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संपादकीय लेख


Issue No. 07 13-19 May 2023

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात ने हाल ही में अपनी 100वीं कड़ी पूरी की। यह कार्यक्रम 96 प्रतिशत आबादी तक पहुंच कायम करने और श्रोताओं के बीच बेजोड़ जागरूकता पैदा करने में सफल रहा। प्रसार भारती द्वारा शुरू किए गए और भारतीय प्रबंधन संस्थान, रोहतक द्वारा संचालित व्यापक अध्ययन से पता चला है कि इस कार्यक्रम की पहुंच अत्‍यन्‍त व्‍यापक है, जिसने 100 करोड़ लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। अध्ययन से पता चलता है कि 23 करोड़ लोग इस मासिक रेडियो कार्यक्रम के नियमित श्रोता हैं। इसके अलावा, 41 करोड़ व्यक्ति इसे समय-समय सुनते हैं। इन निष्कर्षों की जानकारी प्रसार भारती के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी, श्री गौरव द्विवेदी और आईआईएम रोहतक के निदेशक श्री धीरज पी. शर्मा ने एक संवाददाता सम्मेलन में दी। रिपोर्ट में 'मन की बात' कार्यक्रम की उन विशेषताओं की जानकारी दी गई है, जो इसे श्रोताओं के बीच लोकप्रिय बनाती हैं। इसमें प्रभावशाली और निर्णायक नेतृत्व के जनता के साथ भावनात्मक जुड़ाव पर प्रकाश डाला गया है। प्रधानमंत्री के ज्ञान और उनके सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण ने देश की जनता का दिलोदिमाग जीत लिया है। इसके अलावा, रिपोर्ट मन की बात कार्यक्रम की उस भूमिका को रेखांकित करती है जिसमें यह सीधे तौर पर नागरिकों से जुड़ता है और उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे सरकार में आस्‍था और विश्वास की भावना बढ़ती है। अधिकांश श्रोता सरकार की प्रगति से अवगत हुए हैं और 73% देश की भविष्य की संभावनाओं के बारे में आशावादी महसूस कर रहे हैं। इसके अलावा, श्रोताओं के एक बड़े वर्ग (58%) ने स्‍वीकार किया है कि इस कार्यक्रम ने उन्‍हें अपनी जीवन-स्थितियों में सुधार लाने के लिए प्रेरित किया है, जबकि इतनी ही बड़ी संख्‍या (59%) में लोगों ने सरकारी कल्‍याण कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता में वृद्धि का श्रेय प्रधान मंत्री के रेडियो प्रसारण को दिया है। इसलिए इस अध्ययन के निष्कर्ष, मन की बात के प्रभाव और लक्ष्‍य को प्रमाणित करते हैं, तथा देश को उज्जवल भविष्य की ओर प्रेरित और प्रोत्‍साहित करते हैं। आइए हम उन लोगों और उपायों पर एक नज़र डालते हैं जिनके बारे में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अब तक प्रसारित 100 एपिसोड में बात की है: कृषि : 1.बिजियाशांति तोंगब्रम: उन्होंने मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में अपने गृहनगर थंगा में कमल के फूलों और तनों से कपड़े बनाने का अभिनव कार्य किया और 2018 में अपना उद्यम स्थापित किया। आज, वे अपने क्षेत्र के स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर रही हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। मन की बात अपनी विषय वस्तु, शैली, वार्तालाप और लोगों तथा समाज के साथ संवाद करने के नायाब तरीके के मामले में अद्वितीय है। अनुराग सिंह ठाकुर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री। 2.हुलसूर महिला किसान मिलेट्स प्रोड्यूसर कंपनी: कर्नाटक के बीदर जिले में स्थित यह महिला केंद्रित श्रीअन्‍न आधारित कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) बाजरा को एक स्वस्थ भोजन विकल्प के रूप में बढ़ावा देता है और क्षेत्र में किसानों की मदद करता है। एफपीओ बाजरे के मूल्यसंवर्धन के बारे में महिला सदस्यों को प्रशिक्षण भी प्रदान करता है। 3.उरुगेन फुत्सोग: लेह, लद्दाख के गया गांव का एक किसान, जो 14,000 फीट की चुनौतीपूर्ण ऊंचाई पर जैविक खेती करता है। उन्होंने जैविक खेती के तरीकों को अपनाते हुए जौ से लेकर तरबूज तक की 20 किस्मों की सफलतापूर्वक खेती की है। 4.चिंताला वेंकट रेड्डी: तेलंगाना के एक जैविक किसान हैं, वे भारत के पहले स्वतंत्र किसान हैं जिन्हें मिट्टी की अदला-बदली और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने की स्‍वयं की तकनीक के लिए अंतरराष्ट्रीय पेटेंट प्राप्त हुआ है। उन्होंने चावल और गेहूं की किस्मों को विटामिन डी से संचरित किया है और फसलों पर हमला करने वाली टिड्डियों और अन्य कीटों को नियंत्रित करने के लिए जैविक 'मड्डी सोल्‍यूशन' का भी आविष्कार किया है। 5.राजेंद्र चबूलाल जाधव: उन्होंने नासिक में कोविड-19 महामारी के दौरान अपने गांव की सफाई के लिए एक विशेष मशीन तैयार की। खेती से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान खोजने के लिए विभिन्न मशीनरी के साथ उनके नवाचार ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया है। 6.बिक्रमजीत चकमा: त्रिपुरा में औषधीय पौधों के संरक्षण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। त्रिपुरा में जहां एप्पल बेर की खेती की जाती है, वहां लगभग 75 प्रतिशत खेती अब उनके तकनीकी मार्गदर्शन में की जा रही है। 7.शर्मिला ओसवाल: उन्होंने 'गुडमॉम' की स्थापना की - एक जैविक खाद्य ब्रांड जो किसानों को क्रूरता मुक्त जैविक उत्पादों का उत्पादन करने और उन्हें कम कीमत पर जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को उपलब्ध कराने पर केंद्रित है। अपने ब्रांड के माध्यम से उन्होंने दो लाख से अधिक किसानों और चार हजार आदिवासी परिवारों के जीवन को प्रभावित किया है। 8.इरादा : 2016 में माल गांव, लखनऊ में स्थापित, स्‍वयं सेवी संगठन इरादा खेती के प्रगतिशील विकास के लिए काम कर रहा है। कोविड-19 महामारी के दौरान जब किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा था, तो इरादा ने यह सुनिश्चित किया कि बिचौलियों को हटाते हुए कृषि उत्पाद खेतों से सीधे उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराए जाएं। 9.वीरेंद्र यादव: उन्होंने हरियाणा में अपने गांव में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए पहल की. बंडलिंग मशीनों की मदद से, उन्होंने पराली को कृषि-ऊर्जा संयंत्रों और पेपर मिलों के लिए एक मूल्यवान इनपुट में बदल दिया और अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों में रोजगार भी प्रदान किया। 10.टीएस रिंगफामी यंग: उन्होंने सेब की खेती शुरू की और 85 पौधे लगाए, जिनसे 200 किलो सेब का उत्पादन हुआ। उन्होंने मणिपुर में सेब की खेती के उद्योग में अपना नाम कमाया है। 11.केवी रामा सुब्बा रेड्डी: वे आंध्र प्रदेश के अनुपुरु गांव में एक कृषि व्यवसाय उद्यमी हैं। उनका उद्यम, सत्व मिलेट्स एंड फूड प्रोडॅक्‍ट्स, 2019 से, बाजरे का बीज उत्पादन बढ़ाने, आंध्र प्रदेश में स्थानीय रूप से प्रचलित सभी नौ प्रकार के बाजरे का उत्पादन करने और उन्हें उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराने में सहायक रहा है। आत्‍मनिर्भर 12.संतोष देवी: कोविड-19 के दौरान, उन्होंने चटाई बनाने के अपने पुश्तैनी काम को जारी रखा और रोजगार का एक स्रोत सुनिश्चित किया और इस तरह अपने और अपने साथी शिल्पकारों के लिए आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की। 13.प्रमोद बैठा: दिल्ली में एलईडी बल्ब निर्माण कारखाने में तकनीशियन के रूप में कार्यरत प्रमोद बैठा, को महामारी के दौरान अपने गृहनगर लौटना पड़ा। उन्‍होंने एलईडी बल्ब बनाने के लिए एक छोटी सी इकाई शुरू की, जो प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भरता के आह्वान से प्रेरित थी। वर्तमान में, उनके पास एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है जो महीने में लगभग 25-30 हजार बल्ब का उत्पादन करती है। 14.कर्नल (सेवानिवृत्त) हरिश्चंद्र सिंह: 2016 में, उन्होंने अपने खेत में अन्य फसलों और फलों के साथ जैविक रूप से चिया के बीज की खेती शुरू की। वह जैविक किसानों और पेशेवरों के लिए एक रोल मॉडल बन गए हैं, जो उनके लाभदायक कृषि मॉडल के बारे में जानने के लिए उनके पास आते हैं। 15.पीएम मुरुगेसन: उन्होंने मदुरै जिले में अपने गांव में केले के कचरे की समस्या को हल करने के लिए एक अभिनव तरीका निकाला। उन्होंने एक ऐसी मशीन का निर्माण किया जो बेकार केले के पत्तों, छिलकों और डंठलों का उपयोग करके रस्सियाँ बना सकती थी, जिसका उपयोग बैग और टोकरियाँ बनाने के लिए किया जा सकता था। उन्होंने 200 से अधिक लोगों को आत्मनिर्भर बनने में मदद की है। 16.सलमान: एक दिव्यांग होने के नाते, उन्होंने 2019 में एक फैक्ट्री शुरू की जो मुरादाबाद में अपने गांव के अन्य दिव्यांगजनों की मदद के लिए चप्पल और डिटर्जेंट बनाती है। उनकी टीम ने अपने लिए रोजगार सुनिश्चित किया है और अपने उद्यम को लाभदायक भी बनाया है। महिला सशक्तिकरण 17.थरागैगल कैविनाई पोरुट्टकल विरपनई अंगडी: तमिलनाडु का यह महिला स्वयं सहायता समूह स्वदेशी हस्तशिल्प को बढ़ावा दे रहा है और आजीविका पैदा कर रहा है। तंजौर गुड़िया और तंजौर प्लेट जैसी हस्तशिल्प वस्तुओं की बिक्री का व्यवसाय शुरू करने के लिए कई महिला स्वयं सहायता समूह एक साथ आए। 18.कैप्टन शिवा चौहान: वे सियाचिन के चुनौतीपूर्ण इलाके में तैनात होने वाली पहली महिला सेना अधिकारी बनीं। उन्‍होंने कठोर परिस्थितियों का सामना किया और खुद को तैयार करने के लिए कड़ा प्रशिक्षण लिया। 19.आदर्श जीविका महिला शहतूत कृषि उत्पादक समूह: यह 47 महिलाओं का एक समूह है जो रेशमकीट पालन और कोकून से कपड़ा बनाने में लगी हुई हैं। 2017 में स्थापित बिहार के इस स्‍व-सहायता समूह ने अपनी सदस्‍या महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव किया है। 20.सुनील जगलान: उन्होंने हरियाणा में अपने गांव बीबीपुर में लैंगिक समानता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों में 'सेल्फी विद डॉटर' अभियान शुरू करना शामिल है, जिसने भारत और विदेशों में अपार लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने देश की पहली महिला महापंचायत और पहली हाईटेक पंचायत भी शुरू की। 21.सुमन देवी: कोविड महामारी के दौरान, उन्होंने मां वैष्णो स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की मदद से खादी के मास्क बनाने और जरूरतमंदों को वितरित करने का फैसला किया, जिसकी वे कोषाध्यक्ष हैं। 22.चप्पल विनिर्माण संयंत्र: उत्‍तर प्रदेश में प्रयागराज जिले के फूलपुर की महिलाओं ने घर से बाहर निकल कर आजीविका कमाने का फैसला किया। उन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए एक चप्पल मशीन खरीदी और ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार और आत्मनिर्भर बनने में मदद की। 23.पूनम देवी: वे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक संस्था श्री बाबूराम स्वयं सहायता समूह की प्रमुख हैं, जो केले के बेकार तने से फाइबर बनाती है। वे इस रेशे से हैंडबैग, चटाई, गलीचे और अन्य उत्पाद बनाती हैं, जिससे गाँव की महिलाओं को आय का एक अतिरिक्त स्रोत मिलता है। 24.दंतेवाड़ा का जिला प्रशासन: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा की आदिवासी महिलाओं ने ई-रिक्शा चलाने में गतिशीलता और आत्‍मनिर्भरता प्राप्‍त की है। जिले की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिला प्रशासन ने महिला स्वयं सहायता समूहों को रियायती दरों पर ई-रिक्शा उपलब्ध कराए और सदस्यों को प्रशिक्षित प्रदान करते हुए समुचित लाइसेंस प्रदान किया। विरासत और संस्कृति 25.लिडी क्रो-यू: यह 2012 में कोहिमा, नागालैंड में महिलाओं के एक समूह द्वारा गठित एक संगठन है, जिसका उद्देश्य अपने समुदाय की समृद्ध संस्कृतियों और परंपराओं को संरक्षित करना है। संगठन ने नागा संस्कृति के उन खूबसूरत पहलुओं को पुनर्जीवित करने का काम किया है जो लुप्त होने के कगार पर थे, जैसे लोक संगीत, लोक नृत्य, परिधान बनाना, सिलाई और बुनाई। 26.त्रिवेणी कुम्भ महोत्सव : पश्चिम बंगाल के हुगली में 2022 में हुआ त्रिवेणी कुम्भ महोत्सव 700 वर्षों के अंतराल के बाद पुनर्जीवित हुआ। त्रिवेणी, पश्चिम बंगाल में सदियों से एक पवित्र स्थान के रूप में जाना जाता है और विभिन्न पारंपरिक साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है। 27.सागर नाइक मूले: वे गोवा के एक छोटे से गाँव अदपई के एक कलाकार हैं, जो कावी चित्रों के प्राचीन कला रूप को प्रकाश में लाने के लिए काम कर रहे हैं और इसे संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 28.बैंगलोर स्टोरी टेलिंग सोसाइटी: 2013 में, अपनी जड़ों और संस्कृति के साथ भारत के स्पर्श को पुनः प्राप्त करने के लिए कर्नाटक के बेंगलुरु में कहानीकारों का एक समूह एक साथ आया। सोसायटी भारत में कहानी कहने की मौखिक परंपरा को पुनर्जीवित करने, पोषित करने और बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठा रही है। 29.रेडिया यूनिटी 90 एमएम: गुजरात के केवड़िया में स्थित सामुदायिक रेडियो स्टेशन अपने श्रोताओं को संस्कृत में जानकारी प्रदान करता है। इसके रेडियो जाॅकी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास के क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों के लिए गाइड के रूप में काम कर रहे हैं। 30.सरमुद्दीन चित्रकार: वे पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर के पटचित्र कलारूप में विशेषज्ञता रखने वाले कलाकार हैं। वे अपनी संस्कृति और परंपरा को बढ़ावा देने के लिए पिंगला, पश्चिम मेदिनीपुर के ग्रामीण पटचित्र कारीगरों द्वारा गठित एक क्लस्टर, चित्रतरु से जुड़े हुए हैं। 31.मलिंग गोम्बू: उन्हें अरुणाचल प्रदेश के तवांग में कागज बनाने की 1,000 साल पुरानी विरासत कला, 'मोन शुगु' को नया जीवन देने का श्रेय दिया जाता है। इसे शुगू शेंग नाम के पौधे की छाल से बनाया जाता है जिसमें किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इसलिए यह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। 32.तिरु आर गुरुप्रसाद: वे तमिल भाषा, संस्कृति, त्योहारों और तमिलनाडु के प्रमुख स्थानों की महानता पर 'मन की बात' में प्रधान मंत्री द्वारा साझा की गई जानकारी पर शोध करते हैं। उन्होंने तमिलनाडु के महत्व को एक ई-बुक में संकलित किया है। 33.सीकरी टिस्सो: वे पिछले 20 वर्षों से असम की कार्बी भाषा को प्रलेखित करने और संरक्षित करने के लिए लगन से काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप कार्बी भाषा और साहित्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का प्रलेखन हुआ है। 34.हीरामन कोरवा: झारखंड के गढ़वाड़ी जिले के सिंजो गांव में रहने वाले पैरा शिक्षक हैं, जिन्होंने कोरवा संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का बीडा उठाया है. उन्होंने कोरवा भाषा का एक शब्दकोश बनाया है। 35.श्रीपति टुडू: वे पश्चिम बंगाल में संताली के सहायक प्रोफेसर हैं और उन्होंने संताली में पांच अलग-अलग पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उस भाषा में भारतीय संविधान का अनुवाद भी शामिल है। 36.सीवी राजू: वे आंध्र प्रदेश में अनाकापल्ली जिले के एटिकोप्का गांव में एटिकोप्पाका काष्‍ठ खिलौनों के शिल्प को पुनर्जीवित करने के लिए काम कर रहे हैं और कारीगरों को खिलौनों के बारे विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विनियमों की जानकारी देते हैं और उन्‍हें समुदाय की गुणवत्ता के बारे में जागरूक बना रहे हैं ताकि कारीगरों को उनके उत्‍पादों की बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित हो सके। 37.राम कुमार जोशी: हिमाचल प्रदेश के उना जिले में रहते हैं। उन्होंने अपना जीवन केवल 'राम' शब्द का उपयोग करते हुए डाक टिकटों, पोस्टकार्डों और चार्ट पेपरों पर स्वतंत्रता सेनानियों और प्रतिष्ठित हस्तियों के बारे सूक्ष्म-लेखन और रेखाचित्र बनाने की कला को समर्पित कर दिया है। स्वास्थ्य देखभाल 38.मानव मंदिर: इंडियन एसोसिएशन ऑफ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी द्वारा संचालित, मानव मंदिर एक स्वैच्छिक संगठन है जो हिमाचल प्रदेश में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के रोगियों के लिए जागरूकता पैदा करने और उन्‍हें, राहत एवं पुनर्वास प्रदान करने की दिशा में काम कर रहा है। इस केंद्र का प्रबंधन मुख्य रूप से इस बीमारी से पीड़ित लोगों द्वारा किया जाता है। 39.पूनम नौटियाल: वे उत्तराखंड के बागेश्वर की एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जो ऊबड़-खाबड़ इलाकों और बारिश के कारण अवरुद्ध सड़कों, जैसी अनेक चुनौतियों, का सामना करने के बावजूद, अपने क्षेत्र के सभी लोगों का टीकाकरण करने में सफल रहीं। 40.संकल्प 95: यह लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सहायता के क्षेत्र में जागरूक एवं सक्षम बनाने के उद्देश्य से एक कल्‍याणकारी कार्यक्रम है। कोविड-19 महामारी के दौरान, उन्होंने पीपीई किट, मास्क, सैनिटाइज़र और टीके वितरित किए। 41.त्रेवा ग्राम पंचायत: जम्मू में कोविड-19 महामारी के दौरान गांव की सरपंच बलबीर कौर ने कंधे पर स्प्रे पंप लादकर गांव को सैनिटाइज करने का अभियान शुरू किया. उन्‍होंने अपनी पंचायत में 30 बिस्तरों की सुविधा वाला एक संगरोध केंद्र बनवाया। 42.अनवी ज़ांज़ारुकिया: गुजरात के सूरत की डाउन सिंड्रोम से पीड़ित 13 साल की एक लड़की जिसने अपनी कड़ी मेहनत से योगासन में नाम कमाया है। योग ने उन्हें बेहतर जीवन जीने में मदद की है और वह 'योग करो, स्वस्थ रहो' नाम से एक अभियान चला रही हैं। 43.संपूर्ण परियोजना: समुदाय द्वारा संचालित इस नेक पहल का उद्देश्य असम के बोंगाईगांव में बच्चों के बीच कुपोषण के मुद्दे से निपटना है। यह परियोजना प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, टीकाकरण, वजन और पोषण सहित बच्चे के स्वास्थ्य और विकास के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करने के विचार से प्रेरित थी। 44.पटायत साहू: पिछले 40 वर्षों से, वे आयुर्वेद पर कार्य कर रहे हैं और उन्होंने ओडिशा के आदिवासी बहुल कालाहांडी जिले में आयुर्वेद संघों का गठन किया है। वे वनों को बचाने के लिए स्थानीय आदिवासियों के बीच जागरूकता पैदा कर रहे हैं, जो जिले के कई ब्लॉकों के लिए जीवन रेखा की तरह हैं। 45.रामलोतन कुशवाहा: उन्होंने मध्य प्रदेश के सतना में अपने खेत पर स्वदेशी पौधों का एक संग्रहालय बनाया है, जहां उन्होंने डेढ़ एकड़ भूमि पर जैविक रूप से उगाए गए 225 से अधिक दुर्लभ औषधीय पौधों और बीजों को एकत्र किया है। उनके प्रयासों ने इन मूल्यवान संसाधनों को संरक्षित करने में मदद की है, लेकिन दूसरों के लिए आय और ज्ञान का स्रोत भी प्रदान किया है। स्वच्छ भारत 46.तुषार : मध्य प्रदेश के एक गांव का 8 वर्षीय दिव्यांग बालक, जो बोल या सुन नहीं सकता, अपने इलाके में खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) का संदेश फैलाने के लिए घर-घर जाता था। इससे गांव पूरी तरह से ओडीएफ हो गया। 47.चंद्रकिशोर पाटिल: वे एक स्वच्छाग्रही हैं, जो लोगों को गोदावरी नदी में कचरा फेंकने से रोकने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। उन्‍होंने बड़ी संख्‍या में अन्य लोगों को अपने अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है। 48.महासागर की सफाई: यह पहल एक प्रमाणित स्कूबा प्रशिक्षक सुभाष चंद्रन द्वारा की गई थी, जब उन्होंने अपनी टीम के साथ गोता लगाते हुए आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में प्रदूषित समुद्र की कटु वास्तविकता को देखा था। स्थानीय मछुआरों के सहयोग से और 13 दिनों के भीतर उन्होंने समुद्र से 4,000 किलोग्राम से अधिक प्लास्टिक कचरा हटाया। 49.स्वच्छ और हरित कोकराझार: असम के कोकराझार में सुबह की सैर करने वालों के एक समूह ने इस सराहनीय स्वच्छता अभियान की शुरुआत की। यह समूह पिछले दो वर्षों से हर सप्ताह बड़े उत्साह के साथ स्वच्छता अभियान चला रहा है। 50.यूथ फॉर परिवर्तन: कर्नाटक के बेंगलुरु में संगठन का आदर्श वाक्य 'शिकायत बंद करो, कार्रवाई शुरू करो' है। संगठन का लक्ष्य स्वच्छ भारत के लिए सामुदायिक भागीदारी जुटाना है, और वे इसे कचरा-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करके और उन्हें सफाई, पेंटिंग और बेंच स्थापित करके बदल देते हैं। 51.रामवीर तंवर: वे यूपी के गाजियाबाद में वर्षों से तालाबों का जीर्णोद्धार कर रहे हैं। उन्होंने अपने स्कूल के दिनों में यह पहल शुरू की थी और तब से इसे जारी रखे हुए हैं। 52.पारिस्थितिकी संरक्षण संगठन: महाराष्ट्र के चंद्रपुर में स्थित इस संगठन ने खुद को पर्यावरण, जंगली जानवरों, पुरातात्विक विरासत संवर्धन और संरक्षण, आपदा प्रबंधन और युवा कार्यों के लिए समर्पित कर दिया है। 53.पुन्यम पूंकवनम परियोजना: यह 2011 में केरल के सबरीमाला अय्यप्पा मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के बीच पर्यावरण संरक्षण की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई थी। इसके अंतर्गत भक्‍तों को किफायत के साथ उपयोग, पुन: उपयोग और पुन:चक्रण के बारे शिक्षित और प्रोत्साहित किया गया था। 54.अनुदीप और मिनुशा, उडुपी: कर्नाटक के उडुपी के बिंदूर शहर में स्थित सोमेश्वर समुद्र तट की भयानक स्थिति को देखते हुए, युवा जोड़े ने हर दिन कुछ समय समुद्र तट की सफाई में बिताने का फैसला किया, जो अंततः एक आंदोलन में बदल गया। 55.सुकेत मॉडल: इस मॉडल की अवधारणा 2020 में बिहार के मधुबनी जिले में प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक छोटे से प्रयास के रूप में की गई थी और धीरे-धीरे एक सामुदायिक आंदोलन में बदल गई। किसानों से एकत्रित कचरे को वर्मी कम्पोस्ट में तब्दील किया जाता है जो किसानों के लिए जैव उर्वरक का काम करता है। 56.चंद्रकांत कुलकर्णी: वे वर्षों से महाराष्ट्र के पुणे में स्वच्छता और जल संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के लिए योगदान के रूप में अपनी पेंशन का लगभग एक-तिहाई दान करने के लिए 5,000 रुपये प्रत्येक के 52 पोस्ट-डेटेड चेक भी भेजे। फिट इंडिया 57.चिन्मय पाटणकर: मल्लखंब फेडरेशन, यूएसए (एमएफयू) के संस्थापक और स्वयंसेवक, जो संयुक्त राज्य अमरीका में मल्लखंब को बढ़ावा देने और सिखाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। यह भारत के बाहर मल्लखंब का पहला राष्ट्रीय स्तर का महासंघ है। 58.सोनाली रामचंद्र हेलवी: 23 वर्षीय सोनाली पिछले 15 सालों से कबड्डी खेल रही हैं। परिवार से न्यूनतम समर्थन के बावजूद, उन्होंने खेल के प्रति अपने जुनून का पीछा किया और कबड्डी में महाराष्ट्र अंडर -14 के लिए स्वर्ण पदक सहित सफलता हासिल की। 59.प्रशांत सिंह कन्हैया : 35वीं राष्ट्रीय जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2019 के अंडर-20 वर्ग में हरियाणा के पोल वॉल्टर ने विजयपाल सिंह के 1986 में बनाये गये रिकॉर्ड को तोड़ दिया। अपने दृढ़ संकल्प के साथ, उन्होंने 2020 खेलो इंडिया गेम्स में अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड बेहतर किया। 60.वेदांगी कुलकर्णी: 2018 में, उन्होंने अपनी साइकिल से 160 दिनों में 29,000 किमी की दूरी तय करके दुनिया की परिक्रमा की, ऐसा करने वाली वे सबसे कम उम्र की महिला बन गईं और साइकिल की सवारी करने वाली सबसे तेज़ एशियाई भी हैं। 61.रजनी: हरियाणा के पानीपत की रहने वाली हैं। उन्होंने स्कूली खेलों में स्वर्ण पदक, 2018 में जूनियर महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक और 2019 में एशियाई चैम्पियनशिप खेल पदक सहित कई पुरस्कार जीते हैं। 62.जिगर ठक्कर : गुजरात के 24 वर्षीय पैरा तैराक ने राष्ट्रीय स्तर पर 23 स्वर्ण, चार रजत और एक कांस्य पदक जीता है। जिगर ने एशियाई खेलों और विश्व सीरीज में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। 63.पूर्णा मालवथ: तेलंगाना के निजामाबाद में एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली, पूर्णा मालवथ 2014 में 13 साल और 11 महीने की उम्र में माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली सबसे कम उम्र की पर्वतारोही हैं। 2014 के बाद से वे दुनिया की सात सबसे कठिन और सबसे ऊँची पर्वत चोटियाँ फतह कर चुकी हैं। 64.काम्या कार्तिकेयन: उन्होंने माउंट एकॉनकागुआ, (6,962 मीटर), माउंट किलिमंजारो (5,895 मीटर), माउंट कोसियुस्को (2,228 मीटर) और माउंट एल्ब्रस (5,642 मीटर) की सबसे ऊंची चोटियों को फतह किया है। काम्या 20,310 फुट की उत्तरी अमेरिका की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट डेनाली को फतह करने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय भी हैं। डिजिटल इंडिया 65.ओम प्रकाश सिंह: उत्तर प्रदेश के हसनगंज गाँव के एक ग्रामीण उद्यमी, उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधा प्रदान करके अपने समुदाय में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। 2019 की शुरुआत में, सिंह ने एक साल के भीतर आसपास के क्षेत्रों में इंटरनेट के लगभग एक हजार कनेक्शन स्थापित किए। 66.योगेश साहू और रजनीश बाजपेयी: यूपी के रायबरेली के सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जोड़ी ने स्मार्ट गांव ऐप बनाया। ऐप लोगों को अपने गांव के विकास को ट्रैक करने और विश्व स्तर पर दूसरों के साथ जुड़ने में सक्षम बनाता है। 67.अतुल पाटीदार: फार्मकार्ट के सीईओ और संस्थापक देश भर के किसानों तक कृषि तकनीक पहुंचा रहे हैं। फार्मकार्ट ने मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल बड़वानी जिले के किसानों को उनकी समस्याओं के समाधान के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों की जानकारी देकर लाभान्वित किया है। 68.मोहम्मद असलम: राजस्थान के बाराँ जिले में अंता किसान एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी के सीईओ, जो किसानों को कृषि में कई आधुनिक तकनीकी प्रगति के बारे में जागरूक करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिसका उपयोग वे अपनी उपज बढ़ाने और अच्छी कमाई करने के लिए कर सकते हैं। 24 वर्षीय मोहम्मद असलम ने एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बनाया है जहां वह किसानों के साथ फसलों के बाजार मूल्य से संबंधित अपडेट साझा करते हैं। 69.साई प्रणीत बी: आंध्र प्रदेश के 26 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपने समुदाय की सेवा के रूप में 'आंध्र प्रदेश वेदरमैन' के नाम से नियमित अपडेट प्रदान कर रहे हैं। मौसम की आपदाओं और जोखिमों से बचने के लिए आवश्यक कदम उठाते हुए लोग अब उसकी मौसम भविष्यवाणी को गंभीरता से लेते हैं। ज्ञान का प्रसार 70.रामभूपाल रेड्डी: आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव के एक 62 वर्षीय सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक ने देश की गरीब लड़कियों की शिक्षा और कल्याण के लिए प्रधान मंत्री सुकन्या समृद्धि योजना में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद 25 लाख रुपये का वित्तीय लाभ दान किया। उनकी इस चैरिटी की बदौलत आज स्कूल जाने वाली लड़कियों के 100 से ज्यादा खाते खुल चुके हैं। 71. दीपमाला पाण्डेय: उत्तर प्रदेश की एक प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका 'वन टीचर, वन कॉल' नामक अपने अनूठे अभियान के साथ विद्यालयों में दिव्यांग बच्चों का नामांकन, समावेशन और पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रही हैं। 72.गौरव टेकरीवाल : वैदिक मैथ्स फोरम प्रा. लिमिटेड के संस्‍थापक, गौरव टेकरीवाल पिछले 22 वर्षों से वैदिक गणित से जुड़े हुए हैं। वे न केवल भारत में बल्कि नौ अन्य देशों में भी विद्यार्थियों को इसकी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। 73.हेमलता एन.के.: विलुप्पुरम जिले की एक तमिल शिक्षिका ने अपने पाठ्यक्रम के सभी अध्यायों को एनिमेटेड वीडियो में बदल दिया। उसने इन वीडियो को एक पेन ड्राइव में स्थानांतरित करके अपने सभी विद्यार्थियों को उपलब्‍ध कराया। 74.डॉ. कुरेला विट्ठलाचार्य: तेलंगाना के यदाद्री-भुवनगिरी जिले के रामन्नापेट डिवीजन से संबंधित डॉ. कुरेला विट्ठलाचार्य ने अपने गृहनगर में अपनी पुस्तकों के साथ एक पुस्तकालय शुरू किया, जिसमें अब लगभग दो लाख पुस्तकें हैं। उनके प्रयासों से कई अन्य गांवों के लोग भी पुस्तकालय स्थापित करने के लिए प्रेरित हुए हैं। 75.सपन कुमार पत्रलेख: झारखंड के दुमका जिले में स्थित जरमुंडी के एक शिक्षक ने नई शिक्षा नीति से प्रेरित होकर ब्लैकबोर्ड मॉडल अपनाया। उन्होंने चित्रों की मदद से अपना शिक्षण कार्य जारी रखा और इस तरह यह सुनिश्चित किया कि उनके गाँव के बच्चे बिना किसी बाधा के अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। 76.पीएन पनिकर फाउंडेशन: फाउंडेशन का उद्देश्य पूरे भारत में पढ़ने और 'डिजिटल रीडिंग मिशन' गतिविधियों के माध्यम से ज्ञान समाज बनाना है। जनभागीदारी के साथ यह फाउंडेशन देश में एक लोकप्रिय आंदोलन बन गया है। 77.न्गुरंग मीना गुरुंग: अरुणाचल प्रदेश के रेओ गांव के एक शिक्षक और कार्यकर्ता ने महिलाओं के सशक्तीकरण में मदद करने के लिए किमिन में न्गुरंग लर्निंग इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 78.जतिन ललित सिंह: उत्तर प्रदेश के बांसा गांव के एक 25 वर्षीय वकील जतिन ललित सिंह ने अपने गृहनगर में बंसा सामुदायिक पुस्तकालय की स्थापना की है। पुस्तकालय की स्थापना का लक्ष्‍य गाँव में पढ़ने की संस्कृति को पुनर्जीवित करना था। निःस्वार्थ सेवा 79.दैतारी नायक: अपने भाइयों और उनके बेटों के साथ, उन्होंने 1996 में एक नहर का निर्माण शुरू किया और चार साल की कड़ी मेहनत के बाद, पास की गुप्त गंगा नदी की नहर से जगतसिंहपुर जिले के गाँव में पानी पहुंचाय। 70 वर्षीय दैतारी नायक को 'कैनाल मैन ऑफ ओडिशा' के रूप में जाना जाता है, जिन्‍हें 2019 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 80.कुँवर सिंह : उत्तर प्रदेश के कुँवर सिंह ने आगरा के कचौरा गाँव में जल संकट की समस्या का समाधान कर सकारात्मक परिवर्तन लाने का श्रेय प्राप्‍त किया है। 81.मारीमुथु योगनाथन: तमिलनाडु के कोयम्बटूर के एक बस कंडक्टर मारीमुथु योगनाथन पिछले 34 सालों से पेड़ लगा रहे हैं। उनकी नेक पहल में बस में यात्रियों को मुफ्त पौधे बांटना शामिल है, और वे इस काम के लिए अपने वेतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खर्च कर रहे हैं। 82.नारायणन: 2021 में शुरू हुई उनकी परियोजना, जिसे 'वन अर्थन पॉट फॉर लिविंग वॉटर' कहा जाता है, पूरे केरल में स्काउट और गाइड में एक लाख विद्यार्थियों की भागीदारी के साथ विस्तारित हुई है, जिसके तहत पक्षियों और जानवरों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए मिट्टी के बर्तन वितरित किए जाते हैं ताकि भीषण गर्मी के दौरान उनकी कठिनाइयां कम की जा सकें। 83.डॉ अजीत मोहन चौधरी: यूपी के कानपुर में मुफ्त चिकित्सा सेवाएं प्रदान करते हैं और गरीबों तथा निरक्षरों के लिए साक्षरता अभियान चलाते हैं। . 84.सैदुल लस्कर: पश्चिम बंगाल के पुनरी गाँव के एक टैक्सी ड्राइवर, सैदुल लस्कर ने बारह वर्षों तक धन जुटाया, जिसके आधार पर गाँव में तीस-बिस्तर वाले अस्पताल की स्थापना हुई। 85.राधिका शास्त्री: उन्‍होंने पहाड़ी क्षेत्रों में रोगियों को आसान परिवहन प्रदान करने के उद्देश्य से तमिलनाडु में नीलगिरी जिले के कुन्नूर तालुक में 2021 में अंबुआरएक्स परियोजना शुरू की। अंबुआरएक्स वाहन एक स्ट्रेचर, ऑक्सीजन सिलेंडर, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स और अन्य चिकित्सा उपकरणों से लैस हैं। 86.मीरा शेनॉय: यूथ4जॉब्स की मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक, मीरा शेनॉय ने अपना जीवन देश भर के विकलांग युवाओं को सशक्त बनाने के लिए समर्पित कर दिया है। बेंगलुरु में स्थित, उनकी पहल ने 98 लाख परिवारों को प्रभावित किया है और 48,000 युवाओं को प्रशिक्षित किया है। 87.कौशांबी के कारागार बंदी : वे बेसहारा गायों के लिए कवर की सिलाई कर रहे हैं, जिन्हें बाद में जिला प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे निराश्रित गौ संरक्षण स्थलों और आश्रयों में भेजा जाता है। 88.पोन मरियप्पन: आठ साल पहले, तमिलनाडु के तुतुकुडी के इस हेयरड्रेसर ने अपने सैलून में किताबें रखनी शुरू कीं, जो अंततः एक छोटी सी लाइब्रेरी में बदल गई। पर्यावरण संरक्षण 89.सेव चित्ते लुई कोर्डिनेशन क‍मे‍टी: मिजोरम स्थित इस संगठन ने चित्ते लुई नदी का जीर्णोद्धार किया है जो वन्यजीवों के लिए आवश्यक आवास प्रदान करती है और शहर की भलाई में योगदान करती है। 90.मनोज बेंजवाल (प्रोजेक्ट पीआरएडब्‍लयूएएच): अर्थात् परियोजना प्रवाह- ''भागीदारी, वनीकरण और अपशिष्ट प्रबंधन' के जरिए हिमालयी झरनों का जीर्णोद्धार'' मनोज बेंजवाल द्वारा उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग से शुरू किया गया एक अभियान है। इसके अंतर्गत स्थानीय कचरे की सफाई के लिए सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा देना, हिमालय क्षेत्र में झरनों पर निर्भर लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना तथा स्थानीय पर्यावरण में सुधार के लिए वनीकरण अभियान और अन्‍य उपाय शामिल हैं। 91.सच्चिदानंद भारती: पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड के एक शिक्षक ने प्रभावकारी वर्षा जल संचयन कार्यक्रम शुरू किया है, जिससे क्षेत्र में जल संकट समाप्त हो गया है। 1989 के बाद से, उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक जल संरक्षण उपायों के आधार पर पानी एकत्र करने के लिए 30,000 से अधिक तालाबों का निर्माण किया है। 92.खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में: उत्तर प्रदेश में बांदा जिले के अंधव गांव में लोगों ने बारिश के पानी के संरक्षण के लिए 'खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में' नामक अभिनव अभियान की शुरुआत की। इसे सफल बनाने के लिए, सैकड़ों बीघे खेतों में ऊंची मेड़ें बनाई गईं, ताकि जमीन में पानी का रिसाव सुनिश्चित किया जा सके। 93.रोहन अशोक काले: महाराष्ट्र 'स्टेपवेल्स अभियान' के संस्थापक, रोहन अशोक काले, मानचित्रण, प्रलेखन, परिसंरक्षण, संरक्षण और बावड़ी पुनर्जीवित करने, बावड़ी दीपोत्‍सव आयोजित करने और राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। 94.कल्याणी नदी का कायाकल्प: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के प्रवासी श्रमिकों ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने गांव लौटने के बाद, सूख रही कल्याणी नदी को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी एक साथ ली। नतीजा यह हुआ है कि पर्याप्त पानी की उपलब्धता की बदौलत किसान वर्षों बाद अपने खेतों में धान की खेती कर पा रहे हैं। 95. अमृत सरोवर : उत्तर प्रदेश के रामपुर स्थित पटवई गांव का तालाब गंदगी और कचरे से भरा रहता था, लेकिन स्थानीय प्रशासन और जनभागीदारी की पहल से उसका जीर्णोद्धार और कायाकल्प किया गया. इस तालाब को प्रधानमंत्री ने देश के पहले 'अमृत सरोवर' के रूप में मान्यता दी थी। 96. प्रोफेसर श्रीनिवास पदकांडला: उनका मिशन विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में आर्थिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पुनर्नवीनीकरण ऑटोमोबाइल मैटल स्क्रैप से कलाकृतियों का निर्माण करना है। पिछले 25 वर्षों से, वे नगर निगमों और शहरी विकास प्राधिकरणों द्वारा प्रोत्साहित, सार्वजनिक स्थानों पर इस्‍पात के कचरे से बनी अपनी मूर्तियों का प्रदर्शन कर रहे हैं। 97. सुरेश कुमार: वे बेंगलुरु के पर्यावरणविद् हैं जिन्होंने 20 वर्षों में 10,000 से अधिक पेड़ लगाए हैं। वे अभिनव और पर्यावरण के अनुकूल उपायों के साथ अद्वितीय निर्माण परियोजनाओं के निर्माण में बड़ी लगन से लगे हुए हैं और उन्होंने बस शेल्‍टरों का निर्माण किया है जो कर्नाटक की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। 98. बोवेनपल्ली वेजिटेबल मार्केट: यह तेलंगाना के सिकंदराबाद में स्थित पूरे दक्षिणी भारत की दूसरी सबसे बड़ी थोक सब्जी मंडी है। सब्जी मंडी से जुड़े लोगों ने प्लांट लगाकर खराब सब्जी से बिजली पैदा करने की योजना तैयार की। तब से अब तक लगभग तीन लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हो चुका है। 99. सुल्तान से सुरतान: कुछ युवाओं ने मिलकर राजस्थान में उदयपुर की सुल्तान बावड़ी का ऐसा कायाकल्प कर दिया कि वह सुल्तान से लेकर सुर-तान बावड़ी के नाम से पहचानी जाने लगी है। इस बावड़ी के कायाकल्‍प का श्रेय उदयपुर के आर्किटेक्ट सुनील लढ़ा को जाता है। अब यह बावड़ी विभिन्‍न सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों के लिए लोकप्रिय स्‍थल बन गई है। लोग फिर से इस पुराने, परन्‍तु फिर भी नए स्‍थान पर आने लगे हैं। 100. सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट: पंजाब के कल्लार माजरी गांव के लोगों ने पराली जलाने के खतरे से निपटने के लिए एक अभिनव और पर्यावरण के अनुकूल समाधान विकसित किया। उन्‍होंने कंबाइन हारवेस्टर के पीछे 'सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट' का उपयोग करके पराली को वापस मिट्टी में दबा देने की कवायद शुरू की। इस पहल से मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने, वायु प्रदूषण रोकने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने में मदद मिली है।