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संपादकीय लेख


अंक संख्या 10, 04-10 जून,2022

नमामि गंगे: गंगा नदी का समग्र संरक्षण और पुनर्जीवन

जी अशोक कुमार

पचास वर्ष पहले, 5 जून 1972 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस, 'केवल एक पृथ्वीथीम के साथ मनाया गया था. पचास साल बाद, 2022 में, एक बार फिर दुनियाभर के लोग इसी थीम के साथ यह दिवस मना रहे हैं. यह हमें याद दिलाता है कि केवल एक पृथ्वी है, और हमें प्राथमिकता और तात्कालिकता के साथ इसके सीमित संसाधनों की रक्षा करनी चाहिए. भारत में हाल के वर्षों में, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों ने भारत सरकार के सभी नीतिगत उपायों में तेजी से प्रमुख स्थान प्राप्त किया है. इसके लिए लागू किए जा रहे कार्यक्रमों में स्वच्छ भारत मिशन, एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध, जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना, कैच रेन अभियान, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, हरित कौशल विकास कार्यक्रम और नमामि गंगे शामिल हैं. इस वर्ष की शुरुआत में, ग्लासगो में सीओपी-26 शिखर सम्मेलन के दौरान, माननीय प्रधानमंत्री ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की भी घोषणा की. भारत सरकार ने विशेष रूप से जल क्षेत्र पर गहराई से विचार करते हुए, जल सुरक्षित भविष्य प्राप्त करने के लिए कई उपाय शुरू किए हैं. 2019 में एक ही मंत्रालय के तत्वावधान में सभी जल संबंधी पहल, विभागों और योजनाओं को लाने के लिए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया था. विभिन्न योजनाएं और नीतियां जो पहले अन्य मंत्रालयों जैसे आवास तथा शहरी मामलों के मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत चल रही थीं, उन सभी को जल शक्ति मंत्रालय के तहत लाया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किए जा रहे सभी कार्य योजनाबद्ध रूप से या एक साथ काम कर रहे हैं. जल जीवन मिशन, अटल भूजल, जल शक्ति अभियान, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), कैच रेन अभियान कुछ ऐसी योजनाओं के उदाहरण हैं जो जल संरक्षण के लिए अभूतपूर्व कार्य कर रही हैं. वास्तव में 'कैच रेन: जहां गिरता है, जब गिरता हैअभियान के तहत 46 लाख से अधिक जल संबंधी कार्यों को मंजूरी दी गई है, और 36 लाख वनीकरण गतिविधियों को अंजाम दिया गया है.  इसी तरह, नमामि गंगे अभियान भी दुनिया में नदी कायाकल्प के एक प्रमुख केस स्टडी के रूप में उभरा है. दुनियाभर के लोग नदी और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से जीवंत करने के लिए किए जा रहे कई प्रयासों पर ध्यान दे रहे हैं और किसी तरह से योगदान देना चाहते हैं. यह कोई अज्ञात तथ्य नहीं है कि भारत में, गंगा नदी केवल एक नदी नहीं है, बल्कि यह लोगों की सामूहिक आस्था और चेतना का प्रतीक है - इसकी पवित्रता के प्रति श्रद्धा सदियों से चली रही है. आज, यह भारत के जल स्रोतों में 26 प्रतिशत का योगदान देती है और घाटी में रहने वाले 520 मिलियन लोगों के लिए जीवन और आजीविका का स्रोत है. 2014-15 में 20,000 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ शुरू किये गये, इस अभियान ने गंगा नदी बेसिन के संरक्षण, रक्षण और कायाकल्प के लिए समग्र और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है. इसके शुभारंभ से पहले, गंगा को साफ करने के प्रयासों के तहत 1985 में गंगा कार्य योजना शुरू की गई थी, जिसमें नदी के मुख्य मूलरूप में 25 शहरों को शामिल किया गया था. इसके बाद 1993 में गंगा कार्य योजना- द्वितीय, 2005 में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना और अंत में 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) की स्थापना की गई थी. शुरुआत में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को  2011 में एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था. बाद में इसे 2016 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत वैधानिक शक्तियों के साथ एक प्राधिकरण के रूप में अधिसूचित किया गया था. 2016 प्राधिकरण अधिसूचना ने एनएमसीजी को नियामक, वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार प्रदान किये, जिससे निर्णय लेने में तेजी आई.

