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संपादकीय लेख


अंक संख्या 03, 16-22 अप्रैल 2022

भारत का डीकार्बोनाइजेशन मिशन

इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना

दर्पण मागो

विकासशील देश होने के बावजूद, सतत विकास की दिशा में भारत के प्रयास मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था को कार्बन उत्सर्जनों से मुक्त करने पर निर्भर कर रहे हैं. चाहे 2030 तक नवीकरणीय स्रोतों से 50 प्रतिशत बिजली उत्पादित करने का लक्ष्य हो, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का आरंभ हो या प्रोत्साहनों के रूप में नवोन्मेषी कार्बन वित्तीय मॉडल आरंभ करना हो, भारत स्वयं को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है. इलेक्ट्रिक  वाहनों को अपनाने का प्रयास हाल ही उठाए गए प्रमुख कदमों में से सबसे महत्वपूर्ण है.वैश्विक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो अकेला परिवहन क्षेत्र ही लगभग 37 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है. दिलचस्प बात तो यह है कि दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने के साथ ही अब परिवहन के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता समाप्त हो रही है. इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए उन्हें सस्ता और अधिक सुविधाजनक बनाना ही सबसे बड़ा बदलाव है, जो हाल ही में इस क्षेत्र में नए उत्साह का संचार कर

 

इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की आवश्यकता

 हमारे देश का परिवहन क्षेत्र बहुत विशाल है और भारत ने स्वयं को वैश्विक स्तर पर वाहनों के छठे सबसे बड़े विनिर्माता के रूप में स्थापित किया है. समूचे देश की अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स में सहायता देने की दिशा में यह क्षेत्र सर्वोपरि है. वर्तमान में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक होने के नाते, परिवहन क्षेत्र अर्थव्यवस्था के विनिर्माण जीडीपी में कुल 22 प्रतिशत का योगदान देता है. इतने शानदार आंकड़ों के मद्देनजर हम इस क्षेत्र की अनदेखी नहीं कर सकते, लेकिन इसे पर्यावरण की दृष्टि से वहनीय बनाने के लिए हमें कार्यपद्धतियां विकसित करनी होंगी. भारतीय मोटर वाहन उद्योग तेजी से उन्नति कर रहा है, आने वाले वर्षों में यात्री वाहनों, वाणिज्यिक वाहनों और दोपहिया वाहनों की मांग में व्यापक वृद्धि होने के साथ इसका और तेजी से बढ़ना निश्चित  है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की रिपोर्ट के अनुसार, परिवहन क्षेत्र वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है. भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ, आने वाले वर्षों में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ना तथा पर्यावरण के लिए और अधिक समस्याएं होना निश्चित है. परिवहन क्षेत्र विशाल है और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को और ज्यादा बढ़ने से रोकने के लिए सतत विद्युत गतिशीलता के साथ पर्यावरण के अनुकूल भविष्य का रुख किए जाने की आवश्यकता है. इलेक्ट्रिक वाहनों का रुख करने का दबाव तब और भी बढ़ जाता है, जब हमें पता चलता है कि दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 शहर भारत में हैं. इन आंकड़ों को देखते हुए जीवाश्म ईंधन के तात्कालिक विकल्पों के उपयोग को सुविधाजनक बनाने की पद्धति विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है.

 

सरकारी विभाग कर रहे हैं अगुवाई

 

बैटरियों के ऊंचे दामों, जिनका कारण मुख्यत: धातु और उनमें प्रयुक्त यौगिक हैं, आंतरिक दहन इंजन (इंटर्नल कम्बशन इंजन) वाले वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन अधिक महंगे होते हैं. वर्तमान में, भारतीय बाजार में, एक इलेक्ट्रिक वाहन की कीमत एक आंतरिक दहन इंजन वाले वाहन की कीमत से लगभग दोगुनी है.इस पहलू पर विचार करते हुए भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के क्रम में तेजी लाने के लिए एक नवोन्मेषी योजना प्रस्तुत की. योजना यह थी कि पहले इन इलेक्ट्रिक वाहनों को सरकारी विभागों में लोकप्रिय बनाया जाए, जिनके पास वित्तीय सामर्थ्य और तो और अधिक प्रारंभिक परिव्यय सहन करने की क्षमता मौजूद है. इस पद्धति के साथ, सरकार केवल पहली चेंजमेकर होगी, बल्कि इससे भारतीय बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग में भी वृद्धि होगी. जिससे उनकी कुल लागत में थोड़ी कमी आएगी. सरकार की ओर से बढ़ रही इस मांग में आने वाले महीनों और वर्षों में और वृद्धि होने से इन वाहनों की लागत में भारी कमी आएगी, जो आने वाले समय में इन वाहनों को आम जनता के लिए और अधिक किफायती बनाने के लिए पर्याप्त होगी.

 

इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए विद्युत मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत बिजली क्षेत्र की संयुक्त उद्यम कंपनी ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड (ईईएसएल) ने सरकारी संगठनों के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को लीज पर देने की भारत की प्रथम परियोजना प्रारंभ की है. ईईएसएल ऊर्जा सेवा क्षेत्र में कार्य करती है. यह एक विलक्षण कंपनी है, जिसने अतीत में इसी खरीद पद्धति के जरिए मात्रा पर आधारित छूट का लाभ प्राप्त करने के लिए बल्ब, पंखे, ट्यूबलाइट, स्ट्रीट लाइट और स्मार्ट मीटर जैसे ऊर्जा दक्ष उत्पादों की बड़ी मात्रा में खरीद की थी. यद्यपि वे ऊर्जा-दक्ष उत्पादों के लिए मांग को संचित करते हैं, लेकिन कीमत में गिरावट का लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिलता है. चूंकि यह कंपनी पहले से ही मापनीयता और मांग को संचित करने की इसी तरह की खरीद विधियों पर काम कर चुकी है, इसलिए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए भी ऐसी ही पद्धति की रूपरेखा तैयार की गई. उन्होंने निजी निर्माताओं से बड़ी संख्या में इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिए निविदाएं निकालीं और उन्हें चालक के साथ ही साथ पूर्ण रखरखाव सेवाओं सहित सरकारी विभागों को लीज पर देना शुरू कर दिया. इस बोली प्रक्रिया और बड़ी मात्रा में की गई खरीद से केवल एक कार की किफायती कीमत का पता चला, बल्कि सरकारी विभागों को पहले चेंजमेकर्स में शुमार होने का श्रेय भी मिला. इस तरह, सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों की पहली ग्राहक बन गई तथा निजी मालिकों और सामान्य खरीदारों पर पूरा बोझ डाले बिना वह अपनी मांग को बढ़ावा देने में सक्षम रही. महंगे इलेक्ट्रिक वाहनों के बेड़े को अपनाने का दायित्व सरकार ने अच्छी तरह साझा किया. ईईएसएल ने 7 मार्च, 2018 को समूचे भारत में अपनी इलेक्ट्रिक वाहन परियोजना शुरू की. इस परियोजना का उद्घाटन तत्कालीन माननीय विद्युत मंत्री ने किया था. एक मारुति स्विफ्ट डिज़ायर को दिल्ली में 3 साल के लिए लीज पर लेने की लागत प्रति माह लगभग 40,000 रुपये आती है और ईईएसएल के इलेक्ट्रिक वाहनों को लगभग समान खर्च पर, कुशल चालक और वाहन के पूरे रखरखाव के अनुबंध के साथ 6 साल के लीज पर किराए पर लिया जा सकता है.

 

ईईएसएल द्वारा तैनात किए गए इलेक्ट्रिक वाहनों ने 16 नवंबर, 2021 तक सड़कों पर 6 करोड़ हरित किलोमीटर पूरे कर लिए और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में लगभग 12,076 टन की कमी की. इसके अलावा, आज तक समूचे भारत में सड़कों पर चल रहे 1,700 से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन विभिन्न सरकारी संस्थाओं से संबद्ध हैं. इस बड़ी संख्या को देखते हुए ऐसा अनुमान है कि ईंधन में 383 मिलियन रुपये की मौद्रिक बचत के साथ ही साथ लगभग 4.51 मिलियन लीटर ईंधन की बचत पहले ही की जा चुकी है. इन संख्याओं में वृद्धि करने के लिए यह भी अनुमान लगाया गया है कि ये कारें पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन में लगभग 1,690 किलोग्राम की कमी ला रही हैं. ईईएसएल ने यह संख्या और आंकड़े रीयल-टाइम डैशबोर्ड पर निम्नलिखित वेब एड्रेस http://ev.convergence.co.in/#/ पर  ऑनलाइन उपलब्ध कराए हैं:

 

जब इस योजना की शुरुआत की जा रही थी, तो यह स्प्ष्ट था कि महज प्रेरित करना और इलेक्ट्रिक वाहनों को लाना ही पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि अगली रुकावट रेंज (या माइलेज) की कमी के कारण चालक को होने वाली चिंता के रूप में सामने आई. इसका आशय  है कि आंतरिक दहन इंजन (इंटर्नल कम्बशन इंजन) वाली कारों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों में कम रेंज (या माइलेज) होती है. इस समस्या के समाधान के लिए, ईईएसएल ने चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना शुरू किया, जिसके तहत उसने अब तक देशभर में लगभग 396 चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए हैं. ऐसे कदम और इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशनों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने से चार्जिंग और रेंज या माइलेज की चिंता की समस्या कम हो गई है. फिर भी, इलेक्ट्रिक वाहन चालकों के बीच माइलेज की चिंता की समस्या को पूरी तरह से हल करने और इन वाहनों को आंतरिक दहन इंजन वाले वाहनों की तरह ही व्यवहार्य बनाने के लिए बैटरी स्टोरेज में सुधार लाने के संदर्भ में कई तरह के अभिनव समाधानों की अभी भी आवश्यकता है.

 

फेम 1 और 2 सब्सिडी योजनाएं

भारी उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत भारी उद्योग विभाग ने नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 की शुरुआत की थी, जिसके अंतर्गत इसने एक योजना शुरू की जिसका शीर्षक है - इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों का त्वरित अंगीकरण एवं विनिर्माण (फेम), जिसका उद्देश्य सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को व्यापक रूप से बढ़ाना है. इस योजना के अंतर्गत इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर सब्सिडी दी जा रही है जो निम्नानुसार है:

·         दो पहिया : वाहनों की लागत के 40 प्रतिशत तक 15000 रुपये केडब्ल्यूएच

·         तीन पहिया : 10000 रुपये केडब्ल्यूएच

·         चार पहिया : 10000 रुपये केडब्ल्यूएच

·         बस : 20000 रुपये केडब्ल्यूएच

·         ट्रक :20000 रुपये केडब्ल्यूएच

 

यह योजना सब्सिडी व्यवस्थाओं के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों की कुल कीमत में कमी लाते हुए उन्हें आम लोगों के लिए अधिक किफायती बनाने की आकांक्षा में सहायता करती है. इस योजना के तहत, 1 अप्रैल, 2019 से लेकर 3 वर्षों की अवधि हेतु सब्सिडी वितरण के लिए भारत सरकार द्वारा 10,000 करोड़ रुपये का परिव्यय अलग रखा गया है. सब्सिडी की प्रक्रिया सरल और परेशानी मुक्त है, जिसमें उपभोक्ता को इलेक्ट्रिक वाहन बेचने की प्रक्रिया पूर्ण कर देने के पश्चात  निर्माता सीधे सरकार से सब्सिडी का दावा करने के लिए अधिकृत होते हैं. सब्सिडी के लिए, उपभोक्ताओं को कुछ भी दावा करने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन निर्माता पहले उपभोक्ता को सब्सिडी का लाभ देंगे और बिक्री की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद सरकार से सीधे सब्सिडी का दावा करेंगे.फेम भाग-2 योजना के तहत दोपहिया वाहनों, चार पहिया वाहनों और तिपहिया वाहनों की श्रेणियों के कई मॉडल उपलब्ध हैं, जिसमें देशभर के विभिन्न निर्माताओं ने अपना पंजीकरण किया है. फेम योजना को दो भागों में बांटा गया है, अर्थात फेम भाग 1 और फेम भाग 2, पहले भाग में योजना के माध्यम से लगभग 2,80,987 हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सब्सिडी दी गई थी. इसके अलावा, नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 के तहत, भारी उद्योग विभाग ने लगभग 280 करोड़ रुपये की लागत से विभिन्न भारतीय शहरों में 425 इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड बसों को मंजूरी दी. इस बात पर गौर करना दिलचस्प होगा कि, फेम योजना का चरण-2 लगभग 7,000 इलेक्ट्रिक बसों, 5 लाख इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहनों, 55,000 इलेक्ट्रिक फोर व्हीलर कारों और 10 लाख इलेक्ट्रिक दो पहिया वाहनों को सब्सिडी देकर सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण में सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है. सरकार के ये प्रयास भारत में समग्र कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने के लिए संकल्प बद्ध  हैं.

 

 

प्राइवेट कैब्स भी हो रही हैं इलेक्ट्रिक

निजी क्षेत्र भी इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को साकार कर और बाजार में उनकी बिक्री बढ़ाकर इस पहल का एक अन्य पथप्रदर्शक बन गया है. हम पहले ही भारत में इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं की बहुलता हासिल कर चुके हैं, हालांकि, उनकी मार्केटिंग और सड़क पर उनका व्यावहारिक उपयोग केवल निजी कैब एग्रीगेटर्स के कारण ही बढ़ रहा है. उदाहरण के लिए, हम वर्ष 2019 में ब्लू स्मार्ट मोबिलिटी जैसे कैब एग्रीगेटर्स की उन्नति के साक्षी बने, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के एक विशाल बेड़े के माध्यम से दिल्ली एनसीआर और मुंबई में कैब सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. उनके पास 200 से अधिक ड्राइवर-पार्टनर्स सहित लगभग 300 इलेक्ट्रिक वाहन हैं, जो इन शहरों में इनके  ऑपरेशन चलाते हैं. ब्लू स्मार्ट के बिजनेस मॉडल में ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड से अपने सभी इलेक्ट्रिक वाहनों को लीज पर लेना और फिर आम जनता को टैक्सी सेवाएं प्रदान करना शामिल है. ब्लू स्मार्ट मोबिलिटी के बेड़े में टाटा, महिंद्रा और हुंडई मोटर्स जैसे निर्माताओं के वाहन हैं. उनके बेड़े में महिंद्रा -वेरिटो कारों की प्रारंभिक रेंज 140 किलोमीटर थी, लेकिन नया वेरिएंट 181 किलोमीटर रेंज की पेशकश करता है, इसी तरह टाटा -टिगॉर और हुंडई कोना के नए वेरिएंट क्रमश: 213 किलोमीटर और 452 किलोमीटर की रेंज प्रदान करते हैं, जो उनके वर्तमान बेड़े का हिस्सा हैं. एक्ज़िकॉम पावर सॉल्यूशंस के सहयोग से ब्लू स्मार्ट शहर में इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन भी प्रदान करता है. प्रकृति -मोबिलिटी सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड दिल्ली एनसीआर में काम करने वाली एक अन्य कैब सेवा प्रदाता है. वे ईवेरा के बैनर तले पेशेवर ड्राइवरों के साथ दिल्ली में इलेक्ट्रिक कैब प्रदान करते हैं, जिन्हें कैब कंपनी द्वारा थर्ड-पार्टी फ्लीट मैनेजमेंट एजेंसी के माध्यम से साथ जोड़ा गया है. उनके पास लगभग 250 कारों का बेड़ा है, और अब तक वे केवल दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में ही सेवाएं प्रदान करते हैं. ईवेरा की कारों में टाटा टिगॉर शामिल हैं, जिनका स्वामित्व स्वयं कंपनी के ही पास है. उनकी बिक्री इस विचार पर आधारित है कि वे ग्राहकों के अनुभव से समझौता किए बिना योग्य ड्राइवरों के साथ आरामदायक कैब प्रदान करते हैं. यह संभव है क्योंकि वे खुद ही कारों के मालिक हैं. इसके अतिरिक्त, ओला जैसे एक अन्य प्रतिष्ठित कैब एग्रीगेटर ने अपने बेड़े का विद्युतीकरण करने के बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के लिए अपना विस्तार किया है एक पूरी तरह से अलग क्षेत्र में कदम रखा है. उन्होंने अपने स्मार्ट और स्लीक इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स को बाजार में उतारा है. वर्तमान में, वे दो वेरिएंट ओला एस1 और ओला एस1प्रो की पेशकश कर रहे हैं जिनकी रेंज क्रमश: 121 किलोमीटर और वास्तविक रेंज 135 किलोमीटर है. आज की तारीख में दिल्ली में ओला एस1 टू-व्हीलर्स की कीमत 85,099 रुपये, जबकि ओला एस1 प्रो की कीमत 1,10,149 रुपये है. एक अन्य अंतरराष्ट्रीय टैक्सी एग्रीगेटर उबर ने भारत के महानगरों में 1,000 इलेक्ट्रिक वाहन उतारने के लिए लिथियम जैसे स्टार्ट-अप्स के साथ करार किया है.

 

रोज़गार पर इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रभाव

यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन का अनुमान है कि अधिक दक्ष इलेक्ट्रिक कारों द्वारा तेल की मांग कम करने से, 2030 तक वैश्विक रोज़गार 5,00,000 से बढ़कर 8,50,000 हो जाएगा. एक अन्य रिपोर्ट का अनुमान है कि इलेक्ट्रिक वाहनों द्वारा 2050 तक लगभग 2 मिलियन अतिरिक्त नौकरियों का सृजन किया जाएगा. इसके अलावा, चूंकि आयातित तेल की जगह बिजली और बैटरी ने ले ली है, ऐसे में बिजली उत्पादन और वितरण को बढ़ाने तथा बैटरी-रीसाइक्लिंग सहित बैटरी निर्माण से जुड़े कार्य में बड़े पैमाने पर रोज़गार संभव हैं. जहां तक ऑटोमोटिव सेक्टर का सवाल है, आपूर्ति शृंखला का एक बड़ा हिस्सा पावर ट्रेन सेगमेंट में तब्दील हो जाएगा. पारंपरिक आपूर्तिकर्ता एक्जास्ट पाइप और आईसीई जैसे पुर्जों की आपूर्ति की जगह संभवत: बैटरी सामग्री, इलेक्ट्रिक मोटर और रिजेनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम का रुख करेंगे. इलेक्ट्रिक वाहन टिकाऊ और हल्के थर्मोप्लास्टिक्स, बिजली की उच्च मांग, भंडारण और कई अन्य में अवसर पैदा करेंगे. इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी चार्जिंग और स्वैपिंग से पूरे देश में बड़ी संख्या में नौकरियां सृजित होंगी. (संदर्भ : नीति आयोग)

 

भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का भविष्य

भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का भविष्य उज्ज्वल है और वह जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता घटाने के पर्यावरण संबंधी अपने प्रमुख एजेंडे पर केंद्रित है. जबकि इलेक्ट्रिक कार निर्माता पहले से ही बाजार में नए मॉडलों की भरमार कर रहे हैं, ऐसे में समय गया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें जल्द ही आंतरिक दहन इंजन वाले वाहनों के बराबर हो जाएंगी. चार्जिंग पर लगने वाला समय और रेंज या माइलेज की चिंता एक ऐसी रुकावट जो बरकरार है, जिसमें कार की बैटरी को चार्ज करने में लगने वाला समय पेट्रोल पंप में कार पर खर्च होने वाले समय के समान होना चाहिए. आए दिन नई बैटरी तकनीक आने और फास्ट चार्जर्स के आगमन के साथ, हम धीरे-धीरे रेंज या माइलेज की चिंता में कमी आते हुए देखेंगे और चार्जिंग समय भी काफी कम हो जाएगा. भारत अपने डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को लेकर बहुत स्पष्ट है और इलेक्ट्रिक वाहन परियोजना के माध्यम से उसने निश्चित रूप से समग्र कार्बन उत्सर्जन को कम करने का प्रयत्न किया है.

 

(लेखक विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संयुक्त उद्यम कंपनी 'एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेडमें सहायक प्रबंधक (जन संपर्क) हैं. उनसे darpanmago@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.