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संपादकीय लेख


Issue no 25, 18-24 September, 2021

 

हाथियों का संरक्षण

चुनौतियां और प्रयास

 

डॉ. रितेश जोशी और कंचन पुरी

एशियाई हाथियों को, लुप्तप्राय: प्रजातियों की अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की लाल सूची  में संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. भारत में जंगली एशियाई हाथियों की सर्वाधिक संख्या है, जो हाथी परियोजना की 2017 की गणना के अनुसार 29,964 होने का अनुमान है. यह संख्या इन प्रजातियों की वैश्विक आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है. भारतीय हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु (वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1) के रूप में घोषित किया गया है और इसे प्रवासी प्रजातियों की संधि के परिशिष्ट -1 में भी सूचीबद्ध किया गया है. यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि वन्यजीव प्रजातियों की पारिस्थितिक भूमिका, पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत प्रभावित करती है. पर्यटन के दृष्टिकोण से भी वन्यजीवों की उपस्थिति काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है. हाथी जंगलों में सबसे प्रमुख और प्रतिष्ठित प्रजातियों में से एक हैं, जो वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाथी जंगलों में विभिन्न प्रकार की  गतिविधियां करते हैं, जिनसे अन्य जानवरों को उनके पारिस्थितिकी तंत्र के साथ अंत:क्रिया में आसानी होती है. बड़े भू-भागों और विस्तृत आवासों पर हाथियों की आवाजाही भी क्षेत्रीय जानवरों को अन्य विद्यमान समुदायों के साथ अंत:क्रिया में मदद करती है. विश्व हाथी दिवस (12 अगस्त) दुनिया के हाथियों के संरक्षण के महत्व को रेखांकित करता है, और हाथियों के संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करता है. यह आम जनता के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों को हाथियों की रक्षा करने, अवैध शिकार को रोकने, हाथियों के आवासों के संरक्षण आदि में मदद करने की याद दिलाता है.

 

वन पारिस्थितिकी तंत्र में हाथियों की भूमिका

हाथी बुद्धिमान और अत्यधिक सामाजिक प्राणी होते हैं और बदलते परिवेश के अनुसार प्रतिक्रिया करने की उनकी क्षमता उन्हें कम असुरक्षित बनाती है. वे असंख्य प्रकार के भूदृश्यों में अपने बड़े प्रवासों के लिए जाने जाते हैं. एक वयस्क हाथी को प्रतिदिन 100 किलोग्राम से अधिक भोजन की आवश्यकता होती है, जिसमें घास से लेकर छाल, फल, कंद आदि शामिल हैं. बड़े प्रवासी गलियारों की उपलब्धता से हाथियों को बड़े भू-भागों में जाने में मदद मिलती है और वे आसानी से प्रजनन करते हैं, जिससे उनका दीर्घकालिक अस्तित्व सुनिश्चित होता है. प्राकृतिक आवासों को खेतों, औद्योगिक क्षेत्रों और मानव बस्तियों में परिवर्तित करने के कारण इस विशाल जानवर की आबादी विखंडित बनी हुई है. हाथी वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के पुनर्स्थापन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. अन्य जानवरों को आवास, पानी और पोषक तत्व उपलब्ध कराकर वनों में वनस्पति पुनर्जनन को बदलने में इनका व्यापक प्रभाव पड़ता है.

 

बीज फैलाने वालों के रूप में हाथी

हाथी उन महत्वपूर्ण प्रजातियों में से हैं जो पेड़ों के बीजों को बिखेरते हैं. चूंकि एक परिपक्व हाथी प्रति दिन लगभग 100 किलोग्राम भोजन खाता है, उसके बड़ी मात्रा में चारा खाने से बड़ी संख्या में बीज फैलते हैं. हाथी फल खाने की अपनी आदत से बीजों के फैलाव और बाद में अंकुरण में सहायता करते हैं. हाथी की आंत से गुजरने से बीजों की प्रसुप्तावस्था को तोड़ने में मदद मिलती है और उनके अंकुरण में तेजी आती है.

 

पर्यावास प्रदाता की भूमिका में हाथी

स्थलीय स्तनधारी नियमित रूप से जंगलों में पगडंडियों का उपयोग करते हैं, जो आमतौर पर हाथियों द्वारा तैयार की जाती हैं. दिलचस्प बात यह है कि अन्य जंगली जानवर भी अपनी नियमित गतिविधियों के दौरान इन पगडंडियों का उपयोग करते हैं. चूंकि हाथी के गोबर में बीज और पोषक तत्व होते हैं, खुले और बंजर जंगलों में हाथियों की आवाजाही से वहां वनस्पतियों के पुनर्जनन में मदद मिलती है. हाथियों की इस तरह की प्रकृति जंगल की पगडंडियों को बनाए रखने में मददगार होती है.

 

जल प्रदाता के रूप में हाथी

हाथी भूमिगत जल स्रोतों का पता लगा सकते हैं. वे विशेष रूप से गर्मियों के दौरान ताजा पानी पीने के लिए अपने अग्रभाग और सूंड का उपयोग करके संभावित शुष्क नदी-तलों को खोदते हैं. हाथी स्वभाव से गंदा पानी पीना पसंद नहीं करते. इन छोटे जल बिंदुओं का उपयोग बाद में चित्तीदार हिरण, सांभर हिरण, छोटे भारतीय नेवले, एशियाई सियार, छोटे भारतीय सिवेट, जंगली सूअर जैसे छोटे जानवर करते हैं. इसके अलावा मोर, तोता, कबूतर और जंगली मुर्गी सहित कुछ पक्षी भी ऐसे पानी का उपयोग पीने और स्नान करने के लिए करते हैं. हाथियों के इस तरह के व्यवहार से खासकर कठिन परिस्थितियों में अन्य जानवरों के साथ संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है. हाथी के ये सभी कार्य जानवरों के वितरण को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिसका वन्यजीवों की जनसंख्या की गतिशीलता पर असर पड़ता है.

 

पारिस्थितिकीय पर्यटन संवर्द्धक के रूप में हाथी

भारत में, वन्यजीव पर्यटन मुख्य रूप से बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी,एक सींग वाले एशियाई गैंडे, एशियाई शेर, नीलगिरितहर, मारटेन और लाल पांडा जैसी दुर्लभ प्रजातियों की उपस्थिति के कारण बढ़ रहा है. पक्षियों की प्रजातियों की अधिक उपस्थिति और सर्दियों में प्रवासी पक्षियों का आगमन पर्यटकों को आकर्षित करता है. वन्यजीव अभियान के दौरान अनोखे परिदृश्य और जंगली जानवरों को बार-बार देखना पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण है. भारतीय जंगलों में हाथी एक शानदार प्रजाति है जो पर्यटकों की संख्या बढ़ाने में जीवंत भूमिका निभाती है.

 

संकेतक प्रजाति के रूप में हाथी

सदियों से, यह माना जाता रहा है कि जानवरों की छठी इंद्रिय होती है, क्योंकि उनमें कुछ इंद्रियां, इंसानों की तुलना में अधिक विकसित होती हैं. ऐसा कहा जाता है कि जानवर पर्यावरण में बदलाव को महसूस कर सकते हैं और प्राकृतिक आपदाओं को होने से पहले ही भांपने और भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं. मनुष्य 20 हर्ट्ज से 20,000 किलोहर्ट्ज तक की आवाजों को सुनने में सक्षम है और इस सीमा से परे किसी भी ध्वनि का पता नहीं लगा सकता है, लेकिन कुछ जानवर इस सीमा को पार कर जाते हैं और इन ध्वनियों को समझ सकते हैं. विभिन्न वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार जानवरों में सुनने की तीव्र क्षमता होती है जो उन्हें पृथ्वी के कंपन को मनुष्यों से पहले महसूस करने में सक्षम बनाती है.

 

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय कीे एक प्रसिद्ध वन्यजीव विशेषज्ञ ऑकोनेल-रॉडवेल ने हाथी संचार पर एक विस्तृत जानकारी दी है, जिससे पता चलता है कि हाथी, मनुष्यों के लिए मुश्किल से श्रव्य, धीमी ध्वनियों का उपयोग करके लंबी दूरी से संवाद करते हैं. लगभग दो दशक पहले, उनके अध्ययनों ने यह प्रस्तावित करके नई दिशा का संकेत दिया कि कम आवृत्ति कॉल भी जमीन-भूकंपीय संकेतों में शक्तिशाली कंपन उत्पन्न करते हैं जिन्हें हाथी अपनी संवेदनशील सूंड और पैरों के माध्यम से महसूस कर सकते हैं और यहां तक कि इसका संकेत भी दे सकते हैं. पहले यह ज्ञात था कि मकड़ी, बिच्छू, कीड़े और कुछ कशेरुकी प्रजातियां, जैसे कि सफेद होंठ वाले मेंढक, कंगारू चूहे और सुनहरे छछूंदर सहित छोटे जानवरों में भूकंपीय संचार आम है. उन्होंने बताया कि सुनामी के दौरान, विनाशकारी लहर आने से पहले थाईलैंड में प्रशिक्षित हाथी उत्तेजित हो गए और ऊंचे मैदानों में भाग गए. इस प्रकार उन्होंने अपनी और अपनी पीठ पर सवार पर्यटकों की जान बचाई.

 

चुनौतियां और संरक्षण के प्रयास

एशियाई हाथियों के संरक्षण के लिए चुनौतियाँ हैं-निवास स्थान का नुकसान तथा विखंडन, मानव हाथी संघर्ष, हाथियों का अवैध शिकार और उनके अंगों का अवैध व्यापार. जंगली एशियाई हाथियों के प्रबंधन के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 1992 में हाथी परियोजना शुरू की. इस परियोजना का उद्देश्य हाथियों के प्राकृतिक आवासों और प्रवास गलियारों की रक्षा करके उनकी व्यवहार्य आबादी के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करना है.

ट्रेन-हाथी टक्करों को रोकने के लिए क्षेत्रीय रेलवे, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के समन्वय से उपाय कर रहा है जिनमें शामिल हैं:

 

  • चिह्नित हाथी गलियारों में ट्रेनों की स्थायी और अस्थायी गति प्रतिबंध लगाना.
  • चिह्नित हाथी गलियारों के बारे में लोको चालकों को चेतावनी देने के लिए संकेत बोर्ड का प्रावधान.
  • ट्रेन कर्मीदल और स्टेशन मास्टरों को इस बारे में नियमित आधार पर सुग्राही बनाना.
  • रेलवे भूमि के भीतर ट्रैक के किनारों पर वनस्पति को आवश्यकता के अनुरूप हटाना.
  • चिह्नित स्थानों पर हाथियों की आवाजाही के लिए अंडरपास और रैंप का निर्माण.
  • हाथियों को पटरियों के पास आने से रोकने के लिए हनी बी साउंड सिस्टम की स्थापना.
  • रेलवे और वन विभाग दोनों द्वारा अलग-थलग स्थानों पर बाड़ लगाने का प्रावधान.
  • रेलवे के नियंत्रण कार्यालयों में वन विभाग के कर्मचारियों को रेलवे के साथ संपर्क करने के लिए तैनात करना तथा हाथी ट्रैकर्स की नियुक्ति करना और वन विभाग द्वारा समय पर कार्रवाई के लिए स्टेशन मास्टरों तथा लोको चालकों को सतर्क करना.
  • राज्य वन विभाग और रेलवे विभाग के बीच लगातार समन्वय बैठकें.

 

 

इसके अलावा, 2020 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित भारत में मानव हाथी संघर्ष प्रबंधन के सर्वोत्तम उपाय, पुस्तिका  में मानव हाथी संघर्षों के शमन के लिए राज्य वन विभागों द्वारा अपनाई गई सभी प्रबंधन रणनीतियों को संकलित किया गया है. मंत्रालय ने हाल में मानव हाथी संघर्ष पर वास्तविक समय की जानकारी के संग्रह के लिए सुरक्षा नामक राष्ट्रीय पोर्टल की शुरुआत की है. वर्तमान में  डेटा टेस्टिंग के लिए बीटा वर्जन उपलब्ध है. यह डेटा संग्रह प्रोटोकॉल निर्धारित करने और संघर्षों को कम करने के लिए कार्य योजना तैयार करने के साथ-साथ नीति निर्माण में मदद करेगा. विभिन्न हाथी श्रेणियों के संरक्षित क्षेत्र प्रबंधक, अग्रिम पंक्ति के वन्यजीव कर्मचारियों के साथ मिलकर प्रभावी तंत्र विकसित कर सकते हैं. चूंकि हाथी समूचेे पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए हाथी प्रवास और आवास प्रबंधन के लिए बड़े खंडित वन खंडों और गलियारों की बहाली सर्वोपरि है. इसके अलावा, संरक्षण पहल और आवास निगरानी में स्थानीय समुदाय तथा हितधारकों की भागीदारी, एक प्रभावी प्रबंधन तथा संरक्षण कार्यनीति होगी.

 

चित्र : डॉ. रितेश जोशी

 (लेखक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली 110003 में कार्यरत हैं. उनसे genetics_ 1407@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता है)

 

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.