 

नमामि गंगे को जो पिछले प्रयासों से अलग करता है, वह इसकी समग्र दृष्टि है जिसके तहत नदी के प्रबंधन को उसकी सहायक नदियों, छोटी नदियों, बाढ़ से प्रभावित होने वाले स्थानों, आर्द्रभूमि, भूजल, जैव विविधता, झरनों, और नदी के न्यूनतम प्रवाह का रख-रखाव आदि को एकल प्रणाली प्रदान की जाती है. इसके तहत उपायों के चार प्रमुख स्तंभों की पहचान की गई है, अर्थात, निर्मल गंगा (अप्रदूषित प्रवाह), अविरल गंगा (अप्रतिबंधित प्रवाह), जन गंगा (लोगों को नदी से जोड़ना) और ज्ञान गंगा (अनुसंधान और ज्ञान प्रबंधन).

 

निर्मल गंगा

अभियान को सफल बनाने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि प्रदूषण के बिंदु और गैर-बिंदु दोनों स्रोतों से नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं. आज, 24,223 करोड़ रुपये की 159 सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को 4930 एमएलडी की उपचार क्षमता बनाने और 5,137 किमी सीवर नेटवर्क बिछाने के लिए मंजूरी दी गई है. 1501.11 एमएलडी शोधन क्षमता और 3,988 किलोमीटर सीवर नेटवर्क का कार्य पहले ही पूरा किया जा चुका है. यह एक बड़ी उपलब्धि रही है, क्योंकि 2014 से पहले गंगा की विभिन्न पहलों के तहत केवल 463 एमएलडी उपचार क्षमता मौजूद थी. इसके अलावा, एनएमसीजी द्वारा अग्रणी, हाइब्रिड वार्षिकी मोड आधारित सार्वजनिक -निजी भागीदारी मॉडल और एक शहर एक ऑपरेटर मॉडल जैसी नवीन सर्वोत्तम पद्धतियों से देश में अपशिष्ट जल प्रबंधन में एक आदर्श बदलाव लाया गया है. इस मॉडल ने विभिन्न मानकों और मानदंडों के पालन के साथ-साथ जवाबदेही और स्वामित्व में वृद्धि की है. उद्योगों, विशेषकर चर्मशोधन कारखानों से होने वाले औद्योगिक प्रदूषण को भी नदी में प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है. इसके लिए उठाए गए कदमों में प्रदूषणकारी उद्योगों का वार्षिक निरीक्षण; कानपुर, उन्नाव, बंथर तथा मथुरा में सामान्य सहायक उपचार संयंत्र की स्थापना; कागज तथा लुगदी उद्योगों से ब्लैक लिकर का निर्वहन और अन्य चार्टर जारी करना आदि शामिल हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में, अभियान के तहत स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के साथ भी सहयोग किया गया है और  4,507 गंगा गांवों को खुले में शौच से  सफलतापूर्वक मुक्त किया  गया है.

 

आज समय की मांग है कि रेखीय दृष्टिकोण से हटकर पानी के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण को प्राथमिकता देते हुए एक सर्कुलर जल अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण अपनाया जाए. सभी गंगा बेसिन कस्बों को इस दृष्टिकोण को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ, मिशन ने शहर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड की रिफाइनरी को गैर-पेयजल योग्य उद्देश्यों के लिए उपचारित अपशिष्ट जल की आपूर्ति के लिए मथुरा में एक 20 एमएलडी तृतीयक उपचार संयंत्र स्थापित किया है. दिसंबर 2021 में, एनर्जी रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) के सहयोग से जल पुन: उपयोग पर उत्कृष्म्टता केंद्र भी शुरू किया गया था. यह देश में अपनी तरह का पहला उत्कृष्टता केंद्र है. इसके अतिरिक्त, उपचारित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग की संरचना, भारत-यूरोपीय संघ सहयोग के तहत विकसित करने की प्रक्रिया में भी है. इसके अलावा, इसने घाटी में स्थित ताप विद्युत संयंत्रों के 50 किमी के भीतर एसटीपी से उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को भी अनिवार्य किया है.

 

अविरल गंगा

नदी की समग्र स्थिति और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नदी के प्रवाह को बनाए रखना महत्वपूर्ण है. पारिस्थितिक प्रवाह अधिसूचना 2019 के माध्यम से, मिशन यह सुनिश्चित कर रहा है कि गंगा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह हो. यह इस मान्यता से उपजा है कि नदी के पानी पर सबसे पहले नदी का अधिकार है. इसके साथ ही, मिशन नदी पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए जैव विविधता, प्राकृतिक वनस्पतियों तथा जीवों, भूजल प्रबंधन, आर्द्रभूमि संरक्षण, झरनों और छोटी नदी कायाकल्प, बाढ़ के मैदान प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई उपायों को भी लागू कर रहा है. उदाहरण के लिए, 8500 वर्ग मीटर में फैले क्षेत्र में पैलियो-चैनलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जलभृत मानचित्रण के लिए एक हेली-बोर्न अध्ययन आयोजित किया गया है. आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए, संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से गंगा बेसिन राज्यों में राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण स्थापित किए गए हैं. एनएमसीजी ने निर्माण मुक्त क्षेत्रों के लिए बाढ़ के मैदानों के संरक्षण और विनियमन को भी अनिवार्य कर दिया है और बिना विकास क्षेत्र के लिए हरिद्वार से उन्नाव तक बाढ़ वाले क्षेत्रों के सीमांकन के लिए समितियों का गठन किया है. मिशन के सम्मिलित प्रयासों से गंगा की डॉल्फिन, ऊदबिलाव, हिल्सा, घड़ियाल आदि प्रजातियों की जैव विविधता में वृद्धि हुई है. भारतीय वन्यजीव संस्थान और केंद्रीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान की परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई है.

 

जन गंगा

नमामि गंगे मिशन की सफलता का श्रेय जनभागीदारी को दिया जा सकता है, जिसने मिशन को जन आंदोलन में बदल दिया है. नदी के किनारे का विकास, विशेष रूप से घाटों और श्मशान घाटों के माध्यम से, प्रमुख कार्यक्षेत्र हैं, और अब तक मिशन के तहत 190 घाट (8 कुंडों सहित) और 47 श्मशान-घाटों का काम सफलतापूर्वक पूरा किया जा चुका है. इसके अतिरिक्त मिशन, गंगा विचार मंच, गंगा दूत, गंगा प्रहरी, गंगा मित्रा, नेहरू युवा केंद्र संगठन और अन्य स्वयंसेवी संगठनों जैसे गंगा रक्षकों के अपने समर्पित कार्यकर्ताओं की मदद से नियमित रूप से सार्वजनिक आउटरीच गतिविधियों का आयोजन करता है. जिला मजिस्ट्रेटों की अध्यक्षता में जिला गंगा समितियों का भी गठन किया गया है और जन जागरूकता बढ़ाने के लिए उन्हें अधिकार दिया गया है. गतिविधियों के उदाहरणों में गंगा उत्सव, गंगा क्वेस्ट, नदी उत्सव, रग- रग में गंगा, प्रायोजित थीसिस प्रतियोगिता, गंगा अमंत्रम, शामिल हैं. इसके अलावा, गंगा नदी, इसकी जैव विविधता, परिदृश्य और जीवंत संस्कृति को समर्पित चंडी घाट, हरिद्वार में अपनी तरह का पहला गंगा संग्रहालय भी स्थापित किया गया है. ऋषिकेश और पटना में भी इसी तरह के घाटों के साथ-साथ कानपुर, सारनाथ, साहिबगंज आदि में व्याख्या केंद्रों का विकास भी किया जा रहा है.

 

ज्ञान गंगा

ज्ञान गंगा अनुसंधान, नीति और ज्ञान प्रबंधन पर केंद्रित है. गंगा नदी बेसिन प्रबंधन और अध्ययन केंद्र (सीगंगा) 2016 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में स्थापित किया गया था. इसके अतिरिक्त, नई दिल्ली में एक गंगा ज्ञान केंद्र भी स्थापित किया गया है. ज्ञान गंगा के तहत किए गए कुछ प्रमुख अध्ययनों में शामिल हैं:

 

1. भूजल- सतही जल इंटरफेस: राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजी-आरआई), हैदराबाद के सहयोग से एक्वीफर्स वृत्ति में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए कौशांबी से कानपुर तक पेलियो चैनलों पर ध्यान देने के साथ उपसतह एक्वीफर्स को चित्रित करने पर एक अध्ययन किया जा रहा है.

2. नदी का उच्च विभेदन जीआईएस/ एलआईडीएआर मानचित्रण: एलआईडी-एआर मानचित्रण का उपयोग करते हुए 'गंगा नदी के भाग के लिए उच्च-रिजॉल्यूशन डीईएम और जीआईएस तैयार डेटाबेस के निर्माणपर भारतीय सर्वेक्षण के साथ एक ऐतिहासिक परियोजना शुरू की गई है.

3. गंगा नदी की विशेष संपत्ति का अध्ययन और माइक्रोबियल मानचित्रण के लिए अध्ययन: नीरी के साथ भागीदारी में गंगा नदी की विशेष संपत्ति को समझने के लिए जल गुणवत्ता तथा तलछट विश्लेषण माइक्रोबियल विविधता पर मानव हस्तक्षेप के प्रभाव और गंगा नदी में मौजूद -कोली की उत्पत्ति का अध्ययन किया जा रहा है.

4. जलवायु परिदृश्य और उनके प्रभाव पर अध्ययन: आईआईटी दिल्ली के सहयोग से, जलवायु परिवर्तन और इंडो-गांगेय मैदानी इलाकों में जल संसाधनों पर  इसके प्रभाव के वैज्ञानिक रूप से कठोर अनुमानों को समझने और संचालन करने में सुधार के लिए बेसिन-पैमाने पर जल संसाधन प्रबंधन के लिए हाई रिजॉल्यूशन जलवायु परिदृश्यों का मानचित्रण करने के लिए एक अध्ययन किया जा रहा है.

 

पानी की गुणवत्ता की निगरानी, एक अन्य प्रमुख फोकस क्षेत्र है, जिसे जून 2013 में शुरू किया गया था. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से, 113 वास्तविक समय जल गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों की स्थापना की गई है, जो गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता की जैव निगरानी और सामुदायिक निगरानी में सक्षम हैं. साथ ही, 2017 में 36 रियल टाइम वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन भी सफलतापूर्वक स्थापित किए गए हैं जो गंगा नदी, सहायक नदियों और नालों पर 36 स्थानों का डेटा प्रदान करते हैं. इसके अतिरिक्त, 40 आरटीडब्ल्यूक्यूएम स्टेशनों की परियोजना का काम जुलाई 2020 में दिया गया था, और इसकी स्थापना का काम पूरा भी हो चुका है. कई दिशा-निर्देश भी प्रकाशित किए गए हैं जैसे नदी संवेदनशील मास्टर प्लान बनाने के लिए कार्यनीतिक दिशानिर्देश, गंगा नदी बेसिन में शहरी नदी के विस्तार के प्रबंधन के लिए एक कार्यनीतिक ढांचा: शहरी नदी प्रबंधन योजनाएं, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता के लिए मार्गदर्शन नोट , जलवायु अनुकूल और सामाजिक रूप से समावेशी शहरी रिवरफ्रंट नियोजना तथा विकास और शहरी आर्द्रभूमि/ जल निकाय प्रबंधन दिशा-निर्देश. इसके अतिरिक्त, शहरी नदियों के सतत प्रबंधन के लिए विचारों, चर्चा और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए दिसंबर 2021 में 30 सदस्य शहरों के साथ इस तरह का पहला रिवर सिटी एलायंस शुरू किया गया था.

 

अर्थ गंगा

दिसंबर 2019 में, माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में पहली राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक बुलाई गई थी. अर्थ गंगा की अवधारणा प्रकृति-समाज के बीच सहजीवी संबंध पर आधारित है, जो लोगों-नदी के जुड़ाव को मजबूत करने का प्रयास करती है. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से लेकर आजीविका उपायों तक कई बहु-क्षेत्रीय पहल की योजना बनाई जा रही है और इन्हें विभिन्न संस्थागत स्तरों के साथ-साथ विकेंद्रीकृत संचालन पद्धतियों के तालमेल के माध्यम से शुरू किया जा रहा है. यह मॉडल, गंगा बेसिन में लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने का प्रयास करता है और देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद के तीन प्रतिशत तक योगदान देता है.

 

इसके तहत, किए जाने वाले उपायों के लिए छह कार्यों की पहचान की गई है. इनमें शामिल हैं:

शून्य बजट प्राकृतिक खेती

·         नदी की लंबाई के साथ रसायन मुक्त शून्य बजट प्राकृतिक खेती

·         किसान की आय दोगुनी करना और 'प्रति बूंद अधिक आयसृजन करना

·         'गोबर-धन’ - किसानों के लिए और प्रदूषण को दूर रखने के लिए

·         ब्रांड गंगा का प्रचार

 कीचड़ और अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग से कमाई

·         राजस्व सृजन के लिए शहरी स्थानीय निकायों द्वारा उपचारित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग

·         कीचड़ को प्रयोग करने योग्य उत्पादों जैसे खाद, पेवर्स, ईंटों में बदलना

 

 आजीविका सृजन के अवसर

·         स्व-संधारणीय गंगा घाटों के लिए 'घाट में हाट

·         नदी  किनारे गंगा के शहरों के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना

·         'गंगा प्रहरीका क्षमता निर्माण प्रशिक्षण

·         आयुर्वेद और औषधीय वृक्षारोपण (रुद्राक्ष) जैसी वनीकरण गतिविधियों को बढ़ावा देना

 सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन

·         सामुदायिक जेटी के माध्यम से नाव पर्यटन की शुरुआत

·         योग तथा आरोग्य, चिकित्सा पर्यटन, साहसिक पर्यटन, पर्यावरण पर्यटन आदि को बढ़ावा देना.

·         नदी से सांस्कृतिक जुड़ाव बढ़ाने के लिए आरती

 

 सार्वजनिक भागीदारी

·         जनभागीदारी में वृद्धि

·         जिला गंगा समितियों की अनिवार्य मासिक कार्यवृत्त बैठकें

·         विभिन्न कार्यक्रमों के साथ बढ़ा तालमेल

 

 संस्थागत निर्माण

·         बेहतर जल प्रशासन के लिए क्षमता में वृद्धि, विशेष रूप से स्थानीय प्रशासन

·         एसेट हैंडओवर के बाद परियोजनाओं की निरंतरता

 

 अर्थ गंगा मॉडल के तहत नियोजित और शुरू की गईं कुछ प्रमुख पहल हैं:

·         गंगा नदी के किनारे 5-10 किमी चौड़े गलियारों में रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती की गई है.

·         उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्यों में 1.24 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में व्यापक जैविक खेती की जा रही है.

·         भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण द्वारा मल्टीमॉडल परिवहन लिंकेज जैसे सामुदायिक जेटी, फेयरवे विकास, आरओ आरओ टर्मिनल आदि का विकास.

·         इन्टैक  द्वारा गौमुख से गंगा सेक्टर तक गंगा नदी का व्यापक सांस्कृतिक मानचित्रण किया गया.

·         गंगोत्री एवं यमनोत्री धाम के विकास के लिए प्रसाद योजना के अन्तर्गत स्वीकृत परियोजनाएं.

·         पर्यटन और नाव पर्यटन सर्किट का विकास.

·         सार्वजनिक पहुंच और आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए 1500 से अधिक गंगा प्रहरियों को प्रशिक्षित किया गया.

·         मत्स्य पालन और आजीविका लिंकेज के लिए आईसीएआर-सीआईएफ-आरआई द्वारा स्वीकृत परियोजनाएं.

·         कृषि प्रयोजनों के लिए उपचारित अपशिष्ट जल और एसटीपी कीचड़ का पुन: उपयोग.

·         उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में गंगा वाटिका विकसित की गई.

पिछले आठ वर्षों में, नमामि गंगे ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, खासकर जब कोई इसकी तुलना दुनियाभर में लागू किए गए इसी प्रकार के उपायों से करता है तो यह स्पष्ट रूप से  नज़र आता है. नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार, वनस्पतियों की प्रजातियों की संख्या में वृद्धि या 16 मिलियन वृक्षारोपण, किए गए कई प्रयासों की गवाही देते हैं. पिछले  आठ वर्षों में मां गंगा को जो मजबूत प्रोत्साहन और फोकस मिला है, उसने मिशन को, इस सफल यात्रा को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाया है, और यह आने वाले वर्षों में भी ऐसा करना जारी रखेगा, जिसके लिए मिशन का विस्तार किया गया है.

(लेखक जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार के राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक हैं.

-मेल: missionganga@gmail.com)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं