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संपादकीय लेख


अंक संख्या 03, 16-22 अप्रैल,2022

हरित वित्तपोषण: भारत के लिए

सतत विकास की कुंजी

 

अमिताभ कांत, पीयूष प्रकाश, माधुरी पाल

भारत 2021 से 2024 (आर्थिक सर्वेक्षण, 2021-2022) के दौरान दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था (वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद  के मामले में) बना रहेगा. भारतीय अर्थव्यवस्था 2025 तक पांचवीं सबसे बड़ी और 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है. हालांकि, भारत के उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने के लिए जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक गंभीर खतरा है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से मानसून वर्षा पैटर्न बदलाव से भारत को सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत नुकसान हो  सकता है और यह 2050 तक देश की लगभग आधी आबादी के जीवन स्तर पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है. इस पृष्ठभूमि में, भारत के विकसित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होने के बीच हरित वित्तपोषण यानी ग्रीन फाइनेंसिंग आशा की एक किरण प्रतीत होता है. इस लेख में हम हरित वित्तपोषण की अवधारणा, भारत में इसके विकास और सतत विकास लक्ष्य 2030 के बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हरित वित्तपोषण को आगे बढ़ाने में बाधाओं और आगे के रास्ते पर चर्चा कर रहे हैं.

भारतीय रिजर्व बैंक (2021) के उल्लेख के अनुरूप हरित वित्तपोषण, पर्यावरणीय रूप से संधारणीय परियोजनाओं या जलवायु परिवर्तन के पहलुओं को अपनानेवाली परियोजनाओं के उपयोग के लिए विशिष्ट वित्तीय व्यवस्थाओं के बारे में है. दूसरे शब्दों में, हरित वित्त बेहतर पर्यावरणीय विकास प्रदान करने के लिए निर्मित एक संरचित वित्तीय गतिविधि है. ग्रीन फाइनेंस, हरित उपक्रमों के विकास को बढ़ावा देने या अधिक नियमित परियोजनाओं के वातावरण पर प्रभाव को कम करने के लिए ग्रीन बॉन्ड, कार्बन मार्केट टूल्स जैसे, कार्बन टैक्स, और ग्रीन बैंक जैसे नए वित्तीय संस्थान शामिल हैं. जलवायु के अनुकूल नीतियों को तैयार करने की ओर बढ़ते युग में, हरित वित्तपोषण सबसे नवीन तंत्र के रूप में उभरा है और तेजी से सार्वजनिक नीति के लिए प्राथमिकता के रूप में विकसित हो रहा है.वर्तमान अवधि में, ग्रीन बॉन्ड और ग्रीन बैंक को हरित परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए प्रमुख तंत्र माना जाता है. ग्रीन बॉन्ड पूंजी जुटाने वाला स्रोत है जिसका उपयोग हरित बैंक कर सकते हैं और यह किसी भी अन्य बॉन्ड की तरह हैं जो हरित परियोजनाओं के लिए पूंजी जुटाते हैं. ग्रीन बॉन्ड एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग एक ग्रीन बैंक संस्थान कर सकता है. दूसरी ओर, ग्रीन बैंक वित्तीय संस्थान हैं जो आम तौर पर सरकारी अनुदानों के अतिरिक्त पूंजी का विस्तार करने, ऋण संबंधी गतिविधियां करने और अपनी बैलेंस शीट को पुनर्पूंजीकृत करने के लिए बॉन्ड जारी करते हैं.

हरित वित्तपोषण: समय की आवश्यकता

सकल घरेलू उत्पाद को अर्थव्यवस्था की स्थिति के आंकलन के लिए सबसे अच्छा संकेतक माना जाता है; हालांकि, इसके अपने असंतोष हैं. तथापि, सकल घरेलू उत्पाद की गणना में पर्यावरणीय गिरावट और स्थिरता के पहलुओं को शामिल नहीं किया जाता है. हाल में कोविड- 19 महामारी ने संबंधित हितधारकों को अब तक अपनाई गई वित्तीय कार्यनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने और लंबे समय में पर्यावरण की दृष्टि से संधारणीय प्रणाली के अनुरूप होने का एक अतिरिक्त अवसर प्रदान किया है. स्विस री इंस्टीट्यूट के अनुसार, दुनिया की अर्थव्यवस्था को कुल आर्थिक मूल्य के लगभग 10 प्रतिशत की अभूतपूर्व हानि का सामना करना पड़ रहा है और यह 2050 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 18 प्रतिशत तक हो सकता है. उल्लेखनीय रूप से, भारत वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक-2021 में पांचवें स्थान पर है जिसने  उसे विश्व स्तर पर सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील देशों में से एक बना दिया. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक (यूएनएफसीसीसी, 2021) भी है, हालांकि, देश का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक औसत (विश्व बैंक, 2021) का केवल 40 प्रतिशत है और संचयी उत्सर्जन (फ्राइडलिंगस्टीन एट अल 2021) का केवल 3.2 प्रतिशत  है.

माननीय प्रधानमंत्री ने जलवायु संकट के महत्व पर विचार करते हुए नवंबर 2021 में संपन्न ग्लासगो सीओपी26 सत्र में विश्व नेताओं को अपने संबोधन में, 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की. प्रधानमंत्री ने पांच सूत्री प्रतिबद्धताओं के एक हिस्से के रूप में 'पंचामृतअवधारणा के बारे में बताया और 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावाट ऊर्जा प्राप्त करने, कार्बन की तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और वर्ष 2021 तथा 2030 के बीच कार्बन उत्सर्जन को अनुमानित 1 बिलियन टन तक कम करने के लिए भारत के लिए एक विशाल महत्वाकांक्षा का मसौदा तैयार किया. इस पृष्ठभूमि में, एक जलवायु जोखिम प्रबंधन प्रणाली विकसित करने से निवेशकों और वित्तपोषकों को उन क्षेत्रों के लिए एक सूचित पूंजी आवंटन निर्णय लेने में सक्षम होंगे, जिनमें जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को कम करने की क्षमता है.वैश्विक स्तर पर, पेरिस समझौते ने विगत में जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई में कार्रवाई और प्रयासों को बढ़ाने पर जोर दिया है जिनमें 'वित्त, क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, अनुकूली क्षमता बढ़ाने, लचीलापन मजबूत करने और विकासशील देशों की प्राथमिकताओं और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम उपलब्ध विज्ञान के अनुरूप जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को कम करना शामिल है. ग्लासगो सीओपी26 शिखर सम्मेलन में, एक संधारणीय और परिवर्तनीय भविष्य बनाने के लिए खुला आह्वान किया गया है, और इसके लिए, प्रत्येक राष्ट्र को वास्तविक अर्थव्यवस्था तथा वित्तीय सेवाओं के बीच सहयोग को पुनर्गठित शुरू करना चाहिए. सतत आर्थिक विकास की दिशा में इस तरह के बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिए हरित वित्त की अवधारणा आवश्यक है.हरित वित्त साधनों में से एक के रूप में हरित बॉन्ड, एक प्रमुख पहलू है. जलवायु परिवर्तन प्रस्तावों को वित्तपोषित करने के लिए 2007 में पहले हरित बॉन्ड के जारी होने के बाद से वैश्विक बाजार कुल 521 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच गया था. इसके अलावा, लगभग 200 देश जलवायु परिवर्तन की शर्तों पर 2015 के पेरिस समझौते के तहत हरित वित्त जुटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. दुनियाभर में ग्रीन बॉन्ड बाजार का कारोबार मूल्य 2023 तक 2.36 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है. विश्व बैंक ने 24 मुद्राओं में 200 से अधिक बांडों के माध्यम से लगभग 17 बिलियन अमरीकी डालर के बराबर ग्रीन बॉन्ड जारी किये.

हरित वित्तपोषण: भारतीय अर्थव्यवस्था परिदृश्य और की गई पहल

भारत, 2030 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संधारणीय पर्यावरणीय परियोजनाओं को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण चरण में है. पेरिस जलवायु समझौते के महत्वाकांक्षी और व्यापक लक्ष्यों में सहयोग करने के लिए आवश्यक भारत के संधारणीय उद्यमों के तेजी से विस्तार के लिए वित्त पोषण प्रमुख बाधा है. ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) ने अनुमान लगाया है कि जलवायु के अनुकूल प्रतिबद्धताओं की उपलब्धियों के लिए 2070 तक उत्सर्जन को शुद्ध-शून्य करने के लिए 10 ट्रिलियन से अधिक निवेश की आवश्यकता होगी. इस निवेश का उद्देश्य भारत के उद्योग, बिजली और परिवहन क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने में सहायता करना है. इसलिए, वित्तपोषण उदार और वहनीय होना चाहिए ताकि कम लागत वाली पूंजी से स्थिर आर्थिक विकास की सुविधा के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को एक सतत हरित अर्थव्यवस्था में बदला जा सके. भारत ने कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए अपनी यात्रा शुरू की है और नवंबर 2021 में एक श्वेतपत्र 'ग्रीन न्यू डील फॉर नेट जीरो इंडियाको 2070 तक हासिल करने के लिए सामने रखा है. 'ग्रीन न्यू डीलने हरित वित्त को डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के लिए एक प्रवर्तक के रूप में वर्गीकृत किया है. यह हरित बुनियादी ढांचे को स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय सरकार और निजी संस्थाओं से पूंजी के बढ़ते प्रवाह की आवश्यकता पर जोर देता है.2015 के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था ने हरित वित्त की नीतियों के उपयोग और कार्यान्वयन में  एक प्रारंभिक लक्ष्य बनाया है जैसा कि नीचे सूचीबद्ध है:

·         भारत ने यस बैंक, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ इंडिया, सीएलपी विंड फार्म और आईडीबीआई जैसे अग्रणी जारीकर्ताओं के एक छोटे समूह से जारी किए गए 1.1 बिलियन अमरीकी डॉलर के ग्रीन बॉन्ड के साथ फरवरी 2020 तक ग्रीन बॉन्ड बाजार में प्रवेश किया. भारत में हरित बॉन्ड की बकाया राशि 16.3 बिलियन अमरीकी डॉलर है.

·         2015 से भारत में जारी किए गए लगभग 76 प्रतिशत हरित बॉन्ड अमरीकी डालर में मूल्यवर्गित किए गए हैं. इसके अलावा, विश्व बैंक ने भारत में कई परियोजनाओं के लिए हरित बांड जारी

किये हैं.

·         भारतीय रिजर्व बैंक ने 2015 में लक्ष्यों के भीतर सामाजिक बुनियादी ढांचे और छोटी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को ऋण देना शामिल किया.

·         भारतीय रिजर्व बैंक ने 2015 में अपनी प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (पीएसएल) योजना के तहत लघु नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को शामिल किया. आरबीआई ने अक्षय परियोजनाओं के लिए संस्थाओं द्वारा 15 करोड़ रुपये और निजी व्यक्तियों के लिए 10 लाख रुपये तक की ऋण सहायता दी.

·          जनवरी 2016 में, सेबी ने हरित बॉन्ड जारी करने और ऐसे बॉन्डों के लिए संबंधित लिस्टिंग आवश्यकताओं के लिए रूपरेखा तैयार की.

·         स्वच्छ ऊर्जा निवेश के लिए जिम्मेदार सरकार समर्थित भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरईडीए) को मई 2016 में भारत का पहला ग्रीन बैंक घोषित किया गया.

·         जनवरी 2018 से, भारत ने लगभग

8 बिलियन अमरीकी डालर के हरित बॉन्ड जारी किए हैं, जो भारतीय वित्तीय बाजार में जारी किए गए सभी बॉन्डों का लगभग 0.7 प्रतिशत है.

·          भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 2018 में 650 मिलियन अमरीकी डालर के जलवायु बॉड सर्टिफिकेट जारी किए और इनका उपयोग पूरे भारत में पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए किया जाएगा. बैंक के ग्रीन बॉन्ड फ्रेमवर्क में 2022 तक 173 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा के भारत सरकार के लक्ष्य में मदद करने की प्रतिबद्धता शामिल है.

·          भारत में, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड (2017), पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2017), इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2017), अडानी रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड (2019) जैसे कई संगठनों ने 10 या अधिक वर्षों की परिपक्वता अवधि के साथ ग्रीन बॉन्ड जारी किए हैं. रिन्यू पावर प्रा. लिमिटेड ने 2019 में पांच साल से कम की परिपक्वता अवधि वाले ग्रीन बॉन्ड जारी किए हैं.

·          आरबीआई ने 2021 में, वित्तीय प्रणाली को हरित करने के लिए नेटवर्क (एनजीएफएस) के सदस्य के रूप में प्रवेश किया, जो राष्ट्रीयकृत बैंकों का एक समूह है. यह वित्तीय क्षेत्र में पर्यावरण जलवायु संबंधी जोखिमों की प्रगति को बढ़ावा देने वाली पद्धतियों के माध्यम से हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन का समर्थन करता है.

·          पर्यावरण, सामाजिक और संचालन (ईएसजी) मानकों के प्रकटीकरण में सुधार के लिए सेबी ने आगे बढ़कर 2021 में 'व्यावसायिक उत्तरदायित्व और संधारणीयता रिपोर्ट’ (बीआरएसआर) प्रस्तुत की है. बीआरएसआर वित्तीय वर्ष 2022-23 से अनिवार्य है और शीर्ष एक हजार उद्यमों पर लागू होने के लिए है. बीआरएसआर ढांचा वैश्विक रिपोर्टिंग पहल जैसे अंतरराष्ट्रीय ईएसजी मानकों को नियोजित करता है और गुणात्मक तथा मात्रात्मक डेटा दोनों प्रस्तुत करता है.

·          भारत सरकार की नीति बनाने वाली शीर्ष संस्था-नीति आयोग और वर्ल्ड रिसोर्स (डब्ल्यूआरआई), इंडिया, जीआईजेड इंडिया के सहयोग से परिवहन को कार्बन मुक्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिसमें हरित वित्त पोषण को अपनाने पर महत्वपूर्ण ध्यान दिया जा रहा है, जो कि इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए कम ब्याज वाले वित्तपोषण की सुविधा प्रदान करता है. इसने फरवरी 2022 में एक परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया.

हरित वित्तपोषण: चुनौतियां

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-2020 के अनुसार, 2019 की पहली छमाही में 10.3 बिलियन अमरीकी डालर के लेनदेन के साथ, भारत ग्रीन बॉन्ड के लिए विश्वस्तर पर दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. हालांकि, भारत में, ग्रीन फाइनेंस अब भी विकासशील चरण में है, जहां 2018 के बाद से जारी किए गए सभी बॉन्डों में 0.7 प्रतिशत ग्रीन बॉन्ड हैं, जबकि मार्च 2020 तक गैर-पारंपरिक ऊर्जा के लिए बैंक ऋण, बिजली क्षेत्र को बकाया बैंक ऋण का लगभग 7.9 प्रतिशत है. हरित वित्त के मुद्दे से संबंधित प्रमुख चुनौतियां हैं:

·         2015 से भारत में हरित बॉन्ड जारी करने की लागत समान अवधि के कॉर्पोरेट और सरकारी बॉन्डों की तुलना में अधिक बनी हुई है. 5 से 10 वर्षों के बीच परिपक्वता वाले ग्रीन बॉन्ड के लिए औसत कूपन दर समान अवधि के लिए सरकार और कॉर्पोरेट बॉन्ड की तुलना में अधिक रही है.

·          हरित वित्तपोषण में एक सार्वभौमिक परिभाषा का अभाव है और सूचना विषमता से ग्रस्त होने के कारण अक्सर 'ग्रीन-वाशिंगहोता है, जिसमें निवेशकों को ग्रीन बॉन्ड के बारे में गलत संकेत मिलते हैं.

·         हरित परियोजनाओं और उनके वित्तपोषण की परिपक्वता अवधि में एक गंभीर बेमेल है, जो अक्सर विदेशी निवेशकों के लिए उधार लेने की लागत और मुद्रा जोखिम में वृद्धि की ओर जाता है.

·         नवोन्मेषी जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों के बारे में घरेलू बैंकिंग क्षेत्र में ब्यौरों के अभाव के कारण जोखिम बढ़ गया है.

हरित वित्तपोषण: आगे का रास्ता

संबंधित मुद्दों के आधार पर, निम्नलिखित सुझावों को आगे के रास्ते के रूप में देखा जा सकता है:

·         हरित परियोजनाओं की शर्तों और पेबैक अवधि के अनुरूप लचीले और किफायती उधार उत्पादों का प्रस्ताव, जिससे लागत कम हो.

·         हरित अर्थव्यवस्था के विकास में मुख्य मुद्दों की पहचान करने के लिए अधिक हरित बुनियादी ढांचे के लिए बाजार की वृद्धि और मांग सृजन पर व्यापक शोध.

·         भारत को हरित निवेश, विशेष हरित जोखिम अंकन विशेषज्ञता और पूंजी के सार्वजनिक स्रोतों के अधिदेश का पालन करने वाले हरित बैंक स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. ग्रीन बैंक कम ब्याज दर पर उधार की सुविधा देता है और हरित परियोजनाओं की शर्तों और पेबैक अवधि के अनुरूप लचीली शर्तों की पेशकश करता है.

निष्कर्ष

भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत और उत्साहित है क्योंकि यह 8 वर्षों से कम समय में 263 प्रतिशत की वृद्धि के साथ, 2030 तक वर्तमान 2.75 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था से 10 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है. इस तरह का असाधारण विस्तार अपने आप में एक कठिन कार्य है. भारत की महत्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं (जैसे अगले दशक में अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को

1 बिलियन टन तक कम करना) ने इस तरह के विस्तार को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है. ग्रीन बैंक और ग्रीन बॉन्ड जैसे उपायों के साथ ग्रीन फाइनेंसिंग जादुई उपाय साबित हो सकता है, बशर्ते ग्रीन फाइनेंसिंग नियमों और शर्तों में सक्रिय नियामक सुधार हों. ग्रीन फाइनेंसिंग को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर व्यापक चर्चा शुरू करने की आवश्यकता है. ये वित्तीय उपाय भारत के माननीय प्रधानमंत्री की पांच-आयामी प्रतिबद्धता (पंचामृत) को साकार करते हुए भारत की परियोजनाओं को जलवायु अनुकूल बनाने  में तेजी लाएंगे और इस प्रकार निवेशकों, सरकारों और हमारे लिए हितकारी पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे.

(अमिताभ कांत, सीईओ नीति आयोग, पीयूष प्रकाश, सीनियर एसोशिएट, नीति आयोग और माधुरी पाल, एसोशिएट, नीति आयोग)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं