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संपादकीय लेख


अंक संख्या 07, 14 - 20 मई 2022

कौशल भारत की पुनर्कल्पना

स्वरूप और संभावनाएं

 

कुंदन कुमार, साक्षी खुराना और ओशिन धरप

कौशल विकास सरकार की नीतिगत प्राथमिकता रही है और हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में युवाओं को रोज़गार के योग्य बनाने के लिए कौशल विकास के उद्देश्य से कई पहल की गई हैं. कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) की स्थापना, देशभर में कौशल विकास प्रयासों के समन्वय और उन्हें सुचारू बनाने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए 2014 में की गई थी. कौशल विकास और उद्यमिता के लिए, अधिक व्यापक राष्ट्रीय नीति (एनपीएसडीई) 2015 में शुरू की गई थी, जो एनपीएसडी 2009 के स्थान पर लाई गई थी. एनपीएसडीई 2015 ने 'स्केल, स्पीड और मानकों के साथ कौशलके लिए व्यापक नीतिगत रूपरेखा प्रदान करके देश में कौशल ढांचे के लिए प्रारूप तय किया. एनपीएसडीई 2015 का अनुमान है कि 2020 तक भारत में जनसंख्या की औसत आयु 29 वर्ष होगी, जबकि अमेरिका में 40 वर्ष, यूरोप में 46 और जापान में 47 वर्ष होगी. इसने भारत को अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता को जनसांख्यिकीय लाभांश में बदलने और एक योग्य तथा कुशल कार्यबल बनाकर दुनिया की कौशल राजधानी बनने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया. हालांकि, इसके लिए दो महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता थी:

 

(1) रोज़गार योग्य कौशल हासिल करने और आजीवन सीखने के लिए विद्यार्थियों और संभावित नौकरी बाजार में प्रवेश करने वालों के लिए प्रगतिशील मार्ग बनाना, और (2) औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों तरह के मौजूदा कर्मचारियों की रीस्किलिंग और अपस्किलिंग के अवसर पैदा करना.

 

इन चुनौतियों का समाधान करने और एनपीएसडीई 2015 में व्यक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एमएसडीई द्वारा कौशल भारत मिशन शुरू किया गया था. कौशल भारत मिशन के दायरे में, 2015 से 5.56 करोड़ से अधिक लोगों को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), जन शिक्षण संस्थान (जेएसएस), राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना (एनएपीएस), शिल्पकार प्रशिक्षण योजना (सीटीएस) के अंतर्गत औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और 20 केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों में अन्य कौशल विकास योजनाओं/कार्यक्रमों के माध्यम से कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया गया है. (पीआईबी), 23 मार्च 2022, एमएसडीई) फ्लैगशिप पीएमकेवीवाई, जिसे 2015 में 12,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ आरंभ किया गया था, अब तक 1.35 करोड़ से अधिक लोगों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने में कामयाब रही है. (4 मई 2022 को पीएमकेवीवाई डैशबोर्ड) आईटीआई के माध्यम से शिल्पकार प्रशिक्षण योजना के तहत, 64 लाख से अधिक उम्मीदवारों को 2015 और 2021 के बीच दीर्घकालिक कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया गया है. (पीआईबी, 19 जुलाई 2021, एमएसडीई) संकल्प (कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता के लिए आजीविका संवर्धन) 2018 में शुरू की गई एमएसडीई की एक विश्व बैंक सहायता प्राप्त, केंद्र प्रायोजित योजना है. संकल्प का उद्देश्य भारत में अल्पकालिक कौशल पारिस्थितिकी तंत्र के संस्थागत ढांचे और वितरण को मजबूत करना, कौशल की गुणवत्ता के मुद्दों को संबोधित करना और अधिकार विहीन वर्गों के लोगों को शामिल करना है. स्किल स्ट्रेंथनिंग फॉर इंडस्ट्रियल वैल्यू एन्हांसमेंट (स्ट्राइव) एक विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित परियोजना है जिसे 2017 में शुरू किया गया था. स्ट्राइव का उद्देश्य आईटीआई और अप्रेंटिसशिप में प्रदान किए जाने वाले गुणवत्ता और बाजार संचालित कौशल प्रशिक्षण तक पहुंच में सुधार करना है.

जहां कई पहलों के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को कौशल प्रदान करके एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की गई है, वर्तमान चुनौतियां कौशल विकास के लिए नीतिगत ढांचे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता को इंगित करती हैं. तेजी से तकनीकी प्रगति, कोविड-19 महामारी और बाजार की अस्थिरता लगातार काम की दुनिया को बदल रही है. हालांकि भारत की विशाल युवा आबादी जबरदस्त अवसरों का प्रतिनिधित्व करती है, फिर भी युवा रोज़गार योग्यता एक चुनौती बनी हुई है. नियोक्ताओं और उद्योग प्रतिनिधियों ने विशिष्ट क्षेत्रों में प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी और कार्यबल की कम उत्पादकता के संबंध में चिंता व्यक्त की है. इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2022 में यह भी कहा गया है कि केवल 48.7 प्रतिशत भारतीय युवा ही रोज़गार के योग्य हैं.इसके अलावा, आने वाले दशकों में, कामकाजी उम्र की आबादी की वृद्धि और आकार अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होगा. 2031-41 के दौरान 22 प्रमुख राज्यों में से 11 में गिरावट सकती है, जिनमें दक्षिणी राज्य, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. इस बीच, इन राज्यों में श्रम की कमी को पूरा करना जारी रहेगा, क्योंकि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे जनसांख्यिकीय बदलाव में पीछे रहने वाले राज्यों में 2041 तक कामकाजी उम्र की आबादी में वृद्धि होगी. यह गंतव्य राज्यों में कौशल विकास के लिए प्रवासी समावेशी दृष्टिकोण की मांग करेगा ताकि श्रम बाजार में उनका सहज एकीकरण सुनिश्चित हो सके.कौशल कार्यनीतियों का आकार देना यह सुनिश्चित करने के लिए एक नीतिगत अनिवार्यता है कि कार्यबल को उनकी रोज़गार क्षमता और उत्पादकता में सुधार के लिए प्रासंगिक कौशल प्रदान किए जाएं. बजट 2.0 के बाद स्किल इंडिया की पुनर्कल्पना की दिशा में सरकार की पहल के एक हिस्से के रूप में भारत के कौशल परिदृश्य को फिर से बनाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. अर्थव्यवस्था में भविष्य की कौशल मांगों के लिए कार्यबल तैयार करने के लिए विभिन्न हितधारकों के ठोस प्रयासों द्वारा समर्थित अभिनव कार्यक्रमों और नीतिगत उपायों की आवश्यकता होती है.

 

विषम और समस्तरीय गतिशीलता का मार्ग

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 व्यावसायिक शिक्षा को उच्च प्राथमिकता देती है और एक क्रेडिट तथा अकादमिक समकक्ष ढांचे के माध्यम से व्यावसायिक शिक्षा मार्ग में विषम और समस्तरीय गतिशीलता का मार्ग की कमी के मुद्दे का समाधान करती है जो विद्यार्थियों को शिक्षा और कॅरिअर में प्रगति करने में सक्षम बनाती है. जर्मनी, स्विट्जरलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में व्यावसायिक शिक्षा से शैक्षणिक शिक्षा में प्रवेश के लिए सुस्थापित मार्ग हैं. व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शैक्षणिक शिक्षा के साथ जोड़ना और अकादमिक समकक्षता के रास्ते विकसित करना भारत में कौशल परिदृश्य को फिर से आकार देने के लिए महत्वपूर्ण होगा.भारत के दीर्घकालिक कौशल ढांचे का मुख्य आधार- लगभग 15,000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई), हर साल लाखों विद्यार्थियों को 130 से अधिक ट्रेड में कौशल प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. पीएमकेवीवाई, डीडीयूजीकेवाई और जन शिक्षण संस्थान जैसे कार्यक्रम लघु अवधि के पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं. युवाओं के लिए आकांक्षी बनने के लिए सभी दीर्घकालिक और अल्पकालिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के उम्मीदवारों को उनके कौशल और योग्यता स्तरों को उन्नत करने के लिए शैक्षणिक समकक्ष और मार्ग प्रदान करना महत्वपूर्ण है. उदाहरण के लिए, यदि किसी उम्मीदवार ने राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) स्तर 3 या 4 के साथ कोई कोर्स किया है, तो वह एनएसक्यूएफ स्तर 5 में पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए कौशल स्तर को उन्नत करने में सक्षम होना चाहिए. उम्मीदवार को भी व्यावसायिक शिक्षा छोड़कर शैक्षणिक पाठ्यक्रम में प्रवेश या इसके विपरीत करने की सुविधा मिलनी चाहिए. एकीकृत क्रेडिट प्रणाली के माध्यम से विद्यार्थियों के लिए स्पष्ट प्रगति पथ तैयार करके इस एकीकृत दृष्टिकोण का निर्माण और संचालन महत्वपूर्ण होगा.आईटीआई भारत के कौशल प्रशिक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ रहा है. वर्तमान में, आईटीआई पाठ्यक्रमों में जाने वाले विद्यार्थी 10वीं या 12वीं कक्षा के समकक्ष प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान जैसे विकल्पों के माध्यम से अलग से शैक्षणिक पाठ्यक्रम करते हैं. आईटीआई द्वारा पेश किए जाने वाले पाठ्यक्रमों में अकादमिक शिक्षा का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि विद्यार्थियों को आईटीआई में चुने गए पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में 10वीं और 12वीं कक्षा के प्रमाण पत्र प्रदान किए जा सकें. आईटीआई की देखरेख करने वाले राज्य प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा निदेशालय को डीम्ड विश्वविद्यालयों में बदला जा सकता है और उन्हें अपने स्वयं के डिप्लोमा प्रमाण पत्र प्रदान करने की अनुमति दी जा सकती है. ये पहल जो शैक्षणिक शिक्षा के साथ कौशल प्रशिक्षण को संरेखित करती हैं और योग्यता के उन्नयन के लिए स्पष्ट  मार्ग प्रदान करती हैं, भारत में व्यावसायिक शिक्षा को आकांक्षी बनाने में दीर्घकालीन उपाय होगी.

नए और उभरते क्षेत्रों के लिए कौशल और आजीवन सीखने के अवसर

महत्वपूर्ण क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 13 प्रमुख क्षेत्रों के लिए शुरू की गईं, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में युवाओं के रोज़गार सृजन की संभावना है. रोज़गार सृजन की संभावना वाले अन्य क्षेत्रों में देखभाल सेवाएं और गिग तथा प्लेटफॉर्म सेक्टर यानी काम के बदले भुगतान के आधार पर तथा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए काम करने वाले कर्मचारी शामिल हैं. देखभाल सेवा क्षेत्र जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य व्यक्तिगत देखभाल सेवाएं शामिल हैं, एक श्रम प्रधान क्षेत्र है जिसकी कोविड-19 महामारी के दौरान अधिक मांग देखी गई है. गिग और प्लेटफॉर्म क्षेत्र में अपार अवसर खुल गए हैं क्योंकि हाल के वर्षों में कई क्षेत्रों जैसे खुदरा, परिवहन, व्यक्तिगत और घरेलू देखभाल सेवाओं आदि में विभिन्न प्लेटफॉर्म नवीन समाधान पेश करते हुए उभरे हैं. यह क्षेत्र विभिन्न स्तरों और कौशल-सेट श्रेणियों के श्रमिकों के लिए अवसर प्रदान करता है. लक्षित कौशल कार्यनीतियाँ अर्थव्यवस्था में इन उभरते अवसरों का लाभ उठाने में मदद कर सकती हैं.अक्षय ऊर्जा क्षेत्र और चौथी औद्योगिक क्रांति, प्रौद्योगिकियों जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग जैसे उभरते क्षेत्रों के लिए कौशल पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए. चौथी औद्योगिक क्रांति, प्रौद्योगिकियों और हरित क्रांति से कुछ नौकरी की भूमिकाओं के नुकसान, नई नौकरियों के सृजन और सुचारू बदलाव के लिए छोटे पैमाने पर व्यवधान से गुजर रहे उद्योगों में कौशल बढ़ाने, नए क्षेत्रों में नई नौकरियों के लिए नए कौशल और कर्मियों को फिर से कौशल प्रदान करने की आवश्यकता होगी. जनवरी 2021 से विश्व आर्थिक मंच-पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट से पता चला है कि कौशल विकास में निवेश से 2030 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था को 6.5 ट्रिलियन डॉलर और भारत की अर्थव्यवस्था को 570 बिलियन डॉलर तक बढ़ाया जा सकता है.

 

नए और उभरते क्षेत्रों, कौशल प्रशिक्षण संस्थानों में अवसरों का लाभ उठाने के लिए श्रमिकों को तैयार करना. आईटीआई और प्रधानमंत्री कौशल केंद्रों (पीएमकेके) को ऐसे केंद्रों के रूप में विकसित करने की जरूरत है जो भविष्य के कौशल और उभरते अवसरों में अत्याधुनिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. चूंकि बड़े पैमाने पर इस तरह के प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए सरकारी संसाधन पर्याप्त नहीं हो सकते हैं, इसलिए अधिक निवेश के लिए मजबूत उद्योग भागीदारी, भविष्य के कौशल और प्रशिक्षुता में पाठ्यक्रम विकसित करना महत्वपूर्ण है  ताकि श्रमिकों को ऐसी भूमिका निभाने के लिए तैयार किया जा सके. कौशल प्रशिक्षण घटक को शामिल करने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना का फिर से अनुकूलन किया जा सकता है. यह योजना उद्योगों को उनके संबंधित औद्योगिक गलियारों/क्लस्टरों में कौशल प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए एकमुश्त पूंजी अनुदान के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा सकता है. ये कौशल केंद्र अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के साथ सह-स्वामित्व मॉडल के रूप में सकते हैं ताकि युवाओं को एक मजबूत उद्योग संबंध के साथ प्रशिक्षित किया जा सके और नवीनतम प्रशिक्षण सुविधाओं तथा अपने उद्योगों में नौकरी के दौरान प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करने में सहयोग  किया जा सकें. इस तरह की पहल की सफलता, अन्य उद्योग समूहों और प्रतिष्ठानों को निवेश करने और अपने स्वयं के कौशल प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है.

डिजिटल और ऑनलाइन कुशलता

जहां ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म जैसी डिजिटल तकनीकों ने शिक्षण और सीखने के कार्यक्रमों के डिजाइन और वितरण को नया रूप दिया है, वहीं कोविड -19 महामारी ने दूरस्थ शिक्षा, काम करने और कमाई के अवसरों को तेज किया है. भारत में कौशल की कमी, कोविड-19 महामारी और डिजिटल प्रौद्योगिकियों का तेजी से प्रसार, सभी कौशल विकास रणनीतियों पर विचार-विमर्श करने और कुशल श्रमिकों का एक प्रतिभा पूल बनाने के लिए एक सामूहिक अवसर का प्रतिनिधित्व करते हैं. डिजिटल माध्यमों के जरिए कौशल विकसित करने से तकनीकी, हस्तांतरणीयता और डिजिटल कौशल हासिल करने में आसानी हो सकती है, जिससे काम की बदलती दुनिया के लिए लाभार्थियों की रोज़गार क्षमता और अनुकूलन क्षमता में सुधार हो सकता है. यह आईटी, स्वास्थ्य देखभाल, डिजिटल मार्केटिंग, मीडिया और मनोरंजन आदि जैसे क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से सच है. डिजिटल कौशल में संवादात्मक वेबिनार, डाउनलोड करने योग्य प्रशिक्षण वीडियो और प्रदर्शनों का संयोजन शामिल हो सकता है. व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म चर्चा, वर्चुअल मीटिंग और ज्ञान साझा करने के सत्रों के लिए उपरोक्त सभी को पूरक कर सकते हैं.

बेहतर कौशल परिणामों के लिए प्रशिक्षुता को बढ़ावा देना

प्रशिक्षुता, युवाओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने में सक्षम बनाने का एक लोकप्रिय और प्रभावी तरीका है. यह उनकी रोज़गार क्षमता और नौकरियों तक पहुंच को बढ़ावा देता है  और फर्मों की कुशल श्रमिकों की जरूरतों को पूरा करता हैै. शिक्षुता प्रशिक्षण, सरकार की प्राथमिकता रहा है और उद्योगों तथा प्रतिष्ठानों सहित सभी हितधारकों को इस पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है. एनपीएसडीई 2015 में शिक्षुता प्रशिक्षण और कार्य-आधारित-शिक्षण पर जोर दिया गया है. प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 को उद्योग और युवाओं की गतिशील आवश्यकताओं के अनुरूप अधिक आकर्षक और लचीला बनाने के लिए इसमें समय के साथ कई संशोधन किए गए हैं. राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन स्कीम (एनएपीएस) 2016 में शुरू की गई थी और एनएपीएस (पीआईबी, 3 नवंबर 2021, एमएसडीई) के तहत उद्योगों में 7.5 लाख से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है. भारत में कुशल श्रमिकों की भारी कमी है, और यहां फर्में ज्यादातर छोटे उद्यम हैं जिनके पास कर्मचारियों या प्रशिक्षुओं को उच्च-स्तरीय कौशल प्रशिक्षण या शिक्षुता प्रदान करने के लिए वित्तीय साधन या विशेषज्ञता नहीं है. इसलिए, एमएसएमई और महिला शिक्षुता पर अधिक ध्यान देने के साथ शिक्षुता के लिए सरकारी सहायता को लक्षित किया जाना चाहिए. शिक्षुता वजीफे के रूप में एकसमान वेतनमान, एमएसएमई को बड़ी कंपनियों के साथ अधिक समान अवसर प्रदान करेगा जो अक्सर प्रशिक्षुओं को उच्च वजीफा प्रदान करती हैं. काम की अच्छी परिस्थितियों, जॉब लिंक्स और प्रशिक्षण के बाद  कार्यक्षेत्र में प्रगति के मार्गों और अप-स्किलिंग के लिए अवसरों के माध्यम से युवाओं के लिए शिक्षुता को, अधिक आकर्षक/आकांक्षी बनाया जा सकता है. भारत उन कुछ देशों में शामिल है, जिनके पास ऑनलाइन शिक्षुता प्रबंधन प्रणाली है. प्रक्रियाओं के सरलीकरण और अनुपालन बोझ में कमी के माध्यम से इस शिक्षुता प्रबंधन प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाकर और सुव्यवस्थित बनाकर अधिक फर्मों, प्रतिष्ठानों और प्रशिक्षुओं को शिक्षुता कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है.

 

महिलाओं और लड़कियों का कौशल विकास

कौशल भारत मिशन, एमएसडीई अपनी विभिन्न योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन स्कीम (एनएपीएस), जन शिक्षण संस्थान (जेएसएस), शिल्प कौशल प्रशिक्षण योजना (सीटीएस) और शिल्प प्रशिक्षक प्रशिक्षण योजना (सीआईटीएस) के माध्यम से महिलाओं सहित समाज के सभी वर्गों के लिए कौशल विकास प्रदान करता है. पीएमकेवीवाई के तहत महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए, महिलाओं के लिए परिवहन, बोर्डिंग और लॉजिंग आदि को कवर किया गया है. औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों (आईटीसी) में 30 प्रतिशत सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर दुनिया में सबसे कम है, और अर्थव्यवस्था में महिला भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कौशल प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक है. जिन क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं, उनकी पहचान करने की आवश्यकता है ताकि महिलाओं और पुरुषों के लिए समावेशी कौशल प्रशिक्षण को तद्नुसार डिज़ाइन किया जा सके. चिकित्सा, शिक्षा आदि सहित गिग और प्लेटफॉर्म सेक्टर, देखभाल क्षेत्र, कौशल क्षेत्र में महिलाओं को रोज़गार देने की क्षमता वाले आशाजनक क्षेत्र हैं. आजीविका के अवसरों के लिए महिलाओं को गैर-पारंपरिक क्षेत्रों जैसे प्लंबिंग, परिवहन तथा रसद और एसटीईएम पाठ्यक्रमों में मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है.

जिला कौशल योजना पर फोकस

विकेंद्रीकृत नियोजन  को बढ़ावा देने और कौशल पहल के जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के लिए हाल में पहल की गई है. जिला स्तरीय कौशल मांग तथा आपूर्ति के आंकलन और कौशल अंतराल को दूर करने के लिए, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) 3.0 के तहत, संबंधित राज्य कौशल विकास मिशनों (एसएसडीएम) के मार्गदर्शन में जिला कौशल समितियों (डीएससी) को जिला स्तर के कौशल का आकलन करने के लिए जिला कौशल विकास योजनाओं (डीएसडीपी) के विकास का काम सौंपा गया है. संकल्प (आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता), जिला प्रशासन और डीएससी के कौशल नियोजन और कार्यान्वयन क्षमता को मजबूत करने के लिए विश्व बैंक के सहयोग से चलाया जा रहा कार्यक्रम है. संकल्प के तहत, एमएसडीई ने 2018 में सर्वश्रेष्ठ डीएसडीपी को पुरस्कार देने के लिए 'जिला कौशल विकास नियोजन में उत्कृष्टता के लिए पुरस्कारकी शुरुआत की. हालांकि जिला कौशल नियोजन में पर्याप्त प्रगति हुई है, फिर भी डीएसडीपी को मजबूत करने की गुंजाइश बनी हुई है. डीएसडीपी नियमित आउटरीच गतिविधियों, प्रवासी श्रमिकों सहित कमजोर श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए परामर्श और लक्षित कौशल कार्यक्रम के ज़रिए अपने संबंधित जिलों में सामाजिक-आर्थिक समावेशन सुधार के उद्देश्य से पहल की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं. कौशल प्रयासों में अभिसरण प्राप्त करने के लिए ज़िला कौशल नियोजन तथा कार्यान्वयन प्रक्रिया की निगरानी करने और अन्य विभागों तथा एसएसडीएम के साथ समन्वय करने के लिए एक समर्पित जिला कौशल अधिकारी की प्रतिनियुक्ति की जा सकती है. वैश्विक कौशल जरूरतों को पूरा करने के लिए कार्यबल को प्रशिक्षित करने और स्थानीय उद्योग के साथ प्रशिक्षण और प्लेसमेंट लिंकेज बनाने की कार्यनीतियों को भी डीएसडीपी में शामिल करने की आवश्यकता है.

 

आगे का रास्ता

गतिशील श्रम बाजार और बदलती प्रौद्योगिकियों की मांगों को पूरा करने के लिए भारत में कौशल विकास कार्यनीतियों को फिर से परिकल्पित करने की जरूरत है. कौशल की मांग अन्य कारकों के साथ-साथ आर्थिक कारकों, प्रवास और जनसांख्यिकी से प्रभावित होती है. श्रम बाजार में उपलब्ध कुशल कार्यबल की गुणवत्ता, कौशल विकास कार्यक्रमों की उपलब्धता और प्रासंगिकता पर निर्भर करती है. भारत की भविष्य की स्किलिंग कार्यनीतियों में सभी के लिए रीस्किलिंग, अप-स्किलिंग, आजीवन सीखने और महिलाओं तथा लड़कियों के लिए गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में स्किलिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. तेजी से लाभ उठाने वाली प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करने से कौशल विकास में तेजी लाने और सीखने की गुणवत्ता में वृद्धि करने में मदद मिल सकती है. औपचारिक शिक्षा के साथ कौशल विकास को संरेखित करने, कौशल और योग्यता के उन्नयन के साथ-साथ कौशल और शिक्षा क्षेत्र में गतिशीलता के लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित मार्ग, भारत में व्यावसायिक शिक्षा को आकांक्षी बनाने के लिए महत्वपूर्ण होगा. सहकारी संघवाद के तहत, कौशल नियोजन और कार्य रणनीतियों पर राज्यों और जिला प्रशासन के साथ निरंतर संवाद और जुड़ाव 'कौशल भारत को फिर से तैयार करनेके लिए आवश्यक होगा.

(श्री कुंदन कुमार (आईएएस)  सलाहकार (संयुक्त सचिव) हैं: वे नीति आयोग में उद्योग I, कौशल विकास और रोज़गार और शहरीकरण कार्यक्षेत्र का प्रबंधन भी कर रहे हैं. डॉ साक्षी खुराना, नीति आयोग में कौशल विकास और रोज़गार सलाहकार हैं और सुश्री ओशिन धरप, नीति आयोग में कौशल विकास और रोज़गार की युवा प्रोफेशनल हैं)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.