भारत का डेयरी क्षेत्र : एक अनोखा मॉडल
के वी प्रिया
भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। दुनिया के कुल दूध उत्पादन का 23% यहीं होता है। भारत की इस विकास गाथा की शुरुआत 1970 में स्मरणीय श्वेत क्रांति के जरिए हुई थी। देश ने 2023-24 तक अपने दुग्ध उत्पादन को दोगुना करके 300 मिलियन टन करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। यह 1950-51 के बाद से एक लंबी छलांग है जब दूध का उत्पादन मात्र 17 मिलियन टन था। 1968-69 में, ऑपरेशन फ्लड शुरू होने से पहले, 21.2 मिलियन टन दूध उत्पादन होता था, जो 1979-80 तक बढ़कर 30.4 मिलियन टन, 1989-90 तक 51.4 मिलियन टन और 2020-21 तक 209.96 मिलियन टन हो गया।
तीन दशकों में, देश में दूध की दैनिक खपत 1970 में प्रति व्यक्ति 107 ग्राम से बढ़कर 2020-21 में 427 ग्राम हो गई है।
भारत के लिए महत्वपूर्ण
सितंबर 2022 में ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश में इंटरनेशनल डेयरी फेडरेशन, वर्ल्ड डेयरी समिट का उद्घाटन करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'पशु धन' की केंद्रीयता और दूध से संबंधित व्यवसाय को भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य के एक आंतरिक भाग के रूप में रेखांकित किया था। इसने भारत के डेयरी क्षेत्र को कई विशिष्ट विशेषताएं प्रदान की हैं।
12 से 15 सितंबर तक आयोजित चार दिवसीय इंटरनेशनल डेयरी फेडरेशन -2022, वैश्विक और भारतीय डेयरी हितधारकों का सम्मेलन था। इसमें शीर्ष उद्योगपति, विशेषज्ञ, किसान और नीति नियोजक शामिल हुए थे, जिन्होंने पोषण और आजीविका के लिए डेयरी विषय पर मंथन किया।
इंटरनेशनल डेयरी फेडरेशन, वर्ल्ड डेयरी समिट -2022 में 50 देशों के लगभग 1,500 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
डेयरी, पशु दूध के लिए स्थापित एक व्यावसायिक उद्यम है, जो ज्यादातर गायों या बकरियों से प्राप्त होता है, और मानव उपभोग के लिए भैंस, भेड़, घोड़ों और यहां तक कि ऊंटों से भी प्राप्त होता है।
डेयरी क्षेत्र, गुणक प्रभाव वाले अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में से एक है। यह भारत के छह लाख गांवों में छोटे-सीमांत-भूमिहीन किसानों की आय में वृद्धि करता है, बिक्री/निर्यात से रोजगार पैदा करता है, पोषण में सुधार करता है, महिलाओं को सशक्त बनाता है।
डेयरी भारतीय अर्थव्यवस्था, ग्रामीण आजीविका, सतत विकास, प्रगति और विकास का एक अभिन्न अंग है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "डेयरी क्षेत्र की क्षमता न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देती है बल्कि दुनिया भर में करोड़ों लोगों के लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत भी है, यह क्षेत्र देश के 8 करोड़ से अधिक परिवारों को रोजगार प्रदान करता है।"
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में एक और अनोखे पहलू को रेखांकित किया गया है: डेयरी, कृषि से संबंधित सबसे बड़ा क्षेत्र है जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में पांच प्रतिशत का योगदान करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और मूल्य वर्धित डेयरी उत्पादों की बढ़ती घरेलू मांग द्वारा समर्थित फार्म गेट की मजबूत कीमतें दूध उत्पादन में वृद्धि में योगदान करने वाले कारक हैं।
