रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Issue no 32, 06-12 November 2021

लोक लेखा समिति भूमिका और कार्य

डॉरूप नारायण दास

भारत में 1921 में स्थापित लोक लेखा समिति (पीएसीइस वर्ष अपना शताब्दी वर्ष मना रही हैयह देश की सबसे पुरानी संसदीय समिति हैइस दौरान विभिन्न विभागों से संबंधित स्थायी समितियों सहित कई अन्य संसदीय समितियों के गठन के बावजूद इसका अस्तित्व बना हुआ हैयह  देश की  संसदीय प्रणाली में इसकी निरंतर प्रासंगिकता को दर्शाता है.

लोक लेखा समिति का औचित्य संविधान के अनुच्छेद 265 में स्पष्ट है जो यह बताता है कि कानूनी रूप से  अधिकृत के अलावाकोई कर नहीं लगाया या एकत्र किया जा सकताइसके अलावासंविधान के अनुच्छेद 266(3) के अंतर्गत  भारत की संचित निधि या किसी राज्य की संचित निधि से राशिकेवल कानून के अनुसार और संविधान में प्रदत्त उद्देश्यों और तरीके से ही प्राप्त की जा सकती हैसीधे शब्दों में कहें तोसंसद या राज्य विधायिका की पूर्व स्वीकृति के बिना सरकार संचित

निधि से न तो धन निकाल सकती है और न ही खर्च कर सकती है.

भूमिका और प्रासंगिकता

संसदसरकार के विभिन्न विभागों के खर्च को पूरा करने के लिए हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये का अनुदान देती है और विभिन्न मदों के तहत इस उद्देश्य के लिए विशिष्ट विनियोग करती हैवित्तीय स्वीकृतिमंत्रालयों द्वारा सार्वजनिक निधियों के वितरण और व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है और यह सुनिश्चित करना संसद का विशेषाधिकार है कि स्वीकृत धन को विवेकपूर्ण ढंग सेउचित तरीकों का पालन करते हुए खर्च किया जाएहालांकिइसके आकार और राज्य की गतिविधियों की जटिलता के साथ-साथ इसके निपटान में समय की कमी को देखते हुएसंसद के लिए यह जांचना संभव नहीं है कि स्वीकृत राशि का उचित रूप से उपयोग किया गया है या नहींइसलिएइसने सार्वजनिक व्यय की जांच और नियंत्रण का कार्यसंसद की तीन वित्तीय समितियोंलोक लेखा समितिप्र्राक्कलन समिति और सार्वजनिक उपक्रम समिति को सौंपा हैलोक लेखा समिति सरकार के व्यय के लिए केंद्र संसद द्वारा प्रदान की गई धनराशि के विनियोग को दर्शाने वाले लेखाभारत सरकार के वार्षिक वित्तीय लेखा और संबंधित लेखा परीक्षा रिपोर्टों के साथ जैसा कि समिति उचित समझे उसके अनुरूप संसद के समक्ष रखे गए ऐसे अन्य लेखा की जांच करती है.

संयोजन

लोक लेखा समिति में अधिकतम 22 सदस्य होते हैं जिनमें 15 सदस्य लोकसभा द्वारा हर साल अपने सदस्यों में से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार एकल अंतरणीय मत द्वारा चुने जाते हैंइसमें राज्य सभा  से अधिकतम 7 सदस्य मनोनीत किए जाते हैंसमिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा इसके सदस्यों में से की जाती है.

अध्यक्ष परंपरागत रूप से विपक्ष से होता है

पीएसी को यह सुनिश्चित करना होता है कि सार्वजनिक खर्च में सावधानी बरती जाएउल्लेखनीय है कि 1967 से विपक्षी दल के एक महत्वपूर्ण सदस्य को पीएसी का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता हैएमआर मसानीअटल बिहारी वाजपेयीज्योतिर्मय बसुप्रोफेसर हिरेन मुखर्जीनरसिम्हा रावटी.पईआरवेंकट रमनजसवंत सिंहडॉमुरली मनोहर जोशी जैसे कुछ ऐसे ही सदस्य हैं जिन्होंने यह पद संभाला और बड़ी जिम्मेदारी से इसका निर्वहन किया हैभारत सरकार के विनियोग लेखा और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों की संवीक्षा मेंपीएसी को संतुष्ट करना होगा कि:

 

  1. खातों में दिखाया गया वितरित धनकानूनी रूप से उपलब्ध था और उस सेवा या उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया गया था जिसके लिए उसे प्राप्त  किया गया था.
  2. व्ययउस प्राधिकरण के अनुरूप है जो इसे नियंत्रित करता है.
  3. प्रत्येक पुनर्विनियोजन सक्षम प्राधिकारी द्वारा बनाए गए नियमों के तहत इस संबंध में किए गए प्रावधानों के अनुसार किया गया है.

 

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका

र्वजनिक व्यय की जांच करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्या इस तरह का व्यय उचित रूप से  किया गया हैलोक लेखा समिति को नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा निर्देशित किया जाता हैजिसे समिति के मित्रदार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में माना जाता है.  संविधान के अनुच्छेद 151 में भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को संघ और राज्य सरकारों के लेखा पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति या राज्यपाल को (जैसा भी मामला होप्रस्तुत करनी होती है.  यह रिपोर्ट संसद या राज्य विधानमंडल के समक्ष पेश की जाती हैसंसद या राज्य विधायिका में प्रस्तुत किए जाने के बाद लेखापरीक्षा रिपोर्टवित्त लेखा और विनियोग लेखा को लोक लेखा समिति को सौंपा जाता है जो सीएजी की रिपोर्ट का संज्ञान लेती हैहालांकिपीएसी के पास राष्ट्र के वित्त की समालोचना करने का अंतर्निहित अधिकार हैइसलिए इसका अधिदेश व्यापक हैफिर भी  इसे सहयोगी संसदीय समितियों के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए.

 

समिति नेअतीत मेंकुछ अवसरों परविभिन्न अनियमितताओं की जांच शुरू कीजिन्हें सार्वजनिक किया गया थाभले ही इस विषय पर कोई औपचारिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत नहीं की गई थीदरअसल पीएसी को अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं संज्ञान लेते हुए इस तरह की जांच शुरू कर सकती हैयद्यपि समिति का सरकार की नीति के प्रश्नों से कोई संबंध नहीं हैफिर भी  समिति को साक्ष्य के दौरान पता चलता है कि कोई विशेष नीति वांछित परिणाम नहीं दे रही है या उससे नुकसान हो रहा हैतो वह सदन को यह कहने के लिए स्वतंत्र है कि इस नीति में परिवर्तन की आवश्यकता है.

समिति ने 1962-63 से भारत सरकार की राजस्व प्राप्तियों की जांच भी शुरू कर दी हैयदि सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस प्रयोजन के लिए संसद द्वारा दी गई राशि से अधिक धन खर्च किया गया हैतो समिति प्रत्येक मामले के तथ्यों के संदर्भ में परिस्थितियों की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैसदन में हाल के वर्षों मेंसरकार की गतिविधियों में विशेष रूप से लोक कल्याणकारी उपायों के संबंध में कई गुना वृद्धि हुई हैजिसके परिणामस्वरूप भारी निवेश हुआ हैतकनीकी प्रगति के कारण भी अर्थव्यवस्था और अधिक जटिल हो गई हैये सभी घटनाक्रम सरकारसंसद और लोक लेखा समिति के सामने चुनौतियां हैं.

प्रभावशीलता

वित्तीय प्रशासन को सुदृढ़ करने में समिति की सिफारिशों का दूरगामी प्रभाव पड़ा हैसमितिअपनी  सिफारिशों के अनुरूप सरकार के  कार्यान्वयन परकार्रवाई रिपोर्ट के माध्यम से गंभीरता से नजर रखती  हैइस कारण समिति को पूरा सम्मान दिया जाता है और इसकी अधिकांश सिफारिशों को सरकार द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा लागू किया जाता है.

(लेखक लोकसभा सचिवालय के सेवानिवृत्त संयुक्त सचिव हैं और वर्तमान में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के वरिष्ठ फेलो हैं-मेल: — rndas_ osd@yahoo.com )

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.

चित्र साभारगूगल