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संपादकीय लेख


अंक संख्या -38, 17-23 दिसम्बर,2022

 

            राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस

     उपभोक्ता के रूप में जानें अपने अधिकार


प्रो(डॉ.)शीतल कपूर
हम सभी उपभोक्ता हैं क्योंकि हम बाजार से सामान और सेवाएं खरीदते हैं। उपभोक्ताओं से बाजार बनता है और उपभोक्तावाद कानूनी, प्रशासनिक तथा आर्थिक नीतिगत उपायों से उपभोक्ताओं की सहायता और सुरक्षा के लिए एक सामाजिक शक्ति है। किसी देश की अर्थव्यवस्था अपने बाजारों के चारों ओर घूमती है। बाजार  में सबसे अधिक शोषण उपभोक्ता का होता है लेकिन जब खरीदारों और विक्रेताओं की पर्याप्त संख्या होती है, तो उपभोक्ता को बड़ी संख्या में विकल्प उपलब्‍ध होते  हैं और वह लाभ की स्थिति में होता है।कई बार बाजार में विषमता और उपभोक्ताओं की अज्ञानता उन्हें शोषणकारी स्थिति में डाल देती है जहां निर्माता और विक्रेता उनका अनुचित लाभ उठाते हैं। व्यापारियों की इन चालाकी भरी चालों से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए भारत सरकार ने 24 दिसंबर 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के रूप में जाना जाने वाला एक उदार कानून लागू किया। तब से देशभर में 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उपभोक्ताओं के रूप में हम दोषपूर्ण सामान, सेवा में कमी, खाद्य पदार्थों में मिलावट, नकली सामान, जमाखोरी, वजन में धोखाधडी, देर से वितरण, पैकेट की सामग्री में भिन्नता, बिक्री के बाद की खराब सेवा, भ्रामक विज्ञापन, मूल्य घटक, मूल्य भेदभाव, एटीएम और क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, वित्तीय धोखाधड़ी, अचल संपत्ति तथा सार्वजनिक उपयोगिताओं से संबंधित समस्याएं, नकली समीक्षा, निजी जानकारी की हैकिंग और डिजिटल धोखाधड़ी जैसी कई समस्याओं का सामना करते हैं। चूंकि विक्रेता और व्यापारी जिम्मेदारी से कार्य नहीं करते हैं इसलिए उपभोक्ताओं को स्वयं सहायता की आदत डालने और उपभोक्ता अधिकारों और प्रभावी निवारण तंत्र के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।


डिजिटल प्रौद्योगिकियों के आगमन के साथ, ई-कॉमर्स क्षेत्र और डिजिटल मार्केटिंग के विकास के साथ बाजार में उपभोक्ताओं और उत्पादकों में तेजी से बदलाव आया है। पुराना कानून यानी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 समकालीन तकनीक के उन प्रावधानों के अनुकूल नहीं है, जिनका उपयोग खरीदारों और निर्माताओं द्वारा उत्पादों को खरीदने और व्यापार करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 पुराने अधिनियम की चुनौतियों को समाप्त करता है और ई-कॉमर्स कंपनियों की पारदर्शिता, ऑनलाइन खरीदारी में सरलता, टेलीशॉपिंग, उत्पाद की वापसी और असुरक्षित अनुबंध तथा भ्रामक विज्ञापनों से आगाह करने करने जैसे लाभ प्रदान करता है।


उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 विशेष रूप से उपभोक्ताओं के लिए एक औपचारिक लेकिन अर्ध-न्यायिक विवाद समाधान तंत्र बनाकर उपभोक्ता के हितों की बेहतर सुरक्षा के लिए एक विधायी ढांचा प्रदान करता है। यह प्रगतिशील सामाजिक कानून राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर त्रिस्तरीय अर्ध-न्यायिक उपभोक्ता विवाद निवारण तंत्र स्थापित करता है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को सरल, त्वरित और वहन करने योग्य निवारण तंत्र प्रदान करना है। वर्तमान में देश में 680 जिला आयोग हैं जिनमें से 630 कार्यरत हैं, 35 राज्य आयोग हैं और शीर्ष स्तर पर राष्ट्रीय आयोग कार्यरत हैं।उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 उपभोक्ता संरक्षण के दायरे का विस्तार करता है और निवारण तंत्र के अधिकारों को बढ़ाता है। इस अधिनियम की कुछ विशेषताएं निम्न प्रकार हैं:


क.  उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग: उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर स्थापित किए गए हैं। कोई भी उपभोक्ता, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में निम्नलिखित के संबंध में शिकायत दर्ज करा सकता है: (i) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार; (ii) दोषपूर्ण सामान (iii) सेवा में कमी; (iv) अधिक मूल्‍य वसूलना तथा उसमें धोखाधडी ; और (iv) बिक्री के लिए उस सामान या सेवाओं की पेशकश जो जीवन और सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकती है।

अनुचित अनुबंध के खिलाफ शिकायतें केवल राज्‍य में दायर की जा सकती है। जिला आयोगों जिन्हें पहले जिला फोरम के रूप में जाना जाता था, से राष्ट्रीय अपीलों की सुनवाई  राज्य आयोगों द्वारा और राज्य आयोगों से अपीलों की सुनवाई राष्ट्रीय आयोग द्वारा की जाती है। अंतिम अपील उच्‍चतम न्यायालय के समक्ष की जाती है। निम्न तालिका 31-8-2022  तक उपभोक्ता आयोगों में दायर मामलों की संख्या दर्शाती है-

 

क्र.सं.

एजेंसी का नाम

स्थापना के समय से दर्ज किए गए मामले

स्थापना के समय से निपटाए गए मामले

लंबित मामले

कुल निपटान अभ्युक्तियों का %

टिप्‍पणियां

1

राष्ट्रीय आयोग

143928

120877

23051

83.98%

 

2

राज्य आयोग

881388

771737

109651

87.56%

 

3

जिला आयोग

 

 

 

4609377

4121700

487677

89.42%

 

 

कुल

5634693

5014314

620379

88.99%

 

 

 


ख संशोधित वित्तीय क्षेत्राधिकार: सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण (जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग का अधिकार क्षेत्र) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है। इन नियमों के अनुसार भुगतान की गई वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में उपभोक्ता शिकायतों के लिए संशोधित वित्तीय अधिकार क्षेत्र इस प्रकार हैं:
1  जिला आयोग 50 लाख तक
2  राज्य आयोग 50 लाख से 2 करोड़ तक
3  राष्ट्रीय आयोग 2 करोड़ से अधिक


 'उपभोक्ता' की परिभाषा को ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों उपभोक्ताओं को शामिल करने के लिए विस्तृत किया गया है। अभिव्यक्ति "कोई भी सामान खरीदता है" और "किराए पर लेता है या किसी भी सेवा का लाभ उठाता है" में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या टेलीशॉपिंग या डायरेक्ट सेलिंग या मल्टी-लेवल मार्केटिंग के माध्यम से ऑफ़लाइन या ऑनलाइन लेनदेन शामिल हैं।
 केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए): केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनकी रक्षा करने और उन्हें लागू करने, अनुचित व्यापार से उपभोक्ता को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए जांच करने और उत्पाद तथा पैसे की वापसी के लिए कार्रवाई शुरू करने के लिए की गई है। यह अमरीका में संघीय व्यापार आयोग की तरह काम करता है।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण निम्न पर कार्य करता है:
1  अनुचित व्यापार की शिकायतें
2  सुरक्षा दिशानिर्देश जारी करना
3  उत्पाद की वापसी या सेवाओं को बंद करने का आदेश देना
4  अन्य नियामकों को शिकायतें भेजना
5  जुर्माना लगाने जैसी दंडात्मक कार्रवाई का अधिकार

6  उपभोक्ता आयोगों के समक्ष कार्रवाई दर्ज की जा सकती है
7  उपभोक्ता अधिकारों या अनुचित व्यापार के मामलों में कार्रवाई में हस्तक्षेप करना

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के पास अधिनियम के तहत जांच या जांच करने के उद्देश्य से महानिदेशक की अध्यक्षता में एक जांच शाखा है। झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिए प्राधिकरण, निर्माता और प्रचारक पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है । इसमें ऑनलाइन मार्केटिंग भी शामिल है। फिर से  अपराध करने पर , जुर्माना 50 लाख रुपये तक बढ़ सकता है। बाद के प्रत्येक अपराध के लिए निषेध की अवधि तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। हालांकि, ऐसे कुछ अपवाद हैं, जब प्रचारक को इस तरह के दंड के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के पास भ्रामक विज्ञापन को हटाने का निर्देश देने का अधिकार है और वह इस संबंध में  स्वत: संज्ञान ले सकता है।हाल में, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने ई-कॉमर्स कंपनियों को प्रेशर कुकर वापस लेने , उपभोक्ताओं को उनकी कीमतों की प्रतिपूर्ति करने और 45 दिनों के भीतर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कंपनी को अपने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर ऐसे प्रेशर कुकर की बिक्री करने और उपभोक्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए 1,00,000 रुपये का जुर्माना देने का भी निर्देश दिया गया है। घरेलू प्रेशर कुकर (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, जो 01.02.2021 को लागू हुआ, के अंतर्गत सभी घरेलू प्रेशर कुकर के लिए IS 2347:2017 के अनुरूप होना अनिवार्य करता है। चाहे प्रेशर कुकर ऑनलाइन या ऑफलाइन बिक्री के लिए पेश किए जा रहे हों, उचित सावधानी बरतने की आवश्यकता है।


उपभोक्ताओं के बीच संज्ञान और गुणवत्ता जागरूकता बढ़ाने के लिए, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने केंद्र सरकार द्वारा जारी क्यूसीओ का उल्लंघन करने वाले और नकली सामान की बिक्री को रोकने के लिए देशव्यापी अभियान शुरू किया है। अभियान के अंतर्गत वर्गीकृत रोजमर्रा के उपयोग के उत्पादों में हेलमेट, घरेलू प्रेशर कुकर और रसोई गैस सिलेंडर शामिल हैं। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने देश भर के जिलाधिकारियों को लिखा है कि वे अनुचित व्यापार तरीकों और ऐसे उत्पादों के निर्माण या बिक्री से संबंधित उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जांच करें और कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करें। भारतीय मानक ब्यूरो ने तलाशी के दौरान कई गैर-मानक हेलमेट और प्रेशर कुकर जब्‍त भी किए हैंअनिवार्य मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए 1,435 प्रेशर कुकर और 1,088 हेलमेट जब्त किए गए हैं।


   उत्पाद दायित्व: अध्याय VI शिकायतकर्ता द्वारा उत्पाद दायित्व कार्रवाई के तहत मुआवजे के लिए प्रत्येक दावे पर लागू होता है, जो किसी उत्पाद निर्माता द्वारा निर्मित या उत्पाद सेवा प्रदाता द्वारा सेवित या उत्पाद विक्रेता द्वारा बेचे गए किसी दोषपूर्ण उत्पाद के कारण किया जाता है। दोषपूर्ण उत्पाद के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए किसी उत्पाद निर्माता या उत्पाद सेवा प्रदाता या उत्पाद विक्रेता के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा उत्पाद दायित्व कार्रवाई की जा सकती है।
उत्पाद निर्माता, उत्पाद दायित्व कार्रवाई में उत्तरदायी होगा, यदि-
(
क) उत्पाद में विनिर्माण दोष है; या
(
ख्‍) उत्पाद डिजाइन में दोष है; या
(
ग) विनिर्माण विनिर्देशों से विचलन है; या
(
घ्‍) उत्पाद एक्सप्रेस वारंटी के अनुरूप नहीं है; या
(
.) उत्पाद अनुचित या गलत उपयोग के संबंध में किसी नुकसान को रोकने या कोई चेतावनी के लिए सही उपयोग के बारे में पर्याप्त निर्देश शामिल करने में विफल रहता है