उच्च प्रयोज्य आय और आर्थिक उछाल के कारण, भारतीय तेजी से डेयरी उत्पादों की एक श्रृंखला का उपभोग कर रहे हैं, इनमें शामिल हैं - दूध, सुगंधित दूध, यूएचटी दूध, बकरी तथा ऊंटनी का दूध, ए2 दूध, जैविक दूध, दही, प्रोबायोटिक उत्पाद, फ्लेवर्ड तथा फ्रोजन दही, छाछ, लस्सी, घी, मक्खन, पनीर, क्रीम, खोया , डेयरी व्हाइटनर, स्किम्ड मिल्क पाउडर, आइसक्रीम, मीठा गाढ़ा दूध और डेयरी उत्पादों से बनी मिठाइयां और दूध आधारित पेय।
2014 के बाद से भारत के डेयरी क्षेत्र की क्षमता में निरंतर वृद्धि से भारत की श्वेत क्रांति के विकास तथा सफलता का अनुमान लगाया जा सकता है। इससे दूध उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है, जिससे किसानों की आय में बढौत्तारी हुई है।
प्रधानमंत्री ने बताया “भारत में 2014 में 146 मिलियन टन दूध का उत्पादन होता था जो अब बढ़कर 210 मिलियन टन हो गया है, यानी लगभग 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर दो प्रतिशत दूध उत्पादन वृद्धि की तुलना में, भारत ने छह प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर हासिल की है। "
डेयरी सहकारिता
1970 में ऑपरेशन फ्लड के बाद से दूध की कमी वाले देश से दूध निर्यातक तक भारत की यात्रा का श्रेय, डेयरी सहकारी समितियों द्वारा निभाई गई भूमिका को दिया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के पूर्वानुमान के अनुसार, 2021 में डेयरी उत्पादों का विश्व व्यापार 88 मिलियन टन था, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 1.18 लाख टन थी। भारत ने बाद में भूटान, अफगानिस्तान, कनाडा, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देशों के साथ व्यापार बढ़ाया है।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का कहना है कि निर्यात बाजार के विकास के अलावा, 2030 तक भारत में दूध और दुग्ध उत्पादों की मांग 266.5 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ जाएगी। यह वृद्धि, 2035 तक भारत की आबादी 1.5 अरब तक पहुंचने के कारण होगी।
भारत मे बढ़ते दूध उत्पादन का महत्वपूर्ण कारक यह तथ्य है कि वैश्विक गोजातीय आबादी का एक चौथाई हिस्सा यहां पाया जाता है। 20वीं पशुधन गणना 2019 के अनुसार, देश में मवेशियों की कुल आबादी वर्तमान में 536.76 मिलियन है और 2012 की जनगणना के बाद से इसमें 4.8% की वृद्धि हुई है। कुल गोजातीय आबादी - भैंस, मिथुन और याक - 2019 में 303.76 मिलियन थी, जो 2012 के बाद से उनकी संख्या में 1.3% की वृद्धि दर्शाती है। इस अवधि के दौरान मवेशियों की कुल संख्या में भी 1.3% की वृद्धि हुई है।
सबसे बड़ी पशुधन आबादी उत्तर प्रदेश (68 मिलियन) में दर्ज की गई, इसके बाद राजस्थान (56.8 मिलियन) और मध्य प्रदेश (40.6 मिलियन) का स्थान है। दुधारू पशुओं के एक महत्वपूर्ण पशुधन आधार के बावजूद, भारत के लिए यह कठिन कार्य है।
एकीकृत नमूना सर्वेक्षण
एकीकृत नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, 2019-20 के दौरान भारत में मवेशियों की औसत वार्षिक उत्पादकता 1,777 किलोग्राम प्रति पशु प्रति वर्ष आंकी गई थी, जबकि 2019 के दौरान विश्व औसत 2,699 किलोग्राम प्रति पशु प्रति वर्ष था (खाद्य और कृषि संगठन सांख्यिकी के अनुसार)
2013-14 और 2019-20 के बीच मवेशियों की औसत उत्पादकता में 27.95% की वृद्धि हुई है, जो उत्पादकता में दुनिया की सबसे अधिक वृद्धि है। हालाँकि, यूरोपीय संघ (ईयू), अमेरिका और इज़राइल की तुलना में यह बहुत कम है, जिनका औसत दूध उत्पादन क्रमशः 6,692 लीटर, 9,865 लीटर और 11,706 लीटर है।
भारतीय मवेशियों में उत्पादकता इतनी कम क्यों है?
• सीमांत गतिविधि: डेयरी क्षेत्र कृषि में लगे किसानों की आय का पूरक है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत प्रतिदिन 400 मिलियन लीटर दूध का उत्पादन करता है, जिसमें से 40 प्रतिशत से अधिक उत्पादकों द्वारा अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए रखा जाता है।
• उत्पादक मवेशियों की संख्या बहुत कम: इन गैर-वर्णित पशुओं का वार्षिक दूध उत्पादन काफी कम होता है।
• प्रजनन कार्यनीतियाँ: नगण्य वंशावली रिकॉर्ड- एक बड़ी बाधा नस्ल उन्नयन और बेहतर उत्पादकता के लिए पशु चयन है।
• वंशावली सांडों की उपलब्धता
• गोवंश में बांझपन
• अपर्याप्त कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं
• कुशल जनशक्ति की कमी: ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में योग्य पशु चिकित्सा और तकनीकी जनशक्ति की कमी
• चारे की भारी कमी: कृषि पर संसदीय समिति ने दिसंबर 2016 में बताया कि चरागाह भूमि के बड़े हिस्से को या तो कम कर दिया गया है या उस पर कब्जा कर लिया गया है।
• चारे की कीमत में वृद्धि: बढ़ती मानव खपत और औद्योगिक उपयोग के कारण चारे की कीमत में वृद्धि हुई है।
• अपर्याप्त रोग नियंत्रण कार्यक्रम: खुरपका तथा मुंहपका रोग, ब्रुसेलोसिस, एचएस, बीक्यू, पीपीआर, बांझपन, सुस्ती और आईबीआर तथा ब्लू टंग जैसी उभरती बीमारियों जैसे प्रमुख रोगों के टीकों की कमी।
• कर्ज़ की अपर्याप्त उपलब्धता
• कोल्ड चेन की कमी: ग्रामीण स्तर पर संदूषण और खराब होने से बचाने के लिए चिलिंग प्लांट और बल्क कूलर जैसे बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी चुनौती है।
• सरकारी नीतियों और योजनाओं के बारे में कम जागरूकता
• अनाकर्षक करियर विकल्प: बहुत से युवा पशुपालन क्षेत्र से नहीं जुड़ते हैं।
उपर्युक्त चुनौतियों से अवगत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी मार्गदर्शन ने केंद्र सरकार को डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक संतुलित और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए फोकस, कार्यों और धन के साथ दर्जनों पहल शुरू करने के लिए प्रेरित किया है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन
श्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभालने के छह महीने बाद दिसंबर 2014 में स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम) का शुभारंभ किया। दुग्ध उत्पादन बढ़ाने, दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने, गायों की उर्वरता बढ़ाने और किसानों के लिए डेयरी को अधिक लाभकारी बनाने के लिए यह योजना महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन 2,400 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ 2021 से 2026 तक राष्ट्रीय पशुधन विकास योजना के तहत जारी है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि होगी, जो भारत के सभी मवेशियों और भैंसों के लिए होगा और विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों की सहायता के लिए होगा। इस कार्यक्रम से महिलाओं को भी लाभ होगा, क्योंकि पशुपालन में शामिल 70% से अधिक कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है।
पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ)
24 जून 2020 को, प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने आत्मनिर्भर भारत अभियान प्रोत्साहन पैकेज के तहत 15,000 करोड़ रुपये के पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (एएचआईडीएफ) को मंजूरी दी।
इस कोष का उद्देश्य व्यक्तिगत उद्यमियों, निजी कंपनियों, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई), किसान उत्पादक संगठनों और धारा 8 कंपनियों द्वारा (i) डेयरी प्रसंस्करण और मूल्य वर्धित बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिए निवेश को प्रोत्साहित करना है; (ii) मांस प्रसंस्करण तथा मूल्यवर्धन अवसंरचना और (iii) पशु चारा संयंत्र।
इसके अलावा, केंद्र सरकार ने पात्र लाभार्थियों को तीन प्रतिशत ब्याज अनुदान भी प्रदान किया है। मूल ऋण राशि के लिए दो साल की मोहलत अवधि और उसके बाद छह साल की चुकता अवधि होगी।
गौबर्धन योजना
अपने मवेशियों और बायोडिग्रेडेबल कचरे के प्रभावी प्रबंधन में गांवों की सहायता के लिए, केंद्र ने गौबर्धन (गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो एग्रो रिसोर्स) योजना शुरू की। इसे स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण-द्वितीय चरण के तहत एक राष्ट्रीय कार्यक्रम प्राथमिकता के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है, जहां पेयजल और स्वच्छता विभाग हर जिले को तकनीकी सहायता और प्रति जिले 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता देता है ताकि मवेशियों और बायोडिग्रेडेबल कचरा का सुरक्षित प्रबंधन, गांवों को कचरे को संपत्ति में बदलने में मदद, पर्यावरण स्वच्छता में सुधार किया जा सके और जीवाणु जनित बीमारियों पर अंकुश लगाया जा सके।
वर्तमान में गौबर्धन को 128 जिलों में लागू किया गया है जहां 513 बायोगैस/सीबीजी संयंत्र पूरे हो चुके हैं और कार्य कर रहे हैं। अन्य 113 का कार्यान्वयन की प्रक्रिया में हैं। इसका उद्देश्य उस लक्ष्य तक पहुंचना है जहां डेयरी संयंत्र गाय के गोबर से अपने लिए बिजली का उत्पादन करते हैं, और गोबर की खाद के इस्तेमाल से व्यापक जैविक खेती का मार्ग प्रशस्त होता है।
प्रमुख चुनौती: गांठदार त्वचा रोग
गांठदार त्वचा रोग के कारण हाल में, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, अंडमान और निकोबार, उत्तराखंड, जम्मू -कश्मीर, उत्तर प्रदेश , हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और झारखंड जैसे कई राज्यों में पशुधन की काफी हानि हुई है। गांठदार त्वचा रोग- यह जूनोटिक वायरस नहीं है, अर्थात यह रोग मनुष्यों में नहीं फैल सकता है। वायरस ने 197 जिलों में 16 लाख से अधिक मवेशियों को संक्रमित किया है। इस बीमारी से प्रभावित लगभग 75,000 मवेशियों में से, 50,000 से अधिक की मौत हुई है, ज्यादातर गायों की मौत राजस्थान से हुई है। केंद्र सरकार समेत कई राज्य सरकारें इस पर लगाम कसने की भरसक कोशिश कर रही हैं। वैज्ञानिकों ने गांठदार त्वचा रोग से बचाव का स्वदेशी टीका तैयार कर लिया है।
लंपी-प्रोवैकइंड वैक्सीन
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अगस्त में पशुओं को इस बीमारी से बचाने के लिए स्वदेशी वैक्सीन लंपी-प्रोवैकइंड वैक्सीन जारी किया था। वैक्सीन को भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) के सहयोग से राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) द्वारा विकसित किया गया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने टीके को गांठदार त्वचा रोग के उन्मूलन के लिए एक मील का पत्थर बताते हुए कहा, “जब जानवर बीमार होता है तो यह किसान के जीवन और उसकी आय को प्रभावित करता है। यह पशु की दक्षता, उसके दूध की गुणवत्ता और अन्य संबंधित उत्पादों को भी प्रभावित करता है।”
सभी पशुओं का टीकाकरण
भारत सभी पशुओं के टीकाकरण की दिशा में काम कर रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन के दौरान कहा “हमने संकल्प लिया है कि 2025 तक, हम खुरपका , मुँहपका रोग और ब्रुसेलोसिस की रोकथाम के लिए 100% पशुओं का टीकाकरण करेंगे। हम इस दशक के अंत तक इन बीमारियों से पूरी तरह से मुक्त होने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं” ।
पशु डेटाबेस-पशु आधार
भारत ने डेयरी क्षेत्र का डिजिटीकरण भी शुरू कर दिया है, डेयरी पशुओं का सबसे बड़ा डेटाबेस तैयार कर रहा है, जहां इस क्षेत्र से जुड़े हर जानवर को टैग किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा, “हम जानवरों की बायोमेट्रिक पहचान कर रहे हैं। हमने इसे पशु आधार नाम दिया है” ।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा विकसित, पशु आधार को पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिए सूचना नेटवर्क (आईएनएपीएच) के रूप में भी जाना जाएगा। यहां, सभी जानवरों को कान का टैग दिया जाएगा जिसमें बार-कोडेड 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या होगी। इसमें पंजीकृत जानवरों से संबंधित सभी डेटा शामिल होंगे, जिसमें उनकी प्रजाति, नस्ल और वंशावली शामिल है। इसके अलावा, इसमें ब्याने, टीकाकरण और दुग्ध उत्पादन से संबंधित जानकारी भी शामिल होगी।
पशु तस्करी को रोकने के लिए पहली बार 2015 में एक सरकारी समिति द्वारा पशु आधार की स्थापना का प्रस्ताव किया गया था। यह सिफारिश पशु तस्करी के खिलाफ एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आई है।
चारे की कमी को दूर करना
यह सुनिश्चित करने के लिए कि दुग्ध उत्पादन कम न हो जाए, भारत ने चारे की कमी पर ध्यान केंद्रित किया है। द इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरीड ट्रॉपिक्स (आईसीआरआईएसएटी) के अनुसार, भारत को 284 मि.टन हरे चारे और 122 मि.टन सूखे चारे की कमी का सामना करना पड़ रहा है। यह मांग और बढ़ने की संभावना है, और भारत को 2025 तक क्रमशः 400 और 117 मि.टन हरे और सूखे चारे की आवश्यकता होगी।
पहले से ही गांठदार त्वचा रोग से जूझ रहे कई राज्यों में भी चारे की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। दूध की बढ़ती कीमतों सहित चारे की लागत का व्यापक प्रभाव कैसे हो सकता है, यह महसूस करते हुए, केंद्र ने इस वित्त वर्ष के दौरान 100 चारा केंद्रित किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की स्थापना के लिए कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड -एनडीडीबी को नामित किया है ताकि देश में चारे की कमी को दूर किया जा सके।
भारत-वैश्विक डेयरी उद्योग का भविष्य
इंटरनेशनल डेयरी फेडरेशन के अध्यक्ष, पियरक्रिस्टियानो ब्रेज़ाले ने वर्ल्ड डेयरी समिट में भाग लेते हुए, भविष्यवाणी की कि भारत वैश्विक डेयरी उद्योग का भविष्य है, और इसमें दूध उत्पादन बढ़ाने की बहुत अधिक क्षमता है। छोटे किसानों के नेतृत्व वाली सहकारी समितियों के मॉडल को डेयरी विकास के लिए सबसे उपयुक्त मानते हुए, ब्रेज़ाले ने कहा कि "नवाचार और डिजिटीकरण सभी क्षेत्रों का भविष्य है।"
भारत के शीर्ष-निर्यात व्यापार संवर्धन सरकारी निकाय- कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार, वर्ष 2021-22 के दौरान भारत का डेयरी निर्यात 108,711.27 मिलियन टन आंका गया था, जिसका मूल्य 2,928.79 करोड़ रुपये या 391.59 मिलियन अमेरिकी डॉलर अनुमानित था।
प्रमुख निर्यात गंतव्य
डेयरी उत्पादों के लिए भारत के प्रमुख निर्यातक देश हैं- बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मलेशिया, सऊदी अरब और कतर । डेयरी उत्पादों का निर्यात चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 58% बढ़कर 342 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष की दूसरी तिमाही में 216 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। अप्रैल-सितंबर 2021 में पशुधन उत्पादों का निर्यात 1,903 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-सितंबर 2022 में 2,099 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
हितधारकों का अनुमान है कि भारत आने वाले वर्षों में डेयरी व्यवसाय में एक प्रमुख वैश्विक शक्ति- केंद्र के रूप में उभरेगा। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष मीनेश शाह ने मोदी सरकार के रक्षा, प्रचार तथा समृद्धि के उद्देश्य की पहल का वर्णन करते हुए कहा कि इससे भारत के डेयरी व्यवसाय के उज्ज्वल भविष्य की आशा जागृत होती है। उन्होंने कहा, “भारतीय डेयरी व्यवसाय का वर्तमान मूल्य 13 ट्रिलियन रुपये के करीब है। हम उम्मीद करते हैं कि यह अगले पांच वर्षों में दोगुना से अधिक हो जाएगा और 2027 तक 30 ट्रिलियन रुपये के करीब पहुंच जाएगा।"
