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संपादकीय लेख


Issue no 13, 26 June - 2 July 2021

कोविड-19 महामारी के दौरान

कृषि क्षेत्र के बढ़ते कदम

 

संदीप दास

भारत ने कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बीच किसानों से खाद्यान्न की रिकॉर्ड खरीद के साथ रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन की उपलब्धि भी हासिल की. वर्ष 2020-21 के दौरान भारत से कृषि उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ा. कोविड-19 के कारण अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्र जब इसके प्रतिकूल प्रभावों से जूझ रहे थे तब कृषि और इससे संबद्ध क्षेत्रों में 2020-21 में वृद्धि देखी गई, जो इस क्षेत्र में विकास का संकेत है.

 

2020 की शुरुआत से कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. मार्च, 2020 में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद से भारत लाखों लोगों की आजीविका पर कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभावों को झेल रहा है. महीनों तक चलने वाले लॉकडाउन के परिणामस्वरूप कृषि या खाद्य मूल्य शृंखला में संभारतंत्र में व्यवधान हुआ. सरकार ने कृषि मूल्य शृंखला के महत्व को ध्यान में रखते हुए, अधिकांश कृषि कार्यों को आवश्यक सेवाओं के तहत लाकर लॉकडाउन के दायरे से बाहर रखकर इन्हें जारी रखने की अनुमति दी.

 

कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, भारत के कृषि और खाद्य क्षेत्र ने लचीलेपन का प्रदर्शन किया और देशभर में अधिकांश कृषि वस्तुओं का उत्पादन और आपूर्ति बिना किसी रुकावट के जारी रखी गई. देश में मजबूत खाद्य मूल्य शृंखला के कारण लॉकडाउन के दौरान, अनाज, दालें, तिलहन, दूध, अंडे, पोल्ट्री उत्पादों के अलावा फलों और सब्जियों जैसी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में रुकावट नहीं आई.

 

2020-21 में कृषि और इससे संबद्ध क्षेत्रों में विकास

अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों पर लॉकडाउन और कम उपभोक्ता मांग के प्रतिकूल प्रभाव के कारण इनके प्रदर्शन में गिरावट के बीच, कृषि और संबद्ध क्षेत्र मजबूत बने रहे. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने 31 मई, 2021 को जारी अनंतिम अनुमानों में 2020-21 में कृषि क्षेत्र (कृषि, वानिकी और मछली पालन) की वृद्धि 3.6 प्रतिशत आंकी. इस साल की शुरुआत में प्रस्तुत किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया था कि कृषि एक उभरता क्षेत्र है, जबकि संपर्क-आधारित सेवाएं, विनिर्माण और निर्माण महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया कि पिछले वर्षों में कृषि और गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों के लिए सुधारों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे पर सरकार के जोर देने से, ग्रामीण मांग में वृद्धि बनी हुई है.

 

यहां तक कि जून-सितंबर, 2020 की अवधि के दौरान मानसून की बारिश सामान्य स्तर से अधिक थी और मानसून के बाद की अवधि (अक्टूबर-दिसंबर) में भी   पर्याप्त बारिश हुई. इससेे जलाशयों में भरपूर पानी भरा रहा और भू-जल पुनर्भरण भी होता रहा. सरकार ने कृषि संबंधी गतिविधियों को लॉकडाउन के दायरे से बाहर रखने का नीतिगत निर्णय लिया और प्रतिकूलता के बावजूद दक्षता बनाए रखने की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित क्षमता के परिणामस्वरूप 2020-21 (अप्रैल-मार्च) में कोविड-19 महामारी के दौरान भी कृषि क्षेत्र में विकास हुआ. कृषि क्षेत्र कोविड के दुष्प्रभावों से काफी हद तक अछूता था. यही कारण है कि 2020-21 में उर्वरकों की बिक्री बढ़कर 677 लाख टन हो गई, जो कि 2019-20 में 617 लाख टन थी.

 

खाद्यान्नों की रिकॉर्ड बुवाई और उत्पादन

फसलों की बुवाई का रकबा (खरीफ और रबी दोनों) 2020-21 में 1798 लाख हेक्टेयर था, जबकि 2019-20 में यह 1719 लाख हेक्टेयर था. मानसून की सामान्य बारिश; लॉकडाउन से छूट; चावल, गेहूं, कपास, तिलहन तथा दालों की खरीद के लिए सरकार की सक्रिय भूमिका और किसानों को फसल का अधिक मूल्य मिलने जैसे कारकों के परिणामस्वरूप 2020-21 में ट्रैक्टरों की रिकॉर्ड बिक्री (9 लाख यूनिट) हुई.

 

वर्ष 2020-21 में (तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार) देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 305.44 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो 2019- 20 के  दौरान हुए 297.5 मिलियन टन की तुलना में लगभग 8 मिलियन टन अधिक है.

 

भारत का खाद्यान्न उत्पादन (मिलियन टन में)

 2016-17

2017-18

2018-19

2019-20

2020-21*

275.11

285.01

285.21

297.50

305.44

 

स्रोत: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, *तीसरा अग्रिम अनुमान, फसल वर्ष (जुलाई-जून)

 

अनाज, दलहन, तिलहन खरीद में बढ़ोतरी

कोविड-19 से  उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ-नैफेड जैसी सरकारी एजेंसियों द्वारा अनाज और अन्य कृषि उत्पादों की खरीद में उल्लेखनीय उछाल आया, इससे यह सुनिश्चित होता है कि किसानों को फसल का लाभकारी मूल्य मिला है.

 

प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में रबी विपणन सत्र (आरएमएस) - 2021-22 में गेहूं की खरीद सुचारू रूप से जारी है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत किसानों से रिकॉर्ड 42.87 मिलियन टन गेहूं की खरीद की जा चुकी है. पिछले वर्ष एफसीआई और अन्य राज्य एजेंसियों ने किसानों से 38.99 मिलियन टन गेहूं खरीदा था. खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के आंकड़ों के अनुसार, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जा रही खरीद से 15 जून, 2021 तक, लगभग 48.20 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं. इनमें से अधिकतर किसान पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के हंै. इन किसानों के बैंक खातों में सीधे 84,682 करोड़ रुपये अंतरित

किए गए हैं.

 

धान की खरीद के मामले में यह मात्रा 2019-20 में 77.34 मीट्रिक टन के पिछले उच्च स्तर को पार करते हुए, अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. वर्तमान खरीफ सत्र 2020-21 में  न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की गई इस खरीद से लगभग 123.44 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं, जिनके बैंक खातों में 1,56,681 करोड़ रुपये की राशि अंतरित की जा चूकी है.

 

एफसीआई और राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा किसानों से खरीद का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत चावल और गेहूं की आपूर्ति सुनिश्चित करना हैै. इसके तहत लगभग 81 करोड़ लाभार्थियों को प्रति माह पांच किलो चावल या गेहूं क्रमश: 3 रुपये और 2 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर मिलता है. चावल और गेहूं की खरीद के लिए एफसीआई के लिए आर्थिक लागत (न्यूनतम समर्थन मूल्य, परिवहन, भंडारण और अन्य खर्च) क्रमश: 39.99 रुपये प्रति किलोग्राम और 27.39 रुपये प्रति किलोग्राम है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरण के लिए राज्यों को सालाना लगभग 60 मिलियन टन खाद्यान्न आवंटित किया जाता है.

 

कोविड-19 के कारण लाखों लोगों को होने वाली आर्थिक कठिनाइयों से निपटने के लिए, सरकार ने अप्रैल-नवंबर 2020 और अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पात्रता के साथ-साथ प्रति व्यक्ति 5 किलो अतिरिक्त अनाज प्रति माह मुफ्त देने का विशेष प्रावधान किया है.

 

राज्य सरकारों की सिफारिश के आधार पर, राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नैफेड) और अन्य एजेंसियां, सरकार की ओर से, प्रमुख उत्पादक राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य संचालन (मूल्य समर्थन योजना) के तहत दलहन और तिलहन की खरीद करती हैं. नेफेड ने तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश के किसानों से खरीफ विपणन सत्र (2020-21), रबी विपणन सत्र (2021) और गर्मी के मौसम (2021) में  10.78 मीट्रिक टन दलहन और तिलहन की खरीद की.

 

सरकार ने नोडल एजेंसियों के माध्यम से 8.45 लाख टन मूंग, उड़द, अरहर, चना, मसूर, मूंगफली, सूरजमुखी के बीज, सरसों और सोयाबीन की खरीद की है, जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,409 करोड़ रुपये है. इससे खरीफ 2020-21 और रबी 2021 के तहत तमिलनाडु, कर्नाटक आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा और राजस्थान के 5.03 लाख से अधिक किसानों को लाभ हुआ है.

 

इसके अलावा, सरकार ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल से 1.74 लाख मीट्रिक टन खोपरा की खरीद को मंजूरी दी है. 15 जून, 2021 तक, फसल सत्र 2020-21 के दौरान कर्नाटक और तमिलनाडु के 3961 किसानों से 52.40 करोड़ रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 5089 टन से अधिक खोपरा की खरीद की गई है.

कृषि उत्पादों के निर्यात में उछाल

कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर में माल की आवाजाही के लिए चुनौतियां पैदा कीं, इसके बावजूद भारत से कृषि और संबद्ध क्षेत्र के उत्पादों के निर्यात में 2020-21 में इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में महत्वपूर्ण उछाल देखा गया. 2020-21 के दौरान, कृषि और संबद्ध उत्पादों (समुद्री और वृक्षारोपण उत्पादों सहित) का निर्यात बढ़कर 41.25 बिलियन अमरीकी डालर का हो गया, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 17 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्शाता है. रुपये की वसूली के संदर्भ में, कृषि वस्तुओं का निर्यात 2019-20 के  2.49 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 2020-21 में 22.62 प्रतिशत बढ़कर 3.05 लाख करोड़ रुपये का हो गया.

 

2019-20 के दौरान भारत के कृषि और संबद्ध उत्पादों का आयात 20.64 बिलियन अमरीकी डालर का था, और 2020-21 के लिए संबंधित आंकड़े 20.67 बिलियन अमरीकी डालर हैं. कोविड-19 महामारी के बावजूद, कृषि में भारत का व्यापार संतुलन 42.16 प्रतिशत की वृद्धि से, 14.51 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 20.58 बिलियन अमरीकी डॉलर का हो गया है.

 

अनाज के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. गैर-बासमती चावल का निर्यात 2020-21 में इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 136.04 प्रतिशत बढ़कर 4794.54 मिलियन अमरीकी डॉलर का हो गया. गेहूं का निर्यात 2020-21 में 774.17 प्रतिशत बढ़कर 549.16 मिलियन अमरीकी डालर और अन्य अनाजों का (बाजरा, मक्का तथा अन्य मोटे अनाज) 238.28 प्रतिशत बढ़कर 694.14 मिलियन अमरीकी डॉलर का हो गया.

 

अन्य कृषि उत्पाद, जिनके निर्यात में 2020-21 में वृद्धि हुई वे थे खली (1575.34 मिलियन अमरीकी डालर- 90.28 प्रतिशत की वृद्धि), चीनी (2789.97 मिलियन अमरीकी डालर - 41.88 प्रतिशत की वृद्धि ), कच्चा कपास (1897.20 मिलियन अमरीकी डालर - 79.43 प्रतिशत की वृद्धि), ताजी सब्जियां (721.47 मिलियन अमरीकी डालर - 10.71 प्रतिशत की वृद्धि) और वनस्पति तेल (602.77 मिलियन अमरीकी डालर - 254.39 प्रतिशत की वृद्धि) आदि. भारत के कृषि उत्पादों के लिए सबसे बड़ा बाजार संयुक्त राज्य अमरीका, चीन, बंगलादेश, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, नेपाल, ईरान और मलेशिया थे.

 

कुल मिलाकर, भारत में अपनी आजीविका के लिए देश की आधी से अधिक आबादी की निर्भरता वाले कृषि और संबद्ध क्षेत्रों ने कोविड-19 महामारी के दौरान प्रतिकूलता के बावजूद पूरी तरह से दक्षता का परिचय दिया. इन क्षेत्रों ने अपने उत्पादन के एक बड़े हिस्से का निर्यात करने के अलावा देश के करोड़ों लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की है.

 

(लेखक दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. ईमेल- sandipdas2005@gmail.com )

(चित्र: डीएआरई)