च.   मध्यस्थता: अधिनियम के अध्याय V में उपभोक्ताओं को त्वरित निवारण प्रदान करने के लिए मध्यस्थता की अवधारणा दी गई है। राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, एक उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ खोलेगी, जो उस राज्य के प्रत्येक जिला आयोग और राज्य आयोग से जुड़ा होगा। केंद्र सरकार, अधिसूचना द्वारा, राष्ट्रीय आयोग और प्रत्येक क्षेत्रीय न्यायपीठ से जोड़े जाने वाले उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ की भी स्थापना करेगी उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ में निर्धारित संख्‍या में व्यक्ति शामिल होंगे जो मध्यस्थ के रूप में कार्य करेंगे और दोनों पक्षों- व्यापारियों और उपभोक्ताओं के बीच शिकायतों को हल करने का प्रयास करेंगे। प्रत्येक उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ निम्न कार्य करेगा-
(
क) सूचीबद्ध मध्यस्थों की सूची;
(
ख) प्रकोष्‍ठ द्वारा संभाले गए मामलों की सूची;
(
ग) कार्यवाही का रिकॉर्ड; तथा
(
घ) नियमों द्वारा निर्दिष्ट कोई अन्य जानकारी।
प्रत्येक उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग में से जिससे यह जुड़ा होगा उसे त्रैमासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

छ.   अनुचित अनुबंध: इसका मतलब एक ओर निर्माता या व्यापारी या सेवा प्रदाता, और दूसरी ओर एक उपभोक्ता के बीच अनुबंध है, इसमें ऐसी शर्तें हैं जो ऐसे उपभोक्ता के अधिकारों में महत्वपूर्ण परिवर्तन का कारण बनती हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:
(i)
अनुबंध दायित्वों के प्रदर्शन के लिए उपभोक्ता दवारा दी जाने वाली अत्यधिक सुरक्षा जमा करने की आवश्यकता है ।
(ii)
उस अनुबंध के उल्लंघन के लिए उपभोक्ता पर जुर्माना लगाना जो इस तरह के उल्लंघन के कारण दूसरे पक्ष को हुई हानि के लिए पूरी तरह से असंगत है।

(iii)  
लागू जुर्माने का भुगतान करने पर ऋणों के शीघ्र पुनर्भुगतान को स्वीकार करने से इंकार करना।
(iv)
बिना उचित कारण के एक पक्ष को अनुबंध को एकतरफा समाप्त करने की अनुमति देना ।

(v)  किसी एक पक्ष को अन्‍य पक्ष यानी उपभोक्‍ता को उसकी सहमति के बिना अनुबंध सौंपने की अनुमति देना या इस तरह का प्रभाव बनाना।


 (vi)
उपभोक्ता पर कोई अनुचित शुल्क, बाध्यता या शर्त थोपना जिससे उसे नुकसान होता है।
 शिकायत दर्ज करने में आसानी: उपभोक्ता आयोगों में उपभोक्ता विवाद अधिनिर्णयन प्रक्रिया को सरल बनाने के उद्देश्य से कई प्रावधान किए गए हैं। इनमें अन्य बातों के साथ-साथ, उपभोक्ता विवाद निवारण एजेंसियों के आर्थिक अधिकार क्षेत्र में वृद्धि करना, शिकायतों के त्वरित निपटान की सुविधा के लिए उपभोक्ता मंचों में सदस्यों की न्यूनतम संख्या बढ़ाना, राज्य तथा जिला आयोग द्वारा अपने स्वयं के आदेशों की समीक्षा करने का अधिकार देना , सर्किट का गठन ,जिला आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया में सुधार, और 21 दिनों की निर्दिष्ट अवधि के भीतर स्वीकार्यता का सवाल तय नहीं होने पर शिकायतों की स्वीकार्यता शामिल हैं।

 

 अधिनियम अब उपभोक्ताओं को कहीं से भी उपभोक्ता अदालतों में अपनी शिकायतें दर्ज करने की अनुमति देता है। यह एक बड़ी राहत है क्योंकि पहले उपभोक्त उस क्षेत्र में शिकायत दर्ज करा सकते थे जहां विक्रेता या सेवा प्रदाता स्थित था या जहां लेनदेन हुआ था। यह एक स्वागत योग्य बदलाव है, विशेष रूप से ई-कॉमर्स खरीदारी में वृद्धि के साथ, जहां विक्रेता कहीं भी हो सकता है। इसके अलावा, अधिनियम उपभोक्ता को उपभोक्ता आयोगों में ई-दाखिल ऐप के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत दर्ज करने और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई में सक्षम बनाता है, जिससे पैसे और समय दोनों की बचत होती है । इससे शारीरिक रूप से दिव्‍यांग उपभोक्ताओं को भी बड़ी राहत मिली है।


.  ई-कॉमर्स और सीधी बिक्री दिशानिर्देश: उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 अनिवार्य हैं और ये सलाह नहीं हैं।
यह ई-टेलर्स को अपनी वेबसाइटों पर वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति करने वाले विक्रेताओं का विवरण प्रदर्शित करने और उपभोक्ता शिकायतों को हल करने की प्रक्रिया को प्रस्‍तुत करने को अनिवार्य बनाता है। ये भारतीय उपभोक्ताओं को सामान और सेवाएं प्रदान करने वाले सभी ई-कॉमर्स खुदरा विक्रेताओं पर लागू होते हैंचाहे वे भारत या विदेश में पंजीकृत हों । इसके अंतर्गत ई-कॉमर्स कंपनियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ग्राहकों की व्यक्तिगत पहचान संबंधी जानकारी सुरक्षित रहे। उपभोक्ताओं को सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिए वस्‍तु वापसी, धन वापसी, अदला-बदली, वारंटी/गारंटी, डिलीवरी/शिपमेंट, भुगतान का तरीका, शिकायत निवारण तंत्र आदि के बारे में  ई-कॉमर्स इकाई और विक्रेता के बीच अनुबंध की शर्तों को प्रदर्शित करना अनिवार्य है। उपभोक्ता को पूर्व-खरीद चरण में एक सूचित निर्णय लेने के लिए विक्रेता द्वारा बिक्री के लिए पेश की गई वस्तुओं और सेवाओं के बारे में सभी प्रासंगिक विवरण, जिसमें मूल देश भी शामिल है और आयातित सामान के मामले में आयातक का नाम, विवरण और आयातित उत्पादों की प्रामाणिकता या वास्तविकता से संबंधित गारंटी प्रदान करने की आवश्यकता है। मार्केटप्लेस और विक्रेताओं को शिकायत अधिकारी नियुक्त करने की आवश्यकता है। कोई भी ई-कॉमर्स इकाई अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए वस्तुओं या सेवाओं की कीमत में हेरफेर नहीं करेगी या समान वर्ग के उपभोक्ताओं के बीच भेदभाव नहीं करेगी या उपभोक्ताओं के अधिकारों को प्रभावित करने वाली किसी भी मनमाने वर्गीकरण या नकली समीक्षाओं को पोस्ट नहीं करेगी।


निष्कर्ष

इस प्रकार उपभोक्ता आंदोलन जागरूकता, शिक्षा और विकास के संबंध में देश को आगे ले जाने के लिए उपभोक्ताओं की सामूहिक शक्ति को संदर्भित करता है। यह एक सामाजिक आंदोलन है जो उपभोक्ताओं की आर्थिक भलाई और सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाकर लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास करता है। उपभोक्ता मामलों के विभाग ने अपना नया शुभंकर जागृति लॉन्च किया है जो अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक उपभोक्ता है। इसके अलावा उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा एक छोटा नया कोड '1915' लॉन्च किया गया है, जहां अधिक से अधिक उपभोक्ता राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर अपनी शिकायतें दर्ज कराते पाए गए हैं। इस पर गौर करना प्रासंगिक है कि राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर पंजीकृत सभी शिकायतों में ई-कॉमर्स का अनुपात सबसे अधिक है। ई-कॉमर्स से राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन में प्रमुख प्रकार की उपभोक्ता शिकायतों में दोषपूर्ण उत्पादों की डिलीवरी, भुगतान की गई राशि की वापसी में विफलता, उत्पाद की डिलीवरी में देरी आदि शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण का कुशल और प्रभावी कार्यक्रम हम सभी के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि हम सब उपभोक्ता हैं। यहां तक कि विपणक, उत्पादक या सेवा प्रदाता भी कुछ अन्य वस्तुओं और सेवाओं का उपभोक्ता है। जागरूक उपभोक्ता ही अपनी और समाज की सुरक्षा कर सकते हैं।

 

(लेखिका-वाणिज्‍य विभाग,मला नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।)

ईमेल: skapoor@knc.du.ac.in