इसी आशावाद को प्रतिध्वनित करते हुए, अमूल के प्रबंध निदेशक, आर.एस. सोढ़ी ने कहा: ``वर्तमान में, हम कुल वैश्विक उत्पादन का 23% उत्पादन कर रहे हैं। 2045 तक, यह बढ़कर 47% तक पहुंच सकता है।
ऑपरेशन फ्लड: एक सपने को साकार करना
भारत की आजादी के समय देश ने दूध की नदियां बहने का सपना देखा था। हालाँकि, इसमें 1952 की शुरुआत में कैरा किसान दुग्ध सहकारी समिति की सफलता को पाने और दोहराने के लिए परिकल्पना और पर्याप्त संसाधन दोनों की कमी थी। श्वेत क्रांति के जनक के रूप में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के पहले अध्यक्ष डाक्टर वर्गिस कुर्रियन ने इस सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी उठाई। 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने, गुजरात के आणंद में कुरियन ने जो हासिल किया था, उसकी तर्ज पर एक राष्ट्रव्यापी, 'बिलियन-लीटर-आइडिया' को दोहराने के लिए उनसे संपर्क किया था।
1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की क्रांतिकारी और दुनिया की सबसे बड़ी कृषि डेयरी विकास परियोजना - ऑपरेशन फ्लड, शुरू की गई थी। इसने भारत को दूध की कमी वाले देश से दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया। यह क्षेत्रीय स्तर पर 'दुग्ध उत्पादन के आणंद के तरीके के विस्तार के कुरियन के प्रयासों के कारण हुआ।
ऑपरेशन फ्लड को किसानों का आर्थिक उत्थान करते हुए, देश भर की दुग्धशालाओं में जहां से उत्पादित और खरीदे गए दूध को शहरों में ले जाया जाएगा, आनंद-पैटर्न वाली सहकारी समितियों के संगठन का नेतृत्व करते हुए 700 कस्बों में तीन चरणों में शुरू किया गया था ।
कुरियन का डेयरी सहकारी समितियों का 'आनंद पैटर्न' सफल रहा क्योंकि यह एक उपयुक्त 'टॉप-डाउन' और 'बॉटम अप' दृष्टिकोण यानी शीर्ष नेतृत्व और परियोजना से जुड़े कर्मियों दोनों द्वारा निर्णय लेने की नीति के अमल पर आधारित था। ऑपरेशन फ्लड को तीन चरणों में लागू किया गया था:
• चरण- I (1970-1980) को विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ (तब यूरोपीय आर्थिक समुदाय) द्वारा दान किए गए स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर ऑयल की बिक्री से वित्तपोषित किया गया था।
• दूसरे चरण (1981-1985) में दुग्धशालाओं की संख्या 18 से बढ़ाकर 136 की गई; शहरी बाजारों ने दूध के लिए आउटलेट्स को 290 तक विस्तारित किया। 1985 के अंत तक, 4,250,000 दुग्ध उत्पादकों के साथ 43,000 ग्रामीण सहकारी समितियों की एक आत्मनिर्भर प्रणाली मौजूद थी।
• चरण III (1985-1996) ने डेयरी सहकारी समितियों को दूध की बढ़ती मात्रा की खरीद और विपणन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का विस्तार और मजबूती प्रदान करने में सक्षम बनाया। इस चरण में 30,000 नई डेयरी सहकारी समितियाँ जोड़ी गईं, जिससे उनकी कुल संख्या 73,000 हो गई।
ऑपरेशन फ्लड ने राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड के माध्यम से 700 कस्बों और शहरों में उपभोक्ताओं तक गुणवत्तापूर्ण दूध पहुंचाने में मदद की।
वैश्विक भोजन के रूप में दूध के महत्व को स्वीकार करने और डेयरी क्षेत्र को सम्मान देने के लिए 2001 से हर साल 1 जून को, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा विश्व दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत में 26 नवंबर को डॉक्टर वर्गीज कुरियन के जन्मदिन को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने भारत में वैश्विक क्रांति का सूत्रपात किया, यह केवल सांकेतिक स्मरण है।
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इन्फोग्राफिक
दुग्ध उत्पादन में तेज़ी से बढ़ौत्तरी
दूध की कमी वाले देश से दुग्ध उत्पादों का निर्यातक बना
17 मि.टन 138 मि.टन 210 मि.टन
स्रोत- पशुपालन, डेयरी और मत्स्य मंत्रालय