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संपादकीय लेख


Issue no 03, 15-21 April 2023

 

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम

सीमावर्ती ग्रामो की उन्नति का रोड मैप

रितेश कुमार

सीमावर्ती गाँव किसी देश के लिए कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले, वे किसी भी बाहरी खतरे के बारे में खुफिया जानकारी के स्रोतों की पहली पंक्ति के रूप में काम करते हैं, जैसा कि 1999 के करगिल युद्ध में देखा गया था, जब स्थानीय चरवाहों ने अधिकारियों को दुश्मन सेना की घुसपैठ के बारे में सतर्क किया था। अरुणाचल प्रदेश में, सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाली स्वदेशी आबादी ने समय-समय पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की निर्माण गतिविधियों की सूचना दी है, जिससे अधिकारियों ने तेजी से सतर्कता बरती है। इस प्रकार, स्थानीय लोग सुरक्षा बलों को बहुमूल्य जानकारी प्रदान करने और देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सीमावर्ती गाँवों को आबाद करने और विकसित करने के रणनीतिक महत्व को दुनिया भर की सरकारें लंबे समय से स्वीकार करती रही हैं भारत ने अपनी विशाल भूमि सीमाओं और विविध सांस्कृतिक परिदृश्य के साथ, केंद्र प्रायोजित योजना - ’वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम (वीवीपी) यानी जीवंत ग्राम कार्यक्रम के माध्यम से इस लक्ष्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इस साल फरवरी में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2022-23 से 2025-26 के लिए 4800 करोड़ रुपये के वित्तीय आवंटन के साथ इस कार्यक्रम को मंजूरी दी थी।

पलायनः एक मौन चेतावनी: भारत की स्वतंत्रता के बाद, जब देश के अधिकांश हिस्सों में प्रगति हो रही थी, दुर्भाग्य से सीमावर्ती गाँव विकास के मामले में पीछे थे। इसने खराब कनेक्टिविटी, घटिया बुनियादी ढाँचे और कठिन जीवन स्थितियों जैसे कई मुद्दों को जन्म दिया, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। जो लोग अपने गांवों में ही रह गए हैं, उन्हें मुख्यधारा की विकास प्रक्रियाओं से बहिष्कृत किए जाने का डर सताता है। उनकी प्रमुख चिंताओं में बच्चों की शिक्षा, वृद्धावस्था देखभाल, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं, गुणवत्तापूर्ण भौतिक बुनियादी ढांचे तक पहुंच और सबसे बढ़कर, कृषि के बाहर लाभकारी आय के अवसर शामिल हैं। ये चुनौतियाँ खतरे या संघर्ष की व्यापक अवधारणा के कारण उच्च सुरक्षा की आवश्यकता वाले क्षेत्रों के गाँवों में और बढ़ जाती है।

 इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण उत्तराखंड राज्य है, जहां सीमावर्ती जिले रहने की प्रतिकूल स्थिति, खराब बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसी आवश्यक सुविधाओं की कमी के कारण  बड़े पैमाने पर पलायन की समस्या से जूझ रहे हैं। यह दुर्दशा जनसंख्या जनगणना 2011 में प्रलेखित है जो राज्य के अधिकांश पर्वतीय जिलों में जनसंख्या की बहुत धीमी वृद्धि दर्शाती है। चैंकाने वाली बात यह है कि उत्तराखंड के तीन सीमावर्ती जिलों के 185 से अधिक गांवों कोपूरी तरह से वीरान’ घोषित कर दिया गया है और अब उन्हेंभूतिया गांव के रूप में जाना जाता है। अधिकांश गाँव पिथौरागढ़ जिले के हैं जो चीन और नेपाल के साथ सीमा साझा करते हैं। कृषि इन गांवों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी और जैसे-जैसे छोटे किसानों के रूप में जीवन यापन करना कठिन होता गया, निवासियों ने आजीविका के अन्य अवसरों की तलाश में गांवों को छोड़ना शुरू कर दिया।

प्रवासन के कई कारण हैं, जिनकी प्रकृति मुख्य रूप से किसी परिवार या क्षेत्र में प्रचलित स्थितियों पर निर्भर करती है। भारत जैसे विकासशील देशों में एक विशिष्ट पारंपरिक और नव- पारंपरिक व्यवहारिक ढांचे में प्रवासन का विश्लेषण श्रम बाजार में विविधताओं की जटिल अंतःक्रिया, सामाजिक तथा राजनीतिक कारण और रहने की स्थितियों (आवास, स्वच्छता और शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी ढांचे तक पहुंच) का पता लगाने के लिए अपर्याप्त है ( अन्य जगहों पर अवसरों का विस्तार और रोजगार प्रदान करने में ग्रामीण श्रम बाजारों की विफलता दोनों ) फिर भी, संक्षेप में, जो कारक महत्वपूर्ण रूप से पलायन का कारण बनते हैं, वे हैं गैर-किफायती भूमि जोत, अत्यधिक कम आमदनी, बेहतर शैक्षिक स्तर के बावजूद कौशल प्रशिक्षण की कमी, गांवों तथा आसपास के क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की कमी और युवाओं की बढ़ती आकांक्षाएं। खासकर शिक्षित पुरुषों के लिए गांव में रहने और खेतों में काम करने को कलंक मानने का सामाजिक दबाव भी तेजी से उनके पलायन के लिए महत्वपूर्ण कारण बनता जा रहा है। आय में उतार-चढ़ाव के प्रति ग्रामीण परिवारों की बढ़ती असुरक्षा के मद्देनज़र, हाल के वर्षों मेे वेतन और काम करने की स्थितियां बेहतर बनाए जाने के बावजूद, नियमित / सुरक्षित नौकरियों के लिए पहाड़ी समाज का जुनून बना हुआ है।

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्रामः समस्या का शुरुआत में ही समाधान: वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम (वीवीपी) के तहत शुरुआत में प्राथमिकता के आधार पर व्यापक विकास के लिए 662 सीमावर्ती गांवों की पहचान की गई है। राज्यवार गांवों की संख्या इस प्रकार हैः अरुणाचल प्रदेश- 455, हिमाचल प्रदेश- 75, लद्दाख (यूटी)- 35, सिक्किम- 46 और उत्तराखंड- 51 इस कार्यक्रम के तहत प्रयासों के लिए कुछ फोकस क्षेत्रों की पहचान की गई हैः (1) आर्थिक विकास - आजीविका सृजन (2) सड़क संपर्क (3) आवास और ग्रामीण बुनियादी ढांचा (4) सौर और पवन ऊर्जा के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान देने के साथ ऊर्जा सुरक्षा (5) गांव में आईटी-सक्षम कॉमन सर्विस सेंटर की स्थापना सहित टेलीविजन और दूरसंचार कनेक्टिविटी (6) पारिस्थितिकी तंत्र का संपोषण (7) पर्यटन और संस्कृति को बढ़ावा देना (8) वित्तीय समावेशन (9) कौशल विकास और उद्यमिता (10)कृषि/बागवानी, औषधीय पौधों/जड़ी-बूटियों की खेती आदि सहित आजीविका के अवसरों के प्रबंधन के लिए सहकारी समितियों का विकास।

वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम (वीवीपी) की मुख्य विशेषताएं

·         उत्तरी सीमा से सटे चार राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड) और एक केंद्रशासित प्रदेश (लद्दाख) के सीमावर्ती ब्लॉकों में आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास और आजीविका के अवसरों का सृजन। इस योजना का उद्देश्य इस तरह के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन प्रदान करके, चिन्हित सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों के जीवन -स्तर में सुधार करना है, साथ ही साथ इन क्षेत्रों में जनसंख्या को बनाए रखना है। ऐसा करने से  क्षेत्र में समावेशी विकास और सतत विकास को बढ़ावा मिलेगा।

·         उत्तरी सीमा पर सीमावर्ती गांवों के स्थानीय प्राकृतिक, मानव और अन्य संसाधनों के आधार पर आर्थिक वाहकों की पहचान और विकास। यह योजना सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देने, कौशल विकास तथा उद्यमिता के माध्यम से युवाओं और महिलाओं के सशक्तिकरण, पर्यटन क्षमता का लाभ उठाने और संधारणीय पर्यावरण-कृषि व्यवसायों के विकास के माध्यम सेहब एंड स्पोक मॉडल पर विकास केंद्र विकसित करने का प्रयास है। इस योजना का उद्देश्य ऐसा करके, आर्थिक विकास के अनुकूल वातावरण बनाना है, जिससे केवल स्थानीय आबादी को लाभ होगा बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

·         वाइब्रेंट विलेज एक्शन योजनाएं सहभागी दृष्टिकोण पर आधारित हैं जिसमें उनकी जरूरतों और आकांक्षाओं को सुनिश्चित करते हुए ध्यान में रखा जाता  है कि स्थानीय समुदाय को विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए। इय कार्य योजना के तहत हस्तक्षेप के चिन्हित क्षेत्रों में परियोजनाओं पर ध्यान देने के साथ केंद्र और राज्य सरकारों की मौजूदा योजनाओं का  अभिसरण अपरिहार्य होगा।

·         युवाओं और महिलाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ पारंपरिक ज्ञान कार्यकलापों, गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों को शामिल किया जाएगा।

·         पर्यटन के संबंध में, सीमा दर्शन कार्यक्रम के तहत छात्रों के लिए नियमित क्षेत्र यात्राएं आयोजित की जाएंगी। हालांकि इनमें से कई सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए परमिट और अनुमति की आवश्यकता होती है, इसके पीछे विचार यह है कि संगठित यात्राओं के साथ शुरुआत की जाए और घरेलू पर्यटकों को शामिल करने के लिए धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ाया जाए।

·         कार्यक्रम के विभिन्न चरणों के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों को नियमित रूप से इन गांवों में जायजा लेने के लिए भेजा जाएगा।

·         वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम, सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बीएडीपी) के साथ परस्पर व्याप्त नहीं होगा। इसके बजाय, यह बीएडीपी का पूरक होगा और चिन्हित सीमावर्ती गांवों के विकास के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करेगा।

वर्ष 2022-23 से 2025-26 तक वीवीपी के लिए स्वीकृत वित्तीय आवंटन निम्नानुसार हैः-

योजना घटक     

लागत अनुमान प्रस्तावित व्यय (करोड़ रु. )

 

वित्त वर्ष      

2022-23

वित्त वर्ष      

2023-24

वित्त वर्ष      

2024-25

वित्त वर्ष  

2025-26   

कुल

सड़क घटक

0.00

500.00

1000.00

1000.00

2500.00

अन्य घटक

50.00

700.00

750.00

800.00

2300.00

 

कुल जोड़

4800.00

 

संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को कार्यक्रम की मंजूरी के बारे में सूचित कर दिया गया है और गांवों के लिए योजना प्रक्रिया शुरू करने का अनुरोध किया गया है। प्राथमिकता के आधार पर कवरेज के लिए चिन्हित गांवों में मेलों/त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्कूली बच्चों के दौरे, राज्य/जिला के वरिष्ठ अधिकारियों के दौरे, पर्यटन संबंधी गतिविधियों, हस्तशिल्प को बढ़ावा देने आदि जैसी गतिविधियों को आयोजित करने का भी अनुरोध किया गया है। इसी तरह, केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों से अनुरोध किया गया है कि वे केंद्रीय क्षेत्र की और केंद्र प्रायोजित जारी योजनाओं के अभिसरण को सुनिश्चित करें और चिन्हित गांवों में अपने मंत्रालयों/विभागों की गतिविधियों को आयोजित करें।

हब एंड स्पोक मॉडल: हब एंड स्पोक मॉडल एक व्यावसायिक प्रतिमान है जिसमें एक केंद्रीय हब या प्राथमिक स्थान शामिल होता है जो विभिन्न स्पोक लोकेशन से जोड़ने वाले के रूप में कार्य करता है। ये स्पोक आमतौर पर छोटे स्थान होते हैं जो हब से जुड़े होते हैं और उपग्रह स्थानों के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि यह मॉडल आमतौर पर परिवहन और रसद में नियोजित होता , फिर भी  इसे ग्रामीण विकास जैसे अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है।

वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम के संदर्भ में, हब एंड स्पोक मॉडल का उपयोग उन छोटे उपग्रह स्थानों के नेटवर्क को स्थापित करने के लिए किया जा सकता है जो , केंद्रीय हब से जुड़े हैं। यह हब संसाधनों, विशेषज्ञता और प्रशिक्षण तक पहुंच प्रदान कर सकता है, जबकि स्पोक ग्रामीण समुदायों को सूचना और संसाधनों का प्रसार कर सकते हैं। हब एंड स्पोक मॉडल संसाधनों और प्रयासों के दोहराव को कम करके दक्षता भी बढ़ाता है। इसे विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों की जरूरतों को समायोजित करने के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।

हब एंड स्पोक मॉडल कई तरीकों से रोजगार सृजन और कौशल विकास के मामले में ग्रामीण विकास को सुगम बना सकता है।

प्रशिक्षण और शिक्षाः हब ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तियों को प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान कर सकता है (स्पोक्स), जिससे वे नए कौशल प्राप्त कर सकें और अपनी रोजगार क्षमता में सुधार कर सकें।

·         संसाधनों तक पहुंचः हब, स्पोक्स को उपकरण, सामग्री और फंडिंग जैसे संसाधनों तक पहुंच प्रदान कर सकता है जिसका उपयोग व्यवसायों को शुरू करने और रोजगार सृजित करने के लिए किया जा सकता है।

·         नेटवर्किंगः हब, व्यक्तियों और संगठनों के बीच नेटवर्किंग की सुविधा प्रदान कर सकता है, सहयोग और ज्ञान-साझाकरण को बढ़ावा दे सकता है।

पूर्व की पहल अपर्याप्त क्यों थीं: वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम भारत की पिछली सीमा प्रबंधन नीतियों पर आधारित है, जिसमें सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बीएडीपी) के उदाहरण के रूप में अन्य सामाजिक आर्थिक विचारों पर सुरक्षा चिंताओं को प्राथमिकता दी गई है। बीएडीपी को सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-1990) के दौरान 457 ब्लॉकों, 16 राज्यों के 117 सीमावर्ती जिलों और सुरक्षा उद्देश्यों के लिए दो केंद्र शासितप्रदेशों में बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए शुरु किया गया था। हालांकि बीएडीपी को बाद में स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि जैसे मुद्दों के समाधान के लिए संशोधित किया गया था, लेकिन शुरुआत में इसे सामाजिक- आर्थिक फोकस की अनुपस्थिति के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में सीमावर्ती समुदायों को परेशान करने वाले मुख्य मुद्दे घटती जनसंख्या, कनेक्टिविटी की कमी, संसाधनों की कमी और अलगाव की भावना थे।

करगिल युद्ध (1999) के बाद, भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा संबंधी चिंताओं का व्यापक मूल्यांकन करने के लिए करगिल समीक्षा समिति (केआरसी) की स्थापना की। समिति के निष्कर्षों ने संकेत दिया कि सीमा सुरक्षा के लिए पारंपरिक सुरक्षा दृष्टिकोणों से परे उपायों की आवश्यकता होगी, जैसे कि सीमा के बुनियादी ढांचे में सुधार। नतीजतन, सीमा प्रबंधन विभाग (2004), भारतीय भूमि बंदरगाह प्राधिकरण (2012) बनाने और व्यापार तथा यात्रियों की सीमा पार आवाजाही की सुविधा के लिए सीमा पर एकीकृत चेक पोस्ट बनाने जैसी विभिन्न पहलों को लागू किया गया। इन्हें सीमाओं की भौतिक संरचनाओं को मजबूत करने के बजाय कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए तैयार किया गया था। हालांकि, ये उपाय कवरेज में सीमित थे, मुख्य रूप से प्रमुख भूमि व्यापार मार्गों पर केंद्रित थे और सुरक्षा-केंद्रित थे, अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास की उपेक्षा कर रहे थे।

मज़बूत सामरिक योजना का अपरिहार्य घटक: भारतपाकिस्तान और चीन सहित सात देशों के साथ सीमा साझा करता है, जिनके साथ इसने कई क्षेत्रीय विवादों का सामना किया है। करगिल युद्ध और उरी हमले जैसे कई सैन्य संघर्षों के साथ, भारत की आजादी के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बहुत अधिक रहा है। इसी तरह, मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्र में सीमा विवाद के कारण चीन के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। फिर भी, भारत और चीन प्रमुख व्यापार भागीदार भी बने हुए हैं। ठंडे द्विपक्षीय संबंधों के बावजूद, दोनों देशों के बीच व्यापार 2022 में 135.98 अमेरिकी डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। सिक्किम में नाथू ला और उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रा दोनों देशों के बीच माल कीे सड़क मार्ग से ढुलाई के लिए प्रमुख सीमा क्रासिंग के रूप में काम करता है।

इस प्रकार गाँवों की बस्तियों को मजबूत करने की अनिवार्यता, क्षेत्रीय सुरक्षा की तत्काल सामरिक प्रबल आवश्यकताओं से उत्पन्न होती है इसके अलावा इसमें एक बहुआयामी श्रृंखला शामिल है जिसमें आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कारक शामिल हैं, जो राष्ट्र के समग्र विकास के अभिन्न अंग हैं।

वर्तमान परिस्थितियों में, बुनियादी ढाँचे के विकास और स्थायी आजीविका उपायों के माध्यम से सीमावर्ती गाँवों की बस्तियों को मजबूत करने के लिए भारत के प्रमुख विचारों में निम्नलिखित शामिल हैंः

बढ़ी हुई निगरानीः सीमावर्ती गांवों को आबाद करने और सीमा के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने से भारतीय सेना की निगरानी क्षमताओं में वृद्धि होगी। सीमावर्ती गांवों को आबाद करके भारतीय सेना दुश्मन की टुकड़ी और हथियारों की गतिविधियों के बारे में खुफिया जानकारी जुटा सकती है। इसके अलावा, यह हमले की स्थिति में सहयोग सुनिश्चित करते हुए, भारतीय सेना और स्थानीय समुदायों के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित करने में मदद करेगा। इसके अलावा, दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उन्नत निगरानी तकनीकों जैसे रडार, ड्रोन और उपग्रहों को तैनात करने के लिए सहायक बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह किसी भी संदिग्ध गतिविधि का समय पर पता लगाने और त्वरित कार्रवाई करने में सक्षम होगा।

बेहतर सैन्य गतिशीलताः बढ़ी हुई सीमा अवसंरचना, सैन्य टुकडियों़ और हथियारों की बेहतर गतिशीलता की सुविधा प्रदान करेगी। सड़कों और पुलों के निर्माण से सैनिकों की सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से आवाजाही हो सकेगी, जबकि सुरंगें दुश्मन के हमलों से बचाव और सुरक्षा प्रदान करेंगी।

सीमा पार व्यापार की सुविधाः सीमावर्ती गाँव केवल सीमावर्ती रक्षा चैकी हैं, बल्कि सीमा पार व्यापार और वाणिज्य के प्रमुख स्थान भी हैं। वे वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में काम करते हैं, और उनकी समृद्धि राष्ट्र के आर्थिक विकास में योगदान करती है। इस संबंध में, उनकी क्षमताओं को मजबूत करने से देश का आर्थिक लचीलापन और प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ सकती है।

सांस्कृतिक विविधता का संरक्षणः सीमावर्ती गांवों में अक्सर उच्च स्तर की जातीय और सांस्कृतिक विविधता होती है, जो उन्हें अद्वितीय सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती है। इन समुदायों के विकास में निवेश करके, राज्य अपनी सामाजिक एकता को मजबूत कर सकता है और सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर सकता है।

चीन की सीमा चालों का मुकाबला करना

चीन के आक्रामक बुनियादी ढाँचे के विकास के प्रतिकार के रूप में, भारत सरकार ने 2006 में, अरुणाचल प्रदेश पर विशेष ध्यान देने के साथ, पूर्वोत्तर में रणनीतिक सड़कों के निर्माण पर ध्यान देना शुरू किया। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 2006 में रणनीतिक राजमार्गों के प्रारंभिक निर्माण को मंजूरी दी थी। तब से सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं लागू की गई हैं और अन्य उपाय किए गए हैं। हालांकि, वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम मुख्य रूप से 2020 से चीन द्वारा अपनी सीमा के साथ-साथ किए गए विकास के लिए समय पर की गई कार्रवाई के रूप में है। मई 2020 से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ गया है, जब चीन ने पूर्वी लद्दाख में यथास्थिति को बदलने के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों और भारी उपकरणों को तैनात किया था। हालांकि मई 2020 की सीमा झड़पों के बाद हुए विवादों को सुलझाना अभी बाकी है, फिर भी चीन ने जनवरी 2021 में एक नया सीमा कानून लागू किया। इस कानून के प्रावधानों के तहत, चीन अपनी सीमाओं के साथ शहरों का विकास कर रहा है और भारत, नेपाल और भूटान के आसपास के क्षेत्रों में निगरानी के प्रयासों में स्थानीय निवासियों की भागीदारी बढ़ा रहा है।

निष्कर्ष

सीमावर्ती गांवों में विकास और समृद्धि की कमी, देश के बाकी हिस्सों में हुई प्रगति के अनुरूप नहीं है। इस असमानता के अंतर्निहित कारण बहुआयामी हैं और इन क्षेत्रों को देश और दुनिया दोनों के विकासात्मक ढांचे में एकीकृत करने के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने के वास्ते जमीनी वास्तविकताओं की गहन जांच की आवश्यकता है। इसलिए, स्थिति की जटिलताओं को स्वीकार करना और इस मुद्दे को हल करने के लिए सूचित तथा सूक्ष्म दृष्टिकोण तैयार करना अत्यावश्यक है और वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम का उद्देश्य ठीक यही करना है।

(लेखक एक अंतरराष्ट्रीय समाचार मंच के दक्षिण एशिया ब्यूरो के साथ कार्यरत पत्रकार हैं। उनसे ritesh1926@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

 

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।