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संपादकीय लेख


Issue no 24,11-17 September 2021

भारत का वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र

अतीत, वर्तमान और भविष्य

एस. रंगाबशियम

भारत अपनी स्वतंत्रता का 75वां साल, आजादी का अमृत महोत्सव के साथ मना रहा है, आइए इसी संदर्भ में हम वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ शेखर सी मांडे के साथ साक्षात्कार के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश में हुई प्रगति पर एक नज़र डालते हैं.

हमारे देश ने आजादी के बाद से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कितनी प्रगति की है?

भारत ने  पिछले 75 वर्षों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी प्रगति की है. हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व की बड़ी शक्तियों में से एक हैं. विज्ञान और प्रौद्योगिकी को मापने वाले किसी भी मानक सूचकांक के अनुसार, चाहे वह प्रकाशित पत्रों की संख्या हो या प्रकाशित पत्रों की गुणवत्ता, हम विश्व के शीर्ष 5 देशों में शामिल हैं. प्रकाशनों के मैट्रिक्स के अलावा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को उत्प्रेरित किया है और हम कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करने में सक्षम हुए हैं. इनमें महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र भी शामिल है.

सीएसआईआर अब किन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है?

सीएसआईआर को औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास, प्रौद्योगिकियों का विकास और समाज को लाभ पहुंचाने का भी दायित्व सौंपा गया  है. इस तरह के प्रौद्योगिकी विकास, मजबूत वैज्ञानिक अनुसंधान पर आधारित हैं. इसके लिए, सीएसआईआर प्रयोगशालाओं में कुछ बेहतरीन और अत्याधुनिक शोध किए जा रहे हैं. हमारा अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास भी बड़े पैमाने पर भारतीय समाज की जरूरतों पर केंद्रित है. देश की वर्तमान और भावी आवश्यकताओं को देखते हुए हमने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की है. सीएसआईआर में अनुसंधान मोटे तौर पर 8 विषयों के अंतर्गत होते हैे: एयरोस्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन तथा सामरिक क्षेत्र; कृषि, पोषण तथा जैव प्रौद्योगिकीय; रसायन (चमड़े सहित) और पेट्रो-रसायन; सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर तथा इंजीनियरिंग; पारिस्थितिकी, पर्यावरण, पृथ्वी तथा महासागर विज्ञान और जल, ऊर्जा तथा ऊर्जा उपकरण; स्वास्थ्य देखभाल और खनन, खनिज, धातु तथा सामग्री.

हम अक्सर नवीन आविष्कारों और खोजों के बारे में सुनते हैं, लेकिन उन्हें बाजार में क्यों नहीं लाया जाता?

प्रयोगशाला में की गई खोजों और नवाचारों को प्रौद्योगिकी/उत्पाद के रूप में बाजार तक पहुंचाना काफी जटिल और लंबी प्रक्रिया  है. कई बार प्रौद्योगिकियों का वास्तविक जीवन की स्थितियों में परीक्षण किए जाने के बाद वे विफल हो सकती हैं जबकि प्रयोगशाला स्तर पर वे अच्छा प्रदर्शन करती हैं. इसलिए प्रौद्योगिकी विकास की भाषा में, प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (टीआरएल) का उपयोग, उस स्तर पर पहचानने के लिए एक पैरामीटर के रूप में किया जाता है जिस स्तर पर वे हैं. इन मानदंडों के अनुसार अकादमिक प्रयोगशालाओं से निकलने वाले अधिकतर नवाचार/प्रौद्योगिकियां टीआरएल 3-4 चरण में हैं. आगे बढ़ने के लिए, बहुधा औद्योगिक सहयोग उपयोगी होगा. इसके अलावा कोविड -19 महामारी से सबक ने प्रौद्योगिकी विकास के दौरान आपूर्ति शृंखला और रसद चुनौतियों पर भी ध्यान केंद्रित किया. कभी-कभी नवाचार समय से पहले होते हैं और कुछ विफल हो जाते हैं. साथ ही कई बार नवाचार और बाजार की जरूरत तथा गतिशीलता में अंतर होता है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक नवाचार से कोई सीख मिलती है. यह ज्ञान विकास का अहम हिस्सा है. उदाहरण के लिए सीआईएसआर द्वारा कुछ महीनों में विकसित कोविड-19 डायग्नोस्टिक किट- एफईएलयूडीए, संयोग से नहीं बन गई थी. सीएसआईआर-आईजीआईबी टीम, पॉइंट-ऑफ-केयर सीआरआईएसपीआर डायग्नोस्टिक्स के लिए सिकल सेल एनीमिया के कारक जीन में उत्परिवर्तन का पता लगाने के लिए कैस-9 प्रणाली पर काम कर रही थी. जब कोविड -19 ने दस्तक दी तो इसे उपयुक्त रूप से पुनर्निर्देशित किया गया और सफलतापूर्वक कोविड -19 का परीक्षण किया गया.

अनुप्रयुक्त अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए सीएसआईआर क्या कर रहा है?

सीएसआईआर की इंजीनियरिंग प्रयोगशालाओं को विशेष रूप से ट्रांस-डिसिप्लिनरी क्षेत्रों में अनुप्रयुक्त अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए बुनियादी विज्ञान प्रयोगशालाओं के साथ मजबूती से सहयोग करने के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है. उदाहरण के लिए वर्तमान कोविड-19 महामारी के दौरान, सीएसआईआर-केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) और सेंट्रल साइंटिफिक इन्स्ट्रूमेंट्स आर्गेनाइजेशन ने सीएसआईआर-सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएमटेक) के साथ मिलकर अब प्रसार की दृष्टि से बड़ा खतरा माने जा रहे वायुजनित सार्स-सीओवी-2 के शमन के लिए समाधान और दिशानिर्देश विकसित किए हैं. सीएसआईआर-सीबीआरआई ने कार्यालय और आवासीय भवनों के लिए विस्तृत वेंटिलेशन दिशानिर्देश भी बनाए हैं. सीएसआईआर-सीएसआईओ ने यूवी-सी कीटाणुशोधन उपकरण विकसित किए हैं जिन्हें सीएसआईआर- आईएमटेक द्वारा सार्स-कोव -2 कल्चर का उपयोग करके मान्य किया गया है और अब यह उपकरण वर्तमान में संसद के केंद्रीय कक्ष और दो समिति कक्षों में स्थापित किया गया है. ये कुछ उदाहरण हैं जो अनुप्रयुक्त अनुसंधान की दिशा में सीएसआईआर के प्रयासों को प्रदर्शित करते हैं.

सीएसआईआर के लिए फोकस क्षेत्र कौन से हैं - औद्योगिक विज्ञान, शुद्ध विज्ञान या जीवन विज्ञान?

सीएसआईआर के संस्थापक महानिदेशक और दूरदर्शी डॉ. शांति स्वरूप भटनागर की परिकल्पना में, सीएसआईआर की प्रत्येक प्रयोगशाला  में काम का दायरा शायद एक निरंतर स्पेक्ट्रम के रूप में सबसे अच्छा वर्णित किया जा सकता है, जिसके अंत में शुद्धतम अकादमिक प्रकार का शोध कार्य किया जाता है और दूसरी ओर, प्रक्रिया और उपकरण का तकनीकी विकास चरणों में होता है. इसलिए, सीएसआईआर ने हमेशा एक तरफ बुनियादी और जिज्ञासा से प्रेरित ब्लू स्काई अनुसंधान में सहयोग दिया है और दूसरी ओर अनुप्रयुक्त और औद्योगिक अनुसंधान भी किया है.

सीएसआईआर का प्रौद्योगिकी विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में उद्योगों के साथ कुशलतापूर्वक सहयोग करने और भागीदारी करने का इतिहास रहा है. हाल के वर्षों में न केवल अधिक उद्योगों के साथ भागीदारी के साथ बल्कि सामाजिक-आर्थिक मंत्रालयों सहित सरकार की अन्य शाखाओं के साथ भी इस सहयोग में वृद्धि देखी गई है.

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान सीएसआईआर का फोकस क्षेत्र है. आज, हम विज्ञान की शाखाओं या अनुसंधान के क्षेत्रों को विभाजित नहीं कर सकते. हम न केवल वैज्ञानिक विषयों बल्कि कई विज्ञान और गैर-विज्ञान विषयों को एक साथ आते देख रहे हैं. आज, कला के कई उदार विद्यार्थी विज्ञान में पाठ्यक्रम कर रहे हैं और विज्ञान के विद्यार्थी कला के पाठ्यक्रमों में रुचि ले रहे हैं. विषयों का यह अंर्तंसंयोजन विचारों के पोषण, समस्याओं को एक नए प्रकाश में हल करने और नवीन तरीकों को अपनाने का मार्ग प्रशस्त करता है. महामारी के दौरान सीएसआईआर प्रयोगशालाओं ने परस्पर सहयोग से काम किया. इंजीनियरिंग प्रयोगशालाओं ने जीवन विज्ञान प्रयोगशालाओं के साथ सहयोग किया.

क्या विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अनुसंधान पर करोड़ों रुपये खर्च करने से देश को उसी हिसाब से लाभ मिल रहा है?

यह सर्वविदित है कि अनुसंधान और विकास पर भारत का खर्च उसके सकल घरेलू उत्पाद से बहुत कम-एक प्रतिशत से भी  कम है. इसके बावजूद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से देश को जो लाभ मिले हैं, वे अभूतपूर्व हैं. वैज्ञानिक अनुसंधान के कुछ प्रभाव तत्काल नहीं मिले हैं, लेकिन यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम वैज्ञानिक अनुसंधान में निवेश करें और अपने अनुसंधान एवं विकास कार्यबल तथा बुनियादी ढांचे को मजबूत करें, क्योंकि यह देश को अच्छी स्थिति में पहुंचाएगा, जैसा कि महामारी और प्रौद्योगिकी देने से इंकार किए जाने की स्थिति के दौरान हुआ है.

सीएसआईआर की कई तकनीकों पर किए गए सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के विश्लेषण से पता चला है कि उनमें से कई से न केवल कुछ क्षेत्रों में आर्थिक विकास हुआ है बल्कि भारत की आयात पर निर्भरता कम हुई है. इसके अलावा, इनसे रोज़गार सृजन भी हुआ है. सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आईआईपी) द्वारा विकसित वैक्स डी-ऑयलिंग तकनीक और असम में नुमालीगढ़ रिफाइनरी में इसका असरदार तरीके से इस्तेमाल पैराफिन मोम के आयात प्रतिस्थापन और रोज़गार सृजन का एक उदाहरण है। इसी तरह, अरोमा मिशन की हालिया सफलता किसानों और उद्यमियों को सशक्त बना रही है जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं.

यदि हम विशेषकर  एयरोस्पेस के बारे में बात करें तो क्या आपका किफायती विमान, नेविगेशन सिस्टम आदि लाने का लक्ष्य है?

सीएसआईआर-नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज, सीएसआईआर-सेंट्रल साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट्स ऑर्गेनाइजेशन और सीएसआईआर-सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट प्रयोगशालाएं रणनीतिक एयरोस्पेस क्षेत्र में काम कर रही हैं. सीएसआईआर-एनएएल को भारत में एयरोस्पेस अनुसंधान में अग्रणी माना जाता है. भारत में प्रशिक्षण स्कूल हमारे हंसा विमान का व्यापक रूप से उपयोग कर रहे हैं. हाल ही में, एनएएल ने 90 सीटों वाले विमान डिजाइन करने की अनुमति मांगी है और 2026 तक इनकी उड़ानों से पहाड़ी तथा छोटे शहरों को जोड़ने और पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

सीएसआईआर-सीएसआईओ द्वारा विकसित हेड्स-अप डिस्प्ले और हवाई अड्डे के संचालन के लिए उपयोगी और पायलटों को रनवे पर दृश्यता की जानकारी देने वाली सीएसआईआर-एनएएल द्वारा विकसित एक स्वदेशी, अभिनव और कम लागत की दृश्यता माप प्रणाली- दृष्टि, जैसे अन्य नवाचार हैं. देश के कई हवाई अड्डे आज इस प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं.

शहरी आवास पर शायद नए सिरे से ध्यान देने की जरूरत है. क्या सीएसआईआर लागत प्रभावी निर्माण सामग्री और प्रौद्योगिकी पर विचार कर रहा है?

किफायती और जोखिम प्रतिरोधी आवास देश और सीएसआईआर की प्राथमिकता है. सीएसआईआर-केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, किफायती और जोखिम प्रतिरोधी मकान विकसित करने में सबसे आगे रहा है. मई 2019 की शुरुआत में, चक्रवात फानी ने ओडिशा के तट को तबाह कर दिया, अन्य के अलावा, सीएसआईआर के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीबीआरआई) द्वारा डिजाइन किए गए और निर्मित लाखों आवास बिना किसी नुकसान के मजबूती से खड़े रहे. हाल की महामारी के दौरान, सीएसआईआर-सीबीआरआई और सीएसआईआर-स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग रिसर्च सेंटर (एसईआरसी) ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई अस्थायी अस्पतालों का निर्माण किया. रहने के लिए मकान हर इंसान की बुनियादी जरूरत होती है. भारत सरकार ने 2022 तक सभी के लिए आवास प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है. इस लक्ष्य के अनुसरण में, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) को ग्रामीण क्षेत्रों में पक्के घरों के निर्माण में सहायता करने के लिए स्वीकृति दी गई थी. सीएसआईआर-सीबीआरआई को भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा ग्रामीण आवास डिजाइनों के वास्तुशिल्प और संरचनात्मक अभिपोषण की जिम्मेदारी सौंपी गई है. सीएसआईआर- सीबीआरआई ने यूएनडीपी के डिजाइनों की समीक्षा की है और घरों को अधिक टिकाऊ, प्राकृतिक आपदाओं के प्रति प्रतिरोधी और रहने के लिए आरामदायक बनाने के लिए वैज्ञानिक और प्रौद्यौगिकी संबंधी सुझाव दिए हैं.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी में स्त्री-पुरुष समानता के लिए सीएसआईआर क्या प्रयास कर रहा है?

जीवन के कई क्षेत्रों की तरह, विज्ञान के क्षेत्र में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात असंगत रहा है. इसके ऐतिहासिक सामाजिक-सांस्कृतिक कारण रहे हैं. हम इस अंतर को पाटने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पहली बार, हम सीएसआईआर में नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की बड़ी उपस्थिति देख रहे हैं. पहली बार सीएसआईआर में पांच महिला निदेशक हैं. स्त्री-पुरुष समानता के लिए हमारे प्रयास आगे भी जारी रहेंगे.

गौरतलब है कि सीएसआईआर महिला उम्मीदवारों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी को कॅरिअर के रूप में चुनने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से डॉक्टोरल और पोस्ट डॉक्टोरल में आगे बढ़ाने के लिए फैलोशिप / एसोसिएटशिप के वास्ते अधिकतम आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट देता है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए सीएसआईआर द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप, प्रदान की जाने वाली डॉक्टोरल और पोस्ट डॉक्टरल फैलोशिप में महिलाओं की संख्या में वृद्धि देखी गई है. 2017-18 के दौरान, सीएसआईआर द्वारा समर्थित लगभग 9000 डॉक्टोरल और पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च फेलो में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 36 प्रतिशत था जो 2018-19 में बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया और वर्ष 2019-20 तथा 2020-21 के दौरान यह लगभग 44 प्रतिशत रहा.

अन्य देशों से प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के बारे में आपका क्या प्रस्ताव है?

हम जहां तक संभव हो, प्रौद्योगिकियों का आयात करने के बजाय अपनी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने का प्रयास करते हैं. सीएसआईआर ने बार-बार दिखाया है कि जब प्रौद्योगिकी देने से इंकार किया गया था, तो हमने उसे अपने दम पर उसे विकसित किया. चाहे वह फ्लोसोल्वर सुपर कंप्यूटर का विकास हो या दूध के उत्पाद बनाना हो. हम आत्मनिर्भर भारत से बहुत अधिक जुड़े हुए हैं. हमारे तकनीकी नवाचारों और विकास का उद्देश्य आयात से बचना और निर्यात को बढ़ावा देना है.

भूकंप एक बड़ा खतरा है, क्या आप इसकी भविष्यवाणी के लिए इस पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं?

सीएसआईआर-राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान यानी एनजीआरआई इस दिशा में प्रयासों में शामिल है. संस्थान का भूकंप जोखिम अध्ययन कार्यक्रम काफी मजबूत है. सीएसआईआर-एनजीआरआई अध्ययनों के परिणामस्वरूप मध्यम आकार के जलाशय-ट्रिगर्ड भूकंपों के अल्पकालिक पूर्वानुमान की विधि के लिए एक अमरीकी पेटेंट प्राप्त हुआ है. सीएसआईआर-एनजीआरआई इस दिशा में देश में कई चुंबकीय वेधशालाएं स्थापित करने की प्रक्रिया में है.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी सबसे गरीब व्यक्ति को गरिमापूर्ण और सापेक्ष आराम का जीवन जीने में कैसे मदद कर सकता है? हमें इस सीएसआईआर-800 पहल के बारे में बताएं.

सीएसआईआर का दृष्टिकोण है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को आम आदमी को लाभ पहुंचाना चाहिए और देश को सामाजिक-आर्थिक विकास की ओर अग्रसर करना चाहिए. इसके लिए हम कई मिशन लागू कर रहे हैं जो ग्रामीण आजीविका में वृद्धि कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, सुगंधित पौधों की खेती, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और विपणन के माध्यम से ग्रामीण सशक्तिकरण और औद्योगिक विकास को उत्प्रेरित करने के लिए अरोमा मिशन शुरू किया गया था. मिशन के अत्यधिक सफल चरण-1 में, सीएसआईआर के प्रयासों के कारण, किसानों की आय में वृद्धि हुई है. इसका व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ा है. उदाहरण के लिए सुगंधित फसल उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि, जनजातियों के बीच आजीविका सृजन, सफल उद्यमी निर्माण और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है. अरोमा मिशन का चरण-2 और फूलों की खेती मिशन हाल ही में शुरू किया गया है.

सीएसआईआर-800 पहल एक और ऐसा प्रयास है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नतीजे देश के गरीबों की मदद कर सकें. इसे अब सीएसआईआर-हरित कहा जाता है और इस मिशन के तहत सीएसआईआर में विकसित प्रौद्योगिकियों को जरूरतमंद और ग्रामीण आबादी तक पहुंचाने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की गई हैं. उदाहरण के लिए, सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई द्वारा आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री शैवाल की खेती पर प्रशिक्षण प्रदान करके कम आय वाले तटीय समुदायों के लिए स्थायी और वैकल्पिक आजीविका विकल्पों को लोकप्रिय बनाने का काम शुरू किया गया है. इसी तरह कुछ अन्य गतिविधियों में, आम आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए अत्यधिक सुसंबद्ध यूएफ/एनएफ/आरओ झिल्ली आधारित प्रणालियों की स्थापना, कम ऊर्जा खपत वाले खाना पकाने के बर्तनों का विकास तथा सामाजिक लाभ के लिए इसका व्यापक प्रसार और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण शामिल हैं.

हाल ही में, सीएसआईआर ने उन्नत भारत अभियान और विज्ञान भारती के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि इन प्रौद्योगिकियों को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सके. उम्मीद है कि इस समझौते से ये उपयोगी तकनीकें बड़े पैमाने पर समाज तक पहुंचेंगी.

आप अगले 25 वर्षों में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को किस दिशा में आगे बढ़ता देखते हैं?

हम जिस तरह की नीतियों, योजनाओं और बुनियादी ढांचे को विकसित कर रहे हैं, उसके साथ अगले 25 साल का समय भारतीय विज्ञान के लिए एक रोमांचक अवधि होगी. अधिक से अधिक विद्यार्थियों को विज्ञान के क्षेत्र में  कॅरिअर बनाना चाहिए. राष्ट्र को विज्ञान के क्षेत्र के लिए प्रतिभाशाली लोगों की जरूरत है. मुझे यकीन है कि सही वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र के साथ भारत, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर सकता है. मुझे लगता है कि सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा क्योंकि हम जलवायु परिवर्तन के एक आसन्न खतरे का सामना कर रहे हैं और केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही हम इस समस्या का सामना कर सकते हैं.

कोविड -19 के  बाद से फार्मा क्षेत्र ने नई चुनौतियों का सामना किया है. क्या हम सीएसआईआर से स्थाई और किफायती समाधान की उम्मीद कर सकते हैं?

आर्थिक प्रक्रिया प्रौद्योगिकी विकसित करके भारतीय दवा उद्योग को सहयोग देने  का सीएसआईआर का एक लंबा इतिहास रहा है. हमें गर्व है कि सीएसआईआर द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों ने सिप्ला द्वारा दुनियाभर में सस्ती एचआईवी-रोधी दवाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हाल में, कोविड -19 के दौरान भी सीएसआईआर की प्रयोगशालाओं ने रेमेडिसविर, फेविपिराविर और 2-डीऑक्सी ग्लूकोज के लिए प्रक्रिया प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं और उन्हें कई उद्योगों को सस्ती दवाएं बनाने के लिए दिया है. आत्मनिर्भर भारत के संदर्भ में सीएसआईआर ने एक सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) मिशन भी शुरू किया है. इसके अलावा, भारत को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए यह एक एंटीवायरल मिशन भी शुरू कर रहा है जो दवा की खोज में नवाचार पर केंद्रित है.

(साक्षात्कारकर्ता दिल्ली में स्वतंत्र पत्रकार हैं और आकाशवाणी से जुड़े हैं)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.

(चित्र: गूगल के सौजन्य से)