आर्थिक उन्नति के लिए जीवनदायिनी नदियां
बी एस पुरकायस्थ
भारत नदियों से संपन्न देश है. यहां बहने वाली कई नदियों में से बारह को प्रमुख नदियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनका संयुक्त जलग्रहण क्षेत्र 252.8 मिलियन हेक्टेयर है. प्रमुख नदियों में, गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना प्रणाली सबसे बड़ी है. इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 110 मिलियन हेक्टेयर है, जो देश की सभी प्रमुख नदियों के संयुक्त जलग्रहण क्षेत्र के 43 प्रतिशत क्षेत्र से अधिक है. 10 मिलियन हेक्टेयर से अधिक जलग्रहण क्षेत्र वाली अन्य प्रमुख नदियां सिंधु (32.1 मिलियन हेक्टेयर), गोदावरी (31.3 मिलियन हेक्टेयर), कृष्णा (25.9 मिलियन हेक्टेयर) और महानदी (14.2 मिलियन हेक्टेयर) हैं. मध्यम नदियों का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 25 मिलियन हेक्टेयर और सुवर्णरेखा 1.9 मिलियन हेक्टेयर है. नदियां प्रमुख राष्ट्रीय संपत्ति हैं क्योंकि वे सिंचाई, पीने योग्य पानी, सस्ते परिवहन, बिजली के साथ-साथ आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए आजीविका प्रदान करती हैं.
औद्योगीकरण, जनसंख्या में वृद्धि और आक्रामक फसल पैटर्न के साथ, नदियों का बहुत अधिक दुरुपयोग हो रहा है. चाहे वह यमुना नदी हो या मीठी नदी के अनुपचारित सीवेज या औद्योगिक प्रदूषकों को ले जाने वाले आभासी नालों में बदलने का मामला हो; या उत्तराखंड या केरल में बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं और बांधों के बारे में बढ़ती आशंका हो और या फिर चेन्नई या पटना में बेमौसम बाढ़ की स्थिति हो, इन सभी मामलों में आवश्यकता, नदियों की उसी तरह देखभाल करने की है, जिस तरह वे हमारी देखभाल करती हैं. इसे, अंतर्देशीय पोत अधिनियम या बांध सुरक्षा विधेयक जैसे हालिया कानूनों के साथ-साथ नदियों को जोड़ने के कार्यक्रम, स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, राष्ट्रीय जल मिशन, नमामि गंगे परियोजना, राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास जैसे उपायों के प्रकाश में देखने की जरूरत है.
नदियों को आपस में जोड़ना
इस महत्वाकांक्षी परियोजना में जल-अधिशेष घाटियों से पानी को इसकी कमी वालीे घाटियों में स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है. राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) के तहत, राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) ने एक विशाल दक्षिण एशियाई जल ग्रिड बनाने के लिए प्रायद्वीपीय घटक के तहत 16 नदियों और हिमालयी घटक के तहत 14 नदियों को जोड़ने के लिए 30 लिंक की पहचान की है, हालांकि नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं का कार्यान्वयन संबंधित राज्यों के बीच आम सहमति पर निर्भर करता है. राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना को लागू करने से 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिंचाई (सतही जल से 2.5 मिलियन हेक्टेयर और भूजल के बढ़ते उपयोग से 10 मिलियन हेक्टेयर) सुनिश्चित होगी. इससे सिंचित भूमि बढ़कर 140 मिलियन हेक्टेयर से 175 मिलियन हेक्टेयर तक हो जाएगी. इससे 34000 मेगावाट पन बिजली का उत्पादन हो सकेगा. इनके अलावा बाढ़ नियंत्रण, नौवहन, जल आपूर्ति, मत्स्य पालन, लवणता और प्रदूषण नियंत्रण के लाभ भी हासिल होंगे.
हिमालयी घटक भारत में मुख्य गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों और उनकी प्रमुख सहायक नदियों पर भंडारण जलाशयों के निर्माण की परिकल्पना करता है. लिंक कोसी, गंडक और घाघरा के अधिशेष जल को पश्चिम में स्थानांतरित करेंगे. इसके अलावा, ब्रह्मपुत्र-गंगा लिंक, गंगा के शुष्क-मौसम प्रवाह में वृद्धि करेगा. गंगा और यमुना को आपस में जोड़ने से उपलब्ध होने वाले अधिशेष जल को हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के सूखा प्रवण क्षेत्रों में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है.
हिमालयी घटक में प्रस्तावित 14 लिंक हैं:
1. कोसी-मेचि, 2. कोसी-घाघरा, 3. गंडक-गंगा, 4. घाघरा-यमुना, 5. शारदा-यमुना, 6. यमुना-राजस्थान, 7. राजस्थान-साबरमती, 8. चुनार-सोन बैराज, 9. सोन बांध-गंगा की दक्षिण सहायक नदियां, 10. ब्रह्मपुत्र-गंगा (एमएसटीजी), 11. ब्रह्मपुत्र-गंगा (जेटीएफ) (एएलटी), 12. फरक्का-सुंदरबन, 13. गंगा-दामोदर-सुवर्णरेखा, 14. सुवर्णरेखा-महानदी
प्रायद्वीपीय नदियों के विकास का केंद्रीय घटक, दक्षिणी जल ग्रिड है जिसकी परिकल्पना महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार और कावेरी नदियों को जोड़ने के लिए की गई है. प्रायद्वीपीय घटक में महानदी और गोदावरी के अधिशेष प्रवाह को कृष्णा, पेन्नार, कावेरी तथा वैगई की ओर मोड़ना; केरल तथा कर्नाटक की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ना; पश्चिमी तट, मुंबई के उत्तर तथा तापी के दक्षिण के साथ बहने वाली छोटी नदियों को आपस में जोड़ना और यमुना की दक्षिणी सहायक नदियों को आपस में जोड़ना.
प्रायद्वीपीय घटक में प्रस्तावित 16 लिंक हैं:
1. महानदी (मणिभद्र)-गोदावरी, 2. गोदावरी (इंचमपल्ली)-कृष्णा (नागार्जुनसागर), 3. गोदावरी (इंचमपल्ली लो डैम)-कृष्णा (नागार्जुनसागर टेल पॉन्ड), 4. गोदावरी (पोलावरम)-कृष्णा (विजयवाड़ा), 5. कृष्णा (आलमाटी) - पेन्नार, 6. कृष्णा (श्रीशैलम) - पेन्नार, 7. कृष्णा (नागार्जुनसागर) - पेन्नार (सोमासिला), 8. पेन्नार (सोमासिला)-कावेरी (ग्रैंड एनीकट), 9. कावेरी (कट्टालाई) - वैगई - गुंडार, 10. केन-बेतवा, 11. पार्वती-कालीसिंध-चंबल, 12. पर-तापी-नर्मदा, 13. दमनगंगा-पिंजाल, 14. बेदती-वरदा, 15. नेत्रावती-हेमावती, 16. पंबा-अचनकोविल-वैप्पार
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) के तहत, गंगा (फरक्का)-दामोदर-सुबर्नरेखा, सुवर्णरेखा-महानदी, महानदी-गोदावरी-कृष्णा-पेन्नार-कावेरी जैसे लिंक की एक शृंखला के माध्यम से गंगा को कावेरी नदी से जोड़ने का प्रस्ताव है. प्रस्ताव में गंगा-दामोदर-सुबर्नरेखा लिंक और आगे दक्षिण के माध्यम से फरक्का बैराज के पूर्ववर्ती मानस-संकोश-तीस्ता-गंगा (एमएसटीजी) लिंक अपस्ट्रीम द्वारा वितरित किए जाने वाले अधिशेष जल को मोड़ने की परिकल्पना की गई है. एनडब्ल्यूडीए ने गंगा (फरक्का)-दामोदर-सुबर्नरेखा, सुबर्नरेखा-महानदी लिंक की मसौदा व्यवहार्यता रिपोर्ट को पूरा कर लिया है और जुलाई 2020 में पक्ष राज्यों के बीच परिचालित किया है. महानदी-गोदावरी, गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पेन्नार, पेन्नार-पलार-कावेरी लिंक परियोजनाओं की व्यवहार्यता रिपोर्ट को भी पूरा कर लिया गया है और पक्ष राज्यों को परिचालित किया गया है.
केन-बेतवा इंटरलिंक परियोजना की शुरुआत
इस महीने की शुरुआत में कुल 44,605 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के साथ केन-बेतवा इंटर-लिंक परियोजना, सबसे पहले शुरू की जाने वाली परियोजना है. परियोजना के लिए 39,317 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाएगी, जिसमें 36,290 करोड़ रुपये का अनुदान और 3,027 करोड़ रुपये का ऋण शामिल है. परियोजना की समय सीमा आठ साल है. परियोजना को लागू करने के लिए केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण (केबीएलपीए) नामक एक विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) की स्थापना की जाएगी.
केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत दौधन बांध और दो नदियों को जोड़ने वाली एक नहर के निर्माण के जरिए केन से बेतवा में पानी पहुंचाया जाएगा. प्रथम चरण के तहत दौधन बांध परिसर और उससे जुड़े निचले स्तर की सुरंग, उच्च स्तरीय सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और बिजली घर जैसे काम पूरे किए जाएंगे. दूसरे चरण में, तीन घटकों - लोअर ओरर बांध, बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोठा बैराज का निर्माण किया जाएगा.
यह परियोजना 10.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की वार्षिक सिंचाई करेगी, लगभग 62 लाख की आबादी को पेयजल आपूर्ति करेगी और 103 मेगावाट पन बिजली तथा 27 मेगावाट सौर ऊर्जा भी उत्पन्न करेगी. यह परियोजना मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों के फैले पानी की कमी वाले बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए अत्यधिक लाभकारी होगी.
नदी कायाकल्प कार्यक्रम
एक नदी में प्रवाह एक गतिशील मापदंड है और कई उप-मापदंडों पर निर्भर करता है जैसे कि वर्षा, इसका वितरण, जलग्रहण क्षेत्र में अवधि तथा तीव्रता, जलग्रहण क्षेत्र की हालत, वनस्पति और पानी की निकासी/ उपयोग. देश में प्रमुख/महत्वपूर्ण नदियों के लिए पिछले 20 वर्षों से केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) द्वारा बनाए गए वार्षिक औसत प्रवाह डेटा से पानी की उपलब्धता में किसी महत्वपूर्ण गिरावट का संकेत नहीं मिलता है. हालांकि, आयोग के अनुसार, जनसंख्या में वृद्धि, शहरीकरण, लोगों की बेहतर जीवन शैली आदि के कारण देश में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता उत्तरोत्तर कम हुई है.
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी)/प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) के सहयोग से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राष्ट्रीय जल निगरानी कार्यक्रम (एनडब्ल्यूएमपी) के तहत नदियों पर 2,026 स्थानों सहित देश के 4,294 स्थानों पर सतही और भूजल दोनों की परिवेशी जल गुणवत्ता का आकलन कर रहा है. सितंबर 2018 की सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, जैव-रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) स्तरों के संदर्भ में निगरानी परिणामों के आधार पर 323 नदियों पर 351 प्रदूषित नदी खंडों की पहचान की गई है. कुल मिलाकर, 28 राज्य / 3 केंद्रशासित प्रदेश इन 351 प्रदूषित हिस्सों के कायाकल्प के लिए राज्य नदी कायाकल्प समितियों द्वारा तैयार की गई कार्य योजनाओं को लागू कर रहे हैं.
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी)
जल शक्ति मंत्रालय गंगा बेसिन में नदियों के लिए नमामि गंगे की केंद्रीय क्षेत्र योजना और अन्य नदियों के लिए राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) की केंद्र प्रायोजित योजना के माध्यम से देश में नदियों के चिन्हित हिस्सों में प्रदूषण को कम करने के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता प्रदान करके राज्यों/केंद्र प्रशासित प्रदेशों के प्रयासों को बढ़ा रहा है. राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना ने अब तक 16 राज्यों में फैले 77 शहरों में 34 नदियों के प्रदूषित हिस्सों को कवर किया है. परियोजनाओं की स्वीकृत लागत 5961.75 करोड़ रुपये है, और 2677.03 एमएलडी (प्रति दिन मिलियन लीटर) की सीवेज उपचार क्षमता बनाई गई है.
तालिका 1: नदियों की सफाई/कायाकल्प के लिए आवंटित और उपयोग की गई/जारी की गई निधियों (करोड़ रुपये में) का विवरण:
वित्तीय वर्ष
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राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना
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नमामि गंगे कार्यक्रम
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आवंटित बजट
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जारी राशि
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आवंटित बजट
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जारी राशि
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2018-19
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150.50
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150.32
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2370.00
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2626.54
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2019-20
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196.00
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136.66
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1553.44
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2673.09
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2020-21
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100.00
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99.87
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1300.00
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1339.97
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स्रोत: http://164.100.24.220/loksabhaquestions/annex/176/AU2954.pdf
नमामि गंगे कार्यक्रम
गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के संरक्षण और प्रदूषण कम करने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत, 30,458 करोड़ रुपये की लागत से कुल 353 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 178 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और चालू हो गई हैं. इनमें से कुल 157 सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को 24,249 करोड़ रुपये की स्वीकृत लागत के साथ एसटीपी क्षमता के 4952 एमएलडी के निर्माण तथा पुनर्निवेशन और लगभग 5212 किलोमीटर सीवरेज नेटवर्क बिछाने की हैं, जिनमें से 74 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं. परिणामस्वरूप एसटीपी क्षमता 1092 एमएलडी के निर्माण तथा पुनर्निवेशन और 3752 किलोमीटर सीवरेज नेटवर्क बिछाया गया है. सीपीसीबी ने गंगा नदी में सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और कृषि अपवाह बहाने वाले प्राथमिक नालों की पहचान की है. इन नालों की छमाही आधार पर निगरानी की जा रही है. कुल 151 प्राथमिकता वाले नालों में से 145 नालों के प्रवाह को, 2171 एमएलडी क्षमता के निर्माण के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 113 सीवरेज परियोजनाओं के माध्यम से उपचार के लिए उनके अवरोधन और मोड़ या सीवर नेटवर्क के माध्यम से कवर किया जाएगा. मुख्य स्टैम कस्बों में सीवेज उपचार क्षमता 1305 एमएलडी (2014) से बढ़कर 2372 एमएलडी (नवंबर 2021) हो गई है. यमुना, काली, रामगंगा, सरयू, गोमती, दामोदर, बांका, रिस्पना, खरकई, कोसी और बूढ़ी गंडक नदियों के किनारे स्थित शहरों में कुल मिलाकर 42 परियोजनाएं शुरू की गई हैं. चुनिंदा शहरों में घाटों और श्मशान घाटों के विकास का काम हाथ में लिया गया है, जिसमें से 173 घाट और 45 श्मशान घाटों का काम पूरा हो चुका है. पिछले तीन वर्षों के दौरान नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 39 परियोजनाओं को पूरा किया गया है. इसके अलावा, गंगा नदी के मुख्य स्टैम के किनारे के कस्बों में स्थापित सीवेज उपचार क्षमता के 572 एमएलडी को जोड़ा गया था.
सरकार ने 2018 में नदी के विभिन्न स्थानों पर गंगा नदी के न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह को बनाए रखने के लिए अधिसूचित किया. यह आदेश ऊपरी गंगा नदी बेसिन पर लागू होता है जो प्रारंभिक ग्लेशियरों से शुरू होता है और इसकी प्रमुख सहायक नदियों के संगम के माध्यम से अंत में देवप्रयाग में हरिद्वार तक और गंगा नदी के मुख्य स्टैम से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले तक मिलती है. बहु-क्षेत्रीय कार्यों के परिणामस्वरूप, 2014 की तुलना में 2021 (जनवरी-मई) में इन जल गुणवत्ता मानकों जैसे कि घुलित ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) के मध्य मूल्यों में क्रमश: 40, 41 और 21 स्थानों पर सुधार हुआ है.
इसी तरह, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में यमुना नदी पर इसके संरक्षण के लिए वाईएपी चरण-1 और 2 परियोजनाओं के तहत उपचार क्षमता का 1270 एमएलडी का निर्माण किया गया है. इसके अलावा, केंद्र सरकार/एनएमसीजी (स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन) ने यमुना नदी में प्रदूषण भार को कम करने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में 24 परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिससे 1310.6 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) क्षमता का निर्माण होगा और 528.18 एमएलडी एसटीपी क्षमता का पुनर्निवेश होगा. सोनीपत और पानीपत में कुल 70 एमएलडी की एसटीपी क्षमता बनाने और 75 एमएलडी एसटीपी के पुनर्निवेश के लिए दो परियोजनाएं पूरी की गई हैं.
नदियों पर बांध
बांध सुरक्षा विधेयक 2021, बांध की विफलता से संबंधित आपदाओं की रोकथाम के लिए नदियों पर निर्दिष्ट बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव के वास्ते एक वैधानिक ढांचा प्रदान करता है. विधेयक के प्रावधान के अनुसार, बांध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति (एनसीडीएस) एक समान बांध सुरक्षा नीतियों, प्रोटोकॉल और प्रक्रियाओं को विकसित करने में मदद करेगी. विधेयक में बांध सुरक्षा नीतियों और मानकों के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक नियामक निकाय के रूप में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) की स्थापना का भी प्रावधान है. राज्य स्तर पर, विधेयक में बांध सुरक्षा (एससीडीएस) पर राज्य समितियों के गठन और राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (एसडीएसओ) की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है.
केंद्रीय जल आयोग द्वारा संकलित और अनुरक्षित बड़े बांधों के राष्ट्रीय रजिस्टर (2019) के अनुसार, भारत में 227 बड़े बांध हैं जो 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं. अप्रैल 2012 से मार्च 2021 के दौरान लागू की गई, विश्व बैंक सहायता प्राप्त बांध पुनर्निवेश और सुधार परियोजना (डीआरआईपी), चरण-1 के तहत, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और उत्तराखंड में स्थित 223 बांधों के पुनर्स्थापन और मरम्मत के लिए नई तकनीकों और नवाचारों का उपयोग किया गया था. मूल वित्तीय परिव्यय 3466 करोड़ रुपये था, जिसमें अंतिम समापन लागत 2567 करोड़ रुपये थी. हाइड्रोलॉजिक सुरक्षा, हाइड्रो-मैकेनिकल उपायों, रिसाव में कमी, संरचनात्मक स्थिरता आदि में सुधार के लिए संरचनात्मक उपायों के अलावा, डैम ब्रेक विश्लेषण, आपातकालीन कार्य योजना, ओ एंड एम मैनुअल जैसे गैर-संरचनात्मक उपाय चयनित बांधों के लिए किए गए थे. इसके अलावा, बांधों की स्थिति की निगरानी के लिए एक प्रणाली धर्मा (बांध की हालत और पुनर्स्थापन निगरानी) विकसित की गई है. एक भूकंपीय जोखिम विश्लेषण सूचना प्रणाली भी विकसित की गई है.
जल शक्ति मंत्रालय ने राज्यों से प्रस्ताव आमंत्रित करके फिर से डीआरआईपी चरण 2 और चरण 3 की शुरुआत की है.
इस नई योजना में 19 राज्य और तीन केंद्रीय एजेंसियां शामिल हैं. 736 बांधों के पुनर्स्थापन प्रावधान के साथ बजट परिव्यय 10,211 करोड़ रुपये (चरण 2 : 5107 करोड़ रुपये; चरण 3 : 5104 करोड़ रुपये) है. डीआरआईपी के दूसरे चरण को विश्व बैंक और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) द्वारा सह-वित्तपोषित किया जा रहा है, जबकि तीसरे चरण के लिए फंडिंग बाद के चरण में शुरू की जाएगी. यह योजना 10 साल की अवधि की है, जिसे दो चरणों में लागू करने का प्रस्ताव है, प्रत्येक चरण छह साल की अवधि का होगा जिसमें दो साल के दौरान दोनों चरण लागू होंगे. प्रत्येक चरण में 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बाहरी सहायता दी जाती है.
अंतर्देशीय जलमार्ग के रूप में नदियां
बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय ने देश में अंतर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए 111 जलमार्ग (5 मौजूदा और 106 नए) को राष्ट्रीय जलमार्ग (एनडब्ल्यू) घोषित किया है. इनमें से भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने 25 जलमार्गों को कार्गो या यात्री आवाजाही के लिए उपयुक्त पाया है. 25 राष्ट्रीय जलमार्गों में से 13 में विकास कार्य पहले से ही चल रहा है. इस बीच, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने उत्तर पूर्व में बुनियादी ढांचा विकास के साथ महत्वपूर्ण कनेक्टिविटी स्थापित करने के लिए क्रमश: 461 करोड़ रुपये और 145 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र नदी) तथा राष्ट्रीय जलमार्ग-16 (बराक नदी) और भारत-बंगलादेश प्रोटोकॉल मार्ग का व्यापक विकास कार्य शुरू किया है.
2020-21 में राष्ट्रीय जलमार्ग पर कार्गो की आवाजाही 83.61 मिलियन टन रही, जो 2019-20 की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है. अप्रैल, 2021 से अक्टूबर, 2021 की अवधि के दौरान राष्ट्रीय जलमार्ग पर लगभग 54.03 मिलियन टन कार्गो का परिवहन किया गया था. इस साल अगस्त में संसद द्वारा पारित अंतर्देशीय पोत विधेयक 2021 से अंतर्देशीय पोतों और राज्यों में इनके निर्बाध तथा सुरक्षित नौवहन की सुविधा के प्रभावी विनियमन की आशा है. अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियमों के बजाय, नए कानून के तहत, समान रूप से लागू किए जाने वाले नियमों और कानूनों से, अंतर्देशीय जलमार्ग का उपयोग कर, निर्बाध और लागत प्रभावी व्यापार सुनिश्चित हो सकेगा.
निष्कर्ष:
भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए नदियां न केवल किसानों के लिए बल्कि समूची अर्थव्यवस्था के लिए जीवन रेखा हैं. सिंचाई और पन-बिजली उत्पादन जहां प्राकृतिक संपत्ति-नदियों से प्राप्त होने वाले स्पष्ट लाभ हैं, वहीं अगर हम इनकी शक्ति का सही उपयोग करने में सक्षम हैं, तो ये देश के लिए आर्थिक इंजन बन सकती हैं. नदियों की उदारता से न केवल वर्तमान पीढ़ी, बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी लाभान्वित हों, यह सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों और न्यायसंगत नीतियों के अनुरूप दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है.
स्रोत: लोकसभा/राज्य सभा प्रश्न; प्रेस सूचना कार्यालय; राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी; भारतीय नदी बेसिन सूचना प्रणाली.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. उनसे ideainksreply@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं.