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संपादकीय लेख


अंक संख्या 43, 22-28 जनवरी,2022

चुनौतीपूर्ण समय के लिए बजट

अतुल के ठाकुर

केंद्रीय बजट 2022-23, को विशेष रूप से, अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रहे लोगों के जीवन और आजीविका के लिए सहानुभूतिपूर्ण नीति समर्थन सुनिश्चित करना चाहिए.

कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित जीवन और आजीविका का समर्थन करने के लिए, केंद्रीय बजट 2022-23 अत्यन्त आवश्यक नीतिगत उपायों को सरल और अधिक कारगर बनाने का महत्वपूर्ण अवसर है.

भावी योजना बनाते समय पीछे मुड़कर देखना भी जरूरी है. यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि वैश्विक महामारी से ठीक पहले एक अभूतपूर्व संकुचन हुआ था जिसे भारतीय रिजर्व बैंक ने ''ऐतिहासिक तकनीकी मंदी कहा था, जिसमें भारत सहित दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं संतोषजनक आर्थिक विकास के चरण में नहीं थीं.

इसके बाद, घटती खपत और निवेश की प्रवृत्ति ने वैश्विक महामारी के साथ सामान्य व्यापार संचालन को रोक दिया और जीवन तथा आजीविका को अकल्पनीय नुकसान का सामना करना पड़ा.

कोविड-19 और अभूतपूर्व संकट

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, विश्व अर्थव्यवस्था में 2020 में 3.2 प्रतिशत संकुचन था और इसमें 2021 में 6 प्रतिशत इजाफा होने का अनुमान था. 2019 में विश्व अर्थव्यवस्था का 2.8 प्रतिशत विस्तार हुआ. स्वस्थ आर्थिक विकास की प्रवृत्ति के लिहाज से इन आंकड़ों को उत्साहजनक और भरोसेमंद नहीं समझा जाना चाहिए. इन आंकड़ों के सन्निकट परिणामों का अनुमान लगाना और भी  चिंताजनक है और इस त्रासदी को केवल डेटा और विश्लेषण में नहीं समेटा जा सकता. 21वीं सदी में, दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में, भारत भी अलग-थलग रहने और संरक्षणवाद के रास्ते पर पीछे जाने का विकल्प नहीं चुन सकता है. वास्तव में, इसे दुनिया के साथ संयोजन जारी रखना चाहिए और इस सम्मिलन से लाभ उठाना चाहिए. वह भी, बड़े पैमाने पर. ऐसी व्यावहारिक मजबूरियों और प्रयासों के बावजूद, भारत संगठित क्षेत्रों में पर्याप्त रोज़गार पैदा करने की क्षमता के साथ एक नपी-तुली सुदृढ़ घरेलू अर्थव्यवस्था हासिल करने का हकदार है. वह मध्यम वर्ग की आबादी को तेजी से आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है ताकि वह सतत मांग के ज़रिए अर्थव्यवस्था को बल प्रदान कर सके.

अल्पावधि में प्राथमिकता के रूप में, औद्योगिक पुनरुद्धार को भारत के लिए अपरिहार्य समझा जाना चाहिए. उत्पादन और मांग के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. जैसा कि विक्टर ह्यूगो ने कहा, ''विचार से अधिक शक्तिशाली कुछ भी नहीं है जिसका समय गया है.”1991 में तत्कालीन भारत के वित्त मंत्री (बाद में दो कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री: 2004-2014) डॉ मनमोहन

सिंह ने भारत में आर्थिक सुधारों की भव्य योजना पेश कर इतिहास रचने से पहले उक्त कथन का हवाला दिया था. शब्दों से परे भी, आर्थिक सुधारों की भावना भारत के विकास की गति को आगे बढ़ाती है. एक संतुलित विकास प्रतिमान खोजने की तलाश में, यह एक ऐसा विचार है जिसका वास्तव में समय गया है.

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में आर्थिक सुधारों का महत्व

''भारत के विकास की कहानीपर भरोसा रखने वालों के पास केंद्रीय बजट 2022-23 से ऊंची उम्मीदें रखने के पर्याप्त कारण हैं. उम्मीद है कि  वित्त मंत्री बजट में आर्थिक बहाली के प्रावधानों करेंगी, क्योंकि देश कोविड-19 की तीसरी लहर की चपेट में है और पिछली दो लहरों से उत्पन्न उदासी और भी बढ़ गई है, जिनसे जीवन और आजीविका का भारी नुकसान हुआ है. संक्षेप में, केंद्रीय बजट 2022-23 में अनिवार्य रूप से मांग सृजन, रोज़गार सृजन, सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए और अर्थव्यवस्था को आदर्श रूप से दोहरे अंकों की वृद्धि के विस्मृत लक्ष्य को फिर से हासिल करने में सक्षम बनना चाहिए. संकट समाधान के उपाय के लिए, अब आर्थिक बहाली की प्रक्रिया के प्रमुख संचालक के रूप में संवर्द्धित खपत और उत्पादन क्षमता के महत्व को रेखांकित करना गलत नहीं होगा.

राजकोषीय उपाय संकट की स्थिति में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, भारत ने राजकोषीय विवेक और भली-भांति तय की  गईं मौद्रिक नीतियों के साथ 2007-09 के सब प्राइम संकट पर आधारित वैश्विक आर्थिक मंदी का सफलतापूर्वक मुकाबला किया. चूंकि कोविड-19 ने लगातार दूसरे वर्ष अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से दुष्प्रभावित किया है, इसलिए सार्वजनिक व्यय को यथासंभव तर्कसंगत रखते हुए राजस्व को अधिकतम करने के लिए ठोस कार्रवाई का समय है. राजस्व लक्ष्य को पूरा करने की तलाश में, सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति में  यदि पुनरुद्धार की क्षमता बची है तो उसे केवल बिक्री के लिए नहीं माना जाना चाहिए. कर के मोर्चे पर, हाल की तिमाहियों का राजस्व संग्रह उत्साहजनक रहा है. परन्तु, स्पष्ट घाटे को राजस्व सृजन के लिए गहन कार्यनीतिक प्रवीणता की आवश्यकता होगी. व्यक्तिगत करदाताओं को विशेष रूप से निचले स्लैब में कुछ राहत मिलनी चाहिए क्योंकि उन्हें कोविड-19 के साथ विश्व की पूर्ववर्ती कार्यप्रणाली से भिन्न अनिश्चित अस्तित्व में रहना पड़ा है.

विकास के प्रेरक के रूप में, आवास और बुनियादी ढांचे, ऊर्जा, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, फार्मास्युटिकल्स, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कौशल विकास, ऑटोमोबाइल, पर्यटन, नागरिक उड्डयन, आतिथ्य, सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना सहित प्रमुख क्षेत्रों को राहत प्रदान करने के साथ निवेश का लाभ उठाया जाना चाहिए. प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाएं (आईटी और आईटीईएस), बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा (बीएफएसआई), वित्तीय वृद्धि और स्थिरता, विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता, एमएसएमई को मजबूत करना, निर्यात, प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) का समर्थन करना, व्यायपार में सुगमता (ईओडीबी) और अनुपालन को आसान बनाया जाना चाहिए क्योंकि भारत का लक्ष्य प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी बढ़त बनाए रखना और अपनी वैश्विक स्थिति को और बढ़ाना है. आर्थिक सुधारों का प्रभाव प्राथमिक क्षेत्र (सेवाओं) पर सबसे अधिक दिखाई दिया है जहां भारत तुलनात्मक रूप से एक नए क्षेत्र जैसे आईटी और आईटीईएस में प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा है. अब समय गया है कि प्रगतिशील सुधारों को प्राथमिक (कृषि) और द्वितीयक (विनिर्माण) क्षेत्रों को भी अपनी वास्तविक क्षमता का लाभ उठाने देना चाहिए. यदि केंद्रीय बजट 2022-23 इस मोर्चे पर कुछ भव्य योजनाएं पेश कर सकता है, तो इसके दूरगामी सकारात्मक प्रभाव होंगे.

माल और सेवा कर (जीएसटी) संग्रह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत दे रहा है, जुलाई 2021 से हर महीने 1 ट्रिलियन रुपये से अधिक की कर प्राप्ति, आर्थिक गतिविधियों में संवर्द्धन के साथ ही कर वसूली में सुधार को प्रतिबिम्बित कर रही है.

संकट और वैश्विक प्रतिक्रिया

ऐसा परिदृश्य, जहां एक तीव्र सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और प्रणालीगत विफलता राष्ट्रों की सीमाओं से परे मानव जाति के अस्तित्व को परिभाषित कर रही है, महामारी के बाद अनिवार्यत: एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना करता है जिसमें नुकसान के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए एक स्वतंत्र मार्ग पर चलने की कवायद की जाए. विश्व को नया रूप देने के लिए, वैश्विक सहमति की आवश्यकता है, ताकि संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) जैसे क्षेत्रीय विकास बैंकों को सशक्त बनाया जा सके, अन्यथा यह संभव नहीं हो पाएगा. विश्व स्तर पर आर्थिक बहाली की प्रक्रिया की रणनीति बनाने और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों और विकास भागीदारी के मानदंडों को फिर से स्थापित करने के लिए एक व्यापक-आधारित दृष्टिकोण विकसित करने के वास्ते एक साझा मंच बनाने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका अभी भी बहुत महत्वपूर्ण है.

विश्व बैंक की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ''विकासशील देशों में कोविड-19 से करोड़ों लोगों के जीवन और आजीविका को पहुंची गंभीर क्षति को देखते हुए, विश्व बैंक समूह ने महामारी से  लोगों के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति और सामाजिक पहलुओं पर पड़े दुष्प्रभावों से निपटने के लिए, पिछले 15 महीनों (1 अप्रैल, 2020-30 जून, 2021) में 157 अरब डालर से अधिक धनराशि अभिनियोजित की. बैंक समूह के इतिहास में अब तक इस तरह की किसी भी अवधि के लिए प्रदान की गई यह सबसे बड़ी आपात सहायता थी, जिसमें महामारी से पहले के 15 महीने की अवधि की तुलना में 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि परिलक्षित होती है. अकेले वित्तीय वर्ष 2021  में बैंक समूह की प्रतिबद्धताएं और धन संग्रहण (1 जुलाई, 2020 - 30 जून, 2021) लगभग 110 अरब डॉलर  (अथवा संग्रहण, अल्पावधि  वित्तपोषण और प्राप्तकर्ता-निष्पादित ट्रस्ट फंड को छोड़कर 84 अरब डॉलर था.’ यह कुछ हद तक आश्वस्त करने वाला है, इस तरह के उपाय समय की आवश्यकता हैं - और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए केवल अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियों और वित्तीय संस्थानों को बल्कि विकास साझेदारी बजट वाले समृद्ध देशों को भी  खर्च योजनाओं को फिर से प्राथमिकता देनी चाहिए.

''कोविड-19 महामारी एक स्वास्थ्य संकट से कहीं अधिक है; यह एक आर्थिक संकट, एक मानवीय संकट, एक सुरक्षा संकट और एक मानवाधिकार संकट है. इस संकट ने राष्ट्रों के भीतर और उनके बीच गंभीर कमजोरियों और असमानताओं को उजागर किया है. इस संकट से बाहर निकलने के लिए सभी समुदायों, सभी सरकारों और समूचे विश्व को  करुणा और एकजुटता से संचालित दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी.’ कोविड-19 से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई मुख्य रूप से सार्थक है. संकट के प्रति देर से की गई संस्थागत कार्रवाई के बाद, संयुक्त राष्ट्र मध्यम और निम्न-आय वाले देशों के लिए सामाजिक-आर्थिक उपायों और बहाली योजना के साथ सुधार कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के अपने अनुमान के अनुसार, उसके मौजूदा 17.8 अरब डॉलर के सतत विकास कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण हिस्सार कोविड-19 जरूरतों के लिए पुनर्व्यवस्थित किया जा रहा है, फिर भी उसे अतिरिक्त धन की आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि, संयुक्त राष्ट्र कोविड-19 कार्रवाई और बहाली कोष कोविड-19 के लिए तत्काल सामाजिक-आर्थिक उपायों के लिए संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (यूएनएसडीजी) फ्रेमवर्क राष्ट्रों के स्तर पर तेजी से लागू करने का समर्थन करता है. संचार और  सामाजिक-आर्थिक उपायों के माध्यम से विश्व संगठन की कार्रवाई प्रशंसनीय रही है, फिर भी, संयुक्त राष्ट्र निश्चित रूप से अपनी सामान्य परिषद या असाधारण बैठक के माध्यम से कोविड-19 और इसके असामान्य वैश्विक प्रसार का कारण खोजने पर पूरी शिद्दत से कार्य नहीं कर सका.

जीवन और आजीविका को प्रोत्साहन

कोविड-19 महामारी को आमतौर पर ''सौ वर्षों में एकसंकट कहा जाता है जिसने विश्व स्तर पर जीवन और आजीविका को अभूतपूर्व तरीके से दुष्प्रभावित किया है. संकट की प्रकृति वैश्विक है, अत: भारत भी गंभीर रूप से प्रभावित है. जिस तरह से विश्व फिर से  सामान्य स्थिति कायम करने के लिए अपने में आश्वस्त है, सरकार और उद्योग के लिए भी यह समय है कि वे एमएसएमई और अर्थव्यवस्था की रीढ़ समझे जाने वाले निर्यात को प्रोत्साहित  करने सहित अपनी तात्कालिक प्राथमिकताएं तय करें. इस समय दृष्टिकोण में बदलाव की बहुत आवश्यकता है, विश्व व्यवस्था के मूल सिद्धांतों को पुन: स्थापित होने से पहले, अर्थव्यवस्था के अति आवश्यक घटक मांग का समर्थन करने के लिए एमएसएमई और निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने का दृढ़ संकल्प होना चाहिए. यह समय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए एक खाका तैयार करने के साथ सक्रिय सामूहिक कार्रवाई करने का है ताकि हम इस कठिन दौर से बाहर निकल सकें.

बदलती दुनिया को गरीबी और असमानता को हराने के लिए एक मजबूत आधार बनाने और स्थिरता को व्यापार और सामाजिक कार्रवाई की संचालन शक्ति बनाने की आवश्यकता है. कल्याणवाद कोई अप्रचलित अवधारणा नहीं है, इसे मान्यता दी जानी चाहिए. महामारी के बाद की दुनिया की परिकल्पना करते हुए और कुछ क्षोभकारी क्षणिक चुनौतियों का सामना करते हुए, समावेशी और सतत विकास ढांचे को अपनाने की स्पष्ट प्रवृत्ति अत्यन्त  आवश्यक है. हमें एकजुट होकर स्थिति का सामना करना होगा.

भविष्योन्मुखी बजट: समय की मांग

केंद्रीय बजट 2022-23 भारत के लिए संकट से उभरने और सतत विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने की दृष्टि से सार्थक होगा. विकास की गति और समावेशिता के महत्व को समझने के साथ संतुलित उपाय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लघु, मध्यम और यहां तक कि दीर्घावधि के लिए कारग़र सिद्ध होंगे. बुनियादी सिद्धांत अभी भी मजबूत और सहायक हैं, अत: सही नीतिगत उपाय यह तय करेंगे कि भारत महामारी के बाद की दुनिया में संकट से कैसे बाहर निकलता है.

भारत भविष्योन्मुखी बजट का इंतजार कर रहा है. नीति निर्माताओं को तत्परता से अपने सुझाव देने चाहिएं. यह समय की मांग है।

लेखक दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ,  नीति व्यवसायी, स्तंभकार और लेखक हैं. उनसे -मेल: summertickets@gmail.com पर  संपर्क किया जा सकता है.

(व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं)