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संपादकीय लेख


अंक संख्या 04, 23-29 अप्रैल 2022

आर्थिक विकास को गति देने के लिए

एमएसएमई क्षेत्र का उन्नयन

 

 डॉ. रंजीत मेहता

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) किसी भी देश के आर्थिक विकास और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं. ये विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये आर्थिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाते हैं और रोज़गार प्रदान करते हैं जिससे गरीबी उन्मूलन में सहायता मिलती है. भारत में भी, लगभग 120मिलियन नौकरियों के सृजन और देश के आर्थिक उत्पादन में  30 प्रतिशत योगदान देने वाले 65 मिलियन से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है. ये देश के औद्योगिक परिदृश्य की रीढ़ हैं और इनका निर्यात में 49 प्रतिशत तथा विनिर्माण क्षेत्र में 45 प्रतिशत योगदान है. लगभग 30 प्रतिशत रोज़गार सृजन का श्रेय इस क्षेत्र को प्राप्त है.वित्तीय समावेशन की राष्ट्रीय अनिवार्यताओं को पूरा करने और देशभर में रोज़गार के महत्वपूर्ण स्तरों का सृजन करने के लिए इस खंड का विकास बहुत आवश्यक है. कई विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने प्रदर्शित किया है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र, विकास और रोज़गार सृजन को बनाए रखने के लिए उत्प्रेरक है, जो आर्थिक मंदी के दौरान स्थिरता प्रदान करता है. देश के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में, यह क्षेत्र रोज़गार पैदा करने और ग्रामीण-शहरी प्रवास को हतोत्साहित करने के राष्ट्रीय उद्देश्यों को पूरा करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है.

 

भारत में एमएसएमई परिदृश्य

·         90 प्रतिशत से अधिक फर्मों में 5 प्रतिशत से कम कर्मचारी हैं.

·         एमएसएमई क्षेत्र में छोटी फर्मों का दबदबा है जो समय के साथ विकास नहीं कर पाती हैं.

·         वैश्विक अनुभव बताता है कि कर्मचारियों की पूरी संख्या और सुचारू संचालन की स्थिति में फर्में समय के साथ बढ़ती हैं. हालांकि, भारत में 40 साल पुराने संयंत्रों में कर्मचारियों की औसत संख्या लगभग पांच साल पुराने संयंत्रों के समान ही हैं.

·         विकास के इन विषम पैटर्न के कारण उत्पादकता लागत अधिक आती है.

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अत्यधिक प्रतिस्पर्धी स्थितियों में कार्य करते हैं और विकास की गति बनाए रखने के लिए इन्हें उसके अनुकूल परिस्थितियों की आवश्यकता होती है. सरकार इन क्षेत्रों में पर्याप्त सहायता प्रदान करने के लिए कई उपाय कर रही है जैसे एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव लाने का प्रस्ताव, एमएसएमई को बिना किसी परेशानी के ऋण प्राप्ति के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) की शुरुआत, एमएसएमई के लिए -मार्केटप्लेस, दो प्रतिशत ब्याज अनुदान योजना, बिलों की छूट के लिए टीआरईडीएस प्लेटफॉर्म की शुरुआत, ऋण मेलों का आयोजन, आर्थिक तंगी वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के ऋणों का पुनर्गठन आदि.सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र रणनीतिक रूप से देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाला सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है. रोज़गार सृजन की अपनी क्षमता के कारण यह क्षेत्र आने वाले दिनों में और भी अधिक प्रमुखता हासिल करने के लिए तैयार है. यह भविष्य के बड़े कॉर्पोरेट के विकास की आधारशिला भी है. यही कारण है कि ऋण सुविधाओं से वंचित एमएसएमई की, सभी औपचारिक वित्तीय संस्थानों तक पहुंच होना आवश्यक है.

 

एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव

1 जुलाई 2020 से प्रभावी - सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के वर्गीकरण के लिए मानदंड:-

·         सूक्ष्म उद्यम- जिसमें संयंत्र और मशीनरी या उपकरणों में निवेश एक करोड़ रुपये से अधिक नहीं है और कारोबार पांच करोड़ रुपये से अधिक नहीं है.

·         लघु उद्यम- जिसमें संयंत्र और मशीनरी या उपकरणों में निवेश दस करोड़ रुपये से अधिक नहीं है और कारोबार पचास करोड़ रुपये से अधिक नहीं है.

·         मध्यम उद्यम- जिसमें संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश पचास करोड़ रुपये से अधिक नहीं है और कारोबार दो सौ पचास करोड़ रुपये से अधिक नहीं है.

उद्योग को लगता है कि एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव के साथ उनकी निवेश सीमा में बढ़ोतरी से देश में छोटे और मध्यम व्यवसायों के निर्बाध विस्तार और उन्हें संस्थागत कार्यशील पूंजी प्राप्ति में मदद मिलेगी. देश की आर्थिक ताकत तथा लचीलेपन में सुधार लाने और इसे आत्मनिर्भर तथा और विश्वस्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए मजबूत एमएसएमई क्षेत्र महत्वपूर्ण है.

 

एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव के परिणामस्वरूप ऐसे कई उद्योग, सूक्ष्म उद्यम की श्रेणी के अंतर्गत सकते हैं जो वर्तमान में लघु उद्यमों के रूप में वर्गीकृत हैं और जो मध्यम उद्यमों के रूप में वर्गीकृत हैं उन्हें लघु उद्यमों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया जा सकता है. इसके अलावा, ऐसे कई उद्यम जो वर्तमान में एमएसएमई के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं, वे नई परिभाषा के अनुसार एमएसएमई के अंतर्गत सकते हैं और इससे ऐसे उद्यमों को भी एमएसएमई से जुड़ी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा. एमएसएमई मंत्रालय निम्नलिखित के लिए विभिन्न योजनाएं चलाता है: (1) एमएसएमई को ऋण का प्रवाह, (2) प्रौद्योगिकी उन्नयन और आधुनिकीकरण के लिए सहायता, (3) उद्यमिता और कौशल विकास (4) क्षमता निर्माण को बढ़ावा और एमएसएमई इकाइयों के सशक्तिकरण के लिए क्लस्टर-वार उपाय. हालांकि एमएसएमई की नई परिभाषा पर मिश्रित प्रतिक्रिया हुई है, लेकिन अधिकांश उद्योगों का मानना है कि एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव, एमएसएमई अधिनियम के लागू होने के बाद से इन्हें नियंत्रित करने वाली कानूनी व्यवस्था में किए गए सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक है. इससे एमएसएमई अधिनियम के दायरे में कई कंपनियां सकती हैं और वे कोविड-19 की इस महामारी के दौरान एमएसएमई क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा शुरू किए गए सुधारों का लाभ उठा सकती हैं.

 

डिजिटल तकनीकों से भारतीय एमएसएमई क्षेत्र में बदलाव

हम विनिर्माण के डिजिटीकरण की बदौलत उत्पादन के तरीके में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के दौर में हैं. तकनीकी अप्रचलन और उप-इष्टतम पैमाना भारतीय एमएसएमई की दो महत्वपूर्ण विशिष्ट विशेषताएं हैं, जिनमें मुख्य रूप से सूक्ष्म, अनौपचारिक उद्यम शामिल हैं. इसलिए, भारत में नीति निर्माताओं के पास देश में एमएसएमई क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए लगातार दो चुनौतियां रही हैं, पहली तकनीकी उन्नयन और अधिक से अधिक एमएसएमई के आधुनिकीकरण को कैसे तेज किया जाए. दूसरी है - अधिक से अधिक एमएसएमई को अपने उत्पादन के पैमाने का विस्तार करने के लिए कैसे सक्षम किया जाए?

 

दुनिया अधिक व्यवधानों और बढ़ती हुई नवाचार गति का सामना कर रही है और वास्तव में एक बहुत ही परिवर्तनवादी दौर से गुज़र रही है. वर्तमान में प्रौद्योगिकी, प्रतिभा और नए नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र उभर रहे हैं. इन्टेलीजेंट आटोमेशन और प्रौद्योगिकी इस नई औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा दे रहे हैं. परिवर्तन की यह अभूतपूर्व गति अधिक क्रांतिकारी नवाचारों के परिणाम को प्राप्त करने के लिए सहयोगी प्लेटफार्मों पर तेजी से निर्भर है.

संगठनों को हर जगह बदलाव के लिए बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है. यह बदलाव उत्पाद-केंद्रित व्यापार के तरीके के स्थान पर नए मूल्य प्रस्तुतियों के विभिन्न स्रोतों को बनाने और ग्रहण करने पर केंद्रित नए मॉडल में रूपांतरित करने के लिए है. नतीजतन, नवाचार अधिक जटिल होता जा रहा है. हम इस नए ज्ञान प्रवाह के लिए अपने इंजीनियरों, डिज़ाइनरों और वैज्ञानिकों की ओर देख रहे हैं जो हमें तकनीकी-आधारित नवाचार के नए क्षेत्र प्रदान करते हैं. उत्पाद नवाचार लगातार नई अवधारणाओं का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं जिनमें प्रौद्योगिकी अंतर्निहित है. हमारा नवाचार अधिक समष्टि, तर्कसंगत और प्रासंगिक हो गया है.उद्योग मूल्य शृंखलाओं को आवश्यक रूप से नया रूप दिया जा रहा है ताकि हर चीज के डिजिटल होने पर अधिक निर्भर कनेक्टेड दुनिया के अनुरूप समायोजित किया जा सके. जैसा कि हम विनिर्माण को पूरी तरह से कनेक्टेड-अप करने के लिए डिज़ाइन करना जारी रखते हैं, हम तेजी से समायोजित कर सकते हैं, अलग-अलग पैमाने पर, और मांग के अलग-अलग चक्रों में मात्रा प्रदान कर सकते हैं, मौजूदा समय की आवश्यकता के अनुरूप और ग्राहकों के लिए अधिक आकर्षक बना सकते हैं. इस नई गतिशीलता के साथ हमारा नवाचार प्रयोजन बदलता है.

 

हमें नए डिजिटल बिजनेस मॉडल और उनके प्रभाव की सराहना करनी चाहिए. हम तेजी से डिजिटल इंजीनियरिंग और विज्ञान पर निर्भर  हो रहे हैं. आवश्यक रूप से भिन्न उत्पाद विकास और प्रबंधन की प्रक्रियाओं की गुंजाइश बनी हुई है. औद्योगिक परिवर्तन के साथ यह बढ़ रही है. जब कारखाने और संचालन अत्यधिक संयोजित होते हैं तो पारंपरिक आपूर्ति शृंखला में बहुत विशेष क्षमता होती है.नए व्यवसाय मॉडल उसी प्रकार विकसित होंगे जिस तरह से आपूर्ति नेटवर्क में संचालित किए जा सकते हैं. इन सबके लिए डिजिटल प्रबंधन की जरूरत है. जितना अधिक इन्हें अपनाएंगे  ग्राहकों को उतना अधिक लाभ हो सकता है.  हम अधिक से अधिक कनेक्टिंग नॉलेज प्लेटफॉर्म पर लक्ष्य साधना, बिक्री और विपणन कर सकते हैं. जैसे ही हम कनेक्टेड पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण जारी रखते हैं, हम समूची प्रक्रिया को प्रबंधित करने के लिए बिक्री से पहले और बाद अधिक तदनुकूल सहायता प्रदान कर सकते हैं और चैनल पसंद को समझ सकते हैं.

 

इसके अलावा, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी में केवल बैंकिंग और वित्त को प्रभावित किया  है, बल्कि यह कई उद्योगों और समुदाय को भी समग्र रूप से प्रभावित कर सकती है. उदाहरण के लिए, यह तकनीक ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित डिजिटल वॉलेट स्थापित करके कार को जरूरत के अनुसार प्रतिक्रिया देने में सक्षम बना सकती है. यह वॉलेट रखरखाव, संशोधन, चार्ज करना या गैस भरने सहित वाहन से जुड़े सभी कार्यों की लॉगिंग करके काम करता है. यह स्वामित्व की कुल लागत को पूर्व निर्धारित करना और कार के लिए निवेश पर रिटर्न की गणना बहुत विस्तृत स्तर पर करना संभव बनाता है.

 

हमने कोविड-19 महामारी के दौरान देखा है कि कैसे आभासी प्रदर्शनियाँ तैयार की गई हैं और सम्मेलन किस प्रकार डिजिटल वेबिनार में परिवर्तित हो रहे हैं? सभी विनिर्माताओं का लक्ष्य न्यूनतम लागत पर जल्द से जल्द डिजिटल होना होगा. डिजिटीकरण के लिए ऑपरेटिंग मॉडल को परिभाषित करने में वे संकट से सीखे गए सबक पर ध्यान देंगे और अधिक लचीला तथा सक्रिय व्यवसाय बनाने का प्रयास करेंगे. मेरा मानना है कि प्रमुख कमजोरियों में से एक पूरे व्यवसाय में वास्तविक समय की दृश्यता की कमी है. दृश्यता जिन महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णयों के लिए आवश्यक है, वे हैं- उत्पादों की कैसी मांग  है और हम उनका विनिर्माण कहां कर सकते हैं? हमारा वर्तमान कच्चा माल, कार्य-प्रगति और तैयार माल सूची स्तर क्या है? मानव संसाधन और परिसंपत्ति उपलब्धता दोनों के संदर्भ में हमारी विनिर्माण क्षमता क्या है?

कोविड-19 महामारी के प्रभाव ने उद्योगों और व्यवसायों में आईटी और डिजिटल परिवर्तन के महत्व को साबित किया है और इस समय इनका उपयोग परिवर्तन को गति देने के लिए किया जाना चाहिए. इस दौरान सभी कर्मचारियों के बीच सूचना प्रौद्योगिकी, लंबी दूरी के बावजूद सहयोगात्मक कार्य की कॉर्पोरेट क्षमता, डिजिटल परिवर्तन के योगदान को व्यापक मान्यता और ऑनलाइन मार्केटिंग तथा व्यावसायिक विकास करने की क्षमता से आईटी और डिजिटल परिवर्तन का महत्व प्रदर्शित होता है.अंत में, एमएसएमई के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजारों तक पहुंचने का सबसे आसान और लागत प्रभावी तरीका इंटरनेट है. अब समय गया है जब इंटरनेट उन उपकरणों में से एक हो सकता है जिसे एमएसएमई आसानी से अपना सकते हैं और डिजिटल इंडिया का लाभ उठा सकते है. वे इंटरनेट का लाभ उठाकर खुद को बाजार में ला सकते हैं, पहचान बना सकते हैं और भारत के लिए डिजिटल परिवर्तन का नेतृत्व कर सकते हैं. डिजिटल को वैश्वीकरण का लोकतंत्रीकरण करने में सक्षम होना चाहिए- एमएसएमई को अब दुनियाभर के ग्राहकों तक पहुंचना चाहिए. ऑनलाइन तरीका व्यवसाय करने का एक नया अवसर खोल सकता है जो पहले उपलब्ध नहीं था. इससे उद्यमियों के विकास के साथ-साथ एमएसएमई को मौजूदा समय की आवश्यकता के अनुरूप अर्थव्यवस्था में महत्व मिलेगा. आईटी सेवा कंपनी एंडुरेंस इंटरनेशनल ग्रुप द्वारा 2020 में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 30 प्रतिशत एमएसएमई ने अपनी व्यावसायिक वेबसाइटें लॉन्च की हैं या -कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ करार किया है. 50 प्रतिशत से अधिक एमएसएमई ने महामारी से पैदा हुए व्यवधानों के बाद से व्यापार निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग टूल को अपनाया है. सिस्को इंडिया एसएमबी डिजिटल मैच्योरिटी स्टडी 2020 के अनुसार, डिजिटल अपनाने से एसएमई 2024 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 158-216 बिलियन अमरीकी डॉलर जोड़ सकेंगे.

 

अंतत:, डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रौद्योगिकियां भारी बदलाव ला सकती हैं और एमएसएमई को बढ़ावा दे सकती हैं. एमएसएमई मंत्रालय, एमएसएमई को लगातार विकसित हो रही डिजिटल तकनीकों के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए कई शिक्षण कार्यक्रम और योजनाएं चला रहा है. एमएसएमई मंत्रालय इन  कंपनियों को अपना व्यवसाय फैलाने और प्रौद्योगिकी संबंधी व्यवधानों से निपटने में मदद करने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करके डिजिटल अंतर को कम करने की दिशा में कड़ी मेहनत कर रहा है. पारंपरिक व्यवसाय अब नई डिजिटल तकनीकों की अवधारणा को तैयार कर रहे हैं क्योंकि वे समझते हैं कि प्रौद्योगिकी के उपयोग के बिना वे बड़े पैमाने पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी नहीं बन सकते हैं.

(लेखक वरिष्ठ उद्योग सलाहकार हैं, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिकाओं में 30 से अधिक वर्षों का अनुभव है. उनसे ranjeetmehta@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.