रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Issue No.05, 29 April-5 May 2023

जी 20 एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मंच है, जिसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इस मंच का प्रमुख मकसद है, व्यापार और सामाजिक व अर्थिक विकास सहित तमाम वैश्विक मुद्दों पर मिलकर चर्चा करना और भविष्य में अपनाई जाने वाली रणनीति को अमल में लाने के लिए सदस्य देशों के बीच आम सहमति का निर्माण करना। इन तमाम वैश्विक मुद्दों में से एक विषय ऐसा है, जिसमें जी 20 देशों ने हाल के वर्षों में विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया है। यह विषय है श्रम, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा। इस विषय पर जी 20 देशों द्वारा किए जा रहे प्रयास, सतत और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। जी 20 के तहत रोजगार कार्य समूह का बनाया जाना इस बात का प्रमाण है कि जी 20 इन मुद्दों को कितना महत्व देता है। जी 20 रोजगार कार्य समूह - भूमिका और दायरा वर्ष 2011 में जी 20 देशों ने सतत और संतुलित विकास को बढ़ावा देने के मकसद से रोजगार के महत्व को पहचाना। उन्होंने इसके लिए रोजगार कार्यबल का गठन किया। इस कार्यबल को शुरूआत में एक वर्ष के लिए बनाया गया, लेकिन इसके प्रभाव को देखते हुए जी 20 देशों ने 2014 में इसे रोजगार कार्य समूह में बदलने का फैसला किया। इस समूह का उद्देश्य श्रम, रोजगार और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए टिकाऊ, संतुलित, समावेशी विकास और रोजगार की संभावनाओं को बढ़ावा देना है। ऐसा जी 20 सदस्य देशों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सामाजिक भागीदारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर किया जाता है। समूह की वार्षिक अनुसूची, श्रम और रोजगार मंत्रियों की घोषणा के अनुसार जी 20 अध्यक्ष देश द्वारा बनाई जाती है। विभिन्न देशों की अध्यक्षता के दौरान हुए कामों में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए, रोजगार कार्य समूह एक बहु-वर्षीय एजेंडे के तहत कार्य करता है, जिसे इसके सदस्य विकसित करते हैं। एजेंडे को वार्षिक तौर पर मूल्यांकित और जरुरत के मुताबिक नवीनीकृत भी किया जाता है। रोजगार कार्य समूह सुनिश्चित करता है कि उन विषयों पर प्रगति हुई हो जिन पर लंबे समय से कार्य किया जा रहा है। रोजगार कार्य समूह जिन प्रमुख विषयों पर ध्यान केंद्रित करता है, उनमें से एक है, सामाजिक सुरक्षा, जो कि यह सुनिश्चित करने की दृष्टि से अहम है कि श्रमिकों को उनके समूचे कामकाजी जीवन में पर्याप्त सुरक्षा मिल सके। सामाजिक सुरक्षा में बेरोजगारी से निपटने के लिए दिए जाने वाले लाभ, पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं सहित कई अहम कार्य शामिल होते हैं। रोजगार कार्य समूह यह सुनिश्चित करने के लिए काम करता है कि ये प्रणालियाँ प्रभावी, कुशल और सभी के लिए सुलभ हों। भारत की जी 20 अध्यक्षता के दौरान रोजगार कार्य समूह की प्राथमिकताएं इस वर्ष भारत जी 20 की अध्यक्षता कर रहा है। ऐसे में श्रम और रोजगार मंत्रालय जी 20 के रोजगार कार्य समूह की बैठकों का नेतृत्व कर रहा है। इन बैठकों में चल रही कार्यवाहियों पर इस वर्ष जुलाई में जी 20 की श्रम और रोजगार मंत्रियों की बैठक के दौरान विस्तृत रूप से चर्चा की जाएगी। भारत की अध्यक्षता में अब तक जी 20 रोजगार कार्य समूह की दो बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं। पहली बैठक दो से चार फरवरी 2023 को राजस्थान के जोधपुर में आयोजित की गई, जबकि दूसरी बैठक का आयोजन तीन से पांच अप्रैल के बीच असम के गुवाहाटी में किया गया। 19 से अधिक जी 20 सदस्य देशों समेत सात अतिथि देशों, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संघ, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के 74 से अधिक प्रतिनिधियों ने इस बैठकों में हिस्सा लिया। भारत का उद्देश्य रोजगार और इससे संबंधित मुद्दों पर जारी वैश्विक चर्चाओं में महत्वपूर्ण योगदान देना है। साथ ही ऐसे सार्थक समाधान भी प्रस्तुत करने हैं जो दुनिया भर के कर्मचारियों और नौकरी देने वालों को लाभान्वित करें। अब तक की बैठकों के दौरान हुए विचार-विमर्श के आधार पर, रोजगार कार्य समूह ने तीन प्रमुख प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की है जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। i) विभिन्न देशों के बीच कौशल के स्तर पर कई असमानताएं मौजूद है। ऐसे में इन असमानताओं को पहचानते हुए वैश्विक स्तर पर कौशल को लेकर बनी इस खाई को पाटने के लिए प्रयास करना। ii) गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के दौर में सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने पर बल देना। गिग अर्थव्यवस्था एक ऐसा श्रम बाजार है जो पूर्णकालिक स्थायी कर्मचारियों के बजाय अस्थायी और अंशकालिक तौर पर लोगों द्वारा किए जाने वाले कार्य पर निर्भर करता है। iii) सामाजिक सुरक्षा का सतत वित्तपोषण। इसके तहत यह सुनिश्चित किया जाना कि कैसे सामाजिक सुरक्षा प्रणाली लंबी अवधि के दौरान वित्तीय रूप से टिकाऊ रखी जा सकती है। वैश्विक कौशल अपर्याप्तता वैश्विक स्तर पर कौशल में पाई जाने वाली अपर्याप्तता और असमानताएं एक ऐसा मुद्दा है जो दुनिया भर के उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर रहा है। इन असमानताओं को सीधे-साधे अर्थ में समझे, तो यह एक ऐसी कमी है, जो नौकरी देने वालों की मांगों और रोजगार ढूंढने वाले लोगों के कौशल के बीच पाई जाती है। हाल के वर्षों में तकनीकी प्रगति और वैश्वीकरण की तेज गति और इसके हिसाब से बदलती कार्यप्रणाली के चलते ये असमानताएं और अधिक बढ़ी हैं। कौशल में इस खाई के पाए जाने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है, तकनीकी बदलाव की तेज दर। तेजी से बदलती तकनीकें, पारंपरिक कौशल ज्ञान को लगातार पुरानी और अप्रभावी करती जा रही हैं। विनिर्माण उद्योगों में यह अंतर स्पष्ट रूप से झलकता है, जहां स्वचालित तकनीकें और रोबोटिक्स तेजी से पारंपरिक नौकरियों की जगह ले रही हैं। नतीजतन, कई कर्मचारी नए रोजगार के अवसर खोजने के लिए संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं। कौशल के स्तर पर पाए जाने वाले इस अंतर के लिए एक अन्य कारक जिम्मेदार है, वो है कार्य की गतिशील प्रकृति। कंपनियों और उद्दयोगों को आज ऐसे कर्मचारियों की जरूरत है, जो कई तरह के कौशल से लैस हों। जैसे की उनमें तार्किक रूप से सोचने और समस्या का समाधान ढूंढने की क्षमता हो। साथ ही, अपनी टीम के साथ प्रभावी रूप से संचार करने और मिलकर काम करने का कौशल हो। इसके अलावा, वैश्वीकरण ने भी कौशल के स्तर पर पाए जाने वाले अंतर को बढ़ाने में योगदान दिया है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक कंपनियां वैश्विक स्तर पर अपने संगठन का विस्तार करती जा रही हैं, वैसे-वैसे कर्मचारियों को विविध संस्कृतियों और पृष्ठभूमि से जुड़े व्यक्तियों के साथ प्रभावी ढंग से बातचीत करने और मिलकर काम करने की क्षमता में इजाफा करना आवश्यक होता जा रहा है। आज के वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस दौर में अंतर-सांस्कृतिक संचार कौशल में पाई जाने वाली, कर्मचारियों की सबसे बड़ी कमियों में से एक है। वैश्विक प्रबंधन सलाहकार फर्म मैकिन्से एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 87 प्रतिशत कंपनियां विभिन्न देशों के बीच पाए जाने वाले कौशल में अंतर की समस्या से जूझ रही हैं। या फिर आगामी कुछ वर्षों में इस समस्या से जूझने के कगार पर हैं। यह समस्या व्यक्तियों, व्यवसायों और अर्थव्यवस्थाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। व्यक्तियों पर इसके प्रभाव की बात करें, तो ये बेरोज़गारी, अल्प-रोज़गार और कम वेतन के रूप में सामने आता है। वहीं, इस समस्या के कारण व्यवसायों को उच्च लागत और कम उत्पादकता की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अर्थव्यवस्थाओं के लिए, यह धीमी गति, नवाचार में कमी और असमानता में बढ़ोतरी का कारण बन सकता है। कौशल के स्तर पर पाया जाने वाला यह अंतर एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा है जिसके लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है। इसलिए जी 20 देशों ने शिक्षकों और व्यवसायों के साथ मिलकर काम करने की आम सहमति विकसित की है, ताकि नए समाधान ढूंढे जा सकें। इन नए समाधानों में शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर निवेश करना भी शामिल हैं जो श्रमिकों को मौजूदा अर्थव्यवस्था में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल से लैस करते हैं। यह व्यवसायों को अपने कार्यबल में निवेश करने और कर्मचारियों को नए कौशल से विकसित करने के अवसर प्रदान करने पर भी जोर देता है। जी 20 के नेता इस बात से सहमत हैं कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कौशल के स्तर को बढ़ाने और दोबारा कौशल प्रदान करने पर जोर देने की आवश्यकता है। इसके लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के पारंपरिक तरीकों से अलग हटकर नए दृष्टिकोणों और प्रणालियों को अपनाए जाने की जरूरत है, जोकि मौजूदा दौर की जरूरतों के हिसाब से कौशल विकास पर बल दे। इसलिए कर्मचारियों के प्रशिक्षण और उनसे संबंधित विकास कार्यक्रमों में निवेश करने, निरंतर सीखने की क्षमता को बेहतर बनाने और नवाचारी कार्यसंस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। भारत जी 20 देशों के बीच आम सहमति बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है ताकि इन देशों में कौशल की इस खाई को आंकने और योग्यता के बीच सामंजस्य बनाने के लिए एक मजबूत ढांचा विकसित किया जा सके। इसका मकसद है श्रम की गतिशीलता को और आसान और प्रभावी बनाना वो भी कम लागत पर। भारत ने कौशल मांग के आंकलन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कौशल अंतर मानचित्रण पोर्टल का प्रस्ताव रखा है। जी 20 देशों में कौशल और योग्यता के सामंजस्य के लिए एक एकीकृत ढांचे का विकास प्रमुख उद्देश्यों में सबसे ऊपर है। इस उदेश्य के लिए कौशल और योग्यता की पहचान, कौशल वर्गीकरण और सामंजस्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। गिग और प्लेटफार्म अर्थव्यवस्था: संभावनाएं और चुनौतियां गिग और प्लेटफार्म अर्थव्यवस्था आधुनिक श्रम बाजार में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी है। इसने उन पारंपरिक तरीकों को बदलकर रख दिया है, जिस तरह से हम काम करते हैं और जीविकोपार्जन करते हैं। यह एक ऐसी कार्य प्रणाली और कार्य संस्कृति है, जिसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म या ऑनलाइन मार्केटप्लेस के जरिए अस्थायी, स्वतंत्र या अनुबंधित कार्य की सुविधा लोगों को प्रदान की जाती है। जैसे की आने-जाने की सुविधा के लिए गाड़ी मुहैया कराने, घर तक खाना पहुंचाने, किराए के लिए घर दिलाने, कोचिंग, अनुवाद, रिपेयरिंग आदि जैसी कई सेवाएं प्रदान कराना। इन प्लेटफार्मों ने व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए नए अवसर पैदा किए हैं। हालाँकि, इस नई कार्यप्रणाली ने नौकरियों की सुरक्षा, कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ और उनके शोषण को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है। जैसे-जैसे यह प्रणाली और विकसित होती जा रही है, इसके लाभों और संभावित नुकसानों को समझना होगा ताकि ऐसी नीतियों को बनाया जा सके जो कर्मचारियों के लिए स्थायी भविष्य का साधन बन सके। गिग और प्लेटफार्म अर्थव्यस्था का प्रमुख लाभ यह है कि यह कर्मचारियों को काम करने की एक लचीली और स्वायत्त सुविधा प्रदान करती है। इसमें कर्मचारियों को ये आजादी है कि वे कब और कहाँ काम करें और कौन सी नौकरी करें। यह उन व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है जिन्हें बच्चों या बुजुर्गों की देखभाल करने जैसी अन्य जिम्मेदारियों के साथ-साथ काम भी करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, इस नई कार्य संस्कृति ने उन लोगों के लिए नए अवसर पैदा किए हैं जो पारंपरिक श्रम बाज़ारों में हिस्सा लेने में सक्षम नहीं हैं, जैसे दिव्यांग या दूर के इलाकों में रहने वाले लोग। हालाँकि, गिग और प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था की अपनी खामियां भी हैं। इस व्यवस्था को लेकर जो प्रमुख चिंता जताई जाती है, वो है नौकरी की सुरक्षा और कर्मचारियों को दिए जाने वाले लाभों में कमी। इस प्रणाली के तहत काम करने वालों को आम तौर पर कर्मचारियों के बजाय स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसका सीधा अर्थ है कि वे स्वास्थ्य बीमा, बीमारी के दौरान मिलने वाली छुट्टी या सेवानिवृत्ति योजनाओं जैसे लाभों के हकदार नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, ऐसे कर्मचारियों के पास संघ बनाने का अधिकार या किसी अनहोनी की स्थिति में मुआवजे की मांग के लिए वैधानिक दावा करने की स्वतंत्रता भी नहीं रहती। इस प्रणाली को लेकर जो सबसे प्रमुख चिंता जताई जाती है, वो ये है कि इसमें श्रमिकों के शोषण की संभावना लगातार बनी रहती है। गिग और प्लेटफार्म अर्थव्यवस्था में कुछ कंपनियों पर श्रमिकों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत करने का आरोप लगा है ताकि इन कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ और सुरक्षा देने से बचा जा सके। इसके अलावा, कुछ श्रमिकों को कम वेतन स्वीकार करने के लिए भी मजबूर किया जा सकता है, जिसके काम करने की स्थिति खराब हो सकती है और नौकरी से संतुष्टि का भाव भी कम हो सकता है। भारत में गिग प्रणाली के तहत काम करने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार, विभिन्न उद्योगों और सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों में लगभग एक करोड़ 50 लाख कर्मचारी इस व्यवस्था के तहत काम कर रहे हैं। इस तेजी से बढ़ते कार्यबल को कोविड महामारी के दौरान और बल मिला, जब लाखों लोगों ने इस नई कार्य संस्कृति को आय सृजन के विकल्प के तौर पर अपना लिया। एक अनुमान के मुताबिक, गिग अर्थव्यवस्था में 250 बिलियन डालर से अधिक के लेन-देन होने और लंबी अवधि में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 1.25 प्रतिशत का योगदान करने की क्षमता है। आने वाले वर्षों में गिग प्रणाली के भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने का अनुमान जताया जा रहा है। हालाँकि, गिग अर्थव्यवस्था से जुड़ी ऐसी चुनौतियाँ भी हैं जिनका समाधान किया जाना जरूरी है। एक नियामक ढांचे की प्रबल आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि गिग कर्मचारियों को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराई जा सके और उनके अधिकारों को बरकरार रखा जा सके। रोजगार कार्य बल की बैठकें, जी 20 देशों के अनुभवों को साझा करने पर केंद्रित रही हैं ताकि प्लेटफॉर्म और गिग अर्थव्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों के एक बड़े समूह को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाए जाने से संबंधित सिफारिशों को अमलीजामा पहनाया जा सके। बैठकों के दौरान यह पता लगाने की कोशिशें की गई कि कैसे राष्ट्रीय सांख्यिकीय क्षमताओं को बेहतर बनाकर गिग और प्लेटफॉर्म प्रणाली के तहत उभरने वाले नए कार्यों की पहचान की जा सके। इस बात पर भी व्यापक विचार-विमर्श किया गया कि कैसे तकनीक की मदद से आंकड़ों के संग्रह को प्रभावी बनाया जा सकता है। प्लेटफार्म अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के जरिए विभिन्न प्लेटफार्मों पर कार्यरत कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों की जानकारी को संहिताबद्ध किया जा सकेगा। इससे जी 20 देशों के बीच नियोक्ताओं के साथ-साथ कर्मचारियों को भी डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा प्रदान किए जा रहे अवसरों का पता लगाने में मदद मिलेगी। सामाजिक सुरक्षा के लिए सतत वित्तपोषण मानव विकास, राजनीतिक स्थिरता और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक सुरक्षा वैश्विक रणनीति का एक अनिवार्य घटक है। इन रणनीतियों में आम तौर पर गरीबी को कम करने और उसे रोकने के लिए सामाजिक बीमा और सामाजिक सहायता कार्यक्रमों पर जोर रहता है। सामाजिक सुरक्षा, घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत बनाने और आदर्श रोजगार का ढांचा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सामाजिक सुरक्षा, व्यक्तियों और उनके परिवारों की भलाई और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। खासतौर से उन लोगों के लिए जो कमजोर या वंचित हैं। लेकिन मौजूदा परिपेक्ष्य में जब विश्वभर में आर्थिक अनिश्चितता का माहौल है और सरकारों के लिए राजस्व के नए स्त्रोतों को ढूंढ पाना मुश्किल हो रहा है, ऐसे में सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का वित्तपोषण महत्वपूर्ण चुनौती है। जी 20 रोजगार कार्य समूह के लिए सामाजिक सुरक्षा का स्थायी वित्तपोषण एक अन्य प्रमुख मुद्दा है। सामाजिक सुरक्षा के स्थायी वित्तपोषण के लिए जरूरी है कि सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए राजस्व आधार को व्यापक बनाया जाए। इसके तहत करों का विस्तार करना, उनकी दरों में वृद्धि करना और राजस्व के नए स्रोतों को कर दायरे में शामिल करने जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं। राजस्व स्रोतों में विविधता लाकर सरकारें यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम पर्याप्त रूप से वित्त पोषित रहें। एक अन्य तरीका सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में अधिक दक्षता लाना और उन्हें प्रभावशील बनाना है। इस रणनीति के तहत उन लोगों को प्राथमिक रूप से लक्षित किया जाना चाहिए जिन्हें सामाजिक सुरक्षा की सबसे अधिक आवश्यकता है। इसमें प्रशासनिक लागत को कम करने व श्रम बल की अधिक भागीदारी को सुनिश्चित करने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की दक्षता में सुधार करके, सरकारें यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि वे लाभार्थियों को अधिक लाभ प्रदान करें वो भी करदाताओं पर बोझ को कम करते हुए। सामाजिक सुरक्षा के स्थायी वित्तपोषण के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाने चाहिए कि सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम लंबे समय तक व्यवहारिक बने रहें। इसके तहत सरकारों को जनसंख्या में हो रहे बदलावों की योजना बनानी चाहिए खासतौर से उम्रदराज होती आबादी की। इन जनसांख्यिकीय रुझानों और आर्थिक स्थितियों में हो रहे बदलावों को देखते हुए सेवानिवृत्ति की आयु, योगदान दरों को समायोजित करने और लाभ का मूल्यांकन करने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। जी 20 रोजगार कार्य समूह के एजेंडे में सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज प्रदान करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं और स्थायी वित्तपोषण तंत्र की बारीकियों को साझा करना शामिल है। जी 20 के नेता उन सिफारिशों की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिसके आधार पर उपलब्ध वित्तीय उपायों के आधार पर सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के ढांचे को मजबूत बनाया जा सकता है। वे यह भी पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि जी 20 देशों में सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का समर्थन करने के लिए कौन सी अंतर्राष्ट्रीय विकास सहायता और तंत्र उपलब्ध हैं। भारत भी जी 20 अध्यक्ष के रूप में इस दिशा में अथक प्रयास कर रहा है। इस प्रयासों का मकसद सामाजिक बीमा योजनाओं और कर-वित्तपोषित योजनाओं के जरिए सामाजिक सुरक्षा के स्थायी वित्तपोषण को सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत विकल्पों के विकास पर आम सहमति बनाना है।