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संपादकीय लेख


Issue no 14, 03-09 July 2021

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना और रोज़गार

मिशिका नय्यर

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं (पीएलआई), भारत की औद्योगिक नीति में एक सार्थक बदलाव हैं. ये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तत्वावधान में शुरू किए गए परिवर्तनकारी सुधारों की दिशा में नवीनतम पहल है. इस योजना का उद्देश्य आधार वर्ष में भारत में निर्मित उत्पादों की वृद्धिशील बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है. इस योजना के तहत विदेशी कंपनियों को भी भारत में इकाइयां स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, साथ ही स्थानीय कंपनियों को विनिर्माण इकाइयों की स्थापना या मौजूदा विनिर्माण इकाइयों का विस्तार करने, अधिक रोज़गार पैदा करने और आयात पर देश की निर्भरता कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. योजना के तहत स्थापित एंकर इकाइयों के लिए एक बड़े आपूर्तिकर्ता आधार के निर्माण के माध्यम से इसके लाभकारी प्रभाव भी होंगे.

केंद्रीय बजट 2021-22 में, वित्त मंत्री ने 13 प्रमुख क्षेत्रों की योजनाओं के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये (26 बिलियन अमरीकी डॉलर ) के परिव्यय की घोषणा की. इन क्षेत्रों को राजस्व और रोज़गार सृजन की क्षमता के आधार पर चुना गया है. इस योजना का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण और वस्त्र जैसे पारंपरिक, श्रम प्रधान क्षेत्रों के विकास को प्रोत्साहित करके बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करना भी है. इस योजना में इलेक्ट्रॉनिक्स प्रणाली प्रारूप एवं विनिर्माण, ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, दूरसंचार, कपड़ा, खाद्य उत्पाद, नवीकरणीय ऊर्जा, गृहपयोगी विद्युत उपकरण और स्टील जैसे रोज़गार पैदा करने वाले प्रमुख क्षेत्रों को, प्रोत्साहन के रूप में उत्पादन मूल्य का औसतन 5 प्रतिशत देने का प्रावधान किया गया है. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इसका तात्पर्य यह है कि अगले पांच वर्षों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के परिणाम के रूप में देश में न्यूनतम उत्पादन लगभग 3.92 लाख करोड़ रुपये (500 बिलियन अमरीकी डॉलर) का होगा.

उत्पादन में बड़े पैमाने पर इस वृद्धि से, 2021-22 से प्रत्यक्ष रूप से  लगभग 1.40 करोड़ मानव-माह नौकरियों का सृजन किया जा सकता है जिससे सभी क्षेत्रों में मौजूदा कार्यबल को प्रभावी ढंग से दोगुना किया जा सकता है. इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन के आंकड़ों के अनुसार, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं से लाभान्वित होने वाली निर्माण कंपनियों के आपूर्तिकर्ताओं और विक्रेताओं को शामिल करने के साथ, कुल 4.20 करोड़ मानव-माह नौकरियां पैदा हो सकती हैं.

घरेलू विनिर्माण को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने, निर्यात को बढ़ावा देने और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वैश्विक चैंपियन बनाने के दौरान, योजना का सबसे बड़ा लाभ रोज़गार पैदा करने की क्षमता में निहित है. यहां तक कि प्रत्येक क्षेत्र के अपेक्षित परिणामों को परिभाषित करते हुए निवेश, उत्पादन और निर्यात में वृद्धि जैसे मापदंडों के साथ रोज़गार भी शामिल होता है.

एक विशिष्ट क्षेत्र के घरेलू विनिर्माण परिदृश्य को बदलने में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं की सफलता का सबसे अनुकरणीय उदाहरण बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के क्षेत्र में देखा जा सकता है. इस क्षेत्र  में इस योजना की शुरुआत के कुछ महीनों में 16 स्वीकृत कंपनियों ने 35,000 करोड़ रुपये के मूल्य के सामान का उत्पादन किया, 1,300 करोड़ रुपये का निवेश किया और ये लगभग 22,000 नौकरियां पैदा करने के लिए तैयार हैं.

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत में, मोबाइल विनिर्माण और निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों के क्षेत्र में  प्रत्यक्ष रोज़गार के अपेक्षित लगभग 2 लाख रोज़गार और अगले पांच वर्षों में प्रत्यक्ष रोज़गार के तीन गुना अधिक अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं. इसी तरह की एक बड़ी उपलब्धि चिकित्सा उपकरण क्षेत्र ने हासिल की  है जिसमें सरकार ने 873.93 करोड़ रुपये के कुल प्रतिबद्ध निवेश के साथ 14 आवेदनों को मंजूरी दी है. पांच साल की अवधि में 33,750 नौकरियों के अतिरिक्त रोज़गार के बड़े लक्ष्य के तहत इनसे लगभग 4212 रोज़गार सृजन की उम्मीद है.

बड़े पैमाने पर विनिर्माण में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं की सफलता, फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए

इसी तरह की वृद्धि और अपनी घरेलू विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार करने के लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती है. महत्वपूर्ण प्रारंभिक सामग्री/दवा मध्यस्थों और सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयवों में पहले दौर के लिए, 16 आवेदकों को मंजूरी दी गई है, जो कुल 348.70 करोड़ रुपये के निवेश और कुल मिलाकर 12140 रोज़गार सृजित करने के प्रस्तावित लक्ष्य में से लगभग 3,042 रोजगार सृजन के लिए प्रतिबद्ध हैं.

नवंबर 2020 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एडवांस केमिस्ट्री सेल (एसीसी) बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक/  प्रौद्योगिकी उत्पाद, ऑटोमोबाइल और ऑटो पुर्जों, फार्मास्यूटिकल्स दवाओं, दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों, कपड़ा उत्पादों, खाद्य उत्पादों, उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल, गृहोपयोगी विद्युत उपकरणों (एयर कंडीशनर और एलईडी लाइट्स) और स्पेशलिटी स्टील के 10 प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं शुरू करने की मंजूरी दी है.

सरकारी अनुमानों के अनुसार, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं से अगले वित्त वर्ष की शुरुआत से  इलेक्ट्रॉनिक/प्रौद्योगिकी उत्पादों के निर्माण के लिए 1.80 लाख रोज़गार के अवसर, फार्मास्युटिकल दवाओं के निर्माण के लिए एक लाख उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के लिए घोषित खाद्य क्षेत्रों में 2.5 लाख, गृहोपयोगी विद्युत उपकरणों के क्षेत्र में चार लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष और संपूर्ण सौर पीवी विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र में प्रत्यक्ष रोज़गार के लगभग 30,000 और अप्रत्यक्ष रोज़गार के लगभग 1,20,000 अवसरों का सृजन  हो सकता है.

इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन के अनुसार एडवांस केमिस्ट्री सैल (एसीसी) बैटरी में  14, 07,778, ईएसडीएम में 3,88,889, ऑटोमोबाइल और उसके पुर्जों के विनिर्माण में 44,36,600, औषधि उत्पादन में 11,66,667, दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों में 9,48,500, कपड़ा उत्पादन के लिए 8,30,900 और खाद्य उत्पादों के लिए 8,47,778, सौर पीवी मॉड्यूल में 3,50,000, गृहोपयोगी विद्युत उपकरणों (विशेष रूप से एयर कंडीशनर और एलईडी लाइट) के  क्षेत्र में 4,85,178 और स्पेशलिटी स्टील विनिर्माण  क्षेत्र में  4,91,711 नौकरियां पैदा होंगी.  इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन ने अनुमानित कुल प्रत्यक्ष और आनुषंगिक नौकरी में वृद्धि क्रमश: 1,13,54,000 और 3,40,62,000 आंकी है.

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं का व्यापक प्रभाव होने की उम्मीद है, जिसका सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा. एंकर इकाइयों के साथ, आपूर्तिकर्ता इकाइयां बड़े पैमाने पर प्राथमिक और माध्यमिक रोज़गार के अवसर पैदा करने में भी मदद करेंगी. इसके अलावा, 10 क्षेत्रों में से प्रत्येक में पहचान की गई विशिष्ट उत्पाद लाइनें उच्च विकास क्षमता और मध्यम से बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा करने की क्षमता पर आधारित हैं.

चूंकि उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के तहत प्रत्येक क्षेत्र के विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं और इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए रोडमैप तैयार किया जा रहा है, आने वाले पांच वर्षों में इसकी औद्योगिक नीति में सार्थक मोड़ आएगा. भारत की औद्योगिक नीति के नए विकासोन्मुखी आदर्श  में, इसे  एक विनिर्माण केंद्र बनाने और इसकी विशाल आबादी को उत्पादक कार्यबल में बदलने के लिए सभी आवश्यक मानदंड शामिल हैं.

(लेखक स्ट्रैटेजिक इनवेस्टमेंट रिसर्च यूनिट, इन्वेस्ट इंडिया से संबद्ध है, -मेल: mishika.nayyar@investindia.org.in )

(चित्र सौजन्य : गूगल)