वैश्विक अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में भारत की स्थिति
ऋषिकेश कुमार
रवांडा ने 327320 उपग्रहों के साथ एक निम्न पृथ्वी कक्षा उपग्रह तारामंडल के लिए अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) में एक प्रस्ताव दिया है. पूर्व-मध्य अफ्रीका में भू-मध्य रेखा के दक्षिण में स्थित, इस देश में उपग्रह उद्योग नहीं है और इसने अब तक केवल दो क्यूबसैट का निर्माण किया है. बंदरगाह विहीन इस छोटे से देश ने लगभग दस लाख उपग्रहों में से लगभग एक- तिहाई उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए आईटीयू की अनुमति क्यों मांगी है? पर्यवेक्षक इसे यह स्थापित करने के प्रयास के रूप में मानते हैं कि सभी निम्न पृथ्वी कक्षाओं पर अमरीका और सहयोगियों का स्वामित्व नहीं होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र निकाय- आईटीयू, उपग्रह कक्षाओं को आवंटित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. स्थिर, मोबाइल, प्रसारण, शौकिया, अंतरिक्ष अनुसंधान, और आपातकालीन दूरसंचार, मौसम विज्ञान, वैश्विक स्थिति प्रणाली, पर्यावरण निगरानी और अन्य संचार सेवाओं जैसी बड़ी और बढ़ती सेवाओं के लिए इन उपग्रह कक्षाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है.
इस बीच, नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के 13वें प्रशासक के रूप में कार्य करने वाले एक अमरीकी राजनेता- जेम्स फ्रेडरिक ब्राइडेंस्टाइन ने 21 अक्टूबर को सीनेट स्पेस एंड साइंस उपसमिति की सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि जिन देशों के पास आर्टेमिस में भाग लेने के लिए अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं है, नासा ने उन देशों को आमंत्रित किया है, चाहे वे किसी भी छोटे तरीके से भाग ले सकें. आर्टेमिस प्रोग्राम एक अमरीकी नेतृत्व वाला अंतरराष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है, जिसके तहत नासा की योजना 2024 तक चंद्रमा, विशेष रूप से चंद्र दक्षिणी ध्रुव पर मानव को फिर से वहां लौटाने की है. ब्राइडेंस्टाइन ने सीनेट के समक्ष कहा- 'अंतरिक्ष इस देश के लिए कूटनीति का एक जरिया है, यह कुछ ऐसा है जो हर देश चाहता है और हम इसे प्रदान करने में मदद कर सकते हैं. ब्राइडेंस्टाइन के अलावा, नासा के एयरोस्पेस सेफ्टी एंड एडवाइजरी पैनल के प्रमुख पेट्रीसिया सैंडर्स और सिविल स्पेस एंड एक्सटर्नल अफेयर्स रेडवायर स्पेस के कार्यकारी उपाध्यक्ष माइक गोल्ड जैसे अन्य वक्ताओं ने निम्न पृथ्वी कक्षा में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) जैसी परियोजनाओं के लिए सरकार की ओर से प्रति वर्ष लगभग 2 बिलियन डॉलर की आवश्यकता को रेखांकित किया. आईएसएस 20 से अधिक वर्षों से परिक्रमा कर रहा है और यह 2030 तक चालू रह सकता है बशर्ते कांग्रेस, इसके लिए 2024 तक के लिए मंजूर की गई धनराशि को इसके बाद भी देने के नासा के अनुरोध से सहमत हो जाए. एक्सिओम स्पेस के कार्यकारी उपाध्यक्ष, मैरी लिन डिटमार ने, अमरीकी प्रतिस्थापन से पहले, आईएसएस के सेवानिवृत्त हो जाने के नतीजे संबंधी सवाल के जवाब में आगाह किया कि चीन का एक अंतरिक्ष स्टेशन पहले से ही है और यदि ऐसा होता है तो अमरीकी कंपनियां के ग्राहक चीन के पास चले जाएंगे.
चीनी अंतरिक्ष स्टेशन कक्षा में है. वह महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को आकर्षित कर रहा है. अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण 2022 के अंत तक पूरा हो जाएगा. जिम ब्राइडेंस्टाइन ने 21 अक्टूबर को कहा कि मानव माइक्रोग्रैविटी विशाल आर्थिक, तकनीकी और औषधीय मूल्य को समझने की केवल शुरुआत में है, और अमरीका को इन क्षमताओं को उसके सबसे बड़े प्रतियोगी के पास जाने का खतरा है. इस वर्ष चीन द्वारा किए गए प्रक्षेपणों की संख्या के मद्देनजर अमरीकी चिंताएं वैध प्रतीत होती हैं. चीन ने 2018 और 2020 में निर्धारित 39 प्रक्षेपणों के ऐतिहासिक रिकॉर्ड के साथ 2021 में हाल में अपना 39वां अंतरिक्ष प्रक्षेपण पूरा किया. चीनी अंतरिक्ष स्टेशन के, सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण में हजारों प्रयोग करने की संभावना है और वह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने में असमर्थ देशों से अनुरोध स्वीकार कर सकता है.
जब विश्व शक्तियां अपनी अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को बढ़ा रही हैं, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अंतरिक्ष प्रक्षेपण में कमी आई है. इसरो ने 2020 और 2021 मे केवल दो-दो प्रक्षेपण किए, जबकि 2019 में उसने 6 प्रक्षेपण किए थे. अमरीका ने 2018 में 31 प्रक्षेपण किए जबकि रूस ने 2015 में 29 प्रक्षेपण किए. भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के आंकड़ों से पता चलता है कि चीन ने दुनिया के सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है. वह पिछले कुछ वर्षों में नई तकनीकों और कूटनीति विकसित करने के लिए अपने कार्यक्रम को आक्रामक रूप से आगे बढ़ा रहा है.
भारत कहां खड़ा है?
चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम 1956 में एक उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के अध्ययन के साथ शुरू हुआ, जबकि भारत के कार्यक्रम की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी. दोनों देशों ने अपने कार्यक्रम को नागरिक उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष का उपयोग करने की महत्वाकांक्षा के साथ शुरू किया था. दोनों देशों की नीतियों का उद्देश्य बड़ी संख्या में गरीब आबादी की मदद करना था. हालांकि, 1990 के दशक के अंत और 21वीं सदी के शुरुआती वर्षों में दोनों देशों के बीच की खाई चौड़ी हो गई. चीन ने अंतरिक्ष पर अपने खर्च में वृद्धि की और इस क्षेत्र में अमरीका के साथ प्रतिस्पर्धा का लक्ष्य रखा. इस साल जनवरी में संसद में पेश किए गए भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि अमरीका ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की तुलना में दस गुना अधिक खर्च किया, जबकि चीन का खर्च छह गुना अधिक था. भारत का वार्षिक अंतरिक्ष व्यय केवल 1.8 अरब डॉलर है, जबकि चीन अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर सालाना 11 अरब डॉलर से अधिक खर्च करता है. अमरीका ने अमेजॅन और एलोन मस्क की स्पेसएक्स जैसी निजी फर्मों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश के अलावा अंतरिक्ष क्षेत्र पर 19.5 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं.
अंतरिक्ष की दौड़ में चीन के साथ बने रहने के लिए, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमरीका के गठबंधन-क्वाड के नेताओं ने 24 सितंबर 2021 को सहमति व्यक्त की कि वे मानदंडों, दिशा-निर्देशों, नियमों और सिद्धांतों के विकास पर काम करेंगे जो बाह्य अंतरिक्ष का सतत् उपयोग सुनिश्चित करेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमरीकी राष्ट्रपति
जो बाइडन ने भी 2021 के अंत तक अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता समझौता ज्ञापन -आर्टेमिस को अंतिम रूप देने पर, 24 सितंबर को सहमति व्यक्त की थी. यह समझौता बाहरी अंतरिक्ष की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए डेटा और सेवाओं को साझा करने की सुविधा के बारे में है. हालांकि, भारत ने अभी तक कोई घोषणा नहीं की है कि वह अमरीका के आर्टेमिस समझौते में शामिल होगा या नहीं. अब तक आर्टेमिस समझौते में जापान, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात और ब्रिटेन सहित 12 देश शामिल हैं. यह समझौता अंतरराष्ट्रीय भागीदारों और वाणिज्यिक कंपनियों दोनों की भागीदारी के साथ चंद्र और उससे आगे अन्वेषण के बारे में है.
टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी विभाग के प्रोफेसर मयंक वहिया का मत है कि -
अंतरिक्ष अन्वेषण की उच्च लागत को देखते हुए, विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच सहयोग होना चाहिए. नासा और रूस के ग्लावकोस्मोस के साथ भारत के अच्छे संबंध रहे हैं और उसने जरूरत पड़ने पर इन दोनों एजेंसियों की मदद ली है. भारत को इस नीति को जारी रखना चाहिए और अंतरिक्ष सहयोग में योगदान करना चाहिए. उसे मानवता के सामान्य हित के लिए अंतरिक्ष के विकास और अन्वेषण के लिए अंतरिक्ष का उपयोग करने के लिए इन दोनों एजेंसियों के साथ सहयोग जारी रखना चाहिए. एक के साथ सहयोग को दूसरे के प्रति शत्रुता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. भारत को अपने हितों और आवश्यकताओं के बारे में चिंता करनी चाहिए.
एक अन्य अंतरिक्ष विशेषज्ञ अजय लेले के अनुसार-'मुद्दा ग्रहों के संसाधनों के प्रबंधन का है. चंद्रमा, मंगल, आदि मानव जाति के लिए एक साझा विरासत हैं. हमें इस तरह की किसी भी परियोजना में शामिल होने से पहले इस मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता है. चाहे आर्टेमिस समझौता हो या चीन के नेतृत्व वाला समूह, भारत को मानव जाति के लिए एक साझा विरासत पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक पारदर्शी और कानूनी रूप से बाध्यकारी तंत्र स्थापित करने पर जोर देना चाहिए.
भारत द्वारा किए गए सुधार
वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था लगभग 360 बिलियन डॉलर की है. इसरो के दस्तावेज से पता चलता है कि अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत का केवल लगभग 2 प्रतिशत हिस्सा है जबकि कुल बाजार में अमरीका की 40 प्रतिशत और ब्रिटेन की 7 प्रतिशत हिस्सेदारी है. प्रगतिशील सुधारों की पृष्ठभूमि में निजी कंपनियों की मजबूत भागीदारी के साथ इसरो का लक्ष्य 2030 तक अपनी बाजार हिस्सेदारी को बढ़ाकर 9 प्रतिशत तक करना है.
'स्पेसएक्स, ब्लू ओरिजिन, वर्जिन गैलेक्टिक और एरियनस्पेस जैसी कंपनियों ने नवाचार और उन्नत तकनीक के साथ लागत और टर्नअराउंड समय को कम करके अंतरिक्ष क्षेत्र में क्रांति ला दी है. इसरो द्वारा अक्टूबर में प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार भारत में, अंतरिक्ष क्षेत्र की निजी कंपनियां, सरकार के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए विक्रेता या आपूर्तिकर्ता होने तक सीमित हैं.
अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों को और आकर्षित करने के उद्देश्य से, भारत सरकार ने एकल-खिड़की, स्वतंत्र नोडल एजेंसी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) का गठन किया है. सरकार ने इसे अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्यमि़यों की भूमिका को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सहायता और एकसमान अवसर प्रदान करने का उत्तरदायित्व दिया है. यह निजी क्षेत्र को भारतीय उपग्रह प्रणाली और प्रक्षेपण रॉकेटों तथा वाहनों के विकास के लिए इसरो सुविधाओं के उपयोग को भी अधिकृत करेगा.
11 अक्टूबर को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष और उपग्रह कंपनियों के अग्रणी उद्योग संघ -भारतीय अंतरिक्ष संघ (इस्पा) का शुभारंभ किया. यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और निवेश लाने के लिए वैश्विक संबंध बनाएगा,ताकि उच्च कौशल वाली अधिक नौकरियां पैदा की जा सकें. संगठन का प्रतिनिधित्व भारती एयरटेल, लार्सन एंड टुब्रो, नेल्को (टाटा समूह), वनवेब, मैपमायइंडिया, वालचंदनगर इंडस्ट्रीज और अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज करते हैं.
इन निजी फर्मों को स्थाई विनियमन और नीतिगत तंत्र से सहायता की आशा है और अंतरिक्ष विभाग द्वारा रिमोट-सेंसिंग, उपग्रह संचार और प्रक्षेपण नीतियों जैसे क्षेत्रों में नया व्यापार-अनुकूल नीतिगत ढांचा बनाने का कार्य शुरू किया जा चुका है.
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी- न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) को वाणिज्यिक आधार पर अंतरिक्ष संपत्तियों/सेवाओं की मांग और आपूर्ति दोनों के लिए विशेष सार्वजनिक क्षेत्र के एग्रीगेटर के रूप में कार्य करने के लिए अधिकृत किया गया है, जिसमें इमेजिंग और संचार ट्रांसपोंडर लॉन्च सेवाएं आदि शामिल हैं. डिमांड एग्रीगेटर के रूप में अपनी भूमिका में एनएसआईएल इसरो या निजी उद्योग द्वारा विकसित उपग्रहों, प्रक्षेपण वाहनों और अन्य संपत्तियों का अधिग्रहण करेगा. यह आपूर्ति एग्रीगेटर के रूप में अपनी भूमिका में, इसरो द्वारा विकसित उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों पर ट्रांसपोंडर क्षमता, इमेजिंग सेवाओं, प्रक्षेपण क्षमता इत्यादि जैसी संपत्तियों और सेवाओं का व्यावसायीकरण करेगा.
इसरो ऐसे विज्ञान और अन्वेषण मिशनों की भी पहचान कर रहा है जहां केवल निजी क्षेत्र ही भाग ले सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश का फैसला लेने में निजी क्षेत्र में सुरक्षा की भावना प्रदान करेगा. यदि निजी क्षेत्र चयनित क्षेत्रों में निवेश करता है तो सरकार भी कुछ वित्तीय सहायता प्रदान करेगी.
सरकार ने पहले ही तय कर लिया है कि ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी) और छोटे उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (एसएसएलवी) जैसे प्लेटफॉर्म से जुड़ी तकनीकों को जल्द ही निजी क्षेत्र को हस्तांतरित कर दिया जाएगा.
सरकार ने प्रयोगशालाओं को सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत लाकर अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को स्पष्ट रूप से विभाजित किया है. ये प्रयोगशालाएं, अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करेंगी. साथ ही, सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में व्यावसायिक संस्थानों द्वारा विनिर्माण और वाणिज्यिक गतिविधियां की जाएंगी. यह भारतीय सशस्त्र बलों को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करेगा क्योंकि सीमाओं पर बढ़ती गतिविधियों की पृष्ठभूमि में विशिष्ट अंतरिक्ष सैन्य संपत्ति की मांग दिन पर दिन बढ़ रही है.
सुधारों के बाद, भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के कई स्टार्टअप ने अपनी नियोजित परियोजनाओं के लिए उद्यम पूंजी जुटाई है. वर्तमान में अंतरिक्ष क्षेत्र के 40 से अधिक स्टार्टअप और छोटी कंपनियां भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में शामिल हैं.
2022 के लिए गगनयान, 2025 के लिए शुक्रयान (वीनस मिशन) और संभवत: एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों के साथ, निजी क्षेत्र निकट भविष्य में इसरो के उत्तरदायित्वों को विभाजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
अंतरिक्ष कूटनीति
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 24 सितंबर को, भूटान के लिए एक छोटा उपग्रह विकसित करने के लिए एक कार्यान्वयन व्यवस्था पर हस्ताक्षर किए. इसरो ने अन्य दक्षिण एशियाई देशों को अंतरिक्ष संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए मई 2017 में जीसैट-9, कक्षा में स्थापित किया. अपने सुदूर संवेदन उपग्रहों के माध्यम से एशियाई पड़ोसियों की सहायता करने के अलावा, भारत का एक कार्यक्रम -उन्नति यानी यूनिस्पेस नैनोसेटेलाइट असेंबली एंड ट्रेनिंग है. यह अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों को नैनो-सैटेलाइट निर्माण पर दो महीने का प्रशिक्षण प्रदान करता है. इस कार्यक्रम के तहत अब तक इसरो 33 देशों के 59 अधिकारियों को दो समूहों में प्रशिक्षित कर चुका है.
इसरो के पास जून 2021 तक 59 देशों और पांच बहुपक्षीय निकायों के साथ देश और अंतरिक्ष एजेंसी स्तर पर अंतरिक्ष सहयोग दस्तावेज हैं. हालांकि, बदली हुई परिस्थितियों में जब निम्न पृथ्वी कक्षा में भीड़-भाड़ और पुराने उपग्रहों के मलबे के बारे में गंभीर चिंताएं उठाई जा रही हैं, विशेषज्ञों ने भारत को अंतरिक्ष नियमों को तैयार करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की सलाह दी है.
भारत को यह सुनिश्चित करने के प्रयासों में शामिल होना चाहिए कि अंतरिक्ष का उपयोग समग्र रूप से मानव जाति की बेहतरी के लिए किया जाए और यह सुनिश्चित करना जारी रखा जाना चाहिए कि ग्रहों की खोज संभव होने पर कम उन्नत राष्ट्रों के हितों से समझौता नहीं किया जाए. भारत को यह सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ रहना चाहिए कि धनी और शक्तिशाली देश संसाधनों को आपस में साझा न करें. अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग पूरी मानवता की भलाई के लिए किया जाना चाहिए. भारत को नैतिकता के लिए ऐसा करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी कानून इस उद्देश्य के अनुरूप हों.
(लेखक दिल्ली में पत्रकार हैं, जो रक्षा, सामरिक और आर्थिक मामलों को कवर करते हैं. इनसे ईमेल rishikeshjourno@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.
चित्र साभार: इसरो