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संपादकीय लेख


अंक संख्या 41, 8-14 जनवरी,2022

प्रवासी भारतीयों को मातृभूमि से जोड़ने के प्रयास

रूप नारायण दास

प्रवासी आबादी की समस्याओं और क्षमता के बारे में स्वदेश में अध्ययन करने पर बढ़ते ध्यान को, कई कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. राष्ट्र की भौतिक और भावनात्मक बाधाओं को तोड़ते हुए वैश्वीकरण की अपरिवर्तनीय और अजेय प्रक्रिया होने के कारण यह, सबसे महत्वपूर्ण  है.

अब दुनिया में केवल वस्तुओं और सेवाओं की मुक्त आवाजाही हो रही है, बल्कि लोगों का आवागमन और विचारों का संचरण भी देखा जा रहा है. हालांकि प्रवासन पूरी तरह से कोई नया चलन नहीं है, विश्व अर्थव्यवस्था के एकीकरण से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दे भी सामने आए हैं जो प्रवासन और स्वदेश वापसी पर असर डालते हैं. इन मुद्दों का ध्यान से समाधान करना आवश्यक है. स्वदेश के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक विकास में संपत्ति के रूप में प्रवासी आबादी के कौशल और क्षमता का दोहन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

फिर भी क्षमता का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू उनके बढ़ते महत्व से संबंधित है जिसे 'गैर-सरकारी व्यक्तिकहा जाता है और उन्हें अपनाने वाले देशों की सरकार की नीतियों को प्रभावित करने में उनकी भूमिका और प्रभाव हैं. चूंकि प्रवासी मुख्य रूप से 'गैर-सरकारी व्यक्तिहैं, उन्हें केवल मेजबान देशों में अल्पसंख्यकों के रूप में देखा जाना चाहिए, बल्कि उनके अपने देश की महत्वपूर्ण संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए. इसका एक स्पष्ट उदाहरण संयुक्त राज्य अमरीका में भारत-अमरीका परमाणु समझौते को पारित करने में भारतीय समुदाय का प्रभाव रहा है, भले ही यह प्रभाव बहुत कम हो.

 भारत की नीति और रवैया

गौरतलब है कि महात्मा गांधी ने पहली बार संगठित तरीके से प्रवासी भारतीयों के हितों की पैरवी की थी. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह का इस्तेमाल प्रवासी भारतीयों के साथ हुए अन्याय और अनुचित व्यवहार को उजागर करने के लिए किया, उनके अधिकारों, सम्मान और आत्मसम्मान के लिए लड़ाई लड़ी. गांधीजी केवल दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों की समस्याओं, बल्कि दुनियाभर में भारतीयों की समस्याओं के प्रति चिंतित थे. दक्षिण अफ्रीका में अपने लंबे प्रवास के दौरान, उन्होंने भारत की दो यात्राएं कीं, इस दौरान उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में विशेष रूप से भारतीयों के लिए समर्थन जुटाने के वास्ते, 'ग्रीन पैम्फलेटलिखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, वाणिज्य परिसंघ तथा अन्य संगठनों को संबोधित किया. गांधीजी के लगातार अभियान ने भारत और ब्रिटेन में औपनिवेशिक अधिकारियों को भारतीय समुदाय के कष्टों के प्रति संवेदनशील बना दिया था. प्रवासियों के योगदान को मान्यता देते हुए 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस घोषित किया जाता है, इसी तारीख को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे. अब प्रवासी भारतीय दिवस हर दो साल में एक बार मनाया जाता है.

भारत में स्वतंत्रता के बाद योग्य पेशेवरों का विदेशों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया आदि में पलायन देखा गया, जिसे 'ब्रेन ड्रेनकहा जाता है. प्रवासियों के प्रति कोई बड़ी पहल नहीं हुई, चाहे पीपुल ऑफ इंडियन ओरिजिन -(पीआईओ) यानी भारतीय मूल के व्यक्ति हों या अनिवासी भारतीय (एनआरआई). हालांकि, 1990 के दशक के दौरान शुरू किए गए आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के साथ, सरकार ने अनिवासी भारतीयों को राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया में शामिल करने के लक्ष्य के साथ विदेशों में प्रवासी आबादी के प्रति एक सक्रिय नीति भी शुरू की. इसी की पृष्ठभूमि में, गृह मंत्रालय ने मार्च 1999 में पीआईओ कार्ड की शुरुआत की. पीआईओ कार्ड योजना मूल रूप से उन भारतीयों के भावनात्मक संबंध को मजबूत करने के उद्देश्य से लाई गई थी जिन्होंने अन्य देशों को अपना निवास बना लिया है, लेकिन उन्हें अपनी मूल भूमि के साथ जुड़े रहने की तड़प है.

