए आर्थिक अवसर, सामाजिक स्वीकृति तथा हाशिए पर रहने वाले समुदायों को शामिल करना, डोमेन विशेषज्ञों से सहायता, तकनीकी संसाधनों को अपनाना और पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान देना शामिल है। . अन्य सीएलएफ सहकारी समितियां, यदि वे इन मानदंडों के अनुरूप हैं, तो समान ग्रामीण विकास उद्देश्यों की दिशा में काम कर सकती हैं। स्वाभिमान जीविका महिला स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड की यात्रा अन्य सहकारी समितियों और स्वयं सहायता संगठनों के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है, जो सतत विकास और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में सामूहिक कार्रवाई के महत्व पर जोर देती है। यदि सहकारी समितियाँ साझेदारी बनाने, व्यक्तिगत तथा सामूहिक क्षमताओं के निर्माण और समावेशी विधियों को बढ़ावा देने में प्रभावी हैं तो वे व्यक्तियों और समुदायों के जीवन में दीर्घकालिक, सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम हो सकती हैं। निष्कर्ष स्वाभिमान जीविका महिला स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड, क्लस्टर लेवल फेडरेशन (सीएलएफ) सहकारी समितियों के माध्यम से उपलब्ध नौकरी के उत्कृष्ट अवसरों का एक उदाहरण है। संचालन की विशाल विविधता के परिणामस्वरूप स्वाभिमान विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों को नौकरी के अवसर देने में सक्षम रहा है, जिसने सहकारिता को कुशलतापूर्वक चलाने की उसकी क्षमताओं और समय के साथ विकसित होने में योगदान दिया है। सदस्य-गहन हस्तक्षेपों को लागू करने में स्वाभिमान की सफलता का श्रेय मानक प्रबंधन प्रथाओं के प्रति संगठन के समर्पण के साथ-साथ विभिन्न विषयों के लिए विशेष समितियों के गठन को दिया जा सकता है। विविध कौशल वाले पेशेवरों को नियोजित करने से सहकारी समितियां, प्रभावी ढंग से कार्य करने, मौजूदा संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने और अपनी गतिविधियों के साथ सर्वाधिक संभावित प्रभाव पैदा कर सकती हैं। स्वाभिमान जीविका महिला स्वावलंबी सहकारी समिति ने अपने एसएचजी संघों को सहकारी समितियों के रूप में पंजीकृत करके भारत में स्वयं सहायता समूह आंदोलन के लिए संभावित अवसरों का प्रदर्शन किया है। यह दृष्टिकोण कई लाभ और अवसर प्रदान कर सकता है जैसे बढ़ी हुई कानूनी स्थिति, सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति, संस्थागत सहयोग तक पहुंच, जोखिम साझा करना और संसाधन जुटाना, व्यवसायीकरण और प्रबंधन, स्केलिंग और प्रतिकृति इत्यादि। अंततः, पंजीकृत सहकारी समितियों के रूप में एसएचजी संघों की क्षमता सहयोग बढ़ाने, अपनी आवाज को मजबूत करने, संसाधनों तक पहुंच बनाने और अपने सदस्यों तथा समुदायों के लिए सतत विकास हासिल करने की उनकी क्षमता में निहित है। (लेखकः भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई), नई दिल्ली के लिए सलाहकार और परियोजना अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। उनका ई-मेलः sagarkwadkar@gmail.com है.) व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.