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संपादकीय लेख


अंक संख्या 01, 2-8 अप्रैल 2022

महामारी के बाद दुनिया में डिजिटल अवसंरचना की भूमिका

नीरज सिन्हा और  नमन अग्रवाल

कोरोना वायरस ने डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास के लिए नई शुरुआत का अवसर प्रदान किया है. डिजिटल बुनियादी ढांचा- इमारतों, सड़कों, बिजली और पानी की आपूर्ति आदि जैसे पारंपरिक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता के अनुरूप एक महत्वपूर्ण अवसंरचना की आवश्यकता के रूप में उभरा है. क्लाउड, बिग डेटा और एआई एप्लिकेशन का उपयोग करना उद्योगों के लिए नए व्यवसाय मॉडल विकसित करने में सहायक है. ये, नागरिकों को महामारी की गंभीरता को समझने तथा निवारक उपायों को सुनिश्चित करने में मदद करते हैं और कोविड-19 महामारी ने लगातार बढ़ते डिजिटल अवसंरचना को गति  प्रदान की है. इस लेख में आज के युग और दुनिया में, डिजिटल क्रांति की आवश्यकता और भारत सरकार की अब तक की पहल को रेखांकित किया गया है. इसमें महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वित्त अनुसंधान और विकास में मदद करने के लिए सार्वजनिक धन का निवेश करके, नवाचार करके तथा सीखकर भारत के लिए विभिन्न सक्षम अवसरों पर भी प्रकाश डाला गया है.

 

दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं अपनी डिजिटल अवसंरचना को बनाने के तरीके तैयार कर रही हैं, जिनमें डेटा, कम्प्यूटरीकृत उपकरणों, विधियों, प्रणालियों और प्रक्रियाओं के उपयोग के लिए अधिक बदलाव, चुस्त और भविष्य के लिए आवश्यक भौतिक संसाधन, शामिल हैं. किसी समाज के कामकाज और उसके नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता के लिए डिजिटल अवसंरचना अनिवार्य हो गई है. दुनियाभर में, देशों ने कोविड महामारी से सक्रिय रूप से निपटने के लिए अपनी डिजिटल अवसंरचना का लाभ उठाया है. आगे बढ़ते हुए, देश की डिजिटल अवसंरचना में लचीलापन कोविड-19 महामारी जैसी प्रतिकूलताओं से सफलतापूर्वक निपटने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है. भारत, दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक होने के नाते, वैश्विक परिदृश्य में विशिष्ट स्थिति में है और इसमें उभरती हुई विश्व व्यवस्था में एक अग्रणी डिजिटल शक्ति बनने की क्षमता है.

 

भारत में लगभग आधा बिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता, कई स्वदेशी डिजिटल सेवाएं, प्लेटफार्म, एप्लीकेशन, कन्टेंट और समाधानों से भारत के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव की उम्मीद है. भारत अपनी जरूरतों के अनुरूप उभरती प्रौद्योगिकियों (जैसे एआई, ब्लॉकचैन, या ड्रोन) में निवेश करने के लिए 2025 तक वैश्विक तथा स्थानीय व्यवसायों, स्टार्ट-अप्स और इनोवेटर्स के लिए एक आकर्षक अवसर का प्रतिनिधित्व कर संभावित रूप से डिजिटल परिवर्तन से आर्थिक मूल्य में पांच गुना वृद्धि कर सकता है. कृत्रिम बुद्धिमता, ब्लैकचेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) जैसी अग्रणी तकनीकों को हालांकि तेजी से अपनाया गया है, कोविड-19 महामारी ने डिजिटल अवसंरचना को अत्यधिक दबाव में डाल दिया है. इसने सुरक्षित दूरी के मानदंडों और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण डिजिटल तकनीकों के अपरिहार्य उपयोग में वृद्धि की है. पूरी दुनिया में लोगों और संगठनों को काम और जीवन के नए तरीकों के साथ तालमेल बिठाना पड़ा है.

 

डिजिटीकरण में वृद्धि प्रमुख फर्मों और शैक्षणिक संस्थानों को वर्क-फ्रॉम-होम  (डब्ल्यूएफएच) के लिए प्रेरित कर रही है. इससे ब्लॉकचैन तकनीक महत्वपूर्ण हो जाएगी और इसके लिए डिज़ाइन तथा नियमों पर शोध करना होगा. गिग वर्कर्स और गिग इकॉनमी के बड़े पैमाने पर बढ़ने की संभावना है, जिससे कार्य आवंटन, सहयोग, प्रेरणा, और कार्य अधिभार तथा प्रस्तुतिवाद के पहलुओं पर सवाल उठ रहे हैं. डिजिटल उपस्थिति में वृद्धि के साथ कार्यस्थल निगरानी और टेक्नोस्ट्रेस मुद्दे प्रमुख हो जाएंगे. सुरक्षा प्रबंधन पर शोध के साथ-साथ ऑनलाइन धोखाधड़ी बढ़ने की संभावना है. महामारी के बाद के युग में एक प्रमुख संसाधन- इंटरनेट, का नियमन महत्वपूर्ण होगा. डिजिटल मुद्रा भी, संपर्क मुक्त उपयोग के साथ, संकट की स्थितियों में महत्वपूर्ण हो जाती है और अनुसंधान उनके अपनाने, परिणाम और तरीकों को संबोधित करेगा. डिजिटल उपयोग में वृद्धि के साथ निगरानी और गोपनीयता के पहलुओं को महत्व मिलता है.

 

डिजिटल क्रांति: समय की जरूरत

भारत का डिजिटल विभाजन कम समृद्ध राज्यों और समाज के वर्गों को अधिक समृद्ध राज्यों के स्तर पर लाने के लिए तेजी से कम हो रहा है. भारत 2025 तक डिजिटल अर्थव्यवस्था से 1 ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक मूल्य का सृजन कर सकता है, जिसमें आधे अवसर नए डिजिटल पारिस्थितिक तंत्र में उत्पन्न हो सकते हैं जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उभर सकते हैं. -कॉमर्स प्लेटफॉर्म से उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों - मोबाइल डिवाइस, स्मार्ट टीवी, एलईडी लाइटिंग आदि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. स्वदेशी मांग में वृद्धि को पर्याप्त रूप से संबोधित करने के लिए तेजी से और एक मजबूत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र होना आवश्यक है. स्थानीय आपूर्ति शृंखला नेटवर्क विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है, और इस दिशा में प्रयासों का परिणाम हो सकता है -स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में वृद्धि. उद्योग को कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधानों को दूर करने के लिए अंशाकित निर्णय और त्रैमासिक अल्पकालिक रणनीतियों का विकास करना चाहिए. 'आत्मनिर्भर भारतनीति स्वदेशी विनिर्माण, निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देकर, कम-सरल तकनीक वाले सामान के आयात के प्रतिस्थापन को प्रोत्साहित करके और कम कीमतों (इलेक्ट्रॉनिक्स बी2बी,2020) पर स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित करके देश के बाधित व्यापार संचालन को बहुत ही आवश्यक प्रोत्साहन दे सकती है. मजबूत डिजिटल अवसंरचना के विकास के लिए विशेष रूप से कनेक्टिविटी और व्यापक पहुंच को बढ़ावा देना समय की आवश्यकता है, जो 5जी, आईओटी, कृत्रिम बुद्धि, मशीन लर्निंग, ड्रोन, रोबोटिक्स, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, फोटोनिक्स, नैनोडिवाइस जैसे उभरते प्रौद्योगिकी क्षेत्रों और रक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, साइबर सुरक्षा, स्मार्ट सिटी तथा ऑटोमेशन जैसे क्षेत्रों में उनके अनुप्रयोग को अपनाने की सुविधा प्रदान कर सके.वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार 2 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का  होने का अनुमान है. यद्यपि वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भारत की हिस्सेदारी 2012 में 1.3 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 3 प्रतिशत हो गई है (इन्वेस्ट इंडिया, 2020), इसे अब भी कुछ अन्य देशों की तुलना में नगण्य माना जाता है. इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग किसी राष्ट्र के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, उद्योग और सरकार को इस क्षेत्र में ठोस प्रयास करना चाहिए. सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण खंड होने के नाते, वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स पारिस्थितिकी तंत्र का केंद्र हैं. भारत में एक अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर फैब की अनुपस्थिति एक प्रमुख क्षमता बाधा रही है. सेमीकंडक्टर निर्माण एक जटिल पूंजी गहन और अनुसंधान एवं विकास-गहन क्षेत्र है जिसे प्रौद्योगिकी में तेजी से बदलाव द्वारा परिभाषित किया गया है - जिसके लिए निरंतर अनुसंधान एवं विकास और निवेश प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है. सेमीकंडक्टर केवल इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के केंद्र में हैं, बल्कि वे तैयार उत्पादों के कुल मूल्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं.

 

भारत में मौजूदा सेमीकंडक्टर वेफर/ डिवाइस फैब्रिकेशन (फैब) सुविधाओं की स्थापना-विस्तार या इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा भारत के बाहर सेमीकंडक्टर फैब के अधिग्रहण के लिए हाल में रुचि की अभिव्यक्ति एक स्वागत योग्य कदम है. ऐसा माना जाता है कि सबसे आधुनिक फैब (फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 2020) के बजाय 28 एनएम का सेकेंड-हैंड फैब भारत की वर्तमान जरूरत के एक बड़े हिस्से को पूरा कर सकता है. इस पर  500-700 मिलियन डॉलर से अधिक खर्च नहीं होगा. इसके अलावा, एक माइलस्टोन आधारित तथा समयबद्ध दृष्टिकोण के साथ गैलियम नाइट्राइड फैब सहित सेमीकंडक्टर फैब निर्माण पर जोर देना भी महत्वपूर्ण है.

 

अब तक भारत सरकार की पहल

भारत ने 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. वैश्विक व्यापक आर्थिक कारकों के साथ-साथ सतर्क दृष्टिकोण और मंद घरेलू खपत उस महत्वाकांक्षा को प्राप्त करने के लिए एक गंभीर चुनौती है.अब लीक से हटकर सोचने का समय गया है. प्रौद्योगिकी के नेतृत्व वाले नवाचार का उपयोग करके आर्थिक विकास करना और विकास के पुराने प्रतिमानों को तोड़ना आवश्यक है. सरकारी नीतियों, सहायता  और प्रयासों से अकेले डिजिटल अर्थव्यवस्था भविष्य में 60-65 मिलियन नौकरियों के अवसर  पैदा कर सकती है (फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 2019). कुछ प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

 

·          डिजिटल इंडिया कार्यक्रम सरकार की प्रमुख पहलों में से एक है, जिसका राष्ट्रीय डिजिटल अवसंरचना पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा है. इस कार्यक्रम के तहत, सरकार का लक्ष्य पूरे देश में हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करना है. इसके अलावा, इसका उद्देश्य डिजिटल पहचान, वित्तीय समावेशन, लाभ वितरण और सामान्य सेवा केंद्रों (सीएससी) तक आसान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट पहचान (आधार) का विस्तार और लाभ उठाना भी है. 2.3 लाख ग्राम (ग्राम) पंचायतों में 3.59 लाख सीएससी का नेटवर्क डिजिटल रूप से सेवाएं प्रदान करने के लिए एक मजबूत तंत्र बन गया है. सीएससी 50 केंद्रीय और 300 से अधिक राज्य सेवाएं दे रहे हैं. इस प्रक्रिया में, सीएससी ने ग्रामीण क्षेत्रों में 1.2 मिलियन से अधिक लोगों के लिए रोज़गार उत्पन्न किया है (इकनॉमिक टाइम्स, 2019).

 

·          सरकार ने आंतरिक सुरक्षा में प्रौद्योगिकी समाधान के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे में और लचीले इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए आईआईटी कानपुर में राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित किए हैं. सरकार ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) के लिए नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नासकॉम) के सहयोग से बैंगलूरू में एक उत्कृष्टता केंद्र भी स्थापित किया है. इन उपायों से अत्याधुनिक तकनीकों के आने की भी उम्मीद है. (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, 2019)

 

·          अंतराल को दूर करने के लिए, देश में और इकाइयां स्थापित करने के वास्ते प्रमुख वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को उनकी आपूर्ति शृंखला के साथ आकर्षित करने के लिए रेडी बिल्ट फैक्ट्री (आरबीएफ) शेड/प्लग तथा प्ले सहित सामान्य सुविधाओं के साथ विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सहायता प्रदान करने के लिए, संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (ईएमसी 2.0) योजना को अप्रैल 2020 में अधिसूचित किया गया है. (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, 2021).

 

 

·          इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सेमीकंडक्टर के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना (एसपीईसीएस), अप्रैल 2020, इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टर के घरेलू निर्माण में कमियों को दूर करने तथा देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में मदद करेगी (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, 2020).

 

·          बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना  (पीएलआई), अप्रैल 2020, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और मोबाइल फोन निर्माण तथा असेंबली, टेस्टिंग, विपणन और पैकेजिंग (एटीएमपी) इकाइयों सहित निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटकों में बड़े निवेश को आकर्षित करने के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन की पेशकश करती है. (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी  मंत्रालय)

 

 

·         व्यापक हितधारकों के परामर्श के बाद तैयार की गई इलेक्ट्रॉनिक्स राष्ट्रीय नीति 2019 (एनपीई 2019) का उद्देश्य चिपसेट सहित मुख्य घटकों को विकसित करने के लिए देश में क्षमताओं को प्रोत्साहित कर निर्यात पर जोर देने के साथ भारत को ईएसडीएम के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए उद्योग के वास्ते सक्षम वातावरण बनाना है (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, 2019).

 

जीवंत आईटी-बीपीएम, दूरसंचार, -कॉमर्स, इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र, वर्चुअल रियल्टी (वीआर), संवर्धित वास्तविकता (एआर), ब्लॉकचैन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), रोबोटिक्स, एनालिटिक्स ऑटोमेशन, क्लाउड, साइबर-सुरक्षा, मोबाइल और सोशल मीडिया जैसी तकनीकों से लैस नए डिजिटल स्टार्टअप की भरमार, 2025 तक कुल 250 बिलियन डॉलर के सकल मूल्य को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं (फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 2019). भारत ने 2024 तक अपनी अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इसने और अधिक डिजिटल होने के लिए कई प्रयास किए हैं. डिजिटल इंडिया मिशन को डिजिटल सुरक्षा और भरोसे पर आधारित बनाने की कल्पना की गई है. डिजिटल भरोसे का निर्माण पूरे समाज, व्यवसाय और डिजिटल सेवाओं का उपयोग करने वाले लोगों के लिए भी एक बड़ा प्रयास है.महामारी की निराशा के बाद रोशनी की किरण यह है कि इससे बचाव के लिए कई टीकों को मंजूरी दी गई है और दुनिया के अधिकांश देशों में टीकाकरण शुरू हो गया है. भारत वास्तव में दुनिया में सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहा है, जिसमें रिकॉर्ड समय में एक अरब से अधिक लोगों को टीका लगाया जाना है. हालांकि, कोविड-19 ने हमारे काम करने के तरीके, हमारी स्वास्थ्य सेवाओं, नौकरियों तथा शिक्षा सहित हमारी दुनिया को, अच्छे के लिए बदल दिया है और डिजिटीकरण के महत्व को उजागर किया है. जब दुनिया में एक ठहराव सा गया था, तो सेवाओं, उत्पादों, व्यापार और जीवन की निरंतरता बनाए रखने  के लिए डिजिटल प्रणाली  का उपयोग करके समायोजित किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 जुलाई 2021 को कोविन वैश्विक सम्मेलन में, सभी देशों को  नि:शुल्क और ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप में कोविन की पेशकश की.

 

इस सम्मेलन में 142 देशों ने प्रतिनिधित्व किया था. इस सॉफ्टवेयर को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार किसी भी देश में अनुकूलित किया जा सकता है. भारत ने तकनीकी रूप से संभव होते ही अपने कोविड ट्रैकिंग और ट्रेसिंग ऐप आरोग्य सेतु को ओपन सोर्स बना दिया था. कोविन प्लेटफॉर्म ने पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से को आसानी से टीका लगाने में सक्षम बनाया था.

 

भारत के लिए अवसरों को सक्षम बनाना

भारत ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआईआई) रैंकिंग में लगातार आगे बढ़ रहा है और वर्तमान में 48वें स्थान पर है 2020). दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति (इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन, 2021) की शक्ति में सैमसंग, बॉश, माइक्रोसॉफ्ट सिस्को जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत की पेशकश की क्षमता का लाभ उठाने के लिए भारत पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है.

·          बढ़ती उम्मीदों वाला एक युवा देश: 2030 तक कामकाजी उम्र की आबादी (15 से 64 साल के बीच) 1 अरब तक पहुंच जाएगी और चीन से अधिक हो जाएगी, भारत की 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम उम्र की है (एसोचैम इंडिया, 2015).

 

·          रोज़गार चुनौती: बढ़ती कामकाजी आबादी को समाहित करने के लिए सालाना 1.2 मिलियऩ नई नौकरियों की जरूरत है, प्रत्येक वर्ष 50 मिलियन लोगों को कुशल बनाने की आवश्यकता है, वर्तमान क्षमता केवल 3 मिलियन (इंडिया टुडे, 2020) है.

 

 

·          बढ़ता मध्यम वर्ग नए मूल्य प्रस्तावों के प्रयास करता है: 2021 तक, भारत में 'उभरते मध्यम और मध्यम वर्गÓ खंड का गठन करने वाले लगभग 900 मिलियन लोग होंगे, जो नए अवसर प्रदान करेंगे.

 

·         इस बाजार में जीत हासिल करने के लिए, कंपनियों को नए व्यवसाय मॉडल के माध्यम से दिए गए नए मूल्य प्रस्तावों को प्राप्त करने के लिए मानसिकता में बदलाव लाने की आवश्यकता होगी.

 

 

·          अनुसंधान और विकास  (जीईआरडी) पर भारत का सकल व्यय 2011-12 में 65,961.33 करोड़ रुपये (14.07 अरब अमरीकी डॉलर) से बढ़कर 2016-17 में 104,864.03 करोड़ रुपये (16.27 अरब अमरीकी डॉलर) हो गया. हालांकि, यह सकल घरेलू उत्पाद का महज 0.7 प्रतिशत है लेकिन इसके और बढ़ने की संभावना है. सफल देशों ने महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वित्त अनुसंधान और विकास में मदद करने के लिए सार्वजनिक धन का निवेश करके नवाचार करने और सीखने की अपनी क्षमता बढ़ाई है. इसमें हर कोई शामिल है - बड़ा और छोटा, सार्वजनिक और निजी, अमीर और गरीब.

 

निष्कर्ष और आगे का रास्ता

 

हितधारकों (निजी और सरकारी) का एक गठबंधन वायरस के लिए टीका खोजने के लिए बड़ी फंडिंग के साथ फार्मास्युटिकल उद्यमों का सहयोग कर रहा है. हमारे डिजिटल अवसंरचना के आधुनिकीकरण, उन्नयन और अद्यतन करने के लिए तथा कोविड और भविष्य की अन्य महामारियों से निपटने के लिए, विभिन्न वित्तीय मॉडल विकसित होंगे जैसे कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी और विकास के चरण के दौरान वित्तीय संकट को कम करने के लिए खपत/परिणाम-आधारित मॉडल. इस समय देशों को  कृत्रिम बुद्धिमता के साथ इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसे नए डिजिटल अवसंरचना के निर्माण में तेज़ी लाने के अलावा,  पहले से ही देशों की वित्तीय प्रोत्साहन योजनाओं में शामिल महत्वपूर्ण परियोजनाओं और प्रमुख बुनियादी ढांचे के निर्माण का काम जल्द पूरा करना चाहिए.

 

(नीरज सिन्हा नीति आयोग में वरिष्ठ सलाहकार और नमन अग्रवाल वरिष्ठ असोशिएट हैं. ईमेल: naman.agrawal@nic.in )

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.