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संपादकीय लेख


Issue no 28, 09-15 October 2021

शिक्षा से आगे बढ़कर लड़कियों का सशक्तिकरण

 

डॉ. योगेश सूरी और श्रुति खन्ना

भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के 75वें वर्ष तक पहुंचने की यात्रा में, समाज में महिलाओं की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव देखे हैं. सती और दहेज प्रथा से लेकर टोक्यो ओलंपिक में, पुरुषों के मुकाबले  बेहतर प्रदर्शन कर परचम लहराने की महिलाओं की यह यात्रा वास्तव में किसी करिश्मे से कम नहीं. पराधीनता और शोषण की स्थिति से निकलकर  समानता और सशक्तिकरण के युग में प्रवेश, आधुनिक युग में महिलाओं की प्रगति का द्योतक है.

भारत ने महिलाओं में निम्न साक्षरता दर के फंदे को सफलतापूर्वक तोड़ा है. स्वतंत्रता के बाद से महिला साक्षरता में कई गुना वृद्धि हुई है. महिलाओं की साक्षरता दर  1951 में 9 प्रतिशत थी जो  2011 की जनगणना के अनुसार 65 प्रतिशत हो गई है, जबकि पुरुषों में 1951 में यह 27 प्रतिशत थी जो 2011 में बढ़कर 81 प्रतिशत हो गई. यह स्थिति महिलाओं और पुरुषों की शिक्षा में निरंतर अंतर का भी संकेत देती है. कुछ समय पहले तक, बहुत सी लड़कियां स्कूल में दाखिला ही नहीं लेती थीं या प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाती थीं, लेकिन अब स्थिति काफी बदल चुकी है. विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में कई सकारात्मक नीतिगत उपायों से लड़कों-लड़कियों में  असमानता को दूर करने में मदद मिली है. यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन  (यूडीआईएसई) के अनुसार 2019-20 में लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात बढ़कर प्राथमिक स्तर पर 98.7 प्रतिशत, उच्च प्राथमिक स्तर पर 90.5 प्रतिशत और उच्च माध्यमिक स्तर पर 52.4 प्रतिशत हो गया है. इसके अलावा, यूडीआईएसई की 2019-20 की रिपोर्ट से पता चलता है कि प्राथमिक से माध्यमिक स्तर तक लड़कियों का नामांकन 12.08 करोड़ से अधिक हो गया है, जो 2018-19 की तुलना में 14.08 लाख की अत्यधिक वृद्धि दर्शाता है. इसी तरह, नवीनतम अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार, उच्च शिक्षा स्तर पर, लड़कियों और लड़कों की संख्या के बीच अंतर को कम होते हुए देखा गया है. उच्च शिक्षा पर ताजा सर्वेक्षण के अनुसार कॉलेज के विद्यार्थियों में 49 प्रतिशत छात्राएं हैं. हालांकि ये बड़ी उपलब्धियां हैं लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की हाल की एक रिपोर्ट से पता चला है, पूरे भारत में 15-18 वर्ष की आयु की लगभग 39.4 प्रतिशत लड़कियां अब भी किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं जाती हैं. कोविड-19 महामारी के कारण यह समस्या और बढ़ गई है, जिसका महिलाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ा है और लड़कों-लड़कियों के बीच समानता और महिलाओं के अधिकारों की दिशा में दशकों की प्रगति पर इसका विपरीत असर पड़ा है.

सतत विकास लक्ष्य-2030 के एजेंडा को प्राप्त करने के लिए लड़कियों तथा महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाना और लड़कों-लड़कियों के बीच असमानता को समाप्त करना  महत्वपूर्ण है. इस एजेंडे में शामिल हैं- गरीबी समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना, स्वास्थ्य सुनिश्चित करना, लड़कों-लड़कियों के बीच समानता हासिल करना तथा सबके लिए पूर्ण तथा उत्पादक रोज़गार को बढ़ावा देना और असमानताओं को कम करना. हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए उन्हें शिक्षा प्रणाली में लाने के अलावा और इससे आगे भी बहुत कुछ करना है. ऐसा वातावरण तैयार करना है जिसमें सबको शिक्षा के सभी स्तरों को पूरा करने का एकसमान मौका मिले. हमेशा बदलती दुनिया में सफल होने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल हासिल करने के वास्ते समान अवसर पैदा करने, अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेने और अपने समुदायों और समाज में योगदान करने के लिए ऐसा करना आवश्यक है. इस आलोक में, लड़कियों की शिक्षा, कौशल और नौकरी की संभावनाओं में सुधार के लिए आज की चुनौतियां बदल गई हैं. स्कूल/कॉलेज के बाद के वर्षों में उनके लिए अवसर मुहैया कराने पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. तेजी से बदलती और वैश्वीकरण की दुनिया के साथ, लड़कियों और युवतियों को  शिक्षित करने के साथ उनका कौशल विकास भी जरूरी है जिससे उन्हें श्रम बाजार में समान अवसर मिल सकें और वे देश के विकास में समान रूप से भागीदारी कर सकें.

विश्व बैंक ने उपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए 'रोज़गार और उत्पादकता के लिए कौशल नामक पांच उपायों की कार्यसंरचना का सुझाव दिया है. इसमें लड़कियों की शिक्षा, प्रशिक्षण, कौशल और श्रम बाजार गतिविधियों कीे अनुक्रमित संयोजन प्रणाली को रेखांकित किया गया है, ताकि उन्हें उत्पादक कार्यों से जोड़ने और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक कौशल प्रदान किया जा सके. भारत सरकार पहले से ही ऐसे कई कार्यक्रम शुरू कर चुकी है जिनसे लड़कियों और युवतियों को जीवन में रणनीतिक विकल्प चुनने की अपनी क्षमताओं के विकास  में मदद मिली है.

लड़कियों और युवा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा के अलावा अन्य प्रयास- कौशल विकास और काम-धंधे की संभावनाएं बढ़ाने के उपाय:

उपाय 1: प्रारंभिक बचपन विकास (ईसीडी) के माध्यम से एक ठोस नींव का निर्माण करना. शोध से पता चलता है कि शुरुआती जीवन में रह गई कमियों को दूर करना मुश्किल होता है, लेकिन प्रारंभिक बचपन विकास के कार्यक्रमों से, ऐसे नुकसान से बचा जा सकता है. ऐसे कार्यक्रमों में उच्च उत्पादकता के लिए अनुकूल तकनीकी, संज्ञानात्मक और व्यवहारिक कौशल के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. भारत सरकार ने बाल विकास में पोषण और प्रोत्साहक तथा संज्ञानात्मक कौशल पर जोर देने वाली विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू किया है. समन्वित बाल विकास सेवा (आईसीडीसी) योजना 6 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के समग्र विकास और उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने पर केंद्रित है. पोषण अभियान के रूप में जाना जाने वाला राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) भी, बच्चे के पोषण के साथ-साथ उसकी प्रारंभिक विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक और कदम है ; एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आईसीपीसी) का उद्देश्य शहरी और अर्द्धशहरी क्षेत्रों में देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता की स्थिति में बच्चों के समग्र विकास के लिए संरक्षित वातावरण बनाना है.

उपाय 2: बुनियादी शिक्षा - यह सुनिश्चित करना कि सभी विद्यार्थी सीखने के स्पष्ट मानकों, अच्छे शिक्षकों, पर्याप्त संसाधनों और उचित वातावरण के साथ मजबूत प्रणाली के साथ शिक्षा ग्रहण करें. केंद्र सरकार ने 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना सहित कई योजनाएं/ कार्यक्रम लागू किए हैं, जिनका उद्देश्य जन्म, शिक्षा और जीवन-चक्र निरंतरता पर लड़कियों के सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों के प्रति समाज में व्यवहारिक परिवर्तन लाना है. लड़कों की तुलना में लड़कियों के जन्म अनुपात में वृद्धि होना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की सफलता को दर्शाता है. यह अनुपात 2014-15 में जहां 918 था वहीं 2019-20 में सुधरकर 934 हो गया है. इसके अलावा माध्यमिक स्कूल स्तर पर लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात बढ़ा है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की प्रगति रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान यह 77.45 प्रतिशत से बढ़कर 81.32 प्रतिशत हो गया है. अच्छी गुणवत्ता के बुनियादी ढांचे की पहुंच और उपलब्धता में सुधार करके बुनियादी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए कुछ प्रमुख उपायों में स्कूल में मध्याह्न भोजन, सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, सुकन्या समृद्धि योजना शामिल हैं. सुकन्या समृद्धि योजना का उद्देश्य माता-पिता को अपनी बालिकाओं की भविष्य की शिक्षा के लिए एक कोष निर्माण के लिए प्रोत्साहित करना है. अन्य उपायों में आठवीं कक्षा तक की लड़कियों को मुफ्त पाठ्य-पुस्तकें और दिव्यांग लड़कियों को वजीफा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए समग्र शिक्षा - स्कूली शिक्षा के लिए एकीकृत योजना (आईएसएसई), शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय द्वारा लागू की गई है. इसके अलावा, केंद्र और राज्य दोनों सरकारें शिक्षा तक लड़कियों की पहुंच को आसान बनाने के लिए उन्हें विभिन्न छात्रवृत्तियां प्रदान करती हैं. इस दिशा में केंद्र के प्रयासों के साथ-साथ, विभिन्न राज्य सरकारों ने भी कई पहल की हैं. इनमें दिल्ली और हरियाणा में 'लाडली योजना, कर्नाटक में 'भाग्यलक्ष्मी योजना, छत्तीसगढ़ में 'सरस्वती साइकिल योजना शामिल हैं.

उपाय 3: पूर्व-रोज़गार और काम के दौरान तथा संस्थानों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए सही प्रोत्साहन ढांचा विकसित कर लड़कियों और युवतियों को नियोक्ता की आवश्यकता के अनुरूप नौकरी कौशल प्रदान करने पर ध्यान देना. पोषण, जीवन कौशल, गृह कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के माध्यम से 11-18 वर्ष की आयु वर्ग की लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए 'किशोरियों के लिए योजना- (एसएजी) जैसे कार्यक्रमों को लागू करने के बावजूद, लड़कियों को नौकरी मिलने की सीमित गुंजाइश रहती है. इसका एक संभावित कारण यह है कि लड़कियों के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रम- टाइपिंग, टेलरिंग, आदि हैं जिसके कारण उन्हें केवल असंगठित क्षेत्र में कम वेतन वाली नौकरी ही मिल पाती है.

उपाय 4: ऐसा वातावरण बनाना जो ज्ञान और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करे.

उपाय 5: अधिक लचीले, कुशल और सुरक्षित श्रम बाजार की मांग के अनुरूप कौशल की आपूर्ति की ओर बढ़ने पर जोर. यद्यपि भारत बुनियादी शिक्षा में समानता प्राप्त करने में तेजी से विकास कर रहा है, फिर भी श्रम बल की भागीदारी में महिला-पुरुष असमानता मौजूद है, जिससें युवा महिलाओं की भागीदारी की दर, पुरुषों की तुलना में कम है. 'यूनाइटेड नेशंस ग्लोबल कॉम्पेक्ट (यूएनजीसी) इंडिया स्टडी के अनुसार, घरेलू श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी 2006 में 34 प्रतिशत से घटकर 2020 में 24.8 प्रतिशत हो गई है. लैंगिक रूढ़िवादिता और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण बड़े औद्योगिक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी कम है. इसके परिणामस्वरूप नेतृत्व वाले पदों पर महिलाओं की उपस्थिति कम हो जाती है. महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण उत्पादकता को बढ़ावा देता है, अर्थव्यवस्था में विविधता लाता है और अधिक काम करने पर आय में वृद्धि करता है. उदाहरण के लिए, 'यूएनजीसी इंडिया स्टडी रिपोर्ट में पाया गया कि श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी को पुरुषों के समान स्तर तक बढ़ाने से भारत के सकल घरेलू उत्पाद को 27 प्रतिशत तक बढ़ाने में मदद मिलेगी. अधिक संख्या में महिलाओं के श्रम बल में प्रवेश  के लिए, महिलाओं के काम के साथ जुड़ी रूढ़ियों को तोड़ते हुए उनमें नौकरी से संबंधित कौशल विकास करने में अधिक निवेश करना समय की आवश्यकता है. कौशल को वास्तविक रोज़गार में बदलना लड़कियों के लिए अधिक मायने रखता है क्योंकि सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं के कारण अवसरों तक उनकी सीमित पहुंच होती है.

इस प्रकार, शिक्षा में लड़कों और लड़कियों के बीच समानता में सुधार के लिए भारत की प्रगति का जश्न मनाने के साथ-साथ नौकरी से संबंधित कौशल विकसित करने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के सभी स्तरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने और समाज में महिलाओं के लिए रोज़गार की संभावनाओं में सुधार के लिए प्रभावकारी सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है.

एक बेटी के शिक्षित होने से पूरा परिवार शिक्षित होता है. आइए, हम सब यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करें कि हमारे देश की सभी लड़कियां, शिक्षा के अलावा अन्य प्रकार से भी सशक्त हों और नए भारत के निर्माण में योगदान दें.

(लेखक: नीति आयोग से संबद्ध हैं-डॉ. योगेश सूरी वरिष्ठ सलाहकार और सुश्री श्रुति खन्ना एसोसिएट हैं).

(व्यक्त विचार उनके निजी हैं)