अनिवासी भारतीयों  पर उच्च स्तरीय समिति

सरकार ने प्रवासियों से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए एक बड़ी पहल की, जब उसने अगस्त 2000 में राज्य सभा के एक प्रतिष्ठित सदस्य और ब्रिटेन में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त स्वर्गीय डॉ एल एम सिंघवी की अध्यक्षता में अनिवासी भारतीयों  पर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया.

मई 2004 में प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय का गठन इस बात की स्वीकृति थी कि प्रवासी भारतीयों के कल्याण पर प्रमुखता से ध्यान देने की जरूरत है. मंत्रालय को पहले अनिवासी भारतीय मामलों का मंत्रालय कहा जाता था जिसे सितंबर 2004 में प्रवासी भारतीय मामलों का मंत्रालय नाम दिया गया था. श्रम और रोज़गार मंत्रालय का प्रवासगमन विभाग, दिसंबर 2004 में नए मंत्रालय से जोड़ दिया गया था. विदेश मंत्रालय के एनआरआई डिवीजन ने प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय को सहायता प्रदान की और अब यह विदेश मंत्रालय में प्रवासी प्रभाग के रूप में कार्य करता है.

दोहरी नागरिकता

समिति ने यह भी सिफारिश की कि नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत दोहरी नागरिकता की अनुमति दी जानी चाहिए. इसी की पृष्ठभूमि में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2003 को दिसंबर 2003 में राज्यसभा में पेश किया गया था. 2004 में, नागरिकता अधिनियम में संशोधन कर 16 निर्दिष्ट देशों में पीआईओ की ओवरसीज़ सिटिज़नशिप ऑफ इंडिया-ओसीआई सुविधा उपलब्ध कराई गई थी. भारत का प्रवासी नागरिक, भारत के नागरिक को दिए गए अधिकार का हकदार नहीं है और उसे सार्वजनिक रोज़गार के मामलों में अवसर की समानता का अधिकार नहीं है और वह संसद या राज्य विधायिका का सदस्य नहीं हो सकता. भारत का कोई प्रवासी नागरिक कृषि भूमि या वृक्षारोपण का हकदार भी नहीं है. फिर भी यह सुविधा जीवनभर नागरिकता का दर्जा प्रदान करती है और प्रवासी भारतीयों को भारत के साथ खुद को जोड़ने के लिए एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक प्रोत्साहन है.

मताधिकार

विशेष रूप से खाड़ी देशों के अनिवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार देने का मुद्दा काफी समय से संसद, मीडिया और न्यायपालिका का ध्यान आकर्षित कर रहा था. इस की पृष्ठभूमि में अनिवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार देने के उद्देश्य से, जन प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, 2006 को 17 फरवरी, 2006 को राज्य सभा में पेश किया गया था. सरकार का विचार था कि इस तरह के अधिकार उन्हें देश में चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने में सक्षम बनाएंगे और राष्ट्र निर्माण में उनकी भागीदारी को भी बढ़ावा देंगे. तदनुसार, उनकी मांग के सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद सरकार ने, लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव  के दौरान प्रवासियों के भारत में होने की स्थिति में, वोट डालने के लिए, अपना नाम निवास स्थान के संबंधित निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत कराने के लिए कानून के माध्यम से प्रावधान करने का प्रस्ताव किया.

विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया और राष्ट्रपति द्वारा सहमति प्रदान की गई. अब अनिवासी भारतीयों ने भारत में चुनाव के मतदान करना शुरू कर दिया है, लेकिन इसके लिए उन्हें मतदान के समय देश में उपस्थित होना आवश्यक है. हालांकि, रक्षा कर्मियों और राजनयिकों को प्राप्त डाक मतदान के विशेषाधिकार के अनुरूप इसकी मांग भी की जा रही है. इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए एनआरआई को पोस्टल बैलेट या इंटरनेट के माध्यम से वोट देने की अनुमति देने संबंधी एक याचिका पर अपने निर्णय में यह कहते हुए इसकी अनुमति देने से  परहेज किया कि यह चुनावी प्रक्रिया के दौरान भानुमति का पिटारा खोलने जैसा हो सकता है.

प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजा गया विदेशी धन

खाड़ी और दुनिया में अन्य जगहों पर प्रवासी कुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों द्वारा भेजा गया विदेशी धन भारत के लिए विदेशी मुद्रा आय का एक स्थाई स्रोत रहा है. विश्व बैंक के अनुसार, विश्व अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाली  महामारी के बावजूद, भारत ने 2020 में विदेशों से 83 बिलियन डॉलर प्राप्त किए.  इसकी तुलना में, चीन को विदेशी धन के रूप में 2020 में 59.5 बिलियन डॉलर प्राप्त हुआ, जबकि इससे पिछले वर्ष यह राशि 68.3 बिलियन डॉलर थी.

अनिवासी भारतीयों से धन की आमद का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अनिवासी भारतीय, बहुपक्षीय और द्विपक्षीय विदेशी एजेंसियों जैसे पारंपरिक स्रोतों को पीछे छोड़ते हुए भारत के सबसे बड़े विदेशी ऋणदाता के रूप में उभरे हैं. 1990 के समूचे दशक के दौरान और इस सहस्राब्दी के शुरुआती भाग में, विश्व बैंक एजेंसियों जैसे संगठनों का भारत के बकाया विदेशी ऋण में बड़ा हिस्सा था. लेकिन इसके बाद भारत में एनआरआई जमा राशि कई गुना बढ़ गई है और अब देश के विदेशी ऋण को करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है.

 पिछले कुछ वर्षों में, भारत विदेशों में अध्ययन कर रहे भारतीय अनुसंधान वैज्ञानिकों को प्रमुख वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों में स्थानांतरित करने के लिए आकर्षित करने के लिए कई पहल कर रहा है. इस संबंध में एक प्रमुख योजना भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा दी जाने वाली रामलिंगस्वामी री-एंट्री फेलोशिप है. इस योजना की संकल्पना कृषि, स्वास्थ्य विज्ञान, जैव-इंजीनियरिंग, ऊर्जा, पर्यावरण, जैव सूचना विज्ञान और अन्य संबंधित क्षेत्रों जैसे जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न अत्याधुनिक विषयों में विदेशों में काम कर रहे अत्यधिक कुशल शोधकर्ताओं (भारतीय नागरिकों) को आकर्षित करने के उद्देश्य से की गई है. यह एक सीनियर फेलोशिप कार्यक्रम है, और पुरस्कार विजेताओं को साइंटिस्ट-डी के स्तर के बराबर माना जाता है. वे शिक्षण और अनुसंधान कार्य करने वाले और डॉक्टरेट तथा एमएस विद्यार्थियों की निगरानी के पात्र हैं. बड़ी संख्या में ऐसे वैज्ञानिक उन संस्थानों से जुड़े हैं जहां वे अपना शोध करते हैं. सरकार अब फेलोशिप के तहत परिलब्धियों और शोध अनुदान दोनों को बढ़ाने की कोशिश कर रही है ताकि इसे और आकर्षक बनाया जा सके. प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार अनिवासी भारतीयों या भारतीय मूल के व्यक्तियों या प्रवासी भारतीयों को शामिल करने में उल्लेखनीय योगदान करने वाले एनआरआई या पीआईओ द्वारा संचालित संगठन या संस्थान को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है.

भारत सरकार ने हमेशा विदेशों में संकट की स्थिति में प्रवासी भारतीयों को निकाला है, जिसमें कोविड-19 अवधि भी शामिल है. विदेशों में भारतीय मिशन भी संकट की स्थिति में भारतीयों की सहायता करते हैं. पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने संकट में फंसे भारतीय प्रवासियों की सहायता कर ख्याति अर्जित की.

भारत ने विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के साथ सक्रिय जुड़ाव की ओर बढ़ते हुए एक लंबा रास्ता तय किया है. बदले में प्रवासी भारतीयों ने भी अपनी ओर से पूरा ध्यान रखा है. एक समय था जब भारतीय बेहतर काम-धंधे के लिए विदेश जाते थे लेकिन अब उनके  रिवर्स माइग्रेशन की प्रक्रिया और कृतज्ञता के कर्ज को चुकाने के लिए मातृभूमि के साथ जुड़ने की तड़प दिख रही है.

(लेखक, लोक सभा सचिवालय के पूर्व संयुक्त सचिव, वर्तमान में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद में सीनियर फेलो हैं)

-मेल: rndas_osd@yahoo.com

व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं