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संपादकीय लेख


अंक संख्या 03 ,16-22 अप्रैल, 2022

कार्बन मुक्त दुनिया के लिए

शहरी पहल में तेजी लाना

 

समीरा सौरभ

अंतरराष्ट्रीय मातृ पृथ्वी दिवस इस ग्रह और उन सभी जीवन प्रणालियों, जिन्हें यह आश्रय प्रदान करता है, की खुशहाली के प्रति उत्पन्न चुनौतियों के बारे में वैश्विक जन-जागरूकता पैदा करने का अवसर प्रदान करता है. यह दिन एक सामूहिक जिम्मेदारी को भी दर्शाता है, जिसकी आवश्यकता प्रकृति और धरती के साथ सद्भाव प्रोत्साहित करने से संबंधित 1992 की रियो घोषणा में जताई गयी थी. इसका लक्ष्य मानवता की वर्तमान और भावी आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी जरूरतों के बीच संतुलन कायम करना है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2009 में पारित प्रस्ताव संख्या /आरईएस/63/278 के जरिए 22 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय मातृ पृथ्वी दिवस मनाने का निर्णय किया था.

भारत विश्व में सबसे बड़ी शहरी प्रणालियों में से एक है, जहां 37.70 करोड़ लोग शहरी क्षेत्रों (2011 की जनगणना) में रहते हैं, जो कुल आबादी का 31.16 प्रतिशत हैं. अनुमान है कि 2030 तक भारतीय शहरी जनसंख्या के स्तर में करीब 40 प्रतिशत बढ़ोतरी होगी और उसकी आबादी 58.30 करोड़ हो जाएगी. इस दौरान 2015 से 2030 की अवधि में भारत की शहरी आबादी में 16.5 करोड़ लोगों की वृद्धि होने का अनुमान है. विशाल आबादी के कारण भारत वर्तमान में, ग्रीन हाउस गैसों का सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले देशों में शामिल है. 2019 में भारत में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 3.7 गीगाटन और इसका प्रति व्यक्ति/प्रतिवर्ष उत्सर्जन 2.7 टन था. परन्तु, भारत का ऐतिहासिक संचयी (1870-2017) सीओ२ उत्सर्जन बहुत कम है, जो अमरीका (25 प्रतिशत), यूरोपीय संघ (22 प्रतिशत) और चीन (13 प्रतिशत) की तुलना में मात्र 3 प्रतिशत है.वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 के अनुसार, 2019 में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी दुष्प्रभाव से सर्वाधिक पीड़ित देशों में भारत 7वें स्थान पर था. भारत ने देश के रूपांतरण में शहरों की भूमिका की पहचान की है. सतत विकास लक्ष्य, विशेष रूप से लक्ष्य संख्या 11 (शहरों और मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, उन्नतिशील और टिकाऊ बनाना) और लक्ष्य संख्या 13 (जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना) को  कार्यान्वित करने के प्रति अपनी बचनबद्धता के अनुरूप, भारत ने शहरीकरण की प्रक्रिया मजबूत बनाने के उपाय पहले ही शुरू कर दिए हैं ताकि शहरों को अधिक सक्षम, समावेशी और कार्बन में कमी के साथ टिकाऊ बनाया जा सके.

भारत में जलवायु संबंधी कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए गए हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन के बारे में 2008 की राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी), अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की ऐतिहासिक शुरुआत और राष्ट्रीय स्तर पर लक्षित, महत्वाकांक्षी और प्रतिबद्ध योगदान (आईएनडीसी) कार्ययोजना प्रस्तुत करना शामिल है. ये सभी उपाय स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की भारत की नीतियों और कार्यक्रमों के इर्द-गिर्द केन्द्रित हैं, जिनमें  समुन्नत शहरी केंद्र, कचरे से सम्पदा को बढ़ावा देना, सुरक्षित, स्मार्ट और टिकाऊ हरित परिवहन नेटवर्क की स्थापना, प्रदूषण में कमी और वन एवं वृक्षों के आच्छादन के माध्यम से कार्बन सिंक बढ़ाने के भारत के प्रयास शामिल हैं. आईएनडीसी के लक्ष्य हासिल करने में भारत विकास के लिए कार्बन में कमी लाने के मार्ग अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है. वह विभिन्न उपायों को जारी रखने, मौजूदा नीतियों को बढ़ाने और नई पहल करने के लिए कृत संकल्प है.राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के अंतर्गत प्रस्तावित 8 मिशनों में से एक, और 2019-20 में संशोधित, राष्ट्रीय स्थायी पर्यावास मिशन (नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल हैबिटेट-एनएमएसएच), भारत सरकार द्वारा शहरी क्षेत्रों में कार्यान्वित की जा रही प्रमुख जलवायु कार्रवाइयों में से एक है. इसका उद्देश्य भारत के आईएनडीसी लक्ष्य हासिल करने की दिशा में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता कम करने के लिए कार्बन में कमी लाने के साथ शहरी विकास को प्रोत्साहित करना; और शहरों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए लचीलापन लाना और उनकी क्षमता सुदृढ़ करना है ताकि वे जलवायु संबंधी चरम घटनाओं और आपदा जोखिम की स्थिति में 'बेहतर बचाव कार्रवाई कर सकें.

वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में शहरों का लगभग 70 प्रतिशत योगदान है, जिसमें परिवहन, भवन निर्माण, ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे क्षेत्र शहरी ग्रीन हाउस उत्सर्जन में बॅल्क योगदान के लिए जिम्मेदार हैं. आवश्यकता इस बात की है कि सभी संबंधित हितधारक शहरों और कस्बों को टिकाऊ और समावेशी बनाने के लिए मिलकर काम करें. वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन पर कॉप21 पेरिस समझौते और सतत विकास लक्ष्यों के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता की पुष्टि करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से लक्ष्य 11, जिसमें 2030 तक समावेशी, सुरक्षित, समुन्नत और टिकाऊ शहरों के निर्माण की बात कही गई है, और लक्ष्य 13, जिसमें जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्प्रभावों का मुकाबला करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान किया गया है.

इसके अलावा, हैबिटेट III नयू अर्बन एजेंडा  भी व्यापक रूप से एक विस्तृत, बहुस्तरीय और क्रॉस-सेक्टरल फ्रेमवक्र तैयार करता है जिसमें एक स्थानिक फोकस होता है जो वैश्विक जलवायु कार्रवाई को तेज कर सकता है और सतत विकास लक्ष्यों  को स्थानीय बनाने के साधन प्रदान कर सकता है. इसे देखते हुए और वैश्विक महामारी के संदर्भ में, विश्व पर्यावास दिवस और पृथ्वी दिवस निम्नांकित के लिए सभी हितधारकों को नए अवसर प्रदान करते हैं-वैश्विक अभियान 'रेस टू जीरो और यूएन-हैबिटेट के 'क्लाइमेट एक्शन4सिटीज पर विचार-विमर्श और विचार-मंथन करना और नवंबर 2021 के अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन कॉप 26 के संदर्भ में स्थानीय सरकारों को अमल करने योग्य शून्य-कार्बन योजनाएं विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना.विश्व की 7.6 अरब जनसंख्या में से आधे से अधिक (55 प्रतिशत) लोग अब शहरों में रहते हैं जिनकी ऊर्जा खपत में 78 प्रतिशत और वैश्विक सीओ२ उत्सर्जन में 7 प्रतिशत  से अधिक हिस्सेदारी है. 2030 तक, विश्व की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में होगी; और इस तीव्र शहरीकरण से, विशेष रूप से ऊर्जा खपत, औद्योगिक गतिविधियों और परिवहन से अवांछित उत्सर्जन का बढ़ना जारी रहेगा.

यह आकलन किया गया है कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय 'हमेशा की तरह व्यापार का रवैया जारी रखता है, तो धरती का तापमान 2050 में दो डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगा, जिसमें भयावह अनुपात के साथ प्राकृतिक आपदाएं होंगी. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन मानव बस्तियों, विशेष रूप से समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और शहरी गरीबों, के लिए असुरक्षित बनाता है, जिन्हें चरम मौसम घटनाओं का सामना करना होता है, और जो उनसे प्रभावित होते हैं.किफायती और उत्सर्जन में आक्रामक कमी लाने की कार्यनीति के साथ कम कार्बन वाली, संसाधन-कुशल हरित अर्थव्यवस्था अधिक लाभ देने का वादा करती है. शहरी पर्यावरण प्रदूषण और आपदा रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन आकलन और अनुकूलन ढांचा विकसित करने तथा शमन एवं अनुकूलन कार्यों के लिए वित्तपोषण उपाय अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं. इसके अलावा कुछ अन्य उपायों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, जैसे कम कार्बन फुटप्रिन्ट वाली भवन निर्माण सामग्री, रिहायशी क्षेत्रों और विकास केन्द्रों की संतुलित आयोजना जैसे उपायों के माध्यम से ऊर्जा सक्षम और जलवायु प्रकोप रोधी शहरों का निर्माण, ऊर्जा सक्षम भवन संहिता और प्रदूषण  नियंत्रण, अपशिष्ट प्रबंधन, आदि के बारे में जन जागरूकता और जन भागीदारी के लिए हितधारकों के बीच बहु-स्तरीय सहयोग.

आवासन और शहरी मामले मंत्रालय, भारत सरकार ने 100 स्मार्ट शहरों के लिए फरवरी 2019 में 'जलवायु स्मार्ट शहरों का आकलन फ्रेमवर्क जारी किया है, जो शहरों के लिए जलवायु कार्रवाइयों की दिशा में एक मार्गदर्शक ढांचा है और उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक जिम्मेादार बनाने और उनके प्रति जोखिम कम करने में मदद करता है. भारत सरकार के विभिन्न कार्यक्रम जैसे हरित भारत मिशन, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट शहर मिशन, अमृत, पीएमएवाई, शहरी परिवहन, आदि शहरों को 'जलवायु स्मार्ट होने के उद्देश्य प्राप्त करने में सहायता करेंगे. देश में जारी विभिन्न मिशन, विशेष रूप से स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत, केवल शहरों को सुविधाजनक बनाएंगे बल्कि शहरों में बुनियादी सेवाओं जैसे जलापूर्ति, परिवहन, बिजली, मलजल उपचार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आदि की बढ़ती मांगों को अधिक संसाधन-कुशल, कम कार्बन और आर्थिक रूप से व्यवहार्य तरीके से पूरा करने में भी मदद करेंगे.

शहरी परिवहन शहरी विकास का एक प्रमुख घटक होने के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में योगदान करने वाला एक प्रमुख कारक है. उदाहरण के लिए, भारत सरकार के तहत, वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान प्रणाली -सफर के अनुसंधान के अनुसार, दिल्ली में पीएम 2.5 के उत्सर्जन का सबसे प्रमुख स्रोत परिवहन (41 प्रतिशत) है. इसलिए, सड़क पर समय और दूरी को कम करते हुए कम कार्बन उत्सर्जन गतिशीलता बढ़ाने और परिवहन नेटवर्क को फिर से डिज़ाइन करने के मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है. निजी वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि को देखते हुए, भारत की राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (एनयूटीपी) 2014, में सभी नागरिकों को किफायती लागत पर और उचित समय के भीतर कार्यस्थल, शिक्षा, सामाजिक सेवाएं और मनोरंजन स्थलों के लिए आवागमन एवं पहुंच के वास्ते ''वाहनों के बजाय लोगों के लिए योजना बनाने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है. नीति के अंतर्गत अनेक सुझाव दिए गए हैं, जैसे  शहरी परिवहन को शहरी आयोजना में मात्र एक परिणामी आवश्यकता के बजाय एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में शामिल करना; यातायात प्रबंधन के लिए इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आईटीएस) शुरू करना; -वाहनों जैसी वैकल्पिक तकनीकों का उपयोग करना; नवीन तंत्रों के माध्यम से धन जुटाना; संस्थागत तंत्र स्थापित करना; और परिवहन प्रणालियों की योजना और प्रबंधन में बेहतर समन्वय के लिए क्षमता निर्माण करना.  कुछ शहरों में पारगमन उन्मुख विकास (टीओडी) की आवश्यकता की मान्यता भी बढ़ रही है, यानी, ट्रांजिट नोड्स में और उनके आसपास उच्च एफएसआई (फ्लोर स्पेस इंडेक्स) लोगों के निवास, काम और मनोरंजन स्थानों तक इंट्रा-सिटी पहुंच और कनेक्टिविटी में सुधार करेगा।

वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 40 प्रतिशत  के लिए इमारतें जिम्मेदार हैं. यदि हम जलवायु परिवर्तन को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें हरित भवनों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, क्योंकि कुल ऊर्जा की 30 प्रतिशत खपत भवनों से संबद्ध है, जिनमें 22 प्रतिशत आवासीय भवन शामिल हैं, जो एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि लोग अपना अधिकांश समय घर पर बिताते हैं, और अब यह कोविड-19 महामारी के कारण 'न्यून नॉर्मल हो गया है. यह देखते हुए कि प्रमाणित हरित भवन 20-30 प्रतिशत के बीच ऊर्जा बचत और 30-50 प्रतिशत तक पानी की बचत प्रदान कर सकते हैं, हमें उच्च प्रदर्शन वाले हरित भवनों को अधिक महत्व देना चाहिए, क्योंकि इनसे ग्रीनहाउस उत्सर्जन 33-35 प्रतिशत (2005 के स्तर से) तक कम किया जा सकता है. इसलिए, पीएमएवाई-एचएफए (शहरी) और ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज-इंडिया (जीएचटीसी) के तहत 'प्रौद्योगिकी उप-मिशन (टीएसएम), भारत सरकार द्वारा की गई महत्वपूर्ण पहल है. जो टिकाऊ, हरित और आपदा समुन्नत हैं, और समय और लागत बचाने वाली मुख्यधारा की निर्माण प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देते हैं और उनका रखरखाव करते हैं.

हमें बड़ी आवास परियोजनाओं में थर्मल कम्फर्ट तकनीक का इस्तेमाल करने की आवश्यकता पर बल देना होगा. इस तकनीक से प्राकृतिक वातायन, तापमान और आर्द्रता नियंत्रण में मदद मिलती है;  इमारतों की आवासीय गुणवत्ता में वृद्धि होती है और उन्हें स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर बनाना संभव होता है. इसलिए, योजना और आवास कार्यनीतियों के एक नए प्रतिमान की आवश्यकता है जो समावेशी, स्वस्थ और टिकाऊ आवास को बढ़ावा दे सके. परन्तु, इन हरित भवनों की लागत चूंकि सामान्य घरों की तुलना में थोड़ी अधिक है, इसलिए हमें सामूहिक आवास परियोजनाओं में थर्मल कम्फर्ट को सक्षम करने के लिए उपयुक्त हरित वित्तपोषण तंत्र खोजने की आवश्यकता है. हुडको जैसे बैंकों/वित्तीय संस्थानों को बड़े पैमाने पर आवास में थर्मल कम्फर्ट या हरित घटकों को बढ़ावा देने के लिए सॉफ्ट ग्रीन मोर्टगेज ऋण, ग्रीन हाउसिंग बॉन्ड इत्यादि  नवीन हरित वित्तपोषण विलेखों को विकसित करने की आवश्यकता है. ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी पर जीवन को तेजी से खतरे में डाल रही हैं, इसलिए परिवर्तन के अगुवा होने के नाते शहरों का यह दायित्व है कि वे अनियोजित शहरी बस्तियों को नियोजित मानव बस्तियों में परिवर्तित करने में अनुकरणीय बदलाव लाएं; और रोडमैप तैयार करें ताकि उच्च उत्सर्जन वाली इमारतों को हरित इमारतों में बदलने और डेटा, प्रौद्योगिकी, नवाचार और जलवायु वित्तपोषण तंत्र की मदद से एक स्थायी, आर्थिक रूप से स्वस्थ और कार्बन रहित दुनिया के लक्ष्यों को प्राप्त किए जा सके.

कार्बन कम करने की नई और अभिनव प्रौद्योगिकियों के लिए तौर-तरीके विकसित करने की आवश्यकता है. इसके लिए जरूरी है कि सभी के लिए आवास, स्मार्ट प्रौद्योगिकी आधारित सेवा वितरण और स्मार्ट शहरी शासन के जरिए हरित परिवहन के साथ समुचित शहरी आयोजना, नवीन वित्तीय व्यवस्थाएं और मानव एवं मानवाधिकारों को सतत शहरी विकास में सर्वप्रमुख रखा जाए ताकि कार्बन-मुक्त विश्व की स्थापना में योगदान किया जा सके.

 (लेखिका आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में निदेशक हैं. उनसे sameera.saurabh@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है) व्यक्त विचार निजी हैं