रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Issue no 49, 05 -11 March 2022

महिलाएं : नये भारत की नवप्रवर्तक

नयी चुनौतियां, नये उपाय

 

साक्षात्कार : श्रीमती रेखा शर्मा, अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग 75 वर्ष पहले देश के आज़ाद होने के बाद से भारतीय महिलाएं काफी प्रगति कर चुकी हैं. भारतीय महिलाएं, शहरी और ग्रामीण, दोनों ही रुकावटों और उत्पीाड़न की बेड़ियां तोड़कर ज्यादा आत्मविश्वासी और साहसी बन चुकी हैं. अब जबकि भारत आज़ादी के 100 वर्ष पूरे करने की दिशा में अग्रसर है, विकास और नीति-निर्माण के उद्देश्यों में महिलाओं का कल्याण और सशक्तिकरण सर्वोपरि है. राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) उपयुक्त नीति निर्धारण के माध्यम से महिलाओं को उनके वाजिब अधिकार और हक दिलाने, उन्हें कानूनी उपायों के बारे में राय देने, कानूनों को प्रभावी रूप से लागू करने, योजनाओं/नीतियों का कार्यान्वयन करने तथा भेदभाव और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के कारण उत्पन्न होने वाली विशिष्ट समस्याओं/ हालात के समाधान के लिए रणनीतियां बनाते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्हें समानता और समान भागीदारी हासिल करने में सक्षम बनाने में सक्रिय सहायक की भूमिका निभाता आया है. रोज़गार समाचार के लिए सिद्धार्थ झा से बातचीत करते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती रेखा शर्मा ने आधुनिक भारतीय महिला को प्रभावित करने वाले विभिन्न मामलों पर अपनी राय प्रकट की.

 

प्रश्न:सोशल मीडिया महिलाओं के लिए अपने सरोकार जाहिर करने, विचार व्यक्त करने तथा समानता हासिल करने के संघर्ष में सहयोग देने का सशक्त मंच बन चुका है. इस बारे में आपकी क्या राय है?

रेखा शर्मा: सोशल मीडिया विभिन्न विषयों के बारे में जागरूकता फैलाने और अभियान चलाने का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है. वर्तमान में सोशल मीडिया ने महिलाओं के सशक्तिकरण और भेदभाव, महिला-पुरुषों में असमानताओं और नकारात्मनक घिसी-पिटी धारणाओं आदि जैसे महिला अधिकारों से जुड़े मामलों की ओर विशिष्ट रूप से ध्यान आकृष्ट किया है. इसने मुख्यधारा के मीडिया द्वारा अमूमन कवर नहीं किए जाने वाले मामलों पर विशेष रूप से प्रकाश डालने और समर्थन जुटाने के लिए हैशटैग कैम्पैन्स और अन्य अभियानों के माध्यम से दुनिया भर की महिलाओं को विभिन्न मामलों के बारे में चर्चा करने तथा उनकी बातचीत को व्यापक बनाने का अवसर दिया है.

यद्यपि, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं के साथ नए तरह के अपराधों की भी अनेक घटनाएं हुई हैं. इसलिए साइबर स्पेस में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और संरक्षण के लिए कारगर कदम उठाने की भी जरूरत है. जहां तक राष्ट्रीय महिला आयोग का प्रश्न है, वह फेसबुक और साइबर पीस फाउंडेशन के सहयोग से शैक्षणिक संस्थानों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों का संचालन करता रहा है. अब तक 2 लाख से ज्यादा महिलाओं और लड़कियों को डिजिटली प्रशिक्षित किया जा चुका है.

प्रश्न: सामान्य तौर पर महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आने के बावजूद कामकाजी महिलाओं द्वारा  भीषण चुनौतियों का सामना करने का सिलसिला जारी है. उनके हितों की रक्षा के लिए कई कानून हैं, लेकिन इन कानूनों को लागू करने में भारत किस हद तक सफल रहा है?

रेखा शर्मा: आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण महिलाओं और लड़कियों की स्थिति को मजबूत करता है तथा उन्हें अपनी और अपने परिवार की भलाई के लिए निर्णय लेने में समर्थ बनाता है. साथ ही हर पीढ़ी में महिलाओं को कुछ विशिष्ट, पूर्वाग्रह से ग्रसित चुनौतियों का सामना करना पड़ता रहा है. आधुनिक दौर में, जिस तरह अधिक से अधिक तादाद में शिक्षित युवतियां नौकरियों में प्रवेश कर रही हैं, विभिन्न व्यावसायिक स्तरों पर पुरुषों के हिंसक व्यवहार से उनका सामना होने की आशंका भी बढ़ गई है.

विधायिका ने भी इस समस्या को स्वीकार किया है और उत्पीड़न करने वाले अपराधियों पर लगाम कसने और उन्हें दंडित करने की दिशा में पहले से कहीं ज्यादा मजबूत कदम उठाए हैं. कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न; रोकथाम, निषेध और निवारण, अधिनियम, 2013, मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961, कारखाना अधिनियम, 1948, समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो महिला अधिकारों और उनके  सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं.

मेरा दृढ़ मत है कि महिलाओं को कार्यस्थल पर अपने अधिकारों को जानने और जरूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल करने की आवश्यकता है. आयोग को कार्यस्थल पर महिला-पुरुष में भेदभाव, यौन उत्पीड़न और मातृत्व लाभ देने से इंकार करने से संबंधित शिकायतें भी मिलती रही हैं.

आयोग महिलाओं को प्रभावित करने वाले कानूनों की समय-समय पर समीक्षा भी करता है. हाल ही में आयोग द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की समीक्षा की गई और इसकी सिफारिशों को सरकार के साथ साझा किया गया. वर्तमान वर्ष के दौरान आयोग मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की समीक्षा कर रहा है. मैं इस बात से सहमत हूं कि महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन कानूनों को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है.

राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देने के लिए भारत सरकार का वैधानिक निकाय है. इसकी स्थापना भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत 31 जनवरी 1992 को की गई थी.

प्रश्न: विधायिका और स्थानीय निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व होना कितना महत्वपूर्ण है?

रेखा शर्मा: महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के पक्ष में अकसर दो तर्क दिए जाते हैं; पहला, आधी आबादी होने के नाते महिलाओं का राजनीति और सत्ता में समान हिस्सा होना चाहिए और दूसरा, राजनीति में महिलाएं होंगी, तो वे राजनीति में महिलाओं का विशेष ध्यान रखेंगी और महिला मूल्यों पर फोकस करेंगी और आगे चलकर, देश की राजनीति के स्वरूप को बदल देंगी. इस तथ्य को स्वीकार करते हुए 73वें और 74वें संशोधन द्वारा स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को संवैधानिक रूप से अनिवार्य कर दिया गया है. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का परिणाम लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण रूप से लाभदायक होता है, जिसमें नागरिकों की जरूरतों के प्रति अधिक जवाबदेही, समस्त दलों और जातियों में अधिक सहयोग और ज्यादा टिकाऊ शांति शामिल है.

हालांकि सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक जैसी कई तरह की बाधाएं हैं, जो राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी को सीमित करती हैं, जिन पर चर्चा किए जाने और उन्हें दूर करने की आवश्यकता है. इसे संवैधानिक रूप से अधिदेशित किए जाने के बावजूद अभी तक इसे सामाजिक रूप से हतोत्साहित किया जाता रहा है, हम इस तथ्य को नकार नहीं सकते. राजनीति में महिलाओं को दो प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, पहला, महिलाओं को ऐसे पूर्वाग्रहों से ऊपर उठना होगा, जो महज़ उनके महिला होने के कारण उनके समक्ष आते हैं और दूसरा, महिलाओं पर उन मतदाताओं की अपेक्षाओं को पूरा करने का दबाव होता है जिनका वह प्रतिनिधित्व कर रही होती हैं.

इस संदर्भ में, राष्ट्रीय महिला आयोग का मानना है कि महिलाओं की प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं, जिनमें सॉफ्ट आसपेक्ट्स  शामिल हैं, को पूरा करते हुए उन्हें  राजनीति में समर्थ बनाना उचित होगा, जो उन्हें अधिक आत्मविश्वासी बनने और उनके समग्र व्यक्तित्व विशेष रूप से बातचीत के कौशल, लेखन कौशल में सुधार लाने में मदद कर सकता है और उनकी समग्र चिंतन प्रक्रिया तथा विश्वास के स्तर को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है.

आयोग ने ''शी इज चेंज मेकर शीर्षक के तहत एक पहल की है और विभिन्न लोकतांत्रिक और शासन संरचनाओं से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के लिए क्षमता निर्माण संबंधी कार्यक्रमों को प्रायोजित करता रहा है. ये कार्यक्रम अखिल भारतीय स्तर पर राज्य प्रशिक्षण संस्थानों के सहयोग से आयोजित किए जाते हैं. अब तक, इस तरह के 15 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं तथा कई अन्य कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है.

प्रश्न: पैतृक संपत्ति में पुरुषों और महिलाओं के समान उत्तराधिकार के अधिकारों का समर्थन करने वाले कानूनों और अदालती फैसलों के बावजूद, कृषि भूमि की विरासत को नियंत्रित करने वाले केंद्रीय पर्सनल लॉ और राज्य कानून परस्पर विरोधी हैं. अत: क्या आप इस बात से सहमत हैं कि महिलाओं का संपत्ति का अधिकार अधूरा प्रोजेक्ट बना हुआ है?

रेखा शर्मा: एक ऐसे देश में जहां महिलाओं को विरासत के लिए बड़े पैमाने पर सामाजिक और कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, हम वास्तव में न्यायपालिका और विधायिकाओं के आभारी हैं, जो समय-समय पर संपत्ति के उत्तराधिकार में महिलाओं के अधिकार और जन्म से सहदायिक अधिकारों को मान्यता देती रही हैं. हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कृषि भूमि के उत्तराधिकार कानून, केंद्रीय पर्सनल  लॉ  और राज्य कानूनों में परस्पर विरोधी हैं.

एनसीडब्ल्यू ने महिलाओं के संपत्ति के अधिकारों से संबंधित विभिन्न कानूनों की समीक्षा के लिए तीन क्षेत्रीय परामर्श आयोजित किए थे. परामर्श की रिपोर्ट में महिलाओं के संपत्ति के अधिकारों के मार्ग में आने वाली  प्रमुख बाधाओं पर प्रकाश डाला गया और संशोधन सुझाए गए थे, जिन्हें वर्ष 2019 में सरकार के साथ भी साझा किया गया था.

प्रश्न: गैर-सरकारी संगठनों ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रेरणादायक पहलों में किस प्रकार योगदान दिया है?

 रेखा शर्मा: एनजीओ और स्व-सहायता समूह बुनियादी शिक्षा. व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्वरोज़गार के लिए प्रशिक्षण, कानूनी जागरूकता और आत्म-जागरूकता कार्यक्रम आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. राष्ट्रीय महिला आयोग भी समय-समय पर इन कदमों का समर्थन करता है. हाल ही में एनसीडब्ल्यू द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं:

·         एनसीडब्ल्यू ने स्नातक और स्नातकोत्तर युवतियों के लिए देशव्यापी क्षमता निर्माण और व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम  शुरू किया है, ताकि युवतियों को नौकरी के बाजार में प्रवेश के लिए तैयार करने हेतु उनका व्यक्तिगत क्षमता निर्माण, व्यावसायिक कॅरिअर कौशल और डिजिटल साक्षरता तथा सोशल मीडिया का प्रभावी उपयोग किया जा सके.

·         आयोग, आईआईएम, बैंगलुरु के सहयोग से, महत्वाकांक्षी महिला उद्यमियों को डिजिटल रूप से प्रशिक्षित करने के लिए मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (एमओओसी) के माध्यम से एक ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रहा है. इस कार्यक्रम के तहत अब तक कुल 1859 प्रतिभागियों को प्रायोजित किया गया है. अब वही कार्यक्रम हिन्दी में संचालित करने के लिए आवेदन किया जा सकता है.

·         ग्रामीण महिलाओं को समर्थ और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के प्रयास के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग ने देशभर में कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से डेयरी फार्मिंग में संलग्न  महिलाओं के लिए एक देशव्यापी प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू किया है.

(साक्षात्कारकर्ता सिद्धार्थ झा, दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)

व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं