रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


अंक संख्या 09,28 मई - 03 जून,2022

 

नई उड़ानें भरता

भारत का विमानन क्षेत्र

 साक्षात्कार

भारत में अगले कुछ वर्षों में विमान यात्रियों की संख्या दोगुना होने की उम्मीद के साथ,  नागरिक उड्डयन बाजार मूलभूत परिवर्तन की गवाही दे रहा है. भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा घरेलू उड्डयन बाजार बन गया है.  'विग्ंस इंडिया 2022 शुरु होने से पहले के कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि भारत वर्तमान में अमरीका और चीन के बाद तीसरा बड़ा घरेलू ट्रेफिक संभालता है. उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान) - आरसीएस (क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना) के माध्यम से, टियर II और टियर III शहरों को विमानन मानचित्र में शामिल किया गया है, जिससे इन क्षेत्रों के यात्रियों के उड़ान सेवाओं का लाभ उठाने के साथ-साथ व्यवसायों को फलने-फूलने में मदद मिलती है.  हालांकि, यह तथ्य कि उड़ान सेवाओं की पैठ देश की कुल आबादी के केवल 9-10 प्रतिशत लोगों तक है, दर्शाता है कि आगे विकास और विस्तार की संभावना विशाल है. केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री, श्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया ने आकाशवाणी के भूपेंद्र सिंह को रोज़गार समाचार के लिए दिए साक्षात्कार में  कहा कि उनका मंत्रालय अब लघु विमान योजना शुरू करके क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को और बढ़ावा देना चाहता है, जिसके तहत 20 सीटों वाले विमान होंगे जो लास्ट माइल कनेक्टिविटी प्रदान करेंगे. उन्होंने आने वाले वर्षों के लिए मंत्रालय के लक्ष्य को रेखांकित करते हुए, बताया कि ड्रोन  और एमआरओ (रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहाल) क्षेत्र में रोज़गार के लाखों अवसरों का सृजन होगा क्योंकि कई वैश्विक विमान निर्माताओं ने भारत में एमआरओ इकाइयां स्थापित करने में रुचि दिखाई है.

प्रश्न: उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) आपके मंत्रालय की सफलता की पहचान रही है. इस योजना के तहत अब तक कितने नए हवाई मार्गों का संचालन किया गया है और कितने और आने वाले हैं?

श्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया: उड़ान भारत में अंतिम छोर तक संपर्क और पैठ बढ़ाने के लिए एक अत्यंत महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है. वर्तमान में भारत में, 144 मिलियन विभिन्न हवाई यात्री हैं जो हमारी कुल आबादी का लगभग 9 से 10 प्रतिशत हैं. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना और उनका संकल्प था कि हमें हवाई यात्रा का लोकतंत्रीकरण करना चाहिए. इस तरह, उड़ान इस लक्ष्य की ओर एक बड़ी छलांग है. यह योजना  2016 में शुरू की गई थी. आज की तारीख में, हमारे पास उड़ान के माध्यम से परिचालित लगभग 419 मार्ग हैं जो पहले कभी अस्तित्व में नहीं थे. हमारे पास करीब 66 हवाई अड्डे हैं जो स्थापित किए गए हैं. उड़ान के माध्यम से उन क्षेत्रों में हवाई अड्डे, वाटरड्रोम और हेलीपोर्ट स्थापित किए गए हैं जो इस योजना से पहले कभी भी नागरिक उड्डयन मानचित्र पर नहीं थे. इस योजना के अंतर्गत, हमने अब तक लगभग 1,80,000 उड़ानें संचालित की हैं जिनमें करीब 95 लाख आम लोगों ने हवाई यात्रा की है. यह एक क्रांति है जिसे उड़ान योजना के माध्यम से देश में आम आदमी के लिए लेकर अंजाम दिया गया है. उड़ान का विचार, इसके माध्यम से निष्पादन और फलने-फूलने की अवधारणा से पैदा हुआ था और अब हम इस पर ही नहीं रुक रहे हैं. अब हम लघु विमान योजना शुरू कर रहे हैं जिसमें 20 सीटों वाले विमान होंगे. यह योजना छोटे एयरक्राफ्ट, सेसना कारवां, बीचक्राफ्ट, सी प्लेन और हेलीकॉप्टर के जरिए अंतिम मील कनेक्टिविटी प्रदान करेगी. हमारे देश में करीब 7500 किलोमीटर की तटरेखा है. कई छोटे देश और राज्य हैं जिन्होंने समुद्री विमानों के माध्यम से कनेक्टिविटी प्रदान की है, इसलिए हम छोटे विमान योजना पर ध्यान दे रहे हैं जिसे हमने उड़ान 4.2 के साथ रखा है. बोलियां निकल चुकी हैं. हम लगभग 350 मार्गों में से लगभग 100 समुद्री विमान मार्गों को स्थापित करने के लिए आशान्वित हैं. मुझे उम्मीद है कि हम इस नई लघु विमान योजना के माध्यम से समुद्री विमानों में कई और मार्गों का उदय देखेंगे. नागरिक उड्डयन के संचालन के तरीके में यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है क्योंकि नागरिक उड्डयन ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय-घरेलू-बड़े मेट्रो घरेलू विमानों पर ध्यान केंद्रित किया है. अब हम उस कनेक्टिविटी को

टियर 1 - टियर 2 - टियर 3 शहरों तक बढ़ा रहे हैं. इस दिशा में सफलता की कई कहानियां हैं जो ध्यान देने योग्य हैं, जैसे कि दरभंगा, झारसुगुड़ा, रूपसी, किशनगढ़ जहां हवाई यात्रा करना अकल्पनीय था. पिछले पांच वर्षों में, हमारे पास छोटे शहरों के लगभग 30,000 यात्रियों से लेकर लगभग 500000 यात्रियों की एक शृंखला है, जो इस योजना से पहले कभी भी हवाई नेविगेशन मानचित्र पर नहीं थे.

 प्रश्न: भारत का लक्ष्य एक जिला, एक उत्पाद योजना के माध्यम से अपने निर्यात को और बढ़ावा देना है. क्या आप गैर-तटीय जिलों द्वारा निर्यात को सुविधाजनक बनाने में उड़ान -आरसीएस को प्रमुख भूमिका निभाते हुए देखते हैं?

श्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया: बिल्कुल! हमारा मानना है कि उड़ान-आरसीएस का एक हिस्सा, अति महत्वाकांक्षी कृषि उड़ान 2.0 योजना भी है जिसके तहत आठ मंत्रालयों के बीच अभिसरण से कृषि और जिलों के अन्य उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा. जहां इसका तुलनात्मक लाभ यह है कि इससे खराब होने वाली वस्तुओं के मामले में फायदा होगा और उत्पादों को केवल एक जिले से दूसरे जिले में, बल्कि एक राज्य से बाकी दुनिया में भी ले जाया जा सकता है. उदाहरण के लिए, असमिया नींबू को आज लंदन और त्रिपुरा से कटहल को जर्मनी तथा लंदन भेजा जा रहा है. हमें विश्वास है कि इसके माध्यम से यहां तक कि पेसीकल्चर, मत्स्य पालन क्षेत्र अपनी उपज को देश और दुनिया के अन्य हिस्सों में बहुत तेजी से पहुंचाने में सक्षम होगा.

 प्रश्न: बढ़ते हवाई यातायात की जरूरतों को पूरा करने के लिए नए हवाई अड्डों की स्थापना और मौजूदा हवाई अड्डों के विस्तार पर नए सिरे से जोर दिया जा रहा है. कृपया उन नए हवाई अड्डों के बारे में कुछ विवरण साझा करें जिनके अगले दो-तीन वर्षों में चालू होने की संभावना है.

श्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया: महामारी की चपेट में आने से पहले 2019  में विभिन्न यात्रियों की संख्या 144 मिलियन थी. इस साल, यह संख्या लगभग 100 मिलियन रही है. मुझे लगता है कि वर्ष 2025-26 की शुरुआत तक यह संख्या बढ़कर 200 मिलियन हो जाएगी. पिछले वर्ष एक बहुत ही भयानक महामारी वर्ष से बाहर आने के बाद, इसमें लगभग 72 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इससे पहले हमारा सीएजीआर (संयोजित वार्षिक वृद्धि दर) 10.6 प्रतिशत से 15 प्रतिशत के बीच रहा है. इस प्रकार भारत आज विमानन क्षेत्र में दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते देशों में से एक है. बुनियादी ढांचे के विकास और बेड़े के आकार को बढ़ाने के साथ-साथ नागरिक उड्डयन के पारिस्थितिकी तंत्र को स्थापित करने पर बड़े पैमाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. जहां तक बुनियादी ढांचे के विकास का संबंध है, मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि जिस देश में 2014 तक केवल 74 हवाई अड्डे थे, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सतर्क दृष्टि तथा नागरिक उड्डयन विभाग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और निर्देशन के तहत, हमने पिछले आठ वर्षों में लगभग 67 हवाई अड्डे/वाटरड्रोम/हेलीपोर्ट बनाये  हैं इसलिए, वर्तमान में हमारे पास पूरे देश में 141 हवाई अड्डे/वाटरड्रोम/हेलीपोर्ट हैं, जबकि आठ साल पहले इनकी संख्या केवल 74 थी. यह तो हुई अतीत से वर्तमान तक की स्थिति. यदि  वर्तमान से भविष्य की ओर दृष्टि डालें तो मैं वर्ष 2025 तक 220 से अधिक हवाई अड्डों/वाटरड्रोम/ हेलीपोर्ट्स के लक्ष्य को देख रहा हूं. इसलिए, हम अगले 4-5 वर्षों में मौजूदा संख्या में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि करना चाहते हैं. तत्काल, हमारी विस्तार योजनाएँ निम्नलिखित हैं:-

·         भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) के तहत, हम 42 ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में लगभग 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने की सोच रहे हैं, जिसमें टर्मिनलों का विस्तार, रनवे का विस्तार आदि शामिल हैं.

·         तीन नए हवाई अड्डों - होलोंगी, धुलेरा और हीरासर में लगभग 5000-6000 करोड़ रुपये व्यय किए जाने हैं.

·         जहां तक निजी क्षेत्र का संबंध है, हम उनके वर्तमान 7 ब्राउनफील्ड हवाई अड्डों में लगभग 40,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद कर रहे हैं.

·         हम लगभग 20000-30000 करोड़ रुपये के निवेश से चार नए ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे स्थापित करने पर विचार कर रहे हैं. ये हैं- भोगापुरम, मोपागोआ, नवी मुंबई और जेवर. इसलिए, कुल मिलाकर, अगले तीन वर्षों में कुल क्षमता विस्तार और लगभग 98000 करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की

उम्मीद है.

·         हम सरकार और निजी क्षेत्र के सहयोग से 7 ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों के निर्माण पर भी विचार कर रहे हैं.

·         अगले तीन-चार वर्षों में 49 हवाई अड्डों के विस्तार की योजना है.

परिणाम क्या होगा? वर्तमान में दिल्ली के हवाई अड्डों पर लगभग 70 मिलियन यात्रियों को सेवाएं प्रदान की जाती हैं. इनके विस्तार से यह संख्या 100 मिलियन तक हो जाएगी. इससे हम दुनिया के सबसे बड़े हवाई अड्डों -न्यूयॉर्क, जेएफके, शिकागो, या अटलांटा के स्तर पर पहुच जाएंगे. मुंबई के लिए आज यह संख्या 60 मिलियन है. नवी मुंबई हवाई अड्डे की क्षमता में  30-40 मिलियन की वृद्धि होगी. बंगलौर और हैदराबाद दोनों की क्षमता आज 15-20 मिलियन के बीच यात्रियों को सेवाएं प्रदान करने की है, अगले एक वर्ष में प्रत्येक की क्षमता लगभग 40 मिलियन हो जाएगी. इस प्रकार आज सेवाएं प्रदान करने की हवाई अड्डों की लगभग 160 मिलियन यात्रियों की क्षमता अगले दो वर्षों में 300 मिलियन से अधिक होने की आशा है.

 प्रश्न: आपके मंत्रालय ने ड्रोन उद्योग को नया जीवन दिया है. हम इस क्षेत्र में किस तरह के कौशल विकास और रोज़गार के अवसर देख रहे हैं?

श्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया: ड्रोन नीति लागू होने के बाद, हम लगभग 15 डीजीसीए प्रमाणित ड्रोन स्कूल स्थापित कर चुके हैं. ड्रोन पायलट ट्रेनिंग कोर्स के लिए आवेदन के लिए उम्मीदवार  को केवल 12वीं कक्षा पास होना चाहिए. उसे लगभग डेढ़ से दो महीने का ड्रोन पायलट ट्रेनिंग कोर्स करना होगा. जैसे ही आवेदकों को ड्रोन स्कूल से प्रमाण पत्र मिल जाएगा, वे नौकरी के लिए पात्र होंगे जिससे उन्हें प्रति माह लगभग 30,000 रुपये की आय होगी. मैं इसे भारत में एक विशाल रोज़गार गुणक के रूप में देखता हूं क्योंकि हमें अगले दो से तीन वर्षों में कम से कम 100,000 ड्रोन पायलटों की आवश्यकता होगी क्योंकि निर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में ड्रोन के जबरदस्त अनुप्रयोग हैं. मुझे लगता है कि उद्योग के रूप में यह एक बड़ा अवसर है जिसका आज केवल 60 करोड़ रुपये का कारोबार है. हमने एक पीएलआई (उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन) योजना बनाई है जो केवल शुद्ध प्रोत्साहन के रूप में 120 करोड़ रुपये की गारंटी देती है.  यह राशि आज के उद्योग के कारोबार का दोगुना है. मैं इसे अगले दो से तीन वर्षों में निवेश के दृष्टिकोण से 5,000 करोड़ के करीब बढ़ता हुआ देख रहा हूं. इस क्षेत्र में लगभग 10,000 प्रत्यक्ष रोज़गार का सृजन होगा. दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पहलू ड्रोन का सेवा हिस्सा है. सेवा उद्योग, आने वाले दिनों में लगभग 500000 रोज़गार का सृजन करेगा और लगभग 10000-15000 करोड़ रुपये का उद्योग बन जाएगा. हमारे पास भारत सरकार के 12 मंत्रालय हैं जो ड्रोन की  मांग पैदा कर रहे हैं. ड्रोन या किसी भी नए उद्योग को खड़े होने के लिए तीन चरणों की आवश्यकता होती है- (1) बाजार के अनुकूल नीति, जिसे पिछले अगस्त में नई ड्रोन नीति के रूप में लाया गया है (2) प्रोत्साहन योजनाएं- नीति के एक महीने के भीतर हमने ड्रोन के लिए पीएलआई योजना शुरू की है (3) मांग का सृजन- हमने प्रधानमंत्री के निर्देशानुसार ड्रोन का उपयोग करने वाले भारत सरकार के 12 मंत्रालयों के माध्यम से ऐसा किया है. मैं कहना चाहता हूं कि यह केवल प्रधानमंत्री की वजह से है कि आज हम ड्रोन को नए स्केलेबल अवसरों में सबसे आगे देख रहे हैं. प्रधानमंत्री का सपना है कि भारत को एक अनुगामी ही नहीं बल्कि अग्रणी होना चाहिए और हमने यह सुनिश्चित करने का संकल्प लिया है कि भारत उनके निर्देशानुसार वर्ष 2030 तक वैश्विक ड्रोन हब बन जाएगा. प्रधानमंत्री ने हमारे अवसरों को देखने के तरीके में पूर्ण परिवर्तन किया है और यह सुनिश्चित किया है कि हम उन्हें भारत के लिए एक विशाल रोज़गार गुणक और एक आर्थिक शक्ति के रूप में परिवर्तित करें.

प्रश्न: कुछ ही सप्ताह पहले, इंडिगो देश में स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली- गगन का उपयोग करके विमान उतारने वाली देश की पहली एयरलाइन बन गई. गगन कार्यान्वयन के किस चरण में है?

श्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया: सबसे पहले आपको गगन की अवधारणा को समझने की जरूरत है. इसे समझना हम सभी के लिए और हमारे उपभोक्ताओं के लिए भी जरूरी है. होता यह है जब आप कनेक्टिविटी बढ़ाना शुरू करते हैं तो यात्रियों की भीड़ बढ़ती है. उस भीड़-भाड़ के परिणामस्वरूप मुख्य रूप से मेट्रो क्षेत्रों और असेवित हवाई अड्डों से अधिक यातायात होता है, जो एएनएस के रूप में जाना जाने वाले एयर नेविगेशन सिस्टम और एयर ट्रैफिक मैनेजमेंट के रूप में जाना जाने वाले एटीएम सिस्टम पर दबाव डालता है. इसलिए एएनएस और एटीएम महत्वपूर्ण हैं, और सुरक्षा कारक को सुनिश्चित करने में इन पर जोर दिया जाना आवश्यक है. अत: गगन जैसी कम्प्यूटरीकृत उपग्रह प्रणाली, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूएएएस (वाइड एरिया ऑगमेंटेशन सिस्टम) के रूप में जाना जाता है, विमानों को नेविगेट करने में सक्षम होने के लिए एएनएस और एटीएम के लिए एक विकल्प नहीं बल्कि पूरक बन जाती है. यह एक नई तकनीक है जिसके माध्यम से, मानवीय हस्तक्षेप के बिना, विमान का सुरक्षित संचालन और लैंडिंग तक का मार्गदर्शन होगा. यह अब तक केवल पश्चिमी दुनिया में किया गया है. इसलिए, यह हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की नवाचार क्षमता ही है जिसने भारत में इसे संभव बनाया है. जैसा कि आपने बताया था इंडिगो एयरक्राफ्ट द्वारा टियर-2 हवाई अड्डे पर पहली सुरक्षित लैंडिंग की जा चुकी है और हम इसे आगे बढ़ाने के लिए आश्वस्त हैं. यह उस प्रणाली का हिस्सा है जिसकी हम निगरानी कर रहे हैं. अब जब हमें अवधारणा का प्रमाण मिल गया है, तो अब हमें इसे वृद्धिशील आधार पर लागू करने से पहले सभी सुरक्षा मानकों को स्थापित करने की आवश्यकता है. हमारी निगाहें इस पर टिकी हैं और हम आने वाले दिनों में भारत में इसे हकीकत में बदल देंगे क्योंकि हवाई यात्रा के मामले में इसकी पहुंच अधिक से अधिक हो जाएगी

प्रश्न: एमआरओ (रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहाल) हब बनने में, भारत को किस प्रकार लाभ होगा?

श्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया: आज भारत में एमआरओ उद्योग करीब 2 अरब डॉलर का है. इसका 85 प्रतिशत काम भारत के बाहर किया जाता है और इसलिए उद्योग में  घरेलू कारोबार का हिस्सा केवल 15 प्रतिशत है. हमारे पास 2014 में 400 विमानों के बेड़े की क्षमता थी, लेकिन कोविड के बावजूद भी, आज इस बेड़े के विमानों की संख्या बढ़कर लगभग 715 हो गई है. हम इसमें सालाना आधार पर करीब 120 विमान जोड़ रहे हैं. इसलिए, अब समय गया है कि भारत में विमानों की इस बढ़ती संख्या को देखते हुए कंपनियां भारत में अपनी एमआरओ सुविधाएं स्थापित करने पर विचार करें. हमारे पास पहले से ही कई घरेलू एमआरओ हैं जो स्थापित हैं, कई कंपनियां जो अपने कारोबार के 15-20 प्रतिशत हिस्से के करीब काम कर रही हैं, लेकिन मैं चाहूंगा कि ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) भारत में आएं. इसलिए, अपनी अमरीका यात्रा के दौरान भी, मैंने कंपनियों को भारत में एमआरओ स्थापित करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया और इस बारे में उनसे आग्रह किया. ऐसी कई कंपनियां हैं जो भारत की ओर गंभीरता से देख रही हैं. बोइंग, एयरबस, प्रैट एण्ड व्हिटनी, सफरान जैसी कंपनियां पहले से ही भारत की ओर देख रही हैं और मैं कई और कंपनियों से और भारत में एमआरओ स्थापित करने का आग्रह करूंगा. यह रिवर्स इंजीनियरिंग का आधार बन सकता है, जो शेष एशिया के लिए सर्विसिंग इंजन है, शेष विश्व के लिए भारत से बाहर है क्योंकि हम भौगोलिक रूप से भी अच्छी तरह से स्थित हैं. यही कारण है कि मैंने एमआरओ नीति को भी फिर से तैयार किया है. पहले की एमआरओ नीति बेहद नियामकीय थी. हमने एमआरओ नीति को पूरी तरह से नया रूप दिया है. रॉयल्टी को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है. किराए को नियमित स्तर पर सामान्य कर दिया गया है. नवीनीकरण के संदर्भ में बहुत स्पष्ट उपनियम रखे गए हैं और इसलिए हमने कंपनियों को आकर्षित करने के लिए इसे और अधिक बाजार के अनुकूल बनाया है.

 (साक्षात्कारकर्ता, आकाशवाणी समाचार, नई दिल्ली के  संवाददाता हैं. उनसे airnews.bhupendra@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)