रोज़गार समाचार
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संपादकीय लेख


Issue no 10, 5-11 June 2021

 

नर्सिंग में रोज़गार के अवसर

 

आरुषि अग्रवाल

कोविड-19 महामारी से मिले अनुभव ने वैश्विक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले पेशेवरों के महत्व पर प्रकाश डाला है. क्रमिक रूप से उत्पन्न हो रहे इस संकट के दौरान रोगियों की देख-रेख में, इस वायरस और इसके जोखिमों को समझने के लिए अनुसंधान करने में और भविष्य के खतरे से निपटने के समाधान विकसित करने में डॉक्टर और नर्सें अग्रिम मोर्चे पर डटे रहे हैं. मार्च, 2020 के बाद से इस महामारी से निपटने की दिशा में हुई हर तरह की प्रगति का श्रेय काफी हद तक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के समुदाय, डॉक्टरों और नर्सों को समान रूप से जाता है.

अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों, बुजुर्गों के नर्सिंग होम्स  और ऐट-होम मेडिकल सेटअप्स में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता अक्सर नर्सिंग स्टॉफ ही होता है. आपातकालीन सेवाओं सहित इन स्वास्थ्य केंद्रों में अक्सर वे ही प्रथम स्वास्थ्य सेवा प्रदाता होते हैं, जिनसे रोगी बात करते हैं. यही बात स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान में नर्सों को अपरिहार्य बनाती है. अब जबकि विश्व स्वयं को इस महामारी के चंगुल से परे अपने भविष्य की योजना बना रहा है, तो ऐसे में रोज़गार के उचित अवसरों और सामुदायिक आयोजकों (या कम्युनिटी एनेबलर्स) के माध्यम से नर्सों का सुदृढ़ वैश्विक नेटवर्क बनाए जाने पर भी बारीकी से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. यह कार्य किया जाना इसलिए भी और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि विश्व अपने समीप आती  स्वास्थ्य सेवा संबंधी चुनौतियों से निपटने की तैयारी कर रहा है, जिन्होंने इस क्षेत्र में और अधिक व्यवसायियों की आवश्यकता को जन्म दिया है.

सर्वप्रथम, दुनियाभर के देशों- एशिया में जापान और चीन से लेकर इटली, पुर्तगाल, फिनलैंड, ग्रीस और जर्मनी तक में, एशिया की आबादी तेजी से वृद्ध (65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की कुल आबादी के प्रतिशत के रूप में परिभाषित) हो रही है. अत्यधिक वृद्ध आबादी द्वारा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समक्ष उत्पन्न किए जाने वाले जोखिमों के अतिरिक्त, यह गुणवत्तापूर्ण और आसानी से सुलभ होने वाली स्वास्थ्य सेवाओं और व्यवसायियों की  जरूरत भी उत्पन्न करती है. इस स्थिति ने अच्छे से प्रशिक्षित और योग्यता प्राप्त नर्सों की बड़े पैमाने पर आवश्यकता उत्पन्न कर दी है, जो स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों की खामियों को दूर कर सकती हैं. इतना ही नहीं, चूंकि वृद्ध रोगियों को चौबीसों घंटे देख-रेख की जरूरत होती है, इसलिए ऐसी नर्सों की बिरादरी (या फ्रेटर्निटी) तैयार करना आवश्यक होगा, जो वृद्ध रोगियों से संबंधित विशिष्ट रोगों से परिचित हों.

विश्व के समक्ष मौजूद दूसरी चुनौती जीवन शैली से जुड़े रोगों का बिगड़ते जाना है. मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी बीमारियों की बहुतायत अमरीका जैसे समृद्ध देशों में ही आम नहीं हैं, बल्कि भारत जैसे देशों में भी तेज़ी से आम होती जा रही हैं, जहां जॉब मार्केट के बदलते स्वरूप ने और ज्याादा व्यक्तियों को निष्क्रिय जीवन शैली अपनाने को विवश कर दिया है. व्यायाम के अभाव ने पूरा दिन डेस्क पर बैठने के प्रभावों को और भी विकट बना दिया है, इसके फलस्वरूप यह स्थिति अन्य समस्याओं के साथ ही साथ ह्रदयवाहिनी रोगों (सीवीडी) में भयावह वृद्धि में भी योगदान दे रही है. भारत में हर साल लगभग 10 मिलियन लोग दिल के दौरे का शिकार बनते हैं; सीवीडी के कारण वर्ष 1990 में 2.26 मिलियन मौतें हुई थीं, जिनके वर्ष 2020 में बढ़कर 4.77 मिलियन हो जाने का अनुमान व्यक्त किया गया. भारत में हृदय धमनी रोगों (या कॉरनेरी हार्ट डिसीज) के प्रसार की दर का अनुमान पिछले कई दशकों के आधार पर लगाया गया है और इसकी रेंज ग्रामीण आबादी में 1.6 प्रतिशत से 7. 4 प्रतिशत तथा शहरी आबादी में 1-13.2 प्रतिशत रही है. यह बात भारत को दुनिया के सबसे बुरी तरह प्रभावित देशों की कतार में ले जाती है.

इस प्रकार के गैर संचारी रोगों (एनसीडी) के रोगियों की देख-रेख करना अनिवार्य है, विशेषकर इसलिए क्योंकि चिकित्सा स्वास्थ्य व्यवसायियों द्वारा की गई उचित देखभाल से उनकी हालत को अचानक बिगड़ने से रोका जा सकता है और घर पर उचित देख-रेख सुनिश्चित की जा सकती है. ऐसे स्वास्थ्य सेवा व्यवसायी सिविल सोसायटी में भी तैनात किए जा सकते हैं, जो ऐसी बीमारियों में बढ़ते ट्रैंड्स के बारे में जागरूकता फैला सकें और जन साधारण को यह समझने में मदद कर सकें कि इन बीमारियों की रोकथाम, इनकी जोखिम में कमी लाने अथवा इनको मैनेज करने के लिए कौन से उपाय उसके मददगार साबित हो सकते हैं. नर्सिंग स्टाफ के लिए इसने रोज़गार के अपार अवसरों का सृजन किया है, जिन्हें जल्द से जल्द भरा जाना चाहिए.

इस महामारी ने दुनियाभर की सरकारों- केंद्रीय और स्थानीय स्तरों के समक्ष भी यह अवसर उत्पन्न किया है- कि वे अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को व्यापक बनाएं और तत्काल प्रतिक्रिया (या अर्जेंट रिस्पांस) करने वाली प्रणालियों का सृजन करें. सार्स-कोव2 के कारण उत्पन्न वैश्विक अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले कोविड-19 की तरह किसी अन्य वायरस की आशंका के लिए तैयार रहने के लिए सरकारों को अनिवार्य रूप से अपनी स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे को तेजी से व्यापक बनाना होगा और ग्रामीण क्षेत्रों तथा दूरदराज के समुदायों तक उनका विस्तार करना होगा, जहां की स्वास्थ्य सेवाएं संभवत: काफी कमजोर हैं. इस दिशा में तत्काल कदम उठाना होगा, विशेषकर इसलिए क्योंकि सार्स-कोव के लगातार म्यूटेट करने की आशंका अभी तक पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. यदि यह वायरस किसी अन्य तरह का उग्र स्वरूप धारण कर लेता है, तो इससे निपटने के लिए नर्सों की अग्रिम मोर्चों पर आवश्यकता होगी.

वर्तमान में, कोविड-19 से निपटने के लिए तैनात किया गया नर्सिंग स्टाफ साल भर से अनवरत ड्यूटी पर सक्रिय रहा है. महामारी के कारण उपजी पीड़ा ने अतिशय थकान को और बढ़ा दिया है, जिसने और अधिक नर्सों की आवश्यकता को बहुत स्पष्ट किया है. इस महामारी के अगले चरण में, नई नर्सें रोगियों की देख-रेख में अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं. सर्वाधिक मामलों की संख्या, वाले स्थानों पर नर्सों की बड़ी संख्या में मौजूदगी कम जोखिम वाले रोगियों की उचित देख-रेख भी सुनिश्चित करती है, ताकि स्वास्थ्य क्षेत्र में किसी भी और तरह की खराबी से तेजी से निपटा जा सके. टीकाकरण कार्यक्रमों के केंद्र में भी नर्सें ही हैं; दरअसल ज्यादातर स्थानों पर टीकाकरण का प्रबंधन नर्सों द्वारा ही किया जा रहा है. टीकाकरण कार्यक्रमों को कई वर्षों तक चलने की संभावना है, खास तौर तब तक, जब तक म्यूटेट होता कोरोना वायरस दुनिया के समक्ष खतरा प्रस्तुत करना बंद नहीं कर देता. यह स्थिति नर्सों के लिए वैश्विक कार्यबल में शामिल होने और स्वास्थ्य सेवा के बोझ को हल्का  करने के लिए और भी ज्यादा द्वार खोलती है.

भारत हर साल बड़ी संख्या में नर्सों को खाड़ी देशों, यूरोप और अन्य अंग्रेजी भाषी देशों में भेजता है. उनकी सहायता के लिए नर्सिंग संस्थाओं का विशाल नेटवर्क मौजूद है, जहां उम्मीदवार नर्सिंग में डिप्लोमा, स्नातक या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम कर सकते हैं या प्रसूति विद्या का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं. डिप्लोमा पाठ्यक्रम दो वर्ष का है, जबकि नर्सिंग में स्नातक डिग्री को पूरा होने में चार साल (दूरस्थ शिक्षा में तीन साल) का समय लगता है. नर्सें विभिन्न क्षेत्रों जैसे क्रिटिकल केयर नर्सिंग, न्यूरो केयर, ऑपरेशन थिएटर नर्सिंग और शिक्षा आदि में विशेषज्ञता भी हासिल कर सकती हैं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को आशा है कि 22,000 नर्सें वार्षिक रूप से इस व्यवसाय में शामिल होंगी. वर्तमान में, भारत में एक लाख सहायक नर्स दाइयों और चार लाख सामान्य नर्सिंग दाइयों का अभाव है. वर्तमान और भविष्य के लिए अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाने पर भारत के फोकस को देखते हुए, ये पद जल्द से जल्द भर ही जाएंगे. ऐसे समय में जब वैश्विक समुदाय सुदृढ़ स्वास्थ्य प्रणालियों के महामारी - रहित भविष्य के लिए तैयार हो रहा है, नर्सिंग व्यवसाय का भविष्य खास तौर पर उज्ज्वल दिखाई देता है.

(लेखिका इन्वेस्ट इंडिया की स्ट्रेटेजिक इनवेस्टमेंट रिसर्च यूनिट में शोधकर्ता हैं, ईमेल : aarushi.aggarwal@investindia.org.in

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.

(चित्र: इंडियन नर्सिंग काउंसिल)