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संपादकीय लेख


अंक संख्या 42, 15-21 जनवरी,2022

जन आन्दोलन से साकार हो रहा स्वच्छ भारत

संदीप दास

भारत में 'राष्ट्रपिताके रूप में सम्मानित महात्मा गांधी की सार्वजनिक और निजी स्वच्छता के लिए चिंता, उनके दक्षिण अफ्रीका में बिताए दिनों से उनके सत्याग्रह अभियान का हिस्सा थी. गांधीजी  के लिए, समाज में स्वच्छता के लिए अभियान एक जातिविहीन और मुक्त समाज बनाने की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग था. उन्होंने स्वच्छता को एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए एक बार कहा था 'हर कोई अपना मेहतर है,’ उनका यह कथन  अस्पृश्यता को दूर करने की कुंजी है.

स्वच्छता के लिए गांधीजी का आह्वान सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के दौरान आया था. तब उनकी प्राथमिकता गोरे लोगों द्वारा किए गए इस दावे को दूर करना था कि भारतीयों में स्वच्छता की कमी है और इसलिए उन्हें अलग रखने की जरूरत है. 1894 में विधानसभा को एक खुले पत्र में, गांधीजी ने लिखा था कि भारतीय भी यूरोपीय लोगों के समान स्वच्छता के मानकों को बनाए रख सकते हैं, बशर्ते उन्हें भी  अवसर मिलें. उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि स्वच्छता का मुद्दा स्वयं भारतीयों को जोश और तत्परता के साथ उठाना चाहिए. गांधीवादी आंदोलन में स्वच्छता के लिए अभियान 1920 के दशक की शुरुआत के असहयोग संघर्ष के बाद मजबूत हुआ. उस समय तक, गांधीजी का स्वच्छता का आह्वान दो अलग-अलग आंदोलनों में मजबूती से अंतर्निहित था - स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और अस्पृश्यता को दूर करने की आवश्यकता. स्वच्छता और स्वराज के बीच घनिष्ठ संबंध पर जोर देते हुए, गांधीजी ने भारतीयों से, पश्चिम से नगरपालिका स्वच्छता की कला सीखने और इसे अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित करने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि खुले में शौच केवल जमीन में खोदे गए गड्ढे में एक सुनसान जगह पर किया जाना चाहिए और शौचालयों में कमोड का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

 गांधीजी ने 1925 में 'हमारा पागलपननामक एक लेख में लिखा था, 'स्वराज केवल स्वच्छ, बहादुर लोगों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है.’ उन्होंने कहा था कि स्वच्छता, स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है. उन्होंने इस बात की हिमायत की कि स्वच्छता शारीरिक स्वास्थ्य और स्वस्थ वातावरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण है और सभी के लिए स्वच्छता, साफ-सफाई और खराब स्वास्थ्य स्थितियों के कारण होने वाली विभिन्न बीमारियों के बारे में जानना आवश्यक है.

स्वतंत्रता के बाद के चरण में, पंचवर्षीय योजनाओं में स्वास्थ्य और स्वच्छता पहलुओं का उल्लेख पाया गया. 1954 में, भारत में ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को प्रथम पंचवर्षीय योजना के एक भाग के रूप में शामिल किया गया था. हालांकि, इन प्रावधानों के बावजूद पूरे देश में स्वच्छता की स्थिति में सुधार नहीं हुआ. शौचालयों के निर्माण और मरम्मत के लिए अलग से कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई, इस प्रकार स्वच्छता सुविधाएं चिंता का विषय बनी रहीं. 1981 की जनगणना से पता चला कि ग्रामीण स्वच्छता कवरेज केवल 1 प्रतिशत के आसपास था.

स्वच्छता की कमी को बच्चों (5 वर्ष से कम) में दस्त के एक प्रमुख कारण के रूप में पहचाना गया, इसके परिणामस्वरूप कई बच्चों की मृत्यु भी हुई. महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए भी स्वच्छता एक महत्वपूर्ण पहलू है. 1986 में, पूरी तरह से स्वच्छता पर केंद्रित केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (सीआरएसपी) शुरू किया गया था. ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित स्वच्छता प्रदान करने के उद्देश्य से यह पहला राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम केंद्र प्रायोजित था. चूंकि इस कार्यक्रम में खुले में शौच की समस्या का समाधान नहीं था, इसलिए इससे वांछित परिणाम नहीं मिले.

1999 में, 2017 तक खुले में शौच को समाप्त करने की दृष्टि से पूर्ण स्वच्छता अभियान शुरू किया गया था. इसके बाद निर्मल ग्राम पुरस्कार, संपूर्ण स्वच्छता आंदोलन योजना और पूर्ण स्वच्छता अभियान को मजबूत करने के लिए अन्य कई पहल की गईं। 2006 में, पूर्ण स्वच्छता अभियान को इंदिरा आवास योजना के साथ मिला दिया गया था, जो ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत एक प्रमुख योजना थी, जिसने गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए आवास इकाइयों के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता देकर ग्रामीण आवास की जरूरतों को पूरा किया. इस अभिसरण से  इंदिरा आवास योजना के तहत निर्मित मकानों में शौचालयों के निर्माण के लिए धन के उपयोग की अनुमति मिली.

शौचालयों का निर्माण बड़ी संख्या में हुआ, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी रही और शौचालयों के उपयोग को बढ़ावा देने में जमीनी स्तर पर आदत बदलने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. कई परिवार जिन्होंने शौचालय का उपयोग करना शुरू कर दिया था, वे  फिर से खुले में शौच के लिए जाने लगे. 2012 में, केंद्र ने 2022 तक ग्रामीण घरों में 100 प्रतिशत शौचालय की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से 'निर्मल भारत अभियान’ (एनबीए) शुरू किया. इस अभियान को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अभिसरण में आरंभ किया गया था. निर्मल भारत अभियान ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कवरेज में तेजी लाने के लिए नई रणनीतियों, संशोधित दिशानिर्देशों और उद्देश्यों के साथ पूर्ण स्वच्छता अभियान का अद्यतन प्रारूप था.

स्वच्छता और व्यक्तिगत साफ-सफाई के महत्व से संबंधित व्यापक रूप से स्वीकृत तथ्य के बावजूद, भारत का स्वच्छता कवरेज 2014 तक 39 प्रतिशत तक था. 2014 से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 55 करोड़ लोगों को  शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी.  यह स्थिति स्वास्थ्य और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की गरिमा, विशेषकर महिलाओं तथा बच्चों के सम्मान को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही थी. खुले में शौच को राष्ट्रीय शर्म का विषय माना जाता था, लेकिन यह अकसर अनदेखा किया जाने वाला विषय था जिसे सार्वजनिक चर्चा में नहीं उठाया जाता था.

2014 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) में निर्मल भारत अभियान को नया रूप दिया और दो उप-मिशन - स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) की शुरुआत की. जबकि निर्मल भारत अभियान का मुख्य फोकस देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता की स्थिति में सुधार करना था, स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शहरों और कस्बों में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से शहरी क्षेत्रों को भी इसके दायरे में शामिल किया गया था. स्वच्छ भारत मिशन के तहत, व्यक्तिगत घरेलू शौचालय के निर्माण के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी को 10,000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये कर दिया गया है.

स्वच्छ भारत मिशन को 24 सितंबर 2014 को मंजूरी दी गई थी, और यह 2 अक्टूबर 2014 से प्रभावी हुआ था. लक्ष्य 2 अक्टूबर, 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त भारत बनाना था. इसके लिए शहरी क्षेत्रों में 67 लाख घरेलू शौचालय और 5 लाख सामुदायिक शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया था. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, जहां स्वच्छता कवरेज स्वच्छ भारत मिशन के शुभारंभ के समय केवल 38.7 प्रतिशत था, इसे 100 प्रतिशत तक लाना था.

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्तूबर 2014 को नई दिल्ली में राजपथ पर स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत करने के बाद कहा, 'स्वच्छ भारत 2019 में महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती पर सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी.’ उन्होंने स्वच्छता के लिए जन आंदोलन का नेतृत्व करते हुए लोगों से महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने का आह्वान किया.

प्रधानमंत्री स्वयं मिशन के कम्युनिकेटर-इन-चीफ रहे हैं. उन्होंने स्वच्छता को मानवीय गरिमा और अखंडता से जोड़ा. श्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से सभी 250,000 ग्राम प्रधानों को पत्र लिखकर उन्हें अपने गांव में लोगों को स्वच्छता सेवाएं प्राप्त करने में मदद करने के लिए प्रेरित किया. स्वच्छ भारत मिशन के लिए स्वेच्छा से काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छाग्रही कहा जाता था. स्वच्छाग्रही गांधीजी के विचारों और आदर्शों का प्रतीक है. स्वच्छाग्रहियों ने सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह अभियान में नई ऊर्जा और उत्साह भरा.

12 करोड़ से अधिक स्कूली बच्चे, 6.25 लाख स्वच्छाग्रही, 2.5 लाख सरपंच, लाखों नागरिक और लगभग 50 ब्रांड एंबेसडर इस टीम के सदस्य थे. स्वच्छाग्रहियों ने नियमित रूप से शौचालय निर्माण और उसके उपयोग के लिए समुदाय के सदस्यों को प्रेरित किया. प्रधानमंत्री ने स्वच्छता को सेवा के साथ जोड़ा और 'स्वच्छता ही सेवाअभियान शुरू किया जो राजनीतिक कार्यकर्ताओं, युवाओं, धार्मिक समूहों, मशहूर हस्तियों, स्व सहायता समूहों और समुदाय के सदस्यों को जोड़ने वाले जन आंदोलन में बदल गया.

व्यापक निगरानी के लिए अभियान ने आधुनिक तकनीक का प्रभावी ढंग से उपयोग किया. वास्तविक समय प्रगति रिपोर्ट के लिए प्रत्येक गांव में हर  शौचालय को एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली पर मैप किया गया था. समूची प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक शौचालय को अनिवार्य रूप से जियोटैग किया गया था. स्वच्छ भारत मिशन के सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) प्रभाग ने सरकारी संवाद में नई ऊर्जा और आयाम जोड़े. 'दरवाजा बंद’, 'साफ नहीं तो माफ नहींजैसे प्रतिष्ठित अभियानों ने ग्रामीण भारत के नागरिकों को जोड़ा और उन्हें प्रेरित किया.

सरकार ने शौचालय निर्माण और उसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन के रूप में प्रति शौचालय 12,000 रुपये का प्रावधान किया. स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के पांच वर्षों में, सरकार ने 1.3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया और यह सुनिश्चित किया कि धन की कोई कमी हो. स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 10.28 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है. पांच साल में 603,175 गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया.

सभी ग्रामीणों को शौचालय की सुविधा की उपलब्धता और शौचालयों का उपयोग करने के लिए उन्हें प्रेरित कर लगभग शत प्रतिशत ग्रामीण स्वच्छता कवरेज हासिल किया गया है. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर सभी जिलों, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया. स्वच्छ भारत मिशन के परिणामस्वरूप, 55 करोड़ लोगों ने अपनी आदत बदली और शौचालय का उपयोग करना शुरू कर दिया. स्वच्छ भारत की प्राप्ति के साथ, पानी और स्वच्छता संबंधी बीमारियों में उल्लेखनीय कमी आई है. स्वच्छ भारत मिशन के परिणामस्वरूप ग्रामीण भारत में प्रति परिवार 50,000 रुपये से अधिक का वार्षिक लाभ हुआ है. खुले में शौच से मुक्त बनने के बाद कई गांवों में डायरिया, मलेरिया आदि बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या में कमी देखी गई है. बाल स्वास्थ्य और पोषण में भी सुधार हुआ है.

2014 में, भारत सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए 'स्वच्छ भारत स्वच्छ विद्यालयपहल शुरू की कि भारत के सभी स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय हों. खुले मे शौच से मुक्त भारत को रिकॉर्ड समय में हासिल करने का मतलब यह भी था कि भारत ने स्वच्छता के उद्देश्य  के लिए संयुक्त राष्ट्र के 31 दिसंबर 2030 के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को ग्यारह साल पहले प्राप्त किया.

फरवरी 2020 में, सरकार ने खुले में शौच से मुक्त स्थिति और ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की संधारणीयता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 1,40,881 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ स्वच्छ भारत अभियान के चरण- दो को मंजूरी दी. स्वच्छ भारत मिशन अपने दूसरे चरण में खुले में शौच से मुक्ति की ओर बढ़ रहा है जिसमें गांवों में समग्र स्वच्छता और ग्रामीण भारत में ठोस तथा तरल अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है. पेयजल तथा स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) और संबंधित राज्य के हिस्से से बजटीय आवंटन के अलावा, शेष राशि ग्रामीण स्थानीय निकायों, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस), कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व और राजस्व सृजन मॉडल आदि, विशेष रूप से एसएलडब्ल्यूएम के लिए 15वें वित्त आयोग के अनुदान के रूप में समायोजित की जाती है.

पेयजल और स्वच्छता विभाग नए विकेन्द्रीकृत और लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी समाधानों की पहचान करने के लिए काम कर रहा है: ग्रामीण क्षेत्रों में जल निकायों की सफाई और कायाकल्प, मल जल कीचड़ प्रबंधन, एकल उपयोग प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, पशु अपशिष्ट प्रबंधन, अपशिष्ट से धन की अवधारणा को साकार करने की दिशा में पेयजल और स्वच्छता विभाग द्वारा गोवर्धन योजना का मुख्य फोकस गांवों को साफ रखना, ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि करना और मवेशियों के कचरे से ऊर्जा और जैविक खाद का उत्पादन करना है.

दो प्रमुख कार्यक्रमों - स्वस्थ भारत मिशन-शहरी और कायाकल्प तथा शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत-एएमआरयूटी) ने पिछले सात वर्षों के दौरान शहरी परिदृश्य में सुधार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है. दोनों मिशनों ने नागरिकों को जल आपूर्ति और स्वच्छता की बुनियादी सेवाएं देने की क्षमता में वृद्धि की है. स्वच्छता एक जन आंदोलन बन गया है. सभी शहरी स्थानीय निकायों को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया है और 70 प्रतिशत ठोस कचरे को अब वैज्ञानिक रूप से संसाधित किया जा रहा है. 'अमृतकार्यक्रम 1.1 करोड़ घरेलू नल कनेक्शन और 85 लाख सीवर कनेक्शन जोड़कर जल सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है, जिससे 4 करोड़ से अधिक लोग लाभान्वित हो रहे हैं.

1 अक्टूबर, 2021 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 और 'अमृतÓ 2.0 प्रारंभ किया, जिसे सभी शहरों को 'कचरा मुक्तऔर 'पानी सुरक्षितबनाने की आकांक्षा को साकार करने के लिए बनाया गया है. ये प्रमुख मिशन भारत में तेजी से शहरीकरण की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने का संकेत देते हैं और सतत विकास लक्ष्य- 2030 की उपलब्धि में योगदान करने में भी सहायता करेंगे.

(संदीप दास दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं. ईमेल – sandipdasfoodagri@gmail.com)